Tafseer Surah ash-shuara From Kanzul Imaan

26 – सूरए शुअरा

26 – सूरए शुअरा

بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
طسٓمٓ  تِلْكَ ءَايَٰتُ ٱلْكِتَٰبِ ٱلْمُبِينِ
لَعَلَّكَ بَٰخِعٌۭ نَّفْسَكَ أَلَّا يَكُونُوا۟ مُؤْمِنِينَ
إِن نَّشَأْ نُنَزِّلْ عَلَيْهِم مِّنَ ٱلسَّمَآءِ ءَايَةًۭ فَظَلَّتْ أَعْنَٰقُهُمْ لَهَا خَٰضِعِينَ
وَمَا يَأْتِيهِم مِّن ذِكْرٍۢ مِّنَ ٱلرَّحْمَٰنِ مُحْدَثٍ إِلَّا كَانُوا۟ عَنْهُ مُعْرِضِينَ
فَقَدْ كَذَّبُوا۟ فَسَيَأْتِيهِمْ أَنۢبَٰٓؤُا۟ مَا كَانُوا۟ بِهِۦ يَسْتَهْزِءُونَ
أَوَلَمْ يَرَوْا۟ إِلَى ٱلْأَرْضِ كَمْ أَنۢبَتْنَا فِيهَا مِن كُلِّ زَوْجٍۢ كَرِيمٍ
إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَءَايَةًۭ ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُم مُّؤْمِنِينَ
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلْعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ

सूरए शुअरा मक्का में उतरी, इसमें 227 आयतें, 11 रूकू हैं.
– पहला रूकू

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए शुअरा मक्के में उतरी, सिवाय आख़िर की चार आयतों के जो “वश्शुअराओ यत्तबिउहुम” से शुरू होती है. इस सूरत में ग्यारह रूकू, दो सौ सत्ताईस आयतें, एक हज़ार दो सौ उनासी कलिमे  और पाँच हज़ार पाँच सौ चालीस अक्षर हें.

तॉ-सीन-मीम {1} ये आयतें हैं रौशन किताब की(2){2}
(2) यानी क़ुरआने पाक की, जिसका चमत्कार ज़ाहिर है और जो सच्चाई को बातिल से अलग करने वाला हे. इसके बाद सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से मेहरबानी और करम के अन्दाज़ में सम्बोधन होता है.

कहीं तुम अपनी जान पर खेल जाओगे उनके ग़म में कि वो ईमान नहीं लाए(3){3}
(3) जब मक्का वाले ईमान न लाए और उन्होंने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को झुटलाया तो हुज़ूर पर उनकी मेहरूमी बहुत भारी गुज़री. इसपर अल्लाह तआला ने यह आयत उतारी कि आप इस क़दर ग़म न करें.

अगर हम चाहें तो आसमान से उनपर कोई निशानी उतारें कि उनके ऊंचे ऊंचे उसके हुज़ूर झुके रह जाएं (4){4}
(4) और कोई गुमराही और नाफ़रमानी के साथ गर्दन न उठा सके.

और नहीं आती उनके पास रहमान की तरफ़ से कोई नई नसीहत मगर उससे मुंह फेर लेते हैं (5){5}
(5) यानी दम-ब-दम उनका कुफ़्र बढ़ता जाता है कि जो नसीहत, ज़िक्र और जो वही उतरती है वो उसका इनकार करते चले जाते हैं.

तो बेशक उन्होंने झुटलाया तो अब आया चाहती हैं ख़बरें उनके ठट्टे की(6){6}
(6) यह चेतावनी है और इसमें डराना है कि बद्र के दिन या क़यामत के दिन रोज़ जब उन्हें अज़ाब पहुंचेगा तब उन्हें ख़बर होगी कि क़ुरआन और रसूल के झुटलाने का यह परिणाम है.

क्या उन्होंने ज़मीन को न देखा हमने उसमें कितने इज़्ज़त वाले जोड़े उगाए(7){7}
(7) यानी तरह तरह के बेहतरीन और नफ़ा देने वाले पेड़ पौधे पैदा किये. शअबी ने कहा कि आदमी ज़मीन की पैदावर है. जो जन्नती है वह इज़्ज़त वाला और करीम, और जो जहन्नमी है वो बदबख़्त और मलामत पाया हुआ है.

बेशक उसमें ज़रूर निशानी है(8)
(8) अल्लाह तआला की भरपूर क़ुदरत पर.

और उनके अक्सर ईमान लाने वाले नहीं{8} और बेशक तुम्हारा रब ज़रूर वही इज़्ज़त वाला मेहरबान है(9){9}
(9) काफ़िरों से बदला लेता और ईमान वालों पर मेहरबानी फ़रमाता है.

26 – सूरए शुअरा – दूसरा रूकू

26 – सूरए शुअरा – दूसरा रूकू

وَإِذْ نَادَىٰ رَبُّكَ مُوسَىٰٓ أَنِ ٱئْتِ ٱلْقَوْمَ ٱلظَّٰلِمِينَ
قَوْمَ فِرْعَوْنَ ۚ أَلَا يَتَّقُونَ
قَالَ رَبِّ إِنِّىٓ أَخَافُ أَن يُكَذِّبُونِ
وَيَضِيقُ صَدْرِى وَلَا يَنطَلِقُ لِسَانِى فَأَرْسِلْ إِلَىٰ هَٰرُونَ
وَلَهُمْ عَلَىَّ ذَنۢبٌۭ فَأَخَافُ أَن يَقْتُلُونِ
قَالَ كَلَّا ۖ فَٱذْهَبَا بِـَٔايَٰتِنَآ ۖ إِنَّا مَعَكُم مُّسْتَمِعُونَ
فَأْتِيَا فِرْعَوْنَ فَقُولَآ إِنَّا رَسُولُ رَبِّ ٱلْعَٰلَمِينَ
أَنْ أَرْسِلْ مَعَنَا بَنِىٓ إِسْرَٰٓءِيلَ
قَالَ أَلَمْ نُرَبِّكَ فِينَا وَلِيدًۭا وَلَبِثْتَ فِينَا مِنْ عُمُرِكَ سِنِينَ
وَفَعَلْتَ فَعْلَتَكَ ٱلَّتِى فَعَلْتَ وَأَنتَ مِنَ ٱلْكَٰفِرِينَ
قَالَ فَعَلْتُهَآ إِذًۭا وَأَنَا۠ مِنَ ٱلضَّآلِّينَ
فَفَرَرْتُ مِنكُمْ لَمَّا خِفْتُكُمْ فَوَهَبَ لِى رَبِّى حُكْمًۭا وَجَعَلَنِى مِنَ ٱلْمُرْسَلِينَ
وَتِلْكَ نِعْمَةٌۭ تَمُنُّهَا عَلَىَّ أَنْ عَبَّدتَّ بَنِىٓ إِسْرَٰٓءِيلَ
قَالَ فِرْعَوْنُ وَمَا رَبُّ ٱلْعَٰلَمِينَ
قَالَ رَبُّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَآ ۖ إِن كُنتُم مُّوقِنِينَ
الَ لِمَنْ حَوْلَهُۥٓ أَلَا تَسْتَمِعُونَ
قَالَ رَبُّكُمْ وَرَبُّ ءَابَآئِكُمُ ٱلْأَوَّلِينَ
قَالَ إِنَّ رَسُولَكُمُ ٱلَّذِىٓ أُرْسِلَ إِلَيْكُمْ لَمَجْنُونٌۭ
قَالَ رَبُّ ٱلْمَشْرِقِ وَٱلْمَغْرِبِ وَمَا بَيْنَهُمَآ ۖ إِن كُنتُمْ تَعْقِلُونَ
قَالَ لَئِنِ ٱتَّخَذْتَ إِلَٰهًا غَيْرِى لَأَجْعَلَنَّكَ مِنَ ٱلْمَسْجُونِينَ
قَالَ أَوَلَوْ جِئْتُكَ بِشَىْءٍۢ مُّبِينٍۢ
قَالَ فَأْتِ بِهِۦٓ إِن كُنتَ مِنَ ٱلصَّٰدِقِينَ
فَأَلْقَىٰ عَصَاهُ فَإِذَا هِىَ ثُعْبَانٌۭ مُّبِينٌۭ
وَنَزَعَ يَدَهُۥ فَإِذَا هِىَ بَيْضَآءُ لِلنَّٰظِرِينَ

और याद करो जब तुम्हारे रब ने मूसा को निदा फ़रमाई कि ज़ालिम लोगों के पास जा{10} जो फ़िरऔन की क़ौम है(1)
(1) जिन्होंने कुफ़्र और गुमराही से अपनी जानों पर ज़ुल्म किया  और बनी इसराईल को ग़ुलाम बनाकर और उन्हें तरह तरह की यातनाएं देकर उन पर अत्याचार किया. उस क़ौम का नाम क़िब्त है. हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को उनकी तरफ़ रसूल बनाकर भेजा गया था कि उन्हें उनकी बदकिरदारी पर अल्लाह के अज़ाब से डराएं.

क्या वो न डरेंगे(2){11}
(2) अल्लाह से और अपनी जानों को अल्लाह तआला पर ईमान लाकर और उसकी फ़रमाँबरदारी करके उसके अज़ाब से न बचाएंगे. इसपर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अल्लाह की बारगाह में….

अर्ज़ की ऐ मेरे रब मैं डरता हूँ कि वो मुझे झुटलाएंगे{12} और मेरा सीना तंगी करता है(3)
(3) उनके झुटलाने से.

और मेरी ज़बान नहीं चलती(4)
(4) यानी बात चीत करने में किसी क़दर तकल्लुफ़ होता है. उस तकलीफ़ की वजह से जो बचपन में मुंह में आग का अंगारा रख लेने की वजह से ज़बान में हो गई है.

तो तू हारून को भी रसूल कर (5){13}
(5) ताकि वह रिसालत के प्रचार में मेरी मदद करें. जिस वक़्त हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को शाम में नबुव्वत दी गई उस वक़्त हज़रत हारून अलैहिस्सलाम मिस्र में थे.

और उनका मुझपर एक इल्ज़ाम है(6)
(6) कि मैंने क़िब्ती को मारा था.

तो मैं डरता हूँ कहीं मुझे (7)
(7) उसके बदले में.

क़त्ल कर दें{14} फ़रमाया यूँ नहीं(8)
(8) तुम्हें क़त्ल नहीं कर सकते और अल्लाह तआला ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की प्रार्थना मन्ज़ूर फ़रमा कर हज़रत हारून अलैहिस्सलाम को भी नबी कर दिया और दोनों को हुक्म दिया.

तुम दोनों मेरी आयतें लेकर जाओ हम तुम्हारे साथ सुनते हैं(9){15}
(9) जो तुम कहो और जो तुम्हें दिया जाए.

तो फ़िरऔन के पास जाओ फिर उससे कहो हम दोनों उसके रसूल हैं जो रब है सारे जगत का{16} कि तू हमारे साथ बनी इस्राईल को छोड़ दे(10){17}
(10) ताकि हम उन्हें शाम की धरती पर ले जाएं. फ़िरऔन ने चारसौ बरस तक बनी इस्राईल को ग़ुलाम बनाए रखा था. उस वक़्त बनी इस्राईल की तादाद छ लाख तीस हज़ार थी. अल्लाह तआला का यह हुक्म पाकर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम मिस्र की तरफ़ रवाना हुए. आप पशमीने का जुब्बा पहने हुए थे. मुबारक हाथ में लाठी थी जिसके सिरे पर ज़ंबील लटकी हुई थी जिसमें सफ़र का तोशा था. इस शान से आप मिस्र में पहुंच कर अपने मकान मे दाख़िल हुए. हज़रत हारून अलैहिस्सलाम वहीं थे. आपने उन्हें ख़बर दी कि अल्लाह तआला ने मुझे रसूल बनाकर फ़िरऔन की तरफ़ भेजा है और आप को भी रसूल बनाया है कि फ़िरऔन को ख़ुदा की तरफ़ दावत दो. यह सुनकर आपकी वालिदा साहिबा घबराई और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से कहने लगीं कि फ़िरऔन तुम्हें क़त्ल करने के लिये तुम्हारी तलाश में है. जब तुम उसके पास जाओगे तो तुम्हें क़त्ल करेगा. लेकिन हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम उनके यह फ़रमाने से न रूके  हज़रत हारून को साथ लेकर रात के वक़्त फ़िरऔन के दरवाज़े पर पहुंचें दरवाज़ा खटखटाया, पूछा आप कौन हैं? हज़रत ने फ़रमाया मैं हूँ मूसा, सारे जगत के रब का रसूल, फ़िरऔन को ख़बर दी गई. सुबह के वक़्त आप बुलाए गए. आप ने पहुंचकर अल्लाह तआला की रिसालत अदा की और फ़िरऔन के पास जो हुक्म पहुंचाने पर आप मुक़र्रर किये गए थे, वह पहुंचाया, फ़िरऔन ने आपको पहचाना.

बोला क्या हमने तुम्हें अपने यहाँ बचपन मे न पाला और तुमने हमारे यहाँ अपनी उम्र के कई बरस गुज़ारे (11){18}
(11) मुफ़स्सिरों ने कहा तीस बरस. उस ज़माने में हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम फ़िरऔन के लिबास पहनते थे और उसकी सवारियों में सवार होते थे और उसके बेटे मशहूर थे.

और तुमने किया अपना वह काम जो तुमने किया(12)
(12) क़िब्ती को क़त्ल किया.

और तुम नाशुक्रे थे (13){19}
(13) कि तुमने हमारी नेअमत का शुक्रिया अदा न किया और हमारे एक आदमी को क़त्ल कर दिया.

मूसा ने फ़रमाया, मैंने वह काम किया जबकि मुझे राह की ख़बर न थी(14){20}
(14) मैं न जानता था कि घूंसा मारने से वह शख़्स मर जाएगा. मेरा मारना अदब सिखाने के लिये था न कि क़त्ल के लिये.

तौ मैं तुम्हारे यहां से निकल गया जब कि तुम से डरा(15)
(15)कि तुम मुझे क़त्ल करोगे और मदयन शहर को चला गया.

तो मेरे रब ने मुझे हुक्म अता फ़रमाया(16)
(16) मदयन से वापसी के वक़्त. हुक्म से यहाँ या नबुव्वत मुराद है या इल्म.

और मुझे पैग़म्बरों से किया{21} और कोई नेअमत है जिसका तू मुझ पर एहसान जताता है कि तूने ग़ुलाम बनाकर रखे बनी इस्राईल (17){22}
(17) यानी इसमें तेरा क्या एहसान है कि तू ने मेरी तरबियत की और बचपन में मुझे रखा, खिलाया, पहनाया, क्योंकि मेरे तुझ तक पहुंचने का कारण तो यही हुआ कि तूने बनी इस्राईल को ग़ुलाम बनाया, उनकी औलाद को क़त्ल किया. यह तेरा ज़ुल्म इसका कारण हुआ कि मेरे माँ बाप मुझे पाल पोस न सके और मुझे दरिया में डालने पर मजबूर हुए. तू ऐसा न करता तो मैं अपने वालदैन के पास रहता. इसलिये यह बात क्या इस क़ाबिल है कि इसका एहसान जताया जाए. फ़िरऔन मूसा अलैहिस्सलाम की इस तक़रीर से लाजवाब हो गया और उसने अपने बोलने का ढंग बदला और यह गुफ़्तगू छोड़ कर दूसरी बात शुरू की.

फ़िरऔन बोला और सारे जगत का रब क्या है(18){23}
(18) जिसका तुम अपने आपको रसूल बताते हो.

मूसा ने फ़रमाया रब आसमानों और ज़मीन का और जो कुछ उनके बीच में है अगर तुम्हें यक़ीन हो (19){24}
(19) यानी अगर तुम चीज़ों को प्रमाण से जानने की योग्यता रखते हो तो उन चीज़ों की पैदायश उसके अस्तित्व यानी होने का खुला प्रमाण है. ईक़ान यानी यक़ीन उस इल्म को कहते हैं जो तर्क से या प्रमाण से हासिल हो. इसीलिये अल्लाह तआला की शान में “मूक़िन” यक़ीन वाला नहीं कहा जाता.

अपने आस पास वालों से बोला क्या तुम ग़ौर से सुनते नहीं (20){25}
(20) उस वक़्त उसके चारों तरफ़ उसकी क़ौम के प्रतिष्ठित लोगों में से पाँच सौ व्यक्ति ज़ेवरों से सजे, सोने की कुर्सीयों पर बैठे थे. उन से फ़िरऔन का यह कहना क्या तुम ग़ौर से नहीं सुनते, इस अर्थ में था कि वो आसमान और ज़मीन को क़दीम समझते थे और उनके नष्ट किये जाने के इन्कारी थे, मतलब यह था कि जब ये चीज़ें क़दीम यानी अपने आप वुजूद में आई तो इनके लिये रब की क्या ज़रूरत. अब हज़रत मूसा अलेहिस्सलाम ने उन चीज़ों से इस्तदलाल पेश करना चाहा जिनकी पैदाइश और जिनकी फ़ना देखने में आचुकी है.

मूसा ने फ़रमाया रब तुम्हारा और तुम्हारे अगले बाप दादाओ का(21){26}
(21) यानी अगर तुम दूसरी चीज़ों से इस्तदलाल नहीं कर सकते तो ख़ुद तुम्हारे नूफ़ूस से इस्तदलाल पेश किया जाता है. अपने आपको जानते हो, पैदा हुए हो, अपने बाप दादा को जानते हो कि वो नष्ट हो गए. तो अपनी पैदायश से और उनके नष्ट हो जाने से पैदा करने और मिटा देने वाले के अस्तित्व का सुबूत मिलता है.

बोला तुम्हारे ये रसूल जो तुम्हारी तरफ़ भेजे गए है ज़रूर अक़्ल नहीं रखते(22){27}
(22) फ़िरऔन ने यह इसलिये कहा कि वह अपने सिवा किसी मअबूद के अस्तित्व का मानने वाला न था और जो उसके मअबूद होने का अक़ीदा न रखे उसको समझ से वंचित कहता था. हक़ीक़त में इस तरह की गुफ़्तगू मजबूरी और लाचारी के वक़्त आदमी की ज़बान पर आती है. लेकिन हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने हिदायत का फ़र्ज़ पूरी तरह निभाया और उसकी इस सारी निरर्थक बातचीत के बावुजूद फिर अतिरिक्त बयान की तरफ़ मुतवज्जह हुए.

मूसा ने फ़रमाया, रब पूरब और पश्चिम का और जो कुछ उन के बीच है(23)
(23) क्योंकि पूर्व से सूर्य का उदय करना और पश्चिम में डूब जाना और साल की फ़सलों में एक निर्धारित हिसाब पर चलना और हवाओं और बारिशों वग़ैरह के प्रबन्ध, यह सब उसके वुजूद यानी अस्तित्व और क्षमता यानी क़ुदरत के प्रमाण है.

अगर तुम्हें अक़्ल हो(24){28}
(24) अब फ़िरऔन आश्चर्य चकित हो गया और अल्लाह की क़ुदरत के चिन्हों के इन्कार की राह बाक़ी न रही और कोई जवाब उससे न बन पड़ा.

बोला अगर तुम ने मेरे सिवा किसी और को ख़ुदा ठहराया तो मैं ज़रूर तुम्हें कै़द कर दूंगा(25){29}
(25) फ़िरऔन की क़ैद क़त्ल से बदतर थी. उसका जेल खाना तंग, अंधेरा, गहरा गढा था. उसमें अकेला डाल देता था, न वहाँ कोई आवाज़ सुनाई देती थी, न कुछ नज़र आता था.

फ़रमाया क्या अगरचे मैं तेरे पास रौशन चीज़ लांऊ (26){30}
(26) जो मेरी रिसालत का प्रमाण हो, मुराद इससे चमत्कार है. इसपर फ़िरऔन ने.

कहा तो लाओ अगर सच्चे हो {31} तो मूसा ने अपना असा डाल दिया जभी वह साफ़ खुला अजगर हो गया (27){32}
(27) लाठी अजगर बन कर आसमान की तरफ़ एक मील के बराबर उड़ी फिर उतर कर फ़िरऔन की तरफ़ आई और कहने लगी, ऐ मूसा हुक्म दीजिये. फ़िरऔन ने घबराकर कहा उसकी क़सम जिसने तुम्हें रसूल बनाया, इसे पकड़ो. हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उसे हाथ में लिया तो पहले की तरह लाठी हो गई. फ़िरऔन कहने लगा, इसके सिवा और भी कोई चमत्कार है. आपने फ़रमाया हाँ. और उसको चमकती हथैली दिखाई.

और अपना हाथ(28)
(28) गिरेबान में डालकर.

निकाला तो जभी वह देखने वालों की निगाह में जगमगाने लगा(29){33}
(29) उससे सूरज की सी किरन ज़ाहिर हुई.

26 – सूरए शुअरा -तीसरा रूकू

26 – सूरए शुअरा -तीसरा रूकू

قَالَ لِلْمَلَإِ حَوْلَهُۥٓ إِنَّ هَٰذَا لَسَٰحِرٌ عَلِيمٌۭ
يُرِيدُ أَن يُخْرِجَكُم مِّنْ أَرْضِكُم بِسِحْرِهِۦ فَمَاذَا تَأْمُرُونَ
قَالُوٓا۟ أَرْجِهْ وَأَخَاهُ وَٱبْعَثْ فِى ٱلْمَدَآئِنِ حَٰشِرِينَ
يَأْتُوكَ بِكُلِّ سَحَّارٍ عَلِيمٍۢ
فَجُمِعَ ٱلسَّحَرَةُ لِمِيقَٰتِ يَوْمٍۢ مَّعْلُومٍۢ
وَقِيلَ لِلنَّاسِ هَلْ أَنتُم مُّجْتَمِعُونَ
لَعَلَّنَا نَتَّبِعُ ٱلسَّحَرَةَ إِن كَانُوا۟ هُمُ ٱلْغَٰلِبِينَ
فَلَمَّا جَآءَ ٱلسَّحَرَةُ قَالُوا۟ لِفِرْعَوْنَ أَئِنَّ لَنَا لَأَجْرًا إِن كُنَّا نَحْنُ ٱلْغَٰلِبِينَ
قَالَ نَعَمْ وَإِنَّكُمْ إِذًۭا لَّمِنَ ٱلْمُقَرَّبِينَ
قَالَ لَهُم مُّوسَىٰٓ أَلْقُوا۟ مَآ أَنتُم مُّلْقُونَ
فَأَلْقَوْا۟ حِبَالَهُمْ وَعِصِيَّهُمْ وَقَالُوا۟ بِعِزَّةِ فِرْعَوْنَ إِنَّا لَنَحْنُ ٱلْغَٰلِبُونَ
فَأَلْقَىٰ مُوسَىٰ عَصَاهُ فَإِذَا هِىَ تَلْقَفُ مَا يَأْفِكُونَ
فَأُلْقِىَ ٱلسَّحَرَةُ سَٰجِدِينَ
قَالُوٓا۟ ءَامَنَّا بِرَبِّ ٱلْعَٰلَمِينَ
رَبِّ مُوسَىٰ وَهَٰرُونَ
قَالَ ءَامَنتُمْ لَهُۥ قَبْلَ أَنْ ءَاذَنَ لَكُمْ ۖ إِنَّهُۥ لَكَبِيرُكُمُ ٱلَّذِى عَلَّمَكُمُ ٱلسِّحْرَ فَلَسَوْفَ تَعْلَمُونَ ۚ لَأُقَطِّعَنَّ أَيْدِيَكُمْ وَأَرْجُلَكُم مِّنْ خِلَٰفٍۢ وَلَأُصَلِّبَنَّكُمْ أَجْمَعِينَ
قَالُوا۟ لَا ضَيْرَ ۖ إِنَّآ إِلَىٰ رَبِّنَا مُنقَلِبُونَ
إِنَّا نَطْمَعُ أَن يَغْفِرَ لَنَا رَبُّنَا خَطَٰيَٰنَآ أَن كُنَّآ أَوَّلَ ٱلْمُؤْمِنِينَ

बोला अपने गिर्द के सरदारों से कि बेशक ये जानकार जादूगर हैं{34} चाहते हैं कि तुम्हें तुम्हारे मुल्क से निकाल दें अपने जादू के ज़ोर से, तब तुम्हारी क्या सलाह है(1){35}
(1) क्योंकि उस ज़माने में जादू का बहुत रिवाज़ था इसलिये फ़िरऔन ने ख़याल किया यह बात चल जाएगी और उसकी क़ौम के लोग इस धोखे में आकर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से नफ़रत करने लगेंगे और उनकी बात क़ुबूल न करेंगे.

वो बोले इन्हें और इनके भाई को ठहराए रहो और शहरों में जमा करने वाले भेजो{36} कि वो तरे पास ले आएं , हर बड़े जानकार जादूगर को (2){37}
(2) जो जादू के इल्म में उनके कहने के मुताबिक मूसा अलैहिस्सलाम से बढ़ कर हो और वो लोग अपने जादू से हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के चमत्कारों का मुकाबला करें ताकि हज़रत मूसा के लिये हुज्जत बाक़ी न रहे और फ़िरऔन के लोगों को यह कहने का मौक़ा मिल जाए कि यह काम जादू से हो जाते हैं लिहाज़ा नबुव्वत की दलील नहीं.

तो जमा किये गए जादूगर एक मुक़र्रर दिन के वादे पर(3){38}
(3) वह दिन फ़िरऔन की क़ौम की ईद का था और इस मुक़ाबले के लिये चाश्त का समय निर्धारित किया गया था.

और लोगों से कहा गया क्या तुम जमा हो गए(4){39}
(4) ताकि देखो कि दोनों पक्ष क्या करते हैं और उनमें कोन जीतता है.

शायद हम उन जादूगरों ही की पैरवी करें अगर ये ग़ालिब आएं (5){40}
(5) हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पर. इससे उनका तात्पर्य जादूगरों का अनुकरण करना न था बल्कि ग़रज़ यह थी कि इस बहाने लोगों को हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के अनुकरण से रोकें.

फिर जब जादूगर आए फ़िरऔन से बोले क्या हमें कुछ मजदूरी मिलेगी अगर हम ग़ालिब आए{41} बोला हाँ और उस वक़्त तुम मेरे मुकर्रर (नज़दीकी) हो जाओगे(6){42}
(6) तुम्हें दरबारी बनाया जाएगा, तुम्हें विशेष उपाधियाँ दी जाएगी, सब से पहले दाख़िल होने की इजाज़त दी जाएगी, सबसे बाद तक दरबार में रहोगे. इसके बाद जादूगरों ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से अर्ज़ किया कि क्या हज़रत अपनी लाठी पहले डालेंगे या हमें इजाज़त है कि हम अपना जादूई सामान डालें.

मूसा ने उनसे फ़रमाया डालो जो तुम्हें डालना है(7){43}
(7) ताकि तुम उसका अंजाम देख लो.

तो उन्होनें अपनी रस्सियां और लाठियां डालीं और बोले फ़िरऔन की इज़्ज़त की क़सम बेशक हमारी ही जीत है(8){44}
(8) उन्हें अपनी जीत का इत्मीनान था क्योंकि जादू के कामों में जो इन्तिहा के काम थे ये उनको काम में लाए थे और पूरा यक़ीन रखते थे कि अब कोई जादू इसका मुक़ाबला नहीं कर सकता.

तो मूसा ने अपना असा डाला जभी वह उनकी बनावटों को निगलने लगा(9){45}
(9)  जो उन्होंने जादू के ज़रिये बनाई थीं यानी उनकी रस्सियाँ और लाठियाँ जो जादू से अजगर बनकर दौड़ते नज़र आ रहे थे. हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की लाठी अजगर बनकर उन सब को निगल गई फिर उसको हज़रत मूसा ने अपने मुबारक हाथ में लिया तो वह पहले की तरह हो गई. जब जादूगरों ने यह देखा तो उन्हें यक़ीन हो गया कि यह जादूगर नहीं है.

अब सज्दे में गिरे {46} जादूगर बोले हम ईमान लाए उसपर जो सारे जगत का रब है{47} जो मूसा और हारून का रब है{48} फ़िरऔन बोला क्या तुम उसपर ईमान लाए पहले इसके कि मैं तुम्हें इजाज़त दूँ बेशक वह तुम्हारा बड़ा है जिसने तुम्हें जादू सिखाया, (10)
(10) यानी हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम तुम्हारे उस्ताद हैं इसीलिये वह तुम से बढ गए.

तो अब जानना चाहते हो(11){49}
(11)  कि तुम्हारे साथ क्या किया जाए.

मुझे क़सम है बेशक मैं तुम्हारे हाथ और दूसरी तरफ़ के पाँव काटूंगा और तुम सब को सूली दूंगा (12)
(12) इससे उद्देश यह था कि आम लोग डर जाएं और जादूगरों को देखकर लोग हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पर ईमान न ले आएं.

वो बोले कुछ नुक़सान नहीं(13)
(13) चाहे दुनिया में कुछ भी पेश आए क्योंकि.

हम अपने रब की तरफ़ पलटने वाले हैं(14){50}
(14) ईमान के साथ और हमें अल्लाह तआला से रहमत की उम्मीद है.

हमें तमअ (लालच) है कि हमारा रब हमारी खताएं बख़्श दे इसपर कि हम सबसे पहले ईमान लाएं(15) {51}
(15) फ़िरऔन की जनता में से या उस भीड़ में से. उस वाक़ए के बाद हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने कई साल वहाँ क़याम फ़रमाया और उन लोगों को हक़ की दावत देते रहे लेकिन उनकी सरकशी बढ़ती गई.

26 – सूरए शुअरा – चौथा रूकू

26 – सूरए शुअरा – चौथा रूकू

۞ وَأَوْحَيْنَآ إِلَىٰ مُوسَىٰٓ أَنْ أَسْرِ بِعِبَادِىٓ إِنَّكُم مُّتَّبَعُونَ
فَأَرْسَلَ فِرْعَوْنُ فِى ٱلْمَدَآئِنِ حَٰشِرِينَ
إِنَّ هَٰٓؤُلَآءِ لَشِرْذِمَةٌۭ قَلِيلُونَ
وَإِنَّهُمْ لَنَا لَغَآئِظُونَ
وَإِنَّا لَجَمِيعٌ حَٰذِرُونَ
فَأَخْرَجْنَٰهُم مِّن جَنَّٰتٍۢ وَعُيُونٍۢ
وَكُنُوزٍۢ وَمَقَامٍۢ كَرِيمٍۢ
كَذَٰلِكَ وَأَوْرَثْنَٰهَا بَنِىٓ إِسْرَٰٓءِيلَ
فَأَتْبَعُوهُم مُّشْرِقِينَ
فَلَمَّا تَرَٰٓءَا ٱلْجَمْعَانِ قَالَ أَصْحَٰبُ مُوسَىٰٓ إِنَّا لَمُدْرَكُونَ
قَالَ كَلَّآ ۖ إِنَّ مَعِىَ رَبِّى سَيَهْدِينِ
فَأَوْحَيْنَآ إِلَىٰ مُوسَىٰٓ أَنِ ٱضْرِب بِّعَصَاكَ ٱلْبَحْرَ ۖ فَٱنفَلَقَ فَكَانَ كُلُّ فِرْقٍۢ كَٱلطَّوْدِ ٱلْعَظِيمِ
وَأَزْلَفْنَا ثَمَّ ٱلْءَاخَرِينَ
وَأَنجَيْنَا مُوسَىٰ وَمَن مَّعَهُۥٓ أَجْمَعِينَ
ثُمَّ أَغْرَقْنَا ٱلْءَاخَرِينَ
إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَءَايَةًۭ ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُم مُّؤْمِنِينَ
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلْعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ

और हमने मूसा को वही भेजी कि रातों रात मेरे बन्दों को(1)
(1) यानी बनी इस्राईल को मिस्र से.

ले निकल बेशक तुम्हारा पीछा होना है(2){52}
(2) फ़िरऔन और उसके लश्कर पीछा करेंगे, और तुम्हारे पीछे दरिया में दाख़िल होंगे, हम तुम्हें निजात देंगे और उन्हें डुबा देंगे.

अब फ़िरऔन ने शहरों में जमा करने वाले भेजे(3){53}
(3) लश्करों को जमा करने के लिये, जब लश्कर जमा होगए, तो उनकी कसरत के मुक़ाबिल बनी इस्राईल की संख्या थोड़ी मालूम होने लगी. चुनान्चे फ़िरऔन ने बनी इस्राईल की निस्बत कहा.

कि ये लोग एक थोड़ी जमाअत हैं{54} और बेशक वो हम सब का दिल जलाते हैं (4){55}
(4) हमारी मुख़ालिफ़त करके और हमारी इजा़ज़त के बिना हमारी सरज़मीन से निकल कर.

और बेशक हम सब चौकन्ने हैं (5){56}
(5) हथियार बाँधे तेयार हैं.

तो हमने उन्हें (6)
(6) यानी फ़िरऔनियों को.

बाहर निकाला बाग़ों और चश्मों {57}और ख़जानों और उमदा मकानों से{58} हमने ऐसा ही किया और उनका वारिस कर दिया बनी इस्राईल को(7){59}
(7) फ़िरऔन और उसकी क़ौम के ग़र्क़ यानी डूबने के बाद.

तो फ़िरऔनियों ने उनका पीछा किया दिन निकले {60} फिर जब आमना सामना हुआ दोनों गिरोहों का(8)
(8) और उनमें से हर एक ने दूसरे को देखा.

मूसा वालों ने कहा हमको उन्होंने आ लिया(9){61}
(9) अब वो हम पर क़ाबू पा लेंगे. न हम उनके मुक़ाबले की ताक़त रखते हैं, न भागने की जगह है क्योंकि आगे दरिया है.

मूसा ने फ़रमाया यूं नहीं, (10)
(10) अल्लाह के वादे पर पूरा पूरा भरोसा है.

बेशक मेरा रब मेरे साथ है वह मुझे अब राह देता है{62} तो हमने मूसा को वही (देववाणी) फ़रमाई कि दरिया पर अपना असा मार(11)
(11)  चुनान्चे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने दरिया पर लाठी मारी.

तो जभी दरिया फट गया(12)
(12) और उसके बारह हिस्से नमूदार हुए.

तो हर हिस्सा हो गया जैसे बड़ा पहाड़ (13){63}
(13)और उनके बीच ख़ुश्क राहें.

और वहाँ क़रीब लाए हम दूसरों को(14){64}
(14)यानी फ़िरऔन और फ़िरऔनियों को, यहाँ तक कि वो बनी इस्राईल के रास्तों पर चल पड़े जो उनके लिये दरिया में अल्लाह की क़ुदरत से पैदा हुए थे.

और हमने बचा लिया मूसा और उसके सब साथ वालों को(15) {65}
(15)दरिया से सलामत निकाल कर.

फिर दूसरों को डुबो दिया(16){66}
(16) यानी फ़िरऔन और उसकी क़ौम को इस तरह कि जब बनीं इस्राईल कुल के कुल दरिया से पार हो गए और सारे फ़िरऔनी दरिया के अन्दर आ गए तो दरिया अल्लाह के हुक्म से मिल गया और पहले की तरह हो गया. और फ़िरऔन अपनी क़ौम सहित डूब गया.

बेशक इसमें ज़रूर निशानी है, (17)
(17) अल्लाह की क़ुदरत पर और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का चमत्कार.

और उनमें अक्सर मुसलमान न थे (18){67}
(18) यानी मिस्र निवासियों में सिर्फ़ फ़िरऔन की बीबी आसिया और हिज़क़ील जिनको फ़िरऔन की मूमिन औलाद कहते हैं, वो अपना ईमान छुपाए रहते थे और फ़िरऔन के चचाज़ाद थे और मरयम जिसने हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की कब्र का निशान बताया था, जब कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उनके ताबूत को दरिया से निकाला.

और बेशक तुम्हारा रब ही इज़्ज़त वाला(19)
(19) कि उसने काफ़िरों को ग़र्क़ करके बदला लिया.

मेहरबान है(20){68}
(20) ईमान वालों पर जिन्हें ग़र्क़ होने से बचाया.

26 – सूरए शुअरा – पाँचवां रूकू

26 – सूरए शुअरा – पाँचवां रूकू

وَٱتْلُ عَلَيْهِمْ نَبَأَ إِبْرَٰهِيمَ
إِذْ قَالَ لِأَبِيهِ وَقَوْمِهِۦ مَا تَعْبُدُونَ
قَالُوا۟ نَعْبُدُ أَصْنَامًۭا فَنَظَلُّ لَهَا عَٰكِفِينَ
قَالَ هَلْ يَسْمَعُونَكُمْ إِذْ تَدْعُونَ
أَوْ يَنفَعُونَكُمْ أَوْ يَضُرُّونَ
قَالُوا۟ بَلْ وَجَدْنَآ ءَابَآءَنَا كَذَٰلِكَ يَفْعَلُونَ
قَالَ أَفَرَءَيْتُم مَّا كُنتُمْ تَعْبُدُونَ
أَنتُمْ وَءَابَآؤُكُمُ ٱلْأَقْدَمُونَ
فَإِنَّهُمْ عَدُوٌّۭ لِّىٓ إِلَّا رَبَّ ٱلْعَٰلَمِينَ
ٱلَّذِى خَلَقَنِى فَهُوَ يَهْدِينِ
وَٱلَّذِى هُوَ يُطْعِمُنِى وَيَسْقِينِ
وَإِذَا مَرِضْتُ فَهُوَ يَشْفِينِ
وَٱلَّذِى يُمِيتُنِى ثُمَّ يُحْيِينِ
وَٱلَّذِىٓ أَطْمَعُ أَن يَغْفِرَ لِى خَطِيٓـَٔتِى يَوْمَ ٱلدِّينِ
رَبِّ هَبْ لِى حُكْمًۭا وَأَلْحِقْنِى بِٱلصَّٰلِحِينَ
وَٱجْعَل لِّى لِسَانَ صِدْقٍۢ فِى ٱلْءَاخِرِينَ
وَٱجْعَلْنِى مِن وَرَثَةِ جَنَّةِ ٱلنَّعِيمِ
وَٱغْفِرْ لِأَبِىٓ إِنَّهُۥ كَانَ مِنَ ٱلضَّآلِّينَ
وَلَا تُخْزِنِى يَوْمَ يُبْعَثُونَ
يَوْمَ لَا يَنفَعُ مَالٌۭ وَلَا بَنُونَ
إِلَّا مَنْ أَتَى ٱللَّهَ بِقَلْبٍۢ سَلِيمٍۢ
وَأُزْلِفَتِ ٱلْجَنَّةُ لِلْمُتَّقِينَ
وَبُرِّزَتِ ٱلْجَحِيمُ لِلْغَاوِينَ
وَقِيلَ لَهُمْ أَيْنَ مَا كُنتُمْ تَعْبُدُونَ
مِن دُونِ ٱللَّهِ هَلْ يَنصُرُونَكُمْ أَوْ يَنتَصِرُونَ
فَكُبْكِبُوا۟ فِيهَا هُمْ وَٱلْغَاوُۥنَ
وَجُنُودُ إِبْلِيسَ أَجْمَعُونَ
قَالُوا۟ وَهُمْ فِيهَا يَخْتَصِمُونَ
تَٱللَّهِ إِن كُنَّا لَفِى ضَلَٰلٍۢ مُّبِينٍ
إِذْ نُسَوِّيكُم بِرَبِّ ٱلْعَٰلَمِينَ
وَمَآ أَضَلَّنَآ إِلَّا ٱلْمُجْرِمُونَ
فَمَا لَنَا مِن شَٰفِعِينَ
وَلَا صَدِيقٍ حَمِيمٍۢ
فَلَوْ أَنَّ لَنَا كَرَّةًۭ فَنَكُونَ مِنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ
إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَءَايَةًۭ ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُم مُّؤْمِنِينَ
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلْعَزِيزُ ٱلرَّحِيم

और उनपर पढ़ो ख़बर इब्राहीम की(1){61}
(1) यानी मुश्रिकों पर.

जब उसने अपने बाप और अपनी क़ौम से फ़रमाया तुम क्या पूजते हो (2){70}
(2) हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम जानते थे कि वह लोग बुत परस्त है इसके बावुजूद आपका सवाल फ़रमाना इसलिये था ताकि उन्हें दिखा दें कि जिन चीज़ों को वो लोग पूजते हैं वो किसी तरह उसके मुस्तहिक़ नहीं.

बोले हम बुतों को पूजते हैं फिर उनके सामने आसन मारे रहते हैं{71} फ़रमाया क्या वो तुम्हारी सुनते हैं जब तुम पुकारो{72} या तुम्हारा कुछ भला बुरा करते हैं(3){73}
(3) जब यह कुछ नहीं तो उन्हें तुमने मअबूद कैसे ठहराया.

बोले बल्कि हमने अपने बाप दादा को ऐसा ही करते पाया {74} फ़रमाया तो क्या तुम देखते हो ये जिन्हें पूज रहे हो{75} तुम और तुम्हारे अगले बाप दादा (4){76}
(4) कि ये न इल्म रखते हैं न क़ुदरत, न कुछ सुनते हैं न कोई नफ़ा या नुक़सान पहुंचा सकते हैं.

बेशक वो सब मेरे दुश्मन हैं(5)
(5) मैं उनका पूजा जाना गवारा नहीं कर सकता.

मगर पर्वरदिगारे आलम(6){77}
(6) मेरा रब है, मेरे काम बनाने वाला है, मैं उसकी इबादत करता हूँ, वही इबादत के लायक़ है उसके गुण ये हैं.

वो जिसने मुझे पैदा किया(7)
(7) कुछ नहीं से सब कुछ फ़रमाया और अपनी इताअत के लिये बनाया.

तो वह मुझे राह देगा(8){78}
(8) दोस्ती के आदाब की, जैसी कि पहले हिदायत फ़रमा चुका है दीन और दुनिया की नेक बातों की.

और वह जो मुझे खिलाता और पिलाता है(9){79}
(9) और मेरा रोज़ी देने वाला है.

और जब मैं बीमार हूँ तो वही मुझे शिफ़ा देता है(10){80}
(10) मेरी बीमारियों को दूर करता है. इब्ने अता ने कहा, मानी ये है कि जब मैं ख़ल्क़ की दीद से बीमार होता है, और सच्चाई के अवलोकन से मुझे शिफ़ा यानी अच्छाई अता फ़रमाता है.

और वह मुझे वफ़ात (मृत्यु) देगा फिर मुझे ज़िन्दा करेगा(11){81}
(11)  मौत और ज़िन्दगी उसकी क़ुदरत के अन्तर्गत है.

और वह जिसकी मुझे आस लगी है कि मेरी ख़ताएं क़यामत के दिन बख़्शेगा(12){82}
(12) नबी मअसूम है. गुनाह उनसे होते ही नहीं, उनका इस्तिग़फ़ार यानी माफ़ी माँगना अपने रब के समक्ष विनम्रता है, और उम्मत के लिये माफ़ी माँगने की तालीम है, हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का अल्लाह के इन गुणों को बयान करना अपनी क़ौम पर हुज्जत क़ायम करना है कि मअबूद वही हो सकता है जिसके ये गुण हैं.

ऐ मेरे रब मुझे हुक्म अता कर(13)
(13) हुक्म से या इल्म मुराद है या हिक़मत या नबुव्वत.

और मुझे उनसे मिला दे जो तेरे ख़ास कुर्ब (समीपता) के अधिकारी है (14){83}
(14) यानी नबी अलैहिमुस्सलाम. और आपकी यह दुआ क़ुबूल हुई. चुनान्चे अल्लाह तआला फ़रमाता है “व इन्नहू फ़िल आख़िरते लमिनस सॉलिहीन”.

और मेरी सच्ची नामवरी रख पिछलों में(15) {84}
(15) यानी उन उम्मतों में जो मेरे बाद आएं. चुनांन्चे अल्लाह तआला ने उनको यह अता फ़रमाया कि तमाम दीनों वाले उनसे महब्बत रखते हैं और उनकी तारीफ़ करते हैं.

और मुझे उनमें कर जो चैन के बाग़ों के वारिस हैं(16){85}
(16) जिन्हें तू जन्नत अता फ़रमाएगा.

और मेरे बाप को बख़्श दे(17)
(17) तौबह और ईमान अता फ़रमाकर, और यह दुआ आपने इस लिये फ़रमाई कि जुदाई के वक़्त आपके वालिद ने आपसे ईमान लाने का वादा किया था. जब ज़ाहिर हो गया कि वह ख़ुदा का दुश्मन है, उसका वादा झूठ था, तो आप उससे बेज़ार हो गए, जैसा कि सूरए बराअत में है “माकानस-तिग़फारो इब्राहीमा लिअबीहे इल्ला अन मौइदतिन वअदहा इय्याहो फ़लम्मा तबय्यना लहू अन्नहू अदुव्वुन लिल्लाहे तबर्रआ मिन्हो”. यानी और इब्राहीम का अपने बाप की बख़्शिश चाहना वह तो न था मगर एक वादे के सबब जो उससे कर चुका था, फिर जब इब्राहीम को खुल गया कि वह अल्लाह का दुश्मन है, उससे तिनका तोड़ दिया, बेशक इब्राहीम ज़रूर बहुत आहें करने वाला मुतहम्मिल है. (सूरए तौबह, आयत 114).

बेशक वह गुमराह है{86} और मुझे रूस्वा न करना जिस दिन सब उठाए जाएंगे (18){87}
(18) यानी क़यामत के दिन.

जिस दिन न माल काम आएगा न बेटे{88} मगर वह जो अल्लाह के हुज़ूर हाज़िर हुआ सलामत दिल लेकर (19){89}
(19) जो शिर्क, कुफ़्र  दोहरी प्रवृति से पाक हो उसको उसका माल भी नफ़ा देगा जो राहे ख़ुदा में ख़र्च किया हो  और औलाद भी जो सालेह हो, जैसा कि हदीस शरीफ़ में है कि आदमी मरता है, उसके अमल मुनक़ते हो जाते हैं सिवाय तीन के. एक सदक़ए जारिया, दूसरा वह माल जिससे लोग नफ़ा उठाएं, तीसरी नेक औलाद जो उसके लिये दुआ करे.

और क़रीब लाई जाएगी जन्नत पर परहेज़गारों के लिये(20){90}
(20) कि उसको देखेंगे.

और ज़ाहिर की जाएगी दोज़ख़ गुमराहों के लिये{91} और उनसे कहा जाएगा (21)
(21) मलामत और फटकार के तौर पर, उनके कुफ़्र व शिर्क पर.

कहां हैं वो जिन को तुम पूजते थे {92} अल्लाह के सिवा, क्या वो तुम्हारी मदद करेंगे(22)
(22) अल्लाह के अज़ाब से बचाकर.

या बदला लेंगे{93} तो औंधा दिये गए जहन्नम में वह और सब गुमराह (23){94}
(23) यानी बुत और उनके पुजारी सब औंधे करके जहन्नम में डाल दिये जाएंगे.

और इब्लीस के लश्कर सारे(24){95}
(24) यानी उसका अनुकरण  करने वाले जिन्न हों या इन्सान. कुछ मुफ़स्सिरों ने कहा कि इब्लीस के लश्करों से उसकी सन्तान मुराद है.

कहेंगे और वो उसमें आपस में झगड़ते होंगे{96} ख़ुदा की क़सम बेशक हम खुली गुमराही में थे{97} जब कि तुम्हें सारे जगत के रब के बराबर ठहराते थे{98} और हमें न बहकाया मगर मुजरिमों ने(25){99}
(25) जिन्होंने बुत परस्ती की दावत दी या वो पहले लोग जिनका हमने अनुकरण किया या इब्लीस और उसकी सन्तान ने.

तो अब हमारा कोई सिफ़ारिशी नहीं(26){100}
(26) जैसे कि ईमान वालों के लिये अम्बिया और औलिया और फ़रिश्ते और मूमिनीन शफ़ाअत करने वाले हैं.

और न कोई ग़मख़्वार दोस्त(27) {101}
(27) जो काम आए, यह बात काफ़िर उस वक़्त कहेंगे जब देखेंगे कि अम्बिया और औलिया और फ़रिश्ते और नेक बन्दे ईमानदारों की शफ़ाअत कर रहे हैं और उनकी दोस्ती काम आ रही है. हदीस शरीफ़ में है कि जन्नती कहेगा, मेरे उस दोस्त का क्या हाल है और वह दोस्त गुनाहों की वजह से जहन्नम में होगा. अल्लाह तआला फ़रमाएगा कि इसके दोस्त को निकालों और जन्नत में दाख़िल करो तो जो लोग जहन्नम में बाक़ी रह जाएंगे वो ये कहेंगे कि हमारा कोई सिफ़ारशी नहीं है और न कोई दुख बाँटने वाला दोस्त, हसन रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया, ईमानदार दोस्त बढ़ाओ क्योंकि वो क़यामत के दिन शफ़ाअत करेंगे.

तो किसी तरह हमें फिर जाना होता(28)
(28) दुनिया में.
कि हम मुसलमान हो जाते {102} बेशक इसमें निशानी है, और उनमें बहुत ईमान वाले न थे{103} और बेशक तुम्हारा रब ही इज़्ज़त वाला मेहरबान है{104}

26 – सूरए शुअरा – छटा रूकू

26 – सूरए शुअरा – छटा रूकू

كَذَّبَتْ قَوْمُ نُوحٍ ٱلْمُرْسَلِينَ
إِذْ قَالَ لَهُمْ أَخُوهُمْ نُوحٌ أَلَا تَتَّقُونَ
إِنِّى لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌۭ
فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ
وَمَآ أَسْـَٔلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ ۖ إِنْ أَجْرِىَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ ٱلْعَٰلَمِينَ
فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ
۞ قَالُوٓا۟ أَنُؤْمِنُ لَكَ وَٱتَّبَعَكَ ٱلْأَرْذَلُونَ
قَالَ وَمَا عِلْمِى بِمَا كَانُوا۟ يَعْمَلُونَ
إِنْ حِسَابُهُمْ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّى ۖ لَوْ تَشْعُرُونَ
وَمَآ أَنَا۠ بِطَارِدِ ٱلْمُؤْمِنِينَ
إِنْ أَنَا۠ إِلَّا نَذِيرٌۭ مُّبِينٌۭ
قَالُوا۟ لَئِن لَّمْ تَنتَهِ يَٰنُوحُ لَتَكُونَنَّ مِنَ ٱلْمَرْجُومِينَ
قَالَ رَبِّ إِنَّ قَوْمِى كَذَّبُونِ
فَٱفْتَحْ بَيْنِى وَبَيْنَهُمْ فَتْحًۭا وَنَجِّنِى وَمَن مَّعِىَ مِنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ
فَأَنجَيْنَٰهُ وَمَن مَّعَهُۥ فِى ٱلْفُلْكِ ٱلْمَشْحُونِ
ثُمَّ أَغْرَقْنَا بَعْدُ ٱلْبَاقِينَ
إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَءَايَةًۭ ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُم مُّؤْمِنِينَ
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلْعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ

नूह की क़ौम ने पैग़म्बरों कोझुटलाया (1){105}
(1) यानी नूह अलैहिस्सलाम का झुटलाना सारे पैग़म्बरों का झुटलाना है क्योंकि दीन सारे रसूलों का एक है और हर एक नबी लोगों को तमाम नबियों पर ईमान लाने की दावत देते हैं.

जबकि उनसे उनके हम क़ौम नूह ने कहा क्या तुम डरते नहीं(2){106}
(2) अल्लाह तआला से, कि कुफ़्र और गुनाह का त्याग करो.

बेशक मैं तुम्हारे लिए अल्लाह का भेजा हुआ अमीन हूँ (3){107}
(3) उसकी वही और रिसालत की तबलीग़ पर, और आपकी अमानत आपकी क़ौम मानती थी जैसे कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के अमीन और ईमानदार होने पर सारा अरब सहमत था.

तो अल्लाह से डरो और मेरा हुक्म मानो(4){108}
(4) जो मैं तौहीद और ईमान और अल्लाह की फ़रमाँबरदारी के बारे में देता हूं.

और मैं उस पर तुम से कुछ उजरत नहीं मांगता, मेरा अज्र तो उसी पर है जो सारे जगत का रब है {109} तो अल्लाह से डरो और मेरा हुक्म मानो{110} बोले क्या हम तुम पर ईमान ले आएं और तुम्हारे साथ कमीने हुए हैं (5){111}
(5) यह बात उन्होंने घमण्ड से कही. ग़रीबों के पास बैठना उन्हें गवारा न था. इसमें वो अपना अपमान समझते थे. इसलिये ईमान जैसी नेअमत से मेहरूम रहे. कमीने से उनकी मुराद ग़रीब और व्यवसायी लोग थे और उनको ज़लील, तुच्छ और कमीना कहना, यह काफ़िरों का घमण्ड था वरना वास्तव में व्यवसाय और पेशा हैसियत दीन से आदमी को ज़लील नहीं करता. ग़िना अस्ल में दीनी अमीरी है और नसब तक़वा का नसब. मूमिन को ज़लील कहना जाइज़ नहीं, चाहे वह कितना ही मोहताज और नादार हो या वह किसी नसब का हो. (मदारिक).

फ़रमाया मुझे क्या ख़बर उनके काम क्या हैं(6){112}
(6) वे क्या पेशा करते हैं, मुझे इससे क्या मतलब , मैं उन्हें अल्लाह की तरफ़ दावत देता हूँ.

उनका हिसाब तो मेरे रब ही पर है(7)
(7) वही उन्हें जज़ा देगा.

अगर तुम्हें हिस (ज्ञान) हो (8){113}
(8) तो न तुम उन्हें ऐब लगाओ, न पेशों के कारण उनसे मुंह फेरो. फिर क़ौम ने कहा कि आप कमीनों को अपनी मजलिस से निकाल दीजिये ताकि हम आप के पास आएं और आपकी बात मानें. इसके जवाब में फ़रमाया.

और मैं मुसलमानों को दूर करने वाला नहीं(9){114}
(9) यह मेरी शान नहीं कि मैं तुम्हारी ऐसी इच्छाओ को पूरा करूं और तुम्हारे ईमान के लालच में मुसलमानों को अपने पास से निकाल दूं.

मैं तो नहीं मगर साफ़ डर सुनाने वाला(10){115}
(10) खुले प्रमाण के साथ, जिस से सच्चाई और बातिल में फ़र्क़ हो जाए तो जो ईमान लाए वही मेरे क़रीब है और जो ईमान न लाए, वही दूर.

बोले ऐ नूह अगर तुम बाज़ न आए (11)
(11)  दावत और डराने से.

तो ज़रूर संगसार (पथराव) किये जाओगे (12){116}
(12)  हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने अल्लाह की बारगाह में.

अर्ज़ की ऐ मेरे रब मेरी क़ौम ने मुझे झुटलाया (13){117}
(13) तेरी वही और रिसालत में. मुराद आपकी यह थी कि मैं जो उन के हक़ में बददुआ करता हूँ उसका कारण यह नहीं है कि उन्होंने मुझे संगसार करने की धमकी दी. न यह कि उन्होंने मेरे मानने वालों को ज़लील समझा. बल्कि मेरी दुआ का कारण यह है कि उन्हों ने तेरे कलाम को झुटलाया और तेरी रिसालत को क़ुबूल करने से इन्कार किया.

तो मुझ में और उनमें पूरा फ़ैसला करदे और मुझे मेरे साथ वाले मुसलमानों को निजात दे(14){118}
(14) उन लोगों की शामतें आमाल से.

तो हमने बचा लिया उसे और उसके साथ वालों को भरी हुई किश्ती में(15) {119}
(15) जो आदमियों, पक्षियों और जानवरों से भरी हुई थी.

फिर उसके बाद(16)
(16)यानी हज़रत नूह अलैहिस्सलाम और उनके साथियों को निजात देने के बाद.

हमने बाक़ियों को डुबो दिया {120} बेशक इसमें ज़रूर निशानी है, और उनमें अकसर मुसलमान न थे{121} और बेशक तुम्हारा रब ही इज़्ज़त वाला मेहरबान है{122}

26 – सूरए शुअरा – सातवाँ रूकू

26 – सूरए शुअरा – सातवाँ रूकू

كَذَّبَتْ عَادٌ ٱلْمُرْسَلِينَ
إِذْ قَالَ لَهُمْ أَخُوهُمْ هُودٌ أَلَا تَتَّقُونَ
إِنِّى لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌۭ
فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ
وَمَآ أَسْـَٔلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ ۖ إِنْ أَجْرِىَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ ٱلْعَٰلَمِينَ
أَتَبْنُونَ بِكُلِّ رِيعٍ ءَايَةًۭ تَعْبَثُونَ
وَتَتَّخِذُونَ مَصَانِعَ لَعَلَّكُمْ تَخْلُدُونَ
وَإِذَا بَطَشْتُم بَطَشْتُمْ جَبَّارِينَ
فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ
وَٱتَّقُوا۟ ٱلَّذِىٓ أَمَدَّكُم بِمَا تَعْلَمُونَ
أَمَدَّكُم بِأَنْعَٰمٍۢ وَبَنِينَ
وَجَنَّٰتٍۢ وَعُيُونٍ
إِنِّىٓ أَخَافُ عَلَيْكُمْ عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيمٍۢ
قَالُوا۟ سَوَآءٌ عَلَيْنَآ أَوَعَظْتَ أَمْ لَمْ تَكُن مِّنَ ٱلْوَٰعِظِينَ
إِنْ هَٰذَآ إِلَّا خُلُقُ ٱلْأَوَّلِينَ
وَمَا نَحْنُ بِمُعَذَّبِينَ
فَكَذَّبُوهُ فَأَهْلَكْنَٰهُمْ ۗ إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَءَايَةًۭ ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُم مُّؤْمِنِينَ
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلْعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ

आद ने रसूलों को झुटलाया(1){123}
(1) आद एक क़बीला है और अस्ल में यह एक शख़्स का नाम है जिसकी सन्तान से यह क़बीला है.

जबकि उनसे उनके हक़ क़ौम हूद ने फ़रमाया क्या तुम डरते नहीं{124} बेशक मैं तुम्हारे लिये अमानत दार रसूल हूँ {125} तो अल्लाह से डरो(2)
(2) और मेरी तकज़ीब न करो यानी मूझे न झुटलाओ.

और मेरा हुक्म मानो{126} और मैं तुम से इस पर कुछ उजरत नहीं मांगता, मेरा अज्र तो उसी पर है जो सारे जगत का रब है{127} क्या हर बलन्दी पर एक निशान बनाते हो राहगीरों से हंसने को (3) {128}
(3) कि उस पर चढ़कर गुज़रने वालों से ठठ्ठा करो और यह उस क़ौम की आदत थी. उन्होंने रास्ते पर ऊंची बुनियादें बना ली थीं वहाँ बैठकर राहगीरों को परेशान करते और खेल करते.

और मज़बूत महल चुनते हो इस उम्मीद पर कि तुम हमेशा रहोगे(4){129}
(4) और कभी न मरोगे.

और जब किसी पर गिरफ़्त करते हो तो बड़ी बेदर्दी से गिरफ़्त करते हो (5){130}
(5) तलवार से क़त्ल करके, कोड़े मारकर, बहुत बेरहमी से.

तो अल्लाह से डरो और मेरा हुक्म मानो{131} और उससे डरो जिसने तुम्हारी मदद की उन चीज़ों से कि तुम्हें मालूम हैं(6){132}
(6) यानी वो नेअमतें जिन्हें तुम जानते हो, आगे उनका बयान फ़रमाया जाता है.

तुम्हारी मदद की चौपायों और बेटों {133} और बाग़ों और चश्मों (झरनों) से {134} बेशक मुझे तुम पर डर है एक बड़े दिन के अज़ाब का(7){135}
(7) अगर तुम मेरी नाफ़रमानी करो. इसका जवाब उनकी तरफ़ से यह हुआ कि…

बोले हमें बराबर है चाहे तुम नसीहत करो या नसीहत करने वालों में न हो(8){136}
(8) हम किसी तरह तुम्हारी बात न मानेंगे और तुम्हारी दावत क़ुबूल न करेंगे.

यह तो नहीं मगर वही अगलों की रीति(9){137}
(9) यानी जिन चीज़ों का आपने ख़ौफ़ दिलाया. यह पहलों का दस्तूर है, वो भी ऐसी ही बातें कहा करते थे. इससे उनकी मुराद यह थी कि हम उन बातों का ऐतिबार नहीं करते, उन्हें झूट जानते हैं. या आयत के मानी ये हैं कि मौत और ज़िन्दगी और ईमारतें बनाना पहलों का तरीक़ा है.

और हमें अज़ाब होना नहीं(10){138}
(10) दुनिया में न मरने के बाद उठना न आख़िरत में हिसाब.

तो उन्होंने उसे झुटलाया (11)
(11) यानी हूद अलैहिस्सलाम को.

तो हमने उन्हें हलाक किया(12)
(12) हवा के अज़ाब से.

बेशक इसमें ज़रूर निशानी है और उनमें बहुत मुसलमान न थे{139} और बेशक तुम्हारा रब ही इज़्ज़त वाला मेहरबान है{140}

26 – सूरए शुअरा – आठवाँ रूकू

26 – सूरए शुअरा – आठवाँ रूकू

كَذَّبَتْ ثَمُودُ ٱلْمُرْسَلِينَ
إِذْ قَالَ لَهُمْ أَخُوهُمْ صَٰلِحٌ أَلَا تَتَّقُونَ
إِنِّى لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌۭ
فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ
وَمَآ أَسْـَٔلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ ۖ إِنْ أَجْرِىَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ ٱلْعَٰلَمِينَ
أَتُتْرَكُونَ فِى مَا هَٰهُنَآ ءَامِنِينَ
فِى جَنَّٰتٍۢ وَعُيُونٍۢ
وَزُرُوعٍۢ وَنَخْلٍۢ طَلْعُهَا هَضِيمٌۭ
وَتَنْحِتُونَ مِنَ ٱلْجِبَالِ بُيُوتًۭا فَٰرِهِينَ
فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ
وَلَا تُطِيعُوٓا۟ أَمْرَ ٱلْمُسْرِفِينَ
ٱلَّذِينَ يُفْسِدُونَ فِى ٱلْأَرْضِ وَلَا يُصْلِحُونَ
قَالُوٓا۟ إِنَّمَآ أَنتَ مِنَ ٱلْمُسَحَّرِينَ
مَآ أَنتَ إِلَّا بَشَرٌۭ مِّثْلُنَا فَأْتِ بِـَٔايَةٍ إِن كُنتَ مِنَ ٱلصَّٰدِقِينَ
قَالَ هَٰذِهِۦ نَاقَةٌۭ لَّهَا شِرْبٌۭ وَلَكُمْ شِرْبُ يَوْمٍۢ مَّعْلُومٍۢ
وَلَا تَمَسُّوهَا بِسُوٓءٍۢ فَيَأْخُذَكُمْ عَذَابُ يَوْمٍ عَظِيمٍۢ
فَعَقَرُوهَا فَأَصْبَحُوا۟ نَٰدِمِينَ
فَأَخَذَهُمُ ٱلْعَذَابُ ۗ إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَءَايَةًۭ ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُم مُّؤْمِنِينَ
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلْعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ

समूद ने रसूलों को झुटलाया {141} जब कि उनसे उनके हमक़ौम सालेह ने फ़रमाया क्या डरते नहीं {142} बेशक मैं तुम्हारे लिये अल्लाह का अमानतदार रसूल हूँ {143} तो अल्लाह से डरो और मेरा हुक्म मानो{144} और मैं तुमसे कुछ इसपर उजरत नहीं मांगता मेरा अज्र तो उसी पर है जो सारे जगत का रब है{145} क्या तुम यहाँ की( 1)
(1) यानी दुनिया की.

नेअमतों में चैन से छोड़ दिये जाओगे (2){146}
(2) कि ये नेअमतें कभी ज़ायल न हों और कभी अज़ाब न आए, कभी मौत न आए. आगे उन नेअमतों का बयान है.

बाग़ों और झरनों {147} और खेतों और ख़ज़ूरों में जिनका शग़ूफ़ा (कली) नर्म नाज़ुक{148} और पहाड़ों में से घर तराशते हो उस्तादी से(3){149}
(3) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि “उस्तादी से” का मतलब घमण्ड है. मानी ये हुए कि कारीगरी पर घमण्ड करते, इतराते.

तो अल्लाह से डरो और मेरा हुक्म मानो{150} और हद से बढ़ने वालों के कहने पर न चलो(4){151}
(4) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि हद से बढ़ने वालों से मुराद मुश्रिक लोग हैं. कुछ मुफ़स्सिरों ने कहा – वो नौ व्यक्ति हें जिन्होंने ऊंटनी को क़त्ल किया.

वो जो ज़मीन में फ़साद फैलाते हैं(5)
(5) कुफ़्र और ज़ुल्म और गुनाहों के साथ.

और बनाव नहीं करते(6){152}
(6) ईमान लाकर और न्याय स्थापित करके और अल्लाह के फ़रमाँबरदार होकर. मानी ये है कि उसका फ़साद ठोस है जिसमें किसी तरह की नेकी का शायबा भी नहीं और कुछ फ़साद करने वाले ऐसे भी होते हैं कि कुछ फ़साद भी करते हैं, कुछ नेकी भी उनमें होती है. मगर ये ऐसे नहीं हैं.

बोले तुम पर तो जादू हुआ है(7){153}
(7) यानी बार बार बहुतात से जादू हुआ है. जिसकी वजह से अक़्ल ठिकाने पर नहीं रही. (मआज़ल्लाह)

तुम तो हमीं जैसे आदमी हो, तो कोई निशानी लाओ (8)
(8)  अपनी सच्चाई की.

अगर सच्चे हो(9){154}
(9) रिसालत के दावे में.

फ़रमाया ये ऊंटनी है एक दिन इसके पीने की बारी (10)
(10) इसमें उससे मज़ाहिमत मत करो, यह एक ऊंटनी थी जो उनके चमत्कार तलब करने पर उनकी ख़्वाहिश के अनुसार हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम की दुआ से पत्थर से निकली थी. उसका सीना साठ गज़ का था. जब उसके पीने का दिन होता तो वह वहाँ का सारा पानी पी जाती और जब लोगों के पीने का दिन होता तो उस दिन न पीती. (मदारिक)

और एक निश्चित दिन तुम्हारी बारी{155} और इसे बुराई के साथ न छुओ (11)
(11) न उसको मारो और न उसकी कूंचें काटो.

कि तुम्हें बड़े दिन का अज़ाब आ लेगा(12){156}
(12) अज़ाब उतरने की वजह से उस दिन को बड़ा फ़रमाया गया ताकि मालूम हो कि वह अज़ाब इस क़दर बड़ा और सख़्त था कि जिस दिन उतरा उसको उसकी वजह से बड़ा फ़रमाया गया.

इस पर उन्होंने उसकी कूंचें काट दी(13)
(13) कूंचें काटने वाले व्यक्ति का नाम क़िदार था और वो लोग उसके करतूत से राज़ी थे इसलिये कूंचें काटने की निस्बत उन सब की तरफ़ की गई.

फिर सुब्ह को पछताते रह गए(14){157}
(14) कूंचें काटने पर अज़ाब उतरने के डर से न कि गुनाहों पर तौबह करने हेतु शर्मिन्दा हुए हों, या यह बात कि अज़ाब के निशान देखकर शर्मिन्दा हुए. ऐसे वक़्त की शर्मिन्दगी लाभदायक नहीं.

तो उन्हें अज़ाब ने आ लिया, (15)
(15)जिसकी उन्हें ख़बर दी गई थी, तो हलाक हो गए.
बेशक इसमें ज़रूर निशानी है, और उनमें बहुत मुसलमान न थे{158} और बेशक तुम्हारा रब ही इज़्ज़त वाला मेहरबान है{159}

26 – सूरए शुअरा – नवाँ रूकू

26 – सूरए शुअरा – नवाँ रूकू

كَذَّبَتْ قَوْمُ لُوطٍ ٱلْمُرْسَلِينَ
إِذْ قَالَ لَهُمْ أَخُوهُمْ لُوطٌ أَلَا تَتَّقُونَ
إِنِّى لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌۭ
فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ
وَمَآ أَسْـَٔلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ ۖ إِنْ أَجْرِىَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ ٱلْعَٰلَمِينَ
أَتَأْتُونَ ٱلذُّكْرَانَ مِنَ ٱلْعَٰلَمِينَ
وَتَذَرُونَ مَا خَلَقَ لَكُمْ رَبُّكُم مِّنْ أَزْوَٰجِكُم ۚ بَلْ أَنتُمْ قَوْمٌ عَادُونَ
قَالُوا۟ لَئِن لَّمْ تَنتَهِ يَٰلُوطُ لَتَكُونَنَّ مِنَ ٱلْمُخْرَجِينَ
قَالَ إِنِّى لِعَمَلِكُم مِّنَ ٱلْقَالِينَ
رَبِّ نَجِّنِى وَأَهْلِى مِمَّا يَعْمَلُونَ
فَنَجَّيْنَٰهُ وَأَهْلَهُۥٓ أَجْمَعِينَ
إِلَّا عَجُوزًۭا فِى ٱلْغَٰبِرِينَ
ثُمَّ دَمَّرْنَا ٱلْءَاخَرِينَ
وَأَمْطَرْنَا عَلَيْهِم مَّطَرًۭا ۖ فَسَآءَ مَطَرُ ٱلْمُنذَرِينَ
إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَءَايَةًۭ ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُم مُّؤْمِنِينَ
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلْعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ

लूत की क़ौम ने रसूलों को झुटलाया {160} जब कि उनसे उनके हमक़ौम लूत ने फ़रमाया क्या तुम नहीं डरते {161} बेशम मैं तुम्हारे लिये अल्लाह का अमानतदार रसूल हूँ {162} तो अल्लाह से डरो और मेरा हुक्म मानो{163} और मैं इसपर तुमसे कुछ उजरत नहीं मांगता, मेरा अज्र तो उसी पर है जो सारे जगत का रब है{164} क्या मख़लूक़ में मर्दों से बुरा काम करते हो(1){165}
(1) इसके ये मानी भी हो सकते हैं कि क्या मख़लूक़ में ऐसे नीच कर्म के लिये तुम्हीं रह गए हो. जगत के और लोग भी तो है, उन्हें देखकर तुम्हें शर्माना चाहिये, ये मानी भी हो सकते हैं कि बहुत सी औरतें होते हुए भी इस बुरे काम को करना बहुत बड़ी बुराई है.

और छोड़ते ही वह जो तुम्हारे लिये तुम्हारे रब ने जो रूएं बनाई बल्कि तुम लोग हद से बढ़ने वाले हो (2){166}
(2) कि हलाल पवित्र को छोड़कर हराम और बुरे में पड़ते हो.

बोले ऐ लूत अगर तुम बाज़ न आए(3)
(3) नसीहत करने और इस काम को बुरा कहने से.

तो ज़रूर निकाल दिये जाओगे (4){167}
(4) शहर से और तुम्हें यहाँ न रहने दिया जाएगा.

फ़रमाया मैं तुम्हारे काम से बेज़ार हूँ (5){168}
(5) और मुझे उससे बड़ी दुश्मनी है. फिर आपने अल्लाह की बारगाह में दुआ की.

ऐ मेरे रब मुझे और मेरे घर वालों को इनके काम से बचा(6){169}
(6) उसकी शामते आमाल से मेहफ़ूज़ रख.

तो हमने उसे और उसके सब घर वालों को निजात बख़्शी (7){170}
(7) यानी आपकी बेटियों को और उन सारे लोगों को जो आप पर ईमान लाए थे.

मगर एक बुढ़िया कि पीछे रह गई(8){171}
(8) जो आपकी बीबी थी और वह अपनी क़ौम के इस काम पर राज़ी थी और जो गुनाह पर राज़ी हो, वह गुनाहगार के हुक्म में होता है. इसीलिये वह बुढि़या अज़ाब में गिरफ़्तार हुई और उसने निजात न पाई.

फिर हमने दूसरों को हलाक कर दिया{172} और हमने उनपर एक बरसाव बरसाया(9)
(9) पत्थरों का या गन्धक और आग का.
तो क्या ही बुरा बरसाव था डराए गयों का {173} बेशक इसमें ज़रूर निशानी है और उनमें बहुत मुसलमान न थे{174}और बेशक तुम्हारा रब ही इज़्ज़त वाला मेहरबान है{175}

26 – सूरए शुअरा – दसवाँ रूकू

26 – सूरए शुअरा – दसवाँ रूकू

كَذَّبَ أَصْحَٰبُ لْـَٔيْكَةِ ٱلْمُرْسَلِينَ
إِذْ قَالَ لَهُمْ شُعَيْبٌ أَلَا تَتَّقُونَ
إِنِّى لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌۭ
فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ
وَمَآ أَسْـَٔلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ ۖ إِنْ أَجْرِىَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ ٱلْعَٰلَمِينَ
۞ أَوْفُوا۟ ٱلْكَيْلَ وَلَا تَكُونُوا۟ مِنَ ٱلْمُخْسِرِينَ
وَزِنُوا۟ بِٱلْقِسْطَاسِ ٱلْمُسْتَقِيمِ
وَلَا تَبْخَسُوا۟ ٱلنَّاسَ أَشْيَآءَهُمْ وَلَا تَعْثَوْا۟ فِى ٱلْأَرْضِ مُفْسِدِينَ
وَٱتَّقُوا۟ ٱلَّذِى خَلَقَكُمْ وَٱلْجِبِلَّةَ ٱلْأَوَّلِينَ
قَالُوٓا۟ إِنَّمَآ أَنتَ مِنَ ٱلْمُسَحَّرِينَ
وَمَآ أَنتَ إِلَّا بَشَرٌۭ مِّثْلُنَا وَإِن نَّظُنُّكَ لَمِنَ ٱلْكَٰذِبِينَ
فَأَسْقِطْ عَلَيْنَا كِسَفًۭا مِّنَ ٱلسَّمَآءِ إِن كُنتَ مِنَ ٱلصَّٰدِقِينَ
قَالَ رَبِّىٓ أَعْلَمُ بِمَا تَعْمَلُونَ
فَكَذَّبُوهُ فَأَخَذَهُمْ عَذَابُ يَوْمِ ٱلظُّلَّةِ ۚ إِنَّهُۥ كَانَ عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيمٍ
إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَءَايَةًۭ ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُم مُّؤْمِنِينَ
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلْعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ

बन वालों ने रसूलों को झुटलाया(1){176}
(1) यह वन मदयन के क़रीब था इसमें बहुत से दरख़्त और झाड़ियाँ थीं. अल्लाह तआला ने हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम को उनकी तरफ़ भेजा था जैसा कि मदयन वालों की तरफ़ भेजा था और ये लोग हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम की क़ौम के न थे.

जब उनसे शुएब ने फ़रमाया क्या डरते नहीं {177} बेशक मैं तुम्हारे लिये अल्लाह का अमानतदार रसूल हूँ {178} तो अल्लाह से डरो और मेरा हुक्म मानो{179} और मैं इस पर तुमसे कुछ उजरत नहीं मांगता मेरा अज्र तो उसी पर है जो सारे जगत का रब है(2){180}
(2) उन सारे नबियों की दावत का यही विषय रहा क्योंकि वो सब हज़रात अल्लाह तआला के ख़ौफ़ और उसकी फ़रमाँबरदारी और इबादत की सच्चे दिल से अदायगी का हुक्म देते और रिसालत की तबलीग़ पर कोई उजरत नहीं लेते थे लिहाज़ा सब ने यही फ़रमाया.

नाप पूरा करो और घटाने वालों में न हो (3){181}
(3) लोगों के अधिकार कम न करो नाप और तौल में.

और सीधी तराज़ू से तोलो {182} और लोगों की चीज़ें कम करके न दो और ज़मीन में फ़साद फैलाते न फिरो(4){183}
(4) रहज़नी और लूट मार करके और खेतियाँ तबाह करके, यही उन लोगों की आदतें थीं. हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम ने उन्हें उन से मना फ़रमाया.

और उससे डरो जिसने तुम को पैदा किया और अगली मख़लूक़ को{184} बोले तुम पर जादू हुआ है  {185} तुम तो नहीं मगर हम जैसे आदमी (5)
(5) नबुव्वत का इन्कार करने वाले, नबियों के बारे में आम तौर पर यही कहा करते थे जैसा कि आजकल के कुछ बुरे अक़ीदे वाले कहते हैं.

और बेशक हम तुम्हें झुटा समझते हैं{186} तो हमपर आसमान का कोई टुकड़ा गिरादो अगर तुम सच्चे हो(6){187}
(6) नबुव्वत के दावे में.

फ़रमाया मेरा रब ख़ूब जानता है जो तुम्हारे कौतुक हैं(7){188}
(7) और जिस अज़ाब के तुम मुस्तहिक़ हो वह जो अज़ाब चाहेगा तुम पर उतारेगा.

तो उन्होंने उसे झुटलाया तो उन्हें शामियाने वाले दिन के अज़ाब ने आ लिया, बेशक वह बड़े दिन का अज़ाब था (8){189}
(8) जो कि इस तरह हुआ कि उन्हें शदीद गर्मी पहुंची, हवा बन्द हुई और सात रोज़ गर्मी के अज़ाब में गिरफ़्तार रहे. तहख़ानों में जाते, वहाँ और ज़्यादा गर्मी पाते, इसके बाद एक बादल आया, सब उसके नीचे जमा हो गए. उससे आग बरसी और सब जल गए. इस घटना का बयान सूरए अअराफ़ में और सूरए हूद में गुज़र चुका है.
बेशक इसमें ज़रूर निशानी है, और उनमें बहुत मुसलमान न थे{190} और बेशक तुम्हारा रब ही इज़्ज़त वाला मेहरबान है{191}

26 – सूरए शुअरा – ग्यारहवाँ रूकू

26 – सूरए शुअरा – ग्यारहवाँ रूकू

وَإِنَّهُۥ لَتَنزِيلُ رَبِّ ٱلْعَٰلَمِينَ
نَزَلَ بِهِ ٱلرُّوحُ ٱلْأَمِينُ
عَلَىٰ قَلْبِكَ لِتَكُونَ مِنَ ٱلْمُنذِرِينَ
بِلِسَانٍ عَرَبِىٍّۢ مُّبِينٍۢ
وَإِنَّهُۥ لَفِى زُبُرِ ٱلْأَوَّلِينَ
أَوَلَمْ يَكُن لَّهُمْ ءَايَةً أَن يَعْلَمَهُۥ عُلَمَٰٓؤُا۟ بَنِىٓ إِسْرَٰٓءِيلَ
وَلَوْ نَزَّلْنَٰهُ عَلَىٰ بَعْضِ ٱلْأَعْجَمِينَ
فَقَرَأَهُۥ عَلَيْهِم مَّا كَانُوا۟ بِهِۦ مُؤْمِنِينَ
كَذَٰلِكَ سَلَكْنَٰهُ فِى قُلُوبِ ٱلْمُجْرِمِينَ
لَا يُؤْمِنُونَ بِهِۦ حَتَّىٰ يَرَوُا۟ ٱلْعَذَابَ ٱلْأَلِيمَ
فَيَأْتِيَهُم بَغْتَةًۭ وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ
فَيَقُولُوا۟ هَلْ نَحْنُ مُنظَرُونَ
أَفَبِعَذَابِنَا يَسْتَعْجِلُونَ
أَفَرَءَيْتَ إِن مَّتَّعْنَٰهُمْ سِنِينَ
ثُمَّ جَآءَهُم مَّا كَانُوا۟ يُوعَدُونَ
مَآ أَغْنَىٰ عَنْهُم مَّا كَانُوا۟ يُمَتَّعُونَ
وَمَآ أَهْلَكْنَا مِن قَرْيَةٍ إِلَّا لَهَا مُنذِرُونَ
ذِكْرَىٰ وَمَا كُنَّا ظَٰلِمِينَ
وَمَا تَنَزَّلَتْ بِهِ ٱلشَّيَٰطِينُ
وَمَا يَنۢبَغِى لَهُمْ وَمَا يَسْتَطِيعُونَ
إِنَّهُمْ عَنِ ٱلسَّمْعِ لَمَعْزُولُونَ
فَلَا تَدْعُ مَعَ ٱللَّهِ إِلَٰهًا ءَاخَرَ فَتَكُونَ مِنَ ٱلْمُعَذَّبِينَ
وَأَنذِرْ عَشِيرَتَكَ ٱلْأَقْرَبِينَ
وَٱخْفِضْ جَنَاحَكَ لِمَنِ ٱتَّبَعَكَ مِنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ
فَإِنْ عَصَوْكَ فَقُلْ إِنِّى بَرِىٓءٌۭ مِّمَّا تَعْمَلُونَ
وَتَوَكَّلْ عَلَى ٱلْعَزِيزِ ٱلرَّحِيمِ
ٱلَّذِى يَرَىٰكَ حِينَ تَقُومُ
وَتَقَلُّبَكَ فِى ٱلسَّٰجِدِينَ
إِنَّهُۥ هُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلْعَلِيمُ
هَلْ أُنَبِّئُكُمْ عَلَىٰ مَن تَنَزَّلُ ٱلشَّيَٰطِينُ
تَنَزَّلُ عَلَىٰ كُلِّ أَفَّاكٍ أَثِيمٍۢ
يُلْقُونَ ٱلسَّمْعَ وَأَكْثَرُهُمْ كَٰذِبُونَ
وَٱلشُّعَرَآءُ يَتَّبِعُهُمُ ٱلْغَاوُۥنَ
أَلَمْ تَرَ أَنَّهُمْ فِى كُلِّ وَادٍۢ يَهِيمُونَ
وَأَنَّهُمْ يَقُولُونَ مَا لَا يَفْعَلُونَ
إِلَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّٰلِحَٰتِ وَذَكَرُوا۟ ٱللَّهَ كَثِيرًۭا وَٱنتَصَرُوا۟ مِنۢ بَعْدِ مَا ظُلِمُوا۟
وَسَيَعْلَمُ ٱلَّذِينَ ظَلَمُوٓا۟ أَىَّ مُنقَلَبٍۢ يَنقَلِبُونَ

और बेशक ये क़ुरआन सारे जगत के रब का उतारा हुआ है{192} इसे रूहुल अमीन (जिब्रील) लेकर उतरा (1){193}
(1) रूहुल अमीन से हज़रत जिब्रील मुराद हैं जो वही के अमीन है.

तुम्हारे दिल पर (2)
(2) ताकि आप उसे मेहफ़ूज़ रखें और समझें और न भूलें. दिल का ख़ास करना इसलिये है कि वास्तव में उसी से सम्बोधन है और तमीज़ व अक़्ल और इख़्तियार का मक़ाम भी वही है. सारे अंग उसके मातहत हैं. हदीस शरीफ़ में है कि दिल के दुरूस्त होने से तमाम बदन दुरूस्त हो जाता है और उसके ख़राब होने से सब जिस्म ख़राब और राहत और ख़ुशी दुख और ग़म का मक़ाम दिल ही है. जब दिल को ख़ुशी होती है, सारे अंगों पर उसका असर पड़ता है. तो वह सरदार की तरह है. वही केन्द्र है अक़्ल का. तो अमीरे मुतलक़ हुआ और तकलीफ़ जो अक़्ल और समझ के साथ जुड़ी हुई है उसी की तरफ़ लौटी.

कि तुम डर सुनाओ {194} रौशन अरबी ज़बान में{195} और बेशक इसका चर्चा अगली किताबों में है(3){ 196}
(3) ‘इन्नहू’ की ज़मीर का मरजअ अगर क़ुरआन हो तो उसके मानी ये होंगे कि उसका ज़िक्र सारी आसमानी किताबों में है और अगर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तरफ़ ज़मीर राजेअ हो तो मानी ये होंगे कि अगली किताबों में आपकी तारीफ़ और विशेषता का बयान है.

और क्या यह उनके लिये निशानी न थी(4)
(4) सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की नबुव्वत और रिसालत के सच्चे होने पर.

कि उस नबी को जानते हैं बनी इस्राईल के आलिम (5){197}
(5) अपनी किताबों से और लोगों को ख़बरें देते हैं. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि मक्का वालों ने मदीने के यहूदियों के पास अपने भरोसे वाले आदमियों को यह पूछने के लिये भेजा कि क्या आख़िरी ज़माने के नबी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की निस्बत उनकी किताबों में कोई ख़बर है. इसका जवाब यहूदी उलमा ने यह दिया कि यही उनका ज़माना है और उनकी नअत और सिफ़त तौरात में मौजूद है. यहूदी उलमा में से हज़रत अब्दुल्लाह बिन सलाम और इब्ने यामीन और सअलबा और असद और उसैद, ये हज़रात, जिन्हों ने तौरात में हुज़ूर की विशेषताएं और गुण पढ़े थे, हुज़ूर पर ईमान लाए.

और अगर हम इसे किसी ग़ैर अरबी व्यक्ति पर उतारते{198} कि वह उन्हें पढ़कर सुनाता जब भी उस पर ईमान न लाते(6){199}
(6) मानी ये है कि हम ने यह क़ुरआन शरीफ़ एक फ़सीह बलीग़ अरबी नबी पर उतारा जिसकी फ़साहत अरब वालों को तसलीम है और वो जानते हैं कि क़ुरआन शरीफ़ एक चमत्कार है और उस जैसी एक सूरत बनाने से भी सारी दुनिया लाचार है. इसके अलावा किताबी उलमा की सहमति है कि इसके उतरने से पहले इसके उतरने की ख़ुशख़बरी और उस नबी की सिफ़त उनकी किताबों में उन्हें मिल चुकी है. इससे क़तई तौर पर साबित होता है कि ये नबी अल्लाह के भेजे हुए हैं और यह किताब उसकी नाज़िल फ़रमाई  हुई है. और काफ़िर जो तरह तरह की बूहूदा बातें इस किताब के बारे में कहते हैं, सब झूठ हैं. ख़ुद काफ़िर हैरत में हैं कि इसके ख़िलाफ़ क्या बात कहें. इसलिये कभी इसको पहलों के क़िस्से कहते हैं, कभी शेअर, कभी जादू और कभी यह कि मआज़ल्लाह इस को ख़ुद सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने बना लिया हैं, और अल्लाह तआला की तरफ़ इसकी ग़लत निस्बत कर दी है. इस तरह के बेहूदा ऐतिराज़ दुश्मन हर हाल में कर सकता है, यहाँ तक कि अगर बिलफ़र्ज़ यह क़ुरआन किसी ग़ैर अरबी व्यक्ति पर उतारा जाता जो अरबी की महारत न रखता और इसके बावुजूद वह ऐसा चमत्कारी क़ुरआन पढ़कर सुनाता, जब भी ये लोग इसी तरह कुफ़्र करते जिस तरह इन्होंने अब कुफ़्र और इन्कार किया क्योंकि इन के कुफ़्र और इन्कार का कारण दुश्मनी है.

हमने यूंही झुटलाना पैरा दिया है मुजरिमों के दिलों में(7){200}
(7) यानी उन काफ़िरों के, जिनका कुफ़्र इख़्तियार करना और उस पर अड़े रहना हमारे इल्म में है तो उनके लिये हिदायत का कोई भी तरीक़ा इख़्तियार किया जाए, किसी हालमें वो कुफ़्र से पलटने वाले नहीं.

वो इसपर ईमान न लाएंगे यहाँ तक कि देखें दर्दनाक अज़ाब {201} तो वह अचानक उनपर आ जाएगा और उन्हें ख़बर न होगी{202} तो कहेंगे क्या हमें कुछ मुहलत मिलेगी (8){203}
(8) ताकि हम ईमान लाएं और तस्दीक़ करें लेकिन उस वक़्त मोहलत न मिलेगी. जब सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने काफ़िरों को इस अज़ाब की ख़बर दी तो हंसी के अन्दाज़ में कहने लगे कि यह अज़ाब कब आएगा. इसपर अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है.

तो क्या हमारे अज़ाब की जल्दी करते हैं{204} भला देखो तो अगर कुछ बरस हम उन्हें बरतने दें(9){205}
(9) और फ़ौरन हलाक न कर दें.

फिर आए उनपर जिसका वो वादा दिये जाते हैं(10){206}
(10) यानी अल्लाह का अज़ाब.

तो क्या काम आएगा उनके वह जो बरतते थे (11){207}
(11) यानी दुनिया की ज़िन्दगानी और उसका ऐश, चाहे लम्बा भी हो लेकिन न वह अज़ाब को दफ़ा कर सकेगा न उसकी सख़्ती कम कर सकेगा.

और हमने कोई बस्ती हलाक न की जिसे डर सुनाने वाले न हों{208} नसीहत के लिये और हम ज़ुल्म नहीं करते(12){209}
(12) पहले हुज्जत क़ायम कर देते हैं, डर सुनाने वालों को भेज देते हैं, उसके बाद भी जो लोग राह पर नहीं आते और सच्चाई को क़ुबूल नहीं करते, उन पर अज़ाब करते हैं.

और इस क़ुरआन को लेकर शैतान न उतरे(13){210}
(13) इसमें काफ़िरों का रद है जो कहते थे कि जिस तरह शैतान तांत्रिकों के पास आसमानी ख़बरें लाते हैं उसी तरह मआज़ल्लाह सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के पास क़ुरआन लाते हैं . इस आयत ने उनके इस ख़याल को बातिल कर दिया कि यह ग़लत है.

और वो इस क़ाबिल नहीं(14)
(14) कि क़ुरआन लाएं.

और न वो ऐसा कर सकते हैं(15) {211}
(15) क्योंकि यह उनकी ताक़त से बाहर है.

वो तो सुनने की जगह से दूर कर दिये गए हैं(16){212}
(16) यानी नबियों की तरफ़ जो वही होती है उसको अल्लाह तआला ने मेहफ़ूज़ कर दिया. जब तक कि फ़रिश्ता उसको रसूल की बारगाह में पहुंचाए, उससे पहले शैतान उसको नहीं सुन सकते. इसके बाद अल्लाह तआला अपने बन्दों से फ़रमाता है.

तो तू अल्लाह के सिवा दूसरा ख़ुदा न पूज कि तुझ पर अज़ाब होगा {213} और ऐ मेहबूब, अपने क़रीबतर रिश्तेदारों को डराओ (17){214}
(17) हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के क़रीब के रिश्तेदार बनी हाशिम और बनी मुत्तलिब हैं. हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने उन्हें ऐलान के साथ डराया और ख़ुदा का ख़ौफ़ दिलाया जैसाकि सही हदीसों में आया है.

और अपनी रहमत का बाज़ू बिछाओ (18)
(18)यानी मेहरबानी और करम फ़रमाओ.

अपने मानने वाले मुसलमानों के लिये(19){215}
(19) जो सच्चे दिल से आप पर ईमान लाएं, चाहे वो आप से रिश्तेदारी रखते हों या न रखते हों.

तो अगर वो तुम्हारा हुक्म न मानें तो फ़रमा दो मैं तुम्हारे काम से बेइलाक़ा हूँ {216} और उसपर भरोसा करो जो इज़्ज़त वाला मेहरबान है(20){217}
(20) यानी अल्लाह तआला, तुम अपने सारे काम उसके हवाले कर दो.

जो तुम्हें देखता है जब तुम खड़े होते हो (21){218}
(21) नमाज़ के लिये या दुआ के लिये या हर उस मक़ाम पर जहाँ तुम हो.

और नमाज़ियों में तुम्हारे दौरे को (22){219}
(22) जब तुम अपने तहज्जुद पढ़ने वाले साथियों के हालात जानने के लिये रात को दौरा करते हो. कुछ मुफ़स्सिरों ने कहा मानी ये हैं कि जब तुम इमाम होकर नमाज़ पढ़ाते हो और क़ियाम, रूकू, सज्दों और क़ुऊद में गुज़रते हो. कुछ मुफ़स्सिरों ने कहा मानी ये हैं कि वह आप की आँखों की हरकत को देखता है नमाज़ों में, क्योंकि नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम आगे पीछे एकसा देखते थे. और हज़रत अबू हुरैरह रदियल्लाहो अन्हो की हदीस में है, ख़ुदा की क़सम मुझ पर तुम्हारी एकाग्रता और रूकूअ छुपा हुआ नहीं है, मैं तुम्हें अपनी पीछ पीछे देखता हूँ. कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया कि इस आयत में सज्दा करने वालों से ईमान वाले मुराद हैं और मानी ये हैं कि हज़रत आदम और हव्वा के ज़माने से लेकर हज़रत अब्दुल्लाह और बीबी आमिना ख़ातून तक, ईमान वालों की पीठ और कोख़ में आप के दौरे को मुलाहिज़ा फ़रमाता है. इससे साबित हुआ कि आपके सारे पू्र्वज हज़रत आदम अलैहिस्सलाम तक सब के सब ईमान वाले हैं.
(मदारिक व जुमल वग़ैरह).

बेशक वही सुनता जानता है(23){220}
(23) तुम्हारी कहनी व करनी और तुम्हारी नियत को. इसके बाद अल्लाह तआला उन मुश्रिकों के जवाब में, जो कहते थे कि मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) पर शैतान उतरते हैं, यह इरशाद फ़रमाता है.

क्या मैं तुम्हें बतादूँ कि किसपर उतरते हैं शैतान(221)शैतान उतरते हैं बड़े बोहतान वाले गुनहगार पर(24){222}
(24) मुसैलिमा वग़ैरह तांत्रिक जैसे.

शैतान अपनी सूनी हुई (25)
(25) जो उन्होंने फ़रिश्तों से सुनी होती है.

उनपर डालतें हैं और उनमें अक्सर झूटे हैं (26){223}
(26) क्योंकि वो फ़रिश्तों से सुनी हुई बातों में अपनी तरफ़ से बहुत झूट मिला देते हैं. हदीस शरीफ़ में है कि एक बात सुनते हैं तो सौ झूट उसके साथ मिलाते हैं और यह भी उस वक़्त तक था जब कि वह आसमान पर पहुंचने से रोके न गए थे.

और शायरों की पैरवी गुमराह करते हैं(27){224}
(27) उनके शेअरों में, कि उनको पढ़ते हैं. रिवाज़ देते हैं जबकि वो शेअर झूट और बातिल होते हैं. यह आयत काफ़िर शायरों के बारे में उतरी जो सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की बुराई में कविता करते थे और कहते थे कि जैसा मुहम्मद(सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) कहते हैं ऐसा हम भी कह लेते हैं. और उनकी क़ौम के गुमराह लोग उनसे इन कविताओं को नक़ल करते थे. आयत में उन लोगों की मज़म्मत या भर्त्सना फ़रमाई गई.

क्या तुमने न देखा कि वो हर नाले में सरगर्दा (परेशान) फिरते हैं(28){225}
(28) और हर तरह की झूठी बातें बनाते हैं और हर बातिल में बढ़ा चढ़ा कर बोलते हैं, झूठी तारीफ़ करते हैं, झूठी बुराई करते हैं.

और वो कहते हैं जो नहीं करते(29){226}
(29) बुख़ारी और मुस्लिम की हदीस में है कि अगर किसी का जिस्म पीप से भर जाए तो यह उसके लिये इससे बहतर है कि कविता से पुर हो. मुसलमान कवि जो इस तरीक़े से परहेज़ करते हैं, इस हुक्म से अलग रख गए.

मगर वो जो ईमान लाए और अच्छे काम किये(30)
(30) इसमें इस्लाम के शायरों को अलग रखा गया. वो हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की प्रशंसा लिखते हैं, अल्लाह तआला की हम्द लिखते हैं, इस्लाम की तारीफ़ लिखते हैं, नसीहत की अच्छी बातें लिखते है, उसपर इनाम और सवाब पाते हैं. बुख़ारी शरीफ़ में है कि मस्जिदे नबवी में हज़रत हस्सान के लिये मिम्बर बिछवाया जाता था, वह उस पर खड़े होकर रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के कारनामे और तारीफ़ें पढ़ते थे और काफ़िरों की आलोचनाओं का जवाब देते थे और सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम उनके हक़ में दुआ फ़रमाते जाते थे. बुख़ारी की हदीस में है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया कुछ शेअर हिकमत होते हैं. रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की मुबारक मजलिस में अक्सर कविता पाठ होता था जैसा कि तिरमिज़ी में जाबिर बिन समरह से रिवायत है. हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रदियल्लाहो अन्हा ने फ़रमाया कि शेअर कलाम है, कुछ अच्छा होता है कुछ बुरा, अच्छे को लो, बुरे को छोड़ दो. शअबी ने कहा कि हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ शेअर कहते थे. हज़रत अली उन सब से ज़्यादा शेअर फ़रमाने वाले थे. रदियल्लाहो अन्हुम अजमईन.

और ज़्यादा से ज़्यादा अल्लाह की याद की(31)
(31) और कविता उनके लिये अल्लाह की याद से ग़फ़लत का कारण न हो सकी. बल्कि उन लोगों ने जब शेअर कहा भी तो अल्लाह तआला की प्रशंसा और उसकी तौहीद और रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तारीफ़ और सहाबा और उम्मत के नेक लोगों की तारीफ़ और हिकमत, बोध, नसीहत, उपदेश और अदब में.

और बदला लिया(32)
(32) काफ़िरों से उनकी आलोचना का.

बाद उसके कि उनपर ज़ुल्म हुआ(33)
(33) काफ़िरों की तरफ़ से, कि उन्होंने मुसलमानों की और उनके पेशवाओं की बुराई की. उन हज़रात ने उसको दफ़ा किया और उसके जवाब दिये. ये बुरे नहीं हैं बल्कि सवाब के मुस्तहिक़ हैं. हदीस शरीफ़ में है कि मूमिन अपनी तलवार से भी जिहाद करता है और अपनी ज़बान से भी, यह उन हज़रात का जिहाद है.

और अब जाना चाहते हैं ज़ालिम (34)
(34) यानी मुश्रिक लोग जिन्हों ने सृष्टि में सबसे अफ़ज़ल हस्ती रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की बुराई की.

कि किस करवट पर पलटा खाएंगे(35){227}
(35) मौत के बाद. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया जहन्नम की तरफ़, और वह बुरा ही ठिकाना है.

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