Tafseer Surah al-taha From Kanzul Imaan

20 सूरए तॉहा

20 सूरए तॉहा -पहला रूकू

सूरए तॉहा मक्का में उतरी, इसमें 135 आयतें और 8 रूकू हैं. 

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)

पहला रूकू

(1) सूरए तॉहा मक्का में उतरी, इसमें आठ रूकू हैं, एक सौ पैंतीस आयतें, एक हज़ार छ सौ इक्तालीस कलिमे और पाँच हज़ार दो सौ बयालीस अक्षर हैं.

तॉहा, {1} ऐ मेहबूब हमने तुमपर यह क़ुरआन इसलिये न उतारा कि तुम मशक़्क़त में पड़ो(2){2}
(2) और सारी रात के क़याम की तकलीफ़ न उठाओ, सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम इबादत में बहुत मेहनत फ़रमाते थे और सारी रात खड़े रहते यहाँ तक कि मुबारक क़दम सूज जाते. इसपर यह आयत उतरी. और जिब्रईल अलैहिस्सलाम ने हाज़िर होकर अल्लाह के हुक्म से अर्ज़ किया कि अपने पाक नफ़्स को कुछ राहत दीजिये उसका भी हक़ है. एक क़ौल यह भी है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम लोगों के कुफ़्र और उनके ईमान से मेहरूम रहने पर बहुत ज़्यादा दुखी और परेशान रहते थे और आपके मुबारक दिल पर बड़ा अफ़सोस और बोझ रहा करता था इस आयत में फ़रमाया गया कि आप दुख की तकलीफ़ न उठाएं और अपने दिल पर कोई बोझ न लें. क़ुरआन शरीफ़ आपकी मशक़्क़त के लिये नहीं उतारा गया है.

हाँ उसको नसीहत जो डर रखता हो(3){3}
(3) वह इससे नफ़ा उठाएगा और हिदायत पाएगा.

उसका उतारा हुआ ज़मीन और ऊंचे आसमान बनाए{4} वह बड़ी मेहर (कृपा) वाला, उसने अर्श पर इस्तिवा फ़रमाया जैसा उसकी शान के लायक़ है{5} उसका है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में और जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ इस गीली मिट्टी के नीचे है (4){6}
(4) जो सातों ज़मीनों के नीचे है. मुराद यह है कि कायनात या सृष्टि में जो कुछ है अर्श, आसमान, ज़मीन, पाताल, कुछ हो कहीं हो, सब का मालिक अल्लाह है.

और अगर तू बात पुकार कर कहे तो वह तो भेद को जानता है और उसे जो उससे भी ज़्यादा छुपा है (5){7}
(5) सिर्र यानी रहस्य वह है जिसको आदमी रखता और छुपाता है और इससे ज़्यादा छुपा हुआ वह है जिसको इन्सान करने वाला है मगर अभी जानता भी नहीं, न उससे उसका इरादा जुड़ा, न उसतक ख़याल पहुंचा. एक क़ौल यह है कि रहस्य से मुराद वह है जिसको इन्सानों से छुपाता है और उससे ज़्यादा छुपी हुई चीज़ वसवसा है. एक क़ौल यह है कि रहस्य बन्दे का वह है जिसे बन्दा ख़ुद जानता है और अल्लाह जानता है, उससे ज़्यादा छुपे हुए अल्लाह के राज़ हैं जिन्हें  अल्लाह जानता है और बन्दा नहीं जानता. आयत में तस्बीह है कि आदमी को बुरे कामों से दुर रहना चाहिये चाहे वो खुले हों या ढके छुपे, क्योंकि अल्लाह तआला से कुछ छुपा नहीं. इसमें अच्छे कामों की तरफ़ बुलावा भी है कि ताअत ज़ाहिरी हो या अन्दर की, अल्लाह से छुपी नहीं, वह इनआम अता फ़रमाएगा. तुफ़सीरे बैज़ावी में क़ौल से अल्लाह का ज़िक्र और दुआ मुराद ली है और फ़रमाया है कि इस आयत में इसपर तस्बीह की गई है कि ज़िक्र और दुआ में बलन्द आवाज़ अल्लाह तआला को सुनाने के लिये नहीं हे बल्कि ज़िक्र को मन में पक्का करने और मन को ग़ैर के साथ जुड़ने से रोकने और दूर रखने के लिये है.

अल्लाह, कि उसके सिवा किसी की बन्दगी नहीं उसी के हैं सब अच्छे नाम(6){8}
(6) वह अपनी ज़ात से तन्हा और अकेला है और नाम और गुण इबारात है और ज़ाहिर है कि इबादत की बहुतात मानी की बहुतात को मुक़्तज़ी हैं.

और कुछ तुम्हें मूसा की ख़बर आई(7){9}
(7) हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के हालात का बयान फरमाया गया ताकि मालूम हो कि नबी जो ऊंचा दर्ज़ा पाते हैं वह नबुव्वत के फ़र्ज़ों की अदायगी में कितनी मेहनत करते हैं और कैसी कैसी सख़्तियों पर सब्र फ़रमाते हैं. यहाँ हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के उस सफ़र का वाक़िआ बयान फ़रमाया जाता है जिसमें आप मदयन से मिस्र की तरफ़ हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम से इजाज़त लेकर अपनी वालिदा माजिदा से मिलने के लिये रवाना हुए थे. आपके घर वाले साथ थे और आपने शाम के बादशाहों के अन्देशे से सड़क छोड़कर जंगल की राह अपनाई थी. बीबी साहिबा गर्भ से थीं. चलते चलत तूर की पश्चिमी दिशा में पहुंचे यहाँ रात के वक़्त बीबी साहिबा को ज़चगी के दर्द शुरू हुए रात अंधेरी थी. बर्फ़ पड़ रही थी. सर्दी सख़्त थी. आप को दूर से आग मालूम हुई.

जब उसने एक आग देखी तो अपनी बीबी से कहा ठहरो मुझे एक आग नज़र पड़ी है शायद में तुम्हारे लिये उसमें से कोई चिंगारी लाऊं या आग पर रास्ता पाऊं{10} फिर जब आग के पास आया(8)
(8) वहाँ एक दरख़्त हरा भरा देखा जो ऊपर से नीचे तक बहुत रौशन था जितना उसके क़रीब जाते, दूर हो जाता, जब ठहर जाते, क़रीब होता, उस वक़्त आपको—

निदा (पुकार) फ़रमाई गई कि ऐ मूसा {11} बेशक मैं तेरा रब हूँ तो तू अपने जूते उतार डाल(9)
(9) कि इसमें विनम्रता और पाक रौशनीं का आदर और पवित्र घाटी की धूल से बरकत हासिल करने का मौक़ा है.

बेशक तू पाक जंगल तुवा में है(10){12}
(10) तुवा घाटी का पाक नाम है जहाँ यह वाक़िआ पेश आया.

और मैंने तुझे पसन्द किया(11)
(11)  तेरी क़ौम में से नबुव्वत और रिसालत और कलाम के शरफ़ से नवाज़ा. यह पुकार हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अपने शरीर के हर अंग से सुनी और सुनने की शक्ति ऐसी आम हुई कि  सारा शरीर कान बन गया, सुब्हानल्लाह.

अब कान लगाकर सुन जो तुझे वही(देववाणी) होती है{13} बेशक मैं ही हूँ अल्लाह कि मेरे सिवा कोई मअबूद नहीं तो मेरी बन्दगी कर और मेरी याद के लिये नमाज़ क़ायम रख  (12){14}
(12) ताकि तू इसमें मुझे याद करे और मेरी याद में इख़लास और मेरी रज़ा मक़सूद हो कोई दूसरी ग़रज़ न हो. इसी तरह रिया या दिखावे का दख़्ल न हो. या ये मानी हैं कि तू मेरी नमाज़ क़ायम रख ताकि मैं तुझे अपनी रहमत से याद फ़रमाऊं . इससे मालूम हुआ कि ईमान के बाद सबसे बड़ा फ़र्ज़ नमाज़ है.

बेशक क़यामत आने वाली है क़रीब था कि मैं उसे सबसे छुपाऊं(13)
(13) और बन्दों को उसके आने की ख़बर न दूँ और उसके आने की ख़बर न दी जाती अगर इस ख़बर देने में यह हिकमत न होती.

कि हर जान अपनी कोशिश का बदला पाए(14){15}
(14) और उसके ख़ौफ़ से गुनाह छोड़े और नेकियाँ ज़्यादा करे और हर वक़्त तौबह करता रहे.

तो हरगिज़ तुझे(15)
(15) ऐ मूसा की उम्मत. सम्बोधन ज़ाहिर मे मूसा अलैहिस्सलाम को है और मुराद इससे आपकी उम्मत है. (मदारिक)

उसके मानने से वह बाज़ न रखे जो उस पर ईमान नहीं लाता और अपनी ख़्वाहिश के पीछे चला(16)
(16)अगर तू उसका कहना माने और क़यामत पर ईमान न लाए तो—

फिर तू हलाक हो जाए{16} और यह तेरे दाएं हाथ में क्या है ऐ मूसा(17){17}
(17) इस सवाल की हिकमत यह है कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम अपनी लाठी को देख लें और यह बात दिल में ख़ूब पक्की हो जाए कि यह लाठी है ताकि जिस वक़्त वह साँप की शक्ल में हो तो आप के मन पर कोई परेशानी न हो. या यह हि कमत है कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को मानूस किया जाए ताकि गुफ़्तगू या या संवाद की हैबत कम हो. (मदारिक वग़ैरह)

अर्ज़ की यह मेरा असा (लाठी) है, (18)
(18) इस लाठी में ऊपर की तरफ़ दो शाख़ें थीं और इसका नाम नबआ था.

मैं इस पर तकिया लगाता हूँ और इससे अपनी बकरियों पर पत्ते झाड़ता हूँ और मेरे इसमें और काम हैं(19){18}
(19) जैसे कि तोशा और पानी उठाने और ख़तरनाक जानवर को दूर भगाने और दुश्मन से लड़ाई में काम लेने वग़ैरह. इन फ़ायदों का ज़िक्र करना अल्लाह की नेअमतों के शुक्र के तौर पर था. अल्लाह तआला ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से.

फ़रमाया इसे डाल दे ऐ मूसा {19} तो मूसा ने डाल दिया तो जभी वह दौड़ता हुआ सांप हो गया(20){20}
(20) और अल्लाह की क़ुदरत दिखाई गई कि जो लाठी हाथ में रहत थी और इतने काम आती थीं अब अचानक वह ऐसा भयानक अजगर बन गई. यह हाल देखकर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को ख़ौफ़ हुआ तो अल्लाह तआला ने उनसे.

फ़रमाया इसे उठा ले और डर नहीं अब हम इसे फिर पहले की तरह कर देंगे(21){21}
(21) यह फ़रमाते ही ख़ौफ़ जाता रहा यहाँ तक कि आपने अपना मुबारक हाथ उसके मुंह में डाल दिया और वह आपके हाथ लगते ही पहले की तरह लाठी बन गई. अब इसके बाद एक और चमत्कार अता फ़रमाया जिसकी निस्बत इरशाद होता है.

और अपना हाथ अपने बाज़ू से मिला(22)
(22) यानी दाएं हाथ की हथैली बाएं बाज़ू से बग़ल के नीचे मिलाकर निकालिये तो सूरज की तरह चमकता निगाहों को चका चौंध करता और…

ख़ूब सफ़ेद निकलेगा बे किसी मर्ज़ के (23){22}
(23) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के मुबारक हाथ से रात और दिन में सूरज की तरह नूर यानी प्रकाश ज़ाहिर होता था और यह चमत्कार आपके बड़े चमत्कारों  में से है. जब आप दोबारा अपना हाथ बग़ल के नीचे रखकर बाज़ू से मिलाते तो हाथ पहले की हालत पर वापस आ जाता.

एक और निशानी(24)
(24) आपकी नबुव्वत की सच्चाई की, लाठी के बाद इस निशानी को भी लीजिये.

कि हम तुझे अपनी बड़ी बड़ी निशानियां दिखाएं{23} फिरऔन के पास जा(25)
(25) रसूल होकर.

उसने सर उठाया(26){24}
(26)  और कुफ़्र में हद से गुज़र गया और ख़ुदाई का दावा करने लगा.

20 सूरए तॉहा -दूसरा रूकू

20 सूरए   तॉहा -दूसरा रूकू

 

अर्ज़ की ऐ मेरे रब मेरे लिये मेरे सीना खोल दे(1){25}
(1) और इसे रिसालत का वज़न सहने के लिये फैला दे. 

और मेरे लिये मेरा काम आसान कर{26} और मेरी ज़बान की गिरह खोल दे(2){27}
(2) जो छुटपन में आग का अंगारा मुंह में रख लेने से पड़ गई है. इसका वाक़िआ यह था कि बचपन में आप एक दिन फ़िरऔन की गोद में थे. आपने उसकी दाढ़ी पकड़कर उसके मुंह पर ज़ोरदार थप्पड़ मारा इसपर उसे ग़ुस्सा आया और उसने आपके क़त्ल का इरादा किया. आसिया ने कहा कि ऐ बादशाह यह नादान बच्चा है, इसे क्या समझ. तू चाहे तो आज़मा ले. इस आज़माइश के लिये एक थाल में आग और एक थाल में लाल याक़ूत आपके सामने पेश किये गए. आपने याक़ूत लेने चाहे मगर फ़रिश्ते ने आपका हाथ अंगारे पर रख दिया और वह अंगारा आपके मुंह में दे दिया. इससे ज़बाने मुबारक जल गई और लुकनत यानी थोड़ा तोतला पन पैदा हो गया. इसके लिये आपने यह दुआ की.

कि वह मेरी बात समझें {28} और मेरे लिये मेरे  घर वालों में से एक वज़ीर कर दे(3){29}
(3)  जो मेरा सहायक और भरोसे वाला हो.

वह कौन मेरा भाई हारून{30} उससे मेरी कमर मज़बूत कर{31} और उसे मेरे काम में शरीक कर(4) {32}
(4) यानी नबुव्वत के कामों और अल्लाह के संदेश लोगों तक पहुंचाने के.

कि हम ब-कसरत तेरी पाकी बोलें{33}और ब-कसरत तेरी याद करें(5){34}
(5)  नमाज़ों में भी और नमाज़ों के बाहर भी.

बेशक तू हमें देख रहा है(6){35}
(6) हमारे हालात का जानने वाला है. हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की इस दर्ख़ास्त पर अल्लाह तआला ने.

फ़रमाया ऐ मूसा तेरी मांग तुझे अता हुई {36} और बेशक हमने (7)
(7) इससे पहले.

तुझ पर एक बार और एहसान फ़रमाया{37} जब हमने तेरी माँ को इल्हाम किया (दिल में डाला) जो इल्हाम करना था(8){38}
(8) दिल में डालकर या ख़्वाब के ज़रिये से, जबकि उन्हें आपकी पैदाइश के वक़्त फ़िरऔन की तरफ़ से आपको क़त्ल कर डालने का अन्देशा हुआ.

कि इस बच्चे को सन्दूक़ में रखकर दरिया में(9)
(9) यानी नील नदी में.

डाल दें तो दरिया इसे किनारे पर डालें कि इसे वह उठाले जो मेरा दुश्मन और उसका दुश्मन(10)
(10) यानी फ़िरऔन, चुनांचे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की वालिदा ने एक सन्दूक़ बनाया और उसमें रूई बिछाई और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को उसमें रखकर सन्दूक़ बन्द कर दिया और उसकी दराज़ें रौग़ने क़ीर से बन्द कर दीं. फिर उस सन्दूक़ को नील नदी में बहा दिया. इस नदी से एक बड़ी नहर निकल कर फ़िरऔन के महल से गुज़रती थीं. फ़िरऔन अपनी बीब आसिया के साथ नेहर के किनारे बैठा हुआ था. नेहर में सन्दूक़ आता देखकर उसने ग़ुलामों और दासियों को उसके निकालने का हुक्म दिया. वह सन्दुक़  निकाल कर सामने लाया गया. खोला तो उसमें एक नूरानी शक्ल लड़का, जिसकी पेशानी से वजाहत और यश की प्रतिभा झलक रही थी, नज़र आया. देखते ही फ़िरऔन के दिल में ऐसी महब्बत पैदा हुई कि वह आशिक़ हो गया और अक़्ल व हवास जगह पर न रहे. इसकी निस्बत अल्लाह तआला फ़रमाता है.

और मैंने तुमपर अपनी तरफ़ की महब्बत डाली (11)
(11)  हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला ने उन्हे मेहबूब बनाया और सृष्टि का मेहबूब कर दिया और जिसको अल्लाह अपनी मेहबूबियत से नवाज़ता है, दिलों में उसकी महब्बत पैदा हो जाती है जैसा कि हदीस शरीफ़ में आया. यही हाल हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का था.जो आपको देखता था, उसी के दिल में आपकी महब्बत पैदा हो जाती थी. क़तादा ने कहा कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की आँखों में ऐसी कशिश थी जिसे देखकर हर देखने वाले के दिल में महब्बत जोश मारने लगती थी.

और इसलिये कि तू मेरी निगाह के सामने तैयार हो(12){39}
(12) यानी मेरी हिफ़ाज़त और निगहबानी में परवरिश पाए.

तेरी बहन चली(13)
(13) जिसका नाम मरयम था ताकि वह आपके हाल की खोज करे और मालूम करे कि सन्दूक कहाँ पहुंचा. आप किसके हाथ लगे जब उसने देखा कि सन्दूक़ फ़िरऔन के पास पहुंचा और वहाँ दूध पिलाने के लिये दाइयां हाज़िर की गई और आपने किसी की छाती को मुंह न लगाया तो आपकी बहन ने.

फिर कहा क्या मैं तुम्हें वो लोग बतादूं जो इस बच्चे की परवरिश करें(14)
(14) उन लोगों ने इसको मन्जू़र किया वह अपनी वालिदा को ले गई. आपने उनका दूध क़ुबूल फ़रमाया.

तो हम तुझें तेरी माँ के पास फेर लाए कि उसकी आँख(15)
(15) आपके दीदार या दर्शन से.

ठण्डी हो और ग़म न करे(16)
(16) यानी जुदाई का ग़म दूर हो. इसके बाद हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के एक और वाक़ए का ज़िक्र फ़रमाया जाता है.

और तूने एक जान को क़त्ल किया (17)
(17) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़िरऔन की क़ौम के एक काफ़िर को मारा था. वह मर गया. कहा गया है कि उस वक़्त आपकी उम्र शरीफ़ बारह साल थी इस वाक़ए पर आप को फ़िरऔन की तरफ़ से अन्देशा हुआ.

तो हमने तुझे ग़म से निजात दी और तुझे ख़ूब जांच लिया(18)
(18) मेहनत और मशक़्क़त में डालकर और उनसे ख़लासी अता फ़रमा कर.

तो तू कई बरस मदयन वालों में रहा (19)
(19) मदयन एक शहर है मिस्र से आठ मंज़िल फ़ासले पर. यहाँ हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम रहते थे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम मिस्र से मदयन आए और कई बरस तक हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम के पास ठहरे और उनकी सुपुत्री सफ़ूरा के साथ आपका निकाह हुआ.

फिर तू एक ठहराए हुए वादे पर हाज़िर हुआ ऐ मूसा (20){40}
(20) यानी अपनी उम्र के चालीसवें साल और यह वह सिन है कि नबियों की तरफ़ इस सिन में वही की जाती है.

और मैं ने तुझे ख़ास अपने लिये बनाया(21){41}
(21) अपनी वही और रिसालत के लिये ताकि तू मेरे इरादे और मेरी हुज्जत पर तसर्रूफ़ करे और मेरी हुज्जत पर क़ायम रहे और मेरे और मेरी सृष्टि के बीच ख़िताब पहुंचने वाला हो.

तू और तेरा भाई दोनों मेरी निशानियाँ(22)}
(22) यानी चमत्कार.

लेकर जाओ और मेरी याद में सुस्ती न करना{42} दोनों फ़िरऔन के पास जाओ बेशक उसने सर उठाया{43} तो उससे नर्म बात कहना(23)
(23) यानी उसको नर्मी से नसीहत फ़रमाना और नर्मी का हुक्म इस लिये था कि उसने बचपन में आपकी ख़िदमत की थी और कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया कि इस नर्मी से मुराद यह है कि आप उससे वादा करें कि अगर वह ईमान क़ुबूल करेगा तो सारी उम्र जवान रहेगा, कभी बुढ़ापा न आएगा और मरते दम तक उसकी सल्तनत बाक़ी रहेगी. और खाने पीने और निकाह की लज़्ज़ते मरते दम तक बाक़ी रहेगी और मौत के बाद जन्नत में दाख़िल मिलेगा. जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़िरऔन से ये वादे किये तो उसको यह बात बहुत पसन्द आई मगर वह कोई काम हामान के मशवरे के बिना नहीं करता था. हामान मौजूद न था. जब वह आया तो फ़िरऔन ने उसको यह सूचना दी और कहा कि मैं चाहता हूँ कि मूसा की हिदायत पर ईमान क़ुबूल कर लूं. हामान कहने लगा, मैं तो तुझको अक़्ल वाला और समझदार जानता था. तू रब है बन्दा बनना चाहता है. तू मअबूद है, आबिद बनने की इच्छा है. फिरऔन ने कहा, तूने ठीक कहा. और हज़रत हारून मिस्र में थे. अल्लाह तआला ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को हुक्म किया कि वह हज़रत हारून के पास आएं और हज़रत हारून अलैहिस्सलाम को वही की कि हज़रत मूसा से मिलें. चुनांचे वह एक मंज़िल चलकर आपसे मिले और जो वही उन्हें हुई थी उसकी हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को सूचना दी.

इस उम्मीद पर कि वह ध्यान करें या कुछ डरे(24){44}
(24) यानी आपकी तालीम और वसीहत इस उम्मीद के साथ होनी चाहिये ताकि आपके लिये अज्र और उसपर हुज्जत का इल्ज़ाम और उज्र की काट हो जाए और हक़ीक़त में होना तो वही है जो अल्लाह ने लिख दिया है.

दोनों ने अर्ज़ किया ऐ हमारे रब बेशक हम डरते हैं कि वह हम पर ज़ियादती करे या शरारत से पेश आए{45} फ़रमाया डरो नहीं मैं तुम्हारे साथ हूँ(25)
(25) अपनी मदद से.

सुनता और देखता (26){46}
(26)  उसकी कहनी और करनी को.

तो उसके पास जाओ और उससे कहो कि हम तेरे रब के भेजे हुए हैं तो यअक़ूब की औलाद को हमारे साथ छोड़ दे(27)
(27) और उन्हें बन्दगी असीरी से रिहा कर दे.

और उन्हें तकलीफ़ न दे,(28)
(28) मेहनत और मशक़्क़त से सख़्त काम लेकर.

बेशक हम तेरे पास तेरे रब की तरफ़ से निशानी लाए हैं(29)
(29) यानी चमत्कार जो हमारी नबुव्वत की सच्चाई के प्रमाण हैं. फ़िरऔन ने कहा वो क्या हैं तो आपने चमकती हथैली का चमत्कार दिखाया.

और सलामती उसे जो हिदायत की पैरवी करे(30){47}
(30) यानी दोनों जगत में उसके लिये सलामती है, वह अज़ाब से मेहफ़ूज़ रहेगा.

बेशक हमारी तरफ़ वही (देववाणी) हुई है कि अज़ाब उस पर है जो झुटलाए(31)
(31) हमारी नबुव्वत को और उन आदेशों को जो हम लाए.

और मुंह फेरे(32){48}
(32) हमारी हिदायत से हज़रत मूसा और हज़रत हारून अलैहिस्सलाम ने फ़िरऔन को यह संदेश पहुंचा दिया तो वह—

बोला तो तुम दोनों का ख़ुदा कौन है ऐ मूसा {49} कहा हमारा रब वह है जिसने हर चीज़ को उसके लायक़ सूरत दी(33)
(33)हाथ को इसके लायक़ कि किसी चीज़ को पकड़ सके, पाँव को इसके क़ाबिल कि चल सके, ज़बान को इसके मुनासिब कि बोल सके, आँख को इसके अनुसार कि देख सके, कान को ऐसा कि सुन सके.

फिर राह दिखाई(34) {50}
(34) और इसकी पहचान और जानकारी दी कि दुनिया की ज़िन्दगी और आख़िरत की सआदत के लिये अल्लाह की दी हुई नेअमतों को किस तरह काम में लाया जाए.

बोला(35)
(35) फ़िरऔन.

अगली संगतों (कौमों) का क्या हाल है(36){51}
(36) यानी जो उम्मतें गुज़र चुकी है जैसे कि नूह, आद और समूद की क़ौम, जो बुतों को पूजते थे और मरने के बाद ज़िन्दा करके उठाए जाने के इन्कारी थे, इसपर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने.

कहा उनका इल्म मेरे रब के पास एक किताब में है(37)
(37) यानी लौहे मेहफ़ूज़ में उनके सारे हालात लिखे हैं. क़यामत के दिन उन्हें उन कर्मों का बदला दिया जाएगा.

मेरा रब न बहके न भूले {52} वह जिसने तुम्हारे लिये ज़मीन बिछौना किया और तुम्हारे लिये उसमें चलती राहें रखीं और आसमान से पानी उतारा(38)
(38) हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का कलाम तो यहाँ ख़त्म हो गया अब अल्लाह तआला मक्का वालों को सम्बोधित करके इसका अन्त फ़रमाता है.

तो हम ने उससे तरह तरह के सब्ज़े के जोड़े निकाले(39){53}
(39) यानी क़िस्म क़िस्म की हरियालीयाँ, विभिन्न रंगतों, सुगंधों, शक्लों के, कुछ आदमियों के लिये, कुछ जानवरों के लिये.

तुम खाओ और अपने मवेशियों को चराओ,  (40)
(40)  यह बात अबाहत और नेअमत के ज़िक्र के लिये है. यानी हमने ये सब्ज़े निकाले, तुम्हारे लिये इनका खाना और अपने जानवरों को चराना मुबाह यानी जायज़ करके.
बेशक इसमें निशानियाँ हैं अक़्ल वालों को {54}

20 सूरए तॉहा -तीसरा रूकू

20 सूरए तॉहा -तीसरा रूकू

हमने ज़मीन ही से तुम्हें बनाया(1)
(1) तुम्हारे बड़े दादा हज़रत आदम को उससे पैदा करके. 

और इसी में तुम्हें फिर ले जाएंगे(2)
(2) तुम्हारी मौत और दफ़्न के वक़्त.

और इसी से तुम्हें दोबारा निकालेंगे (3){55}
(3) क़यामत के दिन.

और बेशक हमने उसे(4)
(4) यानी फ़िरऔन को.

अपनी सब निशानियां(5)
(5) यानी कुल आयतें जो हज़रत मूसा को अता फ़रमाई थीं.

दिखाई तो उसने झुटलाया और न माना(6){56}
(6) और उन आयतों को जादू बताया और सच्चाई क़ुबूल करने से इन्कार किया और—

बोला क्या तुम हमारे पास इसलिये आये हो कि हमें अपने जादू के कारण हमारी ज़मीन से निकाल दो ऐ मूसा(7){57}
(7) यानी हमें मिस्र से निकाल कर ख़ुद उस पर क़ब्ज़ा करो और बादशाह बन जाओ.

तो ज़रूर हम भी तुम्हारे आगे वैसा ही जादू लाएंगे (8)
(8) और जादू में हमारा मुक़ाबला होगा.

तो हम में और अपने में एक वादा ठहरा दो जिससे न हम बदला लें न तुम हमवार जगह हो{58} मूसा ने कहा तुम्हारा वादा मेले का दिन है(9)
(9) इस मेले से फ़िरऔनियों का मेला मुराद है जो उनकी ईद थी और उसमें वो सज धज के जमा होते थे. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि यह दिन आशूरा यानी दसवीं मुहर्रम का था और उस साल ये तारीख़ शनिवार को पड़ी थी. उस दिन को हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने इसलिये निर्धारित किया कि यह दिन उनकी ऊंची शौकत यानी पराकाष्ठा का दिन था उसको मुक़र्रर करना अपनी भरपूर क़ुव्वत का इज़हार है. इसमें यह भी हिकमत थी कि सच्चाई के ज़ुहूर और बातिल की रूस्वाई के लिये ऐसा ही वक़्त मुनासिब है जबकि आस पास के तमाम लोग जमा हों.

और यह लोग कि दिन चढ़े जमा किये जाएं(10){59}
(10) ताकि ख़ूब रौशनी फैल जाय और देखने वाले इत्मीनान से देख सकें और हर चीज़ साफ़ साफ़ नज़र आए.

तो फ़िरऔन फिरा अपने दाँव इकट्ठे किये(11)
(11) बड़ी भारी तादाद में जादूगरों को इकट्ठा किया.

फिर आया(12){60}
(12) वादे के दिन उन सब को लेकर.

उनसे मूसा ने कहा तुम्हें ख़राबी हो अल्लाह पर झूठ न बाँधों(13)
(13) किसी को उसका शरीक करके.

कि वह तुम्हें अज़ाब से हलाक कर दे, और बेशक नामुराद रहा जिसने झूट बांधा(14){61}
(14) अल्लाह तआला पर.

तो अपने मामले में बाहम मुख़्तलिफ़ हो गए(15)
(15) यानी जादूगर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का यह कलाम सुनकर आपस में अलग अलग हो गए. कुछ कहने लगे कि यह भी हमारे जैसे जादूगर हैं, कुछ ने कहा कि ये बातें जादूगरों की नहीं, वो अल्लाह पर झूट बांधने को मना करते हैं.

और छुप कर सलाह की{62}  बोले बेशक ये दोनो (16)
(16) यानी हज़रत मूसा और हज़रत हारून.

ज़रूर जादूगर हैं चाहते हैं कि तुम्हें तुम्हारी ज़मीन से अपने जादू के ज़ोर से निकाल दें और तुम्हारा अच्छा दीन ले जाएं{63} तो अपना दाँव(फरेब) पक्का कर लो फिर परा बांध कर आओ,  और आज मुराद को पहुंचा जो ग़ालिब (विजयी) रहा{64} बोले (17)
(17) जादूगर.

ऐ मूसा या तो तुम डालो(18)
(18) पहले अपनी लाठी.

या हम पहले डालें(19){65}
(19) अपने सामान, शुरूआत करना जादूगरों ने अदब के तौर पर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की मुबारक राय पर छोड़ा और यानी हज़रत मूसा और हज़रत हारून.  उसकी बरकत से आख़िरकार अल्लाह तआला ने उन्हें ईमान की दौलत से नवाज़ा.

मूसा ने कहा बल्कि तुम्हीं डालो,(20)
(20) यह हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने इसलिये फ़रमाया कि जो कुछ जादू के धोखे हैं पहले वो सब ज़ाहिर कर चुकें, उसके बाद आप चमत्कार दिखाएं और सत्य झूट को मिटाए और चमत्कार जादू को बातिल कर दे. तो देखने वालों को बसीरत और इब्रत हासिल हो. चुनांचे जादूगरों ने रस्सियाँ लाठियाँ वग़ैरह जो सामान लाए थे सब डाल दिया और लोगों की नज़र बन्दी कर दी.

जभी उनकी रस्सियाँ और लाठियां उनके जादू के ज़ोर से उनके ख़याल में दौड़ती मालूम हुई (21){66}
(21) हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने देखा कि ज़मीन साँपों से भर गई और मीलों मैदान में साँप ही साँप दौड़ रहे हैं और देखने वाले इस झूठी नज़र बन्दी से मसहूर यानी वशीभूत हो गए हैं. कहीं ऐसा न हो कि कुछ चमत्कार देखने से पहले ही इस के असर में आजाएं और चमत्कार न देखें.

तो अपने जी में मूसा ने ख़ौफ़ पाया{67} हमने फ़रमाया डर नहीं बेशक तू ही ग़ालिब है{68} और डाल तो दे जो तेरे दाएं हाथ में है(22)
(22) यानी अपनी लाठी.

और उनकी बनावटों को निगल जाएगा, वो जो बनाकर लाए हैं वह तो जादूगर का धोखा है, और जादूगर का भला नहीं होता कहीं आवे(23){69}
(23) फिर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अपनी लाठी डाली, वह जादूगरों के तमाम अजगरों और साँपों को निगल गई और आदमी उसके डर से घबरा गए. हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उसे अपने मुबारक हाथ में लिया तो पहले की तरह लाठी बन गई. यह देखकर जादूगरों को यक़ीन हुआ कि यह चमत्कार है जिससे जादू मुक़ाबला नहीं कर सकता और जादू की नज़रबन्दी इसके सामने नहीं टिक सकती.

तो सब जादूगर सज्दे में गिराए गए बोले हम उसपर ईमान लाए जो हारून और मूसा का रब है(24){70}
(24) सुब्हानल्लाह! क्या अजीब हाल था, जिन लोगों ने अभी कुफ़्र के नशे में रस्सियाँ और लाठियाँ डाली थीं, अभी चमत्कार देख कर उन्होंने शुक्र और सज्दे के लिये सर झुका दिये और गर्दनें डाल दीं. बताया गया है कि इस सज्दे में उन्हें जन्नत और दोज़ख़ दिखाई गई और उन्होंने जन्नत में अपनी मंज़िलें देख लीं.

फ़िरऔन बोला क्या तुम उस पर ईमान लाए इसके पहले कि मैं तुम्हें इजाज़त दूँ, बेशक वह तुम्हारा बड़ा है जिसने तुमको जादू सिखाया(25)
(25) यानी जादू में वह कामिल उस्ताद और तुम सबसे ऊंचा है(मआज़ल्लाह).

तो मुझे क़सम है ज़रूर मैं तुम्हारे एक तरफ़ के हाथ और दूसरी तरफ़ के पांव काटूंगा (26)
(26) यानी दाएं हाथ और बाएं पाँव.

और तुम्हें खजूर के ठुंड पर सूली चढ़ाऊंगा और ज़रूर तुम जान जाओगे कि हम में किस का अज़ाब सख़्त और देरपा है(27){71}
(27) इससे फ़िरऔन मलऊन की मुराद यह थी कि उसका अज़ाब ज़्यादा सख़्त है या सारे जगत के रब का. फ़िरऔन का यह घमण्ड भरा कलिमा सुनकर वो जादूगर—

बोले हम हरगिज़ तुझे तरजीह (प्राथमिकता ) न देंगे उन रौशन दलीलों पर जो हमारे पास आई (28)
(28) चमकती हथैली और हज़रत मूसा की लाठी. कुछ मुफ़स्सिरों ने कहा है कि उनका तर्क यह था कि अगर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के चमत्कार को भी जादू कहता है  तो बता वो रस्से और लाठियाँ  कहाँ गई. कुछ मुफ़स्सिर कहते हैं कि “रोशन दलीलों” से मुराद जन्नत और उसमें अपनी मंज़िलों का देखना है.

हमें अपने पैदा करने वाले की क़सम तो तू कर चूक जो तुझे करना है(29)
(29) हमें उसकी कुछ पर्वाह नहीं.

तू इस दुनिया ही की ज़िन्दगी में तो करेगा(30){72}
(30) आगे तो तेरी कुछ मजाल नहीं और दुनिया नश्वर और यहाँ की हर चीज़ नष्ट होने वाली है. तू मेहरबान भी हो तो हमेशा की ज़िन्दगी नहीं दे सकता फिर दुनिया की ज़िन्दगी और इसकी सारी राहतों के पतन का क्या ग़म. विशेष कर उसको जो जानता है कि आख़िरत में दुनिया के कर्मों का बदला मिलेगा.

बेशक हम अपने रब पर ईमान लाए कि वह हमारी खताएं बख़्श दे और वह जो तूने हमें मजबूर किया जादू पर (31)
(31) हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के मुक़ाबले में, कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया कि फ़िरऔन ने जब जादूगरों को हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के मुक़ाबले के लिये बुलाया था तो जादूगरों ने फ़िरऔन से कहा था कि हम हज़रत मूसा को सोता हुआ देखना चाहते हैं. चुनांचे इसकी कोशिश की गई और उन्हें ऐसा अवसर दिया गया. उन्होंने देखा कि हज़रत सो रहे हैं और लाठी पहरा दे रही है. यह देखकर जादूगरों ने फ़िरऔन से कहा कि मूसा जादूगर नहीं हैं क्योंकि जादूगर जब सोता है तो उस वक़्त उसका जादू काम नहीं करता मगर फ़िरऔन ने उन्हें जादू करने पर मजबूर कर दिया. इसकी माफ़ी के वो अल्लाह तआला से तालिब और उम्मीदवार हैं.

और अल्लाह बेहतर है(32)
(32) फ़रमाँबरदारों को सवाब देने में.

और सब से ज़्यादा बाक़ी रहने वाला (33){73}
(33) नाफ़रमानों पर अज़ाब करने के लिहाज़ से.

बेशक जो अपने रब के हुज़ूर मुजरिम (34)
(34) यानी फ़िरऔन जैसे काफ़िर.

होकर आए तो ज़रूर उसके लिये जहन्नम है जिस में न मरे(35)
(35) कि मरकर ही उससे छूट सके.

न जिये(36){74}
(36) ऐसा जीना जिससे कुछ नुफ़ा उठा सके.

और जो उसके हुज़ूर ईमान के साथ आए कि अच्छे काम किये हों(37)
(37) यानी जिनका ईमान पर खात्मा हुआ हो और उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में नेक कर्म किये हों, फ़र्ज़ और नफ़्ल अदा किये हों.

तो उन्हीं के द्रज़े ऊंचे {75} बसने के बाग़ जिनके नीचे नेहरे बहे हमेशा उनमें रहे, और यह सिला है उसका जो पाक हुआ (38){76}
(38) कुफ़्र की नापाकी और गुनाहों की गन्दगी से.

20 सूरए तॉहा -चौथा रूकू

20 सूरए   तॉहा -चौथा रूकू

और बेशक हमने मूसा को वही (देववाणी) की(1)
(1) जबकि फ़िरऔन चमत्कार देखकर राह पर न आया और नसीहत हासिल न की और बनी इस्राईल पर अत्याचार और अधिक करने लगा. 

कि रातों रात मेरे बन्दों को ले चल(2)
(2) मिस्र से, और जब दरिया के किनारे पहुंचे और फ़िरऔनी लश्कर पीछे से आए तो अन्देशा न कर.

और उनके लिये दरिया में सूखा रास्ता निकाल दे(3)
(3) अपनी लाठी मार कर.

तुझे डर न होगा कि फ़िरऔन आ ले और न ख़तरा (4){77}
(4) नदी में डूबने का, मूसा अलैहिस्सलाम का हुक्म पाकर रात के पहले पहर सत्तर हज़ार बनी इस्राईल को साथ लेकर मिस्र से चल पड़े.

तो उनके पीछे फ़िरऔन पड़ा अपने लश्कर लेकर(5)
(5) जिन में छ लाख फ़िरऔनी थे.

तो उन्हें दरिया ने ढांप लिया जैसा ढांप लिया(6){78}
(6) वो डूब गए और पानी उनके सरों से उँचा हो गया.

और फ़िरऔन ने अपनी क़ौम को गुमराह किया और राह न दिखाई (7){79}
(7) इसके बाद अल्लाह तआला ने अपने और एहसान का ज़िक्र किया और फ़रमाया.

ऐ बनी इस्राईल, बेशक हमने तुमको तुम्हारे दुश्मन (8)
(8) यानी फ़िरऔन और उसकी क़ौम.

से निजात दी और तुम्हें तूर की दाईं तरफ़ का वादा दिया(9)
(9) कि हम मूसा अलैहिस्सलाम को वहाँ तौरात अता फ़रमाएँगे जिसपर अमल किया जाए.

और तुम पर मन्न और सलवा उतारा(10){80}
(10) तेह में और फ़रमाया.

खाओ जो पाक चीज़ें हमने तुम्हें रोज़ी दीं और उसमें ज़ियादती न करो(11)
(11) नाशुक्री और नेअमत को झुटलाकर और उन नेअमतों को गुनाहों में ख़र्च करके या एक दूसरे पर ज़ुल्म करके.

कि तुम पर मेरा गज़ब उतरे और जिस पर मेरा गज़ब उतरा बेशक वह गिरा (12){81}
(12) जहन्नम में, और हलाक हुआ.

और बेशक मैं बहुत बख़्शने वाला हूँ उसे जिसने तौबह की(13){81}
(13) शिर्क से.

और ईमान लाया और अच्छा काम किया फिर हिदायत पर रहा(14){82}
(14) आख़िर दम तक.

और तूने अपनी क़ौम से क्यों जल्दी की ऐ मूसा (15) {83}
(15) हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम जब अपनी क़ौम में से सत्तर आदमी चुन कर तौरात लेने तूर पर तशरीफ़ ले गए, फिर रब के कलाम के शौक़ में उनसे आगे बढ़ गए, उन्हें पीछे छोड़ दिया और फ़रमा दिया कि मेरे पीछे चले आओ. इसपर अल्लाह तआला ने फ़रमाया “वमा अअजलका” (क्यों जल्दी की,) तो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने—

अर्ज़ की कि वो ये हैं मेरे पीछे और ऐ मेरे रब तेरी तरफ़ मैं जल्दी करके हाज़िर हुआ कि तू राज़ी हो(16){84}
(16)यानी तेरी रज़ा और ज़्यादा हो. इस आयत में इज्तिहाद का जायज़ होना साबित हुआ (मदारिक)

फ़रमाया तो हमने तेरे आने के बाद तेरी क़ौम को(17)
(17)  जिन्हें आपने हज़रत हारून अलैहिस्सलाम के साथ छोड़ा है.

बला में डाला और उन्हें सामरी ने गुमराह कर दिया(18){85}
(18) बछड़े की पूजा की दावत देकर. इस आयत में गुमराह करने की निस्बत सामरी की तरफ़ फ़रमाई गई क्योंकि वह उसका कारण हुआ. इससे साबित हुआ कि किसी चीज को कारण की तरफ़ निस्बत करना जायज़ है. इसी तरह कह सकते हैं कि माँ बाप ने पाला पोसा, दीनी पेशवाओ ने हिदायत की और वलियों ने हाजत दूर फ़रमाई, बुज़ुर्गों ने बला दूर की. मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया है कि काम ज़ाहिर में नियत और कारण की तरफ़ जोड़ दिये जाते हैं जबकि हक़ीक़त में उनका बनाने वाला अल्लाह तआला है और क़ुरआन शरीफ़  में ऐसी निस्बतें बहुतात से आई हैं.(ख़ाज़िन)

तो मूसा अपनी क़ौम की तरफ़ पलटा (19)
(19) चालीस दिन पूरे करके तौरात लेकर.

ग़ुस्से में भरा, अफ़सोस करता(20)
(20) उनके हाल पर.

कहा ऐ मेरी क़ौम क्या तुमसे तुम्हारे रब ने अच्छा वादा न किया था(21)
(21) कि वह तौरात अता फ़रमाएगा जिसमें हिदायत है, नूर है हज़ार सूरतें हैं, हर सूरत में हज़ार आयतें हैं.

क्या तुम पर मुद्दत लम्बी गुज़री या तुमने चाहा कि तुम पर तुम्हारे रब का ग़ज़ब (प्रकोप) उतरे तो तुमने मेरा वादा खिलाफ़ किया(22){86}
(22)  और ऐसा ग़लत काम किया कि बछड़े को पूजने लगे. तुम्हारा वादा तो मुझसे यह था कि मेरे हुक्म पर चलोगे और मेरे दीन पर क़ायम रहोगे.

बोले हमने आपका वादा अपने इख़्तियार से ख़िलाफ़ न किया लेकिन हमसे कुछ बोझ उठवाए गए उस क़ौम के गहने के (23)
(23) यानी फ़िरऔनी क़ौम के ज़ेवरों के जो बनी इस्राईल ने उन लोगों से उधार मांग लिये थे.

तो हमने उन्हें (24)
(24) सामरी के हुक्म से आग में.

डाल दिया फिर इसी तरह सामरी ने डाला (25){87}
(25) उन ज़ेवरों को जो उसके पास थे और उस ख़ाक को जो हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम के घोड़े के क़दम के नीचे से उसने हासिल की थी.

तो उसने उनके लिये एक बछड़ा निकाला बेजान का धड़ गाय की तरह बोलता (26)
(26) ये बछड़ा सामरी ने बनाया और इसमें कुछ छेद इस तरह रखे कि जब उनमें हवा दाख़िल हो तो उससे बछड़े की आवाज़ की तरह आवाज़ पैदा हो. एक क़ौल यह भी है कि वह हज़रत जिब्रील के घोड़े के क़दम के नीचे की धूल डालने से ज़िन्दा हो कर बछड़े की तरह बोलता था.

तो बोले(27)
(27) सामरी और उसके अनुयायी.

यह है तुम्हारा मअबूद और मूसा का मअबूद, तो भूल गए(28){88}
(28) यानी मूसा मअबूद को भूल गए और उसको यहाँ छोड़ कर उसकी खोज में तूर पर चले गए. कुछ मुफ़स्सिरों ने कहा कि “भूल गए” का कर्ता सामरी है और मानी यह हैं कि सामरी ने जो बछड़े को मअबूद बनाया वह अपने रब को भूल गया.

तो क्या नहीं देखते कि वह (29)
(29) बछड़ा.

उन्हें किसी बात का जवाब नहीं देता और उनके किसी बुरे भले का इख़्तियार नहीं रखता(30){89}
(30) खिताब से भी मजबूर और नफ़ा नुक़सान से भी लाचार, वह किस तरह मअबूद हो सकता है.

20 सूरए तॉहा -पाँचवा रूकू

20 सूरए  तॉहा -पाँचवा रूकू

और बेशक उन से हारून ने इससे पहले कहा था कि ऐ मेरी क़ौम यूंही है कि तुम उसके कारण फ़ितने में पड़े (1)
(1) तो उसे न पूजो. 

और बेशक तुम्हारा रब रहमान है तो मेरी पैरवी करो और मेरा हुक्म मानो{90} बोले हम तो उस पर आसन मारे जम (पूजा के लिये बैठे) रहेंगे(2)
(2) बछड़े की पूजा पर क़ायम रहेंगे और तुम्हारी बात न मानेंगे.

जब तक हमारे पास मूसा लौट के आएं(3){91}
(3) इसपर हज़रत हारून अलैहिस्सलाम उनसे अलग हो गए और उनके साथ बारह हज़ार वो लोग जिन्होंने बछड़े की पूजा नहीं की थी. जब मूसा अलैहिस्सलाम वापस तशरीफ़ लाए तो आपने उनके शोर मचाने और बाजे बजाने की आवाज़ें सुनीं जो बछड़े के चारों तरफ़ नाचते थे. तब आपने अपने सत्तर साथियों से फ़रमाया यह फ़ित्ने की आवाज़ है. जब क़रीब पहुंचे और हज़रत हारून को देखा तो दीनी ग़ैरत से जो आपकी प्रकृति थी, जोश में आकर उनके सर के बाल दाएं हाथ में और दाढ़ी बाएं में पकड़ी और.

मूसा ने कहा ऐ हारून तुम्हें किस बात ने रोका था जब तुम ने इन्हें गुमराह होते देखा था{92} कि मेरे पीछे आते, (4)
(4) और मुझे ख़बर दे देते यानी जब उन्होंने तुम्हारी बात न मान थी तो तुम मुझ से क्यों नहीं आ मिले तुम्हारा उनसे जुदा होना भी उनके हक़ में एक ज़ज्र (चेतावनी) होता.

तो क्या तुमने मेरा हुक्म न माना{93} कहा ऐ मेरे माँजाए न मेरी दाढ़ी पकड़ो और न मेरे सर के बाल, मुझे यह डर हुआ कि तुम कहोगे तुमने बनी इस्राईल {3} में तफ़रक़ा(फूट) डाल दिया और तुमने मेरी बात का इन्तिज़ार न किया(5){94}
(5) यह सुनकर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम सामरी की तरफ़ मुतवज्जह हुए, चुनांचे.

मूसा ने कहा अब तेरा क्या हाल है ऐ सामरी(6){95}
(6) तूने ऐसा क्यों  किया, इसकी वजह बता.

बोला मैंने वह देखा जो लोगो न देखा (7)
(7) यानी मैं ने हज़रत जिब्रील को देखा और उनको पहचान लिया. वह ज़िन्दगी के घोड़े पर सवार थे. मेरे दिल में यह बात आई कि मैं उनके घोड़े के क़दम की धूल ले लूं.

तो एक मुट्ठी भर ली फ़रिश्ते के निशान से फिर उसे डाल दिया(8)
(8) उस बछड़े में जिसे बनाया था.

और मेरे जी को यही भला लगा(9){96}
(9) और यह काम मैं ने अपने ही मन के बहकावे पर किया, कोई दूसरा इसका कारण न था. इसपर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने—

कहा तू चलता बन(10)
(10) दूर हो जा.

कि दुनिया की ज़िन्दगी में तेरी सज़ा यह है कि (11)
(11) जब तुझ से कोई मिलना चाहे जो तेरे हाल से वाक़िफ़ न हो तो उस से—

तू कहे छू न जा(12)
(12) यानी सबसे अलग रहना, न तुझ से कोई छुए, न तू किसी से छुए, लोगों से मिलना उसके लिये पूरे तौर पर वर्जित क़रार दिया गया और मुलाक़ात, बातचीत,  क्रय विक्रय, लेन देन, हर एक के साथ हराम कर दी गई और अगर संयोग से कोई उससे छू जाता तो वह और छूने वाला दोनों सख़्त बुख़ार में जकड़ जाते, वह जंगल में यही शोर मचाता फिरता कि कोई छू न जाना और वहशियों और दरिन्दों में ज़िन्दगी के दिन अत्यन्त बुरी हालत में गुज़ारता था.

और बेशक तेरे लिये एक वादे का वक़्त है(13)
(13) यानी अज़ाब के वादे का, आख़िरत में इस दुनियावी अज़ाब के बाद तेरे शिर्क और फ़साद फैलाने पर.

जो तुझसे ख़िलाफ़ न होगा और अपने उस मअबूद को देख जिसके सामने तू दिन भर आसन मारे (पूजा के लिये) रहा(14),
(14) और उसकी इबादत पर क़ायम रहा.

क़सम है हम ज़रूर इसे जिलाएंगे फिर रेज़ा रेज़ा करके दरिया में बहाएंगे(15) {97}
(15) चुनांचे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने ऐसा किया और जब आप सामरी के उस फ़साद को मिटा चुके तो बनी इस्राईल को सम्बोधित करके सच्चे दीन का बयान फ़रमाया और इरशाद किया.

तुम्हारा मअबूद तो वही अल्लाह है जिसके सिवा किसी की बन्दगी नहीं, हर चीज़ को उसका इल्म घेरे है{98} हम ऐसा ही तुम्हारे सामने अगली ख़बरें बयान फ़रमाते हैं और हमने तुमको अपने पास से एक ज़िक्र अता फ़रमाया(16){99}
(16) यानी क़ुरआन शरीफ़ कि वह सर्वोत्तम ज़िक्र और जो इसकी तरफ़ ध्यान लगाए उसके लिये इस बुज़ुर्गी वाली किताब में मोक्ष बरकतें हैं और इस पवित्र ग्रन्थ में पिछली उम्मतों के ऐसे हालात का बयान है जो ग़ौर करने और सबक पकड़ने के लायक़ हैं.

जो उससे मुंह फेरे(17)
(17) यानी क़ुरआन से और उस पर ईमान न लाए और उसकी हिदायतों से फ़ायदा न उठाए.

तो बेशक वह क़यामत के दिन एक बोझ उठाएगा (18){100}
(18) गुनाहों का भारी बोझ.

वो हमेशा उसमें रहेंगे(19)
(19) यानी उस गुनाह के अज़ाब में.

और वह क़यामत के दिन उनके हक़ में क्या ही बुरा बोझ होगा, {101}जिस दिन सूर फूंका जाएगा(20)
(20) लोगों को मेहशर में हाज़िर करने के लिये. इससे मुराद सूर का दूसरी बार फूंका जाना है.

और हम उस दिन मुजरिमों को(21)
(21) यानी काफ़िरों के इस हाल में.

उठाएंगे नीली आँखें(22){102}
(22) और काले मुंह.

आपस में चुपके चुपके कहते होंगे कि तुम दुनिया में न रहे मगर दस रात(23){103}
(23)आख़िरत की मुसीबतें और वहाँ की ख़ौफ़नाक मंज़िलें देखकर उन्हें दुनिया की ज़िन्दगी की अवधि बहुत कम मालूम होगी.

हम ख़ूब जानते हैं जो वो(24)
(24) आपस में एक दूसरे से.

कहेंगे जब कि उनमें सबसे बेहतर राय वाला कहेगा कि तुम सिर्फ एक ही दिन रहे थे(25){104}
(25) कुछ मुफ़स्सिरों ने कहा कि वो उस दिन की सख़्तियाँ देखकर अपने दुनिया में रहने की अवधि भूल जाएंगे.

20 सूरए तॉहा -छटा रूकू

20 सूरए   तॉहा -छटा रूकू

और तुमसे पहाड़ों को पूछते हैं(1)
(1)हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि सक़ीफ़ क़बीले के एक आदमी ने रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से पूछा कि क़यामत के दिन पहाड़ों का क्या हाल होगा. इस पर यह आयत उतरी.

तुम फ़रमाओ इन्हें मेरा रब रेज़ा रेज़ा करके उड़ा देगा{105} तो ज़मीन को पटपर (चटियल मैदान) हमवार करके छोड़ेगा{106} कि तू इसमें नीचा ऊंचा कुछ न देखे{107} उस दिन पुकारने वाले के पीछे दौड़ेंगे(2)
(2) जो उन्हें क़यामत के हिसाब के मैदान की तरफ़ बुलाएगा और पुकारेगा कि चलो रहमान के समक्ष पेश होने को और यह पुकारने वाले हज़रत इस्राफ़ील होंगे.

उसमें कजी न होगी(3)
(3) और उस बुलाने से कोई मुंह नहीं मोड़ पाएगा.

और सब आवाज़ें रहमान के हुज़ूर (4)
(4) हैबत और जलाल से.

पस्त होकर रह जाएंगी तो तू न सुरेगा मगर बहुत आहिस्ता आवाज़ (5){108}
(5) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि इसमें सिर्फ़ होंटों की हरकत होगी.

उस दिन किसी की शफ़ाअत काम न देगी मगर उसकी जिसे रहमान ने(6)
(6) शफ़ाअत करने का.

इज़्न(आज्ञा) दे दिया है और उसकी बात पसन्द फ़रमाई{109} वह जानता है जो कुछ उनके आगे है और जो कुछ उनके पीछे(7)
(7) यानी सारा गुज़रा हुआ और सारा आने वाला और दुनिया और आख़िरत के सारे काम. यानी अल्लाह का इल्म बन्दों की ज़ात और सिफ़ात और समस्त हालात को घेरे हुए है.

और उनका इल्म उसे नहीं घेर सकता(8){110}
(8) यानी सारी सृष्टि का इल्म अल्लाह की ज़ात का इहाता नहीं कर सकता. उसकी ज़ात की जानकारी सृष्टि के इल्म की पहुंच से बाहर है. वह अपने नामों और गुणों और क्षमताओं और हिकमत की निशानियों से पहचाना जाता है. कुछ मुफ़स्सिरों ने आयत के ये मानी बयान किये हैं कि ख़ल्क़ के उलूम ख़ालिक़ से सम्बन्धित जानकारी का इहाता नहीं कर सकते.

और सब मुंह झुक जाएंगे उस ज़िन्दा क़ायम रहने वाले के हुज़ूर(9)
(9) और हर एक इज्ज़ और नियाज़ की शान के साथ हाज़िर होगा, किसी में सरकशी न रहेगी, अल्लाह तआला के क़हर व हुकूमत का सम्पूर्ण इज़हार होगा.

और बेशक नामुराद रहा जिसने ज़ुल्म का बोझ लिया(10){111}
(10) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने इसकी तफ़सीर में फ़रमाया जिसने शिर्क किया वह टोटे में रहा. बेशक शिर्क सबसे बुरा जुर्म है और जो इस जुर्म में जकड़ा हुआ हिसाब के मैदान में आए उससे बढ़कर नामुराद कौन है.

और जो कुछ नेक काम करे और हो मुसलमान तो उसे न ज़ियादत का ख़ौफ़ होगा न नुक़सान का(11){112}
(11)  इस आयत से मालूम हुआ कि फ़रमाँबरदारी और नेक कर्म सब की क़ुबूलियत ईमान के साथ जुड़ी है कि ईमान हो तो सब नेकियाँ कारआमद हैं और ईमान न हो, सारे अमल बेकार.

और यूंही हमने इसे अरबी क़ुरआन उतारा और इस में तरह तरह से अज़ाब के वादे दिये(12)
(12) फ़र्ज़ों के छोड़ने और मना की हुई बातों को अपनाने पर.

कि कहीं उन्हें डर हो या उनके दिल में कुछ सोच पैदा करे(13){113}
(13) जिससे उन्हें नेकियों की रग़बत और बुराईयों से नफ़रत हो और वो नसीहत हासिल करें.

तो सब से बलन्द है अल्लाह सच्चा बादशाह, (14)
(14) जो अस्ल मालिक है और तमाम बादशाह उसके मोहताज.

और क़ुरआन में जल्दी न करो जब तक इस की वही (देववाणी) तुम्हें पूरी न होले(15)
(15) जब हज़रत जिब्रील क़ुरआन शरीफ़ लेकर उतरते थे तो हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम उनके साथ पढ़ते थे और जल्दी करते थे ताकि ख़ूब याद हो जाए. इस पर यह आयत उतरी और फ़रमाया गया कि आप मशक़्क़त न उठाएं और सूरए क़यामह में अल्लाह तआला ने ख़ुद ज़िम्मा लेकर आपकी और ज़्यादा तसल्ली फ़रमा दी.

और अर्ज़ करो कि ऐ मेरे रब मुझे इल्म ज़्यादा दे{114} और बेशक हमने आदम को इससे पहले एक ताक़ीदी हुक्म दिया था(16)
(16) कि जिस दरख़्त के पास जाने से मना किया गया है उसके पास न जाएं.
तो वह भूल गया और हमने उसका इरादा न पाया{115}

20 सूरए तॉहा -सातवाँ रूकू

20 सूरए तॉहा -सातवाँ रूकू

और जब हमने फ़रिश्तों से फ़रमाया कि आदम को सज्दा करो तो सब सज्दे में गिरे मगर इब्लीस, उसने न माना{116} तो
हमने फ़रमाया ऐ आदम बेशक यह तेरा और तेरी बीबी का दुश्मन है(1)
(1) इस से मालूम हुआ कि बुज़ुर्गी और प्रतिष्ठा वाले को तस्लीम न करना और उसका आदर करने से मुंह फेरना हसद, ईषर्या
और दुश्मनी की दलील है. इस आयत में शैतान का हज़रत आदम को सज्दा न करना आपके साथ उसकी दुश्मनी की दलील क़रार दिया गया. 

तो ऐसा न हो कि वो तुम दोनो को जन्नत से निकाल दे फिर तू मशक़्क़त में पड़े (2){117}
(2) और अपनी गिज़ा, आहार, और ख़ुराक के लिये ज़मन जोतने, खेती करने, दाना निकालने, पीसने, पकाने की मेहनत में जकड़ा जाए और चूंकि औरत का नफ़क़ा यानी गुज़ारा भत्ता मर्द के ज़िम्मे है इसलिये उसकी सारी मेहनत की निस्बत सिर्फ़ हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की तरफ़ फ़रमाई गई.

बेशक तेरे लिये जन्नत में यह है कि न तू भूखा हो न नंगा हो{118} और यह कि तुझे न इससे प्यास लगे न धूप(3){119}
(3) हर तरह का ऐशों राहत जन्नत में मौजूद है. मेहनत और परिश्रम से बिल्कुल अम्न है.

तो शैतान ने उसे वसवसा दिया बोला ऐ आदम क्या में तुम्हें बतादूं हमेशा जीने का पेड़(4)
(4) जिसको खा कर खाने वाले को हमेशा की ज़िन्दगी हासिल होती है.

और वह बादशाही कि पुरानी न पड़े (5){120}
(5) और उसमें पतन न आए.

तो उन दोनों ने उसमें से खा लिया अब उनपर उनकी शर्म की चीज़ें ज़ाहिर हुई(6)
(6) यानी जन्नती लिबास उनके शरीर से उतर गए.

और जन्नत के पत्ते अपने ऊपर चिपकाने लगे(7)
(7) गुप्तांग छुपाने और बदन ढकने के लिये.

और आदम से अपने रब के हुक्म में लग़ज़िश वाक़े हुई {121} तो जो मतलब चाहा था उसकी राह न पाई(8)
(8) और उस दरख़्त के खाने से हमेशा की ज़िन्दगी न मिली. फिर हज़रत आदम अलैहिस्सलाम तौबह और इस्तिग़फ़ार में लग गए और अल्लाह की बारगाह में सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के वसीले या माध्यम से दुआ की.

फिर उसके रब ने चुन लिया तो उस पर अपनी रहमत से रूजू फ़रमाई और अपने ख़ास क़ुर्ब (समीपता) की राह दिखाई {122} फ़रमाया तुम दोनो मिलकर जन्नत से उतरो तुम में एक दूसरे का दुश्मन है फिर अगर तुम सब को मेरी तरफ़ से हिदायत आए(9)
(9) यानी किताब और रसूल.

तो जो मेरी हिदायत का पैरो हुआ वह न बहके(10)
(10) यानी दुनिया में.

न बदबख़्त हो(11){123}
(11)  आख़िरत में, क्योंकि आख़िरत का दुर्भाग्य दुनिया में सच्चाई के रास्ते से बहकने का नतीजा है. जो कोई अल्लाह की किताब और सच्चे रसूल का अनुकरण करे और उनके आदेशानुसार चले, वह दुनिया में बहकने से और आख़िरत में उसके अज़ाब और वबाल से छुटकारा पाएगा.

और जिसने मेरी याद से मुंह फेरा (12)
(12) और मेरी हिदायत से मुंह फेरा.

तो बेशक उसके लिये तंग ज़िन्दगी है,(13)
(13) दुनिया में क़ब्र में या आख़िरत में या दीन में या इन सब में, दुनिया की तंग ज़िन्दगी यह है कि हिदायत का अनुकरण न करने से बुरे कर्म और हराम में पड़े या क़नाअत से मेहरूम होकर लालच में गिरफ़्तार हो जाए और माल मत्ता की बहुतात से भी उसको मन की शान्ति और चैन प्राप्त न हो. हर चीज़ की तलब में आवारा हो और लालच के दुख से कि यह नहीं, वह नहीं, हाल अंधेरा और समय खराब रहे. और अल्लाह पर भरोसा करने वाले मूमिन की तरह उसको सुक़ून और शान्ति हासिल ही न हो जिसको पाक ज़िन्दगी कहते हैं. और क़ब्र की तंग ज़िन्दगी यह है कि हदीस शरीफ़ में आया कि काफ़िर पर निनानवे अजगर
उसकी क़ब्र में मुसल्लत किये जाते है. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया. यह आयत असवद बिन अब्दुल उज़्ज़ा मख़जूमी के बारे में उतरी और क़ब्र की ज़िन्दगी से मुराद क़ब्र का इस सख़्ती से दबाना है जिस से एक तरफ़ की पसलियाँ दूसरी तरफ़ आ जाती है और आख़िरत में तंग ज़िन्दगी जहन्नम के अज़ाब हैं जहाँ ज़क़्क़ूम और खोलता हुआ पानी और जहन्नमियों के ख़ून और उनके पीप खाने पीने के लिये दिये जाएंगे और दीन में तंग ज़िन्दगी यह है कि नेकी की राहे तंग हो जाएं और आदमी हराम कामों में पड़ जाए. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि बन्दे को थोड़ा मिले या
बहुत, अगर ख़ुदा का ख़ौफ़ नहीं तो उसमें कुछ भलाई नहीं  और यह तंग ज़िन्दगी है. (तफ़सीरे कबीर, ख़ाज़िन और मदारिक वग़ैरह)

और हम उसे क़यामत के दिन अंधा उठाएंगे{124}कहेगा ऐ रब मेरे मुझे तूने क्यों अंधा उठाया मैं तो अखियारा था(14){125}
(14) दुनिया में.

फ़रमाएगा यूंही तेरे पास हमारी आयतें आई थीं(15)
(15) तो उनपर ईमान न लाया और-

तूने उन्हें भुला दिया और ऐसे ही आज तेरी कोई ख़बर न लेगा(16){126}
(16) जहन्नम की आग में जला करेगा.

और हम ऐसा ही बदला देते हैं जो हद से बढ़े और अपने रब की आयतों पर ईमान न लाए और बेशक आख़िरत का अज़ाब सबसे सख़्त तर और सब से देरपा है {127} तो क्या उन्हें इससे राह न मिली कि हमने उनसे पहले कितनी संगते (कौमें) हलाक कर दीं(17)
(17) जो रसूलों को नहीं मानती थीं.

कि यह उनके बसने की जगह चलते फिरते हैं (18)
(18) यानी कुरैश अपने सफ़रों में उनके इलाक़ों पर गुज़रते हैं और उनकी हलाकत के निशान देखते हैं.

बेशक इसमें निशानियां हैं अक़्ल वालों को (19){128}
(19) जो सबक पकड़े और समझें कि नबियों को झुटलाने और उनके विरोध का अंजाम बुरा है.

20 सूरए तॉहा-आठवाँ रूकू

20 सूरए तॉहा-आठवाँ रूकू

और अगर तुम्हारे रब की एक बात न गुज़र चुकी होती(1)
(1) यानी यह कि उम्मते मुहम्मदिया के अज़ाब में विलम्ब किया जाएगा.

तो ज़रूर अज़ाब उन्हें(2)
(2) दुनिया ही में.

लिपट जाता और अगर न होता एक वादा ठहराया हुआ (3){129}
(3) यानी क़यामत के दिन.

तो उनकी बातों पर सब्र करो और अपने रब को सराहते हुए उसकी पाकी बोलो सूरज चमकने से पहले (4)
(4) इससे फ़ज्र की नमाज़ मुराद है.

और उसके डूबने से पहले (5)
(5) इससे ज़ोहर और अस्र की नमाज़ें मुराद हैं जो दिन के आख़िरी निस्फ़ यानी उत्तरार्ध में सूरज के ज़वाल और ग़ुरूब के बीच स्थित हैं.

और रात की घड़ियों में उसकी पाकी बोलो(6)
(6) यानी मग़रिब और इशा की नमाज़ें पढ़ो.

और दिन के किनारों पर(7)
(7) फ़ज्र और मग़रिब की नमाज़ें, इनको ताकीद के लिये दोहराया गया और कुछ मुफ़स्सिर “डूबने से पहले” से अस्र की नमाज़ और “दिन के किनारों पर” से ज़ोहर मुराद लेते हैं. उनकी तौजीह यह है कि ज़ोहर की नमाज़ ज़वाल के बाद है और उस वक़्त दिन के पहले आधे हिस्से और दूसरे आधे हिस्से के किनारे मिलते है. पहले आधे हिस्से का अंत है और दूसरे आधे की शुरूआत. (मदारिक ख़ाज़िन)

इस उम्मीद पर कि तुम राज़ी हो(8){130}
(8) अल्लाह के फ़ज़्ल और अता और उसके इनआम और इकराम से कि तुम्हें उम्मत के हक़ में शफ़ीअ बनाकर तुम्हारी शफ़ाअत क़ुबूल फ़रमाए और तुम्हें राज़ी करें जैसा कि उसने फ़रमाया है “व लसौफ़ा युअतीका रब्बुका फतरदा” यानी और बेशक क़रीब है कि तुम्हारा रब तुम्हें इतना देगा कि तुम राज़ी हो जाओगे (सुरए दुहा 93:5)

और ऐ सुनने वाले अपनी आँखें न फ़ैला उसकी तरफ़ जो हम ने काफ़िरों के जोड़ों को बरतने के लिये दी है जितनी दुनिया की ताज़गी(9)
(9)  यानी यहूदी और ईसाई काफ़िरों वग़ैरह को जो दुनियावी सामान दिया है, मूमिन को चाहिये कि उसको अचरज की नज़र से न देखे. हसन रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि नाफ़रमानों की शानो शौकत न देखो लेकिन यह देखो कि गुनाह और बुराई की ज़िल्लत किस तरह उनकी गर्दनों से नमूदार है.

कि हम उन्हें इसके कारण फ़ितने में डालें(10)
(10) इस तरह कि जितनी उनपर नेअमत ज़्यादा हो उतनी ही उनकी सरकशी और उनकी ज़िदें बढ़ें और वो आख़िरत की सज़ा के मुस्तहिक़ हों.

और तेरे रब का रिज़्क़ (11)
(11) यानी जन्नत और उसकी नेअमतें.

सब से अच्छा और सबसे देरपा है {113} और अपने घर वालों को नमाज़ का हुक्म दे और ख़ुद इस पर साबित रह, कुछ हम तुझसे रोज़ी नहीं मांगते(12)
(12) और इसकी ज़िम्मेदारी नहीं डालते कि हमारी ख़ल्क़ को रोज़ी दे या अपने नफ़्स और अपने कुटुम्ब की रोज़ी का ज़िम्मेदार हो, बल्कि—

हम तुझे रोज़ी देंगे(13)
(13) और उन्हें भी, रोज़ी के ग़म में न पड़, अपने दिल को आख़िरत की फ़िक्र के लिये आज़ाद रख कि जो अल्लाह के काम में होता है अल्लाह उसके काम बनाता है.

और अंजाम का भला परहेज़गारी के लिये{132} और काफ़िर बोले ये(14)
(14) यानी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम.

अपने रब के पास से कोई निशानी क्यों नहीं लाते(15)
(15) जो उनकी नबुव्वत की सच्चाई पर दलील हो जबकि बहुत सी आयतें आ चुकी थीं और चमत्कारों का लगातार जुहूर हो रहा था. फिर काफ़िर उन सबसे अन्धे बने और उन्होंने हुज़ूर की निस्बत यह कह दिया कि आप अपने रब के पास से कोई निशानी क्यों नहीं लाते. इसके जवाब में अल्लाह तआला फ़रमाता है.

और क्या उन्हें इसका बयान न आया जो अगले सहीफ़ों(धर्मग्रन्थों) में है(16){133}
(16) यानी क़ुरआन और सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़ुशख़बरी और आपकी नबुव्वत और तशरीफ़ लाने का ज़िक्र, ये कैसी बड़ी निशानियाँ हैं. इनके होते हुए और किसी निशानी की तलब करने का क्या मौक़ा है.

और अगर हम उन्हें किसी अज़ाब से हलाक कर देते रसूल के आने से पहले तो (17)
(17) क़यामत के दिन.

ज़रूर कहते ऐ रब हमारे तूने हमारी तरफ़ कोई रसूल क्यों न भेजा कि हम तेरी आयतों पर चलते इससे पहले कि ज़लील व रूस्वा होते{134} तुम फ़रमाओ सब राह देख रहे हैं(18)
(18) हम भी और तुम भी. मुश्रिकों ने कहा था कि हम ज़माने की घटनाओं और इन्क़लाब का इन्तिज़ार करते हैं कि कब मुसलमानों पर आएं और उनकी कहानी का अन्त हो. इसपर यह आयत उतरी और बताया गया कि तुम मुसलमानों की तबाही और बर्बादी की राह देख्ख रहे हो और मुसलमान तुम्हारे पकड़े जाने और तुम पर अज़ाब आने का इन्तिज़ार कर रहे हैं.

तो तुम भी राह देखो तो अब जान जाओगे(19)कि कौन हैं सीधी राह वाले और किसने हिदायत पाई{135}
(19) जब ख़ुदा का हुक्म आएगा और क़यामत क़ायम होगी.
पारा सोलाह समाप्त

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