Tafseer Surah an-nahl From Kanzul Imaan
16 सूरए नहल
16 सूरए नहल -पहला रूकू
सूरए नहल मक्का में उतरी, इसमें 128 आयतें और 16 रूकू हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए नहल मक्की है, मगर आयत “फ़आक़िबू बिमिस्ले मा ऊक़िब्तुम बिही” से आख़िर सूरत तक जो आयतें हैं, वो मदीनए तैय्यिबह में उतरीं. इसमें और अक़वाल भी हैं. इस सूरत में सोलह रूकू, 128 आयते, दो हज़ार आठ सौ चालीस कलिमे और सात हज़ार सात सौ सात अक्षर हैं.
अब आता है अल्लाह का हुक्म तो इसकी जल्दी न करो(2)
(2) जब क़ाफ़िरों ने वादा किये गए अज़ाब के उतरने और क़यामत के क़ायम होने की जल्दी झुटलाने और मज़ाक के तौर पर की. इसपर यह आयत उतरी और बता दिया कि जिसकी तुम जल्दी करते हो वह कुछ दूर नहीं, बहुत ही क़रीब है और अपने वक़्त पर यक़ीनन होगा और जब होगा तो तुम्हें उससे छुटकारे की कोई राह न मिलेगी और वो बुत जिन्हें तुम पूजते हो, तुम्हारे कुछ काम न आएंगे.
पाकी और बरतरी है उसे उन शरीकों से(3){1}
(3) वह वाहिद है, उसका कोई शरीक नहीं.
फ़रिश्तों को ईमान की जान यानी वही (देववाणी) लेकर अपने जिन बन्दों पर चाहे उतारता है(4)
(4)और उन्हें नबुव्वत और रिसालत के साथ बुज़ुर्गी देता हैं.
कि डर सुनाओ कि मेरे सिवा किसी की बन्दगी नहीं तो मुझसे डरो(5){2}
(5) और मेरी ही इबादत करो और मेरे सिवा किसी को न पूजो, क्योंकि मैं वह हूँ कि …
उसने आसमान और ज़मीन बजा बनाए(6)
(6) जिनमें उसकी तौहीद की बेशुमार दलीलें हैं.
वह उनके शिर्क से बरतर {उत्तम} है {3} (उसने) आदमी को एक निधरी बूंद से बनाया(7)
(7) यानी मनी या वीर्य से, जिसमें न हिस है न हरकत, फिर उसको अपनी भरपूर क़ुव्वत से इन्सान बनाया, शक्ति और ताक़त अता की. यह आयत उबई बिन ख़लफ़ के बारे में उतरी जो मरने के बाद ज़िन्दा होने का इन्कार करता था. एक बार वह किसी मुर्दे की गली हुई हड्डी उठा लाया और सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से कहने लगा कि आपका यह ख़याल है कि अल्लाह तआला इस हड्डी को ज़िन्दगी देगा. इसपर यह आयत उतरी और निहायत नफ़ीस जवाब दिया गया कि हड्डी तो कुछ न कुछ शारीरिक शक्ल रखती है. अल्लाह तआला तो वीर्य के एक छोटे से बे हिसो हरकत क़तरे से तुझ जैसा झगड़ालू इन्सान पैदा कर देता है. यह देखकर भी तू उसकी क़ुदरत पर ईमान नहीं लाता.
तो जभी झगड़ालू है {4} और चौपाए पैदा किये उनमें तुम्हारे लिये गर्म लिबास और फ़ायदे हैं(8)
(8) कि उनकी नस्ल से दौलत बढ़ाते हो, उनके दूध पीते हो और उनपर सवारी करते हो.
और उनमें से खाते हो{5} और तुम्हारा उनमें तजम्मुल (वैभव) है जब उन्हें शाम को वापस लाते हो और जब चरने को छोड़ते हो{6} और वो तुम्हारे बोझ उठाकर ले जाते है ऐसे शहर की तरफ़ कि उस तक न पहुंचते मगर अधमरे होकर, बेशक तुम्हारा रब बहुत मेहरबान रहमत वाला है(9){7}
(9) कि उसने तुम्हारे नफ़े और आराम के लिये ये चीज़ें पैदा कीं.
और घोड़े और खच्चर और गधे कि उनपर सवार हो और ज़ीनत (शोभा) के लिये और वह पैदा करेगा(10)
(10) ऐसी अजीब और अनोखी चीज़ें.
जिसकी तुम्हे ख़बर नहीं(11){8}
(11) इसमें वो तमाम चीज़ें आ गई जो आदमी के नफ़े, राहत, आराम और आसायश के काम आती हैं और उस वक़्त तक मौजूद नहीं हुई थीं. अल्लाह तआला को उनका आइन्दा पैदा करना मन्ज़ूर था जैसे कि स्टीमर, रेलें, मोटर ,हवाई जहाज़, विद्युत शक्ति से काम करने वाले आले व उपकरण, भाप और बिजली से चलने वाली मशीनें, सूचना और प्रसारण और ख़बर रसानी, दूर संचार के सामान और ख़ुदा जाने इसके अलावा उसको क्या क्या पैदा करना मन्ज़ूर है.
और बीच की राह (12)
(12) यानी सीधा सच्चा रास्ता और दीने इस्लाम, क्योंकि दो जगहों के बीच जितनी राहें निकाली जाएं, उनमें जो बीच की राह होगी, सीधी होगी.
ठीक अल्लाह तक है और कोई राह टेढ़ी है(13)
(13) जिसपर चलने वाला अस्ल मंज़िल को नहीं पहुंच सकता. कुफ़्र की सारी राहें ऐसी ही हैं.
और चाहता तो तुम सब को राह पर लाता(14){9}
(14) सीधे रास्ते पर.
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16 सूरए नहल – दूसरा रूकू
16 सूरए नहल – दूसरा रूकू
वही है जिसने आसमान से पानी उतारा उससे तुम्हारा पीना है और उससे दरख़्त हैं जिन से चराते हो(1){10}
(1) अपने जानवरों को और अल्लाह तआला.
उस पानी से तुम्हारे लिये खेती उगाता है और जेतून और खजूर और अंगूर और हर क़िस्म के फल(2)
(2) मुख्तलिफ़ सूरत व रंग, मज़े, बू, ख़ासियत वाले कि सब एक ही पानी से पैदा होते हैं और हर एक के गुण दूसरे से जुदा हैं. ये सब अल्लाह की नेअमतें हैं.
बेशक उसमें निशानी है(3)
(3) और उसकी क़ुदरत और हिकमत और वहदानियत की.
ध्यान करने वालों को{11} और उसने तुम्हारे लिये मुसख़्ख़्रर किये रात और दिन और सूरज और चांद और सितारे उसके हुक्म के बांधे हैं, बेशक आयत में निशानियां है अक़्लमंदों को (4){12}
(4) जो इन चीज़ों में ग़ौर करके समझें कि अल्लाह तआला ही इख़्तियार वाला और करने वाला है और सब ऊंच नीच उसकी क़ुदरत और शक्ति के अन्तर्गत है.
और वह जो तुम्हारे लिये ज़मीन में पैदा किया रंग बिरंग (5)
(5) चाहे जानदारों की क़िस्म से हो या दरख़्तों की या फलों की.
बेशक उसमें निशानी है याद करने वालों को{13} और वही है जिसने तुम्हारे लिये दरिया मुसख़्ख़र किया(6)
(6) कि उसमें किश्तियों पर सवार होकर सफ़र करो या ग़ौते लगा कर, उसकी तह तक पहुंचों या उस में से शिकार करो.
कि उसमें से ताज़ा गोश्त खाते हो(7)
(7) यानी मछली.
और उसमें से गहना निकालते हो जिसे पहनते हो(8)
(8) यानी मोती और मूंगा.
और तू उसमें से किश्तियां देखे कि पानी चीर कर चलती हैं और इसलिये कि तुम उसका फ़ज़्ल तलाश करो और कहीं एहसान मानो {14} और उसने ज़मीन में लंगर डाले(9)
(9) भारी पहाड़ों के.
कि कहीं तुम्हें लेकर न कांपे और नदियां और रस्ते कि तुम राह पाओ(10){15}
(10) अपने उद्देश्यों और लक्ष्यों की तरफ़.
और अलामतें (लक्षण) (11)
(11) बनाई, जिन से तुम्हें रस्ते का पता चले.
और सितारे से वो राह पाते हैं(12){16}
(12) ख़ुश्की और तरी और इससे उन्हें रस्ते और क़िबले की पहचान होती है.
तो क्या जो बनाए (13)
(13) इन सारी चीज़ों के अपनी क़ुदरत व हिकमत से यानी अल्लाह तआला.
वह ऐसा हो जाएगा जो न बनाए (14)
(14) किसी चीज़ को और आजिज़ व बेक़ुदरत हो जैसे कि बुत, तो आक़िल को कब सज़ावार है कि ऐसे ख़ालिक़ और मालिक की इबादत छोड़कर आजिज़ और बेइख़्तियार बुतों की पूजा करे या उन्हें इबादत में उसका शरीक ठहराए.
तो क्या तुम नसीहत नहीं मानते{17} और अगर अल्लाह की नेअमतें गिनो तो उन्हें शुमार न कर सकोगे(15)
(15) उनके शुक्र की अदायगी की बात तो दूर रही.
बेशक अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है(16){18}
(16) कि तुम्हारे शुक्र की अदायगी से मअज़ूर होने के बावुजूद अपनी नेअमतों से तुम्हें मेहरूम नहीं फ़रमाता.
और अल्लाह जानता है(17)
(17) तुम्हारी सारी कहनी और करनी.
जो छुपाते और ज़ाहिर करते हो {19} और अल्लाह के सिवा जिन को पूजते हैं(18)
(18) यानी बुतों को.
वो कुछ भी नहीं बनाते और (19)
(19) बनाएं क्या, कि-
वो खुद बनाए हुए हैं(20) {20}
(20) और अपने अस्तित्व में बनाने वाले के मोहताज और वो-
मुर्दे हैं(21)
(21) बेजान.
ज़िन्दा नहीं और उन्हें ख़बर नहीं लोग कब उठाए जाएंगे(22){21}
(22) तो ऐसे मजबूर और बेजान बेइल्म मअबूद कैसे हो सकते हैं. इन खुली दलीलों से साबित हो गया कि-
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16 सूरए नहल -तीसरा रूकू
16 सूरए नहल -तीसरा रूकू
तुम्हारा मअबूद एक मअबूद है(1)
(1) अल्लाह तआला, जो अपनी ज़ात और सिफ़ात में नज़ीर और शरीक से पाक है.
तो वो जो आख़िरत पर ईमान नहीं लाते उनके दिल इन्कारी हैं(2)
(2)वहदानियत के.
और वो मग़रूर (घमण्डी) हैं(3){22}
(3) कि सच्चाई ज़ाहिर हो जाने के बावुज़ूद उसका अनुकरण नहीं करते.
हक़ीक़त में अल्लाह जानता है जो छुपाते और जो ज़ाहिर करते हैं बेशक वह घमण्डियों को पसन्द नहीं फ़रमाता{23} और जब उनसे कहा जाए(4)
(4) यानी लोग उनसे पूछें कि-
तुम्हारे रब ने क्या उतारा(5)
(5) मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाह अलैहे वसल्लम पर, तो-
कहें अगलों की कहानियां हैं(6){24}
(6) यानी झूटे क़िस्मे कोई मानने की बात नहीं. यह आयत नज़र बिन हारिस के बारे में उतरी, उसने बहुत सी कहानियाँ याद कर ली थीं. उससे जब कोई क़ुरआन शरीफ़ की निस्बत पूछता तो वह जानने के बावुज़ूद कि क़ुरआन शरीफ़ चमत्कृत किताब और सत्य व हिदायत से भरपूर है, लोगों को गुमराह करने के लिये यह कह देता कि ये पहले लोगों की कहानियां हैं और ऐसी कहानियाँ मुझे भी बहुत याद हैं. अल्लाह तआला फ़रमाता है कि लोगों को गुमराह करने का अंजाम यह हैं-
कि क़यामत के दिन अपने(7)
(7) गुनाहों और गुमराही और सीधी राह से विचिलित करने के-
बोझ पूरे उठाएं और कुछ बोझ उनके जिन्हें अपनी जिहालत से गुमराह करते हैं, सुन लो क्या ही बुरा बोझ उठाते हैं{25}
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16 सूरए नहल -चौथा रूकू
16 सूरए नहल -चौथा रूकू
बेशक उनके अगलों ने(1)
(1) यानी पहली उम्मतों ने अपने नबियों के साथ.
धोखा किया था तो अल्लाह ने उनकी चुनाई को नींव से लिया तो ऊपर से उनपर छत गिर पड़ी और अज़ाब उनपर वहां से आया जहां कि उन्हें ख़बर न थी(2){26}
(2) यह एक मिसाल है कि पिछली उम्मतों ने अपने रसूल के साथ छलकपट करने के लिये कुछ योजनाएं बनाई थीं. अल्लाह तआला ने उन्हें ख़ुद उन्हीं के मन्सूबों में हलाक किया उनका हाल ऐसा हुआ जैसे किसी क़ौम ने कोई बलन्द इमारत बनाई फिर वह इमारत उनपर गिर पड़ी और वो हलाक हो गए. इसी तरह काफ़िर अपनी मक्कारियों से ख़ुद बर्बाद हुए. मुफ़स्सिरों ने यह भी ज़िक्र किया है कि इस आयत में अगले छलकपट करने वालों से नमरूद बिन कनआन मुराद है जा हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के ज़माने में ज़मीन का सबसे बड़ा बादशाह था. उसने बाबुल में बहुत ऊंची एक इमारत बनाई थी जिसकी ऊंचाई पांच हज़ार गज़ थी और उसका छल यह था कि उसने यह ऊंची इमारत अपने ख़याल में आसमान पर पहुंचने और आसमान वालो से लड़ने के लिये बनाई थी. अल्लाह तआला ने हवा चलाई और वह इमारत उनपर गिर पड़ी और वो लोग हलाक हो गए.
फिर क़यामत के दिन उन्हें रूस्वा करेगा और फ़रमाएगा कहां हैं मेरे वो शरीक(3)
(3) जो तुम ने घड़ लिये थे और-
जिन में तुम झगड़ते थे (4)
(4) मुसलमानों से-
इल्म वाले(5)
(5) यानी उन उम्मतों के नबी और उलमा जो उन्हें दुनिया में ईमान की दावत देते और नसीहत करते थे और ये लोग उनकी बात न मानते थे.
कहेंगे आज सारी रूस्वाई और बुराई(6)
(6) यानी अज़ाब.
काफ़िरों पर हैं{27} वो कि फ़रिश्ते उनकी जान निकालते हैं इस हाल पर कि वो अपना बुरा कर रहे थे(7)
(7) यानी कुफ़्र में जकड़े हुए थे.
अब सुलह डालेंगे(8)
(8) और मरते वक़्त अपने कुफ़्र से मुकर जाएंगे और कहेंगे-
कि हम तो कुछ बुराई न करते थे(9)
(9) इसपर फ़रिश्ते कहेंगे-
हाँ क्यों नहीं बेशक अल्लाह ख़ूब जानता है जो तुम्हारे कौतूक थे(10){28}
(10) लिहाज़ा यह इन्कार तुम्हें मुफ़ीद नहीं.
अब जहन्नम के दरवाज़ों में जाओ कि हमेशा उसमें रहो, तो क्या ही बुरा ठिकाना घमण्डियों का{29} और डरवालों (11)
(11) यानी ईमानदारों.
से कहा गया तुम्हारे रब ने क्या उतारा, बोले ख़ूबी(12)
(12) यानी क़ुरआन शरीफ़ जो ख़ूबियों का जमा करने वाला और अच्छाईयों और बरकतों का स्त्रोत और दीन और दुनिया के खुले और छुपे कमालात का सरचश्मा है. अरब के क़बीले हज के दिनों में हज़रत नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के हाल की तहक़ीक़ के लिये मक्कए मुकर्रमा को एलची भेजते थे. ये एलची जब मक्कए मुकर्रमा पहुंचते और शहर के किनारे रास्तों पर उन्हें काफ़िरों के कारिन्दे मिलते, (जैसा कि पहले जिक्र हो चुका है) उनसे ये एलची नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का हाल पूछते तो वो बहकाने पर ही तैनात होते थे, उनमें से कोई हुज़ूर को जादूगर कहता, कोई तांत्रिक,कोई शायर, कोई झूटा, कोई पागल और इसके साथ यह भी कह देते कि तुम उनसे न मिलना यही तुम्हारे लिये बेहतर है. इसपर एलची कहते कि अगर हम मक्कए मुकर्रमा पहुंच कर बग़ैर उनसे मिले अपनी क़ौम की तरफ़ वापस हो तो हम बुरे एलची होंगे और ऐसा करना एलची के कर्तव्यों की अवहेलना और क़ौम की ख़यानत होगी. हमें जांच पड़ताल के लिये भेजा गया है. हमारा फ़र्ज़ है कि हम उनके अपनों और परायों सब से उनके हाल की तहक़ीक़ करें और जो कुछ मालूम हो उसमें कमी बेशी किये बिना क़ौम को सूचित करें. इस ख़याल से वो लोग मक्कए मुकर्रमा में दाख़िल हो कर सहाबए किराम से भी मिलते थे और उनसे आपके हाल की पूछताछ करते थे. सहाबए किराम उन्हें तमाम हाल बताते थे और नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के हालात और कमालात और क़ुरआन शरीफ़ के मज़ामीन से सूचित करते थे. उनका जिक्र इस आयत में फ़रमाया गया.
जिन्होंने इस दुनिया में भलाई की(13)
(13) यानी ईमान लाए और नेक कर्म किये.
उनके लिये भलाई हैं(14)
(14) यानि हयाते तैय्यिबह है और फ़त्ह व विजय व रिज़्क में बहुतात वग़ैरह नेअमतें.
और बेशक पिछला घर सबसे बेहतर, और ज़रूर(15)
(15) आख़िरत की दुनिया.
क्या ही अच्छा घर परहेज़गारों का{30} बसने के बाग़ जिनमें जाएंगे उनके नीचे नेहरें बहती उन्हें वहां मिलेगा जो चाहें(16)
(16) और यह बात जन्नत के सिवा किसी को कहीं भी हासिल नहीं.
अल्लाह ऐसा ही सिला देता है परहेज़गारों को{31} वो जिनकी जान निकालते हैं फ़रिश्ते सुथरेपन में(17)
(17) कि वो शिर्क और कुफ़्र से पाक होते हैं और उनकी कहनी व करनी और आचार व संस्कार और आदतें पवित्र और पाकीज़ा होती हैं. फ़रमाँबरदारी साथ होती है, हराम और वर्जित के दाग़ों से उनके कर्म का दामन मैला नहीं होता. रूह निकाले जाने के वक़्त उनको जन्नत और रिज़्वान और रहमत व करामत की ख़ुशख़बरी दी जाती है. इस हालत में मौत उन्हें ख़ुशगवार मालूम होती है और जान फ़रहत और सुरूर के साथ जिस्म से निकलती है और फ़रिश्ते इज़्ज़त के साथ उसे निकालते हैं. (खाजिन)
यह कहते हुए कि सलामती हो तुम पर(18)
(18) रिवायत है कि मौत के वक़्त फ़रिश्ता ईमान वाले के पास आकर कहता है ऐ अल्लाह के दोस्त, तुझ पर सलाम और अल्लाह तआला तुझ पर सलाम फ़रमाता है और आख़िरत में उनसे कहा जाएगा…
जन्नत में जाओ बदला अपने किये का{32} काहे के इन्तिज़ार में हैं(19)
(19) काफ़िर क्यों ईमान नहीं लाते, किस चीज़ के इन्तिज़ार में हैं.
मगर इसके कि फ़रिश्ते उनपर आएं(20)
(20) उनकी रूहे निकालने..
या तुम्हारे रब का अज़ाब आएं(21)
(21) दुनिया में या क़यामत के दिन.
उनसे अगलों ने भी ऐसा ही किया (22)
(22) यानी पहली उम्मतों ने भी कि कुफ़्र और झुटलाने पर अड़े रहे.
और अल्लाह ने उनपर कुछ ज़ुल्म न किया हां वो ख़ुद ही (23)
(23) कुफ़्र अपना कर.
अपनी जानों पर ज़ुल्म करते थे{33} तो उनकी बुरी कमाईयां उनपर पड़ीं(24)
(24) और उन्होंने अपने बुरे कर्मों की सज़ा पाई.
और उन्हें घेर लिया उसने (25)
(25) अज़ाब.
जिस पर हंसते थे {34}
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16 सूरए नहल – पांचवाँ रूकू
16 सूरए नहल – पांचवाँ रूकू
और मुश्रिक बोले अल्लाह चाहता तो उसके सिवा कुछ न पूजते न हम और न हमारे बाप दादा और न उससे अलग होकर हम कोई चीज़ हराम ठहराते(1)
(1)बहीरा और सायबा की तरह. इससे उनकी मुराद यह थी कि उनका शिर्क करना और इन चीज़ों को हराम क़रार दे लेना अल्लाह की मर्ज़ी से है. इसपर अल्लाह तआला ने फ़रमाया.
ऐसा ही उनसे अगलों ने किया(2){26}
(2) कि रसूलों को झुटलाया और हलाल को हराम किया और ऐसे ही हंसी मज़ाक की बातें कहीं.
तो रसूलों पर क्या है मगर साफ़ पहुंचा देना (3){35}
(3) सच्चाई का ज़ाहिर कर देना और शिर्क के ग़लत और बुरा होने पर सूचित करना.
और बेशक हर उम्मत में हमने एक रसूल भेजा(4)
(4) और हर रसूल को हुक्म दिया कि वो अपनी क़ौम से फ़रमाएं.
कि अल्लाह को पूजो और शैतान से बचो तो उनमें(5)
(5) उम्मतों—
किसी को अल्लाह ने राह दिखाई (6)
(6) वो ईमान लाए.
और किसी पर गुमराही ठीक उतरी(7)
(7) वो अपनी अज़ली दुश्मनी और हटधर्मी से कुफ़्र पर मरे और ईमान से मेहरूम रहे.
तो ज़मीन में चल फिर कर देखो कैसा अंजाम हुआ झुटलाने वालों का (8){36}
(8) जिन्हें अल्लाह ने हलाक किया और उनके शहर वीरान किये. उजड़ी बस्तियां उनके हलाल की ख़बर देती हैं. इसको देखकर समझ लो कि अगर तुम भी उनकी तरह कुफ़्र और झुटलाने पर अड़े रहे तो तुम्हारा भी ऐसा ही अंजाम होना है.
अगर तुम उनकी हिदायत की हिर्स (लोभ) करो(9)
(9) ऐ मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैका वसल्लम, इस हाल में कि ये लोग उनमें से हैं जिनकी गुमराही साबित हो चुकी और उनकी शक़ावत पुरानी है.
तो बेशक अल्लाह हिदायत नहीं देता जिसे गुमराह करे और उनका कोई मददगार नहीं{37} और उन्होंने अल्लाह की क़सम खाई अपने हलफ़ में हद की कोशिश से कि अल्लाह मुर्दे न उठाएगा(10)
(10) एक मुश्रिक एक मुसलमान का क़र्ज़दार था. मुसलमान ने उससे अपनी रकम मांगी. बात चीत के दौरान उसने इस तरह की क़सम खाई कि उसकी क़सम, जिसमें मैं मरने के बाद मिलने की तमन्ना रखता हूँ. इसपर मुश्रिक ने कहा कि क्या तेरा यह ख़्याल है कि तू मरने के बाद उठेगा और मुश्रिक ने क़सम खा कर कहा कि अल्लाह मुर्दे न उठाएगा. इसपर यह आयत उतरी और फ़रमाया गया.
हां क्यों नहीं(11)
(11) यानी ज़रूर उठाएगा.
सच्चा वादा उसके ज़िम्मे पर लेकिन अक्सर लोग नहीं जानते(12){38}
(12) इस उठाने की हिकमत और उसकी क़ुदरत, बेशक वह मुर्दों को उठाएगा.
इसलिये कि उन्हें साफ़ बतादे जिस बात में झगड़ते थे (13)
(13) यानी मुर्दों को उठाने में कि वह सत्य है.
और इसलिये कि काफ़िर जान लें कि वो झूठे थे(14){39}
(14) और मुर्दों के ज़िन्दा किये जाने का इन्कार ग़लत.
जो चीज़ हम चाहें उससे हमारा फ़रमाना यही होता है कि हम कहें होजा वह फ़ौरन हो जाती है(15){40}
(15) तो हमें मुर्दों का ज़िन्दा करना क्या दुशवार है.
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16 सूरए नहल -छटा रूकू
16 सूरए नहल -छटा रूकू
और जिन्होंने अल्लाह की राह में(1)
(1) उसके दीन की ख़ातिर हिजरत की. क़तादा ने कहा यह आयत सहाबा के हक़ में उतरी जिनपर मक्का वालों ने बहुत ज़ुल्म किये और उन्हें दीन की ख़ातिर वतन छोड़ना ही पड़ा. कुछ उनमें से हबशा चले गये फिर वहाँ से मदीनए तैय्यिबह आए और कुछ मदीना शरीफ़ ही को हिजरत कर गए. उन्होंने.
अपने घर बार छोड़े मज़लूम होकर ज़रूर हम उन्हें दुनिया में अच्छी जगह देंगे(2)
(2) वह मदीनए तैय्यिबह है जिसको अल्लाह तआला ने उसके लिये हिजरत का शहर बनाया.
और बेशक आख़िरत का सवाब बहुत बड़ा है किसी तरह लोग जानते (3){41}
(3) यानी काफ़िर या वो लोग जो हिजरत करने से रह गए कि इसका बदला कितना अज़ीम है.
वो जिन्होंने सब्र किया(4)
(4) वतन की जुदाई और काफ़िरों का ज़ुल्म और जान माल के खर्च करने पर.
और अपने रब ही पर भरोसा करते हैं(5){42}
(5) और उसके दीन की वजह से जो पेश आए उसपर राज़ी हैं और दुनिया से नाता तोड़कर बिल्कुल हक़ की तरफ़ मुतवज्जह हैं. सालिक के लिये सुलूक की चरम सीमा है.
और हमने तुमसे पहले न भेजे मगर मर्द (6)
(6) यह आयत मक्का के मुश्रिकों के जवाब में उतरी जिन्होंने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की नबुव्वत का इस तरह इन्कार किया था कि अल्लाह तआला की शान इससे बरतर है कि वह किसी इन्सान को रसूल बनाए. उन्हें बताया गया कि अल्लाह की सुन्नत इसी तरह जारी है. हमेशा उसने इन्सानों में से मर्दों ही को रसूल बनाकर भेजा.
जिनकी तरफ़ हम वही(देववाणी) करते तो ऐ लोगो इल्म वालों से पूछो अगर तुम्हें इल्म नहीं(7){43}
(7) हदीस शरीफ़ में है कि जिहालत की बीमारी का इलाज उलमा से पूछना है इसलिये उलमा से पूछो, वो तुम्हें बता देंगे कि अल्लाह की सुन्नत यूँही जारी रही कि उसने मर्दों को रसूल बना कर भेज.
रौशन दलीलें और किताबें लेकर(8)
(8) मुफ़स्सिरों का एक क़ौल यह है कि मानी ये हैं कि रौशन दलीलों और किताबों के जानने वालों से पूछो अगर तुम को दलील और किताब का इल्म न हो. इस आयत से इमामों की तक़लीद या अनुकरण का वाजिब होना साबित होता है.
और ऐ मेहबूब हमने तुम्हारी तरफ़ यह यादगार उतारी(9)
(9) यानी क़ुरआन शरीफ़.
कि तुम लोगो से बयान कर दो जो(10)
(10) हुक्म.
उनकी तरफ़ उतरा और कहीं वो ध्यान करें{44} तो क्या जो लोग बुरे मक्र (कपट) करते हैं(11)
(11) रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और आपके सहाबा के साथ, और उनकी तकलीफ़ के दरपै रहते हैं और छुप छुप कर फ़साद -अंगेज़ी की तदबीरें करते हैं जैसे कि मक्का के काफ़िर.
इससे नहीं डतरे कि अल्लाह उन्हें ज़मीन में धंसा दे(12)
(12) जैसे क़ारून को धंसा दिया था.
या उन्हें वहाँ से अज़ाब आए जहां से उन्हें ख़बर न हो(13){45}
(13) चुनांचे ऐसा ही हुआ कि बद्र में हलाक किये गए जबकि वो यह नहीं समझते थे.
या उन्हें चलते फिरते(14)
(14) सफ़र और हज़र में, हर एक हाल में.
पकड़ ले कि थका नहीं सकते(15) {46}
(15) ख़ुदा को अज़ाब करने से.
या उन्हें नुकसान देते देते गिरफ़्तार करले कि बेशक तुम्हारा रब बहुत मेहरबान रहमत वाला है(16){47}
(16) कि हिल्म करता है और अज़ाब में जल्दी नहीं करता.
और क्या उन्होंने न देखा कि जो (17)
(17) सायादार.
चीज़ अल्लाह ने बनाई है उसकी परछाइयां दाएं और बाएं झुकती हैं(18)
(18) सुबह और शाम.
अल्लाह को सज्दा करती और उसके हुज़ूर ज़लील हैं(19){48}
(19) ख़्वार और आजिज़ और मुतीअ और मुसख़्खर.
और अल्लाह ही को सज्दा करते हैं जो कुछ आसमानों में हैं और जो कुछ ज़मीन में चलने वाला है(20)
(20) सज्दा दो तरह पर है, एक ताअत और इबादत का सज्दा जैसा कि मुसलमानों का सज्दा अल्लाह के लिये, दूसरा सज्दा एकाग्रता, फ़रमाँबरदारी व ख़ुज़ूअ का सज्दा, जैसा कि साया वग़ैरह का सज्दा. हर चीज़ का सज्दा उसकी हैसियत के हिसाब से है, मुसलमानों और फ़रिश्तों का सज्दा इबादत और ताअत का सज्दा है और उनके सिवा हर एक का सज्दा फ़रमाँबरदारी और ख़ुज़ूअ का सज्दा है.
और फ़रिश्ते और वो घमण्ड नहीं करते{49} अपने ऊपर अपने रब का ख़ौफ़ करते हैं और वही करते हैं जो उन्हें हुक्म हो(21){50}
(21) इस आयत से साबित हुआ कि फ़रिश्ते मुकल्लफ़ हैं और जब साबित कर दिया गया कि तमाम आसमान और ज़मीन की कायनात अल्लाह के हुज़ूर झुकने वाली और उसकी इबादत और ताअत करने वाली है और सब उसके ममलूक और उसी की क़ुदरत और ताक़त के मातहत हैं, तो शिर्क से मना फ़रमाया.
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16 सूरए नहल -सातवाँ रूकू
16 सूरए नहल -सातवाँ रूकू
अल्लाह ने फ़रमा दिया दो ख़ुदा न ठहराओ(1)
(1) क्योंकि दो ख़ुदा तो हो ही नहीं सकते.
वह तो एक ही मअबूद है तो मुझी से डरो(2){51}
(2) में ही वह बरहक़ और सच्चा मअबूद हूँ जिसका कोई शरीक नहीं.
और उसी का है जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है और उसी की फ़रमाँबरदारी अनिवार्य है, तो क्या अल्लाह के सिवा किसी दूसरे से डरोगे(3){52}
(3) इसके बावुज़ूद कि सच्चा मअबूद सिर्फ़ वही है.
और तुम्हारे पास जो नेअमत है सब अल्लाह की तरफ़ से है फिर जब तुम्हें तक़लीफ़ पहुंचती है(4)
(4)चाहे फ़्रक्र की, या मर्ज़ की, या और कोई.
तो उसी की तरफ़ पनाह ले जाते हो(5){53}
(5) उसी से दुआ मांगते हो, उसी से फ़रियाद करते हो.
फिर जब वह तुम से बुराई टाल देता है तो तुममें एक गिरोह अपने रब का शरीक ठहराने लगता है(6){54}
(6) और उन लोगों का अंजाम यह होता है.
कि हमारी दी हुई नेअमतों की नाशुक्री करें तो कुछ बरत लो(7)
(7) और कुछ रोज़ इस हालत में ज़िन्दग़ी गुज़ार लो.
कि बहुत जल्द जान जाओगे(8){55}
(8) कि उसका नतीजा क्या हुआ.
और अनजानी चीज़ों के लिये(9)
(9) यानी बुतों के लिये जिनका मअबूद और नफ़ा नुक़सान पहुंचाने वाला होना उन्हें मालूम नहीं.
हमारी दी हुई रोज़ी में से(10)
(10) यानी खेतियों और चौपायों वग़ैरह में से.
हिस्सा मुक़र्रर करते हैं, ख़ुदा की क़सम तुम से ज़रूर सवाल होना है जो कुछ झूट बांधते थे(11){56}
(11) बुतों को मअबूद और क़ुर्बत देने वाले और बुत परस्ती को ख़ुदा का हुक्म बताकर.
और अल्लाह के लिये बेटियां ठहराते हैं (12)
(12) जैसे कि ख़ुज़ाअह और कनानह कहते थे कि फ़रिश्ते अल्लाह की बेटियाँ हैं.
पाकी है उसको(13)
(13) वह बरतर है औलाद से और उसकी शान में ऐसा कहना निहायत बेअदबी और कुफ़्र है.
और अपने लिये जो अपना जी चाहता है(14){57}
(14) यानी कुफ़्र के साथ, यह हद से ज़्यादा बदतमीज़ी भी है कि अपने लिये बेटे पसन्द करते हैं और बेटियाँ नापसन्द करते हैं और अल्लाह तआला के लिये, जो मुतलक़ औलाद से पाक है, औलाद का साबित करना ऐब लगाना है, उसके लिये औलाद में भी वह साबित करते हैं जिस को अपने लिये तुच्छ और शर्म का कारण मानते हैं.
और जब उनमें किसी को बेटी होने की ख़ुशख़बरी दी जाती है तो दिन भर उसका मुंह(15)
(15) ग़म से.
काला रहता है और वह ग़ुस्सा खाता है{58} लोगो से(16)
(16) शर्म के मारे.
छुपता फिरता है उस बशारत की बुराई के कारण, क्या उसे ज़िल्लत के साथ रखेगा या उसे मिट्टी में दबा देगा(17)
(17) जैसा कि मुदर व ख़ुज़ाअह और तमीम के काफ़िर लड़कियों को ज़िन्दा गाड़ देते थे.
अरे बहुत ही बुरा हुक्म लगाते हैं(18){59}
(18) कि अल्लाह तआला के लिये बेटियाँ साबित करते हैं जो अपने लिये उन्हें इस क़द्र नागवार हैं.
जो आख़िरत पर ईमान नहीं लाते उन्हीं का बुरा हाल है और अल्लाह की शान सबसे बुलन्द(19)
(19) कि वह वालिद और वलद सबसे पाक और मुनज़्ज़ है, कोई उसका शरीक नहीं, जलाल और कमाल की सारी विशेषताओं का मालिक.
और वही इज़्ज़त व हिकमत वाला है{60}
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16 सूरए नहल -आठवाँ रूकू
16 सूरए नहल -आठवाँ रूकू
और अगर अल्लाह लोगो को उनके ज़ुल्म पर गिरफ़्त करता(1)
(1) यानी गुनाहों पर पकड़ और अज़ाब में जल्दी फ़रमाता.
तो ज़मीन पर कोई चलने वाला नहीं छोड़ता(2)
(2)सबको हलाक कर देता, ज़मीन पर चलने वाले से या काफ़िर मुराद हैं जैसा कि दूसरी आयत में आया है “इन्ना शर्रद दवाब्बे इन्दल्लाहिल लज़ीना कफ़रू” (बेशक सब जानवरों में बदतर अल्लाह के नज़दीक वो हैं जिन्होंने कुफ़्र किया – सुरए अनफ़ाल, आयत 55) या ये मानी हुए कि धरती पर किसी चलने वाले को बाक़ी नहीं छोड़ता जैसा कि नूह अलैहिस्सलाम के ज़माने में जो कोई ज़मीन पर था, उन सब को हलाक कर दिया. सिर्फ़ वही बाक़ी रहे जो ज़मीन पर न थे, हज़रत नूह अलैहिस्सलाम के साथ किश्ती में थे. एक क़ौल यह भी है कि मानी ये हैं कि ज़ालिम को हलाक कर देता और उनकी नस्लें कट जातीं फिर ज़मीन में कोई बाक़ी न रहता.
लेकिन उन्हें एक ठहराए हुए वादे तक मुहलत देता है (3)
(3)अपने फ़ज़्ल, करम और हिल्म से ठहराए. वादे से या उम्र का अन्त मुराद है या क़यामत.
फिर जब उनका वादा आएगा न एक घड़ी पीछे हटें न आगे बढ़े{61} और अल्लाह के लिये वह ठहराते हैं जो अपने लिये नागवार है(4)
(4) यानी बेटियाँ और शरीक.
और उनकी ज़बाने झूटों कहती हैं कि उनके लिये भलाई है,(5)
(5) यानी जन्नत, काफ़िर अपने कुफ़्र और बोहतान और ख़ुदा के लिये बेटियाँ बताने के बावुज़ूद अपेन आप को सच्चाई पर समझते थे और कहते थे कि अगर मुहम्मद सच्चे हों और सृष्टि मरने के बाद फिर उठाई जाए तो जन्नत हमीं को मिलेगी क्योंकि हम सच्चाई पर हैं. उनके बारे में अल्लाह तआला फ़रमाता है.
तो आप ही हुआ कि उनके लिये आग है और वो हद से गुज़ारे हुए हैं(6){62}
(6) जहन्नम में ही छोड़ दिये जाएंगे.
ख़ुदा की क़सम हमने तुमसे पहले कितनी उम्मतों की तरफ़ रसूल भेजे तो शैतान ने उनके कौतूक उनकी आँखों में भले कर दिखाए(7)
(7) और उन्होंने अपनी बुराईयों को नेकियां समझा.
तो आज वही उनका रफ़ीक़ है(8)
(8) दुनिया में उसी के कहे पर चलते हैं. और जो शैतान को अपना दोस्त और मालिक बनाए वह ज़रूर ज़लील और ख़्वार हो. या ये मानी हैं कि आख़िरत के दिन शैतान के सिवा उन्हें कोई दोस्त और साथी न मिलेगा और शैतान ख़ुद ही अज़ाब में गिरफ़्तार होगा, उनकी क्या मदद कर सकेगा.
और उनके लिये दर्दनाक अज़ाब है(9){63}
(9) आख़िरत में.
और हमने तुमपर यह किताब न उतारी(10)
(10) यानी क़ुरआन शरीफ़.
मगर इसलिये कि तुम लोगों पर रौशन कर दो जिस बात में इख़्तिलाफ़ करें(11)
(11) दीन के कामों से.
और हिदायत और रहमत ईमान वालों के लिये {64} और अल्लाह ने आसमानों से पानी उतारा तो उसे ज़मीन को(12)
(12) ज़िन्दगी से हरियाली और ताज़गी प्रदान करके.
ज़िन्दा कर दिया उसके मरे पीछे(13)
(13) यानी ख़ुश्क और उजाड़ होने के बाद.
बेशक इसमें निशानी है उनको जो कान रखते हैं(14){65}
(14) और सुनकर समझते हैं और ग़ौर करते हैं वो इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि जो सच्ची क़ुदरत वाला ज़मीन को उसकी मौत यानी उगाने की शक्ति नष्ट हो जाने के बाद फिर ज़िन्दगी देता है वह इन्सान को उसके मरने के बाद बेशक ज़िन्दा करने की क़ुदरत रखता है.
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16 सूरए नहल -नवाँ रूकू
16 सूरए नहल -नवाँ रूकू
और बेशक तुम्हारे लिये चौपायों में निगाह हासिल होने की जगह है(1)
(1) अगर तुम इसमें ग़ौर करो तो बेहतर नतीजे हासिल कर सकते हो और अल्लाह की हिकमत के चमत्कार पर तुम्हें आगही हासिल हो सकती है.
हम तुम्हें पिलाते हैं उस चीज़ में से जो उनके पेट में है गोबर और ख़ून के बीच में से ख़ालिस दूध गले से सहल उतरता पीने वालों के लिये(2){66}
(2) जिसमें किसी चीज़ की मिलावट का सवाल नहीं जबकि जानवर के जिस्म में ग़िज़ाकी एक ही जगह जहाँ चारा घास भूसा पहुंचता है और दूध ख़ून गोबर सब उसी ग़िज़ा से पैदा होते हैं. उनमें से एक दूसरे से मिलने नहीं पाता. दूध में न ख़ून की रंगत आपाती है न गोबर की बू. अत्यन्त साफ़ और उमदा निकलता है. इससे अल्लाह की हिकमत का चमत्कार ज़ाहिर है. ऊपर मसअला उठाए जाने का बयान हो चुका यानी मुर्दों को ज़िन्दा किये जाने का. काफ़िर इससे इन्कारी थे और इसमें दो संदेह पेश थे एक तो यह कि जो चीज़ फ़ासिद हो गई और उसकी ज़िन्दगी जाती रही उसमें दोबारा फिर ज़िन्दगी किस तरह लौटेगी. इस शुबह को इस आयत से दूर फ़रमा दिया गया कि तुम देखते रहो कि हम मुर्दा ज़मीन को ख़ुश्क होने के बाद आसमान से पानी बरसा कर ज़िन्दगी अता फ़रमा दिया करते हैं. तो क़ुदरत का यह फ़ैज़ देखने के बाद किसी मख़लूक़ का मरने के बाद ज़िन्दा होना ऐसे क़ुदरत रखने वाले की ताक़त से दूर नहीं. दूसरा शुबह काफ़िरों का यह था कि जब आदमी मर गया और उसके शरीर के अंग बिखर गए और ख़ाक में मिल गए. वो अंग किस तरह जमा किये जाएंगे और ख़ाक के ज़र्रों से उन्हें किस तरह अलग किया जाएगा. इस आयत में जो साफ़ दूध का बयान फ़रमाया उस में ग़ौर करने से वह शुबह बिल्कुल मिट जाता है कि अल्लाह की क़ुदरत की यह शान तो रोज़ाना देखने में आती है कि वह ग़िज़ा के मिले जुले कणों से ख़ालिस दूध निकालता है और उसके आस पास की चीज़ों की मिलावट तक उसमें नहीं हो पाती. उस हिकमत वाले रब की क़ुदरत से क्या दूर है कि इन्सानी शरीर के अंगो के बिखर जाने के बाद फिर इकट्ठा फ़रमा दे. शफ़ीक़ बलख़ी रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि नेअमत की सम्पूर्णता यही है कि दूध ख़ालिस नज़र आए और उसमें ख़ून और गोबर के रंग और बू का नाम तक न हो वरना नेअमत पूरी न होगी और तबीअत उसको क़ुबूल न करेगी जैसी साफ़ नेअमत रब की तरफ़ से पहुंचती है, बन्दे को लाज़िम है कि वह भी परवर्दिगार के साथ सच्चे दिल से मामला करे और उसके कर्म दिखावे और नफ़्स के बहकावे की मिलावट से पाक साफ़ हो ताकि क़ुबूल किये जाएं.
और खजूर और अंगूर के फलों में से (3)
(3) हम तुम्हें रस पिलाते हैं.
कि उससे नबीज़ (मदिरा) बनाते हो और अच्छा रिज़्क़ (4)
(4) यानी सिर्का और राब और ख़ुर्मा और मवैज़. मवैज़ और अंगूर वग़ैरह का रस जब इस क़दर पका लिया जाए कि दो तिहाई जल जाए और एक तिहाई बाक़ी रहे और तेज़ हो जाए उसको नबीज़ कहते हैं. यह नशे की हद तक न पहुंचे और ख़ुमार न लाए तो शैख़ैन के नज़दीक हलाल है और यही आयत और बहुत सी हदीसें उनकी दलील हैं.
बेशक उसमें निशानी है अक़्ल वालों को {67} और तुम्हारे रब ने शहद की मक्खी को इलहाम (ग़ैबी निर्दश) किया कि पहाड़ों में घर बना और दरख़्तों में और छत्तों में{68} फिर हर क़िस्म के फल में से खा और (5)
(5) फलों की तलाश में.
अपने रब की राहें चल कि तेरे लिये नर्म व आसान हैं(6)
(6) अल्लाह के फ़ज़्ल से जिनका तुझे इल्हाम किया गया है यहाँ तक कि तुझे चलना फिरना दुशवार नहीं और तू कितनी ही दूर निकल जाए, राह नहीं बहकती और अपनी जगह वापस आ जाती है.
उसके पेट से एक पीने की चीज़ (7)
(7) यानी शहद.
रंग बिरंगी निकलती है(8)
(8) सफ़ेद, पीला और लाल.
जिसमें लोगों की तंदुरूस्ती है(9)
(9) और सबसे ज़्यादा फ़ायदा पहुंचाने वाली दवाओं में से है और बहुत सी मअजूनों यानी च्यवनप्राश में शामिल किया जाता है
बेशक इसमें निशानी है(10)
(10) अल्लाह तआला की क़ुदरत और हिकमत पर.
ध्यान करने वालों को(11){69}
(11) कि उसने एक कमज़ोर मक्खी को ऐसी सूझ बूझ अता की और ऐसी शक्तियाँ प्रदान कीं. पाक है वह ज़ात और अपनी सिफ़ात में शरीक से मुनज़्ज़ह. इस से फ़िक्र करने वालों को इसपर भी तंबीह हो जाती है कि वह अपनी भरपूर क़ुदरत से एक अदना कमज़ोर सी मक्खी को यह सिफ़त अता फ़रमाता है कि वह विभिन्न प्रकार के फूलों और फलों से ऐसे स्वादिष्ट अंग हासिल करे जिनसे बढ़िया शहद बने जो निहायत ख़ुशगवार हो, पाक साफ़ हो, ख़राब होने और सड़ने से दूर हो, तो जो क़ुदरत और हिकमत वाली ज़ात एक मक्खी को इस माद्दे के जमा करने की क़ुदरत देती है वह अगर मरे हुए इन्सान के बिखरे हुए अंगों को जमा कर दे तो उसकी क़ुदरत से क्या दूर है. मरने के बाद ज़िन्दा किये जाने को असंभव समझने वाले कितने मुर्ख हैं. इसके बाद अल्लाह तआला अपने बन्दों पर अपनी क़ुदरत की वो निशानियाँ ज़ाहिर फ़रमाता है जो ख़ुद उनमें और उनके हालात में नुमायाँ हैं.
और अल्लाह ने तुम्हें पैदा किया (12)
(12) शून्य से और नाश के बाद ज़िन्दगी अता फ़रमाई, कैसी अनोखी क़ुदरत है.
फिर तुम्हारी जान क़ब्ज़ (निकालेगा) करेगा(13)
(13)और तुम्हें ज़िन्दगी के बाद मौत देगा जब तुम्हारी मुद्दत पूरी हो जो उसने निर्धारित फ़रमाई है चाहे बचपन में या जवानी में या बुढापे में.
और तुममें कोई सबसे नाक़िस (अकर्मण्य) उम्र की तरफ़ फेरा जाता है(14)
(14) जिसका ज़माना इन्सानी उम्र के दर्जों में साठ साल के बाद आता है कि अंग और शक्तियाँ सब नाकारा हो जाती है और इन्सान की यह हालत हो जाती है.
कि जानने के बाद कुछ न जाने (15)
(15) और नासमझी में बच्चो से गया गुज़रा हो जाए. इन परिवर्तनों में अल्लाह की क़ुदरत के कैसे चमत्कार दिखने में आते हैं. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि मुसलमान अल्लाह के फ़ज़्ल से इससे मेहफ़ूज़ हैं. लम्बी उम्र और ज़िन्दगी से उन्हें अल्लाह के हुज़ूर में बुज़ुर्गी और अक़्ल और मअरिफ़त की ज़ियादती हासिल होती है और हो सकता है कि अल्लाह की तरफ़ लौ लगाने का ऐसा ग़लबा हो कि इस दुनिया से रिश्ता कट जाए और मक़बूल बन्दा दुनिया की तरफ़ देखने से परहेज़ करे. अकरमा का क़ौल है कि जिसने क़ुरआन शरीफ़ पढ़ा वह इस तुच्छ उम्र की हालत को न पहुंचेगा कि इल्म के बाद केवल बे इल्म हो जाए.
बेशक अल्लाह सब कुछ जानता है सब कुछ कर सकता है{70}
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16 सूरए नहल – दसवाँ रूकू
16 सूरए नहल – दसवाँ रूकू
और अल्लाह ने तुम में एक को दूसरे पर रिज़्क़ में बड़ाई दी(1)
(1) तो किसी को ग़नी किया, किसी को फ़क़ीर, किसी को मालदार, किसी को नादार, किसी को मालिक, किसी को ग़ुलाम.
तो जिन्हें बड़ाई दी है वो अपना रिज़्क़ अपने बांदी गुलामों को न फेर देंगे कि वो सब उसमें बराबर हो जाएं(2)
(2) और दासी ग़ुलाम आक़ाओं के शरीक हो जाएं. जब तुम अपने ग़ुलामों को अपना शरीक बनाना गवारा नहीं करते तो अल्लाह के बन्दों और उसके ममलूकों को उसका शरीक ठहराना कैसे गवारा करते हो. सुब्हानल्लाह! यह बुत परती का कैसा उमदा, दिल में घर कर लेने वाला, और समझ में आ जाने वाला रद है.
तो क्या अल्लाह की नेअमत से इन्कार करते हैं (3){71}
(3) कि उसको छोड़कर मख़लूक़ को पूजते हैं.
और अल्लाह ने तुम्हारे लिये तुम्हारी जिन्स से औरतें बनाई और तुम्हारे लिये तुम्हारी औरतों से बेटे और पोते नवासे पैदा किये और तुम्हें सुथरी चीज़ों से रोज़ी दी(4)
(4) क़िस्म क़िस्म के ग़ल्लों, फ़लों, मेवों, खाने पीने की चीज़ों से.
तो क्या झूटी बात (5)
(5) यानी शिर्क और बुत परस्ती
पर यक़ीन लाते हैं और अल्लाह के फ़ज़्ल (6)
(6) अल्लाह के फ़ज़्ल और नेअमत से सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की मुबारक ज़ात या इस्लाम मुराद है. (मदारिक).
से इन्कारी होते हैं{72} और अल्लाह के सिवा ऐसों को पूजते हैं(7)
(7) यानी बुतों को.
जो उन्हें आसमान और ज़मीन से कुछ भी रोज़ी देने का इख़्तियार नहीं रखते न कुछ कर सकते हैं{73} तो अल्लाह के लिये मानिंदा (समान) न ठहराओ(8)
(8) उसका किसी को शरीक न करो.
बेशक अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते{74} अल्लाह ने एक कहावत बयान फ़रमाई(9)
(9) यह कि.
एक बन्दा है दूसरे की मिल्क आप कुछ मक़दूर (सामथर्य) नहीं रखता और एक वह जिसे हमने अपनी तरफ़ से अच्छी रोज़ी अता फ़रमाई तो वह उसमें से ख़र्च करता है छुपे और ज़ाहिर (10)
(10) जैसे चाहता है इस्तेमाल करता है. तो वह आजिज़ ममलूक ग़ुलाम और यह आज़ाद मालिक साहिबे माल जो अल्लाह के फ़ज़्ल से क़ुदरत और इख़्तियार रखता है.
क्या वो बराबर हो जाएंगे(11)
(11) हरगिज़ नहीं. तो जब ग़ुलाम और आज़ाद बराबर नहीं हो सकते, जबकि दोनो अल्लाह के बन्दे हैं, तो पैदा करने वाले, मालिक, क़ुदरत वाले अल्लाह के साथ बेक़ुदरत और बेइख़्तियार बुत कैसे शरीक हो सकते हैं और उनको उसके जैसा क़रार देना कैसा बड़ा ज़ुल्म और जिहालत है.
सब ख़ूबियां अल्लाह को हैं बल्कि उनमें अक्सर को ख़बर नहीं(12){75}
(12) कि ऐसे खुले प्रमाण और साफ़ तर्क के होते हुए शिर्क करना कितने बड़े वबाल और अज़ाब का कारण है.
और अल्लाह ने कहावत बयान फ़रमाई दो मर्द एक गूंगा जो कुछ काम नहीं कर सकता(13)
(13) न अपनी किसी से कह सके न दूसरे की समझ सके.
और वह अपने आक़ा पर बोझ है जिसपर भेजे कुछ भलाई न लाए(14)
(14)और किसी काम न आए. यह मिसाल काफ़िर की है.
क्या बराबर हो जाएगा यह और वह जो इन्साफ़ का हुक्म करता है और वह सीधी राह पर है(15) {76}
(15) यह मिसाल ईमान वाले की है. मानी ये हैं कि काफ़िर नाकारा गुंगे ग़ुलाम की तरह है. वह किसी तरह मुसलमान की मिस्ल नहीं हो सकता जो इन्साफ़ का हुक्म करता है और सीधी राह पर क़ायम है. कुछ मुफ़स्सिरों का क़ोल है कि गूंगे नाकारा ग़ुलाम से बुतों को उपमा दी गई और इन्साफ़ का हुकम देना अल्लाह की शान का बयान हुआ. इस सूरत में मानी ये हैं कि अल्लाह तआला के साथ बुतों को शरीक करना ग़लत है क्योंकि इन्साफ़ क़ायम करने वाले बादशाह के साथ गूंगे और नाकारा ग़ुलाम का क्या जोड़.
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16 सूरए नहल -ग्यारहवाँ रूकू
16 सूरए नहल -ग्यारहवाँ रूकू
और अल्लाह ही के लिये हैं आसमानों और ज़मीन की छुपी चीज़ें(1)
(1) इसमें अल्लाह तआला के कमाले इल्म का बयान है कि वो सारे अज्ञात का जानने वाला है. उसपर कोई छुपने वाली चीज़ छुपी नहीं रह सकती. कुछ मुफ़स्सिरों का क़ौल है कि इस से मुराद क़यामत का इल्म है.
और क़यामत का मामला नहीं मगर जैसे एक पलक का मारना बल्कि उससे भी क़रीब(2)
(2) क्योंकि पलक मारना भी समय चाहता है जिसमें पलक की हरकत हासिल हो और अल्लाह तआला जिस चीज़ का होना चाहे, वह “कुन” फ़रमाते ही हो जाती है.
बेशक अल्लाह सब कुछ कर सकता है{77} और अल्लाह ने तुम्हें तुम्हारी मांओं के पेट से पैदा किया कि कुछ न जानते थे(3)
(3) और अपनी पैदाइश की शुरूआत और बुनियादी प्रकृति में इल्म और मअरिफ़त से ख़ाली थे.
और तुम्हें कान और आँखें और दिल दिये (4)
(4) कि इनसे अपनी पैदाइशी अज्ञानता और जिहालत दूर करो.
कि तुम एहसान मानो(5){78}
(5) और इल्म व अमल से फ़ैज़ उठाकर देने वाले का शुक्र बजा लाओ और उसकी इबादत में लग जाओ और उसकी नेअमतों के हुक़ूक़ अदा करो.
क्या उन्होंने परिन्दे न देखे हुकम के बांधे आसमान की फ़ज़ा में, उन्हें कोई नहीं रोकता(6)
(6) गिरने से जबकि जिस्म, जो प्रकृति से भारी है, गिरना चाहता है.
सिवा अल्लाह के, बेशक इसमें निशानियाँ हैं ईमान वालों का(7){79}
(7) कि उसने उन्हें ऐसा पैदा किया कि वह हवा में उड़ सकते हैं और अपने भारी बदन की प्रवृति के ख़िलाफ़ हवा में ठहरे रहते हैं, गिरते नहीं. और हवा को ऐसा पैदा किया कि इसमें उनकी उड़ान मुमकिन है. ईमानदार इस में ग़ौर करके अल्लाह की क़ुदरत का ऐतिराफ़ करते हैं.
और अल्लाह ने तुम्हें घर दिये बसने को(8)
(8) जिनमें तूम आराम करते हो.
और तुम्हारे लिये चौपायों की ख़ालों से कुछ घर बनाए(9)
(9) तम्बू या ख़ैमे वग़ैरह की तरह.
जो तुम्हें हलके पड़ते हैं तुम्हारे सफ़र के दिन और मंज़िलों पर ठहरने के दिन और उनकी ऊन और बबरी और बालों से कुछ गृहस्थी का सामान(10)
(10) बिछाने ओढ़ने की चीज़ें. यह आयत अल्लाह की नेअमतों के बयान में है, मगर इससे इशारे के तौर पर ऊन और पशमीने और बालों की तहारत और उनसे नफ़ा उठाने की इजाज़त साबित होती है.
और बरतने की चीज़ें एक वक़्त तक{80} और अल्लाह ने तुम्हें अपनी बनाई हुई चीज़ों(11)
(11) मकानों, दीवारों, छतों, दरख़्तों और बादल वग़ैरह.
से साए दिये(12)
(12) जिसमें तुम आराम करते हो.
और तुम्हारे लिये पहाड़ों में छुपने की जगह बनाई(13)
(13) ग़ार वग़ैरह कि अमीर ग़रीब सब आराम कर सकें.
और तुम्हारे लिये कुछ पहनावे बनाए कि तुम्हें गर्मी से बचाएं और कुछ पहनावे(14)
(14) ज़िरह और बाज़ूबन्द वग़ैरह.
कि लड़ाई में तुम्हारी हिफ़ाज़त करें(15)
(15) कि तीर तलवार नेज़े वग़ैरह से बचाव का सामान हो.
यूंही अपनी नेअमत तुम पर पूरी करता है(16)
(16)दुनिया में तुम्हारी ज़रूरतों के साधन पैदा फ़रमाकर.
कि तुम फ़रमान मानो(17){81}
(17) और उसकी नेअमतों का ऐतिराफ़ करके ईमान लाओ और सच्चा दीने इस्लाम क़ुबूल करो.
फिर अगर वो मुंह फेरे(18)
(18) और ऐ सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैका वसल्लम, वो आप पर ईमान लाने और आपकी तस्दीक़ करने से मुंह मोड़ें और अपने कुफ़्र पर डटे रहे.
तो ऐ मेहबूब तुम पर नहीं मगर साफ़ पहुंचा देना(19){82}
(19) और जब आपने अल्लाह का संदेश पहुंचा दिया तो आपका काम पूरा हो चुका और न मानने का वबाल उनकी गर्दन पर रहा.
अल्लाह की नेअमत पहचानते हैं(20)
(20) यानी जो नेअमतें कि बयान की गई उन सबको पहचानते हैं और जानते हैं कि ये सब अल्लाह की तरफ़ से हैं फिर भी उसका शुक्र अदा नहीं करते. सदी का क़ौल है कि अल्लाह की नेअमत से सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम मुराद हैं. इस तक़दीर पर मानी ये हैं कि वो हुज़ूर को पहचानते हैं और समझते है कि आपका वुजूद और आपकी ज़ात अल्लाह की बड़ी नेअमत है, इसके बावुजूद-
फिर उसके इन्कारी होते हैं(21)
(21) और दीने इस्लाम क़ुबूल नहीं करते.
और उनमें अकसर काफ़िर हैं(22){83}
(22) दुश्मन, कि हसद और ईषर्या और दुश्मनी में कुफ़्र पर क़ायम रहते हैं.
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16 सूरए नहल -बारहवाँ रूकू
16 सूरए नहल -बारहवाँ रूकू
और जिस दिन हम उठाएंगे (1)
(1) यानी क़यामत के दिन.
हर उम्मत में से एक गवाह(2)
(2) जो उनकी तस्दीक़ करे और झुटलाए और ईमान और कुफ़्र की गवाही दे और ये गवाह नबी हें. (अलैहिमुस्सलाम)
फिर काफ़िरों को न इजाज़त हो(3)
(3) उज़्र पेश करने की या किसी कलाम की या दुनिया की तरफ़ लौटने की.
न वो मनाए जाएं(4){84}
(4) यानी न उनसे इताब और प्रकोप दूर किया जाए.
और ज़ुल्म करने वाले(5)
(5) यानी काफ़िर.
जब अज़ाब देखेंगे उसी वक़्त से न वह उनपर से हल्का हो न उन्हें मुहलत मिले{85} और शिर्क करने वाले जब अपने शरीकों को देखेंगे(6)
(6) बुतों वग़ैरह को जिन्हें पूजते थे.
कहेंगे ऐ हमारे रब ये हैं हमारे शरीक कि हम तेरे सिवा पूजते थे तो वो उनपर बात फेंकेंगे कि तुम बेशक झुटे हो(7){86}
(7) जो हमें मअबूद बताते हो. हमने तुम्हें अपनी इबादत की दावत नहीं दी.
और उस दिन (8)
(8) मुश्रिक लोग.
अल्लाह की तरफ़ आजिज़ी (विनीतता) से गिरेंगे(9)
(9) और उसके फ़रमाँबरदार होना चाहेंगे.
और उनसे गुम हो जाएंगी जो बनावटें करते थे(10){87}
(10) दुनिया में बुतों को ख़ुदा का शरीक बताकर.
जिन्होंने कुफ़्र किया और अल्लाह की राह से रोका हमने अज़ाब पर अज़ाब बढ़ाया(11)
(11) उनके कुफ़्र का अज़ाब और दूसरों को ख़ुदा की राह से रोकने और गुमराह करने का अज़ाब.
बदला उनके फ़साद का{88} और जिस दिन हम हर गिरोह में एक गिरोह उन्हीं में से उठाएंगे कि उनपर गवाही दे(12)
(12) ये गवाह अम्बिया होंगे जो अपनी अपनी उम्मतों पर गवाही देंगे.
और ऐ मेहबूब तुम्हें उन सब पर(13)
(13) उम्मतों और उनके गवाहों पर जो अम्बिया होंगे, जैसा कि दूसरी आयत में आया “फ़कैफ़ा इज़ा जिअना मिन कुल्ले उम्मतिम बिशहीदिवं व जिअना बिका अला हा उलाए शहीदन” (तो कैसी होगी जब हम हर उम्मत से एक गवाह लाएं और ऐ मेहबूब, तुम्हें उन सब पर गवाह न निगहबान बनाकर लाएं- सूरए निसा, आयत 41)(अबू सऊद वग़ैरह).
शाहिद (गवाह) बनाकर लाएंगे और हमने तुमपर यह क़ुरआन उतारा कि रह चीज़ का रौशन बयान है(14)
(14) जैसा कि दूसरी आयत में इरशाद फ़रमाया “मा फ़र्रतना फ़िल किताबे मिन शैइन” (और हमने इस किताब में कुछ उठा न रखा- सूरए अनआम, आयत 38). तिरमिज़ी की हदीस में है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने पेश आने वाले फ़ितनों की ख़बर दी. सहाबा ने उनसे छुटकारे का तरीक़ा दरियाफ़्त किया. फ़रमाया, अल्लाह की किताब में तुम से पहले वाक़िआत की भी ख़बर है और तुमसे बाद के वाक़िआत की भी. हज़रत इब्ने मसऊद रदियल्लाहो अन्हो से रिवायत है फ़रमाया जो इल्म चाहे वह क़ुरआन को लाज़िम कर ले. इसमें अगलों और पिछलो की ख़बरें हैं. इमाम शाफ़ई रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि उम्मत के सारे उलूम हदीस की शरह हैं और हदीस क़ुरआन की. यह भी फ़रमाया कि नबीये करीम सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने जो कोई हुक्म भी फ़रमाया वह वही था जो आपको क़ुरआन शरीफ़ से मालूम हुआ. अबूबक्र बिन मुजाहिद से मन्क़ूल है उन्होंने एक दिन फ़रमाया कि दुनिया में कोई चीज़ ऐसी नहीं जो अल्लाह की किताब यानी क़ुरआन शरीफ़ में बयान न हुई हो. इस पर किसी ने उनसे कहा, सरायों का ज़िक्र कहाँ है. फ़रमाया इस आयत में “लैसा अलैकुम जुनाहुन अन तदखुलू बुयूतन ग़ैरा मस्कूनतिन फ़ीहा मताऊल लकुम…” (इसमें तुमपर कुछ गुनाह नहीं कि उन घरों में जाओ जो ख़ास किसी सुकूनत के नहीं और उनके बरतने का तुम्हें इख़्तियार है – सूरए नूर, आयत 29) इब्ने अबुल फ़ज़्ल मर्सी ने कहा कि अगलों पिछलों के तमाम उलूम क़ुरआन शरीफ़ में हैं. ग़रज़ यह किताब सारे उलूम की जमा करने वाली है. जिस किसी को इसका जितना इल्म मिला है, उतना ही जानता है.
और हिदायत और रहमत और बशारत मुसलमानों को{89}
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16 सूरए नहल -तेरहवाँ रूकू
16 सूरए नहल -तेरहवाँ रूकू
बेशक अल्लाह हुक्म फ़रमाता है इन्साफ़ और नेकी(1)
(1) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि इन्साफ़ तो यह है कि आदमी “ला इलाहा इल्लल्लाह” की गवाही दें और नेकी और फ़र्ज़ अदा करें. आप ही से एक और रिवायत है कि इन्साफ़ शिर्क का तर्क करना और नेकी अल्लाह की इस तरह इबादत करना गोया वह तुम्हें देख रहा है और दूसरों के लिये वही पसन्द करना जो अपने लिये पसन्द करते हो. अगर वह मूमिन हो तो उसके ईमान की बरक़तों की तरक़्क़ी तुम्हें पसन्द हो और अगर काफ़िर हो तो तुम्हें यह पसन्द आए कि वह तुम्हारा इस्लामी भाई हो जाए. उन्हीं से एक और रिवायत है उसमें है कि इन्साफ़ तौहीद है और नेकी इख़लास. इन तमाम रिवायतों के बयान करने का ढंग अगरचे जुदा जुदा है लेकिन मतलब और तात्पर्य एक ही है.
और रिश्तेदारों के देने का(2)
(2) और उनके साथ अनुकंपा और नेक सुलूक करने का.
और मना फ़रमाता है बेहयाई(3)
(3) यानी हर शर्मनाक और ख़राब क़ौल और काम.
और बुरी बात(4)
(4) यानी शिर्क और कुफ़्र और गुनाह और शरीअत द्वारा मना की गई सारी बातें.
और सरकशी से(5)
(5) यानी ज़ुल्म और अहंकार से. इब्ने ऐनिया ने इस आयत की तफ़सीर में कहा कि इन्साफ़ ज़ाहिर और बातिन दोनों में बराबर सच्चाई और फ़रमाँबरदारी निभाने को कहते हैं और एहसान यह है कि बातिन का हाल ज़ाहिर से बेहतर हो और बेहयाई,बुरी बात और सरकशी यह है कि ज़ाहिर अच्छा हो और बातिन ऐसा न हो. कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया इस आयत में अल्लाह तआला ने तीन चीज़ों का हुक्म दिया और तीन से मना फ़रमाया. इन्साफ़ का हुक्म दिया और वह न्याय और मसावात यानी बराबरी है कहनी और करनी में. इसके मुक़ाबले में फ़हश यानी बेहयाई है वह बुरे कर्म और बुरे बोल हैं. और एहसान का हुक्म फ़रमाया. वह यह है कि जिसने ज़ुल्म किया उसको माफ़ करो और जिसने बुराई की उसके साथ भलाई करो. इसके मुकाबले में मुनकर यानी बुरी बात है यानी एहसान करने वाले के एहसान का इन्कार करना. तीसरा हुक्म इस आयत में रिश्तेदारों को देने और उनके साथ मेहरबानी और शफ़क़त और महब्बत का फ़रमाया, इसके मुक़ाबिल बग्य है और वह अपने आप को ऊंचा खींचना और सगे सम्बन्धियों के अधिकार ख़त्म करना है. इब्ने मसऊद रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि यह आयत तमाम अच्छाई बुराई के बयान को जमा करने वाली है. यही आयत हज़रत उस्मान बिन मज़ऊन रदियल्लाहो अन्हो के इस्लाम का कारण बनी जो फ़रमाते हैं कि इस आयत के उतरने से ईमान मेरे दिल में जड़ पकड़ गया. इस आयत का इसर इतना ज़बरदस्त हुआ कि वलीद बिन मुग़ीरा और अबू जहल जैसे सख़्त दिल काफ़िरों की ज़बानों पर भी इसकी तअरीफ़ आ ही गई. इसलिये यह आयत ख़ुत्बे के आख़िर में पढ़ी जाती है.
तुम्हें नसीहत है कि तुम ध्यान करो{90} और अल्लाह का एहद पूरा करो(6)
(6) यह आयत उन लोगों के बारे में उतरी जिन्हों ने रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से इस्लाम पर बैअत की थी. उन्हें अपने एहद को पूरा करने का हुक्म दिया गया और यह हुक्म इन्सान के हर नेक एहद और वादे को शामिल है.
जब क़ौल बांधो और क़स्में मज़बूत करके न तोड़ो और तुम अल्लाह को(7)
(7) उसके नाम की क़सम खाकर.
अपने ऊपर ज़ामिन कर चुके हो, बेशक अल्लाह तुम्हारे काम जानता है {91} और(8)
(8) तुम एहद और क़समें तोड़कर.
उस औरत की तरह न हो जिसने अपना सूत मज़बूती के बाद रेज़ा रेज़ा करके तोड़ दिया(9)
(9) मक्कए मुकर्रमा में रीतह बिन्ते अम्र एक औरत थी जिसकी तबीयत में बहुत वहम था और अक़्ल में फ़ुतूर. वह दोपहर तक मेहनत करके सूत काता करती और अपनी दासियों से भी कतवाती और दोपहर के वक़्त उस काते हुए सूत को तोड़ डालती और दासियों से भी तुड़वाती. यही उसका रोज़ का काम था. मानी ये हैं कि अपने एहद को तोड़कर उस औरत की तरह बेवक़ूफ़ न बनो.
अपनी क़समें आपस में एक बेअस्ल बहाना बनाते हो कि कहीं एक गिरोह दूसरे गिरोह से ज़्यादा न हो(10)
(10) मुजाहिद का क़ौल है कि लोगों का तरीक़ा यह था कि एक क़ौम से हलफ़ करते और जब दूसरी क़ौम को उससे ज़्यादा तादाद या माल या ताक़त में ज़्यादा पाते तो पहलों से जो हलफ़ किये थे, तोड़ देते और अब दूसरे से हलफ़ करते. अल्लाह तआला ने इसको मना फ़रमाया और एहद पूरा करने का हुक्म दिया.
अल्लाह तो इससे तुम्हें आज़माता है,(11)
(11) कि फ़रमाँबरदार और गुनाहगार ज़ाहिर हो जाए.
और ज़रूर तुम पर साफ़ ज़ाहिर कर देगा क़यामत के दिन (12)
(12) कर्मों का बदला देकर.
जिस बात में झगड़ते थे(13){92}
(13) दुनिया के अन्दर.
और अल्लाह चाहता तो तुमको एक ही उम्मत कर देता(14)
(14) कि तुम सब एक दीन पर होते.
लेकिन अल्लाह गुमराह करता है(15)
(15) अपने इन्साफ़ से.
जिसे चाहे और राह देता है (16)
(16) अपने फ़ज़्ल से.
जिसे चाहे, और ज़रूर तुमसे (17)
(17) क़यामत के दिन.
तुम्हारे काम पूछे जाएंगे(18){93}
(18) जो तुमने दुनिया में किये.
और अपनी क़समें आमस में बेअस्ल बहाना न बना लो कि कहीं कोई पाँव (19)
(19) सीधी राह और इस्लाम के तरीक़े से.
जमने के बाद न डगमगाए और तुम्हें बुराई चखनी हो(20)
(20) यानी अज़ाब.
बदला उसका कि अल्लाह की राह से रोकते थे और तुम्हें बड़ा अज़ाब हो(21){94}
(21) आख़िरत में.
और अल्लाह के एहद पर थोड़े दाम मोल न लो, (22)
(22) इस तरह कि नश्वर दुनिया के थोड़े से नफ़े पर उसको तोड़ दो.
बेशक वह (23)
(23) बदला और सवाब.
जो अल्लाह के पास है तुम्हारे लिये बेहतर है अगर तुम जानते हो{95} जो तुम्हारे पास है (24)
(24) दुनिया का सामान, यह सब फ़ना हो जायेगा और ख़त्म—
हो चुकेगा और जो अल्लाह के पास है(25)
(25) उसकी रहमत का ख़ज़ाना और आख़िरत का सवाब.
हमेशा रहने वाला है और ज़रूर हम सब्र करने वालों को उनका वह सिला देंगे जो उनके सब से अच्छे काम के क़ाबिल हो(26){96}
(26) यानी उनकी छोटी से छोटी नेकी पर भी वह अज्र और सवाब दिया जाएगा जो वो अपनी बड़ी नेकी पर पाते (अबू सउउद)
जो अच्छा काम करे मर्द हो या औरत और हो मुसलमान(27)
(27) यह ज़रूर शर्त है क्योंकि काफ़िरों के अअमाल और कर्म बेकार हैं. नेक कर्मों का सवाब वाला होने के लिये ईमान शर्त है.
तो ज़रूर हम उसे अच्छी ज़िन्दगी जिलाएंगे, और ज़रूर उन्हें उनका नेग देंगे जो उनके सब से बेहतर काम के लायक़ हों(28){97}
(28) दुनिया में हलाल रिज़्क़ और क़नाअत अता फ़रमा कर और आख़िरत में जन्नत की नेअमतें देकर. कुछ उलमा ने फ़रमाया कि अच्छी ज़िन्दगी से इबादत की लज़्ज़त मुराद है. मूमिन अगरचे फ़क़ीर भी हो, उसकी ज़िन्दगानी दौलतमन्द काफ़िर के ऐश से बेहतर और पाक़ीज़ा है क्योंकि ईमान वाला जानता है कि उसकी रोज़ी अल्लाह की तरफ़ से है. जो उसने लिख दिया उसपर राज़ी होता है और मूमिन का दिल लालच की परेशानियों से मेहफ़ूज़ और आराम में रहता है. काफ़िर जो अल्लाह पर नज़र नहीं रखता वह लालची रहता है और हमेशा दुख और हसद और माल हासिल करने के चक्कर में परेशान रहता है.
तो जब तुम क़ुरआन पढ़ो तो अल्लाह की पनाह मांगो शैतान मरदूद से(29){98}
(29) यानी क़ुरआन शरीफ़ की तिलावत शुरू करते वक़्त “अऊज़ो बिल्लाहे मिनश शैतानिर रजीम” पढ़ो, यह मुस्तहब है.अऊज़ो के मसाइल सूरए फ़ातिहा की तफ़सीर में बयान हो चुके.
बेशक उसका कोई क़ाबू उनपर नहीं जो ईमान लाए और अपने रब ही पर भरोसा रखते हैं (30){99}
(30) वो शैतानी वसवसे क़ुबूल नहीं करते.
उसका क़ाबू तो उन्हीं पर है जो उससे दोस्ती करते हैं और उसे शरीक ठहराते हैं{100}
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16 सूरए नहल -चौदहवाँ रूकू
16 सूरए नहल -चौदहवाँ रूकू
और जब हम एक आयत की जगह दूसरी आयत बदलें(1)
(1) और अपनी हिकमत से एक हुक्म को मन्सूख़ या स्थगित करके दूसरा हुक्म दें. मक्का के मुश्रिक अपनी जिहालत से नस्ख़ यानी स्थगन पर ऐतिराज़ करते थे और इसकी हिकमतों से अनजान होने के कारण इसको हंसी का विषय बनाते थे और कहते थे कि मुहम्मद एक रोज़ एक हुक्म देते हैं, दूसरे रोज़ और दूसरा ही हुक्म देते हैं. वो अपने दिल से बातें बनाते हैं. इसपर यह आयत उतरी.
और अल्लाह ख़ूब जानता है जो उतारता है(2)
(2) कि इसमें क्या हिकमत, और उसके बन्दों के लिये इसमें क्या मसलिहत है.
काफ़िर कहें तुम तो दिल से बना लाते हो(3)
(3) अल्लाह तआला ने इसपर काफ़िरों की जिहालत का बख़ान किया और इरशाद फ़रमाया.
बल्कि उनमें अक्सर को जानकारी नहीं(4){101}
(4) और वो स्थान और तबदीली की हिकमत,और फ़ायदों से ख़बरदार नहीं और यह भी नहीं जानते कि क़ुरआन शरीफ़ की तरफ़ ग़लत बात जोड़ने की निस्बत हो ही नहीं सकती क्योंकि जिस कलाम के मिस्ल बनाना आदमी की ताक़त से बाहर है वह किसी इन्सान का बनाया हुआ कैसे हो सकता है. लिहाज़ा सैयदे आलम को ख़िताब हुआ.
तुम फ़रमाओ इसे पाकीज़गी (पवित्रता) की रूह(5)
(5) यानी हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम.
ने उतारा तुम्हारे रब की तरफ़ से ठीक ठीक कि इससे ईमान वालों को अडिग करे और हिदायत और ख़ुशख़बरी मुसलमानों को{102} और बेशक हम जानते हैं कि वो कहते हैं यह तो कोई आदमी सिखाता है, जिसकी तरफ़ ढालते हैं उसकी ज़बान अजमी है और यह रौशन अरबी ज़बान(6){103}
(6) क़ुरआन शरीफ़ की मिठास और उसके उलूम की नूरानियत जब दिलों को जीतने लगी और काफ़िरों ने देखा कि दुनिया इसकी गिरवीदा (वशीभूत) होती चली जाती है और कोई तदबीर इस्लाम की मुख़ालिफ़त में कामयाब नहीं होती तो उन्होंने तरह तरह की बातें जोड़नी शुरू कर दीं. कभी इसको जादू बताया, कभी पहलों के क़िस्से और कहानियाँ कहा, कभी यह कहा कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने यह ख़ुद बना लिया है. हर तरह कोशिश की कि किसी तरह लोग इस किताबे मुक़द्दस की तरफ़ से बदगुमान हों. इन्हीं मककारियों में से एक मक्र यह भी था कि उन्होंने एक अजमी ग़ुलाम की निस्बत यह कहा कि यह सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को सिखाता है. इसके रद में यह आयत उतरी और इरशाद फ़रमाया गया कि ऐसी ग़लत बातें दुनिया में कौन क़बूल कर सकता है. जिस ग़ुलाम की तरफ़ काफ़िर निस्बत करते हैं वो तो अजमी है. ऐसा कलाम बनाना उसकी ताक़त में तो क्या होता, तुम्हारे फ़सीह और बलीग़ लोग जिन की ज़बानदानी पर अरब वालों को गर्व है, वो सब के सब हैरान हैं और चन्द जुमले क़ुरआन जैसे बनाना उन्हें असम्भव और उनकी क्षमता से बाहर है तो एक ग़ैर अरब की तरफ़ ऐसी बात जोड़ना किस क़द्र ग़लत, झूट और बेशर्मी का काम है. ख़ुदा की शान, जिस ग़ुलाम की तरफ़ काफ़िर यह निस्बत करते थे उसको भी इस कलाम के चमत्कार ने जीत लिया और वह भी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के फ़रमाँबरदारों में शामिल हो गया और सच्चे दिल से ईमान ले आया.
बेशक वो जो अल्लाह की आयतों पर ईमान नहीं लाते(7)
(7) और उसकी पुष्टि या तस्दीक़ नहीं करते.
अल्लाह उन्हें राह नहीं देता और उनके लिये दर्दनाक अज़ाब है(8){104}
(8) क़ुरआन के इन्कार और रसूल अलैहिस्सलाम को झुटलाने के कारण.
झूट बुहतान वही बांधते हैं जो अल्लाह की आयतों पर ईमान नहीं रखते(9)
(9) यानी झूट बोलना और ग़लत सलत बात जोड़ना बेईमानों ही का काम है. इस आयत से मालूम हुआ कि झूट बड़े गुनाहों में सबसे बुरा गुनाह है.
और वही झूठे हैं{105} जो ईमान लाकर अल्लाह का इन्कारी हो(10)
(10) वह अल्लाह के ग़ज़ब में नहीं. यह आयत अम्मार बिन यासिर के हक़ में उतरी. उन्हें और उनके वालिद यासिर और उनकी वालिदा सुमैया और सुहैब और बिलाल और ख़बाब और सालिम रदियल्लाहो अन्हुम को पकड़कर काफ़िरों ने सख़्त तकलीफ़ें और यातनाएं दीं ताकि वो इस्लाम से फिर जाएं लेकिन ये लोग न फिरे. तो काफ़िरों ने अम्मार के माँ बाप को बहुत बेरहमी से क़त्ल किया और अम्मार बूढ़े थे, भाग नहीं सकते थे, उन्होंने मजबूर होकर जब देखा कि जान पर बन गई है तो अनचाहे दिल से कुफ़्र का कलिमा बोल दिया. रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को ख़बर दी गई कि अम्मार काफ़िर हो गए. फ़रमाया हरगिज़ नहीं. अम्मार सर से पाँव तक ईमान से भरे पूरे हैं और उनके गोश्त और ख़ून में ईमान रच बस गया है. फिर अम्मार रोते हुए ख़िदमते अक़दस में हाज़िर हुए.हुज़ूर ने फ़रमाया क्या हुआ. अम्मार ने अर्ज़ किया ऐ ख़ुदा के रसूल बहुत ही बुरा हुआ और बहुत ही बुरे कलिमे मेरी ज़बान पर जारी हुए. इरशाद फ़रमाया उस वक़्त तेरे दिल का हाल क्या था? अर्ज़ किया दिल ईमान पर ख़ूब जमा हुआ था. नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने शफ़क़त व रहमत फ़रमाई और फ़रमाया कि अगर फिर ऐसा वक़्त आ पड़े तो यही करना चाहिये. इस पर यह आयत उतरी(ख़ाज़िन).
सिवा उसके जो मजबूर किया जाए और उसका दिल ईमान पर जमा हुआ हो(11)
(11)आयत से मालूम हुआ कि मजबूरी की हालत में अगर दिल ईमान पर जमा हुआ हो तो कलिमए कुफ़्र का बोलना जायज़ है जबकि आदमी को अपनी जान या किसी अंग के ज़ाया हो जाने का ख़ौफ़ हो. अगर इस हालत में भी सब्र करे और क़त्ल कर डाला जाय तो वह अज्र का हक़दार और शहीद होगा जैसा कि हज़रत ख़बीब रदियल्लाहो अन्हो ने सब्र किया और वह सूली पर चढ़ाकर शहीद कर दिये गए. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने उन्हें सैयदुश-शुहदा फ़रमाया. जिस शख़्स को मजबूर किया जाए, अगर उसका दिल ईमान पर जमा हुआ न हो, वह कुफ़्र का कलिमा ज़बान पर लाने से काफ़िर हो जाएगा. अगर कोई शख़्स बिना मजबूरी के हंसी के तौर पर या जिहालत से कुफ़्र का कलिमा ज़बान पर लाए. काफ़िर हो जाएगा. (तफ़सीरे अहमदी)
हाँ वो जो दिल खोलकर(12)
(12) रज़ामन्दी और ऐतिक़ाद के साथ.
काफ़िर हो उनपर अल्लाह का ग़ज़ब (प्रकोप) है और उनको बड़ा अज़ाब है{106} यह इसलिये कि उन्होंने दुनिया की ज़िन्दगी आख़िरत में प्यारी जानी(13)
(13) और जब वह दुनिया इर्तदाद यानी इस्लाम से फिर जाने पर इकदाम करने का कारण है.
और इसलिये कि अल्लाह (ऐसे ) काफ़िरों को राह नहीं देता {107} ये हैं वो जिनके दिल और कान और आँखों पर अल्लाह ने मुहर कर दी है(14)
(14) न वो ग़ौर करते हैं न उपदेश और नसीहतों पर कान धरते हैं, न हिदायत और सही बात का रास्ता देखते हैं.
और वही ग़फ़लत में पड़े हैं(15) {108}
(15) अपनी आगे की ज़िन्दगी और अंजाम नहीं सोचते.
आपही हुवा कि आख़िरत में वही ख़राब हैं(16){109}
(16) कि उनके लिये हमेशा का अज़ाब है.
फिर बेशक तुम्हारा रब उनके लिये जिन्होंने अपने घर छोड़े (17)
(17) और मक्कए मुकर्रमा से मदीनए तैय्यिबह को हिजरत की.
बाद इसके कि सताए गए (18)
(18) काफ़िरों ने उनपर सख़्तियाँ की और उन्हें कुफ़्र पर मजबूर किया.
फिर उन्होंने (19)
(19) हिजरत के बाद.
जिहाद किया और साबिर रहे बेशक तुम्हारा रब उस (20)
(20) हिजरत व जिहाद व सब्र.
के बाद ज़रूर बख़्शने वाला है मेहरबान {110}
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16 सूरए नहल -पन्द्रहवाँ रूकू
16 सूरए नहल -पन्द्रहवाँ रूकू
जिस दिन हर जान अपनी ही तरफ़ झगड़ती आएगी(1)
(1) वह क़यामत का दिन है जब हर एक “नफ़्सी-नफ़्सी” कहता होगा और सबको अपनी अपनी पड़ी होगी.
और हर जान को उसका किया पूरा भर दिया जाएगा और उनपर ज़ुल्म न होगा(2){111}
(2) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने इस आयत की तफ़सीर में फ़रमाया कि क़यामत के दिन लोगों में दुश्मनी और बेज़ारी इस हद तक बढ़ेगी कि रूह और जिस्म में झगड़ा होगा. रूह कहेगी यारब न मेरे हाथ था कि मैं किसी को पकड़ती, न पाँव था कि चलती, न आँख थी कि देखती. जिस्म कहेगा या रब मैं तो लकड़ी की तरह था, न मेरा हाथ पकड़ सकता था, न पाँव चल सकता था, न आँख देख सकती थी, जब यह रूह नूरी किरन की तरह आई तो इससे मेरी ज़बान बोलने लगी, आँख देखने लगी, पाँव चलने लगे. जो कुछ किया रूह ने किया. अल्लाह तआला एक मिसाल बयान फ़रमाएगा कि एक अंधा और एक लूला दोनो बाग़ में गए. अन्धे को फल नज़र नहीं आते थे और लूले का हाथ उन तक नहीं पहुंचता था तो अन्धे ने लूले को अपने उँपर सवार कर लिया इस तरह उन्होंने फल तोड़े तो सज़ा के दोनो ही मुस्तहिक़ हुए. इसलिये रूह और जिस्म दोनो अपराधी हैं.
और अल्लाह ने कहावत बयान फ़रमाई(3)
(3) ऐसे लोगों के लिये जिनपर अल्लाह तआला ने इनआम किया और वो इस नेअमत पर घमण्डी होकर नाशुक्री करने लगे और काफ़िर हो गए. यह कारण अल्लाह तआला की नाराज़ी का हुआ उनकी मिसाल ऐसी समझो जैसे कि–
एक बस्ती(4)
(4) मक्का जैसी.
कि अमान व इत्मीनान से थी(5)
(5) न उसपर दुश्मन चढ़ता, न वहाँ के लोग क़त्ल और कैद की मुसीबत में गिरफ़्तार किये जाते.
हर तरफ़ से उसकी रोज़ी कसरत से आती तो वह अल्लाह की नेअमतों की नाशुक्री करने लगी(6)
(6) और उसने अल्लाह के नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को झुटलाया.
तो अल्लाह ने उसे यह सज़ा चखाई कि उसे भूख और डर का पहनावा पहनाया(7)
(7) कि सात बरस नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की बद दुआ से क़हत और सूखा की मुसीबत में गिरफ़्तार रहे यहाँ तक कि मुर्दार खाते थे. फिर अम्न और इत्मीनान के बजाय ख़ौफ़ और दहशत उनपर छा गया और हर वक़्त मुसलमानों के हमले का डर रहने लगा.
बदला उनके किये का{112} और बेशक उनके पास उन्हीं में से एक रसूल तशरीफ़ लाया(8)
(8) यानी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के मुबारक हाथों से अता फ़रमाई.
तो उन्होंने उसे झुटलाया तो उन्हें अज़ाब ने पकड़ा(9)
(9) भूख़ और भय से.
और वो बे इन्साफ़ थे {113} तो अल्लाह की दी हुई रोज़ी (10)
(10) जो उसने सैयदे आलम मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के मुबारक हाथों से अता फ़रमाई.
हलाल पाकीज़ा खाओ (11)
(11) बजाय उन हराम और ख़बीस चीज़ों के जो खाया करते थे, लूट, छीन-झपट और बुरे तरीक़ों से हासिल की गई. सारे ही मुफ़स्सिरों के नज़दीक इस आयत का सम्बोधन मुसलमानों से है और एक क़ौल मुफ़स्सिरों का यह भी है कि यह ख़िताब मक्का के मुश्रिकों से है. कलबी ने कहा कि जब मक्का वाले क़हत और सुखा के कारण भूख से परेशान हुए और तक़लीफ़ की बर्दाश्त न रही तो उनके सरदारों ने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्ल्म से अर्ज़ किया कि आप से दुश्मनी तो मर्द करते हैं औरतों बच्चों को जो तकलीफ़ पहुंच रही है उसका ख़याल फ़रमाइये. इसपर रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इजाज़त दी कि उनके खाने पीने का इन्तिज़ाम किया जाए. इस आयत में इसका बयान हुआ. इन दोनो क़ौलों में पहला क़ौल ज़्यादा सही है. (ख़ाज़िन)
और अल्लाह की नेअमत का शुक्र करो अगर तुम उसे पूजते हो{114} तुम पर तो यही हराम किया है मुर्दार और ख़ून और सुअर का गोश्त और वह जिसके ज़िबह करते वक़्त ग़ैर ख़ुदा का नाम पुकारा गया(12)
(12)यानी उसको बुतों के नाम पर ज़िब्ह किया गया हो.
फिर जो लाचार हो(13)
(13) और उन हराम चीज़ों से कुछ खाने पर मजबूर हो.
न ख़्वाहिश करता न हद से बढ़ता(14)
(14) यानी ज़रूरत की मात्रा पर सब्र करके.
तो बेशक अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है{115} और न कहो उसे जो तुम्हारी जबानें झूट बयान करती हैं यह हलाल है और यह हराम है कि अल्लाह पर झूट बांधो(15)
(15) जिहालत के ज़माने के लोग अपनी तरफ़ से कुछ चीज़ों को हलाल कुछ चीज़ों को हराम कर लिया करते थे और इसकी निस्बत अल्लाह तआला की तरफ़ कर दिया करते थे. इससे मना फ़रमाया गया और इसको अल्लाह पर झूट जड़ना बताया गया. आजकल भी जो लोग अपनी तरफ़ से हलाल चीज़ों को हराम बता देते हैं, जैसे मीलाद शरीफ़ की मिठाई, फ़ातिहा, ग्यारहवीं, उर्स वग़ैरह ईसाले सवाब की चीज़ें जिन की हुरमत शरीअत में नहीं आई, उन्हें इस आयत के हुक्म से डरना चाहिये कि ऐसी चीज़ों की निस्बत यह कह देना कि यह शरीअत के हिसाब से हराम हैं, अल्लाह तआला पर झूट बोलना हैं.
बेशक जो अल्लाह पर झूट बांधते है उनका भला न होगा {116} थोड़ा बरतना है(16)
(16) और दुनिया की कुछ ही दिनों की आसाइश है जो बाक़ी रहने वाली नहीं.
और उनके लिये दर्दनाक अज़ाब है(17){117}
(17) है आख़िरत में.
और ख़ास यहूदियों पर हमने हराम फ़रमाई वो चीज़ें जो पहले तुम्हें हमने सुनाई,(18)
(18) सूरए अनआम की आयत “व अलल्लज़ीना हादू व हर्रमना कुल्ला ज़ी ज़ुफ़ुरिन—” में (यानी और यहूदियों पर हमने हराम किया हर नाख़ुन वाला जानवर- सूरए अनआम, आयत 147)
और हमने उनपर ज़ुल्म न किया हाँ वही अपनी जानों पर ज़ुल्म करते थे(19){118}
(19) बग़ावत और गुनाह करके जिसकी सज़ा में वो चीज़ें उनपर हराम हुई जैसा कि आयत “फ़ बिज़ुल्मिम मिनल्लज़ी हादू हर्रमना अलैहिम तय्यिबातिन उहिल्लत लहुम” (तो यहूदियों के बड़े जुल्म के कारण हमने वो कुछ सुथरी चीज़ें कि उनके लिये हलाल थीं, उनपर हराम फ़रमा दीं – सूरए निसा, आयत 160) में इरशाद फ़रमाया गया.
फिर बेशक तुम्हारा रब उनके लिये जो नादानी से (20)
(20) बिना अंजाम सोचे.
बुराई कर बैठें फिर उसके बाद(21)
(21) यानी तौबह के.
तौबह करें और संवर जाएं बेशक तुम्हारा रब उसके बाद ज़रूर बख़्शने वाला मेहरबान है.{119}
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16 सूरए नहल -सौलहवाँ रूकू
16 सूरए नहल -सौलहवाँ रूकू
बेशक इब्राहीम एक इमाम था(1)
(1) नेक आदतें और पसन्दीदा अख़लाक़ और अच्छी सिफ़त का संगम.
अल्लाह का फ़रमाँबरदार और सब से अलग(2)
(2) दीने इस्लाम पर क़ायम.
और मुश्रिक न था(3){120}
(3) इसमें काफ़िरों को झुटलाया है जो अपने आपको हज़रत इब्राहीम के दीन पर ख़याल करते थे.
उसके एहसानों पर शुक्र करने वाला, अल्लाह ने उसे चुन लिया (4)
(4) अपना नबी और ख़लील यानी दोस्त बनाने के लिये.
और उसे सीधी राह दिखाई{121} और हमने उसे दुनिया में भलाई दी (5)
(5) रिसालत व माल -दौलत व औलाद व लोकप्रियता, कि सारे दीन वाले, मुसलमान, यहूदी और ईसाई और अरब के मुश्रिक लोग सब उनका आदर करते और उनसे महब्बत रखते हैं.
और बेशक वह आख़िरत में कुर्ब (नज़दीकी) के क़ाबिल है {122} फिर हमने तुम्हें वही भेजी कि इब्राहीम के दीन की पैरवी करो जो हर बातिल से अलग था और मुश्रिक न था(6){123}
(6) इत्तिबाअ से मुराद यहाँ अक़ीदों और दीन के उसूलों में सहमति है. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को इस अनुकरण का हुक्म किया गया. इसमें आपकी महानता, यश और दर्जे की बलन्दी का इज़हार है कि आपका दीने इब्राहिमी से सहमत होना हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के लिये उनकी तमाम बुज़ुर्गी और कमाल में सबे ऊंचा सम्मान है.
हफ़्ता तो उन्हीं पर रखा गया था जो उसमें मुख़्तलिफ़ (अलग अलग) हो गए(7)
(7) यानी शनिवार की तअज़ीम, उस रोज़ शिकार तर्क करना और वक़्त इबादत के लिये फ़ारिग़ करना यहूद के लिये फ़र्ज़ किया गया था. इसका वाक़िआ इस तरह हुआ था कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उन्हें जुमुए के दिन का सत्कार करने का हुक्म दिया था और इरशाद किया था कि सप्ताह में एक दिन अल्लाह तआला की इबादत के लिये ख़ास करो. उस दिन में कुछ काम न करो. इसमें उन्होने विरोध किया और कहा वह दिन शुक्रवार नहीं बल्कि शनिवार होना चाहिये. एक छोटी सी जमाअत को छोड़कर, जो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के हुक्म की तअमील में शुक्रवार पर राज़ी हो गई थी. अल्लाह तआला ने यहूदियों को इजाज़त दे दी और शिकार हराम फ़रमाकर आज़माइश में डाल दिया. तो जो लोग जुमुए यानी शुक्रवार पर राज़ी हो गए थे वो तो फ़रमाँबरदार रहे और उन्होंने इस हुक्म का पालन किया. बाक़ी लोग सब्र न कर सके. उन्होंने शिकार किये. नतीजा यह हुआ कि सूरतें बिगाड़ दी गई. यह वाक़िआ तफ़सील के साथ सूरए अअराफ़ में बयान हो चुका है.
और बेशक तुम्हारा रब क़यामत के दिन उनमें फ़ैसला कर देगा जिस बात में इख़्तिलाफ़ (विरोध,मतभेद) करते थे(8){124}
(8) इस तरह कि फ़रमाँबरदार को सवाब देगा और गुनाहगार को सज़ा. इसके बाद सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को सम्बोधित किया जाता है.
अपने रब की राह की तरफ़ बुलाओ (9)
(9) यानी ख़ल्क़ को दीने इस्लाम की तरफ़ बुलाओ.
पक्की तदबीर और अच्छी नसीहत से(10)
(10) पक्की तदबीर से वह मज़बूत दलील मुराद है जो सच्चाई को साफ़ और शुबह व संदेह को दूर कर दे. और अच्छी नसीहत से नेकी और अच्छाई की तरग़ीब मुराद है.
और उनसे उस तरीक़े पर बस करो जो सब से बेहतर हो(11)
(11) बेहतर तरीके से मुराद यह है कि अल्लाह तआला की तरफ़ उसकी आयतों और दलीलों से बुलाएं. इससे मालूम हुआ कि सच्चाई की तरफ़ बुलाना और दीन की सच्चाई के इज़हार के लिये मुनाज़िरा या बहस करना जायज़ है.
बेशक तुम्हारा रब ख़ूब जानता है जो उसकी राह से बहका और वह ख़ूब जानता है राह वालों को{125} और अगर तुम सज़ा दो तो वैसी ही सज़ा दो जैसी तुम्हें तक़लीफ़ पहुंचाई थी(12)
(12) यानी सज़ा ग़लती के हिसाब से हो, उससे ज़्यादा न हो. उहद की लड़ाई में काफ़िरों ने मुसलमानों के शहीदों के चेहरों को ज़ख़्मी करके उनकी शक्लों को बदल डाला था, उनके पेट चाक कर दिये थे,उनके अंग काटे थे, उन शहीदों में हज़रत हमज़ा भी थे. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने जब उन्हें देखा तो हुज़ूर को बहुत दुख हुआ और हुज़ूर ने क़सम खाई कि एक हज़रत हमज़ा रदियल्लाहो अन्हो का बदला सत्तर काफ़िरों से लिया जाएगा और सत्तर का यही हाल किया जाएगा. इसपर यह आयत उतरी, तो हुज़ूर ने वह इरादा तर्क फ़रमा दिया और अपनी क़सम का कफ़्फ़ारा दिया. मुस्ला यानी नाक कान वगैरह काट कर किसी की शक़्ल और आकार बिगाड़ देना शरीअत में हराम है. (मदारिक)
और अगर तुम सब्र करो(13)
(13) और बदला न लो.
तो बेशक सब्र वालों को सब्र सबसे अच्छा (14){126}
(14) अगर वो ईमान लाएं.
और ऐ मेहबूब तुम सब्र करो और तुम्हारा सब्र अल्लाह ही की तौफ़ीक़ से है और उनका ग़म न खाओ, और उनके धोखों से दिल तंग न हो(15){127}
(15) क्योंकि हम तुम्हारे मददगार और सहायक हैं.
बेशक अल्लाह उनके साथ है जो डरते हैं और जो नेकियां करते हैं {128}
पारा चौदाह समाप्त