Tafseer Surah hud from Kanzul Imaan
सूरए हूद
11 सूरए हूद
सूरए हूद मक्का में उतरी, इसमें 123 आयतें और दस रूकू हैं.
पहला रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान, रहमत वाला(1)
यह एक किताब है जिसकी आयतें हिकमत (बोध) भरी हैं (2)
फिर तफ़सील की गईं(3)
हिकमत वाले ख़बरदार की तरफ़ से {1} कि बन्दगी न करो मगर अल्लाह की, बेशक मैं तुम्हारे लिये उसकी तरफ़ से डर और ख़ुशी सुनाने वाला हूँ {2} और यह कि अपने रब से माफ़ी मांगो फिर उसकी तरफ़ तौबह करो, तुम्हें बहुत अच्छा बरतना देगा(4)
एक ठहराए वादे तक और हर फ़ज़ीलत (प्रतिष्ठा) वाले को(5)
उसका फ़ज़्ल (अनुकम्पा) पहुंचाएगा(6)
और अगर मुंह फेरो तो तुमपर बड़े दिन (7)
के अज़ाब का ख़ौफ़ करता हूँ {3} तुम्हें अल्लाह ही की तरफ़ फिरना है (8)
और वह हर चीज़ पर क़ादिर {शक्तिमान} है(9){4}
सुनो वो अपने सीने दोहरे करते हैं कि अल्लाह से पर्दा करें (10)
सुनो जिस वक़्त वो अपने कपड़ों से सारा बदन ढांप लेते हैं उस वक़्त भी अल्लाह उनका छुपा और ज़ाहिर सब कुछ जानता है, बेशक वह दिलों की बात जानने वाला है{5}
पारा 12
सूरए हूद पहला रूकू जारी
और ज़मीन पर चलने वाला कोई (11)
ऐसा नहीं जिसका रिज़्क़ (रोज़ी) अल्लाह के करम के ज़िम्मे पर न हो (12)
और जानता है कि कहाँ ठहरेगा (13)
और कहाँ सुपुर्द होगा(14)
सब कुछ एक साफ़ बयान करने वाली किताब (15)
में है{6} और वही है जिसने आसमानों और ज़मीन को छ दिन में बनाया और उसका अर्श पानी पर था(16)
कि तुम्हें आज़माए(17)
तुम में किस का काम अच्छा है और अगर तुम फ़रमाओ कि बेशक तुम मरने के बाद उठाए जाओगे तो काफ़िर ज़रूर कहेंगे कि यह (18)
तो नहीं मगर खुला जादू(19){7}
और अगर हम उनसे अज़ाब (20)
कुछ गिनती की मुद्दत तक हटा दें तो ज़रूर कहेंगे किस चीज़ ने रोका है (21)
सुन लो जिस दिन उनपर आएगा उनसे फेरा न जाएगा और उन्हें घेरेगा वही अज़ाब जिसकी हंसी उड़ाते थे(8)
तफ़सीर
सूरए हूद – पहला रूकू
(1) सूरए हूद मक्की है. हसन व अकरमह वग़ैरह मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया कि आयत “व अक़िमिस्सलाता तरफ़यिन्नहारे” के सिवा बाक़ी सारी सूरत मक्की हैं. मक़ातिल ने कहा कि आयत “फ़लअल्लका तारिकुन” और “उलाइका यूमिनूना बिही” और “इन्नल हसनाते युज़हिब्नस सैय्यिआते” के अलावा सारी सूरत मक्की है. इसमें दस रूकू, 123 आयतें, एक हज़ार छ सौ कलिमे और नौ हज़ार पांच सौ सड़सठ अक्षर हैं. हदीस में है सहाबा ने अर्ज़ किया, या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैका वसल्लम, हुज़ूर पर बुढ़ापे के आसार दिखने लगे. फ़रमाया, मुझे सूरए हूद, सूरए वाक़िआ, सूरए अम्मा यतसाअलून और सूरए इज़श -शम्से कुव्विरत ने बूढा कर दिया (तिरमिज़ी). सम्भवत: यह इस वजह से फ़रमाया कि इन सूरतों में क़यामत और मरने के बाद उठाए जाने और हिसाब किताब होने और जन्नत व दोज़ख़ का बयान है.
(2) जैसा कि दूसरी आयत में इरशाद हुआ “तिल्का आयातुल किताबिल हकीम” (यह हिकमत वाली किताब की आयतें हैं- 10:1 ) कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया “उहकिमत” (हिकमत से भरी) के मानी ये हैं कि उनकी नज़्म मोहकम और उस्तुवार की गई. इस सूरत में मानी ये होंगे कि इस में कोई ख़ामी राह पा ही नहीं सकती. वह बिनाए मोहकम है. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि कोई किताब इनकी नासिख़ नहीं, जैसा कि ये दूसरी किताबों और शरीअतों की नासिख़ हैं.
(3) और सूरत सूरत और आयत आयत अलग अलग ज़िक्र की गई या अलग अलग उतारी गई या अक़ीदे,अहकाम, नसीहतें, क़िस्से और ग़ैबी ख़बरें इन में तफ़सील और विस्तार से बयान फ़रमाई गई.
(4) लम्बी उम्र और भरपूर राहत वे ऐश और बहुत सा रिज़्क़. इससे मालूम हुआ कि सच्चे दिल से तौबह व इस्तग़फ़ार करना उम्र लम्बी होने और आजिविका में विस्तार होने के लिये बेहतरीन अमल है.
(5) जिसने दुनिया में अच्छे कर्म किये हो उसकी फ़रमाँबरदारियाँ और नेकियाँ ज़्यादा हों.
(6) उसको जन्नत में कर्मों के हिसाब से दर्जे अता फ़रमाएगा. कुछ मुफ़स्सिरों ने कहा आयत के मानी यह हैं कि जिसने अल्लाह के लिये अमल किया, अल्लाह तआला आयन्दा के लिये उसे नेक कर्म और फ़रमाँबरदारी की तौफ़ीक देता है.
(7) यानी क़यामत के दिन.
(8) आख़िरत में वहाँ नेकियों का इनाम और बुराइयों की सज़ा मिलेगी.
(9) दुनिया में रोज़ी देने पर भी. मौत देने पर भी, मौत के बाद ज़िन्दा करने और सवाब व अज़ाब पर भी.
(10) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया, यह आयत अख़नस बिन शरीक़ के बारे में उतरी. यह बहुत मीठा बोलने वाला व्यक्ति था. रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के सामने आता तो बहुत ख़ुशामद की बातें करता और दिल में दुश्मनी छुपाए रखता. इसपर यह आयत उतरी. मानी ये हैं कि वो अपने सीनों में दुश्मनी छुपाए रखते हैं जैसे कपड़े की तह में कोई चीज़ छुपाई जाती है. एक क़ौल यह है कि कुछ दोहरी प्रवृति वालों की आदत थी कि जब रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का सामना होता तो सीना और पीठ झुकाते और सर नीचा करते, चेहरा छुपा लेते ताकि उन्हें हुज़ूर देख न पाएं. इसपर यह आयत उतरी. बुख़ारी ने इन लोगों में एक हदीस रिवायत की कि मुसलमान पेशाब पाख़ाने और हमबिस्तरी के वक़्त अपने बदन खोलने से शरमाते थे. उनके हक़ में यह आयत उतरी कि अल्लाह से बन्दे का कोई हाल छुपा ही नहीं है लिहाज़ा चाहिये कि वह शरीअत की इजाज़तों पर अमल करता रहे.
पारा ग्याराह समाप्त
(11) जानदार हो.
(12) यानी वह अपनी कृपा से हर जानदार की आजीविका की देखभाल करता है.
(13) यानी उसके रहने की जगह को जानता है.
(14) सुपुर्द होने की जगह से, या दफ़्न होने का स्थान मुराद है, या मकान या मौत या क़ब्र.
(15) यानी लौहे महफ़ूज़.
(16) यानी अर्श के नीचे पानी के सिवा और कोई मख़लूक़ न थी. इससे यह भी मालूम हुआ कि अर्श और पानी आसमानों और ज़मीनों की पैदायश से पहले पैदा फ़रमाए गए.
(17) यानी आसमान व ज़मीन और उनके बीच सृष्टि को पैदा किया, जिसमें तुम्हारे फ़ायदे और मसलिहत हैं ताकि तुम्हें आज़माइश में डाले और ज़ाहिर हो कि कौन शुक्र गुज़ार तक़वा वाला फ़रमाग्बरदार है और..
(18) यानी क़ुरआन शरीफ़ जिस में मरने के बाद उठाए जाने का बयान है यह.
(19) यानी झूट और धोख़ा.
(20) जिसका वादा किया है.
(21) वह अज़ाब क्यों नहीं उतरता, क्या देर है. काफ़िरों का यह जल्दी करना झुटलाने और हंसी बनाने के तौर पर है.
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सूरए हूद – दूसरा रूकू
सूरए हूद – दूसरा रूकू
और अगर हम आदमी को अपनी किसी रहमत का मज़ा दें (1)
फिर उसे उससे छीन लें, ज़रूर वह बड़ा ना उम्मीद नाशुक्रा है(2) {9}
और अगर हम उसे नेमत का मज़ा दें उस मुसीबत के बाद जो उसे पहुंची तो ज़रूर कहेगा कि बुराइयाँ मुझसे दूर हुई,बेशक वह ख़ुश होने वाला बड़ाई मारने वाला है(3){10}
मगर जिन्होंने सब्र किया और अच्छे काम किये(4)
उनके लिये बख़्शिश और बड़ा सवाब है {11} तो क्या जो वही (देववाणी) तुम्हारी तरफ़ होती है उसमें से कुछ तुम छोड़ दोगे और उसपर दिलतंग होगे(5)
इस बिना पर कि वो कहते हैं उनके साथ कोई ख़ज़ाना क्यों नहीं उतरा या उनके साथ कोई फ़रिश्ता आता,तुम तो डर सुनाने वाले हो(6)
और अल्लाह हर चीज़ पर मुहाफ़िज़ (रक्षक) है (7){12}
क्या ये कहते है कि इन्होंने इसे जी से बना लिया, तुम फ़रमाओ कि तुम ऐसी बनाई हुई दस सूरतें ले आओ(8)
और अल्लाह के सिवा जो मिल सके(9)
सबको बुला लो अगर तुम सच्चे हो(10){13}
तो ऐ मुसलमानों और वो तुम्हारी इस बात का जवाब न दे सकें तो समझ लो कि वह अल्लाह के इल्म ही से उतरा है और यह कि उसके सिवा कोई सच्चा मअबूद नहीं,तो क्या अब तुम मानोगे(11){14}
जो दुनिया की ज़िन्दगी और आरायश चाहता हो(12)
हम उसमें उनका पूरा फल दे देंगे(13)
और उसमें कमी न देंगे{15} ये हैं वो जिनके लिये आख़िरत में कुछ नहीं मगर आग और अकारत गया जो कुछ वहां करते थे और नाबूद हुए जो उनके कर्म थे (14){16}
तो क्या वो जो अपने रब की तरफ़ से रौशन दलील पर हो(15)
और उस पर अल्लाह की तरफ़ से गवाह आए(16)
और इस से पहले मूसा की किताब (17)
पेशवा और रहमत, वो उसपर (18)
ईमान लाते हैं और जो उसका इन्कारी हो सारे गिरोहों में (19)
तो आग उसका वादा है, तो ऐ सुनने वाले तुझे कुछ इस में शक न हो, बेशक वह हक़ है तेरे रब की तरफ़ से लेकिन बहुत आदमी ईमान नहीं रखते {17} और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन जो अल्लाह पर झूट बांधे(20)
वो अपने रब के हुज़ूर पेश किये जाएंगे(21)
और गवाह कहेंगे ये हैं जिन्होंने अपने रब पर झूट बोला था, अरे ज़ालिमों पर ख़ुदा की लअनत(22){18}
जो अल्लाह की राह से रोकते हैं और उसमें कजी चाहते हैं और वही आख़िरत के इन्कारी हैं {19} वो थकाने वाले नहीं ज़मीन में (23)
और न अल्लाह से अलग उनके कोई हिमायती (24)
उन्हें अज़ाब पर अज़ाब होगा (25)
वो न सुन सकते थे और न देखते (26){20}
वही हैं जिन्होंने अपनी जानें घाटे में डालीं और उनसे खोई उनसे खोई गई जो बातें जोड़ते थे{21}चाहे अनचाहे वही आख़िरत में सबसे ज़्यादा नुकसान में हैं (27){22}
बेशक जो ईमान लाए और अच्छे काम किये और अपने रब की तरफ़ रूजू लाए वो जन्नत वाले हैं वो उसमें हमेशा रहेंगे {23} दोनो फ़रीक (पक्षों) (28)
का हाल ऐसा है जैसे एक अंधा और बहरा और दूसरा देखता और सुनता (29)
क्या उन दोनो का हाल एक सा है (30)
तो क्या तुम ध्यान नहीं करते{24}
तफ़सीर
सूरए हूद – दूसरा रूकू
(1) स्वास्थ्य और अम्न का या आजिविका के विस्तार और धन का.
(2) कि दोबारा इस नेअमत के पाने से मायूस हो जाता है और अल्लाह के फ़ज़्ल से अपनी आशा तोड़ लेता है और सब्र व रज़ा पर जमा नहीं रहता और पिछली नेअमत की नाशुक्री करता है.
(3) शुक्र गुज़ार होने और नेअमत का हक़ अदा करने के बजाय.
(4) मुसीबत पर साबिर और नेअमत पर शाकिर रहे.
(5) तिरमिज़ी ने कहा कि इस्तिफ़हाम नकार के अर्थ में है यानी आपकी तरफ़ जो वही होती है वह सब आप उन्हें पहुंचाएं और दिल तंग न हो. यह तबलीग़ों रिसालत की ताकीद है, हालांकि अल्लाह तआला जानता है कि उसके रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अपनी नबुव्वत का हक़ अदा करने में कमी करने वाले नहीं हैं और उसने उनको इससे मअसूम फ़रमाया है. इस ताकीद में रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तसल्ली भी है और काफ़िरों की मायूसी भी. उनका हंसी उड़ाना नबुव्वत और तबलीग़ के काम में अड़चन नहीं हो सकता. अब्दुल्लाह बिन उमैय्या मख़ज़ूमी ने रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से कहा था कि अगर आप सच्चे रसूल हैं और आपका ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है तो उसने आप पर ख़ज़ाना क्यों नहीं उतारा या आपके साथ कोई फ़रिश्ता क्यों नहीं भेजा जो आपकी रिसालत की गवाही देता. इसपर यह आयत उतरी.
(6) तुम्हें क्या परवाह, अगर काफ़िर न मानें और हंसी बनाएं.
(7) मक्के के काफ़िर क़ुरआन शरीफ़ की निस्बत.
(8) क्योंकि इन्सान अगर ऐसा कलाम बना सकता है तो इस जैसा बनाना तुम्हारी क्षमता से बाहर न होगा. तुम अरब हो, अच्छी और साफ़ ज़बान वाले हो, कोशिश करो.
(9) अपनी मदद के लिये.
(10) इसमें कि यह कलाम इन्सान का बनाया हुआ है.
(11) और यक़ीन रखोगे कि यह अल्लाह की तरफ़ से है यानी कु़रआन का चमत्कार और कमाल देख लेने के बाद ईमान और इस्लाम पर जमे रहो.
(12) और अपनी कायरता से आख़िरत पर नज़र न रखता हो.
(13) और जो कर्म उन्होंने दुनिया की चाह के लिये किये हैं उनका बदला सेहत व दौलत, रिज़्क़ में विस्तार और औलाद में बहुतात वग़ैरह से दुनिया ही में पूरा कर देंगे.
(14) ज़िहाक ने कहा कि यह आयत मुश्रिकों के बारे में है कि अगर वो दूसरों के काम आएं या मोहताज़ों को दे या किसी परेशान हाल की मदद करें या इस तरह कि कोई और नेकी करें तो अल्लाह तआला रिज़्क़ में विस्तार वगैरह से उनके कर्मों का बदला दुनिया ही में दे देता है और आख़िरत में उनके लिये कोई हिस्सा नहीं. एक क़ौल यह है कि यह आयत मुनाफ़िक़ों के बारे में उतरी जो आख़िरत के सवाब पर तो विश्वास नहीं रखते थे और जिहादों में ग़नीमत का माल हासिल करने के लिये शामिल होते थे.
(15) वह उसकी मिस्ल हो सकता है जो दुनिया की ज़िन्दगी और उसकी आरायश चाहता हो ऐसा नहीं. इन दोनों में बहुत बड़ा अन्तर है. रौशन दलील से वह अक़्ली दलील मुराद है जो इस्लाम की सच्चाई को प्रमाणित करे और उस व्यक्ति से जो अपने रब की तरफ़ से रौशन दलील पर हो, वो यहूदी मुराद हें जो इस्लाम लाए जैसे कि हज़रत अब्दुल्लाह बिन सलाम.
(16) और उसकी सेहत की गवाही दे. यह गवाह क़ुरआन शरीफ़ है.
(17) यानी तौरात.
(18) यानी क़ुरआन पर.
(19) चाहे कोई भी हों. हदीस शरीफ़ में है सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया, उसकी क़सम जिसके दस्ते क़ुदरत में मुहम्मद की जान है, इस उम्मत में जो कोई भी है यहूदी हो या नसरानी, जिसको भी मेरी ख़बर पहुंचे और वह मेरे दीन पर ईमान लाए बिना मर जाए, वह ज़रूर जहन्नमी है.
(20) और उसके लिये शरीक और औलाद बताए. इस आयत से साबित होता है कि अल्लाह तआला पर झूट बोलना जुल्म है.
(21) क़यामत के दिन, और उनसे कर्म पूछे जाएंगे और नबियों और फ़रिश्तों की उनपर गवाही ली जाएगी.
(22) बुखारी और मुस्लिम की हदीस में है कि क़यामत के दिन काफ़िरों और दोग़ली प्रवृति वालों को सारी सृष्टि के सामने कहा जाएगा कि वो हैं जिन्होंने अपने रब पर झूठ बोला, ज़ालिमों पर ख़ुदा की लअनत. इस तरह वो सारी सृष्टि के सामने रूस्वा किये जाएंगे.
(23) अल्लाह को, अगर वह उनपर अज़ाब करना चाहे, क्योंकि वो उसके क़ब्ज़े और उसकी मिल्क में है, न उससे भाग सकते है न बच सकते हैं.
(24) कि उनकी मदद करें और उन्हें इसके अज़ाब से बचाएं.
(25) क्योंकि उन्होंने लोगों को ख़ुदा की राह से रोका और मरने के बाद उठने का इन्कार किया.
(26) क़तादा ने कहा कि वो सत्य सुनने से बहरे हो गए,तो कोई ख़ैर की बात सुनकर नफ़ा नहीं उड़ाते और न वह क़ुदरत की निशानियाँ देखकर फ़ायदा उठाते हैं.
(27) कि उन्होंने जन्नत की जगह जहन्नम को इख़्तियार किया.
(28) यानी काफ़िर और मूमिन.
(29) काफ़िर उसकी तरह है जो न देखे न सुने,यह दूषित है. और मूमिन उसकी तरह है जो देखता भी है और सुनता है. वह सम्पूर्ण है. सत्य और असत्य की पहचान रखता है.
(30) हरगिज़ नहीं.
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सूरए हूद – तीसरा रूकू
सूरए हूद – तीसरा रूकू
और बेशक हमने नूह को उसकी क़ौम की तरफ़ भेजा(1)
कि मैं तुम्हारे लिये साफ़ डर सुनाने वाला हूँ {25} कि अल्लाह के सिवा किसी को न पूजो बेशक मैं तुमपर एक मुसीबत वाले दिन के अज़ाब से डरता हूँ(2){26}
तो उसकी क़ौम के सरदार जो काफ़िर हुए थे बोले हम तो तुम्हें अपने ही जैसा आदमी देखते हैं (3)
और हम नहीं देखते कि तुम्हारी पैरवी (अनुकरण) किसी ने की हो मगर हमारे कमीनों (4)
सरसरी नज़र से (5)
और हम तुम में अपने ऊपर कोई बड़ाई नहीं पाते(6)
बल्कि हम तुम्हें (7)
झूटा ख़याल करते हैं {27} बोला ऐ मेरी क़ौम भला बताओ तो अगर मैं अपने रब की तरफ़ से दलील पर हूँ (8)
और उसने मुझे अपने पास से रहमत बख़्शी (9)
तो तुम उससे अंधे रहे, क्या हम उसे तुम्हारे गले चपेट दें और तुम बेज़ार हो (10){28}
और ऐ क़ौम मैं तुमसे कुछ इसपर (11)
माल नहीं मांगता (12)
मेरा अज़्र तो अल्लाह ही पर है और मैं मुसलमानों को दूर करने वाला नहीं (13)
बेशक वो अपने रब से मिलने वाले हैं (14)
लेकिन मैं तुमको निरे जाहिल लोग पाता हूँ (15){29}
और ऐ क़ौम मुझे अल्लाह से कौन बचा लेगा अगर मैं उन्हें दूर करूंगा, तो क्या तुम्हें ध्यान नहीं {30} और मैं तुम से नहीं कहता कि मेरे पास अल्लाह के ख़जाने हैं और न यह कि मैं ग़ैब (अज्ञात) जान लेता हूँ और न यह कहता हूँ कि मैं फ़रिश्ता हूँ (16)
और मैं उन्हें नहीं कहता जिनको तुम्हारी निगाहें हक़ीर (तुच्छ) समझती हैं कि हरगिज़ उन्हें अल्लाह कोई भलाई न देगा, अल्लाह ख़ूब जानता है जो उनके दिलों में है (17)
ऐसा करूं (18)
तो ज़रूर मैं ज़ालिमों में से हूँ (19){31}
बोले ऐ नूह हम से झगड़े और बहुत ही झगड़े तो लेआओ जिसका (20)
हमें वादा दे रहे हो अगर तुम सच्चे हो {32} बोला वह तो अल्लाह तुमपर लाएगा अगर चाहे और तुम थका न सकोगे (21){33}
और तुम्हें मेरी नसीहत नफ़ा न देगी अगर मैं तुम्हारा भला चाहूँ जबकि अल्लाह तुम्हारी गुमराही चाहे, वह तुम्हारा रब है और उसी की तरफ़ फिरोगे(22){34}
क्या ये कहते हैं कि इन्होंने उसे अपने जी से बना लिया (23)
तुम फ़रमाओ अगर मैं ने बना लिया होगा तो मेरा गुनाह मुझ पर है (24)
और मैं तुम्हारे गुनाह से अलग हूँ {35}
तफ़सीर
सूरए हूद – तीसरा रूकू
(1) उन्होंने क़ौम से फ़रमाया.
(2) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि हज़रत नूह अलैहिस्सलाम चालीस साल के बाद नबी बनाए गए और नौ सौ पचास साल अपनी क़ौम को दावत फ़रमाते रहे और तूफ़ान के बाद साठ बरस दुनिया में रहे़, तो आपकी उम्र एक हज़ार पचास साल की हुई. इसके अलावा उम्र शरीफ़ के बारे में और भी क़ौल हैं (ख़ाज़िन)
(3) इस गुमराही में बहुत सी उम्मतें पड़ कर. इस्लाम में भी बहुत से बदनसीब सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को बशर कहते हैं और हमसरी और बराबरी का फ़ासिद ख़याल रखते हैं. अल्लाह तआला उन्हें गुमराही से बचाए.
(4) कमीनों से मुराद उनकी, वो लोग थे जो उनकी नज़र में छोटे पेशे रखते थे. हक़ीक़त यह है कि उनका यह क़ौल ख़ालिस जिहालत था, क्योंकि इन्सान का मर्तबा दीन के पालन और रसूल की फ़रमाँबरदारी से है. माल, मन्सब और पेशे को इसमें दख़ल नहीं. दीनदार, नेक सीरत, पेशावर को हिक़ारत से देखना और तुच्छ समझना जिहालत का काम है.
(5) यानी बग़ैर ग़ौरों फ़िक्र के.
(6) माल और रियासत में, उनका यह क़ौल भी जिहालत भरा था, क्योंकि अल्लाह के नज़दीक बन्दे के लिये ईमान और फ़रमाँबरदारी बुज़ु्र्गी का कारण है, न कि माल और रियासत.
(7) नबुव्वत के दावे में और तुम्हारे मानने वालों को इसकी तस्दीक़ में.
(8) जो मेरे दावे की सच्चाई पर गवाह हो.
(9) यानी नबुव्वत अता की.
(10) और हुज्जत या तर्क को नापसन्द रखते हो.
(11) यानी तबलीग़े रिसालत पर.
(12) कि तुमपर इसका अदा करना बोझ हो.
(13) यह हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने उनकी उस बात के जवाब में फ़रमाया था जो लोग कहते थे कि ऐ नूह, नीचे लोगों को अपनी बैठक से निकाल दीजिये, ताकि हमें आपकी मजलिस में बैठने से शर्म न आए.
(14) और उसके क़ुर्ब से फ़ायज़ होंगे तो मैं उन्हें कैसे निकाल दूँ.
(15) ईमानदारों को नीच कहते हो और उनकी क़द्र नहीं करते और नहीं जानते कि तुम से बेहतर है.
(16) हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम ने आपकी नबुव्वत में तीन संदेह किये थे. एक शुबह तो यह कि “मा नरा लकुम अलैना मिन फ़दलिन” कि हम तुम में अपने ऊपर कोई बड़ाई नहीं पाते. यानी तुम माल दौलत में हमसे ज़्यादा नहीं हो. इसके जवाब में हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया “ला अक़ूलो लकुम इन्दी ख़ज़ाइनुल्लाह” यानी मैं तुमसे नहीं कहता कि मेरे पास अल्लाह के ख़ज़ाने हैं. तो तुम्हारा यह ऐतिराज़ बिल्कुल बे बुनियाद है. मैंने कभी माल की फ़ज़ीलत नहीं जताई और दुनिया की दौलत की तुम को आशा नहीं दिलाई और अपनी दावत को माल के साथ नहीं जोड़ा. फिर तुम यह कैसे कह सकते हो कि हम तुम में कोई माली फ़ज़ीलत नहीं पाते. और तुम्हारा यह ऐतिराज़ बिल्कुल बेहूदा है. दूसरा शुबह क़ौमे नूह ने यह किया था “मा नराकत तबअका इल्लल लज़ीना हुम अराज़िलुना बादियर राये” यानी हम नहीं देखते कि तुम्हारी किसी ने पैरवी की हो मगर हमारे कमीनों ने. सरसरी नज़र से मतलब यह था कि वो भी सिर्फ़ ज़ाहिर में मूमिन हैं, बातिन में नहीं. इसके जवाब में हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने यह फ़रमाया कि मैं नहीं कहता कि मैं ग़ैब जानता हूँ तो मेरे अहकाम ग़ैब पर आधारित हैं ताकि तुम्हें यह ऐतिराज़ करने का मौक़ा होता. जब मैंने यह कहा ही नहीं तो ऐतिराज़ बे महल है और शरीअत में ज़ाहिर का ऐतिबार है. लिहाज़ा तुम्हारा ऐतिराज़ बिल्कुल बेजा है . साथ ही “ला अअलमुल ग़ैबा” फ़रमाने में क़ौम पर एक लतीफ़ तअरीज़ भी है कि किसी के बातिन पर हुक्म लगाना उसका काम है जो ग़ैब का इल्म रखता हो. मैंने तो इसका दावा नहीं किया, जबकि मैं नबी हूँ. तुम किस तरह कहते हो कि वो दिल से ईमान नहीं लाए. तीसरा संदेह इस क़ौम का यह था कि “मा नराका इल्ला बशरम मिस्लुना” यानी हम तुम्हें अपने ही जैसा आदमी देखते हैं. इसके जवाब में फ़रमाया कि मैं ने अपनी दावत को अपने फ़रिश्ते होने पर आधारित नहीं किया था कि तुम्हें यह ऐतिराज़ का मौक़ा मिलता कि जताते तो थे वह अपने आप को फ़रिश्ता और थे बशर. लिहाज़ा तुम्हारा यह ऐतिराज़ भी झूटा है.
(17) नेकी या बुराई, सच्ची वफ़ादारी या दोहरी प्रवृति.
(18) यानी अगर मैं उनके ज़ाहिरी ईमान को झुटलाकर उनके बातिन पर इल्ज़ाम लगाऊं और उन्हें निकाल दूँ.
(19) और अल्लाह का शुक्र है कि मैं ज़ालिमों में से हरगिज़ नहीं हूँ तो ऐसा कभी न करूंगा.
(20) अज़ाब.
(21) उसको अज़ाब करने से, यानी न उस अज़ाब को रोक सकोगे और न उससे बच सकोगे.
(22) आख़िरत में वही तुम्हारे अअमाल का बदला देगा.
(23) और इस तरह ख़ुदा के कलाम और उसे मानने से बचते हैं और उसके रसूल पर लांछन लगाते हैं और उनकी तरफ़ झूट बांधते हैं जिनकी सच्चाई खुले प्रमाणों और मज़बूत तर्कों से साबित हो चुकी है. लिहाज़ा अब उसने.
(24) ज़रूर इसका वबाल आएगा लेकिन अल्लाह के करम से मैं सच्चा हूँ तो तुम समझ लो कि तुम्हारे झुटलाने और इन्कार का वबाल तुम पर पड़ेगा.
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सूरए हूद – चौथा रूकू
सूरए हूद – चौथा रूकू
और नूह को वही हुई कि तुम्हारी क़ौम से मुसलमान न होंगे मगर जितने ईमान ला चुके तो ग़म न खा उसपर जो वो करते हैं(1){36}
और किश्ती बनाओ हमारे सामने (2)
और हमारे हुक्म से और ज़ालिमों के बारे में मुझसे बात न करना (3)
वो ज़रूर डुबाए जाएंगे(4){37}
और नूह किश्ती बनाता है, और जब उसकी क़ौम के सरदार उसपर गुज़रते उसपर हंसते (5)
बोले अगर तुम हम पर हंसते हो तो एक वक़्त हम तुमपर हंसेगे(6)
जैसा तुम हंसते हो (7){38}
तो अब जान जाओगे किसपर आता है वह अज़ाब कि उसे रुसवा करे (8)
और उतरता है वह अज़ाब जो हमेशा रहे (9){39}
यहाँ तक कि जब हमारा हुक्म आया (10)
और तनूर उबला (11)
हमने फ़रमाया किश्ती में सवार करले हर जिन्स(नस्ल)में से एक जोड़ा नर और मादा और जिनपर बात पड़ चुकी है(12)
उनके सिवा अपने घरवालों और बाक़ी मुसलमानों को और उसके साथ मुसलमान न थे मगर थोड़े(13){40}
और बोला इसमें सवार हो (14)
अल्लाह के नाम पर इसका चलना और इसका ठहरना (15)
बेशक मेरा रब ज़रूर बख़्शने वाला मेहरबान है {41} और वह उन्हें लिये जा रही है ऐसी मौजों में जैसे पहाड़ (16)
और नूह ने अपने बेटे को पुकारा और वह उससे किनारे था(17)
ऐ मेरे बच्चे हमारे साथ सवार हो जा और काफ़िरों के साथ न हो (18){42}
बोला अब मैं किसी पहाड़ की पनाह लेता हूँ वह मुझे पानी से बचा लेगा, कहा आज अल्लाह के अज़ाब से कोई बचाने वाला नहीं मगर जिसपर वह रहम करे, और उनके बीच में मौज आड़े आई तो वह डूबतों में रह गया(19){43}
और हुक्म फ़रमाया गया कि ऐ ज़मीन अपना पानी निगल ले और आसमान थम जा और पानी ख़ुश्क कर दिया गया और काम तमाम हुआ और किश्ती(20)
जूदी पहाड़ पर ठहरी (21)
और फ़रमाया गया कि दूर हों बे इन्साफ़ लोग {44} और नूह ने अपने रब को पुकारा अर्ज़ की ऐ मेरे रब मेरा बेटा भी तो मेरा घर वाला है (22)
और बेशक तेरा वादा सच्चा है और तू सबसे बढ़कर हुक्म वाला(23){45}
फ़रमाया ऐ नूह वह तेरे घरवालों में नहीं (24)
बेशक उसके काम बड़े नालायक़ हैं तो मुझ से वह बात न मांग जिसका तुझे इल्म नहीं(25)
मैं तुझे नसीहत फ़रमाता हूँ कि नादान न बन {46} अर्ज़ की ऐ मेरे रब मैं तेरी पनाह चाहता हूँ कि तुझसे वह चीज़ मांगू जिसका मुझे इल्म नहीं, और अगर तू मुझे न बख़्शे और रहम न करे तो मैं ज़ियाँकार (नुक़सान वाला) हो जाऊं{47} फ़रमाया गया ऐ नूह किश्ती से उतर हमारी तरफ़ से सलाम और बरकतों के साथ(26)
जो तुझपर है और तेरे साथ के कुछ गिरोहों पर (27)
और कुछ गिरोह हैं जिन्हें हम दुनिया बरतने देंगे(28)
फिर उन्हें हमारी तरफ़ से दर्दनाक अज़ाब पहुंचेगा(29){48}
ये ग़ैब की ख़बरें हम तुम्हारी तरफ़ वही (अल्लाह का कलाम) करते हैं (30)
इन्हें न तुम जानते थे न तुम्हारी क़ौम इस (31)
से पहले तो सब्र करो (32),
बेशक भला अंजाम परहेज़गारों का(33){49}
तफ़सीर
सूरए हूद – चौथा रूकू
(1) यानी कुफ़्र और आपको झुटलाना और आपको कष्ट देना, क्योंकि अब आपके दुश्मनों से बदला लेने का वक़्त आ गया.
(2) हमारी हिफ़ाज़त में हमारी तालीम से.
(3) यानी उनकी शफ़ाअत और अज़ाब दूर होने की दुआ न करना, क्योंकि उनका डूबना लिख दिया गया है.
(4) हदीस शरीफ़ में है कि हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने अल्लाह के हुक्म से साल के दरख़्त बोए. बीस साल में ये दरख़्त तैयार हुए. इस अर्से में कोई बच्चा पैदा न हुआ. इससे पहले जो बच्चे पैदा हो चुके थे वो बालिग़ हो गए और उन्होंने भी हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की दावत क़ुबूल करने से इन्कार कर दिया और हज़रत नूह किश्ती बनाने में मश्गू़ल हुए.
(5) और कहते ऐ नूह क्या कर रहे हो, आप फ़रमाते ऐसा मकान बनाता हूँ जो पानी पर चले. यह सुनकर हंसते, क्योंकि आप किश्ती जंगल में बनाते थे, जहाँ दूर दूर तक पानी न था. वो लोग मज़ाक उड़ाने के अन्दाज़ में यह भी कहते थे कि पहले तो आप नबी थे, अब बढ़ई हो गए.
(6) तुम्हें हलाक होता देखकर.
(7) किश्ती देखकर. रिवायत है कि यह किश्ती दो साल में तैयार हुई. इसकी लम्बाई तीन सौ ग़ज़, चौड़ाई पचास गज़, ऊंचाई तीस गज़ थी, (इस में और भी कथन हैं) इस किश्ती में तीन दर्ज़े बनाए गए थे. निचले दर्जे में जानवर और दरिन्दे, बीच के तबक़े में चौपाए वग़ैरह, और ऊपर के तबक़े में ख़ुद हज़रत नूह अलैहिस्सलाम और आपके साथी और हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का जसदे मुबारक, जो औरतों और मर्दों के बीच हायल था, और ख़ाने का सामान था. पक्षी भी ऊपर के ही तबक़े में थे. (खाज़िन व मदारिक)
(8) दुनिया में और डूबने का अज़ाब है.
(9) यानी आख़िरत का अज़ाब.
(10) अज़ाब व हलाकत का.
(11) और पानी ने इसमें से जोश मारा. तन्दूर से, या ज़मीन का ऊपरी हिस्सा मुराद है, या यही तन्दुर जिसमें रोटी पकाई जाती है. इसमें भी कुछ क़ौल हैं. एक यह है कि वह तन्दूर पत्थर का था, हज़रत हव्वा का, जो आपको तर्के में पहुंचा था, और वह या शाम में था, या हिन्द में. तन्दूर का जोश मारना अज़ाब आने की निशानी थी.
(12) यानी उनके हलाक का हुक्म हो चुका है. और उन से मुराद आपकी बीबी वाइला जो ईमान न लाई थी और आपका बेटा कनआन है. चुनांचे हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने उन सबको सवार किया. जानवर आपके पास आते थे और आपका दायाँ हाथ नर पर और बायां मादा पर पड़ता था और आप सवार करते जाते थे.
(13) मक़ातिल ने कहा कि कुल मर्द औरत बहत्तर थे. इसमें और कथन भी है. सही संख्या अल्लाह जानता है. उनकी तादाद और किसी सही हदीस में नहीं आई है.
(14) यह कहते हुए कि…..
(15) इसमें तालीम है कि बन्दे को चाहिये जब कोई काम करना चाहे तो बिस्मिल्लाह पढ़कर शुरू करे ताकि उस काम में बरकत हो और वह भलाई का कारण बने. ज़िहाक ने कहा कि जब हज़रत नूह अलैहिस्सलाम चाहते थे कि किश्ती चले तो बिस्मिल्लाह फ़रमाते थे. किश्ती चलने लगती थी, और जब चाहते थे कि ठहर जाए, बिस्मिल्लाह फ़रमाते थे, ठहर जाती थी.
(16) चालीस दिन रात आसमान से वर्षा होती रही और ज़मीन से पानी उबलता रहा, यहाँ तक कि सारे पहाड़ डूब गए.
(17) यानी हज़रत नूह अलैहिस्सलाम से अलग था, आपके साथ सवार न हुआ था.
(18) कि हलाक हो जाएगा. यह लड़का दोग़ली प्रवृति का था. अपने बाप पर खुद को मुसलमान ज़ाहिर करता था और अन्दर अन्दर काफ़िरों के साथ मिला हुआ था. (हुसैनी)
(19) जब तुफ़ान अपनी चरम सीमा पर पहुंचा और काफ़िर डूब चुके तो अल्लाह का हुक्म आया.
(20) छ: महीने सारी धरती की परिक्रमा यानी तवाफ़ करके.
(21) जो मूसल या शाम की सीमाओ में स्थित है. हज़रत नूह अलैहिस्सलाम किश्ती में दसवीं रजब को बैठे और दसवीं मुहर्रम को किश्ती जूदी पहाड़ पर ठहरी. तो आपने उसके शुक्र का रोज़ा रखा और अपने साथियों को भी रोज़े का हुक्म फ़रमाया.
(22) और तूने मुझ से मेरे और मेरे घर वालों की निजात का वादा फ़रमाया.
(23) तो इसमें क्या हिकमत है. शैख अबू मन्सूर मातुरीदी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया कि हज़रत नूह अलैहिस्सलाम का बेटा कनआन मुनाफ़िक़ था और आपके सामने ख़ुद को ईमान वाला ज़ाहिर करता था. अगर वह अपना कुफ़्र ज़ाहिर कर देता तो अल्लाह तआला से उसकी निजात की दुआ न करते. (मदारिक)
(24) इससे साबित हुआ कि नसब के रिश्ते से दीन का रिश्ता ज़्यादा मज़बूत है.
(25) कि वह मांगने के क़ाबिल है या नहीं.
(26) इन बरकतों से आपकी सन्तान और आपके अनुयाइयों की कसरत और बहुतात मुराद है कि बहुत से नबी और दीन के इमाम आपकी पाक नस्ल से हुए. उनकी निस्बत फ़रमाया कि ये बरकतें………
(27) मुहम्मद बिन कअब खुज़ाई ने कहा कि इन गिरोहो में क़यामत तक होने वाला हर मूमिन दाख़िल है.
(28) इससे हज़रत नूह अलैहिस्सलाम के बाद पैदा होने वाले काफ़िर गिरोह मुराद है जिन्हें अल्लाह तआला उनकी मीआदों तक फ़राख़ी, ऐश और रिज़्क़ में बहुतात अता फ़रमाएगा.
(29) आख़िरत में.
(30) ये सम्बोधन सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को फ़रमाया.
(31) ख़बर देने.
(32) अपनी क़ौम की तकलीफ़ों पर, जैसा कि नूह अलैहिस्सलाम ने अपनी क़ौम की तकलीफ़ों पर सब्र किया.
(33) कि दुनिया में कामयाब और विजयी और आख़िरत में इनाम और अच्छा बदला पाए हुए.
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सूरए हूद – पाँचवा रूकू
सूरए हूद – पाँचवा रूकू
और आद की तरफ़ उनके हम क़ौम हूद को(1)
कहा ऐ मेरी क़ौम अल्लाह को पूजो(2)
उसके सिवा तुम्हारा कोई मअबूद नहीं तुम तो निरे मुफ़तरी (झूठे) हो (3){50}
ऐ क़ौम में उसपर तुमसे कुछ उजरत नहीं मांगता,मेरी मज़दूरी तो उसीके ज़िम्मे है जिसने मुझे पैदा किया(4)
तो क्या तुम्हें अक़्ल नहीं(5){51}
और ऐ मेरी क़ौम अपने रब से माफ़ी चाहो(6)
फिर उसकी तरफ़ रूजू लाओ तुमपर ज़ौर का पानी भेजेगा और तुममें जितनी शक्ति है उससे और ज़्यादा देगा(7)
और ज़ुर्म करते हुए रूगदीनी(विरोध) न करो(8){52}
बोले ऐ हूद तुम कोई दलील लेकर हमारे पास न आए(9)
और हम ख़ाली तुम्हारे कहने से अपने ख़ुदाओ को छोड़ने के नहीं न तुम्हारी बात पर यक़ीन लाएं{53} हम तो यही कहते हैं कि हमारे किसी ख़ुदा की तुम्हें बुरी झपट पहुंची(10)
कहा मैं अल्लाह को गवाह करता हूँ और तुम सब गवाह हो जाओ कि मैं बेज़ार हूँ उन सब से जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा उसका शरीक ठहराते हो{54} तुम सब मिलकर मेरा बुरा चाहो (11)
फिर मुझे मुहलत न दो (12){55}
मैंने अल्लाह पर भरोसा किया जो मेरा रब है और तुम्हारा रब, कोई चलने वाला नहीं(13)
जिसकी चोटी उसकी क़ुदरत के क़ब्ज़े में न हो(14)
बेशक मेरा रब सीधे रास्ते पर मिलता है{56} फिर अगर तुम मुंह फेरो तो मैं तुम्हें पहुंचा चुका जो तुम्हारी तरफ़ लेकर भेजा गया(15)
और मेरा रब तुम्हारी जगह औरों को ले आएगा(16)
और तुम उसका कुछ न बिगाड़ सकोगे(17)
बेशक मेरा रब हर चीज़ पर निगहबान है (18){57}
और जब हमारा हुक्म आया हमने हूद और उसके साथ के मुसलमानों को(19)
अपनी रहमत फ़रमाकर बचा लिया(20)
और उन्हें(21)
सख़्त अज़ाब से निजात दी{58} और ये आद हैं (22)
कि अपने रब की आयतों से इन्कारी हुए और उसके रसूलों की नाफ़रमानी की और हर बड़े सरकश(नाफ़रमान) हटधर्म के कहने पर चले{59} और उनके पीछे लगी इस दुनिया में लअनत और क़यामत के दिन, सुन लो बेशक आद अपने रब से इन्कारी हुए, अरे दूर हों आद हूद की क़ौम {60}
तफ़सीर
सूरए हूद – पाँचवा रूकू
(1) नबी बनाकर भेजा. हज़रत हूद अलैहिस्सलाम को “अख़” नसब के ऐतिबार से कहा गया है इसीलिये आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा रहमुतल्लाह अलैह ने इस शब्द का अनुवाद हम क़ौम किया.
(2) उसकी तौहीद को मानते रहो. उसके साथ किसी को शरीक न करो.
(3) जो बुतों को ख़ुदा का शरीक बताते हो.
(4) जितने रसूल तशरीफ़ लाए सबने अपनी क़ौमों से यही फ़रमाया और नसीहत ख़ालिस वही है जो किसी लालच से न हो.
(5) इतना समझ सको कि जो केवल बेग़रज़ नसीहत करता है वह यक़ीनन शुभचिंतक और सच्चा है. बातिल वाला जो किसी को गुमराह करता है, ज़रूर किसी न किसी मतलब और किसी न किसी उद्देश्य से करता है. इससे सच झूठ में आसानी से पहचान की जा सकती है.
(6) ईमान लाकर, जब आद क़ौम ने हज़रत हूद अलैहिस्सलाम की दावत क़ुबूल न की तो अल्लाह तआला ने उनके कुफ़्र के कारण तीन साल तक बारिश बन्द कर दी और बहुत सख़्त दुष्काल नमूदार हुआ और उनकी औरतों को बांझ कर दिया. जब ये लोग बहुत परेशान हुए तो हज़रत हूद अलैहिस्सलाम ने वादा फ़रमाया कि अगर वो अल्लाह पर ईमान लाएं और उसके रसूल की तस्दीक़ करे और उनके समक्ष तौबह व इस्तग़फ़ार करें तो अल्लाह तआला बारिश भेजेगा और उनकी ज़मीनों को हरा भरा करके ताज़ा ज़िन्दगी अता फ़रमाएगा और क़ुव्वत और औलाद देगा. हज़रत इमाम हसन रदियल्लाहो अन्हो एक बार अमीरे मुआविया के पास तशरीफ़ ले गए तो आप से अमीर मुआविया के एक नौकर ने कहा कि मैं मालदार आदमी हूँ मगर मेरे कोई औलाद नहीं हे मुझे कोई ऐसी चीज़ बताइये जिससे अल्लाह मुझे औलाद दे. आपने फ़रमाया कि रोज़ाना इस्तग़फ़ार पढ़ा करो. उसने इस्तग़फ़ार की यहाँ तक कसरत की कि रोज़ाना सात सौ बार इस्तग़फ़ार पढ़ने लगा. इसकी बरकत से उस शख़्स के दस बेटे हुए. यह ख़बर हज़रत मुआविया को हुई तो उन्होंने उस शख़्स से फ़रमाया कि तूने हज़रत इमाम से यह क्यों न दरियाफ़्त किया कि यह अमल हुज़ूर ने कहाँ से हासिल फ़रमाया. दूसरी बार जब उस शख्स की हाज़िरी इमाम की ख़िदमत में हुई तो उसने यह दरियाफ़्त किया. इमाम ने फ़रमाया कि तू ने हज़रत हूद का क़ौल नहीं सुना जो उन्होंने फ़रमाया “यज़िदकुम क़ुव्वतन इला क़ुव्वतिकुम” और हज़रत नूह अलैहिस्सलाम का यह इरशाद “युमदिदकुम बि अमवालिंव व बनीन”. रिज़्क में कसरत और औलाद पाने के लिये इस्तग़फ़ार का बहुतात के साथ पढ़ना क़ुरआनी अमल है.
(7) माल और औलाद के साथ.
(8) मेरी दावत से.
(9) जो तुम्हारे दावे की सच्चाई का प्रमाण है. और यह बात उन्होंने बिल्कुल ग़लत और झूट कही थी. हज़रत हूद अलैहिस्सलाम ने उन्हें जो चमत्कार दिखाए थे उन सबसे इन्कार कर बैठे.
(10) यानी तुम जो बुत को बुरा कहते हो, इसलिये उन्होंने तुम्हें दीवाना कर दिया. मतलब यह है कि अब जो कुछ कहते हो यह दीवानगी की बातें है.
(11) यानी तुम और वो जिन्हें तुम मअबूद समझते हो, सब मिलकर मुझे नुक़सान पहुंचाने की कोशिश करो.
(12) मुझे तुम्हारी और तुम्हारे मअबूदों की और तुम्हारी मक्कारियों की कुछ परवाह नहीं है और मुझे तुम्हारी शानो शौकत और क़ुव्वत से कुछ डर नहीं. जिन को तुम मअबुद कहते हो, वो पत्थर बेजान हैं, न किसी को नफ़ा पहुंचा सकते हैं न नुक़सान. उनकी क्या हक़ीक़त कि वो मुझे दीवाना बना सकते. यह हज़रत हूद अलैहिस्सलाम का चमत्कार है कि आपने एक जबरदस्त और ताकतवर क़ौम से, जो आपके ख़ून की प्यासी और जान की दुश्मन थी, इस तरह के कलिमात फ़रमाए और कुछ भी ख़ौफ़ न किया और वह क़ौम अत्यन्त दुश्मनी के बावुजूद आपको तकलीफ़ न पहुंचा सकी.
(13) इसी में बनी आदम और हेवान सब आ गए.
(14) यानी वह सबका मालिक है और सब पर ग़ालिब और क़ुदरत वाला और क्षमता वाला है.
(15) और हुज्जत साबित हो चुकी.
(16) यानी अगर तुमने ईमान से मुंह फेरा और जो अहकाम मैं तुम्हारी तरफ़ लाया हूँ उन्हें क़ुबूल न किया तो अल्लाह तुम्हें हलाक कर देगा और तुम्हारे साथ तुम्हारे बजाय एक दूसरी क़ौम को तुम्हारे इलाक़ों और तुम्हारे मालों का मालिक बना देगा, जो उसकी तौहीद में अक़ीदा रखते हों और उसकी इबादत करें.
(17) क्योंकि वह इससे पाक है कि उसे कोई तकलीफ़ पहुंचे लिहाज़ा तुम्हारे मुंह फेरने का जो नुक़सान है वह तुम्हीं को पहुंचेगा. अज़ाब का हुक्म लागू हुआ.
(18) और किसी की कहनी करनी उससे छुपी नहीं. जब क़ौमे हूद ने नसीहत क़ुबूल न की तो अल्लाह तआला की तरफ़ से उनके अज़ाब का हुक्म लागू हुआ.
(19) जिनकी संख्या चार हज़ार थी.
(20) और क़ौमे आद को हवा के अज़ाब से हलाक कर दिया.
(21) यानी जैसे मुसलमानों को दुनिया के अज़ाब से बचाया ऐसे ही आखिरत के.
(22) यह सम्बोधन है सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की उम्मत को और “तिल्का” इशारा है क़ौमे आद की क़ब्रों और उनके मकानों वग़ैरह की तरफ़. मक़सद यह है कि ज़मीन में चलो उन्हें देखो और सबक़ पकड़ो.
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सूरए हूद – छटा रूकू
सूरए हूद – छटा रूकू
और समूद की तरफ़ उनके हम क़ौम सालेह को(1)
कहा ऐ मेरी क़ौम अल्लाह को पूजो(2)
उसके सिवा तुम्हारा कोई मअबूद नही(3)
उसने तुम्हें ज़मीन से पैदा किया(4)
और उसमें तुम्हें बसाया(5)
तो उससे माफ़ी चाहो फिर उसकी तरफ़ रूजू लाओ, बेशक मेरा रब क़रीब है दुआ सुनने वाला {61} बोले ऐ सालेह इससे पहले तो तुम हम में होनहार मालूम होते थे (6)
क्या तुम हमें इससे मना करते हो कि अपने बाप दादा के मअबूदों को पूजें और बेशक जिस बात की तरफ़ हमें बुलाते हो हम उससे एक बड़े धोखा डालने वाले शक में हैं {62} बोला ऐ मेरी क़ौम भला बताओ तो अगर मैं अपने रब की तरफ़ से रौशन दलील पर हूँ और उसने मुझे अपने पास से रहमत बख़्शी (7)
तो मुझे उससे कौन बचाएगा और मैं उसकी नाफ़रमानी करूं(8)
तो तुम मुझे सिवा नुक़सान के कुछ न बढ़ाओगे(9){63}
और मेरी क़ौम यह अल्लाह का नाक़ा{ऊंटनी}है तुम्हारे लिये निशानी तो इसे छोड़ दो कि अल्लाह की ज़मीन में खाए और इसे बुरी तरह हाथ न लगाना कि तुमको नज़दीक अज़ाब पहुंचेगा(10){64}
तो उन्होंने(11)
उसकी कूंचे काटीं तो सालेह ने कहा अपने घरों में तीन दिन और बरत लो(12)
यह वादा है कि झूटा न होगा(13){65}
फिर जब हमारा हुक्म आया हमने सालेह और उसके साथ के मुसलमानों को अपनी रहमत फ़रमाकर (14)
बचा लिया और उस दिन की रूसवाई से, बेशक तुम्हारा रब क़वी {शक्तिशाली} इज़्ज़त वाला है {66}
और ज़ालिमों को चिंघाड़ ने आ लिया(15)
तो सुबह अपने घरों में घुटनों के बल पड़े रह गए {67} मानो कभी यहाँ बसे ही न थे, सुन लो बेशक समूद अपने रब से इन्कारी हुए, अरे लअनत हो समूद पर {68}
तफ़सीर
सूरए हूद – छटा रूकू
(1) भेजा तो हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम ने उन से.
(2) और उसकी वहदानियत को मानो.
(3) सिर्फ़ वही इबादत के लायक़ है, क्योंकि
(4) तुम्हारे दादा हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को इससे पैदा करके और तुम्हारी नस्ल की अस्ल नुत्फ़ों के माद्दों को इससे बनाकर.
(5) और ज़मीन को तुमसे आबाद किया. ज़िहाक ने “इस्तअमरकुम” के मानी ये बयान किये हैं कि तुम्हें लम्बी उम्रें दीं यहाँ तक कि उनकी उम्रें तीन सौ बरस से लेकर हज़ार बरस तक की हुई.
(6) और हम उम्मीद करते थे कि तुम हमारे सरदार बनोगे क्योंकि आप कमज़ोरों की मदद करते थे. फ़क़ीरों पर सख़ावत फ़रमाते थे. जब आपने तौहीद की दावत दी और बुतों की बुराईयाँ बयान कीं तो क़ौम की उम्मीदें आपसे कट गई और कहने लगे.
(7) हिकमत और नबुव्वत अता की.
(8) रिसालत की तबलीग़ और बुत परस्ती से रोकने में.
(9) यानी मुझे तुम्हारे घाटे का अनुभव और ज़्यादा होगा.
(10) क़ौमे समूद ने हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम से चमत्कार तलब किया था (जिसका बयान सूरए अअराफ़ में हो चुका है) आपने अल्लाह तआला से दुआ की तो अल्लाह के हुक्म से पत्थर से ऊंटनी पैदा हुई. यह ऊंटनी उनके लिये निशानी और चमत्कार था. इस आयत में उस ऊंटनी के बारे में अहकाम इरशाद फ़रमाए गए कि उसे ज़मीन में चरने दो और कोई तकलीफ़ न पहुंचाओ. वरना दुनिया ही में अज़ाब में जकड़े जाओगे और मोहलत न पाओगे.
(11) अल्लाह के हुक्म का विरोध किया और बुधवार के.
(12) यानी जुमुए तक जो कुछ दुनिया का ऐश करना है कर लो. शनिवार को तुम पर अज़ाब आएगा पहले रोज़ तुम्हारे चेहरे पीले हो जाएंगे, दूसरे रोज़ सुर्ख़ और तीसरे रोज़, यानी जुमुए को कोले, और सनीचर को अज़ाब नाज़िल हो जाएगा.
(13) चुनांचे ऐसा ही हुआ.
(14) इन बलाओ से.
(15) यानी भयानक आवाज़ ने जिसकी हैबत से उनके दिल फट गए और वो सब के सब मर गए.
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सूरए हूद – सातवाँ रूकू
सूरए हूद – सातवाँ रूकू
और बेशक हमारे फ़रिश्ते इब्राहीम के पास (1)
ख़ुशख़बरी लेकर आए, बोले सलाम(2)
कहा सलाम फिर कुछ देर न की कि एक बछड़ा भुना ले आए(3){69}
फिर जब देखा कि उनके हाथ खाने की तरफ़ नहीं पहुंचते उनको ऊपरी समझा और जी ही जी में उनसे डरने लगा, बोले डरिये नहीं हम लूत क़ौम की तरफ़ (4)
भेजे गए हैं {70} और उसकी बीबी(5)
खड़ी थी वह हंसने लगी तो हमने उसे(6)
इसहाक़ की ख़ुशख़बरी दी और इसहाक़ के पीछे(7)
यअक़ूब की(8) {71}
बोली हाय ख़राबी क्या मेरे बच्चा होगा और मैं बूढी हूँ (9)
और ये हैं मेरे शौहर बूढे(10)
बेशक यह तो अचंभे की बात है{72} फ़रिश्ते बोले क्या अल्लाह के काम का अचंभा करती हो अल्लाह की रहमत और उसकी बरकतें तुमपर इस घर वालो, बेशक(11)
वही है सब ख़ूबियों वाला इज़्ज़त वाला {73} फिर जब इब्राहीम का डर कम हुआ और उसे ख़ुशख़बरी मिली हम से लूत क़ौम के बारे में झगड़ने लगा (12){74}
बेशक इब्राहीम तहम्मुल वाला बहुत आहें करने वाला रूजू लाने वाला है (13){75}
ऐ इब्राहीम इस ख़याल में न पड़ बेशक तेरे रब का हुक्म आ चुका, और बेशक उनपर अज़ाब आने वाला है कि फेरा न जाएगा {76} और जब लूत के पास हमारे फ़रिश्ते आए(14)
उसे उनका ग़म हुआ और उनके कारण दिल तंग हुआ और बोला यह बड़ी सख़्ती का दिन है (15) {77}
और उसके पास उसकी क़ौम दौड़ती आई और उन्हें आगे ही से बुरे कामों की आदत पड़ी थी (16)
कहा ऐ क़ौम यह मेरी क़ौम की बेटियाँ हैं ये तुम्हारे लिये सुथरी हैं तो अल्लाह से डरो (17)
और मुझे मेरे मेहमानों में रूस्वा न करो, क्या तुम में एक आदमी भी नेक चलन नहीं{78} बोले तुम्हें मालूम है कि तुम्हारी क़ौम की बेटियों में हमारा कोई हक़ नहीं (18)
और तुम ज़रूर जानते हो जो हमारी ख़्वाहिश है {79} बोले ऐ काश मुझे तुम्हारे मुक़ाबिल ज़ोर होता या किसी मज़बूत पाए की पनाह लेता (19) {80}
फ़रिश्ते बोले ऐ लूत हम तुम्हारे रब के भेजे हुए है (20)
वो तुम तक नहीं पहुंच सकते(21)
तो अपने घरवालों को रातों रात ले जाओ और तुममें कोई पीठ फेर कर न देखे(22)
सिवाए तुम्हारी औरत के उसे भी वही पहुंचना है जो उन्हें पहुंचेगा,(23)
बेशक उनका वादा सुबह के वक़्त है (24)
क्या सुबह क़रीब नहीं{81} फिर जब हमारा हुक्म आया हमने उस बस्ती के ऊपर उसका नीचा कर दिया(25)
और उसपर कंकर के पत्थर लगातार बरसाए{82} जो निशान किये हुए तेरे रब के पास हैं(26)
और वो पत्थर कुछ ज़ालिमों से दूर नहीं (27){83}
तफ़सीर
सूरए हूद – सातवाँ रूकू
(1) सादा -रूप नौजवानों की सुंदर शक्लों में हज़रत इस्हाक़ और हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम की पैदाइश की.
(2) हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने.
(3) मुफ़स्सिरों ने कहा है कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम बहुत ही मेहमान नवाज़ थे. बगैर मेहमान के खाना न खाते. उस वक़्त ऐसा इत्तिफ़ाक़ हुआ कि पन्द्रह रोज़ से कोई मेहमान न आया था. आप इस ग़म में थे. इन मेहमानों को देखते ही आपने उनके लिये खाना लाने में जल्दी फ़रमाई. चूंकि आप के यहाँ गायें बहुत थीं इसलिये बछड़े का भुना हुआ गोश्त सामने लाया गया. इससे मालूम हुआ कि गाय का गोश्त हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के दस्तरख़्वान पर ज़्यादा आता था और आप उसको पसन्द फ़रमाते थे. गाय का गोश्त ख़ाने वाले अगर सुन्नते इब्राहीम अलैहिस्सलाम अदा करने की नियत करे तो ज़्यादा सवाब पाएं.
(4) अज़ाब करने के लिये.
(5) हज़रत सारा पर्दे के पीछे.
(6) उसके बेटे.
(7) हज़रत इस्हाक़ के बेटे.
(8) हज़रत सारा को ख़ुशख़बरी देने की वजह यह थी कि औलाद की ख़ुशी औरतों को मर्दों से ज़्यादा होती है.और यह कारण भी था कि हज़रत सारा के कोई औलाद न थी और इब्राहीम अलैहिस्सलाम के बेटे हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम मौजूद थे. इस ख़ुशख़बरी के साथ साथ एक ख़ुशख़बरी यह भी थी कि हज़रत सारा की उम्र इतनी लम्बी होगी कि वो पोते को भी देखेगी.
(9) मेरी उम्र नब्बे से ऊपर हो चुकी है.
(10) जिनकी उम्र एक सौ बीस साल की हो गई है.
(11) फ़रिश्तों के कलाम के माने ये हैं कि तुम्हारे लिये क्या आश्चर्य की बात है, तुम इस घर से हो जो चमत्कारों और अल्लाह तआला की रहमतों और बरकतों का केन्द्र बना हुआ है. इस आयत से साबित हुआ कि बीबियाँ एहले बैत में शामिल है.
(12) यानी कलाम और सवाल करने लगा और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का मुजादिला यह था कि आप ने फ़रिश्तों से फ़रमाया कि क़ौमे लूत की बस्तियों में अगर पचास ईमानदार हों तो भी उन्हें हलाक करोगे. फ़रिश्तों ने कहा, नहीं. फ़रमाया अगर चालीस हों, उन्होंने कहा जब भी नहीं, आपने फ़रमाया, और तीस हों. उन्होंने कहा, जब भी नहीं. आप इस तरह फ़रमाते रहे. यहाँ तक कि आपने फ़रमाया, अगर एक मुसलमान मर्द मौजूद हो तब हलाक कर दोगे, उन्होंने कहा, नहीं तो आपने फ़रमाया, इस में लूत अलैहिस्सलाम हैं. इसपर फ़रिश्तों ने कहा, हमें मालूम है जो वहाँ हैं. हम हज़रत लूत अलैहिस्सलाम को और उनके घर वालों को बचाएंगे सिवाए उनकी औरत के. हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का मक़सद यह था कि आप अज़ाब में देर चाहते थे ताकि इस बस्ती वालों को कुफ़्र और गुनाह से बाज़ आने के लिये एक फ़ुर्सत और मिल जाए. चुनांचे हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की विशेषता में इरशाद होता है.
(13) इन विशेषताओ से आपकी रिक़्कतें क़ल्ब और आपकी राफ़त व रहमत मालूम होती है. जो इस बहस का कारण हुई. फ़रिश्तों ने कहा.
(14) हसीन सूरतों में, और हज़रत लूत अलैहिस्स्लाम ने उनकी हैअत और जमाल को देखा तो क़ौम की ख़बासत और बदअमली का ख़याल करके.
(15) रिवायत है कि फ़रिश्तों को अल्लाह का हुक्म यह था कि वो क़ौमे लूत को उस वक़्त तक हलाक न करें जब तक कि हज़रत लूत अलैहिस्सलाम ख़ुद इस क़ौम की बद अमली पर चार बार गवाही न दें. चुनांचे जब ये फ़रिश्ते हज़रत लूत अलैहिस्सलाम से मिले तो आपने उनसे फ़रमाया क्या तुम्हें इस बस्ती वालों का हाल मालूम न था.फ़रिश्तों ने कहा, इनका क्या हाल है. आपने फ़रमाया मैं गवाही देता हूँ कि अमल के ऐतिबार से धरती के ऊपर यह बदतरीन बस्ती है. यह बात आपने चार बार फ़रमाई. हज़रत लूत अलैहिस्सलाम की औरत जो काफ़िरा थी, निकली और उसने अपनी क़ौम को जाकर ख़बर कर दी कि हज़रत लूत अलैहिस्सलाम के यहाँ ऐसे ख़ूबसूरत मेहमान आए हैं जिनकी तरह का अब तक कोई शख़्स नज़र नहीं आया.
(16) और कुछ शर्मों-हया बाक़ी न रही थी. हज़रत लूत अलैहिस्सलाम ने.
(17) और अपनी बीबियों से तअल्लुक रखो कि ये तुम्हारे लिये हलाल है. हज़रत लूत अलैहिस्सलाम ने उनकी औरतों को जो क़ौम की बेटियाँ थीं बुज़र्गाना शफ़क़त से अपनी बेटियाँ फ़रमाया ताकि इस हुस्ने इख़्लाक़ से वो फ़ायदा उठाएं और हमिय्यत सीखें.
(18) यानी हमें उनकी रग़बत नहीं.
(19) यानी मुझे अगर तुम्हारे मुक़ाबले की ताक़त होती या ऐसा क़बीला रखता जो मेरी मदद करता तो तुम से मुक़ाबला और लड़ाई करता. हज़रत लूत अलैहिस्सलाम ने अपने मकान का द्वार बन्द कर लिया था और अन्दर से यह बातचीत फ़रमा रहे थे. क़ौम ने चाहा की दीवार तोड़ दे. फरिश्तों ने आपका दुख और बेचैनी देखी तो.
(20)तुम्हारा पाया मज़बूत है. हम इन लोगों को अज़ाब करने के लिये आए हैं. तुम द्वार खोल दो और हमें और उन्हें छोड़ दो.
(21) और तुम्हें कोई तक़लीफ़ या नुक़सान नहीं पहुंचा सकते. हज़रत जिब्रील ने दरवाज़ा खोल दिया. क़ौम के लोग मकान में घुस आए. हज़रत जिब्रील ने अल्लाह के हुक्म से अपना बाज़ू उनके मुंह पर मारा सब अंधे हो गए और हज़रत लूत अलैहिस्सलाम के मकान से निकल भागे उन्हें रास्ता नज़र न आता था यह कहते जाते थे हाय हाय लूत के घर में बड़े जादूगर है उन्होंने हमें जादू कर दिया.फ़रिश्तों ने हज़रत लूत अलैहिस्सलाम से कहा.
(22) इस तरह आपके घर के सारे लोग चले गये.
(23) हज़रत लूत अलैहिस्सलाम ने कहा यह अजाब कब होगा, हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने कहा.
(24)हज़रत लूत अलैहिस्सलाम ने कहा, मैं तो इससे जल्दी चाहता हूँ हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने कहा.
(25) यानी उलट दिया, इस तरह कि हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने ज़मीन के जिस टुकड़े पर क़ौमे लूत के शहर थे, उसके नीचे अपना बाज़ू डाला और उन पाँचों शहरों को, जिनमें सबसे बड़ा सदूम था, और उनमें चार लाख आदमी बस्ते थे, इतना ऊंचा उठाया कि वहाँ के कुत्तों और मुर्गों की आवाज़ें आसमान पर पहुंचने लगीं और इस आहिस्तगी से उठाया कि किसी बर्तन का पानी न गिरा और कोई सोने वाला न जागा. फिर उस बलन्दी से उस ज़मीन के टुकड़े को औंधा करके पलटा.
(26) उन पत्थरों पर ऐसा निशान था जिन से वो दूसरों से मुमताज़ यानी छिके हुए थे. क़तादा ने कहा कि उनपर लाल लकीरें थी. हसन व सदी का क़ौल है कि उनपर मोहरें लगी हुई थीं और एक क़ौल यह है कि जिस पत्थर से जिस शख़्स की हलाकत मंज़ूर थी, उसका नाम उस पत्थर पर लिखा था.
(27) यानी मक्का वालों से.
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सूरए हूद – आठवाँ रूकू
सूरए हूद – आठवाँ रूकू
और (1)
मदयन की तरफ़ उनके हमक़ौम शुऐब को (2)
कहा ऐ मेरी क़ौम अल्लाह को पूजों उसके सिवा तुम्हारा कोई मअबूद नहीं(3)
और नाप और तौल में कमी न करो बेशक मैं तुम्हें आसूदा हाल (ख़ुशहाल) देखता हूँ (4)
और मुझे तुमपर घेर लेने वाले दिन के अज़ाब का डर है(5){84}
और ऐ मेरी क़ौम नाप और तोल इन्साफ़ के साथ पूरी करो और लोगों को उनकी चीज़ें घटा कर न दो और ज़मीन में फ़साद मचाते न फिरो{85} अल्लाह का दिया जो बच रहे वह तुम्हारे लिये बेहतर है अगर तुम्हें यक़ीन हो(6)
और मैं कुछ तुमपर निगहबान नहीं(7){76}
बोले ऐ शुएब क्या तुम्हारी नमाज़ तुम्हें यह हुक्म देती है कि हम अपने बाप दादा के ख़ुदाओ को छोड़ दें(8)
या अपने माल में जो चाहे न करें(9)
हाँ जी तुम्हीं बड़े अक्लमन्द नेक चलन हो {87}
ऐ मेरी क़ौम भला बताओ तो अगर मैं अपने रब की तरफ़ से एक रौशन दलील पर हूँ (10)
और उसने मुझे अपने पास से अच्छी रोज़ी दी(11)
और में नहीं चाहता हूँ कि जिस बात से तुम्हें मना करता हूँ आप उसके ख़िलाफ़ करने लगूं (12)
मैं जहां तक बने संवारना ही चाहता हूँ, और मेरी तौफ़ीक़ अल्लाह ही की तरफ़ से है, मैं ने उसी पर भरोसा किया और उसी की तरफ़ रूजू होता हूँ {88} और ऐ मेरी क़ौम तुम्हें मेरी ज़िद यह न कमवा दे कि तूम पर पड़े जो पड़ा न था नूह की क़ौम या हूद की क़ौम या सालेह की क़ौम पर, और लूत की क़ौम तो कुछ तुम से दूर नहीं(13){89}
और अपने रब से माफ़ी चाहो फिर उसकी तरफ़ रूजू लाओ, बेशक मेरा रब मेहरबान महब्बत वाला है(90) बोले ऐ शुएब हमारी समझ में नहीं आतीं तुम्हारी बहुत सी बातें और बेशक हम तुम्हें अपने में कमज़ोर देखते हैं(14)
और अगर तुम्हारा कुम्बा न होता(15)
तो हमने तुम्हें पथराव कर दिया होता और कुछ हमारी निगाह में तुम्हें इज़्ज़त नहीं {91} कहा, ऐ मेरी क़ौम क्या तुमपर मेरे कुम्बे का दबाव अल्लाह से ज़्यादा है (16)
और उसे तुमने अपनी पीठ के पीछे डाल रखा (17)
बेशक जो कुछ तुम करते हो सब मेरे रब के बस में है{92} और ऐ क़ौम तुम अपनी जगह अपना काम किये जाओ मैं अपना काम करता हूँ, अब जाना चाहते हो किस पर आता है वह अज़ाब कि उसे रूस्वा करेगा और कौन झूटा है (18)
और इन्तिज़ार करो (19)
मैं भी तुम्हारे साथ इन्तिज़ार में हूँ{93} और जब (20)
हमारा हुक्म आया हमने शुऐब और उसके साथ के मुसलमानों को अपनी रहमत फ़रमाकर बचा लिया और ज़ालिमों को चिंघाड़ ने आ लिया (21)
तो सुबह अपने घरों में घुटनों के बल पड़े रहे {94}
गोया कभी वहाँ बसे ही न थे, अरे दूर हों मदयन जैसे दूर हुए समूद (22){95}
तफ़सीर
सूरए हूद – आठवाँ रूकू
(1) हमने भेजा मदयन शहर के निवासियों की तरफ़.
(2) आपने अपनी क़ौम से.
(3) पहले तो आपने तौहीद और इबादत की हिदायत फ़रमाई कि वो सारे कामों में सब से अहम है. उसके बाद जिन बुरी आदतों में वो जकड़े हुए थे उनसे मना फ़रमाया और इरशाद किया.
(4) ऐसे हाल में आदमी को चाहिये कि नेअमत की शुक्र गुज़ारी करे और दूसरों को अपने माल से फ़ायदा पहुंचाए,न कि उनके अधिकारों में कमी करें. ऐसी हालत में इस ख़यानत की आदत से डर है कि कहीं इस नेअमत से मेहरूम न कर दिये जाओ.
(5) कि जिससे किसी को रिहाई मयस्सर न हो और सब के सब हलाक हो जाएं. यह भी हो सकता है कि उस दिन के अज़ाब से आख़िरत का अज़ाब मुराद हो.
(6) यानी हराम माल छोड़ने के बाद हलाल जितना भी बचे वही तुम्हारे लिये बेहतर हे. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि पूरा तौलने और नापने के बाद जो बचे वह बेहतर है.
(7) कि तुम्हारे कर्मों पर पकड़ धकड़ करूं. उलमा ने फ़रमाया कि कुछ नबियों को जंग की इजाज़त थी, जेसे हज़रत मूसा, हज़रत दाऊद, हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम. कुछ वो थे जिन्हें लड़ने का हुक्म न था. हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम उन्हीं में से हैं. सारा दिन नसीहत फ़रमाते, उपदेश देते और सारी रात नमाज़ में गुज़ारते. क़ौम आप से कहती कि इस नमाज़ से आप को क्या फ़ायदा. आप फ़रमाते, नमाज़ अच्छाईयों का हुक्म देती है, बुराइयों से रोकती है. तो इसपर वो हंसी में यह कहते जो अगली आयत में आया है.
(8) मूर्ति पूजा न करें.
(9) मतलब यह था कि हम अपने माल के मालिक हैं, चाहे कम नापें चाहे कम तौलें.
(10) सूझबूझ और हिदायत पर.
(11) यानी नबुव्वत और रिसालत या हलाल माल और हिदायत व मअरिफ़त, तो यह कैसे हो सकता है कि मैं तुम्हें बुत परस्ती और गुनाहों से मना न करूं, क्योंकि नबी इसीलिये भेजे जाते हैं.
(12) इमाम फ़ख़रूद्दीन राज़ी अलैहिर्रहमत ने फ़रमाया कि क़ौम ने हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम के हिल्म और हिदायत वाला होने को स्वीकार किया था और उनका यह कलाम हंसी में न था, बल्कि मक़सद यह था कि आप हिल्म और महान बुद्विमत्ता के बावुज़ूद हमको अपने माल का अपनी मर्ज़ी के अनुसार इस्तेमाल करने से क्यों रोकते हैं. इसका जवाब जो हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया उसका हासिल यह है कि जब तुम मेरी सूझ बूझ को मानते हो तो तुम्हें यह समझ लेना चाहिये कि मैं ने अपने लिये जो बात पसन्द की है वह वही होगी जो सब के लिये बेहतर हो, और वह ख़ुदा की तौहीद को मानना और नाप तौल में ख़यानत से दूर रहना है. मैं इसका पाबन्दी से आमिल हूँ तो तुम्हें समझ लेना चाहिये कि यही तरीक़ा बेहतर है.
(13) उन्हें कुछ ज़्यादा ज़माना नहीं गुज़रा है न कुछ दूर के रहने वाले थे तो उनके हाल से सबक़ पकड़ो.
(14) कि अगर हम आपके साथ कुछ ज़ियादती करें तो आपमें बचाव की ताक़त नहीं.
(15) जो दीन में हमारा साथी है और जिसको हम अज़ीज़ रखते हैं.
(16) कि अल्लाह के लिये तो तुम मेरे क़त्ल से बाज़ न रहे और मेरे परिवार की वजह से बाज़ रहे और तुमने अल्लाह के नबी का तो ऐहतिराम न किया और परिवार का सम्मान किया.
(17) और उसके हुक्म की कुछ परवाह न की.
(18) अपने दावों में. यानी तुम्हें जल्द मालूम हो जाएगा कि मैं सच्चाई पर हूँ या तुम, और अल्लाह के अज़ाब से शक़ी की शक़ावत ज़ाहिर हो जाएगी.
(19) आक़िबते-अम्र और अन्जामे-कार का.
(20) उनके अज़ाब और हलाक के लिये.
(21) हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने भयानक आवाज़ में कहा “मूतू जमीअन” यानी सब मर जाओ. इस आवाज़ की दहशत से उनके दम निकल गए और सब मर गए.
(22) अल्लाह की रहमत से, हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि कभी दो उम्मतें एक ही अज़ाब में नहीं जकड़ी गई. सिवाय हज़रत शुऐब और हज़रत सालेह अलैहुमस्सलाम की उम्मतों के. लेकिन हज़रत सालेह की क़ौम को उनके नीचे से भयानक आवाज़ ने हलाक किया और हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम की क़ौम को ऊपर से.
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सूरए हूद – नवाँ रूकू
सूरए हूद – नवाँ रूकू
बेशक हमने मूसा को अपनी आयतों (1)
और साफ़ ग़लबे के साथ {96}फ़िरऔन और उसके दरबारियों की तरफ़ भेजा तो वो फ़िरऔन के कहने पर चले (2)
और फ़िरऔन का काम रास्ती का न था(3){97}
अपनी क़ौम के आगे होगा क़यामत के दिन तो उन्हें दोज़ख़ में ला उतारेगा(4)
और वह क्या ही बुरा घाट उतरने का{98} और उनके पीछे पड़ी इस जगत में लअनत और क़यामत के दिन(5)
क्या ही बुरा इनाम जो उन्हें मिला{99} ये बस्तियों (6)
की ख़बरें हें कि हम तुम्हें सुनाते हैं (7)
इनमें कोई खड़ी है (8)
और कोई कट गई (9){100}
और हमने उनपर ज़ुल्म न किया बल्कि ख़ुद उन्होंने (10)
अपना बुरा किया तो उनके मअबूद जिन्हें(11)
अल्लाह के सिवा पूजते थे उनके कुछ काम न आए (12)
जब तुम्हारे रब का हुक्म आया और उनसे (13)
उन्हें हलाक के सिवा कुछ न बढ़ा {101} और ऐसी ही पकड़ है तेरे रब की जब बस्तियों को पकड़ता है उनके ज़ुल्म पर बेशक उसकी पकड़ दर्दनाक करीं हैं (14) {102}
बेशक इसमें निशानी (15)
है उसके लिये जो आख़िरत के अज़ाब से डरे, वह दिन है जिसमें सब लोग (16)
इकट्ठे होंगे और वह दिन हाज़िरी का है (17){103}
और हम उसे (18)
पीछे नहीं हटाते मगर एक गिनी हुई मुद्दत के लिये (19){104}
जब वह दिन आएगा कोई ख़ुदा के हुकुम बिना बात न करेगा(20)
तो उन में कोई बदबख़्त है और कोई ख़ुशनसीब {105} तो वह जो बदबख़्त है वो तो दोज़ख़ में हैं वो उसमें गधे की तरह रेकेंगे{106} वो उसमें रहेंगे जब तक आसमान व ज़मीन रहें मगर जितना तुम्हारे रब ने चाहा (22)
बेशक तुम्हारा रब जो चाहे करे {107} और वह ख़ुशनसीब हुए वो जन्नत में हैं हमेशा उसमें रहेंगे. जब तक आसमान व ज़मीन रहें मगर जितना तुम्हारे रब ने चाहा (23)
यह बख़्शिश है कभी ख़त्म न होगी {108} तो ऐ सुनने वाले धोखे में न पड़ उससे जिसे ये काफ़िर पूजते है(24)
ये वैसा ही पूजते है जैसा पहले इनके बाप दादा पूजते थे (25)
और बेशक हम उनका हिस्सा उन्हें पूरा फेर देंगे जिसमें कमी न होगी {109}
तफ़सीर
सूरए हूद – नवा रूकू
(1) और कुफ़्र में जकड़ गए और मूसा अलैहिस्सलाम पर ईमान न लाए.
(2) वह खुली गुमराही में था, क्योंकि बशर होने के बावुज़ूद ख़ुदाई का दावा करता था और खुल्लमखुल्ला ऐसे अत्याचार करता था जिसका शैतानी काम होना ज़ाहिर और यक़ीनी था. वह कहाँ और ख़ुदाई कहाँ. और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के साथ हिदायत और सच्चाई थी. आपकी सच्चाई की दलीलों, खुली आयतों और चमत्कारों को वो लोग देख चुके थे, फिर भी उन्होंने आपके अनुकरण से मुंह फेरा और ऐसे गुमराह का अनुकरण किया. तो जब वह दुनिया में कुफ़्र और गुमराही में अपनी क़ौम का पेशवा था. ऐसे ही जहन्नम में उनका इमाम होगा और.
(4) जैसा कि उन्हें नील नदी में ला डाला था.
(5) यानी दुनिया में भी मलऊन और आख़िरत में भी लअनत में जकड़े.
(6) यानी गुज़री हुई उम्मतें.
(7) कि तुम अपनी उम्मतों को उनकी ,ख़बरें दो ताकि वो सबक़ पकड़े. उन बस्तियों की हालत खेतियों की तरह है कि.
(8) उसके मकानों की दीवारें मौजूद हैं. खंडहर पाए जाते हैं. निशान बाक़ी है जैसे कि आद व समूद के इलाके.
(9) यानी कटी हुई खेती की तरह बिल्कुल बेनामों निशान हो गई और उसका कोई चिन्ह बाक़ी न रहा जैसे कि नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम के इलाक़े.
(10) कुफ़्र और गुमराही से.
(11) जिहालत और गुमराही से.
(12) और एक कण अज़ाब दूर न कर सके.
(13) बुतों और झूटे मअबूदों.
(14) तो हर अत्याचारी को चाहिये कि इन वाक़िआत से सबक़ सीखे और तौबह में जल्दी करें.
(15) सबक़ और नसीहत.
(16) अगले पिछले हिसाब के लिये.
(17) जिसमें आसमान वाले और ज़मीन वाले सब हाज़िर होंगे.
(18) यानी क़यामत के दिन.
(19) यानी जो मुद्दत हमने दुनिया के बाक़ी रहने की निश्चित की है उसके ख़त्म होने तक.
(20) तमाम सृष्टि साकित अर्थात ख़ामोश होगी. क़यामत का दिन बहुत लम्बा होगा. इसमें अहवाल अलग अलग होंगे. कुछ हालतों में हैबत की सख्ती से किसी को अल्लाह की आज्ञा के बिना बात ज़बान पर लाने की क़ुदरत न होगी. और कुछ हालतों में आज्ञा दी जाएगी कि लोग कलाम करेंगे और कुछ हालतों में हौल और दहशत कम होगी. उस वक़्त लोग अपने मामलों में झगड़ेंगे और अपने मुक़दमे पेश करेंगे.
(21) शफ़ीक़ बल्ख़ी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया, ख़ुशनसीबी या सआदत की पाँच निशानियाँ हैं (1) दिल की नर्मी (2) रोने की कसरत (3) दुनिया से नफ़रत (4) उम्मीदों का छोटा होना (5) लज्जा या हया और बदबख़्ती यानी दुर्भाग्य की निशानियाँ भी पाँच है (1) दिल की सख़्ती (2)आंख की खुश्की (3) दुनिया की रग़बत(4) बड़ी बड़ी उम्मीदें (5) बेहयाई
(22) इतना और ज़्यादा रहेंगे, और इस ज़ियादती का कोई अन्त नहीं. तो मानी ये हुए कि हमेशा रहेंगे, कभी इससे रिहाई न पांएगे. (तफ़सीरे जलालैन)
(23) इतना और ज़्यादा रहेंगे और इस ज़ियादती की कोई हद नहीं. इसे हमेशागी मुराद है. चुनांचे इरशाद फ़रमाता है.
(24) बेशक यह उस बुत परस्ती पर अज़ाब दिये जाएंगे जैसे कि पहली उम्मतें अज़ाब में जकड़ी गई.
(25) और तुम्हें मालूम हो चुका कि उनका अंजाम क्या होगा.
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सूरए हूद – दसवाँ रूकू
सूरए हूद – दसवाँ रूकू
और बेशक हमने मूसा को किताब दी(1)
तो उसमें फुट पड़ गई(2)
अगर तुम्हारे रब की एक बात(3)
पहले न हो चुकी होती तो जभी उनका फ़ैसला कर दिया जाता(4)
और बेशक वो उसक तरफ़ से (5)
धोखा डालने वाले शक में हैं(6){110}
और बेशक जितने हैं (7)
एक एक को तुम्हारा रब उसका अमल पूरा भर देगा, उसे उन कामों की ख़बर है(8)(111)
तो क़ायम रहो(9)
जैसा तुम्हें हुक्म है और जो तुम्हारे साथ रूजू लाया है (10)
और ऐ लोगो सरगोशी (कानाफूसी) न करो, बेशक वह तुम्हारे काम देख रहा है {112} और ज़ालिमों की तरफ़ न झुको कि तुम्हें आग छुएगी(11)
और अल्लाह के सिवा तुम्हारा कोई हिमायती नहीं (12)
फिर मदद न पाओगे {113} और नमाज़ क़ायम रखो दिन के दोनों किनारों(13)
और कुछ रात के हिस्से में (14)
बेशक नेकियाँ बुराइयों को मिटा देती हैं (15)
यह नसीहत है नसीहत मानने वालों को {114} और सब्र करो कि अल्लाह नेकों का नेग नष्ट नहीं करता {115} तो क्यों न हुए तुम से अगली संगतों में (16)
ऐसे जिन में भलाई का कुछ हिस्सा लगा रहा होता कि ज़मीन में फ़साद से रोकते (17)
हाँ उनमें थोड़े थे वही जिनको हमने निजात दी(18)
और ज़ालिम उसी ऐश के पीछे पड़े रहे जो उन्हें दिया गया (19)
और वो गुनहगार थे {116} और तुम्हारा रब ऐसा नहीं कि बस्तियों को बे वजह हलाक कर दे और उनके लोग अच्छे हों {117} और अगर तुम्हारा रब चाहता तो सब आदमियों को एक ही उम्मत कर देता (20)
और वो हमेशा इख़्तिलाफ़ में रहेंगे (21){118}
मगर जिन पर तुम्हारे रब ने रहम किया (22)
और लोग उसी लिये बनाए हैं (23)
और तुम्हारे रब की बात पूरी हो चुकी कि बेशक ज़रूर जहन्नम भर दूंगा जिन्नों और आदमियों को मिला कर (24) {119}
और सब कुछ हम तुम्हें रसूलों की ख़बरें सुनाते हैं जिस से तुम्हारा दिल ठहराएं (25)
और उस सूरत में तुम्हारे पास हक़ आया (26)
और मुसलमानों को पन्द (उपदेश) व नसीहत (27) {120}
और काफ़िरों से फ़रमाओ तुम अपनी जगह काम किये जाओ(28)
हम अपना काम करते हैं (29){121}
और राह देखो, हम भी राह देखते हैं (30){122}
और अल्लाह ही के लिये हैं आसमानों और ज़मीन के ग़ैब (31)
और उसी की तरफ़ सब कामों की रूजू है तो उसकी बन्दगी करो और उसपर भरोसा रखो, और तुम्हारा रब तुम्हारे कामों से गाफ़िल नहीं {123}
तफ़सीर
सूरए हूद – दसवाँ रूकू
(1) यानी तौरात.
(2) कुछ उसपर ईमान लाए और कुछ ने कुफ़्र किया.
(3) कि उनके हिसाब में जल्दी न फ़रमाएगा. मख़लूक के हिसाब और बदले का दिन क़यामत का दिन है.
(4) और दुनिया ही में अज़ाब में जकड़े जाते.
(5) यानी आपकी उम्मत के काफ़िर क़ुरआने करीम की तरफ़ से.
(6) जिसने उनकी अक़्लों को हैरान कर दिया.
(7) तमाम ख़ल्क़, तस्दीक़ करने वाले हों या झुटलाने वाले, क़यामत के दिन.
(8) उसपर कुछ छुपा हुआ नहीं. इसमें नेकियों और तस्दीक़ करने वालों के लिये तो ख़ुशख़बरी है कि वो नेक का बदला पाएंगे और काफ़िरों और झुटलाने वालों के लिये फटकार है कि वो अपने कर्मों की सज़ा में गिरफ़्तार होंगे.
(9) अपने रब के हुक्म और उसके दीन की दावत पर.
(10) और उसने तुम्हारा दीन क़ुबूल किया है. वो दीन और फ़रमाँबरदारी पर क़ायम रहे. मुस्लिम शरीफ़ की हदीस में है, सुफ़ियान बिन अब्दुल्लाह सक़फ़ी ने रसूले करीम सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से अर्ज़ किया कि मुझे दीन में एक ऐसी बात बता दीजिये कि फिर किसी से पूछने की हाजत न रहे. फ़रमाया “आमन्तो बिल्लाह” कह और क़ायम रह.
(11) किसी की तरफ़ झुकना उसके साथ मेल महब्बत रखने को कहते है. अबुल आलिया ने कहा कि मानी ये हैं कि ज़ालिमों के कर्मों से राज़ी न हो. सदी ने कहा उनके साथ उठना बैठना न रखो. क़तादा ने कहा मुश्रिकों से न मिलो. इससे मालूम हुआ कि ख़ुदा के नाफ़रमानों के साथ यानी काफ़िरों, बेदीनों और गुमराहों के साथ मेल जोल रिश्तेदारी सहयोग और महब्बत उनकी हाँ में हाँ मिलाना, उनकी ख़ुशामद में रहना वर्जित है.
(12) कि तुम्हें उसके अज़ाब से बचा सके. यह हाल तो उनका है जो ज़ालिमों से मेल जोल और महब्बत रखें और इसीसे उनके हाल का अन्दाज़ा लगाया जा सकता है जो ख़ुद ज़ालिम हैं.
(13) दिन के दो किनारों से सुबह शाम मुराद हैं. ज़वाल से पहले का वक़्त सुबह में और बाद का शाम में दाख़िल है. सुब्ह की नमाज़ फ़ज्र और शाम की नमाज़ ज़ौहर और अस्र है.
(14) और रात के हिस्सों की नमाज़ें मग़रिब और इशा है.
(15) नेकियों से मुराद या यही पंजगाना नमाज़ें हैं जो आयत में बयान हुई या मुतलक़ ताअतें या ” सुब्हानल्लाहे वल हम्दु लिल्लाहे वला इलाहा इल्लल्लाहो वल्लाहो अक़बर” पढ़ना. आयत से मालूम हुआ कि नेकियाँ छोटे मोटे गुनाहों के लिये कफ़्फ़ारा होती है चाहे वो नेकियाँ नमाज़ हो या सदक़ा या ज़िक्र या इस्तग़फ़ार या कुछ और. मुस्लिम शरीफ़ की हदीस में है कि पाँचों नमाज़ें और जुमुआ दूसरे जुमुए तक और एक रिवायत में है कि एक रमज़ान से दूसरे रमज़ान तक, ये सब क़फ़्फ़ारा हैं उन गुनाहों के लिये जो इनके बीच हों जब कि आदमी बड़े गुनाहों से बचे. एक शख़्स ने किसी औरत को देखा और उससे कोई ख़फ़ीफ़ यानी मामूली सी हरकत बेहिजाबी की सरज़द हुई उसपर वह शर्मिन्दा हुआ और रसूले करीम सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर होकर अपना हाल अर्ज़ किया इसपर यह आयत उतरी. उस शख़्स ने अर्ज़ किया कि छोटे गुनाहों के लिये नेकियों का कफ़्फ़ारा होना क्या ख़ास मेरे लिये है. फ़रमाया, नहीं सब के लिये.
(16) यानी पहली उम्मतों में जो हलाक की गई.
(17) मानी ये है कि उन उम्मतों में ऐसे नेकी वाले नहीं हुए जो लोगों को ज़मीन में फ़साद करने से रोकते और गुनाहों से मना करते, इसीलिये हमने उन्हें हलाक कर दिया.
(18) वो नबियों पर ईमान लाए और उनके अहकाम पर फ़रमाँबरदार रहे और लागों को फ़साद से रोकते रहे.
(19) और नेअमतों, लज़ीज़ चीज़ों और ख़्वाहिशात और वासनाओं के आदी हो गए और कुफ़्र व गुमराही में डूबे रहे.
(20) तो सब एक दीन पर होते.
(21) कोई किसी दीन पर कोई किसी पर.
(22) वो सच्चे दीन पर सहमत रहेंगे और उसमें इख़्तिलाफ़ न करेंगे.
(23) यानी इख़्तिलाफ़ वाले इख़्तिलाफ़ के लिये और रहमत वाले सहमति के लिये.
(24) क्योंकि उसको इल्म है कि बातिल के इख़्तियार करने वाले बहुत होंगे.
(25) और नबियों के हाल और उनकी उम्मतों के सुलूक देखकर आपको अपनी क़ौम की तकलीफ़ का बर्दाश्त करना और उस पर सब्र फ़रमाना आसान हो.
(26) और नबियों और उनकी उम्मतों के तज़किरे वाक़ए के अनुसार बयान हुए जो दूसरी किताबों और दूसरे लोगों को हासिल नहीं यानी जो वाक़िआत बयान फ़रमाए गए वो हक़ भी है.
(27) ….भी कि गुज़री हुई उम्मतों के हालात और उनके अंजाम से सबक़ पकड़े.
(28) बहुत जल्द उसका नतीज़ा पा जाओगे.
(29) जिसका हमें हमारे रब ने हुक्म दिया.
(30) तुम्हारे अंजामेकार यानी अन्त की.
(31) उससे कुछ छुपा नहीं सकता.