Tafseer Surah Yunus from Kanzul Imaan

सूरए यूनुस – पहला रूकू

सूरए यूनुस मक्का में उतरी इसमें 109 आयतें और ग्यारह रूकू हैं.

अल्लाह के नाम से शूरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)

ये हिकमत (बोध) वाली किताब की आयतें हैं {1} क्या लोगों को इसका अचम्भा हुआ कि हमने उनमें से एक मर्द को वही (देववाणी) भेजी कि लोगों को डर सुनाओ(2)
और ईमान वालों को ख़ुशख़बरी दो कि उनके लिये उनके रब के पास सच का मक़ाम है, काफ़िर बोले बेशक यह तो खुला जादूगर है(3){2}
बेशक तुम्हारा रब अल्लाह है जिसने आसमन और ज़मीन छ दिन में बनाए फिर अर्श पर इस्तवा फ़रमाया जैसा उसकी शान के लायक़ है काम की तदबीर फ़रमाता है(4)
कोई सिफ़ारिशी नहीं मगर उसकी इजाज़त के बाद(5)
यह है अल्लाह तुम्हारा रब (6)
तो उसकी बन्दगी करो, तो क्या तुम ध्यान नहीं करते{3} उसी की तरफ़ तुम सबको फिरना है(7)
अल्लाह का सच्चा वादा, बेशक वह पहली बार बनाता है फिर फ़ना के बाद दोबारा बनाएगा कि उनको जो ईमान लाए और अच्छे काम किये इन्साफ़ का सिला (इनाम) दे(8)
और काफ़िरों के लिये पीने को खौलता पानी और दर्दनाक अज़ाब बदला उनके कुफ़्र का {4} वही है जिसने सूरज को जगमगाता बनाया और चांद चमकता और उसके लिये मंज़िलें ठहराईं(9)
कि तुम बरसों की गिनती और (10)
हिसाब जानो अल्लाह ने उसे न बनाया मगर हक़(11)
निशानियां तफ़सील से बयान फ़रमाता है इल्म वालों के लिये (12){5}
बेशक रात और दिन का बदलता आना और जो कुछ अल्लाह ने आसमानों और ज़मीन में पैदा किया उनमें निशानियां हैं डर वालों के लिये{6} बेशक वो जो हमारे मिलने की उम्मीद नहीं रखते(13)
और दुनिया की ज़िन्दगी पसन्द कर बैठे और इसपर मुतमईन (संतुष्ट) हो गए (14)
और वो जो हमारी आयतों से ग़फ़लत करते हैं(15){7}
उन लोगों का ठिकाना दोज़ख़ है बदला उनकी कमाई का {8} बेशक जो ईमान लाए और अच्छे काम किये उनका रब उनके ईमान के कारण उन्हें राह देगा(16)
उनके नीचे नेहरें बहती होंगी नेअमत के बाग़ों में {9} उनकी दुआ उसमें यह होगी कि अल्लाह तुझे पाकी है (17)
और उनके मिलते वक़्त ख़ुशी का पहला बोल सलाम है (18)
और उनकी दुआ का ख़ातिमा यह है कि सब ख़ूबियों सराहा अल्लाह जो रब है सारे जगत का(19){10}

तफ़सीर
सूरए यूनुस – पहला रूकू

(1) सूरए यूनुस मक्की है, सिवाए तीन आयतों के ” फ़इन कुन्ता फ़ी शक्किन ” से. इसमें ग्यारह रूकू, सौ नौ आयतें, एक हज़ार आठ सौ बत्तीस कलिमे और नौ हज़ार निनावे अक्षर हैं.

(2) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया, जब अल्लाह तआला ने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को रिसालत अता फ़रमाई और आपने उसका इज़हार किया तो अरब इन्कारी हो गए और उनमें से कुछ ने कहा कि अल्लाह इससे बरतर है कि किसी आदमी को रसूल बनाए. इसपर ये आयतें उतरीं.

(3) काफ़िरों ने पहले तो आदमी का रसूल होना आश्चर्य की बात और न मानने वाली चीज़ क़रार दिया, फिर जब हुज़ूर के चमत्कार देखे और यक़ीन हुआ कि ये आदमी की शक्ति और क्षमता से ऊपर हैं, तो आपको जादूगर बताया. उनका यह दावा तो झूट और ग़लत है, मगर इसमें भी अपनी तुच्छता और हुज़ूर की महानता का ऐतिराफ़ पाया जाता है.

(4) यानी तमाम सृष्टि के कामों का अपनी हिक़मत और मर्ज़ी के अनुसार प्रबन्ध फ़रमाता है.

(5) इसमें बुत परस्तों के इस क़ौल का रद है कि बुत उनकी शफ़ाअत करेंगे. उन्हें बताया गया कि शफ़ाअत उनके सिवा कोई न कर सकेगा जिन्हें अल्लाह इसकी इजाज़त देगा. और शफ़ाअत की इजाज़त पाने वाले ये अल्लाह के मक़बूल बन्दे होंगे.

(6) जो आसमान और ज़मीन का विधाता और सारे कामों का प्रबन्धक है. उसके सिवा कोई मअबूद नहीं, फ़क़त वही पूजे जाने के लायक़ है.

(7) क़यामत के दिन, और यही है.

(8) इस आयत में हश्र नश्र और मआद का बयान और इससे इन्कार करने वालों का रद है. और इसपर निहायत ख़ूबसूरत अन्दाज़ में दलील क़ायम फ़रमाई गई है, कि वह पहली बार बनाता है और विभिन्न अंगों को पैदा करता है और उन्हें जोड़ता है. तो मौत के साथ अलग हो जाने के बाद उनको दोबारा जोड़ना और बने हुए इन्सान को नष्ट  हो जाने के बाद दोबारा बना देना और वही जान जो उस शरीर से जुड़ी थी, उसको इस बदन की दुरूस्ती के बाद फिर उसी शरीर से जोड़  देना, उसकी क़ुदरत और क्षमता से क्या दूर है. और इस दोबारा पैदा करने का उद्देश्य कर्मों का बदल देना यानी फ़रमाँबरदार को इनाम और गुनाहगार को अज़ाब देना है.

(9) अठ्ठाईस मंजिलें जो बारह बुर्जों में बंटी है. हर बुर्ज के लिये ढाई मंज़िलें हैं. चांद हर रात एक मंन्ज़िल में रहता है. और महीना तीस दिन का हो तो दो रात, वरना एक रात छुपता है.

(10) महीनों, दिनों घड़ियों का.

(11) कि उससे उसकी क़ुदरत और उसके एक होने के प्रमाण ज़ाहिर हों.

(12) कि उनमें ग़ौर करके नफ़ा उठाएं.

(13) क़यामत के दिन और सवाब व अज़ाब को नहीं मानते.

(14) और इस नश्वर को हमेशा पर प्राथमकिता दी, और उम्र उसकी तलब में गुज़ारी.

(15) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा से रिवायत है कि यहाँ आयतों से सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ज़ाते पाक और क़ुरआन शरीफ़ मुराद है. और ग़फ़लत करने से मुराद उनसे मुंह फेरना है.

(16) जन्नतों की तरफ़. क़तादा का क़ौल है कि मूमिन जब अपनी क़ब्र से निकलेगा  तो उसका अमल ख़ूबसूरत शक्ल में उसके सामने आएगा. यह शख़्स कहेगा, तू कौन है? वह कहेगा, मैं तेरा अमल हूँ. और उसके लिये नूर होगा और जन्नत तक पहुंचाएगा. काफ़िर का मामला विपरीत होगा. उसका अमल बुरी शक्ल में नमूदार होकर उसे जहन्नम में पहुंचाएगा.

(17) यानी जन्नत वाले अल्लाह तआला की तस्बीह, स्तुति, प्रशंसा में मश्ग़ूल रहेंगे और उसके ज़िक्र से उन्हें फ़रहत यानी ठण्डक और आनन्द और काफ़ी लज़्ज़त हासिल होगी.

(18) यानी जन्नत वाले आपस में एक दूसरे का सत्कार सलाम से करेंगे या फ़रिश्ते उन्हें इज़्ज़त के तौर पर सलाम अर्ज़ करेंगे या फ़रिश्तें रब तआला की तरफ़ से उनके पास सलाम लाएंगे.

(19) उनके कलाम शुरूआत अल्लाह की बड़ाई और प्रशंसा से होगी और कलाम का अन्त अल्लाह की महानता और उसके गुणगान पर होगा.

सूरए यूनुस – दूसरा रूकू

सूरए यूनुस – दूसरा रूकू

और अगर अल्लाह लोगों पर बुराई ऐसी जल्द भेजता जैसी वह भलाई की जल्दी करते हैं तो उनका वादा पूरा हो चुका होता(1)
तो हम छोड़ते उन्हें जो हमसे मिलने की उम्मीद नहीं रखते कि अपनी सरकशी (विद्रोह) में भटका करें(2){11}
और जब आदमी को(3)
तकलीफ़ पहुंचती है हमें पुकारता है लेटे और बैठे और खड़े (4)
फिर जब हम उसकी तकलीफ़ दूर कर देते हैं चल देता है(5)
गोया कभी किसी तकलीफ़ के पहुंचने पर हमें पुकारा ही न था, यूंही भले कर दिखाए है हद से बढ़ने वाले को(6)
उनके काम(7){12}
और बेशक हमने तुमसे पहली संगतें(8)
हलाक फ़रमादीं जब वो हद से बढ़े(9)
और उनके रसूल उनके पास रौशन दलीलें लेकर आए(10)
और वो ऐसे थे ही नहीं कि ईमान लाते, हम यूंही बदला देते हैं मुजरिमों को {13} फिर हमने उनके बाद तुम्हें ज़मीन में जानशीन किया कि देखें तुम कैसे काम करते हो(11){14}
और जब उनपर हमारी रौशन आयतें (12)
पढ़ी जाती हैं तो वो कहने लगते हैं जिन्हें हमसे मिलने की उम्मीद नहीं(13)
कि इसके सिवा और क़ुरआन ले आइये(14)
या इसी को बदल दीजिये (15)
तुम फ़रमाओ मुझे नहीं पहुंचता कि मैं इसे अपनी तरफ़ से बदल दूं, मैं तो उसी का ताबे (अधीन) हूँ जो मेरी तरफ़ वही (देववाणी) होती है (16)
मैं अपने रब की नाफ़रमानी करूं(17)
तो मुझे बड़े दिन के अज़ाब का डर है(18){15}
तुम फ़रमाओ अगर अल्लाह चाहता तो मैं इसे तुमपर न पढ़ता न वह तुमको उससे ख़बरदार करता(19)
तो मैं इससे पहले तुम में अपनी एक उम्र गुज़ार चुका हुँ (20)
तो क्या तुम्हें अक़ल नहीं (21){16}
तो उससे बढ़कर ज़ालिम कौन जो अल्लाह पर झूट बांधे(22)
या उसकी आयतें झुटलाए, बेशक मुजरिमों का भला न होगा {17}और अल्लाह के सिवा ऐसी चीज़ (23)
को पूजते हैं जो उनका कुछ भला न करे और कहते हैं कि यह अल्लाह के यहाँ हमारे सिफ़ारिशी हैं(24)
तुम फ़रमाओ क्या अल्लाह को वह बात बताते हो जो उसके इल्म में न आसमानों में है न ज़मीन में(25)
उसे पाकी और बरतरी है उनके शिर्क से {18} और लोग एक ही उम्मत थे (26)
फिर मुख़्तलिफ़ हुए और अगर तेरे रब की तरफ़ से एक बात पहले न हो चुकी होती (27)
तो यहीं उनके इख़्तिलाफ़ों का उनपर फ़ैसला हो गया होता(28){19}
और कहते हैं उनपर उनके रब की तरफ़ से कोई निशानी क्यों नहीं उतरी(29)
तुम फ़रमाओ ग़ैब तो अल्लाह के लिये है अब रास्ता देखों, मैं भी तुम्हारे साथ राह देख रहा हूँ{20}

तफ़सीर
सूरए यूनुस – दूसरा रूकू    

(1) यानी अगर अल्लाह तआला लोगों की बद . दुआएं, जैसे कि वो ग़ज़ब के वक़्त अपने लिये अपने बाल बच्चों और माल के लिये करते हैं, और कहते हैं हम हलाक हो जाएं, ख़ुदा हमें ग़ारत करे, बर्बाद करें और ऐसे ही कलिमें अपनी औलाद और रिश्तेदारों के लिये कह गुज़रते हैं, जिसे हिन्दी में कोसना कहते हैं, अगर वह दुआ ऐसी जल्दी क़ुबूल करली जाती जैसी जल्दी वो अच्छाई की दुआओ के क़ुबूल होने में चाहते हैं, तो उन लोगों का अन्त हो चुका होता और वो कब के हलाक हो गए होते, लेकिन अल्लाह तआला अपने करम से भलाई की दुआ क़ुबूल फ़रमाने में जल्दी करता है, बद-दुआ के क़ुबूल में नहीं, नज़र बिन हारिस ने कहा था या रब, यह दीने इस्लाम अगर तेरे नज़दीक सच्चा है तो हमारे ऊपर आसमान से पत्थर बरसा. इसपर यह आयत उतरी और बताया गया कि अगर अल्लाह तआला काफ़िरों के अज़ाब में जल्दी फ़रमाता, जैसा कि उनके लिये माल और औलाद वग़ैरह दुनिया की भलाई देने में जल्दी फ़रमाई, तो वो सब हलाक हो चुके होते.

(2) और हम उन्हें मोहलत देते हैं और उनके अज़ाब में जल्दी नहीं करते.

(3) यहाँ आदमी से काफ़िर मुराद हैं.

(4) हर हाल में, और जब तक उसकी तकलीफ़ दूर न हो, दुआ में मश़्गूल रहता है.

(5) अपने पहले तरीक़े पर, और वही कुफ़्र की राह अपनाता है और तकलीफ़ के वक़्त को भूल जाता है.

(6) यानी काफ़िरों को.

(7) मक़सद यह है कि इन्सान बला के वक़्त बहुत ही बेसब्रा है और राहत के वक़्त बहुत नाशुक्रा. जब तकलीफ़ पहुंचती है तो ख़ड़े लेटे बैठे हर हाल में दुआ करता है. जब अल्लाह तकलीफ़ दूर कर देता है तो शुक्र नहीं अदा करता और अपनी पहली हालत की तरफ़ लौट जाता है. यह हाल ग़ाफ़िल का है. अक़्ल वाले मूमिन का हाल इसके विपरीत है. वह मुसीबत और बला पर सब्र करता है, राहत और आसायश में शुक्र करता है. तकलीफ़ और राहत की सारी हालतों में अल्लाह के समक्ष गिड़गिड़ाता और दुआ करता है. एक मक़ाम इससे भी ऊंचा है, जो ईमान वालों में भी ख़ास बन्दों को हासिल है कि जब कोई मुसीबत और बला आती है, उस पर सब्र करते हैं. अल्लाह की मर्ज़ी पर दिल से राज़ी रहते हैं और हर हाल में शुक्र करते हैं.

(8) यानी उम्मतें हैं.

(9) और कुफ़्र में जकड़े गए.

(10) जो उनकी सच्चाई की बहुत साफ़ दलीलें थीं, उन्होंने न माना और नबियों की तसदीक़ न की.

(11) ताकि तुम्हारे साथ तुम्हारे कर्मों के हिसाब से मामला फ़रमाएं.

(12) जिनमें हमारी तौहीद और बुत परस्ती की बुराई और बुत परस्तों की सज़ा का बयान है.

(13)और आख़िरत पर ईमान नहीं रखते.

(14) जिसमें बुतों की बुराई न हो.

(15) काफ़िरों की एक जमाअत ने नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर होकर कहा कि अगर आप चाहते हैं कि हम आप पर ईमान ले आएं तो आप इस क़ुरआन के सिवा दूसरा क़ुरआन लाइये जिसमें लात, उज़्ज़ा और मनात वग़ैरह देवी देवताओ की बुराई और उनकी पूजा छोड़ने का हुक्म न हो और अगर अल्लाह ऐसा क़ुरआन न उतारे तो आप अपनी तरफ़ से बना लीजिये या उसी क़ुरआन को बदल कर हमारी मर्ज़ी के मुताबिक़ कर दीजिये तो हम आप पर ईमान ले आएंगे, उनका यह कलाम या तो मज़ाक उड़ाने के तौर पर था या उन्होंने तजुर्बें और इम्तिहान के लिये ऐसा कहा था कि अगर यह दूसरा क़ुरआन बना लाएं या इसको बदल दें तो साबित हो जाएगा कि क़ुरआन अल्लाह की तरफ़ से नहीं है. अल्लाह तआला ने अपने हबीब सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को हुक्म दिया कि इसका यह जवाब दें जो आयत में बयान होता है.

(16) मैं इसमें कोई परिवर्तन, फेर बदल, कमी बेशी नहीं कर सकता. ये मेरा कलाम नहीं, अल्लाह का कलाम है.

(17) या उसकी किताब के आदेशों को बदलूं.

(18) और दूसरा क़ुरआन बनाना इन्सान की क्षमता ही से बाहर है और सृष्टि का इससे मजबूर होना ख़ूब ज़ाहिर हो चुका है.

(19) यानी इसकी तिलावत और पाठ केवल अल्लाह की मर्ज़ी से है.

(20) और चालीस साल तुम में रहा हूँ इस ज़माने में मैं तुम्हारे पास कुछ नहीं लाया और मैं ने तुम्हें कुछ नहीं सुनाया. तुमने मेरे हालात को ख़ूब देखा परखा है. मैं ने किसी से एक अक्षर नहीं, पढ़ा किसी किताब का अध्ययन नहीं किया. इसके बाद यह महान किताब लाया जिसके सामने हर एक कलाम तुच्छ और निरर्थक हो गया. इस किताब में नफ़ीस उलूम हैं, उसूल और अक़ीदे हैं, आदेश और संस्कार हैं, और सदव्यवहार की तालीम है, ग़ैबी ख़बरें हैं. इसकी फ़साहत व बलाग़त ने प्रदेश भर के बोलने वालों और भाषा शाख़ियों को गूंगा बहरा बना दिया है. हर समझ वाले के लिये यह बात सूरज से ज़्यादा रौशन हो गई है कि यह अल्लाह की तरफ़ से भेजी गई वही के बिना सम्भव ही नहीं,.

(21) कि इतना समझ सको कि यह क़ुरआन अल्लाह की तरफ़ से है, बन्दों की क़ुदरत नहीं कि इस जैसा बना सकें.

(22) उसके लिये शरीक बताए.

(23) बुत.

(24) यानी दुनिया के कामों में, क्योंकि आख़िरत और मरने के बाद उठने का तो वो अक़ीदा ही नहीं रखते.

(25) यानी उसका वुजूद ही नहीं, क्योंकि जो चीज़ मौजूद है, वह ज़रूर अल्लाह के इल्म में है.

(26) एक  दीने इस्लाम पर, जैसा कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के ज़माने में क़ाबील के हाबील को क़त्ल करने के वक़्त आदम अलैहिस्सलाम और उनकी सन्तान एक ही दीन पर थे. इसके बाद उनमें मतभेद हुआ. एक क़ौल यह है कि नूह अलैहिस्सलाम तक एक दीन पर रहे फिर मतभेद हुआ तो नूह अलैहिस्सलाम भेजे गए. एक क़ौल यह है कि नूह अलैहिस्सलाम के किश्ती से उतरते वक़्त सब लोग एक ही दीन पर थे. एक क़ौल यह है कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के एहद से सब लोग एक दीन पर थे यहाँ तक कि अम्र बिन लहयी ने दीन बदला. इस सूरत में “अन्नास” से मुराद ख़ास अरब होंगे. एक क़ौल यह है कि लोग एक दीन पर थे यानी कुफ़्र पर. अल्लाह तआला ने नबियों को भेजा, तो कुछ उनमें से ईमान लाए. कुछ उलमा ने कहा कि मानी ये हैं कि लोग अपनी पैदायश में नेक प्रकृति पर थे फिर उन में मतभेद हुआ. हदीस शरीफ़ में है, हर बच्चा फ़ितरत पर पैदा होता है, फिर उसके माँ बाप उसको यहूदी बनाते हैं या ईसाई बनाते है या मजूसी बनाते हैं. हदीस में फ़ितरत से फ़ितरते इस्लाम मुराद है.

(27) और हर उम्मत के लिये एक मीआद निश्चित न कर दी गई होती या आमाल का बदला क़यामत तक उठाकर न रखा गया होता.

(28) अज़ाब उतरने से.

(29) एहले बातिल का तरीक़ा है कि जब उनके ख़िलाफ़ मज़बूत दलील क़ायम होती है और वो जवाब से लाचार हो जाते हैं, तो उस दलील का ज़िक्र इस तरह छोड़ देते हैं जैसे कि वह पेश ही नहीं हुई और यह कहा करते हैं कि दलील लाओ ताकि सुनने वाले इस भ्रम में पड़ जाएं कि उनके मुक़ाबले में अब तक कोई दलील ही क़ायम नहीं की गई है. इस तरह काफ़िरों ने हुज़ूर के चमत्कार विशेषत: क़ुरआन शरीफ़ जो सबसे बड़ा चमत्कार है, उसकी तरफ़ से आँखें बन्द करके यह कहना शुरू किया कि कोई निशानी क्यों नहीं उतरी.मानो कि चमत्कार उन्होंने देखे ही नहीं और क़ुरआने पाक को वो निशानी समझते ही नहीं. अल्लाह तआला ने अपने रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से फ़रमाया कि आप फ़रमा दीजिये कि ग़ैब तो अल्लाह के लिये है, अब रास्ता देखो, मैं भी तुम्हारे साथ राह देख रहा हूँ. तक़रीर का जवाब यह है कि खुली दलील इस पर क़ायम है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर क़ुरआने पाक का ज़ाहिर होना बहुत ही अज़ीमुश-शान चमत्कार है क्योंकि हुज़ूर उनमें पैदा हुए, उनके बीच पले बढ़े. तमाम ज़माने हुज़ूर के उनकी आँखों के सामने गुज़रे. वो ख़ूब जानते हैं कि आप ने न किसी किताब का अध्ययन किया न किसी उस्ताद की शागिर्दी की. यकबारगी क़ुरआन आप पर ज़ाहिर हुआ और ऐसी बेमिसाल आलातरीन किताब का ऐसी शान के साथ उतरना वही के बग़ैर सम्भव ही नहीं. यह क़ुरआन के खुले चमत्कार होने की दलील है. और जब ऐसी मज़बूत दलील क़ायम है तो नबुव्वत का इक़रार करने के लिये किसी दूसरी निशानी का तलब करना बिल्कुल ग़ैर ज़रूरी है. ऐसी हालत में  इस निशानी का उतारना या न उतारना अल्लाह तआला की मर्ज़ी पर है, चाहे करे चाहे न करे. तो यह काम ग़ैब हुआ और इसके लिये इन्तिज़ार लाज़िम आया कि अल्लाह क्या करता है. लेकिन वह ग़ैर ज़रूरी निशानी जो काफ़िरों ने तलब की है, उतारे या न उतारे. नबुव्वत साबित हो चुकी और रिसालत का सुबूत चमत्कारों से कमाल को पहुंच चुका.

सूरए यूनुस – तीसरा रूकू

सूरए यूनुस – तीसरा रूकू

और जब कि हम आदमियों को रहमत का मज़ा देते हैं किसी तकलीफ़ के बाद जो उन्हें पहुंची थी जभी वो हमारी आयतों के साथ दाव चलते हैं (1)
तुम फ़रमा दो अल्लाह की ख़ुफ़िया तदबीर सबसे जल्द हो जाती है(2)
बेशक हमारे फ़रिश्ते तुम्हारे मक्र (कपट) लिख रहे हैं(3){21}
वही है कि तुम्हें ख़ुश्की और तरी में चलाता है(4)
यहां तक कि जब
तुम किश्ती में हो और वो अच्छी हवा से उन्हें लेकर चलें और उसपर ख़ुश हुए (6)
उनपर आंधी का झौंका आया और हर तरफ़ लहरों ने उन्हें आ लिया और समझ लिये कि हम घिर गए उस वक़्त अल्लाह को पुकारते हैं निरे उसके बन्दे होकर कि अगर तू इससे हमें बचा लेगा तो हम ज़रूर शुक्र अदा करने वालों में होंगे (7){22}
फिर अल्लाह जब उन्हें बचा लेता है जभी वो ज़मीन में नाहक़ ज़ियादती करने लगते हैं (8)
ऐ लोगो तुम्हारी ज़ियादती तुम्हारी ही जानों का वबाल हैं दुनिया के जीते जी बरत लो फिर तुम्हें हमारी तरफ़ फिरना है उस वक़्त हम तुम्हें जता देंगे जो तुम्हारे कौतुक थे (9){23}
दुनिया की ज़िन्दगी की कहावत तो ऐसी ही है जैसे वह पानी कि हमने आसमान से उतारा तो उसके कारण ज़मीन से उगने वाली चीज़ें सब घनी होकर निकालीं जो कुछ आदमी और चौपाए खाते हैं(10)
यहाँ तक कि जब ज़मीन ने अपना सिंगार ले लिया (11)
और ख़ूब सज गई और उसके मालिक समझे कि यह हमारे बस में आ गई (12)
हमारा हुक्म उसपर आया रात में या दिन में (13)
तो हमने उसे कर दिया काटी हुई मानो कल थी ही नहीं (14)
हम यूंही आयतें तफ़सील (विस्तार) से बयान करते हैं ग़ौर करने वालों के लिये (15){24}
और अल्लाह सलामती के घर की तरफ़ पुकारता है (16)
और जिसे चाहे सीधी राह चलाता है(17){25}
भलाई वालों के लिये भलाई है और इस से भी अधिक (18)
और उनके मुंह पर न चढ़ेगी सियाही और ख़्वारी (19)
वही जन्नत वाले हैं, वो उसमें हमेशा रहेंगे {26} और जिन्होंने बुराइयाँ कमाई (20)
तो बुराई का बदला उसी जैसा (21)
और उनपर ज़िल्लत चढ़ेगी, उन्हें अल्लाह से बचाने वाला कोई न होगा, मानो उनके चेहरों पर अंधेरी रात के टुकड़े चढ़ा दिये हैं (22)
वही दोज़ख़ वाले हैं वो उसमें हमेशा रहेंगे{27} और जिस दिन हम उन सब को उठाएंगे (23)
फिर मुश्रिकों से फ़रमाएंगे अपनी जगह रहो तुम और तुम्हारे शरीक (24)
तो हम उन्हें मुसलमानों से जुदा कर देंगे और उनके शरीक उनसे कहेंगे तुम हमें कब पूजते थे(25){28}
तो अल्लाह गवाह काफ़ी है हम में और तुम में कि हमें तुम्हारे पूजने की ख़बर भी न थी{29} यहाँ पर हर जान जांच लेगी जो आगे भेजा(26)
और अल्लाह की तरफ़ फेरे जाएंगे जो उनका सच्चा मौला है और उनकी सारी बनावटें (27)
उनसे गुम हो जाएंगी.(28){30}

तफ़सीर
सूरए यूनुस – तीसरा रूकू

(1) मक्का वालों पर अल्लाह तआला ने दुष्काल डाल दिया जिसकी मुसीबत में वो सात बरस गिरफ़्तार रहे यहाँ तक कि हलाकत के क़रीब पहुंचे. फिर उसने रहम फ़रमाया, बारिश हुई, ज़मीनों पर हिरयाली छाई. तो अगरचे इस तकलीफ़ और राहत दोनों में क़ुदरत की निशानियाँ थीं और तकलीफ़ के बाद राहत बड़ी महान नेअमत थी, इसपर शुक्र लाज़िम था, मगर बजाय इसके उन्होंने नसीहत न मानी और फ़साद व कुफ़्र की तरफ़ पलटें.

(2) और उसका अज़ाब देर नहीं करता.

(3) और तुम्हारी छुपवाँ तदबीरें कर्मों का लेखा जोखा रखने वाले फ़रिश्तों पर भी छुपी हुई नहीं हैं तों जानने वाले ख़बर रखने वाले अल्लाह से कैसे छुप सकती हैं.

(4) और तुम्हें दूरियाँ तय करने की क़ुदरत देता है. ख़ुश्की में तुम पैदल और सवार मंज़िलें तय करते हो और नदियों में, किश्तियों और जहाजों से सफ़र करते हो. वह तुम्हें ख़ुश्की और तरी दोनों में घूमने फिरने के साधन अता फ़रमाता है.

(5) यानी किश्तियाँ.

(6) कि हवा अनुकूल है, अचानक.

(7) तेरी नेअमतों के, तुझपर ईमान लाकर और ख़ास तेरी इबादत करके.

(8) और वादे के ख़िलाफ़ करके कुफ़्र और गुनाहों में जकड़े जाते हैं.

(9) और उनका तुम्हें बदला देंगे.

(10) ग़ल्ले और फल और हरियाली.

(11) ख़ूब फूली, हरी भरी और तरो ताज़ा हुई.

(12) कि खेतियाँ तैयार हो गई, फल पक गए, ऐसे वक़्त.

(13) यानी अचानक हमारा अज़ाब आया, चाहे बिजली गिरने की शक्ल में या ओले बरसने या आंधी चलने की सूरत में.

(14) यह उन लोगों के हाल की एक मिसाल है जो दुनिया के चाहने वाले हैं और आख़िरत की उन्हें कुछ परवाह नहीं. इसमें बहुत अच्छे तरीक़े पर समझाया गया है कि दुनियावी ज़िन्दगानी उम्मीदों का हरा बाग़ है, इसमें उम्र खोकर जब आदमी उस हद पर पहुंचता है जहाँ उसको मुराद मिलने का इत्मीनान हो और वह कामयाबी के नशे में मस्त हो, अचानक उसको मौत पहुंचती है और वह सारी लज़्ज़तों और नेअमतों से मेहरूम हो जाता है. क़तादा  ने कहा कि दुनिया का तलबगार जब बिल्कुल बेफ़िक्र होता है, उस वक़्त उसपर अल्लाह का अज़ाब आता है और उसका सारा सामान जिससे उसकी उम्मीदें जुड़ी थीं, नष्ट हो जाता है.

(15) ताकि वो नफ़ा हासिल करें और शक तथा वहम के अंधेरों से छुटकारा पाएं और नश्वर दुनिया की नापायदारी से बाख़बर हों.

(16) दुनिया की नापायदारी बयान फ़रमाने के बाद हमेशगी की दुनिया की तरफ़ दावत दी. क़तादा ने कहा कि दारे. सलाम जन्नत है. यह अल्लाह की भरपूर रहमत और मेहरबानी है कि अपने बन्दों को जन्नत की दावत दी.

(17) सीधी राह दीने इस्लाम है. बुख़ारी की हदीस में है, नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में फ़रिश्ते हाज़िर हुए, आप ख़्वाब में थे. उनमें से कुछ ने कहा कि आप ख़्वाब में है और कुछ ने कहा कि आँखें ख़्वाब में है, दिल बेदार है. कुछ कहने लगे कि इनकी कोई मिसाल तो बयान करो, तो उन्होंने कहा, जिस तरह किसी शख़्स ने एक मकान बनाया और उसमें तरह तरह की नेअमतें उपलब्ध कीं और एक बुलाने वाले को भेजा कि लोगों को बुलाए. जिसने उस बुलाने वाले की फ़रमाँबरदारी की, उस मकान में दाख़िल हुआ और उन नेअमतों को खाया पिया और जिसने बुलाने वाले की आवाज़ न मानी, वह मकान में दाख़िल न हो सका न कुछ खा सका. फिर वो कहने लगे कि इस मिसाल पर गहराई से ग़ौर करो कि समझ में आए. मकान जन्नत है, बुलाने वाले मुहम्मद हैं, जिसने उनकी फ़रमाँबरदारी की, उसने अल्लाह की फ़रमाँबरदारी की.

(18) भलाई वालों से अल्लाह के फ़रमाँबरदार बन्दे, ईमान वाले मुराद हैं. और यह जो फ़रमाया कि उनके लिये भलाई है, इस भलाई से जन्नत मुराद है. और “इससे भी ज़्यादा”का मतलब है, अल्लाह का दीदार, मुस्लिम शरीफ़ की हदीस में है कि जन्नतियों के जन्नत में दाख़िल होने के बाद अल्लाह तआला फ़रमाएगा, क्या तुम चाहते हो कि तुमपर और ज़्यादा इनायत करूं. वो अर्ज़ करेंगे या रब, क्या तुने हमारे चेहरे सफ़ेद नहीं किये, क्या तूने हमें जन्नत में दाख़िल नहीं फ़रमाया़ क्या तूने हमें दोज़ख़ से निजात नहीं दी. हुज़ूर ने फ़रमाया, फिर पर्दा उठा दिया जाएगा तो अल्लाह का दीदार उन्हें हर नेअमत से ज़्यादा प्यारा होगा. सही हदीस की किताबों में बहुत सी रिवायतें यह साबित करती हैं कि आयत में “इससे भी ज़्यादा” से अल्लाह का दीदार मुराद है.

(19) कि यह बात जहन्नम वालों के लिये है.

(20) यानी कुफ़्र और गुनाह में जकड़ गए.

(21) ऐसा नहीं कि जैसे नेकियों का सवाब दस गुना और सात सौ गुना किया जाता है ऐसे ही बदियों का अज़ाब भी बढ़ा दिया जाए, बल्कि जितनी बदी होगी उतना ही अज़ाब किया जाएगा.

(22) यह हाल होगा उनकी रूसियाही का, ख़ुदा की पनाह.

(23) और तमाम सृष्टि को हिसाब के मैदान में जमा करेंगे,

(24) यानी वो बुत जिन्हें तुम पूजते थे.

(25) क़यामत के दिन एक घड़ी ऐसी सख़्ती की होगी कि बुत अपने पुजारियों की पूजा का इनकार कर देंगे और अल्लाह की क़सम खाकर कहेंगे कि हम न सुनते थे, न देखते थे, न जानते थे, न समझते थे कि तुम हमें पूजते हो. इसपर बुत परस्त कहेंगे कि अल्लाह की क़सम हम तुम्हीं को पूजते थे तो बुत कहेंगे.

(26) यानी उस मैदान में सब को मालूम हो जाएगा कि उन्होंने पहले जो कर्म किये थे वो कैसे थे. अच्छे या बुरे, नफ़ा वाले या घाटे वाले.

(27) बुतों को ख़ुदा का शरीक बताना और मअबूद ठहराना.

(28) और झूठी और बेहक़ीक़त साबित होंगी.

सूरए यूनुस – चौथा रूकू

सूरए यूनुस – चौथा रूकू

तुम फ़रमाओ तुम्हें कौन रोज़ी देता है आसमान और ज़मीन से(1)
या कौन मालिक है कान और आँखों का (2)
और कौन निकालता है ज़िन्दा को मुर्दे से और निकालता है मुर्दा को ज़िन्दा से(3)
और कौन तमाम कामों की तदबीर (युक्ति) करता है तो अब कहेंगे कि अल्लाह (4)
तो तुम फ़रमाओ तो क्यों नहीं डरते(5){31}
तो यह अल्लाह है तुम्हारा सच्चा रब (6)
फिर हक़ के बाद क्या है मगर गुमराही (7)
फिर कहाँ फिरे जाते हो {32} यूंही साबित हो चुकी है तेरे रब की बात फ़ासिक़ों (दुराचारियों) (8)
पर तो वो ईमान नहीं लाएंगे{33} तुम फ़रमाओ तुम्हारे शरीकों में (9)
कोई ऐसा है कि पहले बनाए फिर फ़ना (विनाश) के बाद दोबारा बनाए (10)
तुम फ़रमाओ अल्लाह पहले बनाता है फिर फ़ना के बाद दोबारा बनाएगा तो कहाँ औंधे जाते हो(11{34}
तुम फ़रमाओ तुम्हारे शरीकों में कोई ऐसा है कि हक़ की राह दिखाए (12)
तुम फ़रमाओ कि अल्लाह हक़ की राह दिखाता है, तो क्या जो हक़ की राह दिखाए उसके हुक्म पर चलना चाहिये या उसके जो ख़ुद ही राह न पाए जब तक राह न दिखाया जाए (13)
तो तुम्हें क्या हुआ कैसा हुक्म लगाते हो {35} और(14)
उनमें अक्सर तो नहीं चलते मगर गुमान पर (15)
बेशक गुमान हक़ का कुछ काम नहीं देता, बेशक अल्लाह उनके कामों को जानता है {36} और क़ुरआन की यह शान नहीं कि कोई अपनी तरफ़ से बनाले बे अल्लाह के उतारे(16)
हाँ वह अगली किताबों की तस्दीक़ {पुष्टि} है (17)
और लौह में जो कुछ लिखा है सबकी तफ़सील है इसमें कुछ शक नहीं है जगत के रब की तरफ़ से है{37} क्या ये कहते हैं (18)
कि उन्होंने इसे बना लिया है, तुम फ़रमाओ (19)
तो इस जैसी कोई एक सूरत ले आओ और अल्लाह को छोड़कर जो मिल सकें सबको बुला लाओ(20)
अगर तुम सच्चे हो {38} बल्कि उसे झुटलाया जिसके इल्म पर क़ाबू न पाया(21)
और अभी उन्होंने इसका अंजाम नहीं देखा, (22)
ऐसे ही उनसे अगलों ने झुटलाया था (23)
तो देखो ज़ालिमों का कैसा अंजाम हुआ(24){39}
और उनमें (25)
कोई इस (26)
पर ईमान लाता है और उनमें कोई इस पर ईमान नहीं लाता है, और तुम्हारा रब फ़सादियों को ख़ूब जानता है(27){40}

तफ़सीर
सूरए यूनुस – चौथा रूकू

(1) आसमान से मेंह बरसाकर और ज़मीन में हरियाली उगाकर.

(2) और ये हवास या इन्द्रियाँ तुम्हे किसने दिये है, किसने ये चमत्कार तुम्हें प्रदान किये हैं, कौन इन्हें मुद्दतों सुरक्षित रखता है.

(3) इन्सान को वीर्य से और वीर्य को इन्सान से, चिड़िया को अन्डे से और अन्डे को चिड़िया से. मूमिन को काफ़िर से और  काफ़िर को मूमिन से. आलिम को जाहिल से और जाहिल को आलिम से.

(4) और उसकी सम्पूर्ण क़ुदरत का ऐतिराफ़ करेंगे और इसके सिवा कुछ चारा न होगा.

(5) उसके अज़ाब से, और क्यों बुतों को पूजते और उनको मअबूद बनाते हो जबकि वो कुछ क़ुदरत नहीं रखते.

(6) जिसकी ऐसी भरपूर क़ुदरत है.

(7) यानी जब ऐसी खुली दलीलें और साफ़ प्रमाणों से साबित हो गया कि इबादत के लायक़ सिर्फ़ अल्लाह है, तो उसके अलावा सब बातिल और गुमराही, और जब तुमने उसकी क़ुदरत को पहचान लिया और उसकी क्षमता का ऐतिराफ़ कर लिया तो.

(8) जो कुफ़्र में पक्के हो गए. रब की बात से मुराद है अल्लाह की तरफ़ से जो लिख दिया गया. या अल्लाह तआला का इरशाद “लअम लअन्ना जहन्नमा.”… (मैं तुम सबसे जहन्नम भर दूंगा – सूरए अअराफ़, आयत 18)

(9) जिन्हें ऐ मुश्रिकों, तुम मअबूद ठहराते हो.

(10) इसका जवाब ज़ाहिर है कि कोई ऐसा नहीं क्यों कि मुश्रिक भी यह जानते हैं कि पैदा करने वाला अल्लाह ही है, लिहाज़ा ऐ मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैका वसल्लम.

(11) और ऐसी रौशन दलीलें क़ायम होने के बाद सीधे रास्तें से मुंह फेरते हो.

(12) तर्क और दलीलें क़ायम करके, रसूल भेजकर, किताबें उतारकर,  समझ वालों को अक़्ल और नज़र अता फ़रमा कर. इसका खुला जवाब यह है कि कोई नहीं, तो ऐ हबीब.

(13) जैसे कि तुम्हारे बुत हैं किसी जगह जा नहीं सकते जब तक कि कोई उठा ले जाने वाला उन्हें उठाकर न ले जाए. और न किसी चीज़ की हक़ीक़त को समझें और न सच्चाई की राह को पहचानें, बग़ैर इसके कि अल्लाह तआला उन्हें ज़िन्दगी, अक़्ल और नज़र दे. तो जब उनकी मजबूरी का यह आलम है तो वो दूसरों को क्या राह बता सकेंगे. ऐसों को मअबूद बनाना, फ़रमाँबरदारी करना कितना ग़लत और बेहूदा है.

(14) मुश्रिक लोग.

(15) जिसकी उनके पास कोई दलील नहीं, न उसके ठीक होने का इरादा और यक़ीन. शक में पड़े हुए हैं और यह ख़याल करते हैं कि पहले लोग भी बुत पूजते थे, उन्होंने कुछ तो समझा होगा.

(16) मक्का के काफ़िरों ने यह वहम किया था कि क़ुरआन शरीफ़ सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने ख़ुद बना लिया है. इस आयत में उनका यह वहम दूर फ़रमाया गया कि क़ुरआने करीम ऐसी किताब ही नहीं जिसकी निस्बत शक हो सके. इसकी मिसाल बनाने से सारी सृष्टि लाचार है तो यक़ीनन वह अल्लाह की उतारी हुई किताब है.

(17) तौरात और इंजील वग़ैरह की.

(18) काफ़िर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की निस्बत.

(19)अगर तुम्हारा यह ख़याल है तो तुम भी अरब हो, ज़बान और अदब, फ़साहत और बलाग़त के दावेदार हो, दुनिया में कोई इन्सान ऐसा नहीं हैं जिसके कलाम के मुक़ाबिल कलाम बनाने को तुम असम्भव समझते हो. अगर तुम्हारे ख़याल में यह इन्सान का कलाम है.

(20 )और उनसे मदद लो और सब मिलकर क़ुरआन जेसी एक सूरत तो बनाओ.

(21) यानी क़ुरआन शरीफ़ को समझने और जानने के बग़ैर उन्होंने इसे झुटलाया और यह निरी जिहालत है कि किसी चीज़ को जाने बग़ैर उसका इन्कार किया जाए. क़ुरआन शरीफ़ में ऐसे उलूम शामिल होना, जिसे इल्म और अक़्ल वाले न छू सकें, इस किताब की महानता और बुज़ुर्गी ज़ाहिर करता है. तो ऐसी उत्तम उलूम वाली किताब को मानना चाहिये था न कि इसका इन्कार करना.

(22) यानी उस अज़ाब को जिसकी क़ुरआन शरीफ़ में चुनौतियाँ हैं.

(23)दुश्मन से अपने रसूलों को, बग़ैर इसके कि उनके चमत्कार और निशानियाँ देखकर सोच समझ से काम लेते.

(24) और पहली उम्मतें अपने नबियों को झुटलाकर कैसे कैसे अज़ाबों में जकड़ी गई तो ऐ हबीब सल्लल्लाहो अलैका वसल्लम, आप को झुटलाने वालों को डरना चाहिये.

(25)मक्का वाले.

(26) नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम या क़ुरआन शरीफ़

(27) जो दुश्मनी से ईमान नहीं लाते और कुफ़्र पर अड़े रहते हैं.

सूरए यूनुस – पाँचवां रूकू

सूरए यूनुस – पाँचवां रूकू

और अगर वो तुम्हें झुटलाएं (1)
तो फ़रमा दो कि मेरे लिये मेरी करनी और तुम्हारे लिये तुम्हारी करनी (2)
तुम्हें मेरे काम से इलाक़ा नहीं और मुझे तुम्हारे काम से तअल्लुक़ नहीं (3){41}
और उनमें कोई वो हैं जो तुम्हारी तरफ़ कान लगाते हैं(4)
तो क्या तुम बहरों को सुना दोगे अगरचे उन्हें अक़ल न हो (5){42}
और उनमें कोई तुम्हारी तरफ़ तकता है(6)
क्या तुम अंधों को राह दिखा दोगे अगरचे वो न सूझें{43} बेशक अल्लाह लोगों पर कुछ ज़ुल्म नहीं करता(7)
हाँ लोग ही अपनी जानों पर ज़ुल्म करते हैं (8){44}
और जिस दिन उन्हें उठाएगा(9)
मानों दुनिया में न रहे थे मगर उस दिन की एक घड़ी (10)
आपस में पहचान करेंगे(11)
कि पूरे घाटे में रहे वो जिन्होंने अल्लाह से मिलने को झूटलाया और हिदायत पर न थे(12){45}
और अगर हम तुम्हें दिखा दें कुछ (13)
उसमें से जो उन्हें वादा दे रहे हैं (14)
या तुम्हें पहले ही अपने पास बुला ले(15)
हर हाल में उन्हें हमारी तरफ़ पलट कर आना है फिर अल्लाह गवाह है (16)
उनके कामों पर {46} और हर उम्मत में एक रसूल हुआ (17)
जब उसका रसूल उनके पास आता(18)
उनपर इन्साफ़ का फ़ैसला कर दिया जाता (19)
और उनपर ज़ुल्म न होता {47} और कहते हैं यह वादा कब आएगा अगर तुम सच्चे हो (20){48}
तुम फ़रमाओ मैं अपनी जान के बुरे भले का (ज़ाती) इख़्तियार नहीं रखता मगर जो अल्लाह चाहे(21)
हर गिरोह का एक वादा है(22)
जब उनका वादा आएगा तो एक घड़ी न पीछे हटे न आगे बढ़े {49} तुम फरमाओ भला बताओ तो अगर उसका अज़ाब और(23)
तुमपर रात को आए (24)
या दिन को (25)
तो उसमें वह कौन सी चीज़ है कि मुजरिमों को जिसकी जल्दी है {50} तो क्या जब(26)
हो पड़ेगा उस वक़्त उसका यक़ीन करेंगे(27)
क्यों अब मानते हो पहले तो (28)
इसकी जल्दी मचा रहे थे {51} फिर ज़ालिमों से कहा जाएगा हमेशा का अज़ाब चखो तुम्हें कुछ और बदला न मिलेगा मगर वही जो कमाते थे (29){52}
और तुमसे पूछते हैं क्या वह (30) हक़ है, तुम फ़रमाओ, हाँ मेरे रब की क़सम बेशक वह ज़रूर हक़ है और तुम कुछ थका न सकोगे(31){53}

तफ़सीर
सूरए यूनुस – पाँचवां रूकू

(1) ऐ मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैका वसल्लम, और उनकी राह पर आने और सच्चाई और हिदायत क़ुबूल करने की उम्मीद टूट जाए.

(2) हर एक अपने अमल का बदला पाएगा.

(3) किसी के अमल पर दूसरे की पकड़ न होगी. जो पकड़ा जाएगा अपने कर्मों पर पकड़ा जाएगा. यह फ़रमान चेतावनी के तौर पर है कि तुम नसीहत नहीं मानते और हिदायत क़ुबूल नहीं करते तो इसका वबाल ख़ुद तुमपर होगा, किसी दूसरे को इससे नुक़सान नहीं.

(4) और आपसे क़ुरआन शरीफ़ और दीन के अहकाम सुनते हैं और दुश्मनी की वजह से दिल में जगह नहीं देते और क़ुबूल नहीं करते, तो यह सुनना बेकार है, वो हिदायत से नफ़ा न पाने में बेहरों की तरह हैं.

(5) और वो न हवास से काम लें न अक़्ल से.

(6) और सच्चाई की दलीलों और नबुव्वत की निशानियों को देखता है, लेकिन तस्दीक़ नहीं करता और इस देखने से नतीजा नहीं निकलता, फ़ायदा नहीं उठाता, दिल की नज़र से मेहरूम और बातिन यानी अन्दर का अन्धा है.

(7) बल्कि उन्हें हिदायत और राह पाने के सारे सामान अता फ़रमाता है और रौशन दलीलें क़ायम फ़रमाता है.

(8) कि इन दलीलों में ग़ौर नहीं करते और सच्चाई साफ़ स्पष्ट हो जाने के बावुजूद ख़ुद गुमराही में गिरफ़्तार होते हैं.

(9) क़ब्रों से, हिसाब के मैदान में हाज़िर करने के लिये, तो उस दिन की हैबत और वहशत से यह हाल होगा कि वो दुनिया में रहने की मुद्दत को बहुत थोड़ा समझेंगे और यह ख़याल करेंगे कि….

(10) और इसकी वजह यह है कि चूंकि काफ़िरों ने दुनिया की चाह में उम्रें नष्ट कर दीं और अल्लाह की फ़रमाँबरदारी, जो आज काम आती, बजा न लाए तो उनकी ज़िन्दगी का वक़्त उनके काम न आया. इसलिये वो उसे बहुत ही कम समझेंगे.

(11) क़ब्रों से निकलते वक़्त तो एक दूसरे को पहचानेंगे जैसा दुनिया में पहचानते थे, फिर क़यामत के दिन की हौल और दहशतनाक मन्ज़र देखकर यह पहचान बाक़ी न रहेगी. एक क़ौल यह है कि क़यामत के दिन पल पल हाल बदलेंगे. कभी ऐसा हाल होगा कि एक दूसरे को पहचानेंगे, कभी ऐसा कि न पहचानेंगे और जब पहचानेंगे तो कहेंगे.

(12) जो उन्हें घाटे से बचाती.

(13)अज़ाब.

(14) दुनिया ही में आपके ज़मानए हयात में, तो वह मुलाहिज़ा कीजिये.

(15) तो आख़िरत में आपको उनका अज़ाब दिखाएंगे.  इस आयत से साबित हुआ कि अल्लाह तआला अपने रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को काफ़िरों के बहुत से अज़ाब और उनकी ज़िल्लत और रूसवाइयाँ आपकी दुनियावी ज़िन्दगी ही में दिखाएगा. चुनांचे बद्र वग़ैरह में दिखाई गई और जो अज़ाब काफ़िरों के लिये कुफ़्र और झुटलाने के कारण आख़िरत में मुक़र्रर फ़रमाता है वह आख़िरत में दिखाएगा.

(16) ख़बर वाला है, अज़ाब देने वाला है.

(17) जो उन्हें सच्चाई की तरफ़ बुलाता और फ़रमाबँरदारी और ईमान का हुक्म करता.

(18) और अल्लाह के आदेशों की तबलीग़ या प्रचार करता, तो कुछ लोग ईमान लाते और कुछ झुटलाते और कुछ इन्कारी हो जाते हो.

(19) कि रसूल को और उनपर ईमान लाने वाले को निजात दी जाती और झुटलाने वालों को अज़ाब से हलाक कर दिया जाता. आयत की तफ़सीर में दूसरा क़ौल यह है कि इस में आख़िरत का बयान है और मानी ये हैं कि क़यामत के दिन हर उम्मत के लिये एक रसूल होगा जिसकी तरफ़ वह मन्सूब होगी. जब वह रसूल हिसाब के मैदान में आएगा और मूमिन व काफ़िर पर शहदात देगा तब उनमें फ़ैसला किया जायगा कि ईमान वालों को निजात होगी और काफ़िर अज़ाब में जकड़े जायेंगे.

(20) जब आयत “इम्मा नूरियन्नका” में अज़ाब की चेतावनी दी गई तो काफ़िरों ने सरकशी से यह कहा कि ऐ मुहम्मद, जिस अज़ाब का आप वादा देते हैं वह कब आएगा. उसमें क्या देर है. उस अज़ाब को जल्द लाइये. इसपर यह आयत उतरी.

(21) यानी दुश्मनों पर अज़ाब उतरना और दोस्तों की मदद करना और उन्हें ग़ल्बा देना, यह सब अल्लाह की मर्ज़ी है और अल्लाह की मर्ज़ी में.

(22) उसके हलाक और अज़ाब का एक समय निर्धारित है, लौहे मेहफ़ूज़ में लिखा हुआ है.

(23) जिसकी तुम जल्दी करते हो.

(24) जब तुम ग़ाफ़िल पड़े सोते हो.

(25) जब तुम रोज़ी रोटी के कामों में मश्ग़ूल हो.

(26) वह अज़ाब तुम पर नाज़िल.

(27) उस वक़्त का यक़ीन कुछ फ़ायदा न देगा और कहा जाएगा.

(28) झुटलाने और मज़ाक़ उड़ाने के तौर पर.

(29) यानी दुनिया में जो अमल करते थे और नबियों को झुटलाने और कुफ़्र में लगे रहते थे उसी का बदला.

(30) उठाए जाने और अज़ाब, जिसके नाज़िल होने की आपने हमें ख़बर दी.

(31) यानी वह अज़ाब तुम्हें ज़रूर पहुंचेगा.

सूरए यूनुस – छटा रूकू

सूरए यूनुस – छटा रूकू

और अगर हर ज़ालिम जान ज़मीन में जो कुछ है(1)
सब की मालिक होती ज़रूर अपनी जान छूड़ाने में देती(2)
और दिल में चुपके चुपके पशेमान हुए जब अज़ाब देखा और उनमें इन्साफ़ से फ़ैसला कर दिया गया और उनपर ज़ुल्म न होगा{54} सुन लो बेशक अल्लाह ही का है जो कुछ आसमानों में है और ज़मीन में (3)
सुन लो बेशक अल्लाह का वादा सच्चा है मगर उनमें अक्सर को ख़बर नहीं {55} वह जिलाता और मारता है और उसी की तरफ़ फिरोगे{56} ऐ लोगो तुम्हारे पास तुम्हारे रब की तरफ़ से नसीहत आई (4)
और दिलों की सेहत और हिदायत और रहमत ईमान वालों के लिये {57} तुम फ़रमाओ अल्लाह ही के फ़ज़्ल (अनुकम्पा) और उसी की रहमत और उसी पर चाहिये कि ख़ुशी करें(5)
वह उनके सब धन दौलत से बेहतर है {58} तुम फ़रमाओ भला बताओ तो वह जो अल्लाह ने तुम्हारे लिये रिज़्क़ (जीविका) उतारा उसमें तुम ने अपनी तरफ़ से हराम व हलाल ठहरा लिया (6)
तुम फ़रमाओ क्या अल्लाह ने इसकी तुम्हें इजाज़त दी या अल्लाह पर झूट बांधते हो (7){59}
और क्या गुमान है उनका जो अल्लाह पर झूट बांधते हैं कि क़यामत में उनका क्या हाल होगा, बेशक अल्लाह लोगों पर फ़ज़्ल करता है (8)
मगर अक्सर लोग शुक्र नहीं करते{60}

तफ़सीर
सूरए यूनुस – छटा रूकू

(1) माल मत्ता, ख़ज़ाना और दफ़ीना.

(2) और क़यामत के दिन उसको रिहाई के लिये फ़िदिया कर डालती. मगर यह फ़िदिया क़ुबूल नहीं और तमाम दुनिया की दौलत ख़र्च करके भी रिहाई सम्भव नहीं. जब क़यामत में यह मंज़र पेश आया और क़ाफ़िरों की उम्मीदें टूटीं.

(3) तो काफ़िर किसी चीज़ का मालिक ही नहीं बल्कि वह ख़ुद भी अल्लाह का ममलूक है, उसका फ़िदिया देना सम्भव ही नहीं,

(4) इस आयत मे क़ुरआन शरीफ़ के आने और इसमें मौज़ूद नसीहतों, शिफ़ा, हिदायत और रहमत का बयान है कि यह किताब इन बड़े फ़ायदों से ओतप्रोत है. नसीहत के मानी है वह चीज़ जो इन्सान को उसकी पसन्द की चीज़ की तरफ़ बुलाए और ख़तरे से बचाए. ख़लील ने कहा कि यह नेकी की नसीहत करना है जिससे दिल में नर्मी पैदा हो. शिफ़ा से मुराद यह है कि क़ुरआन शरीफ़ दिल के अन्दर की बीमारियों को दूर करता है. दिल की ये बीमारियाँ दुराचार, ग़लत अक़ीदे और मौत की तरफ़ ले जाने वाली जिहालत हैं. क़ुरआने पाक इन तमाम रोगों को दूर करता है. क़ुरआने करीम की विशेषता में हिदायत भी फ़रमाया, क्योंकि वह गुमराही से बचाता और सच्चाई की राह दिखाता है और ईमान वालों के लिये रहमत, इसलिये फ़रमाया कि वह इससे फ़ायदा उठाते हैं.

(5) किसी प्यारी और मेहबूब चीज़ के पाने से दिल को जो लज़्ज़त हासिल होती है उसको फ़रह कहते हैं. मानी ये हैं कि ईमान वालों को अल्लाह के फ़ज़्ल और रहमत पर ख़ुश होना चाहिये कि उसने उन्हें नसीहतों, और दिलों की अच्छाई और ईमान के साथ दिल की राहत और सुकून अता फ़रमाए. हज़रत इब्ने अब्बास व हसन व क़तादा ने कहा कि अल्लाह के फ़ज़्ल से इस्लाम और उसकी रहमत से क़ुरआन मुराद है. एक क़ौल यह है कि फ़ज़्लुल्लाह से क़ुरआन और रहमत से हदीसें मुराद हैं.

(6) इस आयत से साबित हुआ कि किसी चीज़ को अपनी तरफ़ से हलाल या हराम करना मना और ख़ुदा पर झूट जोड़ना है. आजकल बहुत लोग इसमें जकड़े हुए हैं. ममनूआत यानी वर्जित चीज़ों को हलाल कहते हैं और जिन चीज़ों के इस्तमाल की अल्लाह व रसूल न इजाज़त दी है, उसको हराम. कुछ सूद को हलाल करने पर अड़े हैं, कुछ तस्वीरों को, कुछ खेल तमाशों को, कुछ औरतों की बेक़ैदियों और बेपर्दगीयों को, कुछ भूख हड़ताल को, जो आत्म हत्या है, हलाल समझते हैं. और कुछ लोग हलाल चीज़ों को हराम ठहराने पर तुले हुए हैं, जैसे मीलाद की महफ़िल को, फ़ातिहा को, ग्यारहवीं को और ईसाले सवाब के दूसरे तरीक़ों को, कुछ मीलाद शरीफ़ और फ़ातिहा व तोशा की शीरीनी और तबर्रूक को, जो सब हलाल और पाक चीज़ें हैं, नाजायज़ और वर्जित बताते हैं.

(8) कि रसूल भेजता है, किताबें नाज़िल फ़रमाता है, और हलाल व हराम से बाख़बर फ़रमाता है.

सूरए यूनुस – सातवाँ रूकू

सूरए यूनुस – सातवाँ रूकू

और तुम किसी काम में हो(1)
और उसकी तरफ़ से कुछ क़ुरआन पढ़ो और तुम लोग(2)
कोई काम करो हम तुमपर गवाह होते हैं जब तुम उसको शुरू करते हो, और तुम्हारे रब से ज़र्रा भर कोई चीज़ ग़ायब नहीं ज़मीन में न आसमान में और न उससे छोटी और न उससे बड़ी कोई नहीं जो एक रौशन किताब में न हो (3){61}
सुन लो बेशक अल्लाह के वलियों पर न कुछ डर है न कुछ ग़म (4){62}
उन्हें ख़ुशख़बरी है दुनिया की ज़िन्दगी में (5)
और आख़िरत में, अल्लाह की बातें बदल नहीं सकती(6)
यही बड़ी कामयाबी है {64} और तुम उनकी बातों का ग़म न करो(7)
बेशक इज़्ज़त सारी अल्लाह ही के लिये है(8)
वही सुनता जानता है {65} सुन लो बेशक अल्लाह ही के मुल्क हैं जितने आसमानों में हैं और जितने ज़मीनों में (9)
और काहे के पीछे जा रहे हैं (10)
वो जो अल्लाह के सिवा शरीक पुकार रहे हैं, वो तो पीछे नहीं जाते मगर गुमान के और वो तो नहीं मगर अटकलें दौड़ाते(11){66}
वही है जिसने तुम्हारे लिये रात बनाई कि उसमें चैन पाओ और दिन बनाया तुम्हारी आँखें खोलता (13)
बेशक उसमें निशानियां हैं सुनने वालों के लिये (14){67}
बोले अल्लाह ने अपने लिये औलाद बनाई (15)
पाकी उसको, वही बेनियाज़ है, उसी का है जो कुछ आसमानों में और जो कुछ ज़मीन में(16)
तुम्हारे पास इसकी कोई भी सनद नहीं, क्या अल्लाह पर वह बात बताते हो जिसका तुम्हें इल्म नहीं {68} तुम फ़रमाओ वो जो अल्लाह पर झूट बांधते हैं उनका भला न होगा {69} दुनिया में कुछ बरत लेना है फिर उन्हें हमारी तरफ़ वापस आना फिर हम उन्हें सख़्त अज़ाब चखाएंगे बदला उनके कुफ़्र का{70}

सूरए यूनुस – सातवाँ रूकू

(1) ऐ हबीबे अकरम सल्लल्लाहो अलैका वसल्लम.

(2) ऐ मुसलमानों.

(3) “किताबे मुबीन” यानी रौशन किताब से लोहे मेहफ़ूज़ मुराद है.

(4) “वली” की अस्ल विला से है जो क़ुर्ब और नुसरत के मानी में हैं. अल्लाह का वली वह है जो फ़र्ज़ों से अल्लाह का क़ुर्ब हासिल करें और अल्लाह की फ़रमाँबरदारी में लगा रहे और उसका दिल अल्लाह के जलाल के नूर को पहचानने में डूबा हो जब देखे, अल्लाह की क़ुदरत की दलीलों को देखे और जब सुने अल्लाह की आयतें ही सुने, और जब बोले तो अपने रब की प्रशंसा और तअरीफ़ ही के साथ बोले, और जब हरकत करे अल्लाह की आज्ञा के पालन में ही हरकत करे, और जब कोशिश करे उसी काम में कोशिश करे जो अल्लाह के क़रीब पहुंचने का ज़रिया हो. अल्लाह के ज़िक्र से न थके और दिल की आँख से ख़ुदा के सिवा ग़ैर को न देखे. यह विशेषता वलियों की है. बन्दा जब इस हाल पर पहुंचता है तो अल्लाह उसका वली और सहायक और मददगार होता है. मुतकल्लिमीन कहते हैं, वली वह है जो प्रमाण पर आधारित सही अक़ीदे रखता हो और शरीअत के मुताबिक़ नेक कर्म करता हो. कुछ आरिफ़ीन ने फ़रमाया कि विलायत नाम है अल्लाह के क़ुर्ब और अल्लाह के साथ मश्ग़ूल रहने का. जब बन्दा इस मक़ाम पर पहुंचता है तो उसको किसी चीज़ का डर नहीं रहता और न किसी चीज़ से मेहरूम होने का ग़म होता है. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि वली वह है जिसे देखने से अल्लाह याद आए. सही तबरी की हदीस में भी है. इब्ने ज़ैद ने कहा कि वली वही है जिसमें वह सिफ़त और गुण हो जो इस आयत में बयान किया गया है. “अल्लज़ीना आमनू वकानू यत्तक़ून” यानी ईमान और तक़वा दोनो का संगम हो. कुछ उलमा ने फ़रमाया, वली वो है जो ख़ालिस अल्लाह के लिये महब्बत करें. वलियों की यह विशेषता कई हदीसों में आई है. कुछ बुज़ुर्गों ने फ़रमाया, वली वो हैं जो फ़रमाँबरदारी से अल्लाह के क़ुर्ब की तलब करते हैं और अल्लाह तआला करामत और बुज़ुर्गी से उनके काम बनाता है, या वो जिन की हिदायत के प्रमाण के साथ अल्लाह कफ़ील हो और वो उसकी बन्दगी का हक़ अदा करने और उसकी सृष्टि पर रहम करने के लिये वक़्फ हो गए. ये अर्थ और इबारतें अगरचे विभिन्न हैं लेकिन उनमें विरोधाभास कुछ भी नहीं है क्योंकि हर एक इबारत में वली की एक एक विशेषता बयान कर दी गई है जिसे अल्लाह का क़ुर्ब हासिल होता है. ये तमाम विशेषताएं और गुण उसमें होते हैं. विलायत के दर्जों और मरतबों में हर एक अपने दर्जें के हिसाब से बुज़ुर्गी और महानता रखता है.

(5) इस ख़ुशख़बरी से या तो वह मुराद है जो परहेज़गार ईमानदारों को क़ुरआन शरीफ़ में जा बजा दी गई है या बेहतरीन ख़्वाब मुराद हैं जो मूमिन देखता है या उसके लिये देखा जाता है जैसा कि बहुत सी हदीसों में आया है और इसका कारण यह है कि वली का दिल और उसकी आत्मा दोनों अल्लाह के ज़िक्र में डूबे रहते हैं. तो ख़्वाब के वक़्त अल्लाह के ज़िक्र के सिवा उसके दिल में कुछ नहीं होता. इसलिये वली जब ख़्वाब देखता है तो उसका ख़्वाब सच्चा और अल्लाह तआला की तरफ़ से उसके हक़ में ख़ुशख़बरी होती है. कुछ मुफ़स्सिरों ने इस ख़ुशख़बरी से दुनिया की नेकनामी भी मुराद ली है. मुस्लिम शरीफ़ की हदीस में है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से अर्ज़ किया गया, उस शख़्स के लिये क्या इरशाद फ़रमाते हैं जो नेक कर्म करता है और लोग उसकी तारीफ़ करते हैं. फ़रमाया यह मूमिन के लिये ख़ुशख़बरी है. उलमा फ़रमाते हैं कि यह ख़ुशख़बरी अल्लाह की रज़ा और  अल्लाह के महब्बत फ़रमाने और सृष्टि के दिल में महब्बत डाल देने की दलील है, जैसा कि हदीस में आया है कि उसको ज़मीन में मक़बूल कर दिया जाता है. क़तादा ने कहा कि फ़रिश्ते मौत के समय अल्लाह तआला की तरफ़ से ख़ुशख़बरी देते हैं. अता का क़ौल है कि दुनिया की ख़ुशख़बरी तो वह है जो फ़रिश्ते मौत के समय सुनाते हैं और आख़िरत की ख़ुशख़बरी वह है जो मूमिन को जान निकलने के बाद सुनाई जाती है कि उससे अल्लाह राज़ी है.

(6) उसके वादे ख़िलाफ़ नहीं हो सकते जो उसने अपनी किताब में और अपने रसूलों की ज़बान से अपने वलियों और अपने फ़रमाँबरदार बन्दों से फ़रमाए.

(7) इसमें सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तसल्ली फ़रमाई गई कि काफ़िर बदनसीब, जो आपको झुटलाते है और आपके ख़िलाफ़ बुरे बुरे मशवरे करते हैं, उसका कुछ ग़म न फ़रमाएं.

(8) वह जिसे चाहे इज़्ज़त दे और जिसे चाहे ज़लील करे. ऐ सैयदुल अम्बिया, वह आपका नासिर और मददगार है. उसने आपको और आपके सदक़े मे आपके फ़रमाँबरदारों को इज़्ज़त दी, जैसा कि दूसरी आयत में फ़रमाया कि अल्लाह के लिये इज़्ज़त है और उसके रसूल के लिये और ईमान वालों के लिये.

(9) सब उसके ममलूक अर्थात ग़ुलाम हैं. उसके तहत क़ुदरत और अधिकार, और जो ग़ुलाम है वह रब नहीं हो सकता. इसलिये अल्लाह के सिवा हर एक को पूजना ग़लत है. यह तौहीद की एक ऊमदा दलील है.

(10) यानी किस दलील का अनुकरण करते हैं. मुराद यह है कि उनके पास कोई दलील नहीं.

(11) और बेदलील केवल ग़लत गुमान से अपने बातिल और झूठे मअबूदों को ख़ुदा का शरीक ठहराते हैं, इसके बाद अल्लाह तआला अपनी क़ुदरत और नेअमत का इज़हार फ़रमाता है.

(12) और आराम करके दिन की थकन दूर करो.

(13) रौशन, ताकि तुम अपनी ज़रूरतों और रोज़ी रोटी के सामान पूरे कर सको.

(14) जो सुनें और समझें कि जिसने इन चीज़ों को पैदा किया, वही मअबूद है. उसका कोई शरीक नहीं. इसके बाद मुश्रिकों का एक कथन ज़िक्र फ़रमाता है.

(15) काफ़िरों का यह कलिमा अत्यन्त बुरा और इन्तिहा दर्जे की आज्ञानता का है. अल्लाह तआला इसका रद फ़रमाता है.

(16) यहाँ मुश्रिकों के इस कथन के तीन रद फ़रमाए, पहला रद तो कलिमए सुब्हानहू में है जिसमें बताया गया कि उसकी ज़ात बेटे या औलाद से पाक है कि वाहिदे हक़ीक़ी है, दूसरा रद हुवल ग़निय्यों फ़रमाने में है कि वह तमाम सृष्टि से बेनियाज़ है, तो औलाद उसके लिये कैसे हो सकती है. औलाद तो या कमज़ोर चाहते है जो उससे क़ुव्वत हासिल करें या फ़क़ीर चाहता है जो उससे मदद ले या ज़लील चाहता है जो उसके ज़रीये इज़्ज़त हासिल करे. ग़रज़ जो चाहता है वह हाजत रखता है. तो जो ग़नी हो या ग़ैर मोहताज़ हो उसके लिये औलाद किस तरह हो सकती है. इसके अलावा बेटा वालिद का एक हिस्सा होता है, तो वालिद होना, मिश्रित होना ज़रूरी, और मिश्रित होना संभव होने को, और हर संभव ग़ैर का मोहताज़ है, तो हादिस हुआ, लिहाज़ा मुहाल हुआ कि ग़नी क़दीम के बेटा हो, तीसरा रद लूह मा फ़िस्समावाते वमा फ़िल अर्दे मे है कि सारी सृष्टि उसकी ममलूक है और ममलूक होना बेटा होने के साथ नहीं जमा होता, लिहाज़ा उनमें से कोई उसकी औलाद नहीं हो सकती.

सूरए यूनुस -आठवाँ रूकू

सूरए यूनुस -आठवाँ रूकू

और उन्हें नूह की ख़बर पढ़कर सुनाओ बस उसने अपनी क़ौम से कहा ऐ मेंरी क़ौम अगर तुमपर शाक़ (भारी) गुज़रा है मेरा खड़ा होना (1)
और अल्लाह की निशानियाँ याद दिलाना (2)
तो मैं ने अल्लाह ही पर भरोसा किया (3)
तो मिलकर काम करो और अपने झूटे मअबूदों समेत अपना काम पक्का कर लो तुम्हारे काम में तुमपर कुछ गुंजलक न रहे फिर जो हो सके मेरा कर लो और मुझे मुहलत न दो (4){71}
फिर अगर तुम मुंह फेरो(5)
तो मैं तुम से कुछ उजरत नहीं मांगता (6)
मेरा अज्र (फल, बदला) तो नहीं मगर अल्लाह पर और (7)
और मुझे हुक्म है कि मैं मुसलमानों से हूँ {72} तो उन्होंने उसे(8)
झूटलाया तो हमने उसे और जो उसके साथ किश्ती में थे उसको निजात दी और उन्हें हमने नायब (प्रतिनिधि) किया (9)
और जिन्होंने हमारी आयतें झुटलाई उनको हमने डुबो दिया तो देखो डराए हुओ का अंजाम कैसा हुआ{73} फिर उसके बाद और रसूल (10)
हमने उनकी क़ौम की तरफ़ भेजे तो वो उनके पास रौशन दलीलें लाए तो वो ऐसे न थे कि ईमान लाते उसपर जिसे पहले झुटला चुके थे, हम यूंही मुहर लगा देते हैं सरकशों के दिलों पर {74} फिर उनके बाद हमने मूसा और हारून को फ़िरऔन और उसके दरबारियों की तरफ़ अपनी निशानियाँ लेकर भेजा तो उन्होंने घमण्ड किया और वो मुजरिम लोग थे{75} तो जब उनके पास हमारी तरफ़ से हक़ आया (11)
बोले यह तो ज़रूर खुला जादू है {76} मूसा ने कहा क्या हक़ की निस्बत ऐसा कहते हो जब वह तुम्हारे पास आया क्या यह जादू है  (12)
और जादूगर मुराद को नही पहुंचते (13){77}
बोले क्या तुम हमारे पास इसलिये आए हो कि हमें उससे (14)
फेर दो जिसपर हमने अपने बाप दादा को पाया और ज़मीन में तुम्हारी दोनों की बड़ाई रहे और हम तुमपर ईमान लाने के नहीं{78} और फ़िरऔन (15)
बोला हर जादूगर इल्म वाले को मेरे पास ले आओ {79} फिर जब जादूगर आए उनसे मूसा ने कहा डालो जो तुम्हें डालना है (16){80}
फिर जब उन्होंने डाला मूसा ने कहा यह जो तुम लाए यह जादू है (17)
अब अल्लाह इसे बातिल कर देगा, अल्लाह फ़साद वालों का काम नहीं बनाता {81} और अल्लाह अपनी बातों से (18)
हक़ को हक़ कर दिखाता है पड़े बुरा माने मुजरिम {82}

सूरए यूनुस -आठवाँ रूकू

(1) और लम्बी मुद्दत तक तुममें ठहरना.

(2) और इसपर तुमने मेरे क़त्ल करने और निकाल देने का इरादा किया है.

(3) और अपना मामला उस एक अल्लाह के सुपुर्द किया जिसका कोई शरीक नहीं.

(4) मुझे कुछ परवाह नहीं हैं. हज़रत नूह अलैहिस्सलाम का यह कलाम विनम्रता के तौर पर है. मतलब यह है कि मुझे अपने क़ुदरत वाले, क़ुव्वत वाले परवर्दिगार पर पूरा पूरा भरोसा है, तुम और तुम्हारे बे इख़्तियार मअबूद मुझे कुछ नुक़सान नहीं पहुंचा सकते.

(5) मेरी नसीहत से.

(6) जिसके फ़ौत होने का मुझे अफ़सोस है.

(7) वही मुझे बदला देगा. मतलब यह है कि मेरा उपदेश और नसीहत ख़ास अल्लाह के लिये है किसी दुनिया की ग़रज़ से नहीं.

(8) यानी हज़रत नूह अलैहिस्सलाम को.

(9) और हलाक होने वालों के बाद ज़मीन में ठहराया.

(10) हूद, सालेह, इब्राहीम, लूत, शुऐब वग़ैरहुम, अलैहिस्सलाम.

(11) हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के वास्ते से, और फ़िरऔनियों ने पहचान कर, कि ये सत्य है, अल्लाह की तरफ़ से है, तो नफ़्सानियत और हठधर्मी से.

(12) हरगिज़ नहीं.

(13) फ़िरऔनी हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से.

(14) दीन व मिल्लत और बुत परस्ती व फ़िरऔन परस्ती.

(15) सरकश और घमण्डी ने चाहा कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के चमत्कार का मुक़ाबला बातिल से करे और दुनिया को इस भ्रम में डाले कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के चमत्कार जादू की क़िस्म से हैं इसलिये वह.

(16) रस्से शहतीर वग़ैरह और जो तुम्हें जादू करना है करो. यह आपने इसलिये फ़रमाया कि हक़ और बातिल, सच और झूठ ज़ाहिर हो जाए और जादू के कमाल, जो वो करने वाले हैं, उनका फ़साद साफ़ खुल कर सामने आ जाए.

(17) न कि वो आयतें और अल्लाह की निशानियाँ, जिनको फ़िरऔन ने अपनी बे ईमानी से जादू बताया.

(18) यानी अपने हुक्म, अपनी क्षमता और क़ुदरत और अपने इस वादे से कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को जादूगरों पर ग़ालिब करेगा.

सूरए यूनुस -नवाँ रूकू

सूरए यूनुस -नवाँ रूकू

तो मूसा पर ईमान न लाए मगर उसकी क़ौम की औलाद से कुछ लोग (1)
फ़िरऔन और उसके दरबारियों से डरते हुए कि कहीं उन्हें (2)
हटने पर मजबूर न कर दें और बेशक फ़िरऔन ज़मीन पर सर उठाने वाला था, और बेशक वह हद से गुज़र गया  (3){83}
और मूसा न कहा ऐ मेरी क़ौम अगर तुम अल्लाह पर ईमान लाए तो उसी पर भरोसा करो(4)
अगर तुम इस्लाम रखते हो{84} बोले हमने अल्लाह ही पर भरोसा किया, इलाही हमको ज़ालिम लोगों के लिये आज़माइश न बना(5){85}
और अपनी रहमत फ़रमाकर हमें काफ़िरों से निजात दे(6){86}
और हमने मूसा और उसके भाई को वही भेजी कि मिस्र में अपनी क़ौम के लिये मकानात बनाओ और अपने घरों को नमाज़ की जगह करो(7)
और नमाज़ क़ायम रखो और मुसलमानों को ख़ुशख़बरी सुनाओ (8){87}
और मूसा ने अर्ज़ की ऐ रब हमारे तूने फ़िरऔन और उसके सरदारों को आरायश(अलंकार) (9)
और माल दुनिया की ज़िन्दगी में दिये ऐ रब हमारे इसलिये कि तेरी राह से बहकावें, ऐ रब हमारे उनके माल बर्बाद कर दे(10)
और उनके दिल सख़्त करदे कि ईमान न लाएं जब तक दर्दनाक अज़ाब न देख लें (11){88}
फ़रमाया तुम दोनों की दुआ क़ुबूल हुई (12)
तुम साबित क़दम रहो नादानों की राह न चलो{89} और हम बनी इस्राईल को दरिया पार ले गए तो फ़िरऔन और उसके लश्करों ने उनका पीछा किया सरकशी और ज़ुल्म से यहां तक कि जब उसे डूबने ने आ लिया(15)
बोला में ईमान लाया कि कोई सच्चा मअबूद नहीं सिवा उसके जिसपर बनी इस्राईल ईमान लाए और मैं मुसलमान हूँ (16){90}
क्या अब (17)
और पहले से नाफ़रमान रहा और तू फ़सादी था (18){91}
आज हम तेरी लाश को उतरा देंगे(बाक़ी रखेंगे) कि तू अपने पिछलों के लिये निशानी हो (19)
और बेशक लोग हमारी आयतों से ग़ाफ़िल हैं{92}

तफ़सीर
सूरए यूनुस -नवाँ रूकू

(1) इसमें नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तसल्ली है कि आप अपनी उम्मत के ईमान लाने का बहुत एहतिमाम फ़रमाते थे, और उनके मुंह फेर लेने से दुखी हो जाते थे, आपकी तसल्ली फ़रमाई गई कि हालांकि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने इतना बड़ा चमत्कार दिखाया, फिर भी थोड़े लोगो ने ईमान क़ुबूल किया. ऐसी हालतें नबियों को पेश आती रही हैं. आप अपनी उम्मत के मुंह फेर लेने से रंजीदा न हों. मिन क़ौमिही में जो ज़मीर है, वह या तो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की तरफ़ पलटता है, उस सूरत में क़ौम की सन्तान से बनी इस्राईल मुराद होंगे जिनकी औलाद मिस्र में आपके साथ थी. एक क़ौल यह है कि इससे वो लोग मुराद हैं जो फ़िरऔन के क़त्ल से बच रहे थे क्योंकि जब बनी इस्राईल के लड़के फ़िरऔन के हुक्म पर क़त्ल किये जाते थे तो बनी इस्राइल की कुछ औरतें जो फ़िरऔन की औरतों से कुछ मेल जोल रखती थीं, वो जब बच्चा जनती थीं तो उसकी जान के डर से वह बच्चा फ़िरऔनी क़ौम की औरतों को दे डालतीं. ऐसे बच्चे जो फ़िरऔनियों के घरों में पले थे, उस रोज़ हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पर ईमान ले आए जिस दिन अल्लाह तआला ने आपको जादूगरों पर विजय अता की थी. एक क़ौल यह है कि यह ज़मीर फ़िरऔन की तरफ़ पलटती है, और फ़िरऔनी क़ौम की सन्तान मुराद है. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा से रिवायत है कि वह फिरऔनी क़ौम के थोड़े लोग थे जो ईमान लाए.

(2) दीन से.

(3) कि बन्दा होकर ख़ुदाई का दावेदार हुआ.

(4) वह अपने फ़रमाँबरदारों की मदद और दुश्मनों को हलाक फ़रमाता है. इस आयत से साबित हुआ कि अल्लाह पर भरोसा करना ईमान के कमाल का तक़ाज़ा है.

(5) यानी उन्हें हमपर ग़ालिब न कर, ताकि वो ये गुमान न करें कि वो हक़ पर हैं.

(6) और उनके ज़ुल्म और सितम से बचा.

(7) कि क़िबले की तरफ़ मुँह करो. हज़रत मूसा और हज़रत हारून अलैहिस्सलाम का क़िबला काबा शरीफ़ था और शुरू में बनी इस्राईल को यही हुक्म था कि वो घरों में छुप कर नमाज़ पढ़ें ताकि फ़िरऔनियों की शरारत और तक़लीफ़ से सुरक्षित रहे.

(8) अल्लाह की मदद की और जन्नत की.

(9) उमदा लिबास, नफ़ीस फ़र्श, कीमती ज़ेवर, तरह तरह के सामान.

(10) कि वो तेरी नेअमतों पर शुक्र के बजाय दिलेर और जरी होकर गुनाह करते हैं. हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की यह दुआ क़ुबूल हुई और फ़िरऔनियों के दिरहम व दीनार वग़ैरह पत्थर होकर रह गए. यहाँ तक कि फल और खाने की चीज़ें भी और ये उन निशानियों में से एक है जो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को दी गई थीं.

(11) जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम उन लोगों के ईमान लाने से निराश हो गए तब आपने उनके लिये यह दुआ की. और ऐसा ही हुआ कि वो डूबने के वक़्त तक ईमान न लाए. इससे मालूम हुआ कि किसी शख़्स के लिये कुफ़्र पर मरने की दुआ करना कुफ़्र नहीं है.(मदारिक)

(12) दुआ की निस्बत हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम व हज़रत हारून अलैहिस्सलाम दोनों की तरफ़ की गई हालांकि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम दुआ करते थे और हज़रत हारून अलैहिस्सलाम आमीन कहते थे. इससे मालूम हुआ कि आमीन कहने वाला भी दुआ करने वालों में गिना जाता है. यह भी साबित हुआ कि क़ुबूल होने के बीच चालीस बरस का फ़ासला हुआ.

(13) दावत और तबलीग़ पर.

(14) जो दुआ के क़ुबूल होने में देर होने की हिकमत नहीं जानते.

(15) तब फ़िरऔन.

(16) फ़िरऔन ने क़ुबूल होने की तमन्ना के साथ ईमान का मज़मून तीन बार दोहरा कर अदा किया लेकिन यह ईमान क़ुबूल न हुआ क्योंकि फ़रिश्तों और अज़ाब के देखने के बाद ईमान मक़बूल नहीं. अगर इख़्तियार की हालत में वह एक बार भी यह कलिमा कहता तो उसका ईमान क़ुबूल कर लिया जाता. लेकिन उसने वक़्त खो दिया. इसलिये उससे यह कहा गया जो आयत में आगे बयान किया गया है.

(17) बेचैनी की हालत में, जबकि ग़र्क़ में जकड़ा गया है और ज़िन्दगी की उम्मीद बाक़ी नहीं रही, उस वक़्त ईमान लाता है.

(18) ख़ुद गुमराह था, दूसरों को गुमराह करता था. रिवायत है कि एक बार हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम फ़िरऔन के पास एक सवाल लाए जिसका मज़मून यह था कि बादशाह का क्या हुक्म है ऐसे ग़ुलाम के बारे में जिसने एक शख़्स के माल व नेअमत में परवरिश पाई फिर उसकी नाशुक्री की और उसके हक़ का इन्कारी हो गया और अपने आप मौला होने का दावेदार बन गया. इसपर फ़िरऔन ने यह जवाब लिखा कि जो ग़ुलाम अपने आक़ा की नेअमतों का इन्कार करे और उसके मुक़ाबले में आए उसकी सज़ा यह है कि उसको दरिया में डुबो दिया जाए. जब फ़िरऔन डूबने लगा तो हज़रत जिब्रील ने वही फ़तवा उसके सामने कर दिया और उसने उसको पहचान लिया.

(19) तफ़सीर के उलमा कहते हैं कि जब अल्लाह तआला ने फ़िरऔन और उसकी क़ौम को डुबाया और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अपनी क़ौम को उनकी हलाकत की ख़बर दी तो कुछ बनी इस्राईल को शुबह रहा और फ़िरऔन की महानता और हैबत जो उनके दिलों में थी उसके कारण उन्हें उसकी हलाकत का यक़ीन न आया. अल्लाह के हुक्म से दरिया ने फ़िरऔन की लाश किनारे पर फैंक दी. बनी इस्राईल ने उसको देखकर पहचाना.

सूरए यूनुस -दसवाँ रूकू

सूरए यूनुस -दसवाँ रूकू

और बेशक हमने बनी इस्राईल को इज़्ज़त की जगह दी(1)
और उन्हें सुथरी रोज़ी अता की तो इख़्तिलाफ़ में न पड़े(2)
मगर इल्म आने के बाद (3)
बेशक तुम्हारा रब क़यामत के दिन उनमें फैसला कर देगा जिस बात में झगड़ते थे(4){93}
और ऐ सुनने वाले अगर तुझे कुछ शुबह हो उसमें जो हमने तेरी तरफ़ उतारा(5)
तो उनसे पूछ देख जो तुम से पहले किताब पढ़ने वाले हैं(6)
बेशक तेरे पास तेरे रब की तरफ़ से हक़ आया(7)
तो तू हरगिज़ शक वालों में न हो{94} और हरगिज़ उनमें न होना जिन्होंने अल्लाह की आयतें झुटलाईं कि तू ख़सारे (घाटे) वालों में हो जाएगा {95} बेशक वो जिनपर तेरे रब की बात ठीक पड़ चुकी है(8)
ईमान न लाएंगे {96} अगरचे सब निशानियाँ उनके पास आईं जब तक दर्दनाक अज़ाब न देख लें(9){97}
तो हुई होती न कोई बस्ती (10)
कि ईमान लाती (11)
तो उसका ईमान काम आता हाँ यूनुस की क़ौम जब ईमान लाए हमने उनसे रूसवाई का अज़ाब दुनिया की ज़िन्दगी में हटा दिया और एक वक़्त तक उन्हें बरतने दिया(12){98}
और अगर तुम्हारा रब चाहता ज़मीन में जितने हैं सबके सब ईमान ले आते(13)
तो क्या तुम लोगों को ज़बरदस्ती करोगे यहाँ तक कि मुसलमान हो जाएं(14){99}
और किसी जान की क़ुदरत नहीं कि ईमान ले आए मगर अल्लाह के हुक्म से(15)
और अज़ाब उनपर डालता है जिन्हें अक़्ल नहीं{100} तुम फ़रमाओ देखो(16)
आसमानों और ज़मीन में क्या है(17)
और आयतें और रसूल उन्हें कुछ नहीं देते जिनके नसीब में ईमान नहीं {101} तो उन्हें काहे का इन्तिज़ार है मगर उन्हीं लोगों के से दिनों का जो उनसे पहले हो गुज़रे(18)
तुम फ़रमाओ तो इन्तिज़ार करो मैं भी तुम्हारे साथ इन्तिज़ार में हूँ (19){102}
फिर हम अपने रसूलों और ईमान वालों को निजात देंगे, बात यही है हमारे करम के ज़िम्मे पर हक़ है मुसलमानों को निजात देना{103}

तफ़सीर
सूरए यूनुस -दसवाँ रूकू

(1) इज़्ज़त की जगह से या तो मिस्र देश और फ़िरऔनियों की सम्पत्तियाँ मुराद है या शाम प्रदेश और क़ुदस व उर्दुन जो अत्यन्त हरे भरे और उपजाऊ इलाक़े हैं.

(2) बनी इस्राईल, जिनके साथ ये घटनाएं हो चुकीं.

(3) इल्म से मुराद यहाँ या तो तौरात है जिसके मानी में यहूदी आपस में मतभेद रखते थे, या सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तशरीफ़ आवरी है कि इससे पहले तो यहूदी आपके मानने वाले और आपकी नबुव्वत पर सहमत थे और तौरात में जो आपकी विशेषताएं दर्ज थीं उनको मानते थे. लेकिन तशरीफ़ लाने के बाद विरोध करने लगे, कुछ ईमान लाए और कुछ लोगों ने हसद और दुश्मनी से कुफ़्र किया. एक क़ौल यह है कि इल्म से क़ुरआन मुराद है.

(4) इस तरह कि ऐ नबियों के सरदार, आप पर ईमान लाने वालों को जन्नत में दाख़िल फ़रमाएगा और आपका इन्कार करने वालों को जहन्नम में अज़ाब देगा.

(5) अपने रसूल मुहम्मदे मुस्तफ़ा सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के वास्ते से.

(6) यानी किताब वालों के उलमा जैसे हज़रत अब्दुल्लाह बिन सलाम और उनके साथी, ताकि वो तुझको सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की नबुव्वत का इत्मीनान दिलाएं और आपकी नात और तारीफ़, जो तौरात में लिखी है, वह सुनाकर शक दूर करें. शक इन्सान के नज़दीक किसी बात में दोनों तरफ़ों का बराबर होना है, चाहे वह इस तरह हो कि दोनों तरफ़ बराबर क़रीने पाएं जाएं. चाहे इस तरह कि किसी तरफ़ भी कोई क़रीना न हो तहक़ीक़ करने वालों के नज़दीक शक जिहालत की क़िस्मों से है और जिहालत और शक में आम व ख़ास मुतलक़ की निस्बत है कि हर एक शक जिहालत है और जिहालत शक नहीं.

(7) जो साफ़ प्रमाणों और रौशन निशानियों से इतना रौशन है कि उसमें शक की मजाल नहीं.

(8) यानी वह क़ौल उनपर साबित हो चुका जो लौहे मेहफ़ूज़ में लिख दिया गया है और जिसकी फ़रिश्तों ने ख़बर दी है कि ये लोग काफ़िर मरेंगे, वो.

(9) और उस वक़्त का ईमान लाभदायक नहीं.

(10) उन बस्तियों में से जिनको हमने हलाक़ किया.

(11) क़ौमे यूनुस का हाल यह है कि नैनवा प्रदेश मूसल में ये लोग रहते थे और क़ुफ़्र व शिर्क में जकड़े हुए थे. अल्लाह तआला ने हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम को उनकी तरफ़ भेजा. आपने उनको बुत परस्ती छोड़ने और ईमान लाने का हुक्म दिया. उन लोगों ने इन्कार किया. हज़रत युनूस अलैहिस्सलाम को झुटलाया. आपने उन्हें अल्लाह के हुक्म से अज़ाब उतरने की ख़बर दी. उन लोगों ने आपस में कहा कि हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम ने कभी कोई बात ग़लत नहीं कही है देखो अगर वह रात को यहाँ रहे जब तो कोई अन्देशा नहीं और अगर उन्होंने रात यहाँ न गुज़ारी तो समझ लेना चाहिये कि अज़ाब आएगा. रात में हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम वहाँ से तशरीफ़ ले गए. सुबह को अज़ाब के चिन्ह ज़ाहिर हो गए. आसमान पर काला डरावना बादल आया और बहुत सा धुंआ जमा हुआ. सारे शहर पर छा गया. यह देखकर उन्हें यक़ीन हो गया कि अज़ाब आने वाला है. उन्होंने हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम की तलाश की और आपको न पाया. अब उन्हें और ज़्यादा डर हुआ तो वो अपने बच्चों औरतों और जानवरों के साथ जंगल को निकल गए. मोटे कपड़े पहने और तौबह व इस्लाम का इज़हार किया. शौहर से बीबी और माँ से बच्चे अलग हो गए और सब ने अल्लाह की बारगाह में रोना और गिड़गिड़ाना शुरू किया और कहा, जो यूनुस अलैहिस्सलाम लाए, हम उस पर ईमान लाए और सच्ची तौबह की. जो अत्याचार उनसे हुए थे उनको दूर किया. पराए माल वापस किये, यहाँ तक कि अगर एक पत्थर दूसरे का किसी की बुनियाद में लग गया था तो बुनियाद उखाड़ कर पत्थर निकाल दिया और वापस कर दिया. और अल्लाह तआला से सच्चे दिल से मग़फ़िरत की दुआएं की. अल्लाह तआला ने उनपर रहम किया. दुआ क़ुबूल फ़रमाई, अज़ाब उठा दिया गया. यहाँ यह सवाल पैदा होता है कि जब अज़ाब उतरने के बाद फ़िरऔन का ईमान और उसकी तौबह क़ुबूल न हुई, क़ौमे यूनुस की तौबह क़ुबूल फ़रमाने और अज़ाब उठा देने में क्या हिकमत है. उलमा ने इसके कई जवाब दिये हैं. एक तो यह कि यह ख़ास करम था, हज़रत यूनुस की क़ौम के साथ. दूसरा जवाब अज़ाब यह है कि फ़िरऔन अज़ाब में जकड़े जाने के बाद ईमान लाया, जब ज़िन्दगी की उम्मीद ही बाक़ी न रही और क़ौमे यूनुस से जब अज़ाब क़रीब हुआ तो वो उसमें मुबतिला होने से पहले ईमान ले आए और अल्लाह दिलों का हाल जानने वाला है. सच्चे दिल वालों की सच्चाई और आचार का उसको इल्म है.

(13) यानी ईमान लाना पहले से लिखी ख़ुशनसीबी पर निर्भर है. ईमान वही लाएंगे जिनको अल्लाह तआला इसकी तौफ़ीक़ अता फ़रमाएगा. इसमें सैयदे आलम सल्लल्लाहो वसल्लम की तसल्ली है कि आप चाहते है कि सब ईमान ले आएं और सीधी राह इख़्तियार करें. फिर जो ईमान से मेहरूम रह जाते हैं उनका आपको ग़म होता है. इसका आपको ग़म न होना चाहिये, क्योंकि जो पहले से बुरे दिल वाला लिखा हुआ है, वह ईमान न लाएगा.

(14) और ईमान में ज़बरदस्ती नहीं हो सकती क्योंकि ईमान होता है तस्दीक़ और इक़रार से, और ज़बरदस्ती या दबावसे दिल की तस्दीक़ हासिल नहीं होती.

(15) उसकी मर्जी़ से.

(16) दिल की आँखो से और ग़ौर करो कि.

(17) जो अल्लाह तआला के एक होने का प्रमाण देता है.

(18) नूह, आद व समूद वग़ैरह की तरह.

(19) कि तुम्हारी हलाकत और अज़ाब के. रबीअ बिन अनस ने कहा कि अज़ाब का डर दिलाने के बाद अगली आयत में यह बयान फ़रमाया कि जब अज़ाब होता है तो अल्लाह तआला रसूल को और उनके साथ ईमान लाने वालों को निजात अता फ़रमाता है.

सूरए यूनुस- ग्यारहवाँ रूकू

सूरए यूनुस- ग्यारहवाँ रूकू

तुम फ़रमाओ ऐ लोगो अगर तुम मेरे दीन की तरफ़ से किसी शुबह में हो तो मैं तो उसे न पूजूंगा जिसे तुम अल्लाह के सिवा पूजते हो (1)
हाँ उस अल्लाह को पूजता हूँ जो तुम्हारी जान निकालेगा(2)
और मुझे हुक्म है कि ईमान वालों में हूँ{104} और यह कि अपना मुंह दीन के लिये सीधा रख सबसे अलग होकर (3)
और हरगिज़ शिर्क वालों में न होना {105} और अल्लाह के सिवा उसकी बन्दगी न कर जो न तेरा भला कर सके न बुरा, फिर अगर ऐसा करे तो उस वक़्त तू ज़ालिमों में होगा{106} और अगर तुझे अल्लाह कोई तकलीफ़ पहुंचाए तो उसका कोई टालने वाला नहीं उसके सिवा, और अगर तेरा भला चाहे तो उसके फ़ज़्ल (कृपा) का रद करने वाला कोई नहीं (4)
उसे पहुंचता है अपने बन्दों में जिसे चाहे, और वही बख़्शने वाला मेहरबान है {107} तुम फ़रमाओ ऐ लोगो तुम्हारे पास तुम्हारे रब की तरफ़ से हक़ आया (5)
तो जो राह पर आया वह अपने भले को राह पर आया(6)
और जो बहका वह अपने बुरे को बहका,(7)
और कुछ में करोड़ा नहीं(8){108}
और उस पर चलो जो तुमपर वही होती है और सब्र करो (9)
यहाँ तक कि अल्लाह हुक्म फ़रमाए (10)
और वह सबसे बेहतर हुक्म फ़रमाने वाला है (11){109}

तफ़सीर सूरए यूनुस- ग्यारहवाँ रूकू

(1) क्योंकि वह मख़लूक़ है, इबादत के लायक़ नहीं.

(2) क्योंकि वह क़ादिर, मुख़्तार, सच्चा मअबूद, इबादत के लायक़ है.

(3) यानी सच्चे दिल से मूमिन रहो.

(4) वही नफ़ा नुक़सान का मालिक है. सारी सृष्टि उसी की मोहताज़ है. वही हर चीज़ पर क़ादिर और मेहरबानी व रहमत वाला है. बन्दों को उसकी तरफ़ रग़बत और उसका ख़ौफ़ और उसी पर भरोसा और उसी पर विश्वास चाहिये और नफ़ा नुक़सान जो कुछ भी है वही.

(5)हक़ से यहाँ क़ुरआन मुराद है या इस्लाम या सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम.

(6) क्योंकि इसका लाभ उसी को पहुंचेगा.

(7) क्योंकि उसका वबाल उसी पर है.

(8) कि तुमपर ज़बरदस्ती करूं.

(9)काफ़िरों के झुटलाने और उनके तकलीफ़ पहुंचाने पर.

(10) मुश्रिकों से जंग करने और किताबियों से जिज़िया लेने का.

(11) कि उसके हुक्म में ग़लती और ख़ता की गुंजायश नहीं और वह बन्दों के खुले छुपे हालात सबका जानने वाला है. उसका फ़ैसला दलील और गवाह का मोहताज नहीं.

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