Shahar-e-Nabi Teri Galiyon Ka Naqsha Hi Kuchh Aisa Hai Naat Lyrics

 

 

शहर-ए-नबी ! तेरी गलियों का नक़्शा ही कुछ ऐसा है
ख़ुल्द भी है मुश्ताक़-ए-ज़ियारत, जल्वा ही कुछ ऐसा है

शहर-ए-नबी ! तेरी गलियों का नक़्शा ही कुछ ऐसा है

दिल को सुकून दे, आँख को ठंडक, रोज़ा ही कुछ ऐसा है
फ़र्श-ए-ज़मीं पर अर्श-ए-बरीं हो, लगता ही कुछ ऐसा है

शहर-ए-नबी ! तेरी गलियों का नक़्शा ही कुछ ऐसा है

उन के दर पर ऐसा झुका दिल, उठने का अब होश नहीं
अहल-ए-शरीअ’त हैं सकते में, सज्दा ही कुछ ऐसा है

शहर-ए-नबी ! तेरी गलियों का नक़्शा ही कुछ ऐसा है

अर्श-ए-मुअ’ल्ला सर पे उठाए, ताइर-ए-सिदरा आँख लगाए
पत्थर भी क़िस्मत चमकाए, तल्वा ही कुछ ऐसा है

शहर-ए-नबी ! तेरी गलियों का नक़्शा ही कुछ ऐसा है

सिब्त-ए-नबी है पुश्त-ए-नबी पर और सज्दे की हालत है
आक़ा ने तस्बीह बढ़ा दी, बेटा ही कुछ ऐसा है

शहर-ए-नबी ! तेरी गलियों का नक़्शा ही कुछ ऐसा है

रब के सिवा देखा न किसी ने, फ़र्शी हो या अर्शी हो
उन की हक़ीक़त के चेहरे पर पर्दा ही कुछ ऐसा है

शहर-ए-नबी ! तेरी गलियों का नक़्शा ही कुछ ऐसा है

ख़म हैं यहाँ जमशेद-ओ-सिकंदर, इस में क्या हैरानी है !
उन के ग़ुलामों का, ए अख़्तर ! रुत्बा ही कुछ ऐसा है

शहर-ए-नबी ! तेरी गलियों का नक़्शा ही कुछ ऐसा है

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