सूरए यूसुफ़ – पहला रूकू

सूरए  यूसुफ़ – पहला रूकू

सूरए यूसुफ, मक्का में उतरी, इसमें 111 आयतें और 12 रूकू हैं.

पहला रूकू

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए यूसुफ़ मक्की है. इसमें बारह रूकू हैं, 111 आयतें, एक हज़ार छ सौ कलिमे और सात हज़ार एक सौ छियासठ अक्षर है. यहूदी उलमा ने अरब के शरीफ़ों से कहा था कि मुहम्मद(सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) से दरियाफ़्त करो कि हज़रत यअक़ूब की औलाद शाम प्रदेश से मिस्र में किस तरह पहुंची और उनके वहाँ जाकर आबाद होने का क्या कारण हुआ और हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम का वाक़िआ क्या है. इसपर ये मुबारक सूरत उतरी.

ये रौशन किताब की आयतें हैं(2){1}
(2) जिसका चमत्कार और कमाल और अल्लाह की तरफ़ से होना साफ़ है और इल्म वालों के नज़दीक संदेह से परे है. इसमें हलाल व हराम, शरीअत की हदें और अहकाम साफ़ बयान फ़रमाए गए हैं. एक क़ौल यह है कि इसमें पहलों के हालात रौशन तौर पर दर्ज हैं और सच झूट को अलग अलग कर दिया गया है.

बेशक हमने इसे अरबी क़ुरआन उतारा कि तुम समझो {2} हम तुम्हें सबसे अच्छा बयान सुनाते हैं (3)
(3) जो बहुत से अजायब और अनोखी बातों और हिकमतों और इबारतों पर आधारित है. उसमे दीन व दुनिया के बहुत फ़ायदे और सुल्तानों और रिआया और उलमा के हालात और औरतों की विशेषताओं और दुश्मनों की तकलीफ़ों पर सब्र और उनपर काबू पाने के बाद उनसे तजावुज़ करने का बढ़िया बयान है, जिससे सुनने वाले में सद्चरित्र और पाकीज़ा आदतें पैदा होती है. बेहरूल हक़ायक़ के लेखक ने कहा कि इस बयान का अहसन होना इस कारण से है कि यह क़िस्सा इन्सान के हालात के साथ भरपूर मुशाबिहत रखता है.अगर यूसुफ़ से दिल को, और यअक़ूब से रूह को, और राहील से नफ़्स को, यूसुफ़ के भाईयों से मज़बूत हवास को ताबीर किया जाए और सारे किस्से को इन्सानों के हालात से मुताबिक़त दी जाए, चुनांचे उन्होंने वह मुताबिक़त बयान भी की है जो यहाँ तवालत के डर से दर्ज नहीं की जा

इसलिये कि हमने तुम्हारी तरफ़ इस क़ुरआन की वही (देववाणी) भेजी, अगरचे बेशक इससे पहले तुम्हें ख़बर न थी {3} याद करो जब यूसुफ़ ने अपने बाप(4)
(4) हज़रत यअक़ूब इब्ने इस्हाक़ इब्ने इब्राहीम अलैहिस्सलाम.

से कहा ऐ मेरे बाप मैंने ग्यारह तारे और सूरज और चांद देखे उन्हें अपने लिये सिजदा करते देखा(5){4}
(5) हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने ख़्वाब देखा कि आसमान से ग्यारह सितारे उतरे और उनके साथ सूरज और चांद भी हैं उन सब ने आप को सज्दा किया. यह ख़्वाब जुमुए की रात को देखा, यह रात शबे-क़द्र थी. सितारों की ताबीर आपके ग्यारह भाई हैं और सूरज आपके वालिद और चाँद आपकी वालिदा या ख़ाला. आपकी वालिदा का नाम राहिल है. सदी का क़ौल है कि चूंकि राहील का इन्तिक़ाल हो चुका था इसलिये क़मर से आपकी ख़ाला मुराद है. सज्दा करने से तवाज़ों करना और फ़रमाँबरदार होना मुराद है. एक कौल यह है कि हक़ीक़त में सज्दा ही मुराद है, क्योंकि उस ज़माने में सलाम की तरह ताज़ीम का सज्दा था. हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की उम्र शरीफ़ उस वक़्त बारह साल थी और सात और सत्तरह के कौल भी आए हैं. हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम को हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम से बहुत ही ज़्यादा महब्बत थी इसलिये उनके साथ उनके भाई हसद करते थे. हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम इसपर बाख़बर थे इसलिये जब हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने यह ख़्वाब देखा तो हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम ने.

कहा ऐ मेरे बच्चे अपना ख़्वाब अपने भाइयों से न कहना(6)
(6) क्योंकि वो इसकी ताबीर को समझ लेंगे. हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम जानते थे कि अल्लाह तआला हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को नबुव्वत के लिये बुज़ुर्गी अता करेगा और दोनों जगत की नेअमतें और महानता इनायत करेगा, इस लिये आपको भाइयों के हसद का डर हुआ और आपने फ़रमाया.

कि वो तेरे साथ कोई चाल चलेंगे (7)
(7) और तुम्हारी हलाकत की कोई तदबीर सोचेंगे.

बेशक शैतान आदमी का खुला दुश्मन है(8){5}
(8) उनको दुश्मनी और हसद पर उभारेगा. इसमें ईमा है कि हज़रत यूसुफ़ के भाई अगर उनके लिये कष्ट और तक़लीफ़ देने के प्रयास करेंगे, तो इसका कारण शैतान का बहकावा होगा. (ख़ाज़िन)  बुख़ारी और मुस्लिम की हदीस में है, रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया, अच्छा ख़्वाब अल्लाह की तरफ़ से है. चाहिये कि उसको अपने प्यारे से बयान किया जाए और बुरा ख़्वाब शैतान की तरफ़ से है. जब कोई देखने वाला वह ख़्वाब देखे तो चाहिये कि अपनी बाईं तरफ़ तीन बार थुकथुकाए और यह पढे “अऊज़ो बिल्लाहे मिनश शैतानिर रजीम वमिन शर्र हाज़िहिर रूया”.

और इसी तरह तुझे तेरा रब चुन लेगा(9)
(9) “इज्तिबा” यानी चुन लेना, यानी अल्लाह तआला का किसी बन्दे को बुज़ुर्गी अता करना, इसके मानी ये हैं कि किसी बन्दे को अल्लाह अपने फ़ैज़ के साथ मख़सूस करे जिससे उसको तरह तरह के चमत्कार और कमालात बिना परिश्रम और कोशिश के हासिल हों. यह दर्जा नबियों के साथ ख़ास है और उनकी बदौलत उनके ख़ास क़रीबी नेकों, शहीदों और अच्छाई करने वालों को भी ये नेअमत अता की जाती है.

और तुझे बातों का अंजाम निकालना सिखाएगा(10)
(10) इल्म और हिकमत अता करेगा और पिछली किताबों और नबियों की हदीसों के राज़ खोलेगा. मुफ़स्सिरों ने इस से ख़्वाब की ताबीर मुराद ली है. हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ख़्वाब की ताबीर के बड़े माहिर थे.

और तुझ पर अपनी नेमत पूरी करेगा और याक़ूब के घर वालों पर (11)
(11) नबुव्वत अता फ़रमाकर, जो ऊंची उपाधियों से है, और सृष्टि की सारी उपाधियाँ इससे कम है और सल्तनतें देकर, दीन और दुनिया की नेअमतों से मालामाल करके.

जिस तरह तेरे पहले दोनों बाप दादा इब्राहीम और इसहाक़ पर पूरी की (12) बेशक तेरा रब इल्म व हिकमत वाला है{6}
(12) कि उन्हें नबुव्वत अता फ़रमाई. कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया कि इस नेअमत से मुराद यह है कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को नमरूद की आग से छुटकारा दिया और अपना ख़लील यानी दोस्त बनाया और हज़रत इस्हाक़ अलैहिस्सलाम को हज़रत यअक़ूब और बेटे अता किये.

सूरए यूसुफ़ – दूसरा रूकू

सूरए  यूसुफ़ – दूसरा रूकू


बेशक यूसुफ़ और उसके भाईयों में(1)
(1) हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम की पहली बीबी लिया बिन्ते लियान आपके माँमू की बेटी हैं. उनसे आपके छ: बेटे हुए रूबील, शमऊन, लावा, यहूदा, ज़बलून, यशजर, और चार बेटे हरम से हुए दान, नफ़ताली, जावा, आशर, उनकी माएं ज़ुल्फ़ह और बिल्हा. लिया के इन्तिक़ाल के बाद हज़रत यअक़ूब ने उनकी बहन राहील से निकाह फ़रमाया. उनसे दो बेटे हुए यूसुफ़ और बिन यामीन. ये हज़रत यअक़ूब के बारह बेटे हैं. इन्हीं को आस्वात कहते हैं.

पूछने वालों के लिये निशानियां हैं (2){7}
(2) पूछने वालों से यहूदी मुराद हैं जिन्होंने रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम का हाल और औलाद,हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम के कनआन प्रदेश से मिस्र प्रदेश की तरफ़ मुन्तक़िल होने का कारण दरियाफ़्त किया था. जब सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के हालात बयान फ़रमाए और यहूदियों ने उनको तौरात के मुताबिक़ पाया तो उन्हें हैरत हुई कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्ल्म ने किताबें पढ़ने और उलमा और धर्मशास्त्रियों की मजलिस में बैठने और किसी से कुछ सीखने के बग़ैर इस क़द्र सही वाक़िआत केसे बयान फ़रमाए. यह दलील है कि आप ज़रूर नबी हैं और क़ुरआन शरीफ़ ज़रूर अल्लाह तआला का भेजा हुआ कलाम है और अल्लाह तआला ने आप को पाक इल्म से नवाज़ा. इसके अलावा इस वाक़ए में बहुत से सबक़ और हिकमतें हैं.

जब बोले(3)
(3) हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के भाई.

कि ज़रूर यूसुफ़ और उसका भाई (4)
(4) हक़ीक़ी बिन यामीन.

हमारे बाप को हम से ज़्यादा प्यारे हैं और हम एक जमाअत (समूह) हैं (5)
(5) क़वी है, ज़्यादा काम आ सकते है, ज़्यादा फ़ायदा पहुंचा सकते हैं. हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम छोटे है क्या कर सकते हें.

बेशक हमारे बाप खुल्लम खुल्ला उनकी महब्बत में डूबे हुए हैं (6){8}
(6) और यह बात उनके ख़याल में न आई कि हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की वालिदा का उनकी अल्पायु में इन्तिक़ाल हो गया इसलिये वह ज़्यादा प्यार दुलार और महब्बत के हक़दार हुए और उनमें हिदायत और साफ़ सुथरे होने की वो निशानियां पाई जाती हैं जो दूसरे भाइयों में नहीं है. यही कारण है कि हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम को हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के साथ ज़्यादा महब्बत है, ये सब बातें ख़याल में न लाकर, उन्हें अपने वालिद का हज़रत यूसुफ़ से ज़्यादा महब्बत करना बुरा लगा और उन्होंने आपस में मिलकर मशवरा किया कि कोई ऐसी तदबीर सोचनी चाहिये जिससे हमारे वालिद साहिब को हमारी तरफ़ ज़्यादा महब्बत हो. कुछ मुफ़स्सिरों ने कहा है कि शैतान भी इस मशवरे की बैठक में शरीक हुआ और उसने हज़रत यूसुफ़ के क़त्ल की राय दी और मशवरे की बात चीत इस तरह हुई.

यूसुफ़ को मार डालो या कहीं ज़मीन में फैंक आओ(7)
(7) आबादियों से दूर, बस यही सूरत है जिन से.

कि तुम्हारे बाप का मुंह सिर्फ़ तुम्हारी ही तरफ़ रहे (8)
(8) और उन्हें बस तुम्हारी ही महब्बत हो और किसी की नहीं.

और उसके बाद फिर नेक हो जाना(9){9}
(9) और तौबह कर लेना.

उनमें एक कहने वाला(10)
(10) यानी यहूदा या रूबील.

बोला कि यूसुफ़ को मारो नहीं (11)
(11) क्योंकि क़त्ल महापाप है.

और उसे अंधे कुंऐ में डाल दो कि कोई चलता उसे आकर ले जाए (12)
(12) यानी कोई मुसाफ़िर वहाँ गुज़रे और उन्हें किसी मुल्क को ले जाए इसे भी उद्देश्य पूरा है कि न वहाँ रहेंगे न वालिद साहिब की मेहरबानी की नज़र इस तरह उनपर होगी.

अगर तुम्हें करना है(13){10}
(13) इसमें इशारा है कि चाहिये तो यह कि कुछ भी न करो लेकिन अगर तुमने इरादा कर ही लिया है तो बस इतने पर ही सब्र कर लो. चुनांचे सब इसपर सहमत हो गए और अपने वालिद से.

बोले ऐ हमारे बाप आप को क्या हुआ कि यूसुफ़ के मामले में हमारा भरोसा नहीं करते और हम तो इसका भला चाहने वाले  हैं{11} कल इसे हमारे साथ भेज दीजिये कि मेवे खाए और खेले (14)
(14) यानी तफ़रीह के हलाल तरीक़ों से आनंद उठाएं जैसे कि शिकार और तीर अन्दाज़ी वग़ैरह.

और बेशक हम इसके निगहबान हैं(15){12}
(15) उनकी पूरी देखभाल करेंगे.

बोला बेशक मुझे रंज देगा कि इसे ले जाओ (16)
(16) क्योंकि उनकी एक घड़ी की जुदाई गवारा नहीं है.

और डरता हूँ कि इसे भेड़िया खाले (17)
(17) क्योंकि उस इलाक़े में भेड़िये और ख़तरनाक जानवर बहुत हैं.

और तुम इससे बेखबर रहो (18){13}
(18) और अपनी सैर तफ़रीह में लग जाओ.

बोले अगर इसे भेड़िया खा जाए और हम एक जमाअत (दल) हैं जब तो हम किसी मसरफ़ {काम} के नहीं(19){14}
(19) लिहाज़ा इन्हें हमारे साथ भेज दीजिये. अल्लाह की तरफ़ से यूंही तक़दीर थी हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम ने इजाज़त दे दी. चलते समय हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की कमीज़, जो जन्नत की हरीर थी और जिस वक़्त हज़रत इब्राहीम को कपड़े उतार कर आग में डाला गया गया था, हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने वह कमीज़ आपको पहनाई थी, वह मुबारक क़मीज़ हज़रत इब्राहीम से हज़रत इस्हाक़ को और उनसे उनके बेटे हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम को पहुंची थी, वह क़मीज़ हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के गले में हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम ने तावीज़ बनाकर डाल दी.

फिर जब उसे ले गए(20)
(20) इस तरह जब तक हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम उन्हें देखते रहे वहाँ तक तो वह हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को अपने कन्धों पर सवार किये हुए इज़ज़्त व एहतिराम के साथ ले गए. जब दूर निकल गए और हज़रत यअक़ूब अलैहिस्स्लाम की नज़रों से ग़ायब हो गए तो उन्होंने हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को ज़मीन पर पटका और  दिलों में जो दुश्मनी थी वह ज़ाहिर हुई. जिसकी तरफ़ जाते थे ताने देता था. और ख़्वाब जो किसी तरह उन्होंने सुन पाया था, उसपर बुरा भला कहते थे, और कहते थे अपने ख़्वाब को बुला कि वह अब तुझे हमारे हाथों से छुड़ाए, जब सख़्तियाँ हद को पहुंची तो हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने यहूदा से कहा ख़ुदा से डरो और इन लोगो को इनकी ज़ियादतियों से रोको, यहूदा ने अपने भाइयों से कहा कि मैंने तुम से एहद किया था याद करो, क़त्ल की नहीं ठहरी थी. तब वो उन हरकतों से बाज़ आए.

और सब की राय यह ठहरी कि उसे अंधे कुंएं में डाल दें (21)
(21) चुनांचे उन्होंने ऐसा किया. यह कुंआ करआन से तीन फ़रसंग के फ़ासले पर बैतुल मक़दिस के आस पास या उर्दुन प्रदेश में स्थित था, ऊपर  इसका मुंह तंग था और अन्दर से चौड़ा था, हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के हाथ पाँव बांधकर क़मीज़ उतार कर कुंए में छोड़ा. जब वह उसकी आधी गहराई तक पहुंचे, तो रस्सी छोड़ दी ताकि आप पानी में गिरकर हलाक हो जाएं. हज़रत जिब्रील अल्लाह के हुक्म से पहुंचे और उन्होंने आपको एक पत्थर पर बिठा दिया जो कुंए में था और आपके हाथ खोल दिये और चलते वक़्त हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम ने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की क़मीज़ जो तावीज़ बनाकर आपके गले में डाल दी थी वह खोलकर आपको पहना दी. उससे अंधेरे कुंए में रौशनी हो गई. इससे मालूम हुआ की अल्लाह तआला के चहीतों और क़रीबी बन्दों के कपड़ों और दूसरी चीज़ों से बरकत हासिल करना शरीअत में साबित और नबियों की सुन्नत है.

और हमने उसे वही (देववाणी) भेजी (22)
(22) हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम के वास्ते से, या इल्हाम के तौर पर, कि आप दुखी न हों, हम तुम्हें गहरे कुंए से बलन्द मकाम पर पहुंचाएंगे और तुम्हारे भाइयों को हाजतमन्द बनाकर तुम्हारे पास लाएंगे और उन्हें तुम्हारे हुक्म के मातहत करेंगे और ऐसा होगा.

कि ज़रूर तू उन्हें उनका यह काम जता देगा (23)
(23) जो उन्होंने इस वक़्त तुम्हारे साथ किया.

ऐसे वक़्त कि वो न जानते होंगे (24){15}
(24) कि तुम यूसुफ़ हो, क्योंकि उस वक़्त तुम्हारी शान ऐसी ऊंची होगी. तुम सल्तनत व हुकूमत के तख़्त पर होगे कि वो तुम्हें न पहचानेंगे. अलहासिल, हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के भाई उन्हें कुंए में डालकर वापिस हुए और उनकी कमीज़ जो उतार ली थी उसको एक बकरी के बच्चे के ख़ून में रंग कर साथ ले लिया.

और रात हुए अपने बाप के पास रोते हुए आए (25){16}
(25) जब मकान के क़रीब पहुंचे, उनके चीखने की आवाज़ हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम ने सुनी तो घबराकर बाहर तशरीफ़ लाए और फ़रमाया, ऐ मेरे बेटे, क्या तुम्हें बकरियों मं कुछ नुक़सान हुआ, उन्होंने कहा, नहीं. फ़रमाया, फिर क्या मुसीबत पहुंची. और यूसुफ़ कहाँ  है.

बोले ऐ हमारे बाप हम दोड़ करते निकल गए (26)
(26) यानी हम आपस में एक दूसरे से दौड़ करते थे कि कौ़न आगे निकले. इस दौड़ में हम दूर निकल गए.

और यूसुफ़ को अपने सामान के पास छोड़ा तो उसे भेड़िया खा गया और आप किसी तरह हमारा यक़ीन न करेंगे अगरचे हम सच्चे हों (27){17}
(27)क्योंकि न हमारे साथ कोई गवाह है न कोई ऐसी दलील और निशानी है जिससे हमारी सच्चाई साबित हो.

और उसके कुर्ते पर एक झूटा ख़ून लगा लाए(28)
(28) और क़मीज़ को फाड़ना भूल गए. हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम वह क़मीज़ अपने मुबारक चेहरे पर रखकर बहुत रोए और फ़रमाया, अनोखा और होशियार भेड़िया था जो मेरे बेटे को तो खा गया क़मीज़ को फाड़ा तक नहीं. एक रिवायत में यह भी है कि वह भेड़िया पकड़ लाए और हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम से कहने लगे कि यह भेड़िया है जिसने यूसुफ़ को खाया है. आपने उस भेड़िये से दरियाफ़्त फ़रमाया. व अल्लाह के हुक्म से बोल उठा कि हुज़ूर न मैंने आपके बेटे को खाया और न नबियों के साथ कोई भेड़िया ऐसा कर सकता है. हज़रत ने उस भेड़िये को छोड़ दिया और बेटो से.

कहा बल्कि तुम्हारे दिलों ने एक बात तुम्हारे वास्ते बना ली है(29)
(29) और वाक़िया इसके ख़िलाफ़ है.

तो सब्र अच्छा और अल्लाह ही से मदद चाहता हूँ उन बातों पर जो तुम बता रहे हो (30){18}
(30) हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम तीन रोज़ कुंए में रहे, इसके बाद अल्लाह तआला ने उन्हें उससे निजात अता फ़रमाई.

और एक क़ाफ़िला आया(31)
(31) जो मदयन से मिस्र की तरफ़ जा रहा था, वह रास्ता भटक कर उस जंगल में आ पड़ा जहाँ आबादी से बहुत दूर यह कुंआ था और इसका पानी खारी था, मगर हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की बरकत से मिठा हो गया. जब वह क़ाफ़िले वाले उस कुंएं के क़रीब उतरे तो,

उन्होंने अपना पानी लाने वाला भेजा(32)
(32) जिसका नाम मालिक बिन ज़अर ख़ज़ाई था. यह शख़्स मदयन का रहने वाला था. जब वह कुंएं पर पहुंचा.

तो उसने अपना डोल डाला (33)
(33)  हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने वह डोल पकड़ लिया और उसमें लटक गए. मालिक ने डोल खींचा. आप बाहर तशरीफ़ लाए. उसने आपका सौन्दर्य और ख़ूबसूरती देखी तो अत्यन्त प्रसन्नता में भरकर अपने यारों को ख़ुशख़बरी दी.

बोला आहा कैसी ख़ुशी की बात है यह तो एक लड़का है और उसे एक पूंजी बनाकर छुपा लिया(34)
(34) हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के भाई जो इस जंगल में अपनी बकरियाँ चराते थे वो देखभाल रखते थे. आज जो उन्होंने यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को कुंएं में न देखा तो उन्हें तलाश हुई और क़ाफ़िले में पहुंचे. वहाँ उन्होंने मालिक बिन ज़अर के पास हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को देखा तो वो उसे कहने लगे कि यह ग़ुलाम है. हमारे पास से भाग आया है, किसी काम का नहीं है, नाफ़रमान है. अगर ख़रीदों तो हम इसे सस्ता बेच देंगे. फिर उसे कहीं इतनी दूर लेजाना कि उसकी ख़बर भी हमारे सुनने में न आए. हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम उनके डर से ख़ामोश खड़े रहे और कुछ बोले नहीं.

और अल्लाह जानता है जो वो करते हैं (35){19}
(35) जिनकी तादाद क़तादा के क़ौल के मुताबिक़ बीस दिरहम थी.

और भाइयों ने उसे खोटे दामों गिनती के रूपयों पर बेच डाला, और उन्हें उसमें कुछ रग़बत(रूचि) न थी(36){20}
(36) फिर मालि क और उसके साथी हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को मिस्र मं लाए. उस ज़माने में मिस्र का बादशाह रैयान बिन नज़दान अमलीक़ी था और उसने अपना राज पाट क़ितफ़ीर मिस्त्री के हाथ में दे रखा था. सारे ख़ज़ाने उसी के हाथ में थे. उसको अज़ीज़े मिस्र कहते थे और वह बादशाह का वज़ीरे आज़म था. जब हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम मिस्र के बाज़ार में बेचने के लिये लाए गए तो हर शख़्स के दिल में आपकी तलब पैदा हुई. ख़रीदारों ने क़ीमत बढ़ाना शुरू की यहाँ तक कि आपके वज़न के बराबर सोना, उतनी ही चांदी, उतनी ही कस्तूरी, उतना ही हरीर क़ीमत मुक़र्रर हुई आपका वज़न चार सौ रतल था. और उम्र शरीफ़ उस वक़्त तेरह या सौलह साल की थी अज़ीज़े मिस्र ने इस क़ीमत पर आपको ख़रीद लिया और अपने घर ले आया. दूसरे ख़रीदार उसके मुक़ाबले में ख़ामोश हो गए.

सूरए यूसुफ़ – तीसरा रूकू

सूरए – यूसुफ़  – तीसरा रूकू


(1) जिसका नाम जुलैख़ा था.
और मिस्र के जिस व्यक्ति ने उसे ख़रीदा वह अपनी औरत से बोला (1)

इन्हें इज़्ज़त से रखो(2)
(2) ठहरने की जगह ऊमदा हो. लिबास और खाना पीना उत्तम क़िस्म का हो.

शायद इन से हमें नफ़ा पहुंचे(3)
(3) और वो हमारे कामों में अपनी सूझ बूझ और होशियारी से हमारे लिये नफ़ा पहुंचाने वाले और बेहतर मददगार हों और सल्तनत के कामों और हुक़ूमत की ज़िम्मेदारी संभालने में हमारे काम आएं क्योंकि हिदायत की निशानी उनके चेहरे पर मौजूद है.

या इनको हम बेटा बनालें(4)
(4) यह क़ितफ़ीर ने इसलिये कहा कि उसके कोई औलाद न थी.

और इसी तरह हमने यूसुफ़ को इस ज़मीन में जमाव दिया और इसलिये कि उसे बातों का अंजाम सिखाएं(5)
(5) यानी ख़्वाबों की ताबीर.

और अल्लाह अपने काम पर ग़ालिब(बलवान) है मगर अक्सर आदमी नहीं जानते{21} और जब अपनी पूरी क़ुव्वत को पहुंचा(6)
(6) शबाब और यौवन अपनी चरम सीमा पर आया और उम्र शरीफ़ ज़िहाक के क़ौल के मुताबिक बीस साल की, और सदी के अनुसार तीस की और कल्बी के कथनानुसार अठारह और तीस के बीच हुई.

हमने उसे हुक्म और  इल्म अता फ़रमाया(7)
(7) यानी इल्म के साथ अमल और दीन की जानकारी अता की. कुछ उलमा ने कहा कि हुक्म से सच्चा बोल और इल्म से ख़्वाब की ताबीर मुराद है. कुछ ने फ़रमाया इल्म चीज़ों की हक़ीक़त जानना और हिकमत इल्म के मुताबिक़ अमल करना है.

और हम ऐसा ही सिला देते हैं नेको को{22} और वह जिस औरत (8)
(8) यानी जुलैख़ा.

के घर में था उसने उसे लुभाया कि अपना आपा न रोके(9)
(9) और उसके साथ मश्ग़ुल हो कर उसकी नाज़ायज़ ख़्वाहिश को पूरा करें. जुलैख़ा के मकान में एक के बाद एक सात दरवाज़े थे. उसने हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम पर तो यह ख़्वाहिश पेश की.

और दरवाज़े सब बन्द कर दिये(10)
(10) ताले लगा दिये.

और बोली आओ में तुम्हीं से कहती हूँ (11)
(11) हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने.

कहा अल्लाह की पनाह (12)
(12) वह मुझे इस बुराई से बचाए जिसकी तू तलबगार है. मतलब यह था कि यह काम हराम है. मैं इसके पास जाने वाला नहीं.

वह अज़ीज़ तो मेरा रब यानी पर्वरिश करने वाला है उसने मुझे अच्छी तरह रखा (13)
(13) उसका बदला यह नहीं कि मैं उसकी अमानत में ख़यानत करूं, जो ऐसा करे वह ज़ालिम है.

बेशक ज़ालिमों का भला नहीं होता{23} और बेशक औरत ने उसका इरादा किया और वह भी औरत का इरादा करता अगर अपने रब की दलील न देख लेता(14)
(14) मगर हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने अपने रब की बुरहान देखी और इस ग़लत इरादे से मेहफ़ूज़ रहे और बुरहाने इस्मत नबुव्वत है. अल्लाह तआला ने नबियों के पाक नफ़्सों को दुराचार और नीच कर्मों से पाक पैदा किया है और अच्छे संस्कारों और पाक अख़लाक़ पर उनको बनाया है इसलिये वो हर बुरे कर्म से दूर रहते है. एक रिवायत यह भी है कि जिस वक़्त ज़ुलैख़ा आपके पीछे पड़ी उस वक़्त आपने अपने वालिद हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम को देखा कि अपनी पाक उंगली मुबारक दातों के नीचे दबाकर दूर रहने का इशार फ़रमाते है.

हमने यूंही किया कि उससे बुराई और बेहयाई को फेर दे(15)
(15) और ख़यानत तथा ज़िना से मेहफ़ूज़ रखें.

बेशक वह हमारे चुने हुए बन्दों में से है (16){24}
(16) जिन्हें हमने बुज़ुर्गी दी है और जो हमारी इताअत व फ़रमाँबरदारी में सच्च दिल से लगे हैं. अलहासिल, जब ज़ुलैख़ा आपके पीछे पड़ी तो हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्स्लाम भागे और ज़ुलैख़ा उनके पीछे उन्हें पकड़ने भागी. हज़रत जिस दरवाज़े पर पहुंचते जाते थे, उसका ताला खुल कर गिरता चला जाता था.

और दोनों दरवाज़े की तरफ़ दौड़े (17)
(17) आख़िरकार ज़ुलैख़ा हज़रत तक पहुंची और आपका कुर्ता पीछे से पकड़ कर खींचा कि आप निकलने न पाएं, मगर आप ग़ालिब आए.

और औरत ने उसका कुर्ता पीछे से चीर लिया और दोनों को औरत का मियाँ (18)
(18) यानी अज़ीज़े मिस्र.

दर्वाज़े के पास मिला(19)
(19) फ़ौरन ही ज़ुलैख़ा ने अपनी बेगुनाही ज़ाहिर करने और हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को अपने मक्र से डराने के लिये बहाना तराशा और शौहर से.

बोली क्या सज़ा है इसकी जिसने तेरी घरवाली से बदी चाही(20)
(20) इतना कहकर उसे डर हुआ कि कहीं अज़ीज़ ग़ुस्से में आकर हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के क़त्ल पर न तुल जाए और यह ज़ुलैख़ा की महब्बत की तीव्रता कब गवारा कर सकती थी. इसलीये उसने कहा.

मगर यह कि कै़द किया जाय या दुख की मार(21){25}
(21) यानी इसको कोड़े लगाए जाएं. जब हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने देखा कि ज़ुलैख़ा उलटा आप पर इल्ज़ाम लगाती है. आपके लिये क़ैद और सज़ा की सूरत पैदा करती है तो आपने अपनी बेगुनाही का इज़हार और हालात की हकीक़त का बयान ज़रूरी समझा और.

कहा इसने मुझको लुभाया कि मैं अपनी हिफ़ाज़त न करूं(22)
(22) यानी यह मुझसे बुरे काम की तलबगार हुई. मैने उससे इन्कार किया और मैं भागा. अज़ीज़ ने कहा कि यह बात किस तरह मान ली जाए. हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि घर में एक चार माह का बच्चा पालने में है जो ज़ुलैख़ा के माँमूं का लड़का है उससे पूछना चाहिये. अज़ीज़ ने कहा कि चार माह का बच्चा क्या जाने और कैसे बोले. हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला उसको ज़बान देने और उससे मेरी बेगुनाही की गवाही अदा करा देने पर क़ादिर है. अज़ीज़ ने उस बच्चे से पूछा. अल्लाह की क़ुदरत से वह बच्चा बोल पड़ा और उसने हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की तस्दीक़ की और ज़ुलैख़ा के क़ौल को ग़लत बताया. चुनांचे अल्लाह तआला फ़रमाता है.

और औरत के घरवालों में से एक गवाह ने(23)
(23) यानी उस बच्चे ने.

गवाही दी अगर इनका कुर्ता आगे से चिरा है तो औरत सच्ची है और इन्होंने ग़लत कहा(24){26}
(24) क्योंकि यह सूरत बताती है कि हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम आगे बढ़े और ज़ुलैख़ा ने उन्हें दूर किया तो कुर्ता आगे से फटा.

और अगर इनका कु्र्ता पीछे से चाक हुआ तो औरत झूठी है और ये सच्चे(25){27}
(25) इसलिये कि यह हाल साफ़ बताता है कि हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम उससे भागते थे और ज़ुलैख़ा पीछे से पकड़ती थी इसलिये कुर्ता पीछे से फटा.

फिर जब अज़ीज़ ने उसका कुर्ता पीछे से चिरा देखा(26)
(26) और जान लिया कि हज़रत यूसुफ़ सच्चे है और ज़ुलैख़ा झूटी हैं.

बोला बेशक यह तुम औरतों का चरित्र है, बेशक तुम्हारा चरित्र बड़ा है(27){28}
(27) फिर हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की तरफ़ मुतवज्जह हो कर अज़ीज़ ने इस तरह मअज़िरत की.

ऐ यूसुफ़ तुम इसका ख़याल न करो(28)
(28) और इसपर ग़म न करो बेशक तुम पाक हो. इस कलाम से यह मतलब भी था कि इसका किसी से ज़िक्र न करना ताकि चर्चा न हो और बात न फैल जाए. इसके अलावा भी हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की बेगुनाही की बहुत सी निशानियाँ मौजूद थीं. एक तो यह कि कोई शरीफ़ तबीअत इन्सान अपने एहसान करने वाले के साथ इस तरह की ख़यानत रवा नहीं रखता. हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम अपने ऊंचे संस्कारों के साथ किस तरह ऐसा कर सकते थे. दूसरे यह कि देखने वालों ने आपको भागते देखा और तालिब की यह शान नहीं होती वह पीछे होता है भागता नहीं. भागता वही है जो किसी बात पर मजबूर किया जाए और वह उसे गवारा न करे. तीसरे यह कि औरत ने बड़ा भारी सिंगार किया था और वह ग़ैर मामूली सजधज में थी. इससे मालूम होता है कि रग़बत और ऐहतिमाम केवल उसकी तरफ़ से था. चौथे हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम का तक़वा और तहारत जो एक लम्बी मुद्दत तक देखा जा चुका था उससे आपकी तरफ़ ऐसे बुरे काम को जोड़ना किसी तरह ऐतिबार के क़ाबिल नहीं हो सकता था. फिर अज़ीज़ ज़ुलैख़ा की तरफ़ मुतवज्जह होकर कहने लगा.

और ऐ औरत तू अपने गुनाह की माफ़ी मांग(29)
(29) कि तू ने बेगुनाह पर लांछन लगाया है.

बेशक तू ख़ता करने वालों में है(30){29}
(30) अज़ीज़े मिस्र ने अगरचे इस क़िस्से को बहुत दबाया लेकिन यह ख़बर छुप न सकी और बात फ़ैल ही गई.

सूरए यूसुफ़ – चौथा रूकू

सूरए यूसुफ़ – चौथा रूकू
और शहर में कुछ औरतें बोली(1)
(1)  यानी मिस्र के शरीफ़ और प्रतिष्ठित लोगों की औरतें.

अज़ीज़ की बीवी अपने नौज़वान का दिल लुभाती है बेशक उनकी महब्बत दिल में पैर गई है हम तो उसे खुल्लमखुल्ला ख़ुद-रफ़्ता  पाते हैं(2){30}
(2) इस इश्क़ में उसको अपनी इज़्ज़त और पर्दे और शर्म का लिहाज़ भी न रहा.

तो जब ज़ुलैख़ा ने उनका चर्चा सुना तो उन औरतों को बुला भेजा(3)
(3) यानी जब उसने सुना कि मिस्र के शरीफ़ों की औरतें उसको हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की महब्बत पर मलामत करती हैं तो उसने चाहा कि वह अपना उज़्र उन्हें ज़ाहिर कर दे. इसलिये उसने उनकी दावत की और मिस्र के शरीफ़ों की चालीस औरतों को बुलाया. उनमें वो सब भी थीं जिन्होंने उसको बुरा भला कहा था. ज़ुलैख़ा ने उन औरतों को बहुत इज़्ज़त और सम्मान के साथ मेहमान बनाया.

और उनके लिये मसनदें तैयार की(4)
(4) अत्यन्त शान्दार जिनपर वो बहुत इज़्ज़त और आराम से तकिये लगा कर बैठीं और दस्तर ख़्वान बिछाए गए और किस्म किस्म के ख़ाने और मेवे चुने गए.

और उनमें हर एक को छुरी दी(5)
(5) ताकि खाने के लिये उससे गोश्त काटें और मेवे तराशें.

और यूसुफ़ (6)
(6) ….को उमदा लिबास पहना कर.

से कहा इनपर निकल आओ (7)
(7) पहले तो आप ने इन्कार किया लेकिन जब ज़्यादा ज़ोर डाला गया तो उसकी मुख़लिफ़त और दुश्मनी के अन्देशे से आप को आना ही पड़ा.

जब औरतों ने यूसुफ़ को देखा उसकी बड़ाई बोलने लगीं(8)
(8) क्योंकि उन्होंने इस सौंदर्य के साथ नबुव्वत और रिसालत के नूर और विनम्रता की निशानियों और शाहाना हैबत और इक़्तिदार और माया मोह और दुनिया की सुंदर चीज़ों की तरफ़ से बेनियाज़ी की शान देखी तो आशचर्य चकित रह गई और आपकी महानता और देहशत दिलों में भ्रर गई और आपकी ख़ुबसूरती ने ऐसा असर किया कि वह औरतें अपना आप भूल गई.

और अपने हाथ काट लिये(9)
(9) नींबू की बजाय. और दिल हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के साथ ऐसे मश्ग़ूल हुए कि हाथ काटने की तक़लीफ़ का ज़रा एहसास न हुआ.

और बोली अल्लाह को पाकी है ये तो आदमी जिन्स से नहीं(10)
(10) कि ऐसा सौंदर्य आदमी में देखा ही नहीं गया और उसके साथ नफ़्स की यह पाकी कि मिस्र के ऊंचे ख़ानदानों की ख़ूबसूरत औरतें अच्छे लिबासों और सिंगार तथा सजधज के साथ सामने मौजूद है और आप किसी की तरफ़ नज़र नहीं फ़रमाते और बिल्कुल रूख़ नहीं करते.

मगर कोई इज़्ज़त वाला फ़रिश्ता {31} ज़ुलैख़ा ने कहा तो ये है वो जिनपर तुम मुझे ताना देती थीं(11)
(11) अब तुमने देख लिया और तुम्हें मालूम हो गया कि मेरी दीवानगी कुछ आश्चर्य की और मलामत करने वाली बात नहीं है.

और बेशक मैंने इनका जी लुभाना चाहा तो इन्होंने अपने आपको बचाया(12)
(12) और किसी तरह मेरी तरफ़ न झुके. इसपर मिस्री औरतों ने हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम से कहा कि आप ज़ुलैख़ा का कहना मान लीजिये. ज़ुलैख़ा बोली.

और बेशक अगर वह यह काम न करेंगे जो मैं उनसे कहती हूँ तो ज़रूर क़ैद में पड़ेंगे और वो ज़रूर ज़िल्लत उठाएंगे(13){32}
(13) और चोरों और क़ातिलों और नाफ़रमानों के साथ जेल में रहेंगे क्योंकि उन्होंने मेरा दिल लिया और मेरी नाफ़रमानी की और वियोग की तलवार से मेरा ख़ून बहाया, तो यूसुफ़ को भी ख़ुशगवार ख़ाना पीना और आराम की नींद सोना नहीं मिलेगा, जैसा मैं जुदाई की तकलीफ़ों में मुसीबतें झेलती और सदमों में परेशानी के साथ वक़्त काटती हूँ. यह भी तो कुछ तकलीफ़ उठाएं. मेरे साथ मखमल में शाहाना बिस्तर पर ऐश गवारा नहीं तो क़ैद ख़ाने के चुभने वाले बोरिये पर नंगे बदन को दुखाना गवारा करें. हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम यह सुनकर मजलिस से उठ गए और मिस्री औरतें मलामत करने के बहाने से बाहर आई और एक एक ने आपसे अपनी इच्छाओ मुरादों का इज़हार किया. आपको उनकी बातें बहुत बुरी लगीं तो बारगाहे इलाही में. (ख़ाज़िन व मदारिक व हुसैनी)

यूसुफ़ ने अर्ज़ की ऐ मेरे रब मुझे क़ैद ख़ाना ज़्यादा पसन्द है इस काम से जिसकी तरफ़ ये मुझे बुलाती हैं और तू मुझसे इनका मक्र(छल-कपट) न फेरेगा(14)
(14) और अपनी इस्मत की पनाह में न लेगा.

तो मैं इनकी तरफ़ माइल (आकर्षित) होऊंगा और नादान बनूंगा{33} तो उसके रब ने उसकी सुन ली और उससे औरतों का मक्र(कपट)फेर दिया, बेशक वही सुनता जानता है(15){34}
(15) जब हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम से उम्मीद पूरी होने की कोई सूरत न देखी तो मिस्री  औरतों ने ज़ुलैख़ा से कहा कि अब यही मुनासिब मालूम होता है कि दो तीन दिन तक यूसुफ़ को क़ैद ख़ाने में रखा जाए ताकि वहाँ की सख़्तियाँ देखकर उन्हें नेअमत और राहत की क़द्र हो और वह तेरी दरख़्वास्त क़ुबूल करें. ज़ुलैख़ा ने इस राय को माना  और अज़ीज़ से कहा कि मैं इस इब्री ग़ुलाम की वजह से बदनाम हो गई हूँ. और मेरी तबीअत उससे नफ़रत करने लगी है. मुनासिब यह है कि उनको क़ैद किया जाए ताकि लोग समझ लें कि वह ख़तावार हैं और मैं मलामत से बरी हूँ. यह बात अज़ीज़ की समझ में आ गई.

फिर सब कुछ निशानियां देख दिखाकर पिछली मत उन्हें यही आई कि ज़रूर एक मुद्दत तक उसे क़ैद ख़ाने में डालें(16){35}
(16) चुनांचे उन्होंने ऐसा किया और आपको क़ैद ख़ाने में भेज दिया.

सूरए यूसुफ़ – पाँचवाँ रूकू

सूरए यूसुफ़ – पाँचवाँ रूकू

और उसके साथ क़ैद ख़ाने में दो जवान दाख़िल हुए(1)
(1) उनमें से एक तो मिस्र के शाहे आज़म वलीद बिन नज़वान अमलीक़ी का रसोई प्रबन्धक था और दूसरा उसको शराब पिलाने वाला. उन दोनों पर यह इल्ज़ाम था कि उन्होंने बादशाह को ज़हर देना चाहा. इस जुर्म में दोनों क़ैद किय गए. हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम जब क़ैद ख़ाने में दाख़िल हुए तो आपने अपने इल्म का इज़हार शुरू कर दिया और फ़रमाया कि मैं ख़्वाबों की ताबीर का इल्म रखता हूँ.

उनमें एक(2)
(2) जो बादशाह को शराब पिलाता था.

बोला मैंने ख़्वाब देखा कि (3)
(3) मैं एक बाग़ में हूँ वहां एक अंगूर के दरख़्त में तीन ख़ोशे पके लगे हैं. बादशाह का प्याला मेरे हाथ में है. मैं उन ख़ोशों से.

शराब निचोड़ता हूँ और दूसरा बोला (4)
(4)  यानी रसोई प्रबन्धक.

मैं ने ख़्वाब देखा कि मेरे सर पर कुछ रोटियाँ हैं जिन में से परिन्दे खाते हैं, हमें इसकी ताबीर बताइये, बेशक हम आपको नेकी करने वाला देखते हैं(5){36}
(5) कि आप दिन में रोज़े से रहते है, सारी रात नमाज़ में गुज़ारते हैं. जब कोई जेल में बीमार होता है उसकी देखभाल करते हैं. जब किसी पर तंगी होती है, उसके लिये अच्छाई की राह निकालते है. हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने उनके ताबीर देने से पहले अपने चमत्कार का इज़हार और तौहीद की दावत शुरू कर दी और यह ज़ाहिर फ़रमा दिया कि इल्म में आपका दर्जा इससे ज़्यादा है जितना वो लोग आपकी निस्बत मानते हैं. चूंकि ताबीर का इल्म अन्दाज़े पर आधारित है इसलिये आपने चाहा कि उन्हें ज़ाहिर फ़रमादें कि आप ग़ैब की यकीनी ख़बरें देने की क्षमता रखते हैं और इससे मख़लूक आजिज़ है. जिसको अल्लाह तआला ने ग़ैबी उलूम अता फ़रमाए हों उसके नज़दीक ख़्वाब की ताबीर क्या बड़ी बात है. उस वक़्त चमत्कार का इज़हार आपने इस लिये फ़रमाया कि आप जानते थे कि इन दोनों में एक जल्द ही फांसी दिया जाएगा. तो आपने चाहा कि उसको कुफ़्र से निकाल कर इस्लाम में दाख़िल कर दें और जहन्नम से बचालें. इससे मालूम हुआ कि आलिम अगर अपन इल्मी महानता का इज़हार इसलिये करे कि लोग उससे नफ़ा उठाएं तो यह जायज़ है. (मदारिक व ख़ाज़िन)

यूसुफ़ ने कहा जो खाना तुम्हें मिला करता है वह तुम्हारे पास न आने पाएगा कि मैं उसकी ताबीर उसके आने से पहले तुम्हें बता दूंगा(6)
(6) उसकी मात्रा और उसका रंग और उसके आने का वक़्त और यह कि तुमने क्या खाया या कितना खाया, कब खाया.

यह उन इल्मों में से है जो मुझे मेरे रब ने सिखाया है, बेशक मैंने उन लोगों का दीन न माना जो अल्लाह पर ईमान नहीं लाते और वो आख़िरत से इन्कारी हैं{37} और मैं ने अपने बाप दादा इब्राहीम और इसहाक़ और याक़ूब का दीन इख़्तियार किया (7)
(7) हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने अपने चमत्कार का इज़हार फ़रमाने के बाद यह भी ज़ाहिर फ़रमा दिया कि आप नबियों के खानदान से हैं और आपके बाप दादा नबी हैं जिनका ऊंचा दर्जा दुनिया में मशहूर है. इससे आपका मक़सद यह था कि सुनने वाले आपकी दावत क़ुबूल करें और आपकी हिदायत को मानें.

हमें नहीं पहुंचता कि किसी चीज़ को अल्लाह का शरीक ठहराएं(8)
(8) तौहीद इख़्तियार करना और शिर्क से बचना.

यह अल्लाह का एक फ़ज़्ल है हम पर और लोगों पर मगर अक्सर लोग शुक्र नहीं करते(9){38}
(9) उसकी इबादत बजा नहीं लाते और मख़लूक़ परस्ती करते हैं.

ऐ मेरे क़ैद ख़ाने के दोनों साथियो क्या अलग अलग रब (10)
(10) जैसे कि बुत परस्तों ने बना रखे हैं कोई सोने का, कोई चांदी का, कोई तांबे का, कोई लोहो का, कोई लकड़ी का, कोई पत्थर का, कोई और चीज़ का, कोई छोटा, कोई बड़ा, मगर सब के सब निकम्मे बेकार, न नफ़ा दे सकें, न नुक़सान पहुंचा सके. ऐसे झूटे मअबूद.

अच्छे या एक अल्लाह जो सब पर ग़ालिब (बलवान)(11){39}
(11) कि न कोई उसका मुक़ाबिल हो सकता है न उसके हुक्म में दख़ल दे सकता है, न उसका कोई शरीक है, न उस जैसा, सब पर उसका हुक्म जारी और सब उसके ममलूक.

तुम उसके सिवा नहीं पूजते मगर निरे नाम जो तुम और तुम्हारे बाप दादा ने तराश लिये हैं(12)
(12) और उनका नाम मअबूद रख लिया है जबकि वो बेहक़ीक़त पत्थर हैं.

अल्लाह ने उनकी कोई सनद न उतारी, हुक्म नहीं मगर अल्लाह का, उसने फ़रमाया कि उसके सिवा किसी को न पूजो(13)
(13) क्योंकि सिर्फ़ वही इबादत के लायक़ है.

यह सीधा दीन है(14)
(14) जिस पर दलीलें और निशानियाँ क़ायम है.

लेकिन अक्सर लोग नीं जानते(15){40}
(15) तौहीद और अल्लाह की इबादत की दावत देने के बाद हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने ख़्वाब की ताबीर की तरफ़ तवज्जह फ़रमाई और इरशाद किया.

ऐ क़ैदख़ाने के दोनो साथियों तुम में एक तो अपने रब (बादशाह) को शराब पिलाएगा(16)
(16) यानी बादशाह का साक़ी तो अपने ओहदे पर बहाल किया जाएगा और पहले की तरह बादशाह को शराब पिलाएगा और तीन ख़ोशे जो ख़्वाब में बयान किये गए हैं ये तीन दिन हैं. इतने ही दिन क़ैद ख़ाने में रहेगा फिर बादशाह उसको बुला लेगा.

रहा दूसरा(17)
(17) यानी रसोई और खाने का इन्तिज़ाम रखने वाला.

वह सूली दिया जाएगा तो परिन्दे उसका सर खाएंगे(18)
(18) हज़रत इब्ने मसऊद रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि ताबीर सुनकर उन दोनों ने हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्स्लाम से कहा कि ख़्वाब तो हमने कुछ भी नहीं देखा हम तो हंसी कर रहे थे. हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया.

हुक्म हो चुका उस बात का जिसका तुम सवाल करते थे(19){41}
(19) जो मैंने कह दिया वह ज़रूर वाक़े होगा, तुमने ख़्वाब देखा हो या न देखा हो. अब यह हुक्म टल नहीं सकता.

और यूसुफ़ ने उन दोनों से जिसे बचता समझा(20)
(20) यानी साक़ी को.

उससे कहा अपने रब {बादशाह} के पास मेरा ज़िक्र करना(21)
(21) और मेरा हाल बयान करना कि क़ैद ख़ाने में एक मज़लूम बेगुनाह क़ैद है और उसकी क़ैद को एक ज़माना गुज़र चुका है.

तो शैतान ने उसे भुला दिया कि अपने रब {बादशाह} के सामने यूसुफ़ का ज़िक्र करे तो यूसुफ़ कई बरस और जेलख़ाने में रहा(22){42}
(22) अकसर मुफ़स्सिरों ने कहा है कि इस घटना के बाद हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम सात बरस और क़ैद में रहे और पांच बरस पहले रह चुके थे और इस मुद्दत के गुज़रने के बाद जब अल्लाह तआला को हज़रत यूसुफ़ का क़ैद से निकालना मन्ज़ूर हुआ तो मिस्र के शाहे आज़म रैयान बिन वलीद ने एक अजीब ख़्वाब देखा जिससे उसको बहुत परेशानी हुई और उसने मुल्क के तांत्रिकों और जादूगरों और ताबीर देने वालों को जमा करके उनसे अपना ख़्वाब बयान किया.

सूरए यूसुफ़ – छटा रूकू

सूरए यूसुफ़ – छटा रूकू

और बादशाह ने कहा मैं ने ख़्वाब में देखा सात गाएं मोटी कि उन्हें सात दुबली गाएं खा रही हैं और सात वालें हरी और दूसरी सात सूखी (1)
(1) जो हरी लिपटीं और उन्होंने हरी को सुखा दिया.

ऐ दरबारियों मेरे ख़्वाब का जवाब दो अगर तुम्हें ख़्वाब की ताबीर आती हो{43} बोले परेशान ख़्वाबें हैं और हम ख़्वाब की ताबीर नहीं जानते{44} और बोला वह जो उन दोनों में से बचा था(2)
(2) यानी साक़ी.

और एक मुद्दत बाद उसे याद आया(3)
(3) कि हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने उससे फ़रमाया था कि अपने मालिक के सामने मेरा ज़िक्र करना. साक़ी ने कहा कि.

मैं तुम्हें इसकी ताबीर बताऊंगा मुझे भेजो(4){45}
(4) क़ैद ख़ाने में. वहाँ ख़्वाब की ताबीर के एक आलिम हैं. तो बादशाह ने उसको भेज दिया. वह क़ैद ख़ाने में पहुंचकर हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में अर्ज़ करने लगा.

ऐ यूसुफ़ सिद्दीक़(सच्चे) हमें ताबीर दीजिये सात मोटी गायों की जिन्हें सात दुबली खाती हैं और सात हरी बालें और सात सूखी(5)
(5) यह ख़्वाब बादशाह ने देखा है और मुल्क के सारे उलमा और जानकार लोग इसकी ताबीर से आजिज़ रहे हैं. हज़रत इसकी ताबीर इरशाद फ़रमाएं.

शायद मैं लोगों की तरफ़ लौट कर जाऊं शायद वो आगाह हों(6){46}
(6) ख़्वाब की ताबीर से,और आपके इल्म और बुज़र्गी और ऊंचे दर्ज़े को जानें और आपको इस मेहनत से रिहा करके अपने पास बुलाएं. हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने ताबीर दी और.

कहा तुम खेती करोगे सात बरस लगातार (7)
(7) ज़माने में ख़ूब पैदावार होगी,सात मोटी गायों और सात हरी बालों से इसी की तरफ़ इशारा है.

तो जो करो उसे उसकी बाल में रहने दो(8)
(8) ताकि ख़राब न हो और आफ़तों से मेहफूज़ रहे.

मगर थोड़ा जितना खालों(9){47}
(9) उस पर से भूसी उतार लो और उसे साफ़ कर लो. बाक़ी को ज़खीरा या भंडार बना कर मेहफ़ूज़ कर लो.

फिर उसके बाद सात करें बरस आएंगे(10)
(10) जिनकी तरफ़ दुबली गायों और सूखी बालों में इशारा है.

कि खा जाएंगे जो तुमने उनके लिये पहले से जमा कर रखा था(11)
(11) और भंडार कर लिया था.

मगर थोड़ा जो बचालो(12){48}
(12) बीज के लिये ताकि उससे खेती करो.

फिर उनके  बाद एक बरस आएगा जिसमें लोगों को मेंह दिया जाएगा और उसमें रस निचोड़ेंगे(13){49}
(13) अंगूर का और तिल ज़ैतून के तेल निकालेंगे. यह साल काफ़ी ख़ुशहाली का होगा. ज़मीन हरी भरी ताज़ा होगी. दरख़्त ख़ूब फलेंगे. हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम से यह ताबीर सुनकर एलची वापस हुआ और बादशाह की ख़िदमत में जाकर ताबीर बयान की. बादशाह को यह ताबीर बहुत पसन्द आई और उसे यक़ीन हुआ कि जैसा हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने कहा है वैसा ज़रूर होगा. बादशाह को शौक़ पैदा हुआ कि इस ख़्वाब की ताबीर ख़ुद हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की मुबारक ज़बान से सुनें.

सूरए यूसुफ़ – सातवाँ रूकू

सूरए यूसुफ़ – सातवाँ रूकू


और बादशाह बोला कि उन्हें मेरे पास ले आओ,तो जब उसके पास एलची आया(1)
(1) और उसने हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में बादशाह का संदेश अर्ज़ किया तो आपने…

कहा अपने रब {बादशाह} के पास पलट जा फिर उससे पूछ(2)
(2) यानी उससे दरख़्वास्त कर कि वह पूछे, तफ़्तीश करें.

क्या हाल है उन औरतों का जिन्होंने अपने हाथ काटे थे बेशक मेरा रब उनका धोखा जानता है(3){50}
(3) यह आपने इसलिये फ़रमाया ताकि बादशाह के सामने आपकी बेगुनाही मालूम हो जाए और यह उसको मालूम हो कि यह लम्बी क़ैद बे वजह हुई ताकि आयन्दा हासिदों को डंक मारने का मौक़ा न मिले. इससे मालूम हुआ कि तोहमत या लांछन दूर करने की कोशिश करना ज़रूरी है. अब क़ासिद हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के पास से यह पयाम लेकर बादशाह की ख़िदमत में पहुंचा. बादशाह ने सुनकर औरतों को जमा किया और उनके साथ अज़ीज़ की औरत को भी.

(4) जुलैख़ा.

बादशाह ने कहा ऐ औरतों तुम्हारा काम था जब तुमने यूसुफ़ का दिल लुभाना चाहा बोलीं अल्लाह को पाकी है हमने उनमें कोई बदी न पाई अज़ीज़ की औरत बोली अब असली बात खुल गई मैं ने उनका जी लुभाना चाहा था और वो बेशक सच्चे हैं(5){51}
(5) बादशाह ने हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के पास पयाम भेजा कि औरतों ने आपकी पाकी बयान की और अज़ीज़ की औरत ने अपने गुनाह का इक़रार कर लिया इसपर हज़रत.

पारा बारह समाप्त

सूरए यूसुफ़ – सातवाँ रूकू (जारी)

यूसुफ़ ने कहा यह मैं ने इसलिये किया कि अज़ीज़ को मालूम हो जाए कि मैं ने पीठ पीछे उसकी ख़यानत (विशवास घात) न की और अल्लाह दग़ाबाज़ों का मक्र नहीं चलने देता{52}

तेरहवां पारा – वमा- उबर्रिओ
{सूरए यूसुफ़ जारी}

और मैं अपने नफ़्स (मन) को बेक़ुसूर नहीं बताता(6)

(6) ज़ुलैखा के इक़रार और ऐतिराफ़ के बाद हज़रत हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने जो यह फ़रमाया था कि मैंने अपनी बेगुनाही का इज़हार इसलिये चाहा था ताकि अज़ीज़ को यह मालूम हो जाए कि मैं ने उसकी ग़ैर हाज़िरी में उसकी ख़यानत नहीं की है और उसकी बीबी की इज़्ज़त ख़राब करने से दूर रहा हूँ और जो इल्ज़ाम मुझपर लगाए गए हैं, मैं उनसे पाक हूँ. इसके बाद आपका ख़्याले मुबारक इस तरफ़ गया कि इसमें अपनी तरफ़ पाकी की निस्बत और अपनी नेकी का बयान है, ऐसा न हो कि इसमें घमण्ड और अहंकार की भावना भी आए. इसी लिये अल्लाह तआला की बारगाह में विनम्रता से अर्ज़ किया कि मैं अपने नफ़्स को बेक़ुसूर नहीं मानता, मुझे अपनी बेगुनाही पर घमण्ड नहीं है और मैं गुनाह से बचने को अपने नफ़्स की ख़ूबी क़रार नहीं देता. नफ़्स की जिन्स का यह हाल है कि.

बेशक नफ़्स तो बुराई का बड़ा हुक्म देने वाला है मगर जिसपर मेरा रब रहम करे(7)
(7) यानी अपने जिस ख़ास बन्दे को अपने करम से मासूम करे तो उसका बुराइया से बचना अल्लाह के फ़ज़्ल और रहमत  से है और गुनाहों से मेहफ़ूज़ रखना उसी की मेहरबानी है.

बेशक मेरा रब बख़्शने वाला मेहरबान है(8){53}
(8) जब बादशाह को हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के इल्म और आपकी अमानत का हाल मालूम हुआ और वह आपके अच्छे सब्र और अच्छे अदब, क़ैद खाने वालों के साथ एहसान, मेहनतों और तकलीफ़ों के बावुज़ूद साबित क़दम रहने पर सूचित हुआ तो उसके दिल में आपका बहुत ही ज़्यादा अक़ीदा पैदा हुआ.

और बादशाह बोला उन्हें मेरे पास ले आओ कि मैं उन्हें ख़ास अपने लिये चुन लूं(9)
(9) और अपना ख़ास बना लूँ. चुनांचे उसने प्रतिष्ठित लोगों की एक जमाअत, बहतरीन सवारियोँ और शाही साज़ों सामान और उमदा लिबास लेकर क़ैद खाने भेजी ताकि हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को अत्यन्त आदर और सत्कार के साथ शाही महल में लाएं. उन लोगों ने हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में हाज़िर होकर बादशाह का संदेश अर्ज़ किया. आपने क़ुबूल फ़रमाया और कै़द खाने से निकलते वक़्त क़ैदियों के लिये दुआ फ़रमाई. जब क़ैद ख़ाने से बाहर तशरीफ़ लाए तो उसके दरवाज़े पर लिखा कि यह बला का घर, ज़िन्दों की क़ब्र और दुश्मनों की बदगोई  है और सच्चों के इम्तिहान की जगह है. फिर ग़ुस्ल फ़रमाया और पोशाक पहन कर शाही महल की तरफ़ रवाना हुए. जब क़िले के दरवाज़े पर पहुंचे तो फ़रमाया मेरा रब मुझे काफ़ी है, उसकी पनाह बड़ी और उसकी तारीफ़ महान. उसके सिवा कोई मअबूद नहीं. फिर क़िले में दाख़िल हुए. बादशाह के सामने पहुंचे तो यह दुआ की कि ऐ मेरे रब, मैं तेरे फ़ज़्ल से इसकी भलाई तलब करता हूँ और इसकी और दूसरों की बुराई से तेरी पनाह चाहता हूँ. जब बादशाह से नज़र मिली तो आपने अरबी में सलाम फ़रमाया. बादशाह ने दरियाफ़्त किया, यह क्या ज़बान है. फ़रमाया, यह मेरे चचा हज़रत इस्माईल की ज़बान है. फिर आपने उसको इब्रानी में दुआ दी उसने पूछा, यह कौन ज़बान है. फ़रमाया यह मेरे अब्बा की ज़बान है. बादशाह ये दोनों ज़बानें न समझ सका, जबकि वह सत्तर ज़बानें जानता था. फिर उसने जिस ज़बान में हज़रत से बात की, आपने उसी ज़बान मं उसको जवाब दिया.उस वक़्त आपकी उम्र शरीफ़ तीस साल की थी. इस उम्र में इल्म का यह चमत्कार देखकर बादशाह बहुत हैरान हुआ आैर  उसने आप को अपने बराबर जगह दी.

फिर जब उससे बात की कहा बेशक आज आप हमारे यहाँ मुअज़्ज़ज़(सम्मानित) मोतमिद(विश्वस्त) है (10){54}
(10)  बादशाह ने दरख़्वास्त की कि हज़रत उसके ख़्वाब की ताबीर अपनी मुबारक ज़बान से सुना दें. हज़रत ने उस ख़्वाब की पूरी तफ़सील भी सुना दी, जिस जिस तौर से कि उसने देखा था. जबकि आपसे यह ख़्वाब पहले संक्षेप में बयान किया गया था. इससे बादशाह को बहुत आशचर्य हुआ. कहने लगा कि आपने मेरा ख़्वाब हु बहू बयान फ़रमा दिया. ख़्वाब तो अजीब था ही मगर आपका इस तरह बयान फ़रमा देना उससे भी ज़्यादा अजीब है, अब ताबीर इरशाद हो जाए, आपने ताबीर बयान फ़रमाने के बाद इरशाद फ़रमाया कि अब लाज़िम है कि ग़ल्ले जमा किए जाएं और इन ख़ुशहाली के सालों में कसरत से खेती कराई जाए और ग़ल्ले बालों के समेत सुरक्षित किये जाएं और जनता की पैदावार में से पांचवा हिस्स   लिया जाए, इसमें जो जमा होगा वह मिस्र और आसपास के प्रदेशों के रहने वालों के लिए काफी होगा और फिर ख़ल्के ख़ुदा  हर हर तरह  से तेरे पास ग़ल्ला खरीदने आएगी और तेरे यहाँ इतने खज़ाने और माल भंडार जमा होंगे जो तुझ से पहिलों के लिए जमा न हुए. बादशाह ने कहा यह इन्तिज़ाम कौन करेगा.

यूसुफ़ ने कहा मुझे ज़मीन के ख़जानों पर करदे, बेशक मैं हिफाज़त वाला इल्म वाला हूँ(11){55}
(11) यानी अपनी सल्तनत के सारे खजाने मेरे सुपुर्द कर दे, बादशाह  ने कहा, आप से ज़्यादा इसका  मुस्तहिक़ और कौन हो सकता है.उसने उसको मंजूर कर लिया. हदीस के मसाइल में सरदारी की तलब को मना फ़रमाया गया इसके मानी यह है कि जब मुल्क में योग्य और सक्षम लोग हों और अल्लाह के आदेशों का क़ायम रखना किसी एक शख़्स के साथ ख़ास न हो, उस वक़्त सरदारी तलब करना मकरूह है. लेकिन जब एक ही शख़्स योग्य और सक्षम हो तो उसको अल्लाह के अहकाम क़ायम करने के लिये इमारत यानी सरदारी तलब करना जायज़ बल्कि वाजिब है. हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम इसी हाल में थे. आप जानते थे कि सख़्त दुष्काल पड़ने वाले हैं जिसमें इन्सान को राहत और आसायश पहुंचाने का यही रास्ता है कि हुकूमत की बाग डोर को आप अपने हाथ में लें. इसलिये आपने सरदारी तलब फ़रमाई ज़ालिम बादशाह की तरफ़ से ओहदे क़ुबूल करना इन्साफ़ क़ायम करने के नियत से जायज़ है. अगर दीन के अहकाम का ज़ारी करना काफ़िर या फ़ासिक़ बादशाह की मदद के बिना   सम्भव न हो तो ऐसी सूरत में उससे सहायता लेना जायज़ है. अपनी ख़ूबियों का बयान घमण्ड और अहंकार के लिये नाज़ायज़ है. लेकिन दूसरों को नफ़ा पहुंचाने या ख़ल्क़ के अधिकारों की हिफ़ाज़त करने के लिये अगर इज़हार की जरूरत पेश आए तो मना नही. इसी लिये हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने बादशाह से फ़रमाया कि मैं हिफ़ाज़त और इल्म वाला हूँ.

और यूं ही हमने यूसुफ़ को उस मुल्क पर कुदरत बख़्शी, उसमें जहाँ चाहे रहे(12)
(12) सब उनके इस्तेमाल के तहत है. सरदारी तलब  करने के एक साल बाद राजा ने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को बुलाकर आपकी ताज की और तलवार और मुहर आपके सामने पेश की और आपको सोने के तख़्त पर बिठाया जिसमें जवाहिर जड़े हुए थे और अपना मुल्क आपके हाथ में दिया कि़तफ़ीर (अज़ीज़े मिस्र) को गदी से उतारकर आपको उसकी जगह रखा.सारे खज़ाने आपके मातहत कर दिये और ख़ुद आपकी रियाया की तरह हो गया की आपकी राय में दख़्ल न देता और आपके हर हुक्म को मानता.उसी ज़माने में अज़ीज़े मिस्र का इन्तिक़ाल  हो गया. बादशाह ने उसके मरने के बाद ज़ुलैखा का निकाह हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के साथ कर दिया, जब यूसुफ  अलैहिस्सलाम ज़ुलैखा के पास पहुंचे और उससे फ़रमाया. क्या यह उससे बेहतर नहीं है जो तू चाहती थी.ज़ुलैखा ने अर्ज़ किया ऐ सिद्दीक़, मुझे मलामत न कीजिये. में ख़ुबसूरत थी, नौजवान न थी, ऐश में थी और अज़ीज़े मिस्र औरतों से ताल्लुक़ ही न रखता था.  आप को अल्लाह तआला ने हुस्न व जमाल अता किया है, मेरा दिल इख़्तियार से बाहर हो गया. अल्लाह तआला ने आपको महफ़ूज़ रखा है, आप महफ़ूज ही रहे. हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ने ज़ुलैखा को अनछुई पाया और उससे आपके दो बेटे हुए. इफ़रासीम और मयसा और मिस्र में हुकूमत मजबूत हुई, आपने इन्साफ़ की बुनियादें कायम कीं. हर औरत और मर्द के दिल में आपकी मोहब्बत पैदा हुई और आपने दुष्काल के दिनों के लिये ग़ल्ले के भंडार जमा करने का तदबीर फ़रमाई . इसके लिए बड़े बड़े आलीशान भंडार ख़ाने बनवाये  और बहुत ज़्यादा जख़ीरे जमा किए, जब ख़ुशहाली के साल गुज़र गए और क़हत आैर सूखा का ज़माना आया तो आपने बादशाह आैर उसके ख़ादिमों के लिए रोज़ाना सिर्फ़ एक वक़्त का खाना मुक़र्रर फ़रमा दिया, एक रोज़  दोपहर के वक़्त बादशाह ने हज़रत से भूख की शिकायत की.आपने  फ़रमाया,  यह क़हत आैर दुश्काल की शुरुआत है पहले साल में लोगों के पास जो जख़ीरे थे सब ख़त्म हो गए, बाजार खाली हो गया.मिस्र वाले हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम से जिन्स खरीदने लगे और उनके सारे दिरहम दिनार आपके पास आ गए. दूसरे साल जेवर और जवाहीरात से ग़ल्ला  खरीदा और तमाम आपके पास आ गए. लोगों के पास जेवर और जवाहरात की किस्म से कोई चीज़ न रही. तीसरे साल चौपाए और जानवर देकर ग़ल्ले खरीदे और मुल्क में कोई किसी जानवर का मालिक न रहा. चौथे साल में ग़ल्ले के लिए तमाम गुलाम और दासियाँ बेच डालें. पांचवें साल सारी ज़मीनें और अमला और जागीरें बेचकर हज़रत से ग़ल्ला खरीदा और ये सारी चीजें हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के पास पहुंच गई. छठे साल जब कुछ न रहा तो उन्होंने अपनी औलाद बेची इस तरह ग़ल्ले खरीद कर वक़्त गुज़ारा.सातवें साल वो लोग खुद बिक गए और गुलाम बन गए और मिस्र में कोई आज़ाद मर्द व औरी बाकी न रहा, जो मर्द था, वह हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम का गुलाम था, जो औरत थी वह आपकी दासी थी.लोगों की ज़बान पर था कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम की सी अज़मत व जलाल कभी किसी बादशाहराजा को हासिल नही हुआ. हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ने बादशाह से कहा, तू ने देखा अल्लाह का मुझ पर कैसा करम है, उसने मुझ पर ऐसा अज़ीम एहसान फ़रमाया है.अब उनके हक़ में तेरी क्या राय है? बादशाह ने कहा जो हज़रत की राय,हम आपके फ़रमाबरदार हैं. आपने फ़रमाया में अल्लाह को गवाह करता हूँ और तुझ को गवाह करता हूं कि मैंने सारे मिस्र वासियों को आज़ाद कर दिया और उनके तमाम माल और  जागीरें वापस कर दीं. उस ज़माने में हज़रत ने कभी पेट भर खाना नहीं खाया. आपसे अर्ज़ किया गया कि इतने ज़बरदस्त खज़ानों के मालिक होकर  आप भूखे रहते हैं. फ़रमाया इस डर से कि पेट भर जाए तो कहीं भूखों को न भूल जाऊँ, सुब्हानल्लाह, क्या पाकीज़ा संस्कार हैं. मुफ़स्सिरीन फ़रमाते हैं कि मिस्र के सारे औरत और मर्द को हज़रत युसुफ़ अलैहिस्सलाम के खरीदे हुए गुलाम और दासियां बनाने में अल्लाह तआला की यह हिकमत थी कि किसी यह कहने का मौका न हो कि हज़रत युसुफ़ अलैहिस्सलाम गुलाम की शान में आए थे और मिस्र के एक व्यक्ति के खरीदे हुए हैं बल्कि सब मिस्री उनके खरीदे और आज़ाद किए हुए गुलाम हो. और हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ने जो उस हालत में सब्र क्या यह उसका यह इनाम दिया गया.

हम अपनी रहमत (13)
(13) यानी मुल्क और दौलत या नबुव्वत.

जिसे चाहे पहुंचाएं और हम नेकों का नेग ज़ाया (नष्ट) नहीं करते{56} और बेशक आख़िरत का सवाब उनके लिये बेहतर जो ईमान लाए और परहेज़गार रहे(14){57}
(14) इससे साबित हुआ कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के लिए आख़िरत का अज्र व सवाब उससे बहुत अफ़ज़ल व आला है, जो अल्लाह तआला ने उन्हें दुनिया में अता फ़रमाया. इब्ने ऐनिया ने कहा कि मूमिन अपनी नेकियों का फल दुनिया और आखिरत दोनों में पाता है और काफ़िर जो कुछ पाता है दुनिया ही में पाता है, आख़िरत में उसको कोई हिस्सा नहीं. मफ़स्सिरो ने बयान किया है कि जब दुष्काल और क़हत की तीव्रता बढ़ी और बला आम हो गई, तमाम प्रदेश सूखे की सख़्त मुसीबत में जकड़ गए और हर दिशा से लोग ग़ल्ला खरीदने के लिए मिस्र पहुंचने लगे, हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम किसी को एक ऊँट के बोझ से अधिक ज़्यादा ग़ल्ला नहीं देते थे ताकि बराबरी रहे और सब की मुसीबत दूर हो.क़हत  की जैसी मुसीबत मिस्र और सारे प्रदेश में आई ऐसी ही कनाआन में भी आई, उस वक़्त हज़रत यअकू़ब अलैहिस्सलाम ने बिन यामिन के सिवा अपने दसों बेटों को ग़ल्ला खरीदने मिस्र भेजा.

सूरए यूसुफ़ – आठवाँ रुकू

सूरए यूसुफ़ – आठवाँ रुकू


और यूसुफ़ के भाई आए तो उसके पास हाज़िर हुए तो यूसुफ़ ने उन्हें (1)
(1) देखते ही.

पहचान लिया और वो उससे अंजान रहे(2){58}
(2) क्योंकि हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को कुंएं में डालने से अब तक चालिस साल का लम्बा ज़माना गुज़र चुका था. उनका यह ख़याल था कि हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम का इन्तिक़ाल हो चुका होगा. यहाँ आप शाही तख़्त पर शाहाना लिबास में शानों शौकत के साथ जलवा फ़रमा थे. इसलिये उन्होंने आपको न पहचाना और आपसे इब्रानी ज़बान में बात की. आप ने भी उसी ज़बान में जवाब दिया. आपने फ़रमाया तुम कौन लोग हो. उन्होंने अर्ज़ किया हम शाम के रहने वाले हैं जिस मुसीबत में दुनिया जकड़ी हुई है उसी में हम भी हैं. आप से ग़ल्ला खरीदने आए हैं. आपने फ़रमाया, कहीं तुम जासूस तो नहीं हो. उन्होंने कहा हम अल्लाह की क़सम खाते हैं हम जासूस नहीं हैं. हम सब भाई हैं एक बाप की औलाद हैं. हमारे वालिद काफ़ी बुजुर्ग उम्र वाले सीधे सच्चे आदमी हैं. उनका नाम हज़रत यअक़ूब है, वह अल्लाह के नबी हैं. आपने फ़रमाया तुम कितने भाई हो. कहने लगे, थे तो हम बारह, मगर एक भाई हमारा हमारे साथ जंगल में गया था, हलाक हो गया और वह वालिद साहब को हम सबसे प्यारा था. फ़रमाया अब तुम कितने हो. अर्ज़ किया दस. फ़रमाया गयारहवाँ कहाँ है. कहा वह वालिद साहब के पास है क्योंकि जो हलाक हो गया वह उसी का सगा भाई था. अब वालिद साहब की उसी से कुछ तसल्ली होती है. हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने इन भाइयों की बहुत इज़्ज़त की और बहुत आओ भगत की.

और जब उनका सामान मुहैया कर दिया (3)
(3) हर एक का ऊंट भर दिया और सफ़र ख़र्च दे दिया.

कहा अपना सौतेला भाई(4)
(4) यानी बिन यामीन.

मेरे पास ले आओ क्या नहीं देखते कि मैं पूरा नापता हूँ(5)
(5) उसको ले आओगे तो एक ऊंट ग़ल्ला उसके हिस्से का और ज़्यादा दूंगा.

और मैं सब से बेहतर मेहमान नवाज़ हूँ {59} फिर अगर उसे लेकर मेरे पास न आओ तो तुम्हारे लिये मेरे यहाँ नाप नहीं और मेरे पास न फटकना{60} बोले हम इसकी ख़वाहिश करेंगे उसके बाप से और हमें यह ज़रूर करना{61} और यूसुफ़ ने अपने ग़ुलामों से कहा इनकी पूंजी इनकी ख़ुर्जियों में रख दो(6)
(6) जो उन्होंने क़ीमत में दी थी ताकि जब वो अपना सामान खोलें तो अपनी पूंजी उन्हें मिल जाए और क़हत के ज़माने में काम आए और छुपकर उनके पास पहुंचे ताकि उन्हें लेने में शर्म भी न आए और यह करम और एहसान दुबारा आने के लिये उनकी रग़बत का कारण भी हो.

शायद वो इसे पहचानें जब अपने घर की तरफ़ लौट कर जाएं(7)
(7) और उसका वापस करना ज़रूरी समझें.

शायद वो वापस आएं{62}फिर जब वो अपने बाप की तरफ़ लौटकर गए(8)
(8) और बादशाह के सदव्यवहार और उसके एहसान का ज़िक्र किया. कहा कि उसने हमारी वह इज़्ज़त और सम्मान किया कि अगर आपकी औलाद में से कोई होता तो भी ऐसा न कर सकता. फ़रमाया अब अगर तुम मिस्र के बादशाह के पास जाओ तो मेरी तरफ़ से सलाम पहुंचा देना और कहना कि हमारे वालिद तेरे हक़ में तेरे इस सुलूक की वजह से दुआ करते हैं.

बोले ऐ हमारे बाप हमसे ग़ल्ला रोक दिया गया है(9)
(9) अगर आप हमारे भाई बिन यामीन को न भेजेंगे तो ग़ल्ला न मिलेगा.

तो हमारे भाई को हमारे साथ भेज दीजिये कि ग़ल्ला लाएं और हम ज़रूर इसकी हिफ़ाज़त करेंगे{63} कहा क्या इसके बारे में तुमपर वैसा ही भरोसा कर लूं जैसा पहले इसके भाई के बारे में किया था (10)
(10) उस वक़्त भी तुमने हिफ़ाज़त का ज़िम्मा लिया था.

तो अल्लाह सबसे बेहतर निगहबान और वो हर मेहरबान से बढ़कर मेहरबान{64}और जब उन्होंने अपना सामान खोला अपनी पूंजी पाई कि उनको फेर दी गई है बोले ऐ हमारे बाप अब हम और क्या चाहें यह है हमारी पूंजी कि हमें वापस कर दी गई और एक ऊंट का बोझा और ज़्यादा पाएं, यह दुनिया बादशाह के सामने कुछ नहीं(11){65}
(11) क्योंकि उसने उससे ज़्यादा एहसान किये हैं.

कहा मैं हरगिज़ इसे तुम्हारे साथ न भेजूंगा जब तक तुम मुझे अल्लाह का यह एहद न दे दो(12)
(12) यानी अल्लाह की क़सम न खाओ.

कि ज़रूर उसे लेकर आओगे मगर यह कि तुम घिर जाओ(13)
(13) और उसको लेकर तुम्हारी ताक़त से बाहर हो जाए.

फिर जब उन्होंने याक़ूब को एहद दे दिया कहा(14)
(14) हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम.

अल्लाह का ज़िम्मा है उन बातों पर जो हम कह रहे हैं {66} और कहा ऐ मेरे बेटो(15)
(15) मिस्र में.

एक दरवाज़े न दाख़िल होना और अलग अलग दरवाज़ों से जाना(16)
(16) ताकि बुरी नज़र से मेहफ़ूज़ रहो. बुखारी और मुस्लिम की हदीस में है कि नज़र बरहक़ है. पहली बार हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम ने यह नहीं फ़रमाया था इसलिये कि उस वक़्त तक कोई यह न जानता था कि यह सब भाई एक बाप की औलाद हैं. लेकिन अब चूंकि जान चुके थे इसलिये नज़र हो जाने की संभावना थी. इस वास्ते आपने अलग अलग होकर दाख़िल होने का हुक्म दिया. इससे मालूम हुआ कि आफ़तों और मुसीबतों से बचने की तदबीर और मुनासिब एहतियात नबियों का तरीक़ा है. इसके साथ ही आपने काम अल्लाह को सौंप दिया कि एहतियातों के बावुजूद अल्लाह पर तवक्कल और ऐतिमाद है, अपनी तदबीर पर भरोसा नहीं.

सूरए यूसुफ़ – नवाँ रुकू

सूरए यूसुफ़ – नवाँ रुकू


और जब वो यूसुफ़ के पास गए(1)
(1) और उन्होंने कहा कि हम आपके पास अपने भाई बिन यामीन को ले आए तो हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया, तुमने बहुत अच्छा किया. फिर उन्हें इज़्ज़त के साथ मेहमान बनाया और जगह जगह दस्तर ख़्वान लगाए गए और हर दस्तर ख़्वान पर दो दो को बिठाया गया. बिन यामीन अकेले रह गए तो वह रो पड़े और कहने लगे कि आज अगर मेरे भाई यूसुफ़ ज़िन्दा होते तो मुझे अपने साथ बिठाते. हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि तुम्हारा एक भाई अकेला रह गया और आपने बिन यामीन को अपने दस्तर ख़्वान पर बिठाया.

उसने अपने भाई को अपने पास जगह दी(2)
(2) और फ़रमाया कि तुम्हारे हलाक शुदा भाई की जगह मैं तुम्हारा भाई हो जाऊं तो क्या तुम पसन्द करोगे? बिन यामिन ने कहा कि आप जैसा भाई किसे मिले. लेकिन यअक़ूब अलैहिस्सलाम का बेटा और राहील (हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की वालिदा)की आँखों का नूर होना तुम्हें कैसे हासिल हो सकता है. हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम रो पड़े और बिन यामीन को गले से लगा लिया और.

कहा यक़ीन जान मैं ही तेरा भाई हूँ (3)
(3)यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम)

तो ये जो कुछ करते हैं उसका ग़म न खा (4){69}
(4) बेशक अल्लाह ने हम पर एहसान किया और हमें ख़ैर के साथ जमा फ़रमाया और अभी इस राज़ की भाइयों को ख़बर न देना. यह सुनकर बिन यामीन ख़ुशी से झूम उठे और हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम से कहने लगे. अब मैं आपसे जुदा न होऊंगा. आपने फ़रमाया, वालिद साहब को मेरी जुदाई का बहुत ग़म पहुंच चुका है. अगर मैंने तुम्हें भी रोक लिया तो उन्हें और ज़्यादा ग़म होगा. इसके अलावा रोकने की इसके सिवा और कोई सबील भी नहीं है कि तुम्हारी तरफ़ कोई ग़लत बात जुड़ जाए. बिन यामीन ने कहा इसमें कोई हर्ज़ नहीं.

फिर जब उनका सामान मुहैया कर दिया(5)
(5)और हर एक को एक ऊंट के बोझ के बराबर ग़ल्ला दे दिया और एक ऊंट के बोझ के बराबर बिन यामीन के नाम ख़ास कर दिया.

प्याला अपने भाई के कजावे में रख दिया(6)
(6) जो बादशाह के पानी पीने का सोने का जवाहिरात से जड़ा हुआ था और उस वक़्त उससे ग़ल्ला नापने का काम लिया जाता था. यह प्याला बिन यामिन के कजावे में रख दिया गया और क़ाफ़िला कनआन के इरादे से रवाना हो गया. जब शहर के बाहर जा चुका तो भंडार ख़ाने के कारकुनों को मालूम हुआ कि प्याला नहीं है. उनके ख़्याल में यही आया कि यह क़ाफ़िले वाले ले गए. उन्होंने उसकी तलाश के लिये आदमी भेजे.

फिर एक मुनादी {उदघोषक} ने निदा {एलान} की ऐ क़ाफ़िले वालों बेशक तुम चोर हो{70} बोले और उनकी तरफ़ मुतवज्जह हुए तुम क्या नहीं पाते{71} बोले बादशाह का पैमाना नहीं मिलता और जो उसे लाएगा उसके लिये एक ऊंट का बोझ है और मैं उसका ज़ामिन हूँ {72} बोले ख़ुदा की क़सम तुम्हें ख़ूब मालूम है कि हम ज़मीन में फ़साद करने नहीं आए और न हम चोर हैं {73} बोले फिर क्या सज़ा है उसकी अगर तुम झूटे हो (7){74}
(7) इस बात में, और प्याला तुम्हारे पास निकले.

बोले उसकी सज़ा यह है कि जिस के असबाब में मिले वही उसके बदले में ग़ुलाम बने(8)
(8) और हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम की शरीअत में चोरी की यही सज़ा मुक़र्रर थी. चुनांचे उन्होंने कहा कि.

हमारे यहां ज़ालिमों की यही सज़ा है(9){75}
(9) फिर यह क़ाफ़िला मिस्र लाया गया और उन साहिबों को हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के दरबार में हाज़िर किया गया.

तो पहले उनकी ख़ुर्जियों की तलाशी शुरू की अपने भाई(10)
(10) यानी बिन यामीन.

की ख़ुर्जी से पहले फिर उसे अपने भाई की ख़ुर्जी से निकाल लिया (11)
(11) यानी बिन यामीन की ख़ुर्जी से प्याला बरामद किया.

हमने यूसुफ़ को यह तदबीर बताई (12)
(12) अपने भाई के लेने की. इस मामले में भाइयों से पूछें ताकि वो हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम की शरीअत का हुक्म बताएं जिससे भाई मिल सके.

बादशाही क़ानून में उसे नहीं पहुंचता था कि अपने भाई को ले ले (13)
(13) क्योंकि मिस्र के बादशाह के क़ानून में चोरी की सज़ा मारना और दो गुना माल लेना  मुक़र्रर थी.

मगर यह कि खुदा चाहे(14)
(14) यानी यह बात ख़ुदा की मर्ज़ी से हुई कि उनके दिल में डाल दिया कि सज़ा भाइयों से पूछें और उनके दिल में डाल दिया कि वह अपनी सुन्नत के मुताबिक़ जवाब दें.

हम जिसे चाहे दर्जों बलन्द करें (15)
(15) इल्म में कि जैसे हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के दर्जे बलन्द फ़रमाए.

और हर इल्म वाले से ऊपर एक इल्म वाला है(16){76}
(16) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि हर आलिम के ऊपर उससे ज़यादा इल्म रखने वाला आलिम होता है. यहाँ तक कि ये सिलसिला अल्लाह तआला तक पहुंचता है. उसका इल्म सबके इल्म से बरतर है. इस आयत से साबित हुआ कि हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के भाई आलिम थे और हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम  उन सबसे ज़्यादा आलिम थे. जब प्याला बिन यामीन के सामान से निकला तो भाई शर्मिन्दा हुए और उन्होंने सर झुकाए और.

भाई बोले अगर यह चोरी करे(17)
(17) यानी सामान में प्याला निकलने से सामान वाले का चोरी करना तो यक़ीनी नहीं लेकिन अगरचे ये काम उसका हो.

तो बेशक इससे पहले इसका भाई  चोरी कर चुका है(18)
(18) यानी हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम और जिसको उन्होंने चोरी क़रार देकर हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की तरफ़ निस्बत किया. वो घटना यह थी कि हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के नाना का एक बुत था जिसको वह पूजते थे. हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने चुपके से वह बुत लिया और तोड़कर रास्ते में गन्दगी के अन्दर डाल दिया. यह हक़ीक़त में चोरी न थी, बुत परस्ती का मिटाना था. भाईयों का इस ज़िक्र से यह मक़सद था कि हम लोग बिन यामीन के सौतेले भाई हैं. यह काम हो तो शायद बिन यामीन का हो, न हमारी इसमें शिर्कत, न इसकी सूचना.

तो यूसुफ़ ने यह बात अपने दिल में रखी और उनपर ज़ाहिर न की, जी में कहा तुम बदतर जगह हो(19)
(19)इससे जिसकी तरफ़ चोरी की निस्बत करते हो, क्योंकि चोरी की निस्बत हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की तरफ़ तो ग़लत है. वह काम तो शिर्क का मिटाना और इबादत था और तुमने जो यूसुफ़ के साथ किया, बड़ी ज़ियादतियाँ हैं.

और अल्लाह ख़ूब जानता है जो बातें बनाते हो{77} बोले ऐ अज़ीज़ इसके एक बाप हैं बूढ़े बड़े(20)
(20) उनसे महब्बत रखते हैं और उन्हीं से उनके दिल को तसल्ली है.

तो हम में इसकी जगह किसी को ले लो बेशक हम तुम्हारे एहसान देख रहे हैं {78} कहा (21)
(21)हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने.

ख़ुदा की पनाह कि हम लें मगर उसी को जिसके पास हमारा माल मिला(22)
जब तो हम ज़ालिम होंगे{79}
(22) क्योकि तुम्हारे फ़ैसले से हम उसी को लेने के मुस्तहिक हैं जिसके सामान में हमारा माल मिला. अगर हम उसके बदले दूसरे को लें.

सूरए यूसुफ़ – दसवाँ रुकू

सूरए यूसुफ़ – दसवाँ रुकू

फिर जब इससे ना उम्मीद हुए अलग जाकर कानाफ़ूसी करने लगे, उनका बड़ा भाई बोला क्या तुम्हें ख़बर नहीं कि तुम्हारे बाप ने तुमसे अल्लाह का एहद ले लिया था और उससे पहले यूसुफ़ के हक़ में तुमने कैसी तक़सीर {अपराध} की तो मैं यहाँ से न टलूंगा यहां तक कि मेरे बाप (1)
(1) मेरे वापस आने की.

इजाज़त दें या अल्लाह मुझे हुक्म फ़रमाए(2)
(2) मेरे भाई को ख़लासी देकर या उसको छोड़कर तुम्हारे साथ चलने का.

और उसका हुक्म सबसे बेहतर है{80} अपने बाप के पास लौट कर जाओ फिर अर्ज़ करो कि ऐ हमारे बाप बेशक आपके बेटे ने चोरी की(3)
(3) यानी उनकी तरफ़ चोरी की निस्बत की गई.

और हम तो इतनी ही बात के गवाह हुए थे जितनी हमारे इल्म में थी(4)
(4) कि प्याला उनके सामान में निकला.

और हम ग़ैब के निगहबान न थे (5){81}
(5) और हमें ख़बर न थी कि यह सूरत पेश आएगी. हक़ीक़त क्या है अल्लाह ही जाने और प्याला किस तरह बिन यामीन के सामान से निकला.

और उस क़ाफ़िले से जिसमें हम आए और हम बेशक सच्चे हैं (6){82}
(6) फिर ये लोग अपने वालिद के पास आए और सफ़र में जो पेश आया था उसकी ख़बर दी और बड़े भाई ने जो कुछ बता दिया वह सब वालिद से अर्ज़ किया.

कहा(7)
(7) हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम ने, कि चोरी की निस्बत बिन यामीन की तरफ़ ग़लत है और चोरी की सज़ा ग़ुलाम बनाना यह भी कोई क्या जाने अगर तुम फ़तवा न देते और  तुम्हीं न बताते तो.

तुम्हारे नफ़्स {मन} ने तुम्हें कुछ हीला{बहाना} बना दिया तो अच्छा सब्र है क़रीब है कि
अल्लाह उन सब को मुझ से ला मिलाए(8)
(8) यानी हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को और उनके दोनो भाईयों को.
बेशक वही इल्म व हिकमत वाला है{83} और उनसे मुंह फेरा (9)
(9) हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम ने, बिन यामीन की ख़बर सुनकर, और आपका ग़म और दुख चरम सीमा को पहुंच गया.

और कहा हाय अफ़सोस यूसुफ़ की जुदाई पर और उसकी आँखें ग़म से सफ़ेद हो गई(10)
(10) रोते रोते आँख की सियाही का रंग जाता रहा और बीनाई भी कमज़ोर हो गई , हसन रदियल्लाहो अन्हो ने कहा कि हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की जुदाई में हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम अस्सी बरस रोते रहे. ऐसा रोना जो तक़लीफ़े और नुमाइश से न हो और उसके साथ अल्लाह की शिकायत और बेसब्री न पाई जाए. रहमत है. उन ग़म के दिनों में हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम की ज़बाने मुबारक पर कभी कोई कलिमा बेसब्री का न आया.

तो वह ग़ुस्सा खाता रहा {84} बोले (11)
(11) यूसुफ़ के भाई अपने वालिद से.

ख़ुदा की क़सम आप हमेशा यूसुफ़ की याद करते रहेंगे यहाँ तक कि गोर किनारे जा लगें या जान से गुज़र जाएं {85} कहा मैं तो अपनी परेशानी और ग़म की फ़रियाद अल्लाह ही से करता हूँ(12)
(12) तुम से या और किसी से नहीं.

और मुझे अल्लाह की वो शानें मालूम हैं जो तुम नहीं जानते(13){86}
(13) इसे मालूम होता है कि हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम जानते थे कि यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ज़िन्दा हैं और उनसे मिलने की उम्मीद रखते थे. यह भी जानते थे कि उनका ख़्वाब सच्चा हैं, ज़रूर सामने आएगा, एक रिवायत यह भी है कि आपने हज़रत ईज्राईल अलैहिस्सलाम से पूछा कि क्या तुमने मेरे बेटे यूसुफ़ की रूह निकाली है, उन्होंने अर्ज़ किया, नहीं. इस से भी आपको उनकी ज़िन्दगी का इत्मीनान हुआ और आपने अपने बेटों से फ़रमाया.

ऐ बेटो जाओ यूसुफ़ और उसके भाई का पता लगाओ और अल्लाह की रहमत से ना उम्मीद न हो, बेशक अल्लाह की रहमत से नाउम्मीद नहीं होते मगर काफ़िर लोग(14){87}
(14) यह सुनकर हज़रत यूसुफ़ के भाई फिर मिस्र की तरफ़ रवाना हुए.

फिर जब वो यूसुफ़ के पास पहुंचे बोले ऐ अज़ीज़ हमें और हमारे घर वालों को मुसीबत पहुंची(15)
(15) यानी तंगी और भूख की सख़्ती और जिस्मों का दुबला हो जाना.

और हम बेक़दर पूंजी लेकर आए हैं (16)
(16) रद्दी, खोटी, जिसे कोई सौदागर माल की क़ीमत में क़ुबूल न करे. वो कुछ खोटे दिरहम थे और घर के सामान से कुछ पुरानी चीज़ें.

तो हमें पूरा नाप दीजिये(17)
(17) जैसा खरे दामों से देते थे.

और हम पर ख़ैरात कीजिये(18)
(18) यह नाक़िस और ख़राब पूंजी क़ुबूल करके.

बेशक अल्लाह ख़ैरात वालों को सिला देता है(19){88}
(19) उनका यह हाल सुनकर हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को रोना आ गया और आँखों से आँसू निकलने लगे और.

बोले कुछ ख़बर है तुम ने यूसुफ़ और उसके भाई के साथ क्या किया था जब तुम नादान थे(20){89}
(20) यानी यूसुफ़ को मारना,कुंए में गिराना,बेचना,वालिद से अलग करना और उनके बाद उनके भाई को तंग रखना, परेशान करना, तुम्हें याद है. यह फ़रमाते हुए हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को हंसी आ गई. उन्होंने आपके मोती जैसे दांतों को देखकर पहचान लिया कि यह यूसुफ़ के हुस्न की शान है.

बोले क्या सचमुच आप ही यूसुफ़ हैं कहा मैं यूसुफ़ हूँ और यह मेरा भाई बेशक अल्लाह ने हमपर एहसान किया(21)
(21) हमें जुदाई के बाद सलामती के साथ मिलाया और दुनिया व दीन की नेअमतों से नवाज़ा.

बेशक जो परहेज़गारी और सब्र करे तो अल्लाह नेकों का नेग ज़ाया (नष्ट) नहीं करता(22){90}
(22) हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के भाई माफ़ी के तौर पर.

बोले ख़ुदा की क़सम बेशक अल्लाह ने आपको हमपर फ़ज़ीलत दी और बेशक हम ख़ता वाले थे(23){91}
(23) उसी का नतीजा है कि अल्लाह ने आप को इज़्ज़त दी, बादशाह बनाया और हमें मिस्कीन और दरिद्र बनाकर आपके सामने लाया.

कहा आज (24)
(24) अगरचे मलामत और त्रस्कार करने का दिन है, मगर मेरी तरफ़ से.

तुमपर कुछ मलामत नहीं अल्लाह तुम्हें माफ़ करे और वह सब मेहरबानों से बढ़कर मेहरबान है(25){92}
(25) इसके बाद हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने उनसे अपने वालिद का हाल पूछा. उन्होंने कहा आपकी जुदाई के ग़म में रोते राते उनकी आँखे जाती रहीं. आपने फ़रमाया.

मेरा यह कुर्ता लेजाओ(26)इसे मेरे बाप के मुंह पर डालो उनकी आँखे खुल जाएंगी और अपने सब घर भर को मेरे पास ले आओ {93}
(26) जो मेरे वालिद ने तावीज़ बनाकर मेरे गले में डाल दिया था.

सूरए यूसुफ़ – ग्यारहवाँ रुकू

सूरए यूसुफ़ – ग्यारहवाँ रुकू


जब क़ाफ़िला मिस्र से जुदा हुआ(1)
(1) और  कनआन की तरफ़ रवाना हुआ.

यहां उनके बाप ने (2)
(2) अपने पोतों और  पास वालों से.

कहा बेशक मैं यूसुफ़ की खुश्बू पाता हूँ अगर मुझे न कहो कि सठ गया है{94}बेटे बोले ख़ुदा की क़सम आप अपनी सी पुरानी ख़ुदरफ़्तगी(बेख़ुदी) में हैं(3){95}
(3) क्योंकि वह इस गुमान में थे कि अब हज़रत यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) कहाँ, उनकी वफ़ात भी हो चुकी होगी.

फिर जब ख़ुशी सुनाने वाला आया(4)
(4) लश्कर के आगे  आगे, वह हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के भाई यहूदा थे. उन्होंने कहा कि हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम के पास ख़ून लगी वह कमीज़ भी मैं ही लेकर गया था, मैंने ही कहा था कि यूसुफ़ को भेड़िया खा गया, मैं ने ही उन्हें दुखी किया था, आज कुर्ता भी मैं ही लेकर जाऊंगा और  हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की ज़िन्दगी की ख़ुशख़बरी भी मैं ही सुनाऊंगा. तो यहूदा नंगे सर नंगे पाँव कुर्ता लेकर अस्सी फ़रसँग दौड़ते आए. रास्ते में खाने के लिये सात रोटियाँ साथ लाए थे. ख़ुशी का यह आलम था कि उनको भी रास्ते में खाकर तमाम न कर सके.

उसने वह कुर्ता यअक़ूब के मुंह पर डाला उसी वक़्त उसक आँखें फिर आई कहा मैं न कहता था कि मुझे अल्लाह की वो शानें मालूम हैं जो तुम नहीं जानते(5){96}
(5) हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम ने दरियाफ़्त फ़रमाया, यूसुफ़ कैसे हैं. यहूदा ने अर्ज़ किया हुज़ूर वह मिस्र के बादशाह है. फ़रमाया, मैं बादशाह को क्या करूं. यह बताओ किस दीन पर है? अर्ज़ किया, दीने इस्लाम पर, फ़रमाया, अल्लाह का शुक्र है. अल्लाह की नेअमत पूरी हुई हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के भाई पर.

बोले ऐ हमारे बाप हमारे गुनाहों की माफ़ी मांगिये बेशक हम ख़तावार हैं{97} कहा जल्द मैं तुम्हारी बख़्शिश अपने रब से चाहूंगा बेशक वही बख़्शने वाला मेहरबान है(6){98}
(6) हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम ने सुबह के वक़्त नमाज़ के बाद हाथ उठाकर अल्लाह तआला के दरबार में अपने बेटो के लिये दुआ की, वह क़ुबूल हुई और हज़रत यअक़ूब को वही फ़रमाई गई कि बेटों की ख़ता बख़्श दी गई. हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने अपने वालिदे माजिद को उनके अहल और  औलाद समेत बुलाने के लिये अपने भाइयों के साथ दो सौ सवारियाँ और  बहुत सा सामान भेजा था. हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम ने मिस्र का इरादा फ़रमाया और  अपने घरवालों को जमा किया. कुल मर्द औरतें बहत्तर या तिहत्तर जन थे. अल्लाह तआला ने उनमें यह बरकत अता फ़रमाई कि उनकी नस्ल इतनी बढ़ी कि जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के साथ बनी इस्राईल मिस्र से निकले तो छ: लाख से ज़्यादा थे, जब कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का ज़माना सिर्फ़ चार सौ साल बाद है. अलहासिल, जब हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम मिस्र के क़रीब पहुंचे तो हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने मिस्र के बादशाहे आज़म को अपने वालिद की तशरीफ़ आवरी की सूचना दी और  चार हज़ार लश्करी और बहुत से मिस्री सवारों को हमराह लेकर आप अपने वालिद साहिब के स्वागत के लिये सैंकड़ों रेशमी झण्डे उड़ाते क़तार बांधे रवाना हुए. हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम अपने बेटे यहूदा के हाथ का सहारा लिये तशरीफ़ ला रहे थे. जब आपकी नज़र लश्कर पर पड़ी और आपने देखा रेगिस्तान सजे धजे सवारों से भरा हुआ है, फ़रमाया ऐ यहूदा, क्या यह मिस्र का फ़िरऔन है?  जिसका लश्कर इस शान से आ रहा है. अर्ज़ किया, नहीं यह हुज़ूर के बेटे यूसुफ़ हैं, हज़रत जिब्रील ने आपको हैरत में देखकर अर्ज़ किया, हवा की तरफ़ नज़र फ़रमाइये. आपकी ख़ुशी में शरीक होने फ़रिश्ते हाज़िर हुए हैं, जो मुद्दतों आपके ग़म के कारण रोते रहे हैं. फ़रिश्तों की तस्बीह ने और घोड़ों के हिनहिनानें और  तबल और  नक्क़ारों शहनाइयों की आवाज़ों ने अज़ीब दृश्य पैदा किया था. यह मुहर्रम की दसवीं तारीख़ थी. जब ये दोनों हज़रात, वालिद और बेटे, क़रीब हुए. हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने सलाम अर्ज़ करने का इरादा ज़ाहिर किया. हज़रत जिब्रील ने अर्ज़ किया कि ज़रा रूक जाइये और  वालिद को सलाम से शुरूआत करने का मौक़ा दीजिये. चुनांचे हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया, “अस्सलामो अलैका या मुज़हिबल अहज़ान” यानी ऐ दुख दर्द के दूर करने वाले सलामती हो तुमपर. और दोनों साहिबों ने उतर कर एक दूसरे को गले लगाया और ख़ूब रोए. फिर उस सजी हुई आरामगाह में दाख़िल हुए जो पहले से आपको इस्तक़बाल के लिये ऊमदा  ख़ैमे वग़ैरह गाड़कर आरास्ता की गई थी. यह प्रवेश मिस्र की सीमा में अन्दर था. इसके बाद दूसरा प्रवेश ख़ास शहर में है. जिसका बयान अगली आयत में है.

फिर जब वो सब यूसुफ़ के पास पहुंचे उसने अपने माँ (7)
(7) माँ से या ख़ास वालिदा मुराद हैं अगर उस वक़्त तक ज़िन्दा हों या ख़ाला. मुफ़स्सिरों के इस बारे में कई अक़वाल हैं.

बाप को अपने पास जगह दी और कहा मिस्र में (8)
(8) यानी ख़ास शहर में.

दाख़िल हो अल्लाह चाहे तो अमान के साथ(9){99}
(9) जब मिस्र में दाख़िल हुए और हज़रत यूसुफ़ अपने तख़्त पर जलवा अफ़रोज़ हुए. आपने अपने वालिदैन का सत्कार किया.

और अपने माँ बाप को तख़्त पर बिठाया और सब (10)
(10) यानी वालिदैन और  सब भाई.

उसके लिये सिजदे में गिरे(11)
(11) यह सिज्दा सम्मान और  विनम्रता का था जो उनकी शरीअत में जायज़ था जैसे कि हमारी शरीअत में किसी बुज़ुर्ग की ताज़ीम के लिये क़याम और मुसाफ़ह और  हाथों को चूमना जायज़ है. इबादत का सिज्दा अल्लाह तआला के सिवा और किसी के लिये कभी जायज़ नहीं हुआ, न हो सकता है, क्योंकि यह शिर्क है और  हमारी शरीअत में सिज्दए ताज़ीम भी जायज़ नहीं.

और यूसुफ़ ने कहा ऐ मेरे बाप यह मेरे पहले ख़्वाब की ताबीर है(12)
(12)  जो मैं ने बचपन की हालत में देखा था.

बेशक उसे मेरे रब ने सच्चा किया, और बेशक उसने मुझपर एहसान किया कि मुझे क़ैद से निकाला(13)
(13) इस मौक़े पर आपने कुंए का ज़िक्र न किया ताकि भाइयों को शर्मिन्दगी न हो.

और आप सब को गाँव से ले आया बाद इसके कि शैतान ने मुझ में और मेरे भाइयों में नाचाक़ी (शत्रुता) करा दी थी, बेशक मेरा रब जिस बात को चाहे आसान करदे, बेशक वही इल्म व हिकमत वाला है(14)
(14) इतिहासकारों का बयान है कि हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम अपने बेटे हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के पास मिस्र में चौबीस साल बेहतरीन ऐशों आराम में ख़ुशहाली के साथ रहे. वफ़ात के क़रीब आपने हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को वसीयत की कि आपका जनाज़ा शाम प्रदेश में लेजाकर अर्ज़े मुक़द्दसा में आपके वालिद हज़रत इस्हाक़ अलैहिस्सलाम की क़ब्र शरीफ़ के पास दफ़्न किया जाए. इस वसीयत की तामील की गई और वफ़ात के बाद साल की लकड़ी के ताबूत में आपका मुबारक जिस्म शाम में लाया गया. उसी वक़्त आपके भाई ऐस की वफ़ात हुई थी और आप दोनों भाइयों की पैदायश भी साथ हुई थी और दफ़्न भी एक ही क़ब्र में किये गए. दोनों साहिबों की उम्र एक सौ पैंतालीस साल की थी. जब हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम अपने वालिद और चचा को दफ़्न करके मिस्र की तरफ़ वापस हुए तो आपने यह दुआ की जो अगली आयत में दर्ज हैं.

ऐ मेरे रब बेशक तूने मुझे एक सल्तनत दी और मुझे छुपी बातों का अंजाम निकालना सिखाया,ऐ आसमानों और ज़मीन के बनाने वाले तू मेरा काम बनाने वाला है दुनिया और आख़िरत में, मुझे मुसलमान उठा और उनसे मिला जो तेरे ख़ास क़ुर्ब(समीपता) के लायक़ हैं(15){101}
(15) यानी हज़रत इब्राहीम व हज़रत इस्हाक़ व हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम नबी सब मअसूम हैं. हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की यह दुआ उम्मत की तालीम के लिये है. कि वह अच्छे अन्त की दुआ मांगते रहे. हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम अपने वालिद के बाद तेईस साल रहे. इसके बाद आपकी वफ़ात हुई. आपके दफ़्न की जगह में मिस्र वालों के बीच सख़्त मतभेद हुआ. हर महल्ले वाले बरकत हासिल करने के लिये अपने ही महल्ले में दफ़्न करने पर अड़े थे. आख़िर यह राय क़रार पाई कि आपको नील नदी में दफ़्न किया जाए ताकि पानी आपकी क़ब्र से छूता हुआ गुज़रे और  इसकी बरकत से सारे मिस्र निवासियों को फ़ैज़ मिले. चुनांचे आपको संगे रिख़ाम या संगे मरमर के ताबूत में नील नदी के अन्दर दफ़्न किया गया और आप वहीं रहे यहाँ तक कि चार सौ बरस बाद हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने आपका ताबूत शरीफ़ निकाला और आपके बाप दादा के पास शाम प्रदेश में दफ़्न किया.

ये कुछ ग़ैब की ख़बरें हैं जो हम तुम्हारी तरफ़ वही (देववाणी) करते हैं,और तुम उनके पास न थे(16)
(16) यानी यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के भाइयों के.

जब उन्होंने अपना काम पक्का किया था और दाव चल रहे थे(17){102}
(17) इसके बावुज़ूद ऐ नबीयों के सरदार मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैका वसल्लम, आपका इन तमाम घटनाओ को इस तफ़सील से बयान फ़रमाना ग़ैबी ख़बर और  चमत्कार है.

और अक्सर आदमी तुम कितना ही चाहो ईमान न लाएंगे{103} और तुम इसपर उनसे कुछ उजरत (मजदूरी) नहीं मांगते यह(18)तो नहीं मगर सारे जगत को नसीहत {104}
(18) क़ुरआन शरीफ़.

सूरए यूसुफ़ – बारहवाँ रुकू

सूरए यूसुफ़ – बारहवाँ रुकू

और कितनी निशानियाँ हैं(1)
(1) ख़ालिक़ और उसकी तौहीद और सिफ़ात को साबित करने वाली. इन निशानियों से हलाक हुई उम्मतों के आसार या अवशेष मुराद हैं (मदारिक)
आसमानों और ज़मीन में कि अक्सर लोग उनपर गुज़रते हैं(2)
(2) और उनका अवलोकन करते है लेकिन सोच विचार नहीं करते, सबक़ नहीं पकड़ते.

और उनसे बे ख़बर रहते हैं {105} और उनमें अक्सर वो हैं कि अल्लाह पर यक़ीन नहीं लाते मगर शिर्क करते हुए (3){106}
(3) अक्सर मुफ़स्सिरों के नज़्दीक यह आयत मुश्रिकों के रद में उतरी जो अल्लाह तआला के ख़ालिक और राज़िक होने का इक़रार करने के साथ बुत परस्ती करके ग़ैरों को इबादत में उसका शरीक करते थे.

क्या इससे निडर हो बैठे कि अल्लाह का अज़ाब उन्हें आकर घेरले या क़यामत उनपर अचानक आ जाए और उन्हें ख़बर न हो {107} तुम फ़रमाओ (4)
(4) ऐ मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैका वसल्लम, उन मुश्रिकों से, कि अल्लाह के एक होने यानी तौहीद और दीने इस्लाम की दावत देना.

यह मेरी राह है मैं अल्लाह की तरफ़ बुलाता हूँ, मैं और जो मेरे क़दमों पर चलें दिल की आँखें रखते हैं(5)
(5) इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और उनके सहाबा अच्छे तरीक़े पर और बड़ी हिदायत पर हैं. यह इल्म के ख़ज़ाने, ईमान के भंडार और रहमान के लश्कर हैं. इबने मसऊद रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया तरीक़ा इख़्तियार करने वालों को चाहिये कि गुज़रे हुओ का तरीक़ा अपनाएं, वो सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के सहाबा हें जिनके दिल उम्मत में सबसे ज़्यादा पाक, इल्म में सबसे गहरे, तकल्लुफ़ में सबसे कम. ये ऐसे हज़रात हैं जिन्हें अल्लाह तआला ने अपने नबी अलैहिस्सलातों वस्सलाम की सोहबत और उनके दीन की इशाअत के लिये बुज़ुर्गी दी.

और अल्लाह को पाकी है(6)
(6) तमाम दोषों और कमियों और शरीकों और भिन्नताओ और समानताओ से.

और मैं शरीक करने वाला नहीं {108} और हमने तुम से पहले जितने रसूल भेजे सब मर्द ही थे(7)
(7) न फ़रिश्ते न किसी औरत को नबी बनाया गया. यह मक्का वालों का जवाब है जिन्होंने कहा था कि अल्लाह ने फ़रिश्तों को क्यों नबी बनाकर नहीं भेजा. उन्हें बताया गया कि यह क्या आश्चर्य की बात है. पहले ही से कभी फ़रिश्ते नबी होकर न आए.

जिन्हें हम वही {देव वाणी} करते और सब शहर के रहने वाले थे(8)
(8) हसन रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि बादिया और जिन्नात और औरतों में से कभी कोई नबी नहीं किया गया.

तो क्या ये लोग ज़मीन पर चले नहीं तो देखते उनसे पहलों का क्या अंजाम हुआ (9)
(9) नबियों के झुटलाने से किस तरह हलाक किये गए.

और बेशक आख़िरत का घर परहेज़गारों के लिये बेहतर तो क्या तुम्हें अक़्ल नहीं {109} यहाँ तक जब रसूलों को ज़ाहिरी असबाब की उम्मीद न रही (10)
(10) यानी लोगों को चाहिये कि अल्लाह के अज़ाब में देरी होने और ऐशों आराम के देर तक रहने पर घमण्डी न हो जाएं क्योंकि पहली उम्मतों को भी बहुत मोहलतें दी जा चुकी हैं यहाँ तक कि जब उनके अज़ाबों में बहुत देरी हुई और ज़ाहिरी कारणों को देखते हुए रसूलों को क़ौम पर दुनिया में ज़ाहिर अज़ाब आने की उम्मीद न रही (अबुस्सऊद)

और लोग समझे कि रसूलों ने उनसे ग़लत कहा था (11)
(11) यानी क़ौमों ने गुमान किया कि रसूलों ने उन्हें जो अज़ाब के वादे दिये थे वो पूरे होने वाले नहीं. (मदारिक वग़ैरह)

उस वक़्त हमारी मदद आई तो जिसे हमने चाहा बचा लिया गया(12)
(12) अपने बन्दों में से यानी फ़रमाँबरदारी करने वाले ईमानदारों को बचाया.

और हमारा अज़ाब मुजरिम लोगों से फेरा नहीं जाता {110} बेशक उनकी ख़बरों से (13)
(13) यानी नबियों की और उनकी क़ौमों की.

अक़्लमन्दों की आँखें खुलती हैं(14)
(14) जैसे कि हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के वाक़ए से बड़े बड़े नतीजें निकलते हैं और मालूम होता है कि सब्र का नतीजा सलामती और बुज़ुर्गी है और तकलीफ़ पहुंचाने और बुरा चाहने का अंजाम शर्मिन्दगी. अल्लाह पर भरोसा रखने वाला कामयाब होता है और बन्दे को सख़्तियों के पेश आने से मायूस न होना चाहिये. अल्लाह की रहमत साथ दे तो किसी के बुरा चाहने से कुछ न बिगड़े. इसके बाद क़ुरआने पाक की निस्बत इरशाद होता है.

यह कोई बनावट की बात नहीं(15)
(15) जिसको किसी इन्सान ने अपनी तरफ़ से बना लिया हो क्योंकि इसका चमत्कार और अनोखापन इसके अल्लाह की तरफ़ से होने को क़तई तौर पर साबित करता है.

लेकिन अपने से अगले कामों की (16)
तस्दीक़ {पुष्टी} है और हर चीज़ का तफ़सीली (विस्तृत) बयान और मुसलमानों के लिये हिदायत और रहमत {111}
(16) तौरात इंजील वग़ैरह आसमानी किताबों की.

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