Tafseer Surah rum From Kanzul Imaan

सूरए रूम-

30 – सूरए रूम-

Table of Contents

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ الم
غُلِبَتِ الرُّومُ
فِي أَدْنَى الْأَرْضِ وَهُم مِّن بَعْدِ غَلَبِهِمْ سَيَغْلِبُونَ
فِي بِضْعِ سِنِينَ ۗ لِلَّهِ الْأَمْرُ مِن قَبْلُ وَمِن بَعْدُ ۚ وَيَوْمَئِذٍ يَفْرَحُ الْمُؤْمِنُونَ
بِنَصْرِ اللَّهِ ۚ يَنصُرُ مَن يَشَاءُ ۖ وَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ
وَعْدَ اللَّهِ ۖ لَا يُخْلِفُ اللَّهُ وَعْدَهُ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ
يَعْلَمُونَ ظَاهِرًا مِّنَ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَهُمْ عَنِ الْآخِرَةِ هُمْ غَافِلُونَ
أَوَلَمْ يَتَفَكَّرُوا فِي أَنفُسِهِم ۗ مَّا خَلَقَ اللَّهُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا إِلَّا بِالْحَقِّ وَأَجَلٍ مُّسَمًّى ۗ وَإِنَّ كَثِيرًا مِّنَ النَّاسِ بِلِقَاءِ رَبِّهِمْ لَكَافِرُونَ
أَوَلَمْ يَسِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَيَنظُرُوا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ ۚ كَانُوا أَشَدَّ مِنْهُمْ قُوَّةً وَأَثَارُوا الْأَرْضَ وَعَمَرُوهَا أَكْثَرَ مِمَّا عَمَرُوهَا وَجَاءَتْهُمْ رُسُلُهُم بِالْبَيِّنَاتِ ۖ فَمَا كَانَ اللَّهُ لِيَظْلِمَهُمْ وَلَٰكِن كَانُوا أَنفُسَهُمْ يَظْلِمُونَ
ثُمَّ كَانَ عَاقِبَةَ الَّذِينَ أَسَاءُوا السُّوأَىٰ أَن كَذَّبُوا بِآيَاتِ اللَّهِ وَكَانُوا بِهَا يَسْتَهْزِئُونَ

सूरए रूम मक्का में उतरी, इसमें 60 आयतें, 6 रूकू हैं.

पहला रूकू

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए रूम मक्के में उतरी. इसमें छ रूकू, साठ आयतें, आठ सौ उन्नीस कलिमे, तीन हज़ार पाँच सौ चौंतीस अक्षर हैं.

अलिफ़ लाम मीम (2){1}
(2) फ़ारस और रूम के बीच लड़ाई थी और चूंकि फ़ारस वाले आग के पुजारी मजूसी थे इसलिये अरब के मुश्रिक उनका ग़लबा पसन्द करते थे. रूम के लोग किताब वाले थे इसलिये मुसलमानों को उनका ग़लबा अच्छा मालूम होता था. फ़ारस के बादशाह खुसरो पर्वेज़ ने रूम वालों पर लश्कर भेजा और रूम के क़ैसर ने भी लश्कर भेजा. ये लश्कर शाम प्रदेश के क़रीब आमने सामने हुए. फ़ारस वाले ग़ालिब हुए. मुसलमानों को यह ख़बर अच्छी न लगी. मक्का के काफ़िर इससे ख़ुश होकर मुसलमानों से कहने लगे कि तुम भी किताब वाले और ईसाई भी किताब वाले. और हम भी बेपढ़े लिखे और फ़ारस वाले भी बेपढ़े लिखे. हमारे भाई फ़ारस वाले तुम्हारे भाई रूमियों पर ग़ालिब हुए. हमारी तुम्हारी जंग हुई तो हम भी तुमपर विजयी होंगे. इसपर यह आयतें उतरीं और उनमें ख़बर दी गई कि चन्द साल में फिर रूम वाले फ़ारस वालों पर ग़ालिब आ जाएंगे. ये आयतें सुनकर हज़रत अबुबक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहो अन्हो ने मक्के के काफ़िरों में जाकर ऐलान कर दिया कि ख़ुदा की क़सम रूमी फ़ारस वालों पर ज़रूर ग़लबा पाएंगे. ऐ मक्का वालों तुम इस वक़्त के जंग के नतीजे से ख़ुश मत हो. हमें हमारे नबी मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने ख़बर दी है. उबई बिन ख़लफ़ काफ़िर आपके सामने खड़ा हो गया और आपके उसके बीच सौ सौ ऊंट की शर्त हो गई. अगर नौ साल में फ़ारस वाले ग़ालिब आ जाएं तो सिद्दीक़े अकबर रदियल्लाहो अन्हो उबई को सौ ऊंट देंगे और अगर रूमी विजयी हों तो उबई आपको सौ ऊंट देगा. उस वक़्त तक जुए की हुर्मत नहीं उतरी थी. हज़रत इमामे आज़म अबू हनीफ़ा और इमाम मुहम्मद रहमतुल्लाहे अलैहिमा के नज़दीक़ हर्बी काफ़िरों के साथ इस तरह के मामलात जायज़ हैं और यही वाक़िआ उनकी दलील है. सात साल के बाद इस ख़बर की सच्चाई ज़ाहिर हुई और हुदैबियह की लड़ाई में या बद्र के दिन रूम वाले फ़ारस वालों पर ग़ालिब आए. रूमियों ने मदाइन में अपने घोड़े बांधे और इराक़ में रूमियह नामी एक शहर की नींव रखी. हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहो अन्हो ने शर्त के ऊंट उबई की औलाद से वुसूल किये क्योंकि इस बीच वह मर चुका था. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने उन्हें हुक्म दिया कि शर्त के माल का सदक़ा कर दें. यह ग़ैबी ख़बर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्ल्म की नबुव्वत की सच्चाई और क़ुरआने अज़ीम के कलामे इलाही होने की दलील है. (ख़ाज़िन)

रूमी पराजित हुए{2} पास की ज़मीन में(3)
(3) यानी शाम की उस धरती में जो फ़ारस के समीपतर है.

और अपनी पराजय के बाद बहुत जल्द विजयी होंगे(4){3}
(4) फ़ारस वालों पर.

चन्द बरस में (5)
(5) जिन की हद नौ बरस हैं.

हुक्म अल्लाह ही का है आगे और पीछे(6)
(6) यानी रूमियों के ग़लबे से पहले भी और उसके बाद भी. मुराद यह है कि पहले फ़ारस वालों का विजयी होना और दोबारा रूम वालों का, यह सब अल्लाह के हुक्म और इरादे और उसके लिखे से हैं.

और उस दिन ईमान वाले ख़ुश होंगे {4} अल्लाह की मदद से(7)
(7)  कि उसने किताबियों को ग़ैर किताबियों पर विजय दी और उसी दिन बद्र में मुसलमानों को मुश्रिकों पर. और मुसलमानों की सच्चाई और नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और क़ुरआन शरीफ़ की ख़बर की तस्दीक़ ज़ाहिर फ़रमाई.

मदद करता है जिसकी चाहे, और वही है इज़्ज़त वाला मेहरबान{5} अल्लाह का वादा(8)
(8) जो उसने फ़रमाया था कि रूमी चन्द साल में फिर ग़ालिब होंगे.

अल्लाह अपना वादा ख़िलाफ़ नहीं करता लेकिन बहुत लोग नहीं जानते(9){6}
(9) यानी बेइल्म हैं.

जानते हैं आँखों के सामने की दुनियावी (सांसारिक) ज़िन्दगी (10)
(10) व्यापार, खेती बाड़ी, निर्माण वग़ैरह दुनियावी धन्धे. इसमें इशारा है कि दुनिया की भी हक़ीक़त नहीं जानते, उसका भी ज़ाहिर ही जानते हैं.

और वो आख़िरत से पूरे बेख़बर हैं{7} क्या उन्होंने अपने जी में न सोचा कि अल्लाह ने पैदा न किये आसमान और ज़मीन और जो कुछ उनके बीच है मगर सच्चा (11)
(11) यानी आसमान और ज़मीन और जो कुछ उनके बीच हैं, अल्लाह तआला ने उनको बिना कारण और यूंही नहीं बनाया, उनकी पैदाइश में बेशुमार हिकमतें हैं.

और एक निश्चित मीआद से, (12)
(12) यानी हमेशा के लिये नहीं बनाया, बल्कि एक मुद्दत निर्धारित कर दी है. जब वह मुद्दत पूरी हो जाएगी तो ये फ़ना हो जाएंगे और वह मुद्दत क़यामत क़ायम होने का वक़्त है.

और बेशक बहुत से लोग अपने रब से मिलने का इन्कार रखते हैं (13){8}
(13) यानी मरने के बाद दोबारा उठाए जाने पर ईमान नहीं लाते.

और क्या उन्होंने ज़मीन में सफ़र न किया कि देखते कि उनसे अगलों का अंज़ाम कैसा हुआ(14)
(14) कि रसूलों को झुटलाने के कारण हलाक किये गए, उनके उजड़े हुए शहर और उनकी बर्बादी के निशान देखने वालों के लिये इब्रत हासिल करने की चीज़ हैं.

वो उनसे ज़्यादा ज़ोरआवर (शक्तिशाली) थे और ज़मीन जोती और आबाद की उन(15)
(15) मक्का वाले.

की आबादी से ज़्यादा और उनके रसूल उनके पास रौशन निशानियां लाए(16)
(16) तो वो उनपर ईमान न लाए. फिर अल्लाह तआला ने उन्हें हलाक किया.

सूरए रूम- दूसरा रूकू

30 – सूरए रूम- दूसरा रूकू

اللَّهُ يَبْدَأُ الْخَلْقَ ثُمَّ يُعِيدُهُ ثُمَّ إِلَيْهِ تُرْجَعُونَ
وَيَوْمَ تَقُومُ السَّاعَةُ يُبْلِسُ الْمُجْرِمُونَ
وَلَمْ يَكُن لَّهُم مِّن شُرَكَائِهِمْ شُفَعَاءُ وَكَانُوا بِشُرَكَائِهِمْ كَافِرِينَ
وَيَوْمَ تَقُومُ السَّاعَةُ يَوْمَئِذٍ يَتَفَرَّقُونَ
فَأَمَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ فَهُمْ فِي رَوْضَةٍ يُحْبَرُونَ
وَأَمَّا الَّذِينَ كَفَرُوا وَكَذَّبُوا بِآيَاتِنَا وَلِقَاءِ الْآخِرَةِ فَأُولَٰئِكَ فِي الْعَذَابِ مُحْضَرُونَ
فَسُبْحَانَ اللَّهِ حِينَ تُمْسُونَ وَحِينَ تُصْبِحُونَ
وَلَهُ الْحَمْدُ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَعَشِيًّا وَحِينَ تُظْهِرُونَ
يُخْرِجُ الْحَيَّ مِنَ الْمَيِّتِ وَيُخْرِجُ الْمَيِّتَ مِنَ الْحَيِّ وَيُحْيِي الْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا ۚ وَكَذَٰلِكَ تُخْرَجُونَ

अल्लाह पहले बनाता है फिर दोबारा बनाएगा(1)
(1) यानी मौत के बाद ज़िन्दा करके.

फिर उसकी तरफ़ फिरोगे (2){11}
(2) तो कर्मो की जज़ा देगा.

और जिस दिन क़यामत क़ायम होगी मुजरिमों की आस टूट जाएगी(3){12}
(3)  और किसी नफ़ा और भलाई की उम्मीद बाक़ी न रहेगी. कुछ मुफ़स्सिरों ने ये मानी बयान किये हैं कि उनका कलाम टूट जाएगा और वो चुप रह जाएंगे क्योंकि उनके पास पेश करने के क़ाबिल कोई हुज्जत न होगी. कुछ मुफ़स्सिरों ने ये मानी बयान किये हैं कि वो रूस्वा होंगे.

और उनके शरीक(4)
(4) यानी बुत, जिन्हें वो पूजते थे.

उनके सिफ़ारिशी न होंगे और वो अपने शरीकों से इनकारी हो जाएंगे {13} और जिस दिन क़यामत क़ायम होगी उस दिन अलग हो जाएंगे (5){14}
(5) मूमिन और काफ़िर फिर भी जमा न होंगे.

तो वो जो ईमान लाए और अच्छे काम किये बाग़ की कियारी में उनकी ख़ातिरदारी होगी(6){15}
(6) यानी जन्नत में उनका सत्कार किया जाएगा जिससे वो ख़ुश होंगे. यह ख़ातिरदारी जन्नती नेअमतों के साथ होगी. एक क़ौल यह भी है कि इससे मुराद समाअ है कि उन्हें ख़ुशियों भरे गीत सुनाए जाएंगे जो अल्लाह तआला की तस्बीह पर आधारित होंगे.

और वो जो काफ़िर हुए और हमारी आयतें और आख़िरत का मिलना झुटलाया(7)
(7) मरने के बाद उठाए जाने और हिसाब किताब के इन्कारी हुए.

वो अज़ाब में ला धरे (डाल दिये) जाएंगे(8){16}
(8) न उस अज़ाब में कटौती हो न उस से कभी निकले.

तो अल्लाह की पाकी बोलो(9)
(9) पाकी बोलने से या तो अल्लाह तआला की तस्बीह और स्तुति मुराद है, और इसकी हदीसों में बहुत फ़ज़ीलतें आई है या इससे नमाज़ मुराद है. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा से पूछा गया कि क्या पाँचों वक़्तों की नमाज़ों का बयान क़ुरआन शरीफ़ में है. फ़रमाया हाँ और ये आयतें पढ़ीं और फ़रमाया कि इन में पाँचों नमाज़ें और उनके औक़ात बयान किये गए हैं.

जब शाम करो(10)
(10) इसमें मग़रिब और इशा की नमाज़ें आ गई.

और जब सुब्ह हो(11){17}
(11)  यह फ़ज्र की नमाज़ हुई.

और उसी की तारीफ़ है आसमानों, और ज़मीन में(12)
(12) यानी आसमान और ज़मीन वालों पर उसकी हम्द लाज़िम है.

और कुछ दिन रहे(13)
(13) यानी तस्बीह करो कुछ दिन रहे. यह नमाज़ें अस्र हुई.

और जब तुम्हें दोपहर हो(14){18}
(14) यह ज़ोहर की नमाज़ हुई. नमाज़ के लिये ये पाँच वक़्त निर्धारित फ़रमाए गए, इसलिये कि सबसे बेहतर काम वह है जो हमेशा होता है, और इन्सान यह क़ुदरत नहीं रखता कि अपने सारे औक़ात सारा समय नमाज़ में खर्च करे क्योंकि उसके साथ खाने पीने वग़ैरह की ज़रूरतें हैं तो अल्लाह तआला ने बन्दे पर इबादत में कटौती फ़रमाई और दिन के शुरू, मध्य और अंत में और रात के शुरू और अन्त में नमाज़ें मुक़र्रर कीं ताकि उस समय में नमाज़ में लगे रहना हमेशा की इबादत के हुक्म में हो (मदारिक व ख़ाज़िन)

वह ज़िन्दा को निकालता है मुर्दे से (15)
(15) जैसे कि पक्षी को अन्डे से, और इन्सान को नुत्फ़े से, और मूमिन को काफ़िर से.

और मुर्दे को निकालता है ज़िन्दा से(16)
(16) जैसे कि अन्डे को पक्षी से, नुत्फ़े को इन्सान से, काफ़िर को मूमिन से.

और ज़मीन को जिलाता है उसके मरे पीछे(17)
(17) यानी सूख जाने के बाद मेंह बरसाकर सब्ज़ा उगा कर.

और यूंही तुम निकाले जाओगे (18){19}
(18) कब्रों से उठाए जाने और हिसाब के लिये.

सूरए रूम- तीसरा रूकू

30 – सूरए रूम- तीसरा रूकू

وَمِنْ آيَاتِهِ أَنْ خَلَقَكُم مِّن تُرَابٍ ثُمَّ إِذَا أَنتُم بَشَرٌ تَنتَشِرُونَ
وَمِنْ آيَاتِهِ أَنْ خَلَقَ لَكُم مِّنْ أَنفُسِكُمْ أَزْوَاجًا لِّتَسْكُنُوا إِلَيْهَا وَجَعَلَ بَيْنَكُم مَّوَدَّةً وَرَحْمَةً ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِّقَوْمٍ يَتَفَكَّرُونَ
وَمِنْ آيَاتِهِ خَلْقُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَاخْتِلَافُ أَلْسِنَتِكُمْ وَأَلْوَانِكُمْ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِّلْعَالِمِينَ
وَمِنْ آيَاتِهِ مَنَامُكُم بِاللَّيْلِ وَالنَّهَارِ وَابْتِغَاؤُكُم مِّن فَضْلِهِ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِّقَوْمٍ يَسْمَعُونَ
وَمِنْ آيَاتِهِ يُرِيكُمُ الْبَرْقَ خَوْفًا وَطَمَعًا وَيُنَزِّلُ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَيُحْيِي بِهِ الْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِّقَوْمٍ يَعْقِلُونَ
وَمِنْ آيَاتِهِ أَن تَقُومَ السَّمَاءُ وَالْأَرْضُ بِأَمْرِهِ ۚ ثُمَّ إِذَا دَعَاكُمْ دَعْوَةً مِّنَ الْأَرْضِ إِذَا أَنتُمْ تَخْرُجُونَ
وَلَهُ مَن فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ كُلٌّ لَّهُ قَانِتُونَ
وَهُوَ الَّذِي يَبْدَأُ الْخَلْقَ ثُمَّ يُعِيدُهُ وَهُوَ أَهْوَنُ عَلَيْهِ ۚ وَلَهُ الْمَثَلُ الْأَعْلَىٰ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ

और उसकी निशानियों से है यह कि तुम्हें पैदा किया मिट्टी से(1)
(1) तुम्हारे जद्दे आला और तुम्हारी अस्ल हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को उससे पैदा करके.

फिर जभी तुम इन्सान हो दुनिया में फैले हुए {20} और उसकी निशानियों से है कि तुम्हारे लिये तुम्हारी ही जिन्स से जोड़े बनाए कि उनसे आराम पाओ और तुम्हारे आपस में महब्बत और रहमत रखी (2)
(2) कि बग़ैर किसी पहली पहचान और बग़ैर किसी रिश्तेदारी के एक को दूसरे के साथ महब्बत और हमदर्दी है.

बेशक उसमें निशानियाँ हैं ध्यान करने वालों के लिये {21} और उसकी निशानियों से है आसमानों और ज़मीन की पैदायश और तुम्हारी ज़बानों और रंगतों का अन्तर(3)
(3) ज़बानों की भिन्नता तो यह है कि कोई अरबी बोलता है, कोई अजमी, कोई और कुछ. और रंगतों की भिन्नता यह है कि कोई गोरा है कोई काला और कोई गेहूं रंग का. और यह भिन्नता बड़ी अजीब है क्योंकि सब एक अस्ल से हैं और सब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की औलाद हैं.

बेशक इसमें निशानियाँ हैं जानने वालों के लिये {22} और उसकी निशानियों में हैं रात और दिन में तुम्हारा सोना(4)
(4) जिससे थकन दूर होती है और राहत हासिल होती है.

और उसका फ़ज़्ल तलाश करना(5)
(5) फ़ज़्ल तलाश करने से रोज़ी की खोज मुराद है.

बेशक इसमें निशानियाँ है सुनने वालों के लिये(6){23}
(6) जो होश के कानों से सुने.

और उसकी निशानियों से है कि तुम्हें बिजली दिखाता है डराती(7)
(7) गिरने और नुक़सान पहुंचाने से.

और उम्मीद दिलाती(8)
(8) बारिश की.

और आसमान से पानी उतारता है तो उससे ज़मीन को ज़िन्दा करता है उसके मरे पीछे, बेशक इसमें निशानियाँ हैं अक़्ल वालों के लिये(9){24}
(9) जो सोचें और अल्लाह की क़ुदरत पर ग़ौर करें.

और उसकी निशानियों से है कि उसके हुक्म से आसमान और ज़मीन क़ायम है(10)
(10) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा और हज़रत इब्ने मसऊद रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि
वो दोनों बिना किसी सहारे के क़ायम हैं.

फिर जब तुम्हे ज़मीन से एक निदा (पुकार) फ़रमाएगा(11)
(11) यानी तुम्हें क़ब्रों से बुलाएगा. इस तरह कि हज़रत इस्राफ़ील अलैहिस्सलाम क़ब्र वालों के उठने के लिये सूर फूंकेंगे तो अगलों और पिछलों में से कोई ऐसा न होगा जो न उठे. चुनान्चे इसके बाद ही इरशाद फ़रमाता है.

जभी तुम निकल पड़ोगे (12){25}
(12) यानी क़ब्रों से ज़िन्दा होकर.

और उसी के हैं जो कोई आसमानों और ज़मीन में हैं, सब उसके हुक्म के नीचे हैं {26} और वही है कि पहले बनाता है फिर उसे दोबारा बनाएगा (13)
(13) हलाक होने के बाद.

और यह तुम्हारी समझ में उसपर ज़्यादा आसान होना चाहिये (14)
(14) क्योंकि इन्सानों का अनुभव और उनकी राय यही बताती है कि किसी चीज़ को दुबारा पैदा करना उसके पहली बार पैदा करने से आसान होता है. और अल्लाह तआला के लिये कुछ भी दुश्वार नहीं है.

और उसी के लिये है सबसे बरतर शान आसमानों और ज़मीन में(15)
(15) कि उस जैसा कोई नहीं. वह सच्चा मअबुद है, उसके सिवा कोई मअबूद नहीं.
और वही इज़्ज़त व हिकमत वाला है{27}

सूरए रूम- चौथा रूकू

30 – सूरए रूम- चौथा रूकू

ضَرَبَ لَكُم مَّثَلًا مِّنْ أَنفُسِكُمْ ۖ هَل لَّكُم مِّن مَّا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُم مِّن شُرَكَاءَ فِي مَا رَزَقْنَاكُمْ فَأَنتُمْ فِيهِ سَوَاءٌ تَخَافُونَهُمْ كَخِيفَتِكُمْ أَنفُسَكُمْ ۚ كَذَٰلِكَ نُفَصِّلُ الْآيَاتِ لِقَوْمٍ يَعْقِلُونَ
بَلِ اتَّبَعَ الَّذِينَ ظَلَمُوا أَهْوَاءَهُم بِغَيْرِ عِلْمٍ ۖ فَمَن يَهْدِي مَنْ أَضَلَّ اللَّهُ ۖ وَمَا لَهُم مِّن نَّاصِرِينَ
فَأَقِمْ وَجْهَكَ لِلدِّينِ حَنِيفًا ۚ فِطْرَتَ اللَّهِ الَّتِي فَطَرَ النَّاسَ عَلَيْهَا ۚ لَا تَبْدِيلَ لِخَلْقِ اللَّهِ ۚ ذَٰلِكَ الدِّينُ الْقَيِّمُ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ
۞ مُنِيبِينَ إِلَيْهِ وَاتَّقُوهُ وَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَلَا تَكُونُوا مِنَ الْمُشْرِكِينَ
مِنَ الَّذِينَ فَرَّقُوا دِينَهُمْ وَكَانُوا شِيَعًا ۖ كُلُّ حِزْبٍ بِمَا لَدَيْهِمْ فَرِحُونَ
وَإِذَا مَسَّ النَّاسَ ضُرٌّ دَعَوْا رَبَّهُم مُّنِيبِينَ إِلَيْهِ ثُمَّ إِذَا أَذَاقَهُم مِّنْهُ رَحْمَةً إِذَا فَرِيقٌ مِّنْهُم بِرَبِّهِمْ يُشْرِكُونَ
لِيَكْفُرُوا بِمَا آتَيْنَاهُمْ ۚ فَتَمَتَّعُوا فَسَوْفَ تَعْلَمُونَ
أَمْ أَنزَلْنَا عَلَيْهِمْ سُلْطَانًا فَهُوَ يَتَكَلَّمُ بِمَا كَانُوا بِهِ يُشْرِكُونَ
وَإِذَا أَذَقْنَا النَّاسَ رَحْمَةً فَرِحُوا بِهَا ۖ وَإِن تُصِبْهُمْ سَيِّئَةٌ بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيهِمْ إِذَا هُمْ يَقْنَطُونَ
أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّ اللَّهَ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَن يَشَاءُ وَيَقْدِرُ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِّقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ
فَآتِ ذَا الْقُرْبَىٰ حَقَّهُ وَالْمِسْكِينَ وَابْنَ السَّبِيلِ ۚ ذَٰلِكَ خَيْرٌ لِّلَّذِينَ يُرِيدُونَ وَجْهَ اللَّهِ ۖ وَأُولَٰئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ
وَمَا آتَيْتُم مِّن رِّبًا لِّيَرْبُوَ فِي أَمْوَالِ النَّاسِ فَلَا يَرْبُو عِندَ اللَّهِ ۖ وَمَا آتَيْتُم مِّن زَكَاةٍ تُرِيدُونَ وَجْهَ اللَّهِ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الْمُضْعِفُونَ
اللَّهُ الَّذِي خَلَقَكُمْ ثُمَّ رَزَقَكُمْ ثُمَّ يُمِيتُكُمْ ثُمَّ يُحْيِيكُمْ ۖ هَلْ مِن شُرَكَائِكُم مَّن يَفْعَلُ مِن ذَٰلِكُم مِّن شَيْءٍ ۚ سُبْحَانَهُ وَتَعَالَىٰ عَمَّا يُشْرِكُونَ

 

तुम्हारे लिये(1)
(1) ऐ मुश्रिकों!

एक कहावत बयान फ़रमाता है ख़ुद तुम्हारे अपने हाल से(2)
(2) वह कहावत यह है.

क्या तुम्हारे हाथ के माल ग़ुलामों में से कुछ शरीक हैं (3)
(3) यानी क्या तुम्हारे ग़ुलाम तुम्हारे साझी हैं.

उसमें जो हमने तुम्हें रोज़ी दी(4)
(4) माल-मत्ता वग़ैरह.

तो तुम सब उसमें बराबर हो (5)
(5) यानी मालिक और सेवक को उस माल -मत्ता में बराबर का अधिकार हो ऐसा कि…

तुम उनसे डरो(6)
(6) अपने माल-मत्ता में, बग़ैर उन ग़ुलामों की इजाज़त के ख़र्च करने से.

जैसे आपस में एक दूसरे से डरते हो(7)
(7) मक़सद यह है कि तुम किसी तरह अपने ग़ुलामों को अपना शरीक बनाना गवारा नहीं करते तो कितना ज़ुल्म है कि अल्लाह तआला के ग़ुलामों को उसका शरीक क़रार दो. ऐ मुश्रिकों! तुम अल्लाह तआला के सिवा जिन्हें अपना मअबूद ठहराते हो वो उसके बन्दे और ममलूक हैं.

हम ऐसी मुफ़स्सल निशानियां बयान फ़रमाते हैं अक़्ल वालों के लिये{28} बल्कि ज़ालिम(8)
(8) जिन्हों ने शिर्क करके अपनी जानों पर बड़ा भारी ज़ुल्म किया है.

अपनी ख्वाहिशों के पीछे हो लिये बेजाने(9)
(9) जिहालत से.

तो उसे कौन हिदायत करे जिसे ख़ुदा ने गुमराह किया(10)
(10) यानी कोई उसका हिदायत करने वाला नहीं.

और उनका कोई मददगार नहीं(11){29}
(11) जो उन्हें अल्लाह के अज़ाब से बचा सके.

तो अपना मुंह सीधा करो अल्लाह की इताअत (फ़रमाँबरदारी) के लिये एक अकेले उसी के होकर (12)
(12)  यानी सच्चे दिल से अल्लाह के दीन पर दृढ़ता के साथ क़ायम रहो.

अल्लाह की डाली हुई बिना (नींव) जिस पर लोगों को पैदा किया(13)
(13) फ़ितरत से मुराद दीने इस्लाम है. मानी ये हैं कि अल्लाह तआला ने सृष्टि को ईमान पर पैदा किया जैसा कि बुख़ारी और मुस्लिम की हदीस में है कि हर बच्चा फ़ितरत पर पैदा किया जाता है यानी उस एहद पर जो ” लस्तो बिरब्बिकुम”  यानी क्या मैं तुम्हारा रब नहीं हूँ फ़रमाकर लिया गया है. बुख़ारी शरीफ़ की हदीस में है फिर उसके माँ बाप उसे यहूदी, ईसाई  या मजूसी बना लेते हें. इस आयत में हुक्म दिया गया कि अल्लाह के दीन पर क़ायम रहो जिसपर अल्लाह तआला ने सृष्टि को पैदा किया है.

अल्लाह की बनाई चीज़ न बदलना(14)
(14) यानी अल्लाह के दीन पर क़ायम रहना.

यही सीधा दीन है, मगर बहुत लोग नहीं जानते(15) {30}
(15) उसकी हक़ीक़त को, तो इस दीन पर क़ायम रहो.

उसकी तरफ़ रूजू (तवज्जह) लाते हुए(16)
(16) यानी अल्लाह तआला की तरफ़ तौबह और फ़रमाँबरदारी के साथ.

और उससे डरो और नमाज़ क़ायम रखो और मुश्रिकों से न हो{31} उनमें से जिन्होंने अपने दीन को  टुकड़े टुकड़े कर दिया(17)
(17) मअबूद के बारे में मतभेद करके.

और हो गए गिरोह गिरोह, हर गिरोह जो उसके पास है उसी पर ख़ुश है (18){32}
(18) और बातिल को सच्चाई गुमान करता है.

और जब लोगों को तकलीफ़ पहुंचती है (19)
(19) बीमारी की या दुष्काल की या इसके सिवा और कोई.

तो अपने रब को पुकारते हें उसकी तरफ़ रूजू लाते हुए फिर जब वह उन्हें अपने पास से रेहमत का मज़ा दता है(20)
(20) उस तकलीफ़ से छुटकारा दिलाता है और राहत अता फ़रमाता है.

जभी उनमें से एक गिरोह अपने रब का शरीक ठहराने लगता है {33} कि हमारे दिये की नाशुक्री करें तो बरत लो (21)
(21)  दुनियावी नेअमतों को थोड़े दिन.

अब क़रीब जानना चाहते हो(22){34}
(22) कि आख़िरत में तुम्हारा क्या हाल होता है और इस दुनिया के चाहने का नतीजा क्या निकलने वाला है.

या हमने उनपर कोई सनद उतारी (23)
(23) कोई हुज्जत या कोई किताब.

कि वह उन्हें हमारे शरीक बता रही है(24) {35}
(24) और शिर्क करने का हुक्म देती है़ ऐसा नहीं है. न कोई हुज्जत है न कोई सनद (प्रमाण)

और जब हम लोगों को रहमत का मज़ा देते हैं  (25)
(25) यानी तन्दुरूस्ती और रिज़्क़ की ज़ियादती का.

उस पर ख़ुश हो जाते हैं(26)
(26) और इतराते हैं.

और अगर उन्हें कोई बुराई पहुंचे (27)
(27) दुष्काल या डर या और कोई बदला.

बदला उसका जो उनके हाथों ने भेजा(28)
(28) यानी गुमराहियों और उनके गुनाहों का.

जभी वो नाऊम्मीद हो जाते हैं(29){36}
(29) अल्लाह तआला की रहमत से और यह बात मूमिन की शान के ख़िलाफ़ है क्योंकि मूमिन का हाल यह है कि जब उसे नेअमत मिलती हैं तो शुक्र-गुज़ारी करता है और सख़्ती होती है तो अल्लाह तआला की रहमत का उम्मीदवार रहता है.

और क्या उन्होंने न देखा कि अल्लाह रिज़्क़ वसीअ फ़रमाता है जिसके लिये चाहे और तंगी फ़रमाता है जिसके लिये चाहे, बेशक इसमें निशानियाँ हैं ईमान वालों के लिये {37} तो रिश्तेदारों को उसका हक़ दो(30)
(30)उसके साथ सुलूक और एहसान करो.

और मिस्कीन (दरिद्र) और मुसाफ़िर को(31)
(31) उनके हक़ दो, सदक़ा देकर और मेहमान नवाज़ी करके. इस आयत से महारिम के नफ़क़े का वुजूब साबित होता है. (मदारिक)

यह बेहतर है उनके लिये जो अल्लाह की रज़ा चाहते हैं(32)
(32) और अल्लाह तआला से सवाब के तालिब हैं.

और उन्हीं का काम बना {38} और तुम जो चीज़ ज़्यादा लेने को दो कि देने वाले के माल बढ़ें तो वह अल्लाह के यहाँ न बढ़ेगी (33)
(33) लोगों का तरीक़ा था कि वो दोस्त अहबाब और पहचान वालों को या और किसी शख़्स को इस नियत से हदिया देते थे कि वह उन्हें उससे ज़्यादा देगा. यह जायज़ तो है लेकिन इसपर सवाब न मिलेगा और इसमें बरकत न होगी क्योंकि यह अमल केवल अल्लाह तआला की ख़ुशी के लिये नहीं हुआ.

और जो तुम ख़ैरात दो अल्लाह की रज़ा चाहते हुए (34)
(34) न उससे बदला लेना उद्देश्य हो न ज़ाहिरी दिखावा.

तो उन्हीं के दूने हैं(35) {39}
(35) उनका अज्र और सवाब ज़्यादा होगा. एक नेकी का दस गुना ज़्यादा दिया जाएगा.

अल्लाह है जिसने तुम्हें पैदा किया फिर तुम्हें रोज़ी दी फिर तुम्हें मारेगा फिर तुम्हें जिलाएगा(36)
(36) पैदा करना, रोज़ी देना, मारना, जिलाना ये सब काम अल्लाह ही के हैं.

क्या तुम्हारे शरीकों में(37)
(37) यानी बुतों में जिन्हें तुम अल्लाह तआला का शरीक ठहराते हो उन में….

भी कोई ऐसा है जो इन कामों में से कुछ करे(38)
(38) उसके जवाब से. मुश्रिक आजिज़ हुए और उन्हें दम मारने की मजाल न हुई, तो फ़रमाता है.
पाकी और बरतरी है उसे उनके शिर्क से{40}

सूरए रूम- पाँचवां रूकू

30 – सूरए रूम- पाँचवां रूकू

ظَهَرَ الْفَسَادُ فِي الْبَرِّ وَالْبَحْرِ بِمَا كَسَبَتْ أَيْدِي النَّاسِ لِيُذِيقَهُم بَعْضَ الَّذِي عَمِلُوا لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ
قُلْ سِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَانظُرُوا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِينَ مِن قَبْلُ ۚ كَانَ أَكْثَرُهُم مُّشْرِكِينَ
فَأَقِمْ وَجْهَكَ لِلدِّينِ الْقَيِّمِ مِن قَبْلِ أَن يَأْتِيَ يَوْمٌ لَّا مَرَدَّ لَهُ مِنَ اللَّهِ ۖ يَوْمَئِذٍ يَصَّدَّعُونَ
مَن كَفَرَ فَعَلَيْهِ كُفْرُهُ ۖ وَمَنْ عَمِلَ صَالِحًا فَلِأَنفُسِهِمْ يَمْهَدُونَ
لِيَجْزِيَ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ مِن فَضْلِهِ ۚ إِنَّهُ لَا يُحِبُّ الْكَافِرِينَ
وَمِنْ آيَاتِهِ أَن يُرْسِلَ الرِّيَاحَ مُبَشِّرَاتٍ وَلِيُذِيقَكُم مِّن رَّحْمَتِهِ وَلِتَجْرِيَ الْفُلْكُ بِأَمْرِهِ وَلِتَبْتَغُوا مِن فَضْلِهِ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ
وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا مِن قَبْلِكَ رُسُلًا إِلَىٰ قَوْمِهِمْ فَجَاءُوهُم بِالْبَيِّنَاتِ فَانتَقَمْنَا مِنَ الَّذِينَ أَجْرَمُوا ۖ وَكَانَ حَقًّا عَلَيْنَا نَصْرُ الْمُؤْمِنِينَ
اللَّهُ الَّذِي يُرْسِلُ الرِّيَاحَ فَتُثِيرُ سَحَابًا فَيَبْسُطُهُ فِي السَّمَاءِ كَيْفَ يَشَاءُ وَيَجْعَلُهُ كِسَفًا فَتَرَى الْوَدْقَ يَخْرُجُ مِنْ خِلَالِهِ ۖ فَإِذَا أَصَابَ بِهِ مَن يَشَاءُ مِنْ عِبَادِهِ إِذَا هُمْ يَسْتَبْشِرُونَ
وَإِن كَانُوا مِن قَبْلِ أَن يُنَزَّلَ عَلَيْهِم مِّن قَبْلِهِ لَمُبْلِسِينَ
فَانظُرْ إِلَىٰ آثَارِ رَحْمَتِ اللَّهِ كَيْفَ يُحْيِي الْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا ۚ إِنَّ ذَٰلِكَ لَمُحْيِي الْمَوْتَىٰ ۖ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
وَلَئِنْ أَرْسَلْنَا رِيحًا فَرَأَوْهُ مُصْفَرًّا لَّظَلُّوا مِن بَعْدِهِ يَكْفُرُونَ
فَإِنَّكَ لَا تُسْمِعُ الْمَوْتَىٰ وَلَا تُسْمِعُ الصُّمَّ الدُّعَاءَ إِذَا وَلَّوْا مُدْبِرِينَ
وَمَا أَنتَ بِهَادِ الْعُمْيِ عَن ضَلَالَتِهِمْ ۖ إِن تُسْمِعُ إِلَّا مَن يُؤْمِنُ بِآيَاتِنَا فَهُم مُّسْلِمُونَ

चमकी ख़राबी ख़ुश्की और तरी में(1)
(1) शिर्क और गुमराही के कारण दुष्काल, और कम वर्षा और पैदावार में कमी और खेतियों की ख़राबी और व्यापार में घाटा और आग लगने की घटनाओं में वृद्धि, और आदमियों और जानवरों में मौत और डूबना और हर चीज़ में से बरकत का उठ जाना.

उन बुराइयों से जो लोगों के हाथों ने कमाई ताकि उन्हें कुछ कौतुकों(बुरे कामों) का मज़ा चखाए कहीं वो बाज़ आएं(2){41}
(2) कुफ़्र और गुनाहों से, और तौबह करें.

तुम फ़रमाओ ज़मीन में चल कर देखो कैसा अंजाम हुआ अगलों का, उनमें बहुत मुश्रिक थे(3){42}
(3) अपने शिर्क के कारण हलाक किये गए. उनकी मंज़िलें और मकान वीरान पड़े हैं उन्हें देखकर सबक़ पकड़ो.

तो अपना मुंह सीधा कर इबादत के लिये (4)
(4) यानी दीने इस्लाम पर मज़बूती के साथ क़ायम रहो.

पहले इसके कि वह दिन आए जिसे अल्लाह की तरफ़ से टलना नहीं(5)
(5) यानी क़यामत के दिन.

उस दिन अलग फट जाएंगे (6){43}
(6) यानी हिसाब के बाद अलग अलग हो जाएंगे. जन्नती जन्नत की तरफ़ जाएंगे और दोज़ख़ी दोज़ख़ की तरफ़.

जो कुफ़्र करें उसके कुफ़्र का वबाल उसी पर और जो अच्छा काम करें वो अपने ही लिये तैयारी कर रहे हैं(7){44}
(7) कि जन्नत के दर्ज़ों में राहत और आराम पाएं.

ताकि सिला दे(8)
(8) और सवाब अता फ़रमाए अल्लाह तआला.

उन्हें जो ईमान लाए और अच्छे काम किये अपने फ़ज़्ल से, बेशक वह काफ़िरों को दोस्त नहीं रखता {45} और उसकी निशानियों से है कि हवाएं भेजता है ख़ुशख़बरी सुनाती (9)
(9) बारिश और पैदावार की बहुतात का.

और इसलिये कि तुम्हें अपनी रहमत का ज़ायक़ा दे और इसलिये कि किश्ती (10)
(10) दरिया में उन हवाओ से.

उसके हुक्म से चले और इसलिये कि उसका फ़ज़्ल तलाश करो(11)
(11) यानी समु्द्री तिजारतों से रोज़ी हासिल करो.

और इसलिये कि तुम हक़ मानो(12){46}
(12) इन नेअमतों का और अल्लाह की तौहीद क़ुबूल करो.

और बेशक हमने पहले कितने रसूल उनकी क़ौम की तरफ़ भेजे तो वो उनके पास खुली निशानियाँ लाए (13)
(13) जो उन रसूलों की रिसालत के सच्चे होने पर खुले प्रमाण थे. तो उस क़ौम में से कुछ ईमान लाए, कुछ ने कुफ़्र किया.

फिर हमने मुजरिमों से बदला लिया(14)
(14) कि दुनिया में उन्हें अज़ाब करके हलाक कर दिया.

और हमारे करम के ज़िम्मे पर है मुसलमानों की मदद फ़रमाना(15) {47}
(15) यानी उन्हें निजात देना और काफ़िरों को हलाक करना. इसमें नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को आख़िरत की कामयाबी और दुश्मनों पर जीत की ख़ुशखबरी दी गई है. तिरमिज़ी की हदीस में है जो मुसलमान अपने भाई की आबरू बचाएगा अल्लाह तआला उसे रोज़े क़यामत जहन्नम की आग से बचाएगा. यह फ़रमाकर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने यह आयत पढ़ी “काना हक़्क़त अलैना नस्रूल मूमिनीन” और हमारे करम के ज़िम्मे पर है मुसलमानों की मदद फ़रमाना.

अल्लाह है कि भेजता है हवाएं कि उभारती हैं बादल फिर उसे फैला देता है आसमान में जैसा चाहे(16)
(16) थोड़ा या बहुत.

और उसे पारा पारा करता है(17)
(17) यानी कभी तो अल्लाह तआला घटा टोप बादल भेज देता है जिससे आसमान घिरा हुआ मालूम होता है और कभी अलग अलग टुकड़े.

तो तू देखे कि उसके बीच में से मेंह निकल रहा है फिर जब उसे पहुंचाता है(18)
(18) यानी मेंह को.

अपने बन्दों में जिसकी तरफ़ चाहे जभी वो ख़ुशियाँ मनाते हैं {48} अगरचे उसके उतारने से पहले आस तोड़े हुए थे {49} तो अल्लाह की रहमत के असर देखो (19)
(19) यानी बारिश के असर जो उसपर होते हैं कि बारिश ज़मीन की प्यास बुझाती है, उससे सब्ज़ा हरियाली निकालती है, हरियाली से फल पैदा होते हैं, फलों में ग़िज़ाइयत होती है और उससे जानदारों के शरीर को मदद पहुंचती है. और यह देखों कि अल्लाह तआला ये हरियाली और फल पैदा करके….

किस तरह ज़मीन को जिलाता है उसके मरे पीछे (20)
(20) और सूखे मैदान को हरा भरा कर देता है, जिसकी यह क़ुदरत है….

बेशक वह मुर्दों को ज़िन्दा करेगा, और वह सब कुछ कर सकता है {50} और अगर हम कोई हवा भेजे (21)
(21) ऐसी जो ख़ेती और हरियाली के लिये हानिकारक हो.

जिससे वो खेती को ज़र्द देखें (22)
(22) बाद इसके कि वह हरी भरी तरो ताज़ा थी.

तो ज़रूर इसके बाद नाशुक्री करने लगें(23) {51}
(23) यानी खेती ज़र्द होने के बाद नाशुक्री करने लगें और पहली नेअमत से भी मुकर जाएं. ये हैं कि इन लोगों की हालत यह है  कि जब उन्हें रहमत पहुंचती है, रिज़्क़ मिलता है, ख़ुश हो जाते हैं और जब काई सख़्ती आती है खेती ख़राब होती है तो पहली नेअमतों से भी मुकर जाते हैं. चाहिये तो यह था कि अल्लाह तआला पर भरोसा करते और जब नेअमत पहुंचती, शुक्र बजा लाते और जब बला आती सब्र करते और दुआ व इस्तिग़फ़ार में लग जाते. इसके बाद अल्लाह तआला अपने हबीबे करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तसल्ली फ़रमाता है कि आप इन लोगों की मेहरूमी और इनके ईमान न लाने पर रंज न करें.

इसलिये कि तुम मु्र्दों को नहीं सुनाते (24)
(24) यानी जिनके दिल मर चुके और उनसे किसी तरह सच्चाई क़ुबूल करने की आशा नहीं रही.

और न बहरों को पुकारना सुनाओ जब वो पीठ देकर फिरें(25){52}
(25) यानी हक़ के सुनने से बेहरें हों और बेहरें भी ऐसे कि पीठ देकर फिर गए. उनसे किसी तरह समझने की उम्मीद नहीं.

और न तुम अंधों को(26)
(26) यहाँ अन्धों से भी दिल के अंधे मुराद हैं. इस आयत से कुछ लोगों ने मुर्दों के न सुनने को साबित किया है मगर यह तर्क सही नहीं है क्योंकि यहाँ मुर्दों से मुराद काफ़िर हैं जो दुनियावी ज़िन्दगी तो रखते हैं मगर नसीहत से फ़ायदा नहीं उठाते इसलिये उन्हें मुर्दों से मिसाल दी गई है जो कर्मभूमि से गुज़र गए और वो नसीहत से लाभ नहीं उठा सकते. इसलिये आयत से मुर्दों के न सुनने पर सनद लाना दुरूस्त नहीं है और बहुत सी हदीसों में मुर्दों का सुनना और अपनी क़ब्रों पर ज़ियारत के लिये आने वालों को पहचानना साबित है.

उनकी गुमराही से राह पर लाओ, तो तुम उसी को सुनाते हो जो हमारी आयतों पर ईमान लाए तो वो गर्दन रखे हुए हैं{53}

सूरए रूम- छटा रूकू

30 – सूरए रूम- छटा रूकू

۞ اللَّهُ الَّذِي خَلَقَكُم مِّن ضَعْفٍ ثُمَّ جَعَلَ مِن بَعْدِ ضَعْفٍ قُوَّةً ثُمَّ جَعَلَ مِن بَعْدِ قُوَّةٍ ضَعْفًا وَشَيْبَةً ۚ يَخْلُقُ مَا يَشَاءُ ۖ وَهُوَ الْعَلِيمُ الْقَدِيرُ
وَيَوْمَ تَقُومُ السَّاعَةُ يُقْسِمُ الْمُجْرِمُونَ مَا لَبِثُوا غَيْرَ سَاعَةٍ ۚ كَذَٰلِكَ كَانُوا يُؤْفَكُونَ
وَقَالَ الَّذِينَ أُوتُوا الْعِلْمَ وَالْإِيمَانَ لَقَدْ لَبِثْتُمْ فِي كِتَابِ اللَّهِ إِلَىٰ يَوْمِ الْبَعْثِ ۖ فَهَٰذَا يَوْمُ الْبَعْثِ وَلَٰكِنَّكُمْ كُنتُمْ لَا تَعْلَمُونَ
فَيَوْمَئِذٍ لَّا يَنفَعُ الَّذِينَ ظَلَمُوا مَعْذِرَتُهُمْ وَلَا هُمْ يُسْتَعْتَبُونَ
وَلَقَدْ ضَرَبْنَا لِلنَّاسِ فِي هَٰذَا الْقُرْآنِ مِن كُلِّ مَثَلٍ ۚ وَلَئِن جِئْتَهُم بِآيَةٍ لَّيَقُولَنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا إِنْ أَنتُمْ إِلَّا مُبْطِلُونَ
كَذَٰلِكَ يَطْبَعُ اللَّهُ عَلَىٰ قُلُوبِ الَّذِينَ لَا يَعْلَمُونَ
فَاصْبِرْ إِنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ ۖ وَلَا يَسْتَخِفَّنَّكَ الَّذِينَ لَا يُوقِنُونَ

अल्लाह है जिसने तुम्हें शुरू में कमज़ोर बनाया(1)
(1) इसमें इन्सान के हालात की तरफ़ इशारा है कि पहले वह माँ के पेट में गोश्त का टुकड़ा था फिर  बच्चा होकर पैदा हुआ, दूध पीकर बड़ा हुआ. ये हालात बहुत कमज़ोरी के हैं.

फिर तुम्हें नातवानी से ताक़त बख़्शी (2)
(2) यानी बचपन की कमज़ोरी के बाद जवानी की क़ुव्वत अता फ़रमाई.

फिर क़ुव्वत के बाद(3)
(3) यान जवानी की क़ुव्वत के बाद.

कमज़ोरी और बुढ़ापा दिया, बनाता है जो चाहे (4)
(4) कमज़ोरी और क़ुव्वत और जवानी और बुढ़ापा, ये सब अल्लाह के पैदा किये से हैं.

और वही इल्म व क़ुदरत वाला है {54} और जिस दिन क़यामत क़ायम होगी मुजरिम क़सम खाएंगे कि न रहे थे मगर एक घड़ी(5)
(5) यानी आख़िरत को देखकर उसको दुनिया या क़ब्र में रहने की मुद्दत बहुत थोड़ी मालूम होती होगी इसलिये वो उस मुद्दत को एक पल से तअबीर करेंगे.

वो ऐसे ही औंधे जाते थे (6) {55}
(6) यानी ऐसे ही दुनिया में ग़लत और बातिल बातों पर जमते और सच्चाई से फिरते थे और दोबारा उठाए जाने का इन्कार करते थे जैसे कि अब क़ब्र या दुनिया में ठहरने की मुद्दत को क़सम खाकर एक घड़ी बता रहे हैं. उनकी इस क़सम से अल्लाह तआला उन्हें सारे मेहशर वालों के सामने रूस्वा करेगा और सब देखेंगे कि ऐसी आम भीड़ में क़सम खाकर ऐसा खुला झूट बोल रहे हैं.

और बोले वो जिन को इल्म और ईमान मिला (7)
(7) यानी नबी और फ़रिश्ते और ईमान वाले उनका रद करेंगे और फ़रमाएंगे कि तुम झूट कहते हो.

बेशक तुम रहे अल्लाह के लिखे हुए में(8)
(8) यानी जो अल्लाह तआला ने अपने इल्म में लौहे मेहफ़ूज़ में लिखा उसी के अनुसार तुम क़ब्रों में रहे.

उठने के दिन तक, तो यह है वह दिन उठने का(9)
(9) जिसके तुम दुनिया में इन्कारी थे.

लेकिन तुम न जानते थे(10){56}
(10) दुनिया में, कि वह हक़ है, ज़रूर वाक़े होगा. अब तुमने जाना कि वह दिन आ गया और उसका आना हक़ था तो इस वक़्त का जानना तुम्हें नफ़ा न देगा जैसा कि अल्लाह तआला फ़रमाता है.

तो उस दिन ज़ालिमों को नफ़ा न देगी उनकी मअज़िरत और न उनसे कोई राज़ी करना मांगे(11){57}
(11) यानी उससे यह कहा जाए कि तौबह करके अपने रब को राज़ी करो जैसा कि दुनिया में उनसे तौबह तलब की जाती थी.

और बेशक हमने लोगों के लिये इस क़ुरआन में हर क़िस्म की मिसाल बयान फ़रमाई(12)
(12)  ताकि उन्हें तस्बीह हो और डराना अपनी चरम-सीमा को पहुंचे. लेकिन उन्होंने अपने दिल की कालिख और सख़्त दिली के कारण कुछ भी फ़ायदा न उठाया बल्कि जब कोई क़ुरआनी आयत आई, उसको झुटलाया और उसका इन्कार किया.

और अगर तुम उनके पास कोई निशानी लाओ तो ज़रूर काफ़िर कहेंगे तुम तो नहीं मगर असत्य पर {58} यूंही मोहर कर देता है अल्लाह ज़ाहिलों के दिलों पर (13){59}
(13)जिन्हें जानता है कि वो गुमराही इख़्तियार करेंगे और हक़ वालों को बातिल पर बताएंगे.

तो सब्र करो (14)
(14)उनकी यातनाओं और दुश्मनी पर.

बेशक अल्लाह का वादा सच्चा है(15)
(15) आपकी मदद फ़रमाने का और दीने इस्लाम को सारे दीनों पर ग़ालिब करने का.

और तुम्हें सुबुक (नीचा दिखाना) न कर दें वो जो यक़ीन नहीं रखते(16){60}
(16) यानी ये लोग जिन्हें आख़िरत का यक़ीन नहीं है और उठाए जाने और हिसाब के इन्कारी हैं और उनकी नालायक हरकतें आपके लिये ग़ुस्से और दुख का कारण न हों और ऐसा न हो कि आप उनके हक़ में अज़ाब की दुआ करने में जल्दी फ़रमाएं.

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