Tamheede Imaan Sharif

 

 

Imtehaan Kya Hai | Tamheede Imaan Sharif Post 3 | Faqeere Aalahazrat

 

Tamheed-E-Imaan Post 1 | Imaan Kya Hai | Musalman Kon Hai | Deen-E-Islam Kya Hai

 

???…ईमान वाला (मुसलमान) कौन है…???
ईमान क्या है ❓
𝐓𝐀𝐌𝐇𝐄𝐄𝐃-𝐄-𝐈𝐌𝐀𝐀𝐍
𝐁𝐀𝐀 𝐀𝐀𝐘𝐀𝐀𝐓-𝐄-𝐐𝐔𝐑’𝐀𝐀𝐍 | Imaan Kya Hai
✨✨✨
तम्हीद – ए – ईमान
बाआयात–ए–कुरआन
Tamheed-E-Imaan Post 1 | Imaan Kya Hai | Musalman Kon Hai |

ᴘᴏsᴛ 1️⃣

!!!… दीन–ए–इस्लाम क्या है ❓…!!!

❣️फरमान–ए–कुरआन–ए–पाक❣️
اِنَّآ اَرْسَلْنٰکَ شَاھِدًا وَّمُبَشِِّرًا وَّنَذِیْرًا o لِِّتُؤمِنُوْا بِا اللّٰہِ وَرَسُوْلِہٖ وَتُعَزِِّرُوْہُ وَتُوَقِِّرُوْہُ وَتُسَبِِّحُوْہُ بُکْرَۃً وَّاَصِیْلاً o

तर्जमा; कंजूल ईमान शरीफ :– ऐ नबी ! बेशक हमने तुम्हें भेजा गवाह और खुश खबरी देता और डर सुनता ताकि ऐ लोगो तुम अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ और रसूल की ताज़ीम–ओ– तौक़ीर करो और सुबह–ओ–शाम अल्लाह की पाकी बोलो ।
Imaan Kya Hai
(सूरह–अल–फतह, पारा–26, रूकू–09, आयत–8:9)
✍️ नोट :– मुसलमानो देखो दीन ए इस्लाम भेजने और कुरआन मजीद उतारने का मकसूद (मक़सद) ही तुम्हारा मौला तबारक वा ताआला (ﷻ) तीन 3️⃣ बातें इरशाद फरमाता है ।
1️⃣👉 यह की लोग अल्लाह (ﷻ) और उसके प्यारे रसूल (ﷺ) पर ईमान लाएं ।

2️⃣👉 यह की लोग रसूल ए पाक (ﷺ) की ताज़ीम (अदब) करें ।

3️⃣👉 यह की लोग अल्लाह (ﷻ) की इबादत में रहे ।
मुसलमानो इन तीन 3️⃣ जलील (बड़ी) बातों की जमील (खूबसूरत) तरतीब तो देखो ।
“सबसे पहले ईमान को फरमाया” और “सबसे आखिर में अपनी इबादत को” और बीच में “अपने प्यारे हबीब (ﷺ) की ताज़ीम (अदब) को फरमाया” क्यों की बगैर ईमान के ताज़ीम (अदब) करना कुछ फायदे मंद नहीं ।
बहुत ऐसे नसारा (ईसाई) है जो नबी ए करीम (ﷺ) की ताज़ीम–ओ–तौक़ीर में किताबें लिख चुके, नात ए पाक लिख चुके, लेक्चर दे चुके ।
Imaan Kya Hai
!!!…मगर जब की ईमान न लाए कुछ फायदा नहीं…!!!
क्यों की ये जाहिरी ताज़ीम है, अगर दिल में हुजूर ए अकरम (ﷺ) की सच्ची अजमत (अदब) होती तो जरूर ईमान लातें ।
फिर जब तक दिल में हुज़ूर ए अकरम (ﷺ) की सच्ची अजमत (अदब) न हो उम्र भर अल्लाह (ﷻ) की इबादत में काट से सब बेकार और मरदूद (खुदा की बारगाह से निकाला हुआ) है ।
बहुत ऐसे जोगी और राहिब (जो दुनिया से किनारा करके एकांत की जिंदगी गुजारते हैं) वो दुनिया को छोड़ का अपने तौर पर अल्लाह (ﷻ) का जिक्र करते हैं और इबादत करते हैं। बल्कि उनमें तो बहुत ऐसे है जो (ला इलाहा इल लल्लाह) का जिक्र सीखते हैं और जर्बे (रट्टा) लगाते हैं।
“मगर ये की दिल में हुज़ूर ए अकरम (ﷺ) की सच्ची अजमत (अदब) नहीं तो क्या फायदा ऐसे अमल खुदा की बारगाह में क़ुबूल नहीं ।”
ऐसे लोगों के बारे में अल्लाह (ﷻ) फरमाता हैं
وَقَدِمْنَآ اِلٰی مَا عَمِلُوْا مِنْ عَمَلٍ فَجَعَلْنٰہُ ھَبَآءً مَّنْشُوْرًا o
तर्जमा; कंजुल ईमान शरीफ़ :– जो कुछ आमाल उन्होंने किए हमने सब बरबाद कर दिए ।

(सूरह– अल–फुरकान, पारा–19, रूकू–01, आयत–23)
और फरमाता है
عَامِلَۃٌ نَّاصِبَۃٌ o تَصْلٰی نَارًا حَامِیَۃٌ
तर्जमा; कंजुल ईमान शरीफ :– अमल करें मुसक्कते भरें और बदला क्या होगा ? यही की भड़कती आग में डाले जाएंगे।
(सूरह– अल–गशियाह, पारा–30, रुकू–13, आयत–3:4)
Imaan Kya Hai

✍️ नोट :– मुसलमानो कहो हुज़ूर ए अकरम (ﷺ) की ताज़ीम (अदब)
“मदार ए ईमान (यानी ईमान की बुनियाद)”
“मदार ए निजात (यानी बख्शीश का जरिया)”
और “मदार ए कुबूल ए अमल (यानी अमल का क़ुबूल होना)

???…..हुआ या नहीं…..???

!!!…कहो हुआ और जरूर हुआ…!!!
यानी ईमान, निजात, और अमल की बुनियाद हुज़ूर ए अकरम (ﷺ) की ताज़ीम (अदब) पर ठहरा है ।
सब से अहम ईमान है मगर दिल में हुज़ूर ए अकरम (ﷺ) की सच्ची अजमत (अदब) न हो तो वो भी जाता रहेगा ।
Imaan Kya Hai
???…ईमान वाला (मुसलमान) कौन है…???
قُلْ اِنْ كَانَ اٰبَآؤُكُمْ وَ اَبْنَآؤُكُمْ وَ اِخْوَانُكُمْ وَ اَزْوَاجُكُمْ وَ عَشِیْرَتُكُمْ وَ اَمْوَالُ ٌِا قْتَرَفْتُمُوْھَا وَ تِجَارَةٌ تَخْشَوْنَ كَسَادَهَا وَ مَسٰكِنُ تَرْضَوْنَهَاۤ اَحَبَّ اِلَیْكُمْ مِّنَ اللّٰهِ وَ رَسُوْلِهٖ وَ جِهَادٍ فِیْ سَبِیْلِهٖ فَتَرَبَّصُوْا حَتّٰى یَاْتِیَ اللّٰهُ بِاَمْرِهٖؕ- وَ اللّٰهُ لَا یَهْدِی الْقَوْمَ الْفٰسِقِیْنَ۠ o

तर्जमा:– “ऐ नबी ! तुम फरमा दो की ऐ लोगो ! अगर तुम्हारे बाप, तुम्हारे बेटे, तुम्हारे भाई, तुम्हारी बीवियां, तुम्हारा कुम्बा, तुम्हारी कमाई के माल और वह सौदागरी जिसके नुकसान का तुम्हें अंदेशा है और तुम्हारी पसंद के मकान उनमें कोई चीज़ भी अगर तुमको अल्लाह और उसके रसूल (ﷺ) और उसकी राह में कोशिश करने से ज्यादा महबूब है तो इंतज़ार रखो यहां तक अल्लाह अपना अज़ाब उतारे और अल्लाह ता’आला बेहुक्मो को राह नहीं देता !”
(सूरह–अत–तौबा, पारा–10, रुकु–09, आयत–24)
✍🏻 नोट :– इस आयत से मालूम हुआ कि जिसे दुनिया जहान में कोई मुअज्जम (Respected) कोई अज़ीज़ कोई माल कोई चीज़ अल्लाह (ﷻ) और उसके रसूल (ﷺ) से ज़्यादा महबूब हो वह बारगाहे इलाही से मरदूद (निकाला हुआ) है। अल्लाह (ﷻ) उसे अपनी तरफ राह नहीं देगा उसे अज़ाब ए इलाही के इंतज़ार में रहना चाहिए यानी अगर कोई अल्लाह (ﷻ) और उसके प्यारे रसूल (ﷺ) से ज़्यादा किसी और चीज़ से मोहब्बत करता है तो उसे अज़ाब का मज़ा ज़रूर चखना है।
!!!….अल्लाहू अकबर…!!!
तुम्हारे प्यारे नबी (ﷺ) इरशाद फरमाते हैं:—
لا یومن احد کم حتی اکون احب الیہ من والدہ والدہ والناس اجمعین
तर्जमा:— “तुम में से कोई मुसलमान न होगा जब तक मैं उसे उसके मां, बाप, औलाद और sb आदमियों से ज़्यादा प्यारा न हो जाऊं।”
Imaan Kya Hai

✍🏻नोट:— यह हदीस ए पाक सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम में ‘हज़रत अनस इब्ने मालिक अंसारी’
رضی اللہ تعالٰی عنہ
से मरवी है इसमें तो ये बात साफ फरमा दी गई की जो हुज़ूर ए अकरम (ﷺ) से ज़्यादा किसी को अज़ीज़ रखे हरगिज़ मुसलमान नहीं हो सकता ।
“मुसलमानों कहो हुज़ूर ए अकरम (ﷺ) को तमाम जहान से ज़्यादा महबूब रखना
मदार ए ईमान ( यानी ईमान की बुनियाद)
और मदार ए निजात (यानी बख्शीश का जरिया)
हुआ या नहीं ???”
💯!!!.. कहो हुआ और ज़रूर हुआ…!!!💯
यानी उन्हीं की मोहब्बत ईमान है और उसी से निजात हासिल होगी । यहां तक तो सारे कलीमागो (कलमा पढ़ने वाले) खुशी खुशी क़बूल कर लेंगे की हां हमारे दिल में हुज़ूर ए अकरम (ﷺ) की अज़ीम अजमत है । हां हां मां, बाप, औलाद सारे जहान से ज़्यादा हमें हुज़ूर ए पाक (ﷺ) की मोहब्बत है । भाईयो ! खुदा ऐसा ही करे मगर यहां तो इम्तेहान की ठहरी है…!!!
Tamheede Imaan Sharif Post 2
Imaan Kya Hai
ईमान क्या है ❓
बिला शक्को–शुबह हुज़ूर ए अकरम (ﷺ) से सच्ची मोहब्बत ही का नाम ईमान है।
मुजद्दिद ए दीनो मिल्लत, इमाम ए इश्को मोहब्बत, सय्यदी सरकार ए आलाहज़रत (رضی اللہ تعالٰی عنہ) फरमाते हैं:—
हुज़ूर पुरनूर (ﷺ) को हर बात में सच्चा जाने, हुज़ूर ए पाक (ﷺ) की हक्कानियत को सिद्क दिल से माने, दिल में अल्लाह (ﷻ) और उसके प्यारे रसूल (ﷺ) की मोहब्बत तमाम जहान वालों से ज़्यादा हो, अल्लाह (ﷻ) और उसके प्यारे रसूल (ﷺ) के प्यारों से मोहब्बत रखे अगरचे अपने दुश्मन ही क्यू ना हो, और अल्लाह (ﷻ) और उसके प्यारे रसूल (ﷺ) के हर गुस्ताख, हर मुखालिफ, (वहाबी, देवबंदी, तबलीगी जमात, शिया, कादयानी, नेचरी, चकड़ालवी, सुलहेकुल्ली वगैराहुम) से सच्ची नफरत रखे अगर्चे अपने जिगर के टुकड़े ही क्यू ना हो । !!!!!….. यही ईमान है…..!!!!!

 

 

 

Tamheede Imaan Sharif Post 2 | Imaan Walo Ka Imtehaan | Tamheede Imaan | Faqeere Aalahazrat

 

Tamheede Imaan Sharif Post 2️⃣
!!!…ईमान वालों को अल्लाह की तरफ से इन‘आम…!!!
!!!…गुस्ताखे रसूल (वहाबी देवबंदीओ) से मेल जोल रखने वालों पर अल्लाह का अज़ाब…!!!
Imaan Walo Ka Imtehaan
!!! ईमान वालो का इम्तेहान !!!
Tamheede Imaan Sharif Post 2️⃣
Tamheede Imaan
الٓمّٓ ( ) اَحَسِبَ النَّاسُ اَنْ یُّتْرَکُوْآ اَنْ یَّقُوْلُوْآ اٰمَنَّا وَھُمْ لَا ( ) یُفْتَنُوْنَ
तर्जमा:— “क्या लोग इस घमंड में है कि सिर्फ़ इतना कह लेने पर छोड़ दिए जाएंगे की हम ईमान लाए और उनकी आजमाइश न होगी।”
(सूरह अनकबूत, पारा: 20, रूकु: 13, आयत: 1:2)

✍🏻 नोट:—यह आयत मुसलमानो को होशियार कर रही है..!
कि देखो कलिमागोयी ज़बानी अदाए मुसलमानी (यानी सिर्फ ज़बान से कलमा पढ़ कर खुद को मुसलमान कह लेने से) तुम्हारा छुटकारा न होगा।
!!!!!….. हां हां सुनते हो…..!!!!!

“आजमाएं जाओगे और आजमाइश में पूरे निकले तो मुसलमान ठहरोगे ।”
हर शय की आजमाइश में यही देखा जाता है की जो बातें उसके हकीकी व वाकई होने को दरकार है वह उसमें हैं या नहीं ? ( यानी आजमाइश के वक्त यह देखा जाता है की सच्चे होने के लिए जो बातें होनी चाहिए वह हैं या नहीं)?
अभी कुरआन व हदीस इरशाद फरमा चुका की ईमान के हकीकी व वाकई होने को दो बातें ज़रूरी है।
1️⃣👉🏻 हुज़ूर पुरनूर (ﷺ) की ताज़िम ।
2️⃣👉🏻 हुज़ूर पुरनूर (ﷺ) की मोहब्बत तमाम जहान पर तकदीम (preference) हो…!!!

Tamheede Imaan Sharif Post 1
✍🏻नोट:— तो इसकी आज़माइश का सही तरीका ये है की तुमको जिन लोगों से कैसी ही ताज़ीम, कितनी ही मोहब्बत, कितनी ही दोस्ती का इलाका हो, जैसे तुम्हारे बाप, तुम्हारे उस्ताद, तुम्हारे पीर, तुम्हारे बड़े, तुम्हारे असहाब, तुम्हारे अहबाब, तुम्हारे मौलवी, तुम्हारे हाफ़िज़, तुम्हारे मुफ्ती, तुम्हारे वाइज वगैरह वगैरह कशे बासत (कोई भी) जब वह हुज़ूर पुरनूर (ﷺ) की शान ए पाक में गुस्ताखी करे असलन तुम्हारे कल्ब (दिल) में उसकी मोहब्बत का नाम ओ निशान बाकी न रहे, फौरन उनसे जुदा हो जाओ, उनको दूध से मक्खी की तरह निकाल का फेंक दो, उसकी सूरत, उसके नाम से नफरत खाओ। फिर न तुम अपने रिश्ते, इलाके, दोस्ती, उल्फत का पास (लिहाज़) करो ना उसकी मौलवियत, मशिखियत, बुजूर्गी, फजीलत को खतरे में लाओ, आखिर ये जो कुछ भी था हुज़ूर ए पाक (ﷺ) की गुलामी की बिना पर था । जब ये शख्स उन्हीं की शान में गुस्ताख़ हुआ फिर हमें उससे क्या मतलब रहा? उसके जुब्बे उसके इमामे पर क्या जाएं, क्या बहुतेरे यहूदी जुब्बे नहीं पहनते? अमामे नहीं बांधते? उसके नाम, इल्म व जाहिर फ़ज़ल की लेकर क्या करें? क्या बहुतेरे पादरी ब–कसरत फलसफी (scientist) बड़े बड़े उलूम ओ फूनून नहीं जानते और अगर यही नहीं बल्कि हुज़ूर ए अकरम (ﷺ) के मुकाबिल तुमने उसकी बात बनानी चाही,
उसने हुज़ूर ए पाक (ﷺ) की गुस्ताखी की और तुमने उससे दोस्ती बनानी चाही, निबाही या उसे हर बुरे से बदतर न जाना या उसे बुरा कहने पर बुरा माना या इसी कद्र की तुमने इस काम में बेपरवाही मनाई या तुम्हारे दिल में उसकी तरफ से सख़्त नफ़रत न आई,
“तो लिल्लाह अब तुम ही इंसाफ करो की तुम ईमान के इम्तेहान में कहां पास हुए?”
कुरआन व हदीस ने जिस पर हुसूल ए ईमान का मदार रखा था तुम उससे कितनी दूर निकल गए (यानी ईमान का हासिल होना जिसकी ताज़ीम पर ठहरा है तुम उससे कितनी दूर निकल गए) ।
मुसलमानों ! क्या जिसके दिल में हुज़ूर ए अकरम (ﷺ) की ताज़ीम, मोहब्बत होगी वह उन के दुश्मनो की वक्अत (respect) करेगा?
अगरचे उसका पीर या उस्ताद या बाप ही क्यों न हो, क्या जिसे हुज़ूर ए पाक (ﷺ) तमाम जहान से ज्यादा प्यारे होंगे वह उनके गुस्ताख से फौरन सख्त शदीद नफरत न करेगा अगरचे उसका दोस्त या बिरादर (भाई) या बेटा ही क्यू ना हो?
“लिल्लाह ! अपने हाल पर रहम करो। और अपने रब की बात सुनो, देखो वह क्योंकर तुम्हे अपनी रहमत की तरफ बुलाता है।”

!!!…ईमान वालों को अल्लाह की तरफ से इन‘आम…!!!
لَّا تَجِدُ قَوْمًا يُّؤْمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ لْاٰخِرِ يُوَآدُّونَ مَنْ حَآدَّ اللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَلَوْ كَانُوٓا۟ ءَابَآءَهُمْ أَوْ أَبْنَآءَهُمْ أَوْ إِخْوَٰنَهُمْ أَوْ عَشِيرَتَهُمْ ۚ أُو۟لَٰٓئِكَ كَتَبَ فِى قُلُوبِهِمُ ٱلْإِيمَٰنَ وَأَيَّدَهُم بِرُوحٍ مِّنْهُ ۖ وَيُدْخِلُهُمْ جَنَّٰتٍ تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَا ۚ رَضِىَ ٱللَّهُ عَنْهُمْ وَرَضُوا۟ عَنْهُ ۚ أُو۟لَٰٓئِكَ حِزْبُ ٱللَّهِ ۚ أَلَآ إِنَّ حِزْبَ ٱللَّهِ هُمُ ٱلْمُفْلِحُونَ o
तर्जमा:— “तू न पाएगा उन्हें जो ईमान लाए हो अल्लाह और कयामत पर की उनके दिल में ऐसों की मोहब्बत आने पाए जिन्होंने खुदा (ﷻ) और रसूल (ﷺ) से मुखालिफत की चाहे वह उनके बाप या बेटे या भाई या अज़ीज़ ही क्यों न हों यह है वह जिनके दिलों में अल्लाह ने ईमान नक्श कर दिया और अपनी तरफ की रूह से उनकी मदद फरमाई और उन्हें बागों में ले जाएगा जिनके नीचे नहरें बह रही है हमेशा रहेंगे उनमें… अल्लाह उनसे राज़ी और वो अल्लाह से राज़ी, यही लोग अल्लाह वालें हैं। और अल्लाह वाले ही मुराद को पहुंचे।”
(सुरह अल मुजादिल, पारा: 28, रुकु:3, आयत:22)

✍🏻नोट:—इस आयत ए करीमा में साफ फरमा दिया की जो अल्लाह ﷻ और उसके प्यारे रसूल ﷺ की शान ए पाक में गुस्ताखी करे मुसलमान उससे दोस्ती न करेगा, जिसका सही मतलब ये हुआ की जो उससे दोस्ती रखे वह मुसलमान न होगा । फिर इस हुक्म का कतअन होना नफसील के साथ इरशाद फरमाया कि बाप, बेटे, भाई, अज़ीज़, सबको गिनाया यानी कोई कैसा ही तुम्हारे ख्याल में मुअज्जम (respected) या कैसा ही तुम्हे दिल से महबूब हो अगर वह हुज़ूर ए पाक (ﷺ) के शान ए पाक में गुस्ताख हुआ तो उससे मोहब्बत नहीं रख सकते उसकी ताज़ीम (respect) नहीं कर सकते वरना मुसलमान न रहोगे। मौला तबारक व ताअला का इतना फरमान ही मुसलमानों को लिए बस था मगर देखो वह तुम्हे अपनी रहमत की तरफ बुलाता है, अपनी अज़ीम ने’मतों का लालच दिलाता है की अगर अल्लाह ﷻ और उसके प्यारे रसूल (ﷺ) की अजमत के आगे तुमने किसी का लिहाज ना किया किसी से अलाका ना रखा तो तुम्हे क्या क्या फायदे होंगे।

Tamheede Imaan Sharif
1️⃣👉🏻 अल्लाह ताअला तुम्हारे दिल में ईमान नक्श फरमा देगा जिसमे इंशा अल्लाह हुस्ने खातिमा को बशारत ए जलीला (बहुत बड़ी खुश खबरी) है की अल्लाह का लिखा नहीं मिटता यानी इस आयत पर अमल करने वाले को यह बशारत दी जा रही है की उसका ईमान सलामत रहेगा और खातिमा ईमान पर होगा क्यों की अल्लाह का लिखा मिटा नही करता और यह ऐसी ने’मत है जिस पर सब कुछ कुर्बान।
2️⃣👉🏻 अल्लाह पाक रूहुल कुदुस (फरिश्तों) के जरिए तुम्हारी मदद फरमाएगा ।
3️⃣👉🏻 तुम्हे हमेशा के लिए जन्नत में ले जाएगा जिसके नीचे नहरे जारी है।
4️⃣👉🏻तुम खुदा के गिरोह हो जाओगे,यानी अल्लाह वाले कहलाओगे।
5️⃣👉🏻 मुंह मांगी मुरादें पाओगे बल्कि उम्मीद व ख्याल व गुमान से करोड़ों दर्जे ज्यादा ।
6️⃣👉🏻 सबसे ज्यादा यह की अल्लाह तुमसे राज़ी होगा।
7️⃣👉🏻 यह की फरमाता है मै तुमसे राज़ी तुम मुझसे राज़ी। बंदे के लिए इससे ज्यादा और क्या ने’मत होगी की उसका रब उससे राज़ी हो मगर इंतेहाय बंदा नवाज़ी ये की फरमाया की अल्लाह उनसे राज़ी और वह भी अल्लाह से राज़ी।
Tamheede Imaan Sharif
मुसलमानो ! खुदा लगती कहना अगर आदमी करोड़ों जाने रखता हो और वह सबके सब इन अज़ीम दौलतों पर निसार कर दे तो वल्लाह की मुफ्त पाएं फिर उसे तौहीन करने वाले शख्स से अलाका ताज़ीम व मोहब्बत यकलख्त कता कर देना यानी उसे छोड़ देना कितनी बड़ी बात है जिस पर अल्लाह ताअला इन बहुत ज़्यादा कीमती ने’मतों का वादा फरमा रहा है और उसका वादा यकीनन सच्चा है। कुरआन करीम की आदतें करीमा है की जो हुक्म फरमाता है जैसे की उसके मानने वालों को अपनी ने’मतों की बशारत देता है न मानने वालों पर अपने अज़ाबों का ताज़ियाना (सजा) भी रखता है की जो पस्त हिम्मत ने’मत के लालच में न आएं सजाओं के डर से राह पाएं ।

वह अज़ाब भी सुन लीजिए।

!!!…गुस्ताखे रसूल (वहाबी देवबंदीओ) से मेल जोल रखने वालों पर अल्लाह का अज़ाब…!!!

یٰۤاَیُّہَا الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡا لَا تَتَّخِذُوۡۤا اٰبَآءَکُمۡ وَ اِخۡوَانَکُمۡ اَوۡلِیَآءَ اِنِ اسۡتَحَبُّوا الۡکُفۡرَ عَلَی الۡاِیۡمَانِ ؕ وَ مَنۡ یَّتَوَلَّہُمۡ مِِّنۡکُمۡ فَاُولٰٓئِکَ ہُمُ الظّٰلِمُوۡنَ o
तर्जमा:— “ऐ ईमान वालों! अपने बाप अपने भाइयों को दोस्त न बनाओ अगर वह ईमान पर कुफ्र पसंद करें और तुमने जो रिफकत करें और वही लोग सीतमगर हैं।”
(सूरह अत तौब, पारा: 10, रुकु:9, आयत:23)
और फरमाता है

یٰۤاَیُّہَا الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡا لَا تَتَّخِذُوۡا عَدُوِِّیۡ وَ عَدُوَّکُمۡ اَوۡلِیَآءَ تُلۡقُوۡنَ اِلَیۡہِمۡ بِالۡمَوَدَّۃِ وَ قَدۡ کَفَرُوۡا بِمَا جَآءَکُمۡ مِِّنَ الۡحَقِِّ ۚ یُخۡرِجُوۡنَ الرَّسُوۡلَ وَ اِیَّاکُمۡ اَنۡ تُؤۡمِنُوۡا بِاللّٰہِ رَبِِّکُمۡ ؕ اِنۡ کُنۡتُمۡ خَرَجۡتُمۡ جِہَادًا فِیۡ سَبِیۡلِیۡ وَ ابۡتِغَآءَ مَرۡضَاتِیۡ ٭ۖ تُسِرُّوۡنَ اِلَیۡہِمۡ بِالۡمَوَدَّۃِ ٭ۖ وَ اَنَا اَعۡلَمُ بِمَاۤ اَخۡفَیۡتُمۡ وَ مَاۤ اَعۡلَنۡتُمۡ ؕ وَ مَنۡ یَّفۡعَلۡہُ مِنۡکُمۡ فَقَدۡ ضَلَّ سَوَآءَ السَّبِیۡلِ o لَنۡ تَنۡفَعَکُمۡ اَرۡحَامُکُمۡ وَ لَاۤ اَوۡلَادُکُمۡ ۚۛ یَوۡمَ الۡقِیٰمَۃِ ۚۛ یَفۡصِلُ بَیۡنَکُمۡ ؕ وَ اللّٰہُ بِمَا تَعۡمَلُوۡنَ بَصِیۡرٌ o
तर्जमा:— “ऐ ईमान वालों ! मेरे और अपने दुश्मनों को दोस्त ना बनाओ तुम छुपकर उनसे दोस्ती रखते हो और तुममे जो ऐसा करेगा वह जरूर सीधी राह से बहका, तुम्हारे रिश्ते और तुम्हारे बच्चे तुम्हे कुछ नफा (फायदा) ना देंगे। कयामत के दिन तुममें और तुम्हारे प्यारों में जुदाई डाल देगा की तुममें एक दूसरे के कुछ काम न आ सकेगा और अल्लाह तुम्हारे आमाल को देख रहा है।
(सुरह अल मुमतहिनह, पारा:28, रुकु:7, आयत: 1 & 3)

और फरमाता है
وَ مَنۡ یَّتَوَلَّہُمۡ مِِّنۡکُمۡ فَاِنَّہٗ مِنۡہُمۡ ؕ اِنَّ اللّٰہَ لَا یَہۡدِی الۡقَوۡمَ الظّٰلِمِیۡنَ o
तर्जमा:— “जो तुममें उनसे कोई दोस्ती करेगा तो बेशक वह उन्हीं में से है। बेशक अल्लाह हिदायत नही करता जालिमों को।”
(सूरह अल माईदा, पारा: 6, रुकु:12, आयत:56)
✍🏻नोट:— पहली दो आयतों में तो उनसे दोस्ती करने वालों को ज़ालिम व गुमराह ही फरमाया था मगर इस आयते करीमा ने बिल्कुल तस्फिया (फैसला) फरमा दिया की जो उनसे दोस्ती रखे वह भी उन्ही में से है, उन्ही की तरह काफिर है, उसके साथ एक रस्सी में बांधा जाएगा,और वह अज़ाब भी याद रखें की तुम छुप छुपकर उनसे मेल जोल रखते हो और तुम्हारे छुपे ज़ाहिर सबको खूब जानता है। अब वह रस्सी भी सुन लीजिए जिसमे रसूलल्लाह (ﷺ) की शान ए अकदस में गुस्ताखी करने वाले बांधे जायेंगे।
अल्लाह हु अकबर

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!!!….तुम्हारा रब तबारक व ताअला फरमाता है…!!!

وَ الَّذِیۡنَ یُؤۡذُوۡنَ رَسُوۡلَ اللّٰہِ لَہُمۡ عَذَابٌ اَلِیۡمٌ o
तर्जमा:— “वह जो रसूलल्लाह (ﷺ) को ईज़ा (तकलीफ) देते हैं उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है।”
(सुरह अत तौबा, पारा:10, रुकु:14, आयत:61)

और फरमाता है

اِنَّ الَّذِیۡنَ یُؤۡذُوۡنَ اللّٰہَ وَ رَسُوۡلَہٗ لَعَنَہُمُ اللّٰہُ فِی الدُّنۡیَا وَ الۡاٰخِرَۃِ وَ اَعَدَّ لَہُمۡ عَذَابًا مُّہِیۡنًا o
तर्जमा:— “बेशक जो अल्लाह व रसूल (ﷺ) को ईज़ा (तकलीफ) देते हैं उन पर अल्लाह की लानत है दुनिया व आखिरत में और अल्लाह ने उनके लिए जिल्लत का अज़ाब तैयार कर रखा है।”
(सूरह अल अजहब, पारा:22, रुकु: 4, आयत: 57)

✍🏻नोट:— अल्लाह पाक ईज़ा (तकलीफ) से पाक है उसे कौन तकलीफ दे सकता है मगर उसने अपने हबीब (ﷺ) की शान ए अकदस में गुस्ताखी को अपनी तकलीफ को फरमाया । इन आयतों से उस शख्स पर जो हुज़ूर ए पाक (ﷺ) के गुस्ताखो से मोहब्बत का बरताओ करे, सात कोड़े साबित हुए:—

1️⃣👉🏻 वह ज़ालिम है।
2️⃣👉🏻 गुमराह है।
3️⃣👉🏻 काफिर है।
4️⃣👉🏻 उसके लिए दर्दनाक अज़ाब है।
5️⃣👉🏻 वह दुनिया व आखिरत में जलिल व ख्वार है।
6️⃣👉🏻 उसने अल्लाह वाहिद कहहार को तकलीफ दी।
7️⃣👉🏻 उस पर दोनो जहान में खुदा की लानत है ।
!!!…अल्लाह हु अकबर…!!!

Tamheede Imaan Sharif Post 3

ऐ मुसलमानों ! ऐ मुसलमानों ! ऐ उम्मते सय्यदुल इन्स वल जिन्न ! (ﷺ) खुदारा ज़रा इंसाफ कर, वह साथ ने’मत बेहतर है जो उन लोगो से दोस्ती रिश्तेदारी तोड़ देने पा मिलते हैं (यानी अल्लाह ﷻ व रसूल ﷺ के दुश्मनों से संबंध तोड़ देने पर मिलते हैं) की
“दिल में ईमान जम जाए, अल्लाह मददगार हो, जन्नत मकाम हो, अल्लाह वालों में शुमार हो, मुरादें मिले, खुदा तुझसे राज़ी हो, तू खुदा से राज़ी हो।”
या ये सात कोड़े भले है जो उन लोगो से ता’ल्लुक लगा रहने पर पड़ेंगे की
“ज़ालिम है, गुमराह है, काफिर है, जहन्नमी है, आखिरत में जलीलो ख्वार है, खुदा को ईज़ा दे, खुदा दोनों जहां में लानत करे।”
कौन कह सकता है की यह सात अच्छे हैं कौन कह सकता है की वो सात छोड़ने के है मगर जाने। बिरादर खाली यह कह देना तो काम नही देता न वहां तो इम्तेहान की ठहरी है, अभी आयत सुन चुके क्या इस भुलावे में हो की बस जुबान से कहकर छूट जाओगे इम्तेहान न होगा?

 

 

 

“क्या जिसने कहा की शैतान की वुसअत नस्स से साबित हुई फख्र ए आलम की वुसअत इल्म की कौन से नस्स कतई है।”
माज’अल्लाह माज’अल्लाह
!!!…हां यही इम्तेहान है…!!!

“देखो ये अल्लाह वाहिद कहहार की तरफ से तुम्हारी जांच है…!!!”
“देखो वह फरमा रहा है की रिश्ते अलाके कयामत के दिन काम न आयेंगे मुझ से तोड़कर किस्से जोड़ते हो…!!!”

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“देखो वह फरमा रहा है कि मैं गाफिल नहीं हूं, मैं बेखबर नहीं हूं, तुमहारे आमाल देख रहा हूं, तुम्हारे अकवाल सुन रहा हूं, तुम्हारे दिलों की हालत से खबरदार हूं…!!!”
“देखो बेपरवाही न करो, पराए के पीछे अपनी आखिरत ना बिगाड़ो, अल्लाह ﷻ और उसके प्यारे रसूल ﷺ के मुकाबिल ज़िद से काम न लो…!!!”
“देखो वह तुम्हे अपने सख़्त अज़ाब से डराता है, उसके अज़ाब से कहीं पनाह नहीं…!!!”
“देखो वह तुम्हे अपनी रहमत की तरफ बुलाता है, बे उसकी रहमत से कहीं निबाह नहीं…!!!”
“देखो गुनाह तो नीरे गुनाह होते हैं जिन पर बंदा अज़ाब का हकदार हो जाता है मगर ईमान नहीं जाता है, अजाब होकर ख्वाह रब की रहमत हबीब ﷺ की शफ़ाअत से बे अज़ाब ही छुटकारा हो जाएगा…!!!”
“हुज़ूर ए पाक ﷺ की ताज़ीम का मकाम है, उनकी अजमत उनकी मोहब्बत मदार ए ईमान है…!!!”

“कुरआन मजीद की आयते सुन चुके की जो इस मामले में कमी करे उस पर दोनो जहान में खुदा की लानत है…!!!”
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“देखो जब ईमान गया तो अब्दुल आबाद (यानी हमेशा के लिए) तक कभी किसी तरह हरगिज़ आज़ाब ए शदीद (सख़्त अज़ाब) से रिहाई नहीं होगी। गुस्ताखी करने वाले जिनका तुम यहां कुछ पास लिहाज़ कर रहे हो वहां वो अपनी भुगत रहे होंगे, तुम्हे बचाने न आयेंगे और अगर आ भी गए तो क्या कर लेंगे, फिर ऐसों का लिहाज़ करके अपनी जान को हमेशा हमेशा के लिए गज़ब ए जब्बार व अज़ाब ए नार (दोजख) में फसा देना क्या अक्ल की बात होगी…!!!”
“लिल्लाह – लिल्लाह ज़रा देर के लिए अल्लाह ﷻ और उसके प्यारे रसूल ﷺ के सिवा सबसे नज़र उठाकर आंखे बंद करो और गर्दन झुकाकर अपने आपको अल्लाह वाहिद कहहार के सामने हाज़िर समझो और नीरे खालिस सच्चे इस्लामी दिल के साथ हुज़ूर ए पाक ﷺ की अज़ीम अजमत बुलंद इज्ज़त रफ़ीअ वजाहत जो उनके रब ने उन्हें बख्शी और उनकी ताज़ीम उनकी तौकीर पर ईमान व इस्लाम की बुनियाद रखी उसे दिल में जमा कर इंसाफ करना और ईमान से कहना…!!!”
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“क्या जिसने कहा की शैतान की वुसअत नस्स से साबित हुई फख्र ए आलम की वुसअत इल्म की कौन से नस्स कतई है।”
माज’अल्लाह माज’अल्लाह
क्या उसने हुज़ूर ए पाक (ﷺ) की शान ए पाक में गुस्ताखी न की? क्या उसने इबलिस लईन के इल्म को रसूल ﷺ के इल्म ए अकदस पर न बढ़ाया?
क्या वह रसूल ए अकदस ﷺ की वुसअते इल्म से काफिर होकर शैतान की वुसअते इल्म पर ईमान न लाया?
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मुसलमानों ! खुद उसी बदगो, गुस्ताख से इतना कह दो की तुम्हारा इल्म तो शैतान के बराबर है, देखो तो वह बुरा मानता है या नहीं हालाकि उसे तो इल्म में शैतान से कम भी नहीं कहा गया बल्कि शैतान के बराबर ही बताया फिर कम कहना क्या तौहीन न होगी और अगर वह अपनी बात पालने को इस पर नागवारी ज़ाहिर न करे अगरचे दिल में कतअन नागवार मानेगा तो उसे छोड़िए और किसी मुअज्जम (इज़्ज़त दार शख्स) से कह देखिए और पूरा हो इम्तेहान मकसूद हो तो क्या कचहरी में जाकर अपने किसी हाकिम को इन्ही लफ्ज़ो में ताबीर कर सकते हैं। देखिए अभी अभी खुला जाता है की तौहीन हुई और बेशक हुई फिर क्या हुज़ूर ए पाक (ﷺ) की तौहीन करना कुफ्र नही, ज़रूर है और बिल यकीन है।

“क्या जिसने शैतान की वुसअते इल्म को नसस से साबित मानकर हुज़ूर ए अकदस ﷺ के लिए वुसअते इल्म मानने वाले को कहा तमाम नुसूस को रद्द करके एक शिर्क साबित करता है और कहा शिर्क नहीं तो कौन सा ईमान का हिस्सा है।”

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उसने इबलीस लइन को खुदा का शरीक माना या नहीं । ज़रूर माना की जो बात मखलूक में एक के लिए साबित करना शिर्क होगी वह किसी के लिए साबित की जाए

कत’अन शिर्क ही रहेगी की खुदा का शरीक कोई नही हो सकता, जब रसूलल्लाह ﷺ के लिए यह वुसअते इल्म माननी शिर्क माननी शिर्क ठहराई जिसमे कोई हिस्सा ईमान का नही जो ज़रूर इतनी वुसअत खुदा की वह खास सिफत हुई जिसको खुदाई लाज़िम है जब तो नबी ﷺ के लिए उसका मानने वाला काफ़िर के लिए साबित मानी तो साफ साफ शैतान को खुदा का शरीक ठहरा दिया ।

 

मुसलमानों ! क्या यह अल्लाह ताआला और उसके रसूल ﷺ दोनो की तौहीन न हुई? ज़रूर हुई अल्लाह की तौहीन तो ज़ाहिर है की उसका शरीक बनाना वह भी किसे? इबलीस लइन को…और रसूलल्लाह ﷺ की तौहीन यूं की इबलीस का मर्तबा इतना बढ़ा दिया की वह खुदा की खास सिफत में हिस्सेदार है और यह उससे ऐसे महरूम की उनके लिए साबित मानो तो मुशरिक हो जाओ ।

मुसलमानों ! क्या खुदा व रसूल को तौहीन करने वाला काफ़िर नही? ज़रूर है क्या जिसने कहा कि

“बाज़ उलूम ए गैबिया मुराद हैं तो इसमें हुज़ूर ﷺ क्या तख्सीस है ऐसा इल्मे गैब जैद व उमर बल्कि हर सबी व मजनून बल्कि जमीअ हैवानात व बहाएम के लिए भी हासिल है !

माज अल्लाह माज अल्लाह ।

क्या उसने हुज़ूर ए पाक ﷺ को सरीह गाली ना दी क्या नबिए करीम ﷺ को इतना ही इल्मे गैब दिया गया था जितना हर पागल और जानवर और हर चौपाए हो हासिल है। माज अल्लाह

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मुसलमानों ! मुसलमानों ! ऐ हुज़ूर ए पाक ﷺ के उम्मति तुझे अपने दीन व ईमान का वास्ता क्या इस नापाक

मल’उन गाली के सरिह गाली होने में तुझे कुछ शुबा गुजर सकता है?

माज अल्लाह माज अल्लाह

क्या हुज़ूर ए पाक ﷺ की अजमत तेरे दिल से ऐसी निकल गई है की शदीद गाली में भी उनकी तौहीन न जाने और अगर अब भी तुझे ऐतबार न आए तो खुद उन्ही गुस्ताखों से पूछ देख की तुम्हे और तुम्हारे उस्तादों और पिरों को कह सकते हैं की ऐ फलां तुझे इतना ही इल्म जितना सूअर को है तेरे उस्ताद को ऐसा ही इल्म था जैसा कुत्ते को है तेरे पीर को इसी कद्र इल्म था जिस कद्र गधे को है या मुख्तसर तौर पर इतना ही हो की ओ इल्म में गधे, कुत्ते, सूअर के बराबर लो देखो तो उसमे अपने उस्ताद व पीर की तौहीन समझते हैं या नहीं? कतअन समझेंगे और काबू पाएं तो सर हो जाएं फिर क्या सबब है की जो कलिमा उनके हक़ में तौहीन है हुज़ूर ए पाक ﷺ की तौहीन न हो ! क्या माज अल्लाह उनकी अजमत उनकी अजमत इनसे भी गई गुजरी है? क्या इसी का नाम ईमान है?

हाशा लिल्लाह ! हाशा लिल्लाह !

क्या जिसने कहा क्यों की हर शख्स को किसी न किसी ऐसी बात का इल्म होता है जो दुसरे शख्स से छुपी हुई है तो चाहिए की सबको आलिमुल गैब (गैब का जानने वाला) कहा जाए फिर अगर ज़ैद इसका इल्टेजाम (लाज़िम पकड़ना यानी ज़रूरी मानना) कर लें की हां में सबको आलिमुल गैब कहूंगा तो फिर इल्में गैंब को मिंजुम्ला कमालाते नबविया शुमार क्यों किया जाता है । जिस अम्र में मोमिन बल्कि इंसान की भी खुसूसियत ना हो वह कमालाते नुबूवत से कब हो सकता है? और अगर इल्तेजाम ना किया जाए तो नबी और गैरे नबी में वजहें फर्क बयान करना जरूर है । इंतहा ! क्या रसूलल्लाह ﷺ और जानवरों, पागलों, में फ़र्क न जानने वाला हुज़ूर को गाली नहीं देता, क्या अल्लाह ﷻ के कलाम का साफ साफ रद्द ना किया और झूठा न बताया ।

अल्लाह हू अकबर ऐ मुसलमानों खुदा के वास्ते ज़रा दिल से फैसला करना !!!

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