Main Ghulam e Ghulam e Farooqi Naat Lyrics

 

अमीरुल-मो’मिनीन, इमामुल-आदिलीन
मुहिब्बुल-मुस्लिमीन, गैज़ुल-मुनाफ़िक़ीन

मुझ को इज़्ज़त ख़ुदा ने है बख़्शी
मैं ग़ुलाम-ए-ग़ुलाम-ए-फ़ारूक़ी

जिस को माँगा नबी ने मौला से
जाम जिस को पिलाए उल्फ़त के
मुझ को उस शाह की चाकरी दे दी
मैं ग़ुलाम-ए-ग़ुलाम-ए-फ़ारूक़ी

पहलु-ए-यार से लगे देखे
ख़ूब रोज़े में ये मज़े देखे
उस के तरफ़ा है क़ुर्बे-सिद्दीक़ी
मैं ग़ुलाम-ए-ग़ुलाम-ए-फ़ारूक़ी

रंग फीके थे, कहतसाली थी
मेरी हस्ती बिखरने वाली थी
दस्ते फ़ारूक़ ने जिला बख़्शी
मैं ग़ुलाम-ए-ग़ुलाम-ए-फ़ारूक़ी

ग़म बहुत दूर से गुज़रते हैं
काम बिगड़े हुवे भी बनते हैं
जब से तहरीर घर पे लिखवाली
मैं ग़ुलाम-ए-ग़ुलाम-ए-फ़ारूक़ी

आल-ओ-असहाब से मोहब्बत है
दस्ते-फ़ारूक़ ने भरे कासे
मैं हूँ अल्वी, सिद्दीक़ी, उस्मानी
मैं ग़ुलाम-ए-ग़ुलाम-ए-फ़ारूक़ी

उनकी ताईद में वही आए
बात उनकी कही सुनी जाए
उनको हासिल मक़ामे-महबूबी
मैं ग़ुलाम-ए-ग़ुलाम-ए-फ़ारूक़ी

एक पनघट से शेर और बकरी
अहदे फ़ारूक़ में पिये पानी
लाओ तो दूसरी मिसाल ऐसी
मैं ग़ुलाम-ए-ग़ुलाम-ए-फ़ारूक़ी

हैदरी प्यार उन से करते हैं
सब हुसैनी भी उन पे मरते हैं
ये वसीयत है उनको मौला की
मैं ग़ुलाम-ए-ग़ुलाम-ए-फ़ारूक़ी

शर्फ़-ओ-इज़्ज़त पे, नेक नामी पे
नाज़ है मुझ को इस ग़ुलामी पे
है सनद पुल से पार होने की
मैं ग़ुलाम-ए-ग़ुलाम-ए-फ़ारूक़ी

पीठ मजबूत क्यों न हो मेरी
पीठ पर है जो दस्ते फ़ारूक़ी
मुझ पे राशिद चले न दुश्मन की
मैं ग़ुलाम-ए-ग़ुलाम-ए-फ़ारूक़ी

मुझ को इज़्ज़त ख़ुदा ने है बख़्शी
मैं ग़ुलाम-ए-ग़ुलाम-ए-फ़ारूक़ी

अमीरुल-मो’मिनीन, इमामुल-आदिलीन
मुहिब्बुल-मुस्लिमीन, गैज़ुल-मुनाफ़िक़ीन

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