53 Surah Al-Najm
53 सूरए नज्म
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
وَالنَّجْمِ إِذَا هَوَىٰ
مَا ضَلَّ صَاحِبُكُمْ وَمَا غَوَىٰ
وَمَا يَنطِقُ عَنِ الْهَوَىٰ
إِنْ هُوَ إِلَّا وَحْيٌ يُوحَىٰ
عَلَّمَهُ شَدِيدُ الْقُوَىٰ
ذُو مِرَّةٍ فَاسْتَوَىٰ
وَهُوَ بِالْأُفُقِ الْأَعْلَىٰ
ثُمَّ دَنَا فَتَدَلَّىٰ
فَكَانَ قَابَ قَوْسَيْنِ أَوْ أَدْنَىٰ
فَأَوْحَىٰ إِلَىٰ عَبْدِهِ مَا أَوْحَىٰ
مَا كَذَبَ الْفُؤَادُ مَا رَأَىٰ
أَفَتُمَارُونَهُ عَلَىٰ مَا يَرَىٰ
وَلَقَدْ رَآهُ نَزْلَةً أُخْرَىٰ
عِندَ سِدْرَةِ الْمُنتَهَىٰ
عِندَهَا جَنَّةُ الْمَأْوَىٰ
إِذْ يَغْشَى السِّدْرَةَ مَا يَغْشَىٰ
مَا زَاغَ الْبَصَرُ وَمَا طَغَىٰ
لَقَدْ رَأَىٰ مِنْ آيَاتِ رَبِّهِ الْكُبْرَىٰ
أَفَرَأَيْتُمُ اللَّاتَ وَالْعُزَّىٰ
وَمَنَاةَ الثَّالِثَةَ الْأُخْرَىٰ
أَلَكُمُ الذَّكَرُ وَلَهُ الْأُنثَىٰ
تِلْكَ إِذًا قِسْمَةٌ ضِيزَىٰ
إِنْ هِيَ إِلَّا أَسْمَاءٌ سَمَّيْتُمُوهَا أَنتُمْ وَآبَاؤُكُم مَّا أَنزَلَ اللَّهُ بِهَا مِن سُلْطَانٍ ۚ إِن يَتَّبِعُونَ إِلَّا الظَّنَّ وَمَا تَهْوَى الْأَنفُسُ ۖ وَلَقَدْ جَاءَهُم مِّن رَّبِّهِمُ الْهُدَىٰ
أَمْ لِلْإِنسَانِ مَا تَمَنَّىٰ
فَلِلَّهِ الْآخِرَةُ وَالْأُولَىٰ
सूरए नज्म मक्के में उतरी, इसमें 62 आयतें, तीन रूकू हैं.
-पहला रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए नज्म मक्की है, इसमें तीन रूकू, बासठ आयतें, तीन सौ साठ कलिमें, एक हज़ार चार सौ पाँच अक्षर हैं. यह वह पहली सूरत है जिसका रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने ऐलान फ़रमाया और हरम शरीफ़ में मुश्रि कों के सामने पढ़ी.
इस प्यारे चमकते तारे मुहम्मद की क़सम जब यह मेअराज से उतरे(2){1}
(2) नज्म की तफ़सीर में मुफ़स्सिरों के बहुत से क़ौल हैं कुछ ने सुरैया मुराद लिया है अगरचे सुरैया कई तारे हैं लेकिन नज्म का इतलाक़ उनपर अरब की आदत है. कुछ ने नज्म से नजूम की जिन्स मुराद ली है. कुछ ने वो वनस्पति जो तने नहीं रखते, ज़मीन पर फैलते हैं. कुछ ने नज्म से क़ुरआन मुराद लिया है लेकिन सबसे अच्छी तफ़सीर वह है जो इमाम अहमद रज़ा ने इख़्तियार फ़रमाई कि नज्म से मुराद है नबियों के सरदार मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की मुबारक ज़ात.(ख़ाज़िन)
तुम्हारे साहब न बहके न बेराह चले(3){2}
(3) साहब से मुराद सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम हैं. मानी ये हैं कि हुज़ूरे अनवर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने कभी सच्चाई के रास्ते और हिदायत से मुंह न फेरा, हमेशा अपने रब की तौहीद और इबादत में रहे. आपके पाक दामन पर कभी किसी बुरे काम की धूल न आई. और बेराह न चलने से मुराद यह है कि हुज़ूर हमेशा सच्चाई और हिदायत की आला मंज़िल पर फ़ायज़ रहे. बुरे और ग़लत अक़ीदे भी कभी आपके मुबारक वुजूद तक न पहुंच सके.
और वह कोई बात अपनी ख़्वाहिश से नहीं करते{3} वह तो नहीं मगर वही जो उन्हें की जाती है(4)
{4}
(4) यह पहले वाक्य की दलील है कि हुज़ूर का बहकना और बेराह चलना संभव ही नहीं क्योंकि आप अपनी इच्छा से कोई बात फ़रमाते ही नहीं, जो फ़रमाते हैं वह अल्लाह की तरफ़ से वही होती है और इसमें हुज़ूर के ऊंचे दर्जे और आपकी पाकीज़गी का बयान है. नफ़्स का सबसे ऊंचा दर्जा यह है कि वह अपनी ख़्वाहिश छोड़ दे. (तफ़सीरे कबीर) और इसमें यह भी इशारा है कि नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अल्लाह की ज़ात और सिफ़ात और अफ़आल में फ़ना के उस ऊंचे दर्जे पर पहुंचे कि अपना कुछ बाक़ी न रहा. अल्लाह की तजल्ली का ऐसा आम फ़ैज़ हुआ कि जो कुछ फ़रमाते हैं वह अल्लाह की तरफ़ से होता है. (रूहुल बयान)
उन्हें (5)
(5) यानी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को.
सिखाया(6)
(6) जो कुछ अल्लाह तआला ने उनकी तरफ़ वही फ़रमाया और इस तालीम से मुराद क़ल्बे मुबारक तक पहुंचा देना है.
सख़्त क़ुव्वतों वाले {5} ताक़तवर ने(7)
(7) कुछ मुफ़स्सिरीन इस तरफ़ गए हैं कि सख़्त क़ुव्वतों वाले ताक़तवर से मुराद हज़रत जिब्रईल हैं और सिखाने से मुराद अल्लाह की वही का पहुंचना है. हज़रत हसन बसरी रदियल्लाहो अन्हो का क़ौल है कि शदीदुल क़ुवा ज़ू मिर्रतिन से मुराद अल्लाह तआला है उसने अपनी ज़ात को इस गुण के साथ बयान फ़रमाया. मानी ये है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को अल्लाह तआला ने बेवास्ता तालीम फ़रमाई. (तफ़सीर रूहुल बयान)
फिर उस जलवे ने क़स्द फ़रमाया(8){6}
(8) आम मुफ़स्सिरों ने फ़स्तवा का कर्ता भी हज़रत जिब्रईल को क़रार दिया है और ये मानी लिये है कि हज़रत जिब्रईल अमीन अपनी असली सूरत पर क़ायम हुए और इसका कारण यह है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने उन्हे उनकी असली सूरत में देखने की ख़्वाहिश ज़ाहिर फ़रमाई थी तो हज़रत जिब्रईल पूर्व की ओर से हुज़ूर के सामने नमूदार हुए और उनके वुजूद से पूर्व से पश्चिम तक भर गया. यह भी कहा गया है कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के सिवा किसी इन्सान ने हज़रत जिब्रईल अलैहिस्सलाम को उनकी असली सूरत में नहीं देखा. इमाम फ़ख़रूद्दीन राज़ी रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते हैं कि हज़रत जिब्रईल को देखना तो सही है और हदीस से साबित है लेकिन यह हदीस में नहीं है कि इस आयत में हज़रत जिब्रईल को देखना मुराद है बल्कि ज़ाहिरे तफ़सीर में यह है कि मुराद फ़स्तवा से सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का मकाने आली और ऊंची मंज़िल में इस्तवा फ़रमाना है. (कबीर) तफ़सीरे रूहुल बयान में है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने आसमानों के ऊपर क़याम फ़रमाया और हज़रत जिब्रईल सिद्रतुल मुन्तहा पर रूक गए. हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम आगे बढ गए और अर्श के फैलाव से भी गुज़र गए और इमाम अहमद रज़ा का अनुवाद इस तरफ़ इशारा करता है कि इस्तवा की अस्नाद अल्लाह तआला की तरफ़ है और यही क़ौल हसन रदियल्लाहो अन्हो का है.
और वह आसमाने बरीं के सबसे बलन्द किनारे पर था(9){7}
(9) यहाँ भी आम मुफ़स्सिरीन इस तरफ़ गए हैं कि यह हाल जिब्रईले अमीन का है. लेकिन इमाम रोज़ी फ़रमाते हैं कि ज़ाहिर यह है कि यह हाल सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का है कि आप आसमानों के ऊपर थे जिस तरह कहने वाला कहता है कि मैंने छत पर चाँद देखा. इसके मानी ये नहीं होते कि चाँद छत पर या पहाड़ पर था, बल्कि यही मानी होते हैं कि देखने वाला छत पर या पहाड़ पर था. इसी तरह यहाँ मानी हैं कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम आसमानों के ऊपर पहुंचे तो अल्लाह की तजल्ली आपकी तरफ़ मुतवज्जह हुई.
फिर वह जलवा नज़्दीक हुआ(10)
(10) इसके मानी ये भी मुफ़स्सिरों के कई क़ौल हैं. एक क़ौल यह है कि हज़रत जिब्रईल का सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से क़रीब होना मुराद है कि वह अपनी असली सूरत दिखा देने के बाद सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के कुर्ब में हाजिर हुए. दूसरे मानी ये हैं कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अल्लाह तआला के क़ुर्ब से मुशर्रफ़ हुए. तीसरे यह कि अल्लाह तआला ने अपने हबीब सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को अपने क़ुर्ब की नेअमत से नवाज़ा और यही ज़्यादा सही है.
फिर ख़ूब उतर आया(11){8}
(11) इसमें चन्द क़ौल हैं कि एकतो यह कि नज़्दीक़ होने से हुज़ूर का ऊरूज और वुसूल मुराद है और उतर आने से नुज़ूल व रूजू, तो हासिले मानी ये हैं कि हक़ तआला के क़ुर्ब में बारयाब हुए फिर मिलन की नेअमतो से फ़ैज़याब होकर ख़ल्क़ की तरफ़ मुतवज्जह हुए. दूसरा क़ौल यह है कि हज़रत रब्बुल इज़्ज़त अपने लुत्फ़ व रहमत के साथ अपने हबीब से क़रीब हुआ और इस क़ुर्ब में ज़ियादती फ़रमाई. तीसरा क़ौल यह है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने अल्लाह की बारगाह में क़ुर्ब पाकर ताअत का सज्दा अदा किया (रूहुल बयान) बुख़ारी और मुस्लिम की हदीस में है कि क़रीब हुआ जब्बार रब्बुल इज़्ज़त. (ख़ाज़िन)
तो उस जलवे और उस मेहबूब में दो हाथ का फ़ासला रहा बल्कि उस से भी कम (12){9}
(12) यह इशारा है ताकीदे क़ु्र्ब की तरफ़ कि क़ुर्ब अपने कमाल को पहुंचा और जो नज़्दीकी अदब के दायरे में रहकर सोची जा सकती है वह अपनी चरम सीमा को पहुंची.
अब वही फ़रमाई अपने बन्दे को जो वही फ़रमाई(13){10}
(13) अक्सर मुफ़स्सिरों के नज़्दीक इसके मानी ये हैं कि अल्लाह तआला ने अपने ख़ास बन्दे हज़रत मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को वही फ़रमाई. (जुमल) हज़रत जअफ़रे सादिक़ रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला ने अपने बन्दे को वही फ़रमाई, जो वही फ़रमाई वह बेवास्ता थी कि अल्लाह तआला और उसके हबीब के बीच कोई वास्ता न था और ये ख़ुदा और रसूल के बीच के रहस्य हैं जिन पर उनके सिवा किसी को सूचना नहीं. बक़ली ने कहा कि अल्लाह तआला ने इस रहस्य को तमाम सृष्टि से छुपा रखा और न बयान फ़रमाया कि अपने हबीब को क्या वही फ़रमाई और मुहिब व मेहबूब के बीच ऐसे राज़ होते हैं जिनको उनके सिवा कोई नहीं जानता. (रूहुल बयान) उलमा ने यह भी बयान किया है कि उस रात में जो आपको वही फ़रमाई गई वह कई क़िस्म के उलूम थे. एक तो शरीअत और अहकाम का इल्म जिसकी सब को तबलीग़ की जाती है, दूसरे अल्लाह तआला की मअरिफ़तें जो ख़ास लोगों को बताई जाती हैं, तीसरे हक़ीक़तें और अन्दर की बातें जो ख़ासूल ख़ास लोगों को बताई जाती है, और एक क़िस्म वो राज़ जो अल्लाह और उसके रसूल के साथ ख़ास हैं कोई उनका बोझ नहीं उठा सकता, (रूहुल बयान)
दिल ने झूट न कहा जो देखा(14){11}
(14) आँख ने यानी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के क़ल्बे मुबारक ने उसकी तस्दीक़ की जो चश्मे मुबारक ने देखा. मानी ये हैं कि आँख से देखा. दिल से पहचाना और इस देखने और पहचानने में शक और वहम ने राह न पाई. अब यह बात कि क्या देखा? कुछ मुफ़स्सिरों का कहना है कि सैयदे आलम सल्लल्ल्लाहो अलैहे वसल्लम ने अपने रब को देखा और यह देखना किस तरह था? सर की आँखों से या दिल की आँखों से? इस मे मुफ़स्सिरों के दोनो क़ौल पाए जाते हैं. हज़रत इब्ने अब्बास का क़ौल है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने रब तआला को अपने क़ल्बे मुबारक से दोबार देखा (मुस्लिम) एक ज़माअत इस तरफ़ गई कि आपने रब तआला को हक़ीक़त में सर की आँखों से देखा. यह क़ौल हज़रत अनस बिन मालिक और हसन व अकरमह का है और हज़रत इब्ने अब्बास से रिवायत है कि अल्लाह तआला ने हज़रत इब्राहीम को ख़ुल्लत और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को कलाम और सैयदे आलम मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को अपने दीदार से इम्तियाज़ बख़्शा. कअब ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से दोबारा कलाम फ़रमाया और हज़रत मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने अल्लाह तआला को दोबार देखा (तिर्मिज़ी) लेकिन हज़रत आयशा रदियल्लाहो अन्हा ने दीदार का इन्कार किया और आयत को जिब्रईल के दीदार पर महमूल किया और फ़रमाया कि जो कोई कहे कि मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने अपने रब को देखा, उसने झूट कहा और प्रमाण में आयत “ला तुदरिकुहुल अब्सार” (आंखें उसे अहाता नहीं करतीं – सूरए अनआम, आयत 103) तिलावत फ़रमाई. यहाँ चन्द बातें क़ाबिले लिहाज़ हैं एक यह कि हज़रत आयशा रदियल्लाहो अन्हा का क़ौल नफ़ी में है और हज़रत इब्ने अब्बास का हाँ में और हाँ वाला क़ौल ही ऊपर होता है क्योंकि ना कहने वाला किसी चीज़ की नफ़ी इसलिये करता है कि उसने सुना नहीं और हाँ करने वाला हाँ इसलिये करता है कि उसने सुना और जाना. तो इल्म हाँ कहने वाले के पास है. इसके अलावा हज़रत आयशा रदियल्लाहो अन्हा ने यह कलाम हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से नक़्ल नहीं किया बल्कि आयत से अपने इस्तम्बात (अनुमान) पर ऐतिमाद फ़रमाया. यह हज़रते सिद्दीका रदियल्लाहो अन्हा की राय और आयत में इदराक यानी इहाता की नफ़ी है, न रूयत की. सही मसअला यह है कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अल्लाह के दीदार से मुशर्रफ़ फ़रमाए गए. मुस्लिम शरीफ़ की हदीसे मरफ़ूअ से भी यही साबित है. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा जो बहरूल उम्मत हैं, वह भी इसी पर हैं. मुस्लिम की हदीस है “रऐतो रब्बी बिऐनी व बिक़ल्बी” मैं ने अपने रब को अपनी आँख और अपने दिल से देखा. हज़रत हसन बसरी रदियल्लाहो अन्हो क़सम खाते थे कि मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने मेराज की रात अपने रब को देखा. हज़रत इमाम अहमद रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया कि मैं हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा की हदीस का क़ायल हूँ. हुज़ूर ने अपने रब को देखा, उसको देखा, उसको देखा. इमाम साहब यह फ़रमाते ही रहे यहाँ तक कि साँस ख़त्म हो गई.
तो क्या तुम उनसे उनके देखे हुए पर झगड़ते हो(15) {12}
(15) यह मुश्रिकों को ख़िताब है जो मेराज की रात के वाक़िआत का इन्कार करते और उसमें झगड़ा करते.
और उन्हों ने वह जलवा दो बार देखा(16){13}
(16) क्योंकि कम कराने की दरख़ास्तों के लिये चन्द बार आना जाना हुआ. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा से रिवायत है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने रब तआला को अपने क़ल्बे मुबारक से दोबार देखा और उन्हीं से यह भी रिवायत है कि हुज़ूर ने रब तआला को आँख से देखा.
सिदरतुल मुन्तहा के पास(17){14}
(17) सिद्रतुल मुन्तहा एक दरख़्त है जिसकी अस्ल जड़ छटे आसमान में है और इसकी शाखें सातवें आसमान में फैली हुई हैं और बलन्दी में वह सातवें आसमान से भी गुज़र गया. फ़रिश्ते और शहीदों और नेक लोगों की रूहें उससे आगे नहीं बढ़ सकती.
उसके पास जन्नतुल मावा है {15} जब सिदरह पर छा रहा था जो छा रहा था (18){16}
(18) यानी फ़रिश्ते और अनवार.
आँख न किसी तरफ़ फिरी न हद से बढ़ी (19){17}
(19) इसमें सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की भरपूर क़ुव्वत का इज़हार है कि उस मक़ाम में जहाँ अक़लें हैरत नें डूबी हुई हैं, आप साबित क़दम रहे और जिस नूर का दीदार मक़सूद था उससे बेहराअन्दोज़ हुए. दाएं बाएं किसी तरफ़ मुलतफ़ित न हुए. न मक़सूद की दीद से आँख फेरी, न हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की तरह बेहोश हुए, बल्कि इस मक़ामे अज़ीम में साबित रहे.
बेशक अपने रब की बहुत बड़ी निशानियां देखीं(20){18}
(20) यानी हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने शबे मेअराज़ मुल्क और मलकूत के चमत्कारों को देखा और आप का इल्म तमाम मअलूमाते ग़ैबियह मलकूतियह से भर गया जैसा कि हदीस शरीफ़ इख़्तिसामे मलायकह में वारिद हुआ है और दूसरी हदीसों में आया है. (रूहुल बयान)
तो क्या तुमने देखा लात और उज़्ज़ा {19} और उस तीसरी मनात को(21){20}
(21) लात व उज़्ज़ा और मनात बुतों के नाम हैं जिन्हें मुश्रिक पूजते थे. इस आयत में इरशाद फ़रमाया कि क्या तुमने उन बुतों को देखा, यानी तहक़ीक व इन्साफ़ की नज़र से, अगर इस तरह देखा हो तो तुम्हें मालूम हो गया कि यह महज़ बेक़ुदरत बुतों को पूजना और उसका शरीक ठहराना किस क़दर अज़ीम ज़ुल्म और अक़्ल के ख़िलाफ़ बात है. मक्के के मुश्रिक कहा करते थे कि ये बुत और फ़रिश्ते ख़ुदा की बेटियाँ हैं. इस पर अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है.
क्या तुम को बेटा और उसको बेटी(22){21}
(22) जो तुम्हारे नज़्दीक ऐसी बुरी चीज़ है कि जब तुम में से किसी को बेटी पैदा होने की ख़बर दी जाती है तो उसका चेहरा बिगड़ जाता है और रंग काला हो जाता है और लोगों से छुपता फिरता है यहाँ तक कि तुम बेटियों को ज़िन्दा दर गोर कर डालते हो, फिर भी अल्लाह तआला की बेटियाँ बताते हो.
जब तो यह सख़्त भौंडी तक़सीम है(23){22}
(23) कि जो अपने लिये बुरी समझते हो, वह ख़ुदा के लिये तजवीज़ करते हो.
वो तो नहीं मगर कुछ नाम कि तुम ने और तुम्हारे बाप दादा ने रख लिये हैं(24)
(24) यानी उन बुतों का नाम इलाह और मअबूद तुमने और तुम्हारे बाप दादा ने बिल्कुल बेजा और ग़लत तौर पर रख लिया है, वो न हक़ीक़त में इलाह हैं न मअबूद.
अल्लाह ने उनकी कोई सनद नहीं उतारी, वो तो निरे गुमान और नफ़्स की ख़्वाहिशों के पीछे हैं(25)
(25) यानी उनका बूतों को पूजना अक़्ल व इल्म व तालीमे इलाही के ख़िलाफ़, केवल अपने नफ़्स के इत्बिअ, हटधर्मी और वहम परस्ती की बिना पर है.
हालांकि बेशक उनके पास उनके रब की तरफ़ से हिदायत आई (26){23}
(26) यानी किताबे इलाही और ख़ुदा के रसूल जिन्हों ने सफ़ाई के साथ बार बार यह बताया कि बुत मअबूद नहीं हैं और अल्लाह तआला के सिवा कोई भी इबादत के लायक़ नहीं.
क्या आदमी को मिल जाएगा जो कुछ वह ख़्याल बांधे(27){24}
(27) यानी काफ़िर जो बुतों के साथ झुटी उम्मीदें रखतें हैं कि वो उनके काम आएंगे. ये उम्मीदें बातिल है.
तो आख़िरत और दुनिया सब का मालिक अल्लाह ही है(28){25}
(28) जिसे जो चाहे दे. उसी की इबादत करना और उसी को राज़ी रखना काम आएगा.
Filed under: zr-53-Surah Al-Najm | Tagged: kanzul iman in hindi, nazmi, quran tafseer in hindi | Leave a comment »
53 Surah Al-Najm
53 सूरए नज्म -दूसरा रूकू
۞ وَكَم مِّن مَّلَكٍ فِي السَّمَاوَاتِ لَا تُغْنِي شَفَاعَتُهُمْ شَيْئًا إِلَّا مِن بَعْدِ أَن يَأْذَنَ اللَّهُ لِمَن يَشَاءُ وَيَرْضَىٰ
إِنَّ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ لَيُسَمُّونَ الْمَلَائِكَةَ تَسْمِيَةَ الْأُنثَىٰ
وَمَا لَهُم بِهِ مِنْ عِلْمٍ ۖ إِن يَتَّبِعُونَ إِلَّا الظَّنَّ ۖ وَإِنَّ الظَّنَّ لَا يُغْنِي مِنَ الْحَقِّ شَيْئًا
فَأَعْرِضْ عَن مَّن تَوَلَّىٰ عَن ذِكْرِنَا وَلَمْ يُرِدْ إِلَّا الْحَيَاةَ الدُّنْيَا
ذَٰلِكَ مَبْلَغُهُم مِّنَ الْعِلْمِ ۚ إِنَّ رَبَّكَ هُوَ أَعْلَمُ بِمَن ضَلَّ عَن سَبِيلِهِ وَهُوَ أَعْلَمُ بِمَنِ اهْتَدَىٰ
وَلِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ لِيَجْزِيَ الَّذِينَ أَسَاءُوا بِمَا عَمِلُوا وَيَجْزِيَ الَّذِينَ أَحْسَنُوا بِالْحُسْنَى
الَّذِينَ يَجْتَنِبُونَ كَبَائِرَ الْإِثْمِ وَالْفَوَاحِشَ إِلَّا اللَّمَمَ ۚ إِنَّ رَبَّكَ وَاسِعُ الْمَغْفِرَةِ ۚ هُوَ أَعْلَمُ بِكُمْ إِذْ أَنشَأَكُم مِّنَ الْأَرْضِ وَإِذْ أَنتُمْ أَجِنَّةٌ فِي بُطُونِ أُمَّهَاتِكُمْ ۖ فَلَا تُزَكُّوا أَنفُسَكُمْ ۖ هُوَ أَعْلَمُ بِمَنِ اتَّقَىٰ
और कितने ही फ़रिश्तें हैं आसमानों में कि उनकी सिफ़ारिश कुछ काम नहीं आती मगर जब कि अल्लाह इज़ाज़त दे दे जिसके लिये चाहे और पसन्द फ़रमाए(1){26}
(1) यानी फ़रिश्ते, जबकि वो अल्लाह की बारगाह में इज़्ज़त रखते हैं इसके बाद सिर्फ़ उसके लिए शफ़ाअत करेंगे जिसके लिये अल्लाह तआला की मर्ज़ी हो यानी तौहीद वाले मूमिन के लिये. तो बुतों से शफ़ाअत की उम्मीद रखना अत्यन्त ग़लत है कि न उन्हें हक़ तआला की बारगाह में क़ुर्ब हासिल, न काफ़िर शफ़ाअत के योग्य.
बेशक वो जो आख़िरत पर ईमान नहीं रखते(2)
(2) यानी काफ़िर जो दोबारा ज़िन्दा किये जाने का इन्कार करते हैं.
मलायक़ा (फ़रिश्तों) का नाम औरतों का सा रखते हैं(3){27}
(3) कि उन्हें ख़ुदा की बेटियाँ बताते हैं.
और उन्हें इसकी कुछ ख़बर नहीं, वो तो निरे गुमान के पीछे हैं, और बेशक गुमान यक़ीन की जगह कुछ काम नहीं देता (4){28}
(4) सही बात और वास्तविकता इल्म और यक़ीन से मालूम होती है न कि वहम और गुमान से.
तो तुम उससे मुंह फेर लो जो हमारी याद से फिरा (5)
(5) यानी क़ुरआन पर ईमान से.
और उसने न चाही मगर दुनिया की ज़िन्दगी(6){29}
(6) आख़िरत पर ईमान न लाया कि उसका तालिब होता.
यहाँ तक उनके इल्म की पहुंच है(7)
(7) यानी वो इस क़द्र कम इल्म और कमअक़्ल है कि उन्होंने आख़िरत पर दुनिया को प्राथमिकता दी है या ये मानी हैं कि उनके इल्म की इन्तिहा वहम और गुमान हैं जो उन्हों ने बाँध रखे हैं कि (मआज़ल्लाह) फ़रिश्ते ख़ुदा की बेटियाँ हैं उनकी शफ़ाअत करेंगे और इस बातिल वहम पर भरोसा करके उन्हों ने ईमान और क़ुरआन की पर्वाह न की.
बेशक तुम्हारा रब ख़ूब जानता है जो उसकी राह से बहका और वह ख़ूब जानता है जिसने राह पाई {30} और अल्लाह ही का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में ताकि बुराई करने वालों को उनके किये का बदला दे और नेकी करने वालों को निहायत (अत्यन्त) अच्छा (सिला) इनआम अता फ़रमाए {31} वो जो बड़े गुनाहों और बेहयाइयों से बचते हैं (8)
(8) गुनाह वह अमल है जिसका करने वाला अज़ाब का मुस्तहिक़ हो और कुछ जानकारों ने फ़रमाया किगुनाह वह है जिसका करने वाला सवाब से मेहरूम हो. कुछ का कहना है नाजायज़ काम करने को गुनाह कहते हैं. बहरहाल गुनाह की दो क़िस्में हैं सग़ीरा और कबीरा. कबीरा वो जिसका अज़ाब सख़्त हो और कुछ उलमा ने फ़रमाया कि सग़ीरा वो जिसपर सज़ा न हो. कबीरा वो जिसपर सज़ा हो, और फ़वाहिश वो जिसपर हद हो.
मगर इतना कि गुनाह के पास गए और रूक गए (9)
(9) कि इतना तो कबीरा गुनाहों से बचने की बरकत से माफ़ हो जाता है.
बेशक तुम्हारे रब की मग़फ़िरत वसीअ है, वह तुम्हें ख़ूब जानता है (10)
(10) यह आयत उन लोगों के हक़ में नाज़िल हुई जो नेकियाँ करते थे और अपने कामों की तारीफ़ करते थे और कहते थे कि हमारी नमाज़ें, हमारे रोज़े, हमारे हज—
तुम्हें मिट्टी से पैदा किया और जब तुम अपनी माँओ के पेट में हमल (गर्भ) थे, तो आप अपनी जानों को सुथरा न बताओ (11)
(11) यानी घमण्ड से अपनी नेकियों की तारीफ़ न करो क्योंकि अल्लाह तआला अपने बन्दों के हालात का ख़ुद जानने वाला है, वह उनकी हस्ती की शुरूआत से आख़िर तक सारे हालात जानता है. इस आयत में बनावटीपन, दिखावे और अपने मुंह मियाँ मिटठू बनने को मना किया गया है. लेकिन अगर अल्लाह की नेअमत के ऐतिराफ़ और फ़रमाँबरदारी व इबादत और अल्लाह के शुक्र के लिये नेकियों का ज़िक्र किया जाए तो जायज़ है.
वह ख़ूब जानता है जो परहेज़गार हैं (12) {32}
(12) और उसी का जानना काफ़ी, वही जज़ा देने वाला है. दूसरों पर इज़हार और दिखावे का क्या फ़ायदा.
Filed under: zr-53-Surah Al-Najm | Tagged: kalamur-rahman, nazmi, quraninhindi | Leave a comment »
53 Surah Al-Najm
53 सूरए नज्म -तीसरा रूकू
53|33|أَفَرَأَيْتَ الَّذِي تَوَلَّىٰ
53|34|وَأَعْطَىٰ قَلِيلًا وَأَكْدَىٰ
53|35|أَعِندَهُ عِلْمُ الْغَيْبِ فَهُوَ يَرَىٰ
53|36|أَمْ لَمْ يُنَبَّأْ بِمَا فِي صُحُفِ مُوسَىٰ
53|37|وَإِبْرَاهِيمَ الَّذِي وَفَّىٰ
53|38|أَلَّا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِزْرَ أُخْرَىٰ
53|39|وَأَن لَّيْسَ لِلْإِنسَانِ إِلَّا مَا سَعَىٰ
53|40|وَأَنَّ سَعْيَهُ سَوْفَ يُرَىٰ
53|41|ثُمَّ يُجْزَاهُ الْجَزَاءَ الْأَوْفَىٰ
53|42|وَأَنَّ إِلَىٰ رَبِّكَ الْمُنتَهَىٰ
53|43|وَأَنَّهُ هُوَ أَضْحَكَ وَأَبْكَىٰ
53|44|وَأَنَّهُ هُوَ أَمَاتَ وَأَحْيَا
53|45|وَأَنَّهُ خَلَقَ الزَّوْجَيْنِ الذَّكَرَ وَالْأُنثَىٰ
53|46|مِن نُّطْفَةٍ إِذَا تُمْنَىٰ
53|47|وَأَنَّ عَلَيْهِ النَّشْأَةَ الْأُخْرَىٰ
53|48|وَأَنَّهُ هُوَ أَغْنَىٰ وَأَقْنَىٰ
53|49|وَأَنَّهُ هُوَ رَبُّ الشِّعْرَىٰ
53|50|وَأَنَّهُ أَهْلَكَ عَادًا الْأُولَىٰ
53|51|وَثَمُودَ فَمَا أَبْقَىٰ
53|52|وَقَوْمَ نُوحٍ مِّن قَبْلُ ۖ إِنَّهُمْ كَانُوا هُمْ أَظْلَمَ وَأَطْغَىٰ
53|53|وَالْمُؤْتَفِكَةَ أَهْوَىٰ
53|54|فَغَشَّاهَا مَا غَشَّىٰ
53|55|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكَ تَتَمَارَىٰ
53|56|هَٰذَا نَذِيرٌ مِّنَ النُّذُرِ الْأُولَىٰ
53|57|أَزِفَتِ الْآزِفَةُ
53|58|لَيْسَ لَهَا مِن دُونِ اللَّهِ كَاشِفَةٌ
53|59|أَفَمِنْ هَٰذَا الْحَدِيثِ تَعْجَبُونَ
53|60|وَتَضْحَكُونَ وَلَا تَبْكُونَ
53|61|وَأَنتُمْ سَامِدُونَ
53|62|فَاسْجُدُوا لِلَّهِ وَاعْبُدُوا
तो क्या तुमने देखा जो फिर गया(1){33}
(1) इस्लाम से. यह आयत वलीद बिन मुग़ीरा के हक़ में उतरी जिसने नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का दीन में इत्तिबाअ किया था. मुश्रिकों ने उसे शर्म दिलाई और कहा कि तूने बुज़ुर्गों का दीन छोड़ दिया और तू गुमराह हो गया. उसने कहा मैं ने अज़ाबे इलाही के डर से ऐसा किया तो शर्म दिलाने वाले काफ़िर ने उससे कहा कि अगर तू शिर्क की तरफ़ लौट आए और इस क़द्र माल मुझको दे तो तेरा अज़ाब मैं ज़िम्मे लेता हूँ. इसपर वलीद इस्लाम से फिर गया और मुरतद हो गया और फिर से शिर्क में जकड़ गया. और जिस आदमी से माल देना ठहरा था उसने थोड़ा सा दिया और बाक़ी से मुकर गया.
और कुछ थोड़ा सा दिया और रोक रखा (2){34}
(2) बाक़ी. यह भी कहा गया है कि यह आयत आस बिन वाइल सहमी के लिये उतरी. वह अक्सर कामों में नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ताईद और हिमायत किया करता था और यह भी कहा गया है कि यह आयत अबू जहल के बारे में उतरी कि उसने कहा था अल्लाह की क़सम, मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) हमें बेहतरीन अख़लाक का हुक्म फ़रमाते हैं. इस सूरत में मानी ये हैं कि थोड़ा सा इक़रार किया और ज़रूरी सच्चाई से कम अदा किया और बाक़ी से मुंह फेरा यानी ईमान न लाया.
क्या उसके पास ग़ैब (अज्ञात) का इल्म है तो वह देख रहा है (3) {35}
(3) कि दूसरा शख़्स उसके गुनाहों का बोझ उठा लेगा और उसके अज़ाब को अपने ज़िम्मे लेगा.
क्या उसे उसकी ख़बर न आई जो सहीफ़ों (धर्मग्रन्थों) में है मूसा के(4) {36}
(4) यानी तौरात में.
और इब्राहीम के जो पूरे अहकाम (आदेश) बजा लाया (5){37}
(5) यह हज़रत इब्राहीम की विशेषता है कि उन्हें जो कुछ हुक्म दिया गया था वह उन्हों ने पूरी तरह अदा किया. इसमें बेटे का ज़िब्ह भी है और अपना आग में डाला जाना भी. और इसके अलावा और अहकाम भी, इसके बाद अल्लाह तआला उस मज़मून का ज़िक्र फ़रमाता है जो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की किताब और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के सहीफ़ों में बयान फ़रमाया गया था.
कि कोई बोझ उठाने वाली जान दूसरी का बोझ नहीं उठाती (6) {38}
(6) और कोई दूसरे के गुनाह पर नहीं पकड़ा जाएगा. इसमें उस व्यक्ति के क़ौल का रद है जो वलीद बिन मुग़ीरा के अज़ाब का ज़िम्मेदार बना था और उसके गुनाह अपने ऊपर लेने को कहता था. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि हज़रत इब्राहीम के ज़माने से पहले लोग आदमी को दूसरे के गुनाह पर भी पकड़ लेते थे. अगर किसी ने किसी को क़त्ल किया होता तो उकसे क़ातिल की बजाय उसके बेटे या भाई या बीबी या ग़ुलाम को क़त्ल कर देते थे. हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का ज़माना आया तो आपने इससे मना फ़रमाया और अल्लाह तआला का यह आदेश पहुंचाया कि कोई किसी के गुनाह के लिये नहीं पकड़ा जाएगा.
और यह कि आदमी न पाएगा मगर अपनी कोशिश (7){39}
(7) यानी अमल. मुराद यह है कि आदमी अपनी ही नेकियों से फ़ायदा उठाता है. यह मज़मून भी हज़रत इब्राहीम और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के सहीफ़ों का है और गया है कि उनकी ही उम्मतों के लिये ख़ास था. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया यह हुक्म हमारी शरीअत में आयत “अलहक़ना बिहिम ज़ुर्रियतहुम वमा अलतनाहुम मिन अमलिहिम मिन शैइन” यानी हमने उनकी औलाद उनसे मिला दी और उनके अमल में उन्हें कुछ कमी न दी. (सूरए तूर, आयत 21) से मन्सूख़ हो गया. हदीस शरीफ़ में है कि एक व्यक्ति ने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से अर्ज़ किया कि मेरी माँ की वफ़ात हो गई अगर मैं उसकी तरफ़ से सदक़ा दूँ, क्या नफ़ा देगा? फ़रमाया हाँ, और बहुत सी हदीसों से साबित है कि मैयत को सदक़ात व ताआत से जो सवाब पहुंचाया जाता है, पहुंचता है और इस पर उम्मत के उलमा की सहमति है और इसीलिये मुसलमानों में रिवाज है कि वो अपने मरने वालों को सोयम, चहल्लुम, बरसी, उर्स वग़ैरह की फ़ातिहा में ताआत व सदक़ात से सवाब पहुंचाते रहते हैं. यह अमल हदीसों के मुताबिक़ है. इस आयत की तफ़सीर में एक क़ौल यह भी है कि यहाँ इन्सान से काफ़िर मुराद हैं और मानी ये हैं कि काफ़िर को कोई भलाई न मिलेगी. सिवाय उसके जो उसने की हो. दुनिया ही में रिज़्क़ की वुसअत या तन्दुरूस्ती वग़ैरह से उसका बदला दे दिया जाएगा ताकि आख़िरत में उसका कुछ हिस्सा बाक़ी न रहे. और एक मानी इस आयत के मुफ़स्सिरों ने ये भी बयान किये हैं कि आदमी इन्साफ़ के तहत वही पाएगा जो उसने किया हो और अल्लाह तआला अपने फ़ज़्ल से जो चाहे अता फ़रमाए. और एक क़ौल मुफ़स्सिरों का यह भी है कि मूमिन के लिये दूसरा मूमिन जो नेकी करता है वह नेकी ख़ूद उसी मूमिन की गिनी जाती है जिसके लिये की गई हो क्योंकि उसका करने वाला नायब और वकील की तरह उसका क़ायम मुकाम होता है.
और यह कि उसकी कोशिश बहुत जल्द देखी जाएगी (8){40}
(8) आख़िरत में.
फिर उसका भरपूर बदला दिया जायेगा {41} और यह कि बेशक तुम्हारे रब ही की तरफ़ इन्तिहा (अन्त) है(9){42}
(9) आख़िरत में उसी की तरफ़ रूजू हैं वही आमाल की जज़ा देगा.
और यह कि वही है कि जिसने हंसाया और रूलाया (10){43}
(10) जिसे चाहा ख़ुश किया जिसे चाहा ग़मगीन किया.
और यह कि वही है जिसने मारा और जिलाया (11){44}
(11) यानी दुनिया में मौत दी और आख़िरत में ज़िन्दगी अता की. या ये मानी कि बाप दादा को मौत दी और उनकी औलाद को ज़िन्दगी बख़्शी. या यह मुराद है कि काफ़िरों को कुफ़्र की मौत से हलाक किया और ईमानदारों को ईमानी ज़िन्दगी बख़्शी.
और यह कि उसी ने दो जोड़े बनाए नर और मादा {45} नुत्फ़े से जब डाला जाए(12){46}
(12) रहम में.
और यह कि उसी के ज़िम्मे है पिछला उठाना (दोबारा ज़िन्दा करना)(13){47}
(13) यानी मौत के बाद ज़िन्दा फ़रमाना.
और यह कि उसी ने ग़िना दी और क़नाअत दी {48} और यह कि वही शिअरा सितारे का रब है (14){49}
(14) जो कि गर्मी की सख़्ती में जौज़ा के बाद उदय होता है. एहले जाहिलियत उसकी पूजा करते थे. इस आयत में बताया गया है कि सब का रब अल्लाह है. उस सितारे का रब भी अल्लाह ही है लिहाज़ा उसी की इबादत करो.
और यह कि उसी ने पहली आद को हलाक फ़रमाया(15) {50}
(15) तेज़ झक्कड़ वाली हवा से. आद दो हैं एक तो क़ौमे हूद, उसको पहली आद कहते हैं और उनके बाद वालों को दूसरी आद कि वो उन्हीं के वंशज थे.
और समूद को(16)
(16) जो सालेह अलैहिस्सलाम की क़ौम थी.
तो कोई बाक़ी न छोड़ा {51} और उनसे पहले नूह की क़ौम को(17)
(17) डुबा कर हलाक किया.
बेशक वह उनसे भी ज़ालिम और सरकश (नाफ़रमान) थे (18){52}
(18) कि हज़रत नूह अलैहिस्सलाम उनमें हज़ार बरस के क़रीब तशरीफ़ फ़रमा रहे मगर उन्हों ने दावत क़ुबूल न की और उनकी सरकशी कम न हुई.
और उसने उलटने वाली बस्ती को नीचे गिराया (19){53}
(19) मुराद इस से क़ौमे लूत की बस्तियाँ हैं जिन्हें हज़रत जिब्रईल अलैहिस्सलाम ने अल्लाह के हुक्म से उठाकर औंधा डाल दिया और उथल पुथल कर दिया.
तो उसपर छाया जो कुछ छाया (20){54}
(20) यानी निशान किये हुए पत्थर बरसाए.
तो ऐ सुनने वाले अपने रब की कौन सी नेअमतों में शक करेगा {55} यह (21)
(21) यानी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम.
एक डर सुनाने वाले हैं अगले डराने वालों की तरह (22){56}
(22) जो अपनी क़ौमों की तरफ़ रसूल बनाकर भेजे गए थे.
पास आई पास आने वाली(23){57}
(23) यानी क़यामत.
अल्लाह के सिवा उसका कोई खोलने वाला नहीं (24){58}
(24) यानी वही उसको ज़ाहिर फ़रमाएगा, या ये मानी हैं कि उसकी दहशत और सख़्ती को अल्लाह तआला के सिवा कोई दफ़अ नहीं कर सकता और अल्लाह तआला दफ़आ न फ़रमाएगा.
तो क्या इस बात से तुम आश्चर्य करते हो(25){59}
(25) यानी क़ुरआन शरीफ़ का इन्कार करते हो.
और हंसते हो और रोते नहीं(26){60}
(26) उसके वादे और चेतावनी सुनकर.
और तुम खेल में पड़े हो {61}तो अल्लाह के लिये सजदा और उसकी बन्दगी करो(27){62}
(27) कि उसके सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं.