Tafseer Surah al-kahf From Kanzul Imaan

18 सूरए कहफ़

18 सूरए कहफ़ – पहला रूकू

 

सूरए कहफ़ मक्का में उतरी, इसमें 110 आयतें, और 12 रूकू हैं 

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1)  इस सूरत का नाम कहफ़ है. यह मक्की है, इसमें एक सौ दस आयतें और एक हज़ार पाँच सौ सत्तहत्तर कलिमें और छ: हज़ार तीन सौ साठ अक्षर और बारह रूकू हैं.

सब ख़ूबियां अल्लाह को जिसने अपने बन्दे(2)
(2) मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम.

पर किताब उतारी(3)
(3) यानी क़ुरआन शरीफ़. जो उसकी बेहतरीन नेअमत और बन्दों के लिये निजात और भलाई का कारण हैं.

और उसमें कोई कजी न रखी(4){1}
(4) न लफ़ज़ी न मअनवी, न उसमें इख़्तिलाफ़. न विषमताएं.

अदल(इन्साफ़) वाली किताब कि(5)
(5) काफ़िरों को.

अल्लाह के सख़्त अज़ाब से डराए और ईमान वालों को जो नेक काम करें बशारत दें कि उनके लिये अच्छा सवाब है{2} जिसमें हमेशा रहेंगे{3} और उन(6)
(6) काफ़िर.

को डराए जो कहते हैं कि अल्लाह ने अपना कोई बच्चा बनाया {4} इस बारे में न वो कुछ इल्म रखते हैं न उनके बाप दादा(7)
(7) ख़ालिस जिहालत से यह आरोप लगाते हैं और ऐसी झूट बात बकते हैं. {78}

कितना बड़ा बोल है कि उनके मुंह से निकलता है निरा झूट कह रहे हैं{5} तो कहीं तुम अपनी जान पर खेल जाओगे उनके पीछे अगर वो इस बात पर (8)
(8) यानी क़ुरआन शरीफ़ पर.

ईमान न लाए ग़म से(9){6}
(9) इसमें नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तसल्ली फ़रमाई गई कि आप इन बेईमानों के ईमान से मेहरूम रहने पर इस क़द्र रंज और ग़म न कीजिये अपपननी प्यारी जान को इस दुख से हलाकत में न डालिये.

बेशक हमने ज़मीन का सिंगार किया जो कुछ उस पर हैं(10)
(10) वो चाहे जानदार हों या पेड़ पौदे या खनिज हों या नेहरें.

कि उन्हें आज़माएं उनमे किस के काम बेहतर हैं(11){7}
(11) और कौन परहेज़गारी इख़्तियार करता और वर्जित तथा अवैध बातों से बचता है.

और बेशक जो कुछ उसपर है एक दिन हम उसे पटपर मैदान छोड़ेंगे कर (12){8}
(12) और आबाद होने के बाद वीरान कर देंगे औ पेड़ पौथे वग़ैरह जो चीज़ें सजावट की थीं उनमें से कुछ भी बाक़ी न रहेगा तो दुनिया की अस्थिरता, ना – पायदार ज़ीनत पर मत रीझो.

क्या तुम्हें मालूम हुआ कि पहाड़ की खोह और जंगल के किनारे वाले(13)
(13) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि रक़ीम उस वादी का नाम है जिसमें असहाबे कहफ़ हैं. आयत में उन लोगों की निस्बत फ़रमाया कि वो….

हमारी एक अजीब निशानी थे{9} जब उन नौजवानों ने(14)
(14) अपनी काफ़िर क़ौम से अपना ईमान बचाने के लिये.

ग़ार में पनाह ली फिर बोले ऐ हमारे रब हमें अपने पास से रहमत दे(15)
(15) और हिदायत और नुसरत और रिज़्क़ और मग़फ़िरत और दुश्मनों से अम्न अता फ़रमा. असहाबे कहफ़ यानी ग़ार वाले लोग कौन है ? सही यह है कि सात हज़रात थे अगरचे उनके नामें में किसी क़द्र मतभेद है लेकिन हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा की रिवायत पर जो ख़ाज़िन में है उनके नाम ये हैं (1) मक्सलमीना (2) यमलीख़ा (3) मर्तूनस (4) बैनूनस (5) सारीनूनस (6) ज़ूनवानस (7) कुशेफ़ीत
(8) तुनूनस और उनके कुत्ते का नाम क़ितमीर है. ये नाम लिखकर दर्वाज़े पर लगा दिये जाएं तो मकान जलने से मेहफ़ूज़ रहता है. माल में रख दिये जाएं तो वह चोरी नहीं जाता, किश्ती या जहाज़ उनकी बरकत से डूबता नहीं, भागा हुआ व्यक्ति उनकी बरकत से वापस आ जाता है. कहीं आग लगी हो और ये नाम कपड़े में लिखकर डाल दिये जाएं तो वह बूझ जाती है, बच्चे के रोने, मीआदी बुख़ार, सरदर्द, सूखे की बीमारी, ख़ुश्की व तरी के सफ़र में जान माल की हिफ़ाज़त, अक़्ल की तीव्रता, क़ैदियों की आज़ादी के लिये नाम लिखकर तअवीज़ की तरह बाज़ू में बांधे जाएं. (जुमल) हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के बाद इंजील वालों की हालत ख़राब हो गई, वो बुत परस्ती में गिरफ़तार हो गए और दूसरों को बुत परस्ती पर मजबर करने लगे. उनमें दक़ियानूस बादशाह बड़ा जाबिर था.जो बुत परस्ती पर राज़ी न होता, उसको क़त्ल कर डालता. असहाबे कहफ़ अफ़सूस शहर के शरीफ़ और प्रतिष्ठित लोगों में से थे. दक़ियानूस के ज़ुल्म और अत्याचार  से अपना ईमान बचाने के लिय भागे और क़रीब के पहाड़ में एक गुफ़ा यानी ग़ार में शरण ली. वहाँ सो गए. तीन सौ बरस से ज़्यादा अर्से तक उसी हाल में रह. बादशाह को तलाश से मालूम हुआ कि वो ग़ार के अन्दर हैं तो उसने हुक्म दिया कि ग़ार को एक पथरीली दीवार खींच कर बन्द कर दिया जाय ताकि वो उसमें मर कर रह जाएं और वह उनकी क़ब्र हो जाए. यही उनकी सज़ा है. हुकूमत के जिस अधिकारी को यह काम सुपुर्द किया गया वह नेक आदमी था, उसने उन लोगों के नाम, संख्या, पूरा वाक़िआ रांग की तख़्ती पर खोद कर तांबे के सन्दूक़ में दीवार की बुनियाद के अन्दर मेहफ़ूज़ कर दिया. यह भी बयान किया गया है कि इसी तरह की एक तख़्ती शाही ख़ज़ाने में भी मेहफ़ूज़ करा दी गई. कुछ समय बाद दक़ियानूस हलाक हुआ.

ज़माने गुज़रे, सल्तनतें बदलीं, यहाँ तक कि एक नेक बादशाह गद्दी पर बैठा उसका नाम बेसरूद था.उसने 68 साल हुकूमत की. फिर मुल्क में फ़िर्क़ा बन्दी और फूट पैदा हुई और कुछ लोग मरने के बाद उठने और क़यामत आने के इन्कारी हो गए. बादशाह एक एकान्त मकान में बन्द हो गया और उसने रो रो कर अल्लाह की बारगाह में दुआ की, या रब कोई ऐसी निशानी ज़ाहिर फ़रमा दे कि दुनिया को मुर्दों के उठने और क़यामत का यक़ीन हासिल हो. उसी ज़माने में एक शख़्स ने अपनी बकरियों के लिये आराम की जगह हासिल करने को उसी गुफा को चुना और दीवार गिरा दी. दीवार गिरने के बाद कुछ ऐसी हैबत छाई कि गिराने वाले भाग गए. असहाबे कहफ़ अल्लाह के हुक्म से ताज़ादम होकर उठे, चेहरे खिले हुए, तबीअते ख़ुश, ज़िन्दगी की तरोताज़गी मौजूद. एक ने दूसरे को सलाम किया. नमाज़ के लिये खड़े हो गए. फ़ारिग़ होकर यमलीख़ा से कहा कि आप जाइये और बाज़ार से कुछ खाने को भी लाइये और यह ख़बर भी लाइये कि दक़ियानूस का हम लोगों के बारे में क्या इरादा है.

वो बाज़ार गए और नगरद्वार पर इस्लामी निशानी देखी. नए नए लोग पाए. उन्हें हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के नाम की क़स्में खाते सुना. आश्चर्य हुआ, यह क्या मामला है.कल तो कोई शख़्स अपना ईमान ज़ाहिर नहीं कर सकता था.हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का नाम लेने से क़त्ल कर दिया जाता था. आज इस्लामी निशानियाँ नगरद्वार पर ज़ाहिर हैं, लोग बिना किसी डर के हज़रत ईसा के नाम की क़सम खाते हैं. फिर आप नानबाई की दुकान पर गए. खाना खरीदने के लिये उसको दक़ियानूसी सिक्का दिया जिसका चलन सदियों पहले बन्द हो गया था और उसका देखने वाला तक कोई बाक़ी न बचा था. बाज़ार वालों ने ख़याल किया कि इनके हाथ कोई पुराना ख़ज़ाना लग गया है. इन्हें पकड़ कर हाकिम के पास ले गए.वह नेक आदमी था उसने भी इनसे पूछा कि ख़ज़ाना कहाँ है. इन्होंने कहा ख़ज़ाना कहीं नहीं है. यह रूपया हमारा अपना है. हाकिम ने कहा यह बात किसी तरह यक़ीन करने वाली नहीं इसमें जो सन मौजूद है वह तीन सौ बरस से ज़्यादा का है. हम लोग बूढ़े हैं इमने तो कभी यह सिक्का देखा नहीं. आप ने फ़रमाया जो मैं पूछूँ वह ठीक ठीक बताओ तो राज़ हल हो जाएगा. यह बताओ कि दक़ियानूस बादशाह किस हाल और ख़याल में है. हाकिम ने कहा आज धरती पर इस नाम का कोई बादशाह नहीं. सैकड़ों बरस हुए जब इस नाम का एक बेईमान बादशाह गुज़रा है. आपने फ़रमाया कल ही तो हम उसके डर से जान बचाकर भागे हैं. मेरे साथी क़रीब के पहाड़ में एक ग़ार के अन्दर शरण लिये हुए हैं. चलो मैं तुम्हें उनसे मिला दूँ. हाकिम और शहर के बड़े लोग और एक बड़ी भीड़ उनके साथ ग़ार पर पहुंची असहाबे कहफ़ यमलीख़ा के इन्तिज़ार में थे. बहुत से लोगों के आने की अवाज़ और खटके सुनकर समझे कि यमलीख़ा पकड़े गए और दक़ियानूसी फ़ौज हमारी तलाश में आ रही है. अल्लाह की हम्द और शुक्र बजा लाने लगे. इतने में ये लोग पहुंचे. यमलीख़ा ने सारी कहानी सुनाई. उन हज़रात ने समझ लिया कि हम अल्लाह के हुक्म से इतना लम्बा समय तक सोए और अब इस लिये उठाए गए कि लोगों के लिये मौत के बाद ज़िन्दा किये जाने की दलील और निशानी हों. हाकिम ग़ार के मुंह पर पहुंचा तो उसने तांबे का एक सन्दूक़ देखा. उसको खोला तो तख़्ती बरआमद हुई उसमें उन लोगों के नाम और कुत्ते का नाम लिखा था और यह भी लिखा था कि यह जमाअत अपने दीन की हिफ़ाज़त के लिये दक़ियानूस के डर से इस ग़ार में शरणागत हुई.

दक़ियानूस ने ख़बर पाकर एक दीवार से उन्हें ग़ार में बन्द कर देने का हुक्म दिया. हम यह हाल इस लिये लिखते हैं कि जब कभी ग़ार खुले तो लोग हाल पर सूचित हो जाएं. यह तख़्ती पढ़कर सब को आश्चर्य हुआ और लोग अल्लाह की हम्द और सना बजा लाए कि उसने ऐसी निशानी ज़ाहिर फ़रमा दी जिससे मरने के बाद उठने का यक़ीन हासिल होता है. हाकिम ने अपने बादशाह बेदरूस को इस घटना की सूचना दी. वह अमीरों और प्रतिष्ठित लोगों को लेकर हाज़िर हुआ और अल्लाह के शुक्र का सज्दा किया कि अल्लाह तआला ने उसकी दुआ क़ुबूल की. असहाबे कहफ़ बादशाह से गले मिले और फ़रमाया हम तुम्हें अल्लाह के सुपुर्द करते हैं. वस्सलामो अलैका व रहमतुल्लाहे व बरकातुहू. अल्लाह तेरी और तेरी सल्तनत की हिफ़ाज़त फ़रमाएं और जिन्नों और इन्सानों के शर से बचाए. बादशाह खड़ा ही था कि वो हज़रात अपनी ख़्वाबगाहों की तरफ़ वापस होकर फिर सो गये और अल्लाह ने उन्हें वफ़ात दी. बादशाह ने साल के सन्दूक़ में उनके बदनों को मेहफ़ूज़ किया और अल्लाह तआला ने रोब से उनकी हिफ़ाज़त फ़रमाई कि किसी की ताक़त नहीं कि वहाँ पहुंच सके. बादशाह ने गुफ़ा के मुंह पर मस्जिद बनाने का हुक्म दिया और एक ख़ुशी का दिन निश्चित किया कि हर साल लोग ईद की तरह वहाँ आया करें. (ख़ाज़िन वग़ैरह) इससे मालूम हुआ कि नेक लोगों में उर्स का तरीक़ा बहुत पुराना है.

और हमारे काम में हमारे लिये राहयाबी (रास्ता पाने) के सामान कर{10} तो हमने उस ग़ार से उनके कानों पर गिनती के कई बरस थपका(16){11}
(16) यानी उन्हें ऐसी नींद सुला दिया कि कोई आवाज़ जगा न सके.

फिर हमने उन्हें जगाया कि देखें (17)
(17) कि असहाबे कहफ़ के—-

दोनों गिरोहों में कौन ठहरने की मुद्दत ज़्यादा ठीक बताता है{12}

18 सूरए कहफ़ -दूसरा रूकू

18 सूरए कहफ़ -दूसरा रूकू

हम उनका ठीक ठीक हाल तुम्हें सुनाएं, वो कुछ जवान थे कि अपने रब पर ईमान लाए और हमने उनको हिदायत बढ़ाई {13} और हमने उनकी ढारस बंधाई जब (1)
(1) दक़ियानूस बादशाह के सामने.

खड़े होकर बोले कि हमारा रब वह है जो आसमान और ज़मीन का रब है हम उसके सिवा किसी मअबूद को न पूजेंगे ऐसा होतो हमने ज़रूर हद से गुज़री हुई बात कही{14} यह जो हमारी क़ौम है उसने अल्लाह के सिवा ख़ुदा बना रखे हैं, क्यों नहीं लाते उनपर कोई रौशन सनद {प्रमाण} तो उससे बढ़कर ज़ालिम कौन जो अल्लाह पर झूट बांधे(2){15}
(2) और उसके लिये शरीक और  औलाद ठहराए, फिर उन्होंने आपस में एक दूसरे से कहा.

और जब तुम उनसे  और जो कुछ वो अल्लाह के सिवा पूजते हैं सब अलग हो जाओ तो ग़ार में पनाह लो तुम्हारा रब तुम्हारे लिये अपनी रहमत फैला देगा  और तुम्हारे काम में आसानी के सामान बना देगा और {16}और ऐ मेहबूब तुम सूरज को देखोगे कि जब निकलता है तो उनके ग़ार से दाई तरफ़ बच जाता है और जब डूबता है तो उनमें बाई तरफ़ कतरा जाता है (3)
(3) यानी उनपर सारे दिन छाया रहती है और  सूर्योंदय से सूर्यास्त तक किसी वक़्त भी धूप की गर्मी उन्हें नहीं पहुंचती.

हालांकि वो उस ग़ार के खुले मैदान में हैं(4)
(4) और ताज़ा हवाएं उनको पहुंचती है.
ये अल्लाह की निशानियों से है, जिसे अल्लाह राह दे तो राह पर है, और जिसे गुमराह करे तो हरगिज़ उसका कोई हिमायती राह दिखाने वाला न पाओगे{17}

18 सूरए कहफ़ – तीसरा रूकू

18 सूरए कहफ़ – तीसरा रूकू

 

और तुम उन्हें जागता समझो(1)
(1) क्योंकि उनकी आँखें  खुली है. 

और वो सोते है और हम उनकी दाईं बाईं कर्वट बदलते है(2)
(2) साल में एक बार दसवीं मुहर्रम को.

और उनका कुत्ता अपनी कलाइयां फैलाए हुए है ग़ार की चौखट पर (3)
(3) जब वो कर्वट लेते हैं, वह भी कर्वट बदता है. तफ़सीरे सअलबी में है कि जो कोई इन कलिमात “व कल्बुहुम बासितुन ज़िरा ऐहे बिल वसीद” को लिखकर अपने साथ रखे, कुत्ते के कष्ट से अम्न में रहे.

ऐ सुनने वाले अगर तू उन्हें झांक कर देखे तो उनसे पीठ फेर कर भागे और उनसे हैबत (डर) में भर जाए(4){18}
(4) अल्लाह तआला ने ऐसी हैबत से उनकी हिफ़ाज़त फ़रमाई है कि उन तक कोई जा नहीं सकता. हज़रत अमीर मुआविआ जंगे रूम के वक़्त कहफ़ की तरफ़ गुज़रे तो उन्होंने असहाबे कहफ़ पर दाखिल होना चाहा. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने उन्हें मना किया और यह आयत पढ़ी. फिर एक जमाअत हज़रत अमीर मुआविआ के हुक्म से दाख़िल हुई तो अल्लाह तआला ने एक ऐसी हवा चलाई कि सब जल गए.

और यूं ही हमने उनको जगाया (5)
(5) एक लम्बी मुद्दत के बाद.

कि आपस में एक दूसरे से अहवाल पूछें(6)
(6) और  अल्लाह तआला की क़ुदरते अज़ीमा को देखकर उनका यक़ीन ज़्यादा हो और वो उसकी नेअमतों का शुक्र अदा करें.

उनमें एक कहने वाला बोला(7)
(7) यानी मकसलमीना जो उनमें सबसे बड़े और उनके सरदार हैं.

तुम यहां कितनी देर रहे कुछ बोले कि एक दिन रहे या दिन से कम(8)
(8) क्योंकि वो ग़ार में सूर्योंदय के वक़्त दाख़िल हुए थे और  जब उठे तो सूरज डूबने के क़रीब था इससे उन्हें गुमान हुआ कि यह वही दिन है. इससे साबित हुआ कि इज्तिहाद जायज़ और ज़न्ने ग़ालिब की बुनियाद पर क़ौल करना दुरूस्त है.

दूसरे बोले तुम्हारा रब कुछ जानता है जितना तुम ठहरे(9)
(9) उन्हें या तो इल्हाम से मालूम हुआ कि लम्बा समय गुज़र चुका या उन्हें कुछ ऐसे प्रमाण मिले जैसे कि बालों और  नाख़ूनों का बढ़ जाना. जिससे उन्होंने ख़्याल किया कि समय बहुज गुज़र चुका.

तो अपने में एक को यह चांदी लेकर(10)
(10)यानी दक़ियानूसी सिक्के के रूपये जो घर से लेकर आए थे और सोते वक़्त अपने सरहाने रख लिये थे. इससे मालूम हुआ कि मुसाफिर को ख़र्च साथ में रखना तवक्कुल के तरीक़े के ख़िलाफ़ नहीं है. चाहिये कि अल्लाह पर भरोसा रखे.

शहर में भेजो फिर वह ग़ौर करे कि वहां कौन सा खाना ज़्यादा सुथरा है(11)
(11) और इसमें कोई शुबह हुरमत का नहीं.

कि तुम्हारे लिये उसमें से खाना लाए और चाहिये कि नर्मीं करें और हरगिज़ किसी को तुम्हारी इत्तिला न दे{19}बेशक अगर वो तुम्हें जान लेंगे तो तुम्हें पथराव करेंगे(12)
(12) और बुरी तरह क़त्ल करेंगे.

या अपने दीन(13)
(13) यानी अत्याचार से काफ़िरों की जमाअत…

में फेर लेंगे और ऐसा हुआ तो तुम्हारा कभी भला न होगा{20} और इसी तरह हमने उनकी इत्तिला कर दी(14)
(14) लोगों को दक़ियानूस के मरने और मुद्दत गुज़र जाने के बाद.

कि लोग जान लें(15)
(15)और बेदरूस की क़ौम में जो लोग मरने के बाद ज़िन्दा होने का इन्कार करते हैं उन्हें मालूम हो जाए.

कि अल्लाह का वादा सच्चा है और क़यामत में कुछ शुबह नहीं, जब वो लोग उनके मामले में आपस में झगड़ने लगे (16)
(16) यानी उनकी वफ़ात के बाद उनके गिर्द इमारत बनाने में

तो बोले उनके ग़ार पर कोई ईमारत बनाओ उनका रब उन्हें ख़ूब जानता है, वो बोले जो इस काम में ग़ालिब रहे थे(17)
(17) यानी बेदरूस बादशाह और उनके साथी.

क़सम है कि हम तो उनपर मस्जिद बनाएंगे (18){21}
(18) जिसमें मुसलमान नमाज़ पढ़ें और उनके क़ुर्ब से बरकत हासिल करें. (मदारिक) इससे मालूम हुआ कि बुज़ुर्गों के मज़ारात के क़रीब मस्जिदें बनाना ईमान, वालों का पुराना तरीक़ा है और  क़ुरआन शरीफ़ में इसका ज़िक्र फ़रमाना और इसको मना न करना इस काम के दुरूस्त होने की मज़बूत दलील है. इससे यह भी मालूम हुआ कि बुज़ुर्गों से जुड़े स्थानों में बरकत हासिल होती है इसीलिये अल्लाह वालों के मज़ारात पर लोग बरकत हासिल करने के लिये जाया करते हैं और इसीलिये क़ब्रों की ज़ियारत सुन्नत और सवाब वाली है.

अब कहेंगे(19)
(19) ईसाई, जैसा कि उनमें से सैय्यिद और आक़िब ने कहा.

कि वो तीन हैं चौथा उनका कुत्ता और कुछ कहेंगे पांच है छटा उनका कुत्ता बे देखे अलाउतका (अटकल पच्चू)बात (20)
(20)जो बेजान कह दी, किसी तरह सही नहीं हो सकती.

और कुछ कहेंगे सात हैं(21)
(21) और ये कहने वाले मुसलमान हें. अल्लाह तआला ने उनके क़ौल को साबित रखा क्योंकि उन्होंने जो कुछ कहा वह नबी अलैहिस्सलातो वस्सलाम से इल्म हासिल करके कहा.

और आठवां उनका कुत्ता, तुम फ़रमाओ मेरा रब उनकी गिनती ख़ूब जानता है(22)
(22) क्योंकि जहानों की तफ़सील और गुज़री हुई दुनिया और आने वाली दुनिया का इल्म अल्लाह ही को है या जिसको वह अता फ़रमाए.

उन्हें नहीं जानते मगर थोड़े(23)
(23) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि मैं उन्हीं थोड़ों में से हूँ जिसका आयत में इस्तिस्ना फ़रमाया यानी छेक दिया.

तो उनके बारे में(24)
(24) किताब वालों से.

बहस न करो मगर उतनी ही बहस जो ज़ाहिर हो चुकी(25)
(25)और क़ुरआन में नाज़िल फ़रमा दी गई. आप इतने पर ही इक्तिफ़ा करें. इस मामले में यहूदियों की जिहालत का इज़हार करने की फिक्र न करें.

और उनके (26)
(26) यानी  असहाबे कहफ़ के.
बारे में किसी किताब से कुछ न पूछो{22}

18 सूरए कहफ़ – चौथा रूकू

 

 

18 सूरए कहफ़ – चौथा रूकू

और हरगिज़ किसी बात को न कहना कि मैं कल यह करूं या कल कर दूंगा{23} मगर यह कि अल्लाह चाहे(1)
(1) यानी जब किसी काम का इरादा हो तो यह कहना चाहिये कि इन्शाअल्लाह ऐसा करूंगा. बगैर इन्शाअल्लाह के न कहे. मक्का वालों ने रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से जब असहाबे कहफ़ का हाल पूछा था तो हुज़ूर ने फ़रमाया कल बताऊंगा और इन्शाअल्लाह नहीं फ़रमाया था. कई रोज़ वही नहीं आई. फिर यह आयत उतरी.

और अपने रब की याद कर जब तू भूल जाए(2)
(2) यानी इन्शाअल्लाह कहना याद न रहे तो जब याद आए. कह ले. हसन रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया, जब तक उस मजलिस में रहे. इस आयत की तफ़सीर में कई क़ौल हैं. कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया मानी ये हैं कि  अगर किसी नमाज़ को भूल गया तो याद आते ही अदा करे (बुखारी व मुस्लिम) कुछ आरिफ़ों ने फ़रमाया मानी ये हैं कि अपने रब को याद कर, जब तू अपने आपको भूल जाए क्योंक ज़िक्र का कमाल यही है कि ज़ाकिर उसमें फ़ना हो जाए जिसका ज़िक्र करे.

और यूं कह कि क़रीब है मेरा रब मुझे उस(3)
(3) असहाबे कहफ़ के वाक़ए के बयान और उसकी ख़बर देने.

से नज़दीकतर रास्ती(सच्चाई) की राह दिखाए(4){24}
(4) यानी ऐसे चमत्कार अता फ़रमाए जो मेरी नबुव्वत पर इससे भी ज़्यादा जाहिर दलील दें जैसे कि अगले नबियों के हालात का बयान और अज्ञात का इल्म और क़यामत तक पेश आने वाली घटनाओ और वाक़िआत का बयान और चाँद के चिर जाने और जानवरों से अपनी गवाही दिलवाना इत्यादि. (ख़ाज़िन व जुमल)

और वो अपने ग़ार में तीन सौ बरस ठहरे नौ ऊपर (5){25}
(5) और अगर वह इस मुद्दत में झगड़ा करें तो.

तुम फ़रमाओ अल्लाह ख़ूब जानता है वो जितना ठहरे (6)
(6) उसी का फ़रमाना हक़ है. नजरान के ईसाइयों ने कहा था तीन सौ बरस तो ठीक हैं और नौ की ज़ियादती कैसी है इसका हमें इल्म नहीं. इस पर यह आयत उतरी.

उसी के लिये आसमानों और ज़मीनों के सब ग़ैब वह क्या ही देखता और क्या ही सुनता है(7)
(7) कोई ज़ाहिर और कोई बातिन उससे छुपा नहीं.

उसके सिवा उनका(8)
(8) आसमान और ज़मीन वालों का.

कोई वाली (सरंक्षक) नहीं और वह अपने हुक्म में किसी को शरीक नहीं करता{26} और तिलावत करो जो तुम्हारे रब की किताब(9)
(9) यानी क़ुरआन शरीफ़.

तुम्हें वही (देववाणी) हुई, उसकी बातों का कोई बदलने वाला नहीं(10)
(10) और किसी को उसके फेर बदल की क़ुदरत नहीं.

और हरगिज़ तुम उसके सिवा पनाह न पाओगे{27} और अपनी जान उनसे मानूस रखो जो सुबह शाम अपने रब को पुकारते हैं उसकी रज़ा चाहते हैं(11)
(11) यानी इख़लास के साथ हर वक़्त अल्लाह की फ़रमाँबरदारी में लगे रहते हैं. काफिरों के सरदारों की एक जमाअत ने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से अर्ज़ किया कि हमें ग़रीबों और बुरे हालों के साथ बैठते शर्म आती है अगर आप उन्हें सोहबत  से अलग कर दें तो हम इस्लाम ले आएं और हमारे इस्लाम ले आने से बहुत से लोग इस्लाम ले आएंगे. इसपर यह आयत उतरी.

और तुम्हारी आंखे उन्हें छोड़ कर और पर न पड़ें, क्या तुम दुनिया की ज़िन्दगी का सिंगार चाहोगे, और उसका कहा न मानो जिसका दिल हमने अपनी याद से गाफ़िल कर दिया और वह अपनी ख़्वाहिश के पीछे चला और उसका काम हद से गुज़र गया{28} और फ़रमा दो कि हक़ (सत्य) तुम्हारे रब की तरफ़ से है(12)
(12) यानी उसकी तौफ़ीक़ से, और सच और झूट ज़ाहिर हो चुका. मैं तो मुसलमानों को उनकी ग़रीबी के कारण तुम्हारा दिल रखने के लिये अपनी मजलिस से जुदा नहीं करूंगा.

तो जो चाहे ईमान लाए और जो चाहे कुफ़्र करे(13)
(13) अपने परिणाम को सोच ले और समझ ले कि….

बेशक हमने जालिमों(14)
(14) यान काफ़िरों.

के लिये वह आग तैयार कर रखी है जिसकी दीवारें उन्हें घेर लेंगी और अगर (15)
(15) प्यास की सख़्ती से.

पानी के लिये फ़रियाद करें तो उनकी फ़रियाद रसी होगी उस पानी से कि चर्ख़ दिये हुए धात की तरह है कि उनके मुंह भून देगा क्या ही बुरा पीना है(16)
(16) अल्लाह की पनाह, हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया वह गन्दा पानी है जै़तून के तेल  की तलछट की तरह. तिरमिज़ी की हदीस में है कि जब वह मुंह के क़रीब किया जाएगा तो मुंह की खाल उससे जल कर गिर पड़ेगी. कुछ मुफ़स्सिरों का क़ौल है कि वह पिघलाया हुआ रांग और पीतल है.

और दोज़ख़ क्या ही बुरी ठहरने की जगह{29} बेशक जो ईमान लाए और नेक काम किये हम उनके नेग जाया नहीं करते जिनके काम अच्छे हो(17){30}
(17)  बल्कि उन्हें उनकी नेकियों की जज़ा देते हैं.

उनके लिये बसने के बाग़ हैं उनके नीचे नदियां बहें वो उसमें सोने के कंगन पहनाए जाएंगे(18)
(18) हर जन्नती को तीन तीन कंगन पहनाए जाएंगे, सोने और चांदी और मोतियों के. सही हदीस में है कि वुजू का पानी जहाँ जहाँ पहुंचता है वो सारे अंग बहिश्ती ज़ेवरों से सजाए जाएंगे.

और सब्ज़ कपड़े किरेब और क़नादीज़ के पहनेंगे वहाँ तख़्तों पर तकिया लगाए (19)
(19) बादशाहों की सी शान और ठाठ बाट के साथ होंगे.
क्या ही अच्छा सवाब और जन्नत क्या ही अच्छी आराम की जगह{31}

18 सूरए कहफ़ – पाँचवा रूकू

18 सूरए  कहफ़ – पाँचवा रूकू

 

और उनके सामने दो मर्दों का हाल बयान कर(1)
(1) कि काफ़िर और ईमान वाले इसमें और  ग़ौर करके अपना अपना अंजाम समझें और  इन दो मर्दों का हाल यह है. 

कि उनमें एक को(2)
(2) यानी काफ़िर को.

हमने अंगूरों के दो बाग़ दिये और उनको खजूरों से ढांप लिया और  उनके बीच बीच में खेती रखी(3){32}
(3) यानी उन्हें निहायत बेहतरीन तरतीब के साथ मुरत्तब किया.

दोनों बाग़ अपने फल लाए और उसमें कुछ कमी न दी(4)
(4) बहार ख़ूब आई.

और  दोनों के बीच में हमने नहर बहाई{33} और वह(5)
(5) बाग़ वाला, उसके अलावा और  भी.

फल रखता था(6)
(6) यानी बहुत सा माल, सोना चाँदी वग़ैरह, हर क़िस्म की चीज़ें

तो अपने साथी(7)
(7) ईमानदार.

से बोला और  वह उससे रद्दो बदल करता था(8)
(8) और  इतरा कर और  अपने माल पर घमण्ड करके कहने लगा कि…

मैं तुझसे माल में ज़्यादा हूँ और आदमियों का ज़्यादा ज़ोर रखता हूँ(9){34}
(9) मेरा कुटुम्ब क़बीला बड़ा है, मुलाजिम, ख़िदमतगार, नौकर चाकर बहुत हैं.

अपने बाग़ में गया(10)
(10) और मुसलमान का हाथ पकड़ कर उसको साथ ले गया. वहाँ उसको गर्व से हर तरफ़ लिये फिरा और हर हर चीज़ दिखाई.

और अपनी जान पर ज़ुल्म करता हुआ(11)
(11) कुफ़्र के साथ, और बाग़ की ज़ीनत और ज़ेबाइश और रौनक और  बहार देखकर मग़रूर हो गया और …

बोला मुझे गुमान नहीं कि यह कभी फ़ना हो{35} और मैं गुमान नहीं करता कि क़यामत क़ायम हो और  अगर मैं(12)
(12) जैसा कि तेरा गुमान है, फ़र्ज़ कर.

अपने रब की तरफ़ फिर गया भी तो ज़रूर उस बाग़ से बहतर पलटने की जगह पाऊंगा(13){36}
(13) क्योंकि दुनिया में भी मैं ने बेहतरीन जगह पाई है.

उसके साथी(14)
(14) मुसलमान.

ने उससे उलट फेर करते हुए जवाब दिया क्या तू उसके साथ कुफ़्र करता है जिसने तुझे मिट्टी से बनाया फिर निथरे पानी की बूंद से फिर तुझे ठीक मर्द किया(15) {35}
(15) अक़्ल और बालिग़पन, क़ुव्वत और ताक़त अता की और तू सब कुछ पाकर काफ़िर हो गया.

लेकिन मैं तो यही कहता हूँ कि वह अल्लाह ही मेरा रब है और मैं किसी को अपने रब का शरीक नहीं करता हूँ {38}और क्यों न हुआ कि जब तू अपने बाग़ में गया तो कहा होता जो चाहे अल्लाह हमें कुछ ज़ोर नहीं मगर अल्लाह की मदद को(16)
(16) अगर तू बाग़ देखकर माशाअल्लाह कहता और  ऐतिराफ़ करता कि यह बाग़ और  उसकी सारी उपज और  नफ़ा अल्लाह तआला की मर्जी़ और  उसके फ़ज़्ल और  करम से हैं और सब कुछ उसके इख़्तियार में है चाहे उसको आबाद रखे चाहे वीरान कर दे. ऐसा कहता तो यह तेरे हक़ में बेहतर होता. तूने ऐसा क्यों नहीं कहा.

अगर तू मुझे अपने से माल व औलाद में कम देखता था (17){39}
(17) इस वजह से घमण्ड में जकड़ा हुआ था और अपने आपको बड़ा समझता था.

तो क़रीब है कि मेरा रब मुझे तेरे बाग़ से अच्छा दे(18)
(18) दुनिया में या आख़िरत में.

और तेरे बाग़ पर आसमान से बिजलियां उतारे तो वह पटपर मैदान होकर रह जाए(19){40}
(19) कि उसमें सब्ज़े का नामो निशान बाक़ी न रहे.

या उसका पानी ज़मीन में धंस जाए(20)
(20) नीचे चला जाय कि किसी तरह निकाला न जा सके.

फिर तू उसे कभी तलाश न कर सके(21){41}
(21) चुनांचे ऐसा ही हुआ, अज़ाब आया.

और उसके फल घेर लिये गए(22)
(22) और बाग़ बिल्कुल वीरान हो गया.

तो अपने हाथ मलता रह गया(23)
(23) पशेमानी और हसरत से.

उस लागत पर जो उस बाग़ में खर्च की थी और  वह अपनी टट्टियों पर गिरा हुआ था(24)
(24) इस हाल को पहुंच कर उसको मूमिन की नसीहत याद आती है और अब वह समझता है कि यह उसके कुफ्र और  सरकशी का नतीजा है.

और  कह रहा है ऐ काश मैं ने अपने रब का किसी को शरीक न किया होता {42}और उसके पास कोई जमाअत न थी कि अल्लाह के सामने उसकी मदद करती न वह बदला लेने के क़ाबिल था(25){43}
(25) कि नष्ट हुई चीज़ को वापस कर सकता.

यहाँ खुलता है(26)
(26) और  ऐसे हालात में मालूम होता है.
कि इख़्तियार सच्चे अल्लाह का है, उसका सवाब सबसे बेहतर और  उसे मानने का अंजाम सब से भला{44}

18 सूरए कहफ़ -छटा रूकू

18 सूरए कहफ़ -छटा रूकू


और उनके सामने(1)
(1) ऐ सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम.

दुनिया की ज़िन्दगी की कहावत बयान करो(2)
(2) कि उसकी हालत ऐसी है.

जैसे एक पानी हमने आसमान से उतारा तो उसके कारण ज़मीन का सब्ज़ा घना होकर निकला(3)
(3) ज़मीन तरो ताजा़ हुई, फिर क़रीब ही ऐसा हुआ.

कि सूख़ी घास हो गया जिसे हवाएं उड़ाएं(4)
(4) और  परागन्दा कर दें.

और अल्लाह हर चीज़ पर क़ाबू वाला है(5){45}
(5) पैदा करने पर भी और नष्ट करने पर भी. इस आयत में दुनिया की ताज़गी, हरे भरे पन और  उसके नाश और  हलाक होने की सब्ज़े से उपमा दी गई है कि जिस तरह हरियाली खिल कर नष्ट हो जाती है और  उसका नाम निशान बाक़ी नहीं रहता. यही हालत दुनिया की क्षण भर ज़िन्दगी की हे, उसपर घमण्ड करना या मर मिटना अक़्ल का काम नहीं.

माल और बेटे यह जीती दुनिया का सिंगार है(6)
(6) क़ब्र की राह और आख़िरत के लिये तोशा नहीं. हज़रत अली मुर्तज़ा रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि माल और औलाद दुनिया की खेत हैं और  नेक काम आख़िरत की और  अल्लाह तआला अपने बहुत से बन्दो को ये सब अता करता है.

और बाकी रहने वाली अच्छी बातें(7)
(7) बाक़ी रहने वाली अच्छी बातों से नेक कर्म मुराद हैं जिनके फल इन्सान के लिये बाक़ी रहते हैं जैसा कि पाँचों वक़्त की नमाज़ें और अल्लाह का ज़िक्र और स्तुति. हदीस शरीफ़ में है सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने “बाक़ी रहने वाली अच्छी बातों” की कसरत का हुक्म फ़रमाया, सहाबा ने अर्ज़ किया कि वो क्या है, फ़रमाया “अल्लाहो अकबर, लाइलाहा इल्लल्लाह, सुब्हानल्लाहे वलहम्दु लिल्लाहे वला हौला वला कुव्वता इल्ला बिल्लाहे” पढ़ना.

उनका सवाब तुम्हारे रब के यहाँ बेहतर और वह उम्मीद में सबसे भली{46} और जिस दिन हम पहाड़ों को चलाएंगे(8)
(8) कि अपनी जगह से उखड़ कर बादल की तरह रवाना होंगे.

और तुम ज़मीन को साफ़ खुली हुई देखोगे(9)
(9) न उस पर कोई पहाड़ होगा, न इमारत न दरख़्त.

और हम उन्हें उठाएंगे(10)
(10) क़ब्रों से और  हिसाब के मैदान में हाज़िर करेंगे.

तो उनमें से किसी को न छोड़ेंगे{47} और  सब तुम्हारे रब के हुज़ूर परा बांधे पेश होंगे(11)
(11) हर हर उम्मत की जमाअत की पंक्तियाँ अलग अलग, अल्लाह तआला उनसे फ़रमाएगा.

बेशक तुम हमारे पास वैसे ही आए जैसा हमने तुम्हें पहली बार बनाया था(12)
(12) ज़िन्दा, नंगे बदन, नंगे पाँव, माल और दौलत के बिना.

बल्कि तुम्हारा गुमान था कि हम हरगिज़ तुम्हारे लिये कोई वादे का वक़्त न रखेंगे(13){48}
(13) जो वादा कि हमने नबियों की ज़बान पर फ़रमाया था. यह उनसे फ़रमाया जाएगा जो लोग मरने के बाद ज़िन्दा किये जाने और  क़यामत क़ायम होने के इन्कारी थे.

और अअमाल नामा रखा जाएगा(14)
(14) हर व्यक्ति का कर्म-लेखा उसके हाथ में, मूमिन का दाएं में काफ़िर का बाएं में.

तो तुम मुजरिमों को देखोगे कि उसके लिखे से डरते होंगे और (15)
(15) उसमें अपनी बुराइयाँ लिखी देखकर.

कहेंगे हाय ख़राबी हमारी इस नविश्ते (लेखे) को क्या हुआ न इसने कोई छोटा गुनाह छोड़ा न बड़ा जिसे घेर न लिया हो, और अपना सब किया उन्होंने सामने पाया और तुम्हारा रब किसी पर ज़ुल्म नहीं करता(16){49}
(16) न किसी पर बेजुर्म अज़ाब करें, न किसी की नेकियाँ घटाए.

18 सूरए कहफ़ – सातवाँ रूकू

और याद करो जब हमने फ़रिश्तो को फ़रमाया कि आदम को सज़्दा करो(1)
(1) ताज़ीम और आदर का.

तो सबने सज़्दा किया सिवा इब्लीस के कि जिन्न क़ौम से था तो अपने रब के हुक्म से निकल गया (2)
(2) और हुक्म होने के बावुजूद उसने सज्दा न किया तो ऐ बनी आदम!

भला क्या उसे और उसकी औलाद को मेरे सिवा दोस्त बनाते हो(3)
(3) और उनकी इत्ताअत इख़्तियार करते हो.

और वो तुम्हारे दुश्मन है ज़ालिमों को क्या ही बुरा बदला मिला(4){50}
(4) कि अल्लाह की फ़रमाँबरदारी करने की जगह शैतान के अनुकरण में जकड़े गए.

न मैंने आसमानों और ज़मीन को बनाते वक़्त उन्हें सामने बिठा लिया था न ख़ुद उनके बनाते वक़्त और न मेरी शान कि गुमराह करने वालों को बाज़ू बनाऊं (5){51}
(5) मानी ये हैं कि चीज़ों के पैदा करने में तन्हा और अकेला हूँ न कोई मेरा सलाहकार, न कोई सहायक. फिर मेरे सिवा और किसी की इबादत किस तरह दुरूस्त हो सकती है.

और जिस दिन फ़रमाएगा(6)
(6) अल्लाह तआला काफ़िरों से—

कि पुकारो मेरे शरीकों को जो तुम गुमान करते थे तो उन्हें पुकारेंगे वो उन्हें जवाब न देंगे और हम उनके(7)
(7)  यानी बुतों और बुत परस्तों के, या हिदायत वालों और गुमराही वालों के.

दरमियान एक हलाकत का मैदान कर देंगे(8){52}
(8) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि मौबिक़ जहन्नम की घाटी का नाम है.
और मुजरिम दोज़ख़ को देखेंगे तो यक़ीन करेंगे कि उन्हें उसमें गिरना है और उससे फिरने की कोई जगह न पाएंगे{53}

18 सूरए कहफ़ – आठवाँ रूकू

18 सूरए कहफ़ – आठवाँ रूकू


और बेशक हमने लोगों के लिये इस क़ुरआन में हर क़िस्म की मिस्ल तरह तरह बयान फ़रमाई(1)
(1) ताकि समझे और  नसीहत पकड़ें.

और आदमी हर चीज़ से बढ़कर झगड़ालू है(2){54}
(2) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि यहाँ आदमी से मुराद नज़र इब्ने हारिस है और  झगड़े से उसका क़ुरआने पाक में झगड़ा करना. कुछ ने कहा उबई बिन ख़लफ़ मुराद है. कुछ मुफ़स्सिरों का क़ौल है कि सारे काफ़िर मुराद है. कुछ के नज़दीक आयत आम मानी में है और यही सबसे ज़्यादा सही है.

और आदमियों को किस चीज़ ने इससे रोका कि ईमान लाते जब हिदायत(3)
(3) यानी क़ुरआन शरीफ़ या रसूले  मुकर्रम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की पाक मुबारक ज़ात.

उनके पास आई और अपने रब से माफ़ी मांगते(4)
(4) मानी ये हैं कि उनके लिये उज्र की जगह नहीं है क्योंकि उन्हें ईमान और इस्तग़फ़ार से कोई नहीं रोक सकता.

मगर यह कि उनपर अगलों का दस्तूर आए(5)
(5) यानी वह हलाकत जो मुक़द्दर है, उसके बाद.

या उनपर क़िस्म क़िस्म का अज़ाब आए{55} और हम रसूलों को नहीं भजते मगर(6)
(6) ईमानदारों और  फ़रमाँबरदारों के लिये सवाब की.

ख़ुशी और (7)
(7) बेईमानों नाफ़रमानों के लिये अज़ाब का.

डर सुनाने वाले और जो काफ़िर है वो बातिल के साथ झगड़ते हैं(8)
(8) और रसूलों को अपनी तरह का आदमी कहते हैं.

कि उससे हक़(सत्य) को हटादें और उन्होंने मेरी आयतों की और जो डर उन्हें सुनाए गए थे(9){56}
(9) अज़ाब के.

उनकी हंसी बना ली, और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन जिसे उसके रब की आयतें याद दिलाई जाएं तो वह मुंह फेर ले(10)
(10) और नसीहत पकड़े और उनपर ईमान न लाए.

और उनके हाथ जो आगे भेज चुके(11)
(11) यानी बुराई और गुनाह और नाफ़रमानी, जो कुछ उसने किया.

उसे भुल जाए, हमने उनके दिलों पर ग़लाफ़ कर दिये हैं कि क़ुरआन न समझें और उनके कानों में भारीपन(12)
(12) कि हक़ बात नहीं सुनते.

और अगर तुम उन्हें हिदायत की तरफ़ बुलाओ तो जब भी हरगिज़ कभी राह न पाएंगे(13){57}
(13) यह उनके हक़ में है जो अल्लाह के इल्म में ईमान से मेहरूम हैं.

और तुम्हारा रब बख़्शने वाला रहमत वाला है, अगर वह उन्हें (14)
(14) दुनिया ही में.

उनके लिये पकड़ता तो जल्द उनपर अज़ाब भेजता(15)
(15) लेकिन उसकी रहमत है कि उसने मोहलत दी और अज़ाब में जल्दी न  फ़रमाई.

बल्कि उनके लिये एक वादे का वक़्त है(16)
(16) यानी क़यामत का दिन, दोबारा उठाए जाने और हिसाब का दिन.

जिसके सामने कोई पनाह न पाएंगे{58} और ये बस्तियाँ हमने तबाह करदी(17)
(17) वहाँ के रहने वालों को हलाक कर दिया और वो बस्तियाँ वीरान हो गई. उन बस्तियों से लूत, आद, समूद वग़ैरह क़ौमों की बस्तियाँ मुराद है.

जब उन्होंने ज़ुल्म किया(18)
(18) सच्चाई को न माना और कुफ़्र इख़्तियार किया.
और हमने उनकी बर्बादी का एक वादा कर रखा था{59}

18 सूरए कहफ़ नवाँ रूकू

18 सूरए   कहफ़ नवाँ रूकू

और याद करो जब मूसा(1)
(1) इब्ने इमरान, इज़्ज़त वाले नबी, तौरात और खुले चमत्कार वाले.

ने अपने ख़ादिम से कहा(2)
(2) जिनका नाम यूशअ इब्ने नून है जो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की ख़िदमत और सोहबत में रहते थे और आप से इल्म हासिल किया करते थे और आपके बाद आपके वलीअहद हैं.

मैं बाज़ न रहूंगा जब तक वहाँ न पहुंचूं जहां दो समन्दर मिले हैं(3)
(3) पूर्व की दिशा में फ़ारस सागर, रूम सागर और मजमऊल बहरैन वह स्थान हैं जहाँ हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को हज़रत ख़िज्र अलैहिस्सलाम की मुलाक़ात का वादा दिया गया था इसलिये आपने वहाँ पहुंचने का पक्का इरादा किया और फ़रमाया कि मैं अपनी कोशिश जारी रखूंगा जब तक कि वहाँ पहुंचूं.

या क़रनों(युगों) चला जाऊं (4){60}
(4) अगर वह जगह दूर हो, फिर यह हज़रात रोटी और खारी भुनी मछली टोकरी में तोशे के तौर पर लेकर रवाना हुए.

फिर जब वो दोनों उन दरियाओं के मिलने की जगह पहुंचे (5)
(5) जहाँ एक पत्थर की चट्टान थी और अमृत का चश्मा था तो वहाँ दोनो हज़रात ने आराम किया और  सो गए. भुनी हुई मछली टोकरी में ज़िन्दा हो गई और कूद कर दरिया में गिरी और उसपर से पानी का बहाव रूक गया और एक मेहराब सी बन गई. हज़रत यूशअ को जागने के बाद हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से उसका ज़िक्र करना याद न रहा चुनांचे इरशाद होता है.

अपनी मछली भूल गए और उसने समन्दर में अपनी राह ली सुरंग बना ली{61} फिर जब वहां से गुज़र गए(6)
(6) और चलते रहे यहाँ तक कि दूसरे दिन खाने का वक़्त  आया तो हज़रत——

मूसा ने ख़ादिम से कहा हमारा सुबह का खाना लाओ बेशक हमें अपने इस सफ़र में बड़ी मशक़्क़त(परिश्रम) का सामना हुआ(7){62}
(7) थकान भी है और भूख का ज़ोर भी है और यह बात जब तक मजमऊल बरैन पहुंचे थे पेश न आई थी, मंज़िले मक़सूद से आगे बढ़कर थकान और भूख मालूम हुई. इस में अल्लाह तआला की हिकमत थी कि मछली याद करें और उसकी तलब में मंज़िले मक़सूद की तरफ़ वापस हों. हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के यह फ़रमाने पर ख़ादिम ने मअज़िरत की और —-

बोला, भला देखिये तो जब हमने इस चट्टान के पास जगह ली थी तो बेशक मैं मछली को भूल गया और मुझे शैतान ही ने भुला दिया कि मैं उसका ज़ि क्र करूं, और उसने(8)
(8) यानी मछली ने.

तो समन्दर में अपनी राह ली अंचभा है{63} मूसा ने कहा यही तो हम चाहते थे(9)
(9) मछली का जाना ही तो हमारे मक़सद हासिल करने की कोशिश है और  जिन की तलब में चले हैं उनकी मुलाक़ात वहीं होगी.

तू पीछे पलटे अपने क़दमों के निशान देखते{64} तो हमारे बन्दों मे से एक बन्दा पाया(10)
(10) जो चादर ओढे आराम फ़रमा रहा था. यह हज़रत ख़िज्र थे शब्द लुग़त में तीन तरह आया है ख़िज्र ख़जिर और  ख़ज्र. यह लक़ब है और इस लक़ब की वजह यह है कि जहाँ बैठते हैं या नमाज़ पढते हैं वहाँ अगर घास ख़ुश्क हो तो हरी भरी हो जाती है. आपका नाम बलिया बिन मल्कान और  कुनियत अबुल अब्बास है. एक क़ौल यह है कि आप बनी इस्राईल में से हैं. एक क़ौल यह है कि आप शहजा़दे हैं. आपने दुनिया त्याग कर सन्यास इख़्तियार फ़रमाया.

जिसे हमने अपने पास से रहमत दी(11)
(11) इस रहमत से या नबुव्वत मुराद है या विलायत या इल्म या लम्बी उम्र. आप वली तो यक़ीनन हैं आपके नबी होने में मतभेद है.

और उसे अपना इल्म लदुन्नी अता किया(12){65}
(12) यानी अज्ञात का इल्म. मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया इल्मे लदुन्नी वह है जो बन्दे को इल्हाम के तौर से हासिल हो. हदीस शरीफ़ में है जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने हज़रत ख़िज्र अलैहिस्सलाम को देखा कि सफ़ेद चादर में लिपटे हुए हैं तो आपने उन्हें सलाम किया. उन्होंने पूछा कि तुम्हारे इलाक़े में सलाम कहाँ? आपने फ़रमाया मैं मूसा हूँ. उन्होंने कहा कि बनी इस्राईल के मूसा? फ़रमाया कि जी हाँ. फिर …

उससे मूसा ने कहा क्या मैं तुम्हारे साथ रहूँ इस शर्त पर कि तुम मुझे सिखादोगे नेक बात जो तुम्हें तअलीम हुई (13){66}
(13) इससे मालूम हुआ कि आदमी को इल्म की तलब में रहना चाहिये चाहे वह कितना ही बड़ा आलिम हो. यह भी मालूम हुआ कि जिससे इल्म सीखे उसके साथ विनम्रता और आदर से पेश आए. (मदारिक) ख़िज्र ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के जवाब में—-

कहा आप मेरे साथ हरगिज़ न ठहर सकेंगे(14){67}
(14) हज़रत ख़िज्र ने यह इसलिये फ़रमाया कि वह जानते थे कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम वर्जित और अवैध काम देखेंगे और नबियों से सम्भव ही नहीं कि वो अवैध काम देखकर सब्र कर सकें. फिर हज़रत ख़िज्र अलैहिस्सलाम ने इस बेसब्री का उज्र भी खुद ही बयान फ़रमाया और कहा.

और उस बात पर क्योंकर सब्र करेंगे जिसे आपका इल्म नहीं घेरे है(15) {68}
(15) और ज़ाहिर में वो इन्कारी हैं. हदीस शरीफ़ में है कि हज़रत ख़िज्र अलैहिस्सलाम ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से फ़रमाया कि एक इल्म अल्लाह तआला ने मुझ को ऐसा अता फ़रमाया जो आप नहीं जानते थे और एक इल्म आपको ऐसा अता फ़रमाया जो मैं नहीं जानता था. मुफ़स्सिरीन और हदीस के जानकार कहते हैं कि जो इल्म हज़रत ख़िज्र अलैहिस्सलाम ने अपने लिये ख़ास फ़रमाया वह बातिन और दिल के अन्दर की बात जानने का इल्म है और कमाल वालों के लिये यह बड़प्पन की बात है. चुनांचे बताया गया है कि हज़रते सिद्दीक़ को नमाज़ वग़ैरह नेकियों की बुनियाद पर सहाबा पर फ़ज़ीलत नहीं बल्कि उनकी फ़ज़ीलत उस चीज़ से है जो उनके सीने में है यानी इल्मे बातिन और छुपी बातों का इल्म,क्योंकि जो काम करेंगे वह हिकमत से होंगे अगरचे देखने में ख़िलाफ़ मालूम हो.

कहा बहुत जल्द अल्लाह चाहे तो तुम मुझे साबिर पाओगे और मैं तुम्हारे किसी हुक्म के ख़िलाफ़ न करूंगा{69} कहा तो अगर आप मेरे साथ रहते हैं तो मुझसे किसी बात को न पूछना जब तक मैं ख़ुद उसका ज़िक्र न करूं(16){70}
(16) इससे मालूम हुआ कि शागिर्द और शिष्य के कर्तव्यों में से है कि वह शैख़ और उस्ताद के कामों पर आलोचना न करे और प्रतीक्षा करे कि वह खुद ही उसकी हिकमत जा़हिर फ़रमा दे. (मदारिक,अबू सऊद)

18 सूरए कहफ़ दसवाँ रूकू

18 सूरए कहफ़ दसवाँ रूकू

अब दोनों चले यहां तक कि जब किश्ती में सवार हुए(1)
(1) और किश्ती वालों ने हज़रत ख़िज्र अलैहिस्सलाम को पहचान कर कुछ लिये बिना सवार कर लिया. 

उस बन्दे ने उसे चीर डाला(2)
(2) और बसूले या कुलहाड़ी से उसका एक तख़्ता या दो तख़्ते उखाड़ डाले, इसके बावुजूद किश्ती में पानी न आया.

मूसा ने कहा क्या तुमने इसे इसलिये चीरा कि इसके सवारों को डुबा दो, बेशक यह तुमने बुरी बात की(3){71}
(3) हज़रत ख़िज्र ने.

कहा मैं न कहता था कि आप मेरे साथ हरगिज़ न ठहर सकेंगे(4){72}
(4) हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने.

कहा, मुझ से मेरी भूल पर गिरफ़्त न करो(5)
(5) क्योंकि भूल चूक पर शरीअत की पकड़ नहीं.

और मुझ पर मेरे काम में मुश्किल न डालो{73} फिर दोनो चले(6)
(6) यानी किश्ती से उतर कर एक स्थान पर गुज़रे जहाँ लड़के खेल रहे थे.

यहाँ तक कि जब एक लड़का मिला(7)
(7) जो उनमें ख़ूबसूरत था और बालिग़ न हुआ था. कुछ मुफ़स्सिरों ने कहा जवान था और डाका डालता था.

उस बन्दे ने उसे क़त्ल कर दिया मूसा ने कहा, क्या तुमने एक सुथरी जान (8)
(8) जिसका कोई गुनाह साबित न था.

पारा पन्द्रह समाप्त
(सूरए कहफ़ – दसवाँ रूकू जारी)

बे किसी जान के बदले क़त्ल कर दी, बेशक तुमने बहुत बुरी बात की{74} कहा(9)
(9) हज़रत ख़िज्र ने कि ऐ मूसा —

मैं ने आपसे न कहा था कि आप हरगिज़ मेरे साथ न ठहर सकेंगे(10){75}
(10) इसके जवाब में हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने–

कहा इसके बाद मैं तुमसे कुछ पूछूं तो फिर मेरे साथ न रहना बेशक मेरी तरफ़ से तुम्हारा उज्र पूरा हो चुका{76} फिर दोनो चले यहाँ तक कि जब एक गांव वालों के पास आए (11)
(11) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया इस गाँव से मुराद अन्ताकिया है, वहाँ इन हज़रात ने.

उन दहक़ानों से खाना मांगा उन्होंने उन्हें दावत देनी क़ुबूल न की(12)
(12) और मेज़बानी पर तैयार न हुए. हज़रत क़तादा से रिवायत है कि वह बस्ती बहुत बदतर है जहाँ मेहमानों की आवभगत न की जाए.

फिर दोनो ने उस गाँव में एक दीवार पाई कि गिरा चाहती है, उस बन्दे ने(13)
(13) यानी हज़रत ख़िज्र अलैहिस्सलाम ने अपना मुबारक हाथ लगाकर अपनी करामत से.

उसे सीधा कर दिया मूसा ने कहा तुम चाहते तो इसपर कुछ मजदूरी ले लेते (14){77}
(14) क्योंकि यह तो हमारी हाजत का वक़्त है, और बस्ती वालों ने हमारी कुछ आवभगत नहीं की. ऐसी हालत में उनका काम बनाने पर उजरत लेना मुनासिब था. इसपर हज़रत ख़िज्र ने.

कहा यह(15)
(15) वक़्त या इस बार का इन्कार.

मेरी और आपकी जुदाई है, अब मैं आप को इन बातों का फेर बताऊंगा जिन पर आप से सब्र न हो सका(16){78}
(16) और उनके अन्दर जो राज़ थे, उनका इज़हार कर दूंगा.

वह जो किश्ती थी वह कुछ मोहताजों की थी(17)
(17) जो दस भाई थे, उनमें पाँच तो अपंग थे जो कुछ नहीं कर सकते थे, और पाँच स्वस्थ थे जो—

कि दरिया में काम करते थे तो मैंने चाहा कि उसे ऐबदार कर दूं और उनके पीछे एक बादशाह था(18)
(18) कि उन्हें वापसी में उसकी तरफ़ गुज़रना होता. उस बादशाह का नाम जलन्दी था. किश्ती वालों को उसका हाल मालूम न था और उसका तरीक़ा यह था.

कि हर साबुत किश्ती जबरदस्ती छीन लेता (19){79}
(19) और अगर ऐबदार होती, छोड़ देते. इसलिये मैं ने उस किश्ती को ऐबदार कर दिया कि वह उन ग़रीबों के लिये बच रहे.

और वह जो लड़का था उसके माँ बाप मुसलमान थे तो हमें डर हुआ कि वह उनको सरकशी और कुफ़्र पर चढ़ादे (20){80}
(20)और वह उसकी महब्बत में दीन से फिर जाएं और गुमराह हो जाएं, और हज़रत ख़िज्र का यह अन्देशा इस कारण था कि वह अल्लाह के बताए से उसके अन्दर का हाल जानते थे. मुस्लिम शरीफ़ की हदीस में है कि यह लड़का काफ़िर ही पैदा हुआ था.इमाम सुबकी ने फ़रमाया कि अन्दर का हाल जानकर बच्चे को क़त्ल कर देना हज़रत ख़िज्र अलैहिस्सलाम के साथ ख़ास है.- उन्हें इसकी इजाज़त थी. अगर कोई वली किसी बच्चे के ऐसे हाल पर सूचित हो तो उसको क़त्ल करना जायज़ नहीं. किताबे अराइस में है कि जब ख़िज्र अलैहिस्सलाम से हज़रत मूसा ने फ़रमाया कि तुमने सुथरी जान को क़त्ल कर दिया तो यह उन्हें बुरा सा लगा और उन्होंने लड़के का कन्धा तोड़कर उसका गोश्त चीरा तो उसके अन्दर लिखा हुआ था, काफ़िर है, कभी अल्लाह पर ईमान न लाएगा. (जुमल)

तो हमने चाहा कि उन दोनों का रब उससे बहतर(21)
(21) बच्चा गुनाहों और अपवित्रता से पाक और —-

सुथरा और उससे ज़्यादा मेहरबानी मे क़रीब अता करे(22){81}
(22) जो माँ बाप के साथ अदब और सद्व्यवहार और महब्बत रखता हो, रिवायत है कि अल्लाह तआला ने उन्हें एक बेटी अता की जो एक नबी के निकाह में आई और उससे नबी पैदा हुए, जिन के हाथ अल्लाह तआला ने एक उम्मत को हिदायत दी. बन्दे को चाहिये कि अल्लाह तआला के लिखे पर राज़ी रहे, इसी में बेहतरी होती है.
रही वह दीवार, वह शहर के दो यतीम लड़को की थी(23)
(23) जिनके नाम असरम और सरीम थे.

और उसके नीचे उनका खज़ाना था(24)
(24) तिरमिज़ी की हदीस में है कि उस दीवार के नीचे सोना चांदी गड़ा हुआ था. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया उसमें सोने की एक तख़्ती थी उसपर एक तरफ़ लिखा था उस का हाल अजीब हे, जिसे मौत का यक़ीन हो उसको खुशी किस तरह होती है. उसका हाल अजीब है जो तक़दीर का यक़ीन रखे उसको ग़ुस्सा कैसे आता है. उसका हाल अजीब है जिसे रिज़्क़ का यक़ीन हो, वह क्यों लालच में पड़ता है, उसका हाल अजीब है जिसे हिसाब का यक़ीन हो वह कैसे ग़ाफ़िल रहता है. उसका हाल अजीब है जिसको दुनिया के पतन और परिवर्तन का यक़ीन हो वह कैसे संतुष्ट होता है और उसके साथ लिखा था “ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह ” और दूसरी तरफ़ उस तख़्ती पर लिखा था मैं अल्लाह हूँ, मेरे सिवा कोई मअबूद नहीं, मैं यकता हूँ मेरा कोई शरीक नहीं, मैं ने अच्छाई और बुराई पैदा की, उसके लिये खुशी जिसे मैं ने अच्छाई के लिये पैदा किया और उसके हाथों पर भलाई जारी की, उसके लिये तबाही जिसको शर के लिये पैदा किया और उसके हाथों पर बुराई जारी की.

और उनका बाप नेक आदमी था, (25)
(25) उसका नाम काशेह था और यह व्यक्ति परहेज़गार था. हज़रत मुहम्मद इब्ने मुनकदर ने फ़रमाया अल्लाह तआला बन्दे की नेकी से उसकी औलाद को और उसकी औलाद की औलाद को और उसके कुटुम्ब वालो को और उसके महल्लदारों को अपनी हिफ़ाज़त में रखता है.

तो आपके रब ने चाहा कि वो दोनो अपनी जवानी को पहुंचे(26)
(26) और उनकी अक़्ल कामिल हो जाए और वह ताक़तवर और मज़बूत हो जाएं.

और अपना खज़ाना निकालें आपके रब की रहमत से और यह कुछ मैं ने अपने हुकम से न किया,(27)
(27) बल्कि अल्लाह के हुक्म और इल्हाम से किया.

यह फेर है उन बातों का जिस पर आपसे सब्र न हो सका(28){82}
(28) कुछ लोग वली को नबी से बढ़ा देख कर गुमराह हो गए और उन्होंने यह ख़याल किया कि हज़रत मूसा को हज़रत ख़िज्र से इल्म हासिल करने का हुक्म दिया गया जबकि हज़रत ख़िज्र वली हैं. और हक़ीक़त में वली को नबी से बड़ा मानना खुला कुफ़्र है और हज़रत ख़िज्र नबी है और अगर ऐसा न हो जैसा कि कुछ का गुमान है तो यह अल्लाह तआला की तरफ़ से हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के हक़ में आज़माइश है. इसके अलावा यह कि किताब वाले इसे मानते हैं कि यह बनी इस्राईल के पैग़म्बर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का वाक़िआ ही नहीं बल्कि मूसा बिन मासान का वाक़िआ है और वली तो नबी पर ईमान लाने से वली बनता है तो यह नामुमकिन है कि वह नबी से बढ़ जाए (मदारिक) अक्सर उलमा इसपर है और सुफ़िओं के बड़े और इरफ़ान वालों की इसपर सहमति है कि हज़रत ख़िज्र अलैहिस्सलाम ज़िन्दा हैं. शैख अबू अम्र बिन सलाह ने अपने फ़तावा में फ़रमाया कि हज़रत ख़िज्र बेशतर उलमा के नज़दीक ज़िन्दा हैं. यह भी कहा गया है कि हज़रत ख़िज्र और इलियास दोनों ज़िन्दा हैं और हर साल हज के जमाने में मिलते हैं. यह भी आया है कि हज़रत ख़िज्र ने अमृत के चश्मे में स्नान फ़रमाया और उसका पानी पिया. सही क्या है इसका इल्म तो अल्लाह ही को है. (खाज़िन)

18 सूरए कहफ़ ग्यारहवाँ रूकू

18 सूरए कहफ़ ग्यारहवाँ रूकू

और तुम से (1)
(1) अबू जहल वग़ैरह मक्का के क़ाफ़िर या यहूदी. इम्तिहान के तौर पर—– 

जुल क़रनैन को पूछते हैं,(2)
(2) जु़ल क़रनैन का नाम इस्कन्दर है. यह हज़रत ख़िज्र अलैहिस्सलाम के ख़ालाज़ाद भाई हैं. इन्होंने इस्कन्दरिया बसाया और उसका नाम अपने नाम पर रखा. हज़रत ख़िज्र अलैहिस्सलाम उनके वज़ीर और झण्डे के इन्चार्ज थे. दुनिया में ऐसे चार बादशाह हुए हैं जो सारे जगत पर राज करते थे. दो ईमान वाले, हज़रत जुल क़रनैन और हज़रत सुलैमान अला नबिय्यना व अलैहिस्सलाम, और दो काफ़िर, नमरूद और बुख़्ते नस्सर. और बहुत जल्द एक पाँचवें बादशाह और इस उम्मत से होने वाले हैं जिनका नाम हज़रत इमाम मेहदी है, उनकी हुकूमत सारी धरती पर होगी. जु़ल-क़रनैन के नबी होने में मतभेद है. हज़रत अली रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया, वह न नबी थे, न फ़रिश्ते, अल्लाह से महब्बत करने वाले बन्दे थे. अल्लाह ने उन्हें मेहबूब बनाया.

तो तुम फ़रमाओ मैं तुम्हें उसका ज़िक्र पढ़कर सुनाता हूँ{83} बेशक हमने उसे ज़मीन में क़ाबू दिया और हर चीज़ का एक सामान अता फ़रमाया(3){84}
(3) जिस चीज़ की, ख़ल्क यानी सृष्टि को हाजत होती है और जो कुछ बादशाहों को प्रदेश फ़तह करने और दुश्मनों से लड़ने में दरकार होता है, वह सब प्रदान किया.

तो वह एक सामान के पीछे चला(4){85}
(4) सबब या साधन वह चीज़ है जो उद्देश तक पहुंचने का ज़रिया हो, चाहे इल्म हो या क़ुदरत, तो जुलक़रनैन ने जिस उद्देश्य का इरादा किया उसी का साधन इख़्तियार किया.

यहाँ तक कि जब सूरज डूबने की जगह पहुंचा उसे एक काली कीचड़ के चश्मे में डूबता पाया(5)
(5) जुल क़रनैन ने किताबों में देखा था कि साम की औलाद में से एक व्यक्ति अमृत के चश्मे का पानी पियेगा और उसको मौत न आएगी यह देखकर वह उस चश्मे की तलाश में पूर्व और पश्चिम की तरफ़ रवाना हुए और आपके साथ हज़रत ख़िज्र भी थे. वह तो चश्मे तक पहुंच गये और उन्होंने पी भी लिया मगर जुल क़रनैन के भाग्य में न था उन्होंने न पाया. इस सफ़र में पश्चिम की तरफ़ रवाना हुए तो जहाँ तक आबादी है वो सब मंजिलें तय कर डालीं और पश्चिम दिशा में वहाँ पहुंचे जहाँ आबादी का नामों  निशान बाक़ी न रहा, वहाँ उन्हें सूरज अस्त होते समय ऐसा नज़र आया जैसे कि वह काले चश्मे में डूबता है जैसा कि दरिया में सफ़र करने वाले को पानी में डूबता मेहसूस होता है.

और वहाँ (6)
(6) उस चश्मे के पास.

एक क़ौम मिली(7)
(7) जो शिकार किये हुए जानवरों की खालें पहने थे. इसके सिवा उनके बदन पर और कोई लिबास न था और दरिया के मुर्दा जानवर उनकी ख़ुराक थे, ये लोग काफ़िर थे.

हमने फ़रमाया, ऐ ज़ुल क़रनैन या तो तू उन्हें अज़ाब दे(8)
(8) और उनमें जो इस्लाम में दाख़िल न हो, उसको क़त्ल कर दे.

या उनके साथ भलाई इख़्तियार करे(9){86}
(9) और उन्हें शरीअत के आदेशों की तअलीम दे अगर वो ईमान लाएं.

अर्ज़ की कि वह जिसने ज़ुल्म किया(10)
(10) यानी कुफ़्र और शिर्क इख़्तियार किया, ईमान न लाया.

उसे तो हम बहुत जल्द सज़ा देंगे(11)
(11) क़त्ल करेंगे. यह उसकी दुनियावी सज़ा है.

फिर अपने रब की तरफ़ फेरा जाएगा(12)
(12) क़यामत में.

वह उसे बुरी मार देगा{87} और जो ईमान लाया और नेक काम किया तो उसका बदला भलाई है(13)
(13) यानी जन्नत.

और बहुत जल्द हम उसे आसान काम कहेंगे (14){88}
(14) और उसको ऐसी चीज़ों का हुक्म देंगे जो उसपर आसान हो, दुश्वार न हो, अब जुल क़रनैन की निस्बत इरशाद फ़रमाया जाता है कि वह—-

फिर एक सामान के पीछे चला(15) {89}
(15) पूरब की दिशा में,

यहाँ तक कि जब सूरज निकलने की जगह पहुंचा उसे ऐसी क़ौम पर निकलता पाया जिनके लिये हमने सूरज से कोई आड़ न रखी(16){90}
(16) उस स्थान पर जिस के और सूर्य के बीच कोई पहाड़ दरख़्त वग़ैरह अड़ी नहीं थी न वहाँ कोई इमारत क़ायम हो सकती थी और वहाँ के लोगों का यह हाल था कि सूर्योंदय के वक़्त गुफ़ाओ में घुस जाते थे और ज़वाल के बाद निकल कर अपना काम काज करते थे.

बात यही है और जो कुछ उसके पास था(17)
(17) फ़ौज, लशकर, हथियार, सल्तनत का सामान, और कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया, सल्तनत और प्रशासन न हुकूमत करने की योग्यता.

सबको हमारा इल्म घेरे है(18){91}
(18) मुफ़स्सिरों ने “कज़ालिका” (बात यही है) के मानी में यह भी कहा है कि तात्पर्य यह है कि जुल क़रनैन ने जैसा पश्चिमी क़ौम के साथ सुलूक किया था, ऐसा ही पूरब वालों के साथ भी किया, क्योंकि ये लोग भी उनकी तरह काफ़िर थे. तो जो उनमें से ईमान लाए उनके साथ एहसान किया और जो कुफ़्र पर अड़े रहे, उन पर अज़ाब.

फिर एक सामान के पीछे चला(19){92}
(19) उत्तर की दिशा में (खाज़िन)

यहाँ तक कि जब दो पहाड़ों के बीच पहुंचा उनसे उधर कुछ ऐसे लोग पाए कि कोई बात समझते मालूम न होते थे(20){93}
(20) क्योंकि उनकी ज़बान अजीब थी, उनके साथ इशारे वग़ैरह की मदद से बड़ी कठिनाई से बात की जा सकती थी.

उन्होंने कहा ऐ ज़ुल क़रनैन बेशक याजूज माजूज (21)
(21) यह याफ़िस बिन नूह अलैहिस्सलाम की औलाद से फ़सादी गिरोह हैं, उनकी संख्या बहुत ज़्यादा है ज़मीन में फ़साद करते थे. रबीअ के ज़माने में निकलते थे तो खेतियाँ और सब्ज़े सब खा जाते थे, कुछ न छोड़ते थे और सूखी चीज़ें लादकर ले जाते थे. आदमियों को खा लेते थे, दरिन्दों, वहशी जानवरों, साँपों, बिच्छुओं तक को खा जाते थे. हज़रत जुल-क़रनैन से लोगो ने उनकी शिकायत की कि वो—-

ज़मीन में फ़साद मचाते हैं तो क्या हम आपके लिये कुछ माल मुकर्रर कर दें इस पर कि आप हमें और उनमें एक दीवार बना दें (22){94}
(22) ताकि वो हम तक न पहुंच सके और हम उनकी शरारतों और आतंक से सुरक्षित रहे.

कहा वह जिसपर मुझे मेरे रब ने क़ाबू दिया है बेहतर है(23)
(23) यानि अल्लाह के फ़ज़्ल से मेरे पास बहुत सा माल और क़िस्म क़िस्म का सामान मौजूद है, तुमसे कुछ लेने की हाजत नहीं.

तो मेरी मदद ताक़त से करो(24)
(24) और जो काम मैं बताऊं, वह पूरा करो.

मैं तुम में और उनमें एक मज़बूत आढ़ बना दूँ(25){95}
(25) उन लोगों ने अर्ज़ किया, फिर हमारे लिये क्या सेवा है, फ़रमाया—

मेरे पास लोहे के तख़्ते लाओ,(26)
(26) और बुनियाद खुदवाई, जब पानी तक पहुंची तो उसमें पत्थर पिघलाए हुए तांबे से जमाए गए और लोहे के तख़्ते ऊपर नीचे कर उनके बीच लकड़ी और कोयला भर दिया और आग दे दी. इस तरह यह दीवार पहाड़ की ऊंचाई तक बलन्द कर दी गई और दोनों पहाड़ों के बीच कोई जगह न छोड़ी गई. ऊपर से पिघला हुआ तांबा दीवार में पिला दिया गया. यह सब मिलकर एक सख़्त जिस्म बन गया.

यहाँ तक कि जब वो दीवार दोनों पहाड़ों के किनारों से बराबर कर दी कहा धौंको, यहाँ तक कि जब उसे आग कर दिया कहा लाओ मैं इसपर गला हुआ तांबा उंडेल दूं {96} तो याजूज माजूज उसपर न चढ़ सके और न उसमें सूराख़ कर सके{97} कहा(27)
(27) जुल-क़रनैन की.—

यह मेरे रब की रहमत है, फिर जब मेरे रब का वादा आएगा(28)
(28) और याजूज माजूज के निकलने का वक़्त आ पहुंचेगा, क़यामत के क़रीब—

उसे पाश पाश कर देगा, और मेरे रब का वादा सच्चा है(29){98}
(29) हदीस शरीफ़ में है कि याजूज माजूज रोज़ाना इस दीवार को तोड़ते हैं और दिन भर मेहनत करते करते जब इसके तोड़ने के क़रीब होते है उनमें कोई कहता है अब चलो बाक़ी कल तोड़ लेंगे. दूसरे दिन जब आते हैं तो वह अल्लाह  के हुक्म से दीवार और ज़्यादा मज़बूत हो जाती हे. जब उनके निकलने का वक़्त आएगा तो उनमें कहने वाला कहेगा अब चलो, बाक़ी दीवार  कल तोड़ लेंगे, इन्शाअल्लाह, इन्शाअल्लाह कहने का यह होगा कि उस दिन की मेहनत ज़ाया न जाएगी और अगले दिन उन्हें दीवार उतनी टूटी मिलेगी जितना पहले रोज़ तोड़ गए थे. अब वह निकल जाएंगे और ज़मीन में फ़साद उठाएंगे. क़त्ल व ख़ून करेंगे और चश्मों का पानी पी जाएंगे. जानवरों, दरख़्तों को और जो आदमी हाथ आएंगे उनको खा जाएंगे, मक्कए मुकर्रमा, मदीनए तैय्यिबह और बैतुल मक़दिस में दाख़िल न हो सकेगे. अल्लाह तआला हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की दुआ से उन्हें हलाक करेगा इस तरह कि उनकी गर्दनों में कीड़े पैदा होंगे जो उनकी हालाकत का कारण होंगे. इससे साबित होता है कि याजूज माजूज का निकलना.

और उस दिन हम उन्हें छोड़ देंगे कि उनका एक गिरोह दूसरे पर रेला आवेगा और सूर फूंका जाएगा(30)
(30) क़यामत क़रीब होने की निशानियों में से है.

तो हम सब को(31)
(31) यानी सारी सृष्टि को अज़ाब और सवाब के लिए क़यामत के दिन.

इकट्ठा कर लाएंगे{99} और हम उस दिन जहन्नम काफ़िरों के सामने लाएंगे(32){100}
(32) कि उसको साफ़ देखें.

वो जिनकी आँखों पर मेरी याद से पर्दा पड़ा था (33)
(33) और वह अल्लाह की आयतों और क़ुरआन और हिदायत, और क़ुदरत के प्रमाणों और ईमान से अंधे बने रहे और उनमें से किसी चीज़ को वो न देख सके.

और हक़ (सत्य) बात न सुन सकते थे(34){101}
(34) अपने दुर्भाग्य से, रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के साथ दुश्मनी रखने के कारण.

18 सूरए कहफ़ बारहवाँ रूकू

18 सूरए कहफ़ बारहवाँ रूकू

तो क्या काफ़िर यह समझते हैं कि मेरे बन्दों को(1)
(1) जैसा कि हज़रत ईसा और  हज़रत उज़ैर और फ़रिश्ते.

मेरे सिवा हिमायती बना लेंगे,(2)
(2) और उससे कुछ नफ़ा पाएंगे, ये गुमान ग़लत है. बल्कि वो बन्दे उनसे बेज़ार हैं और  बेशक हम उनके इस शिर्क पर अज़ाब करेंगे.

बेशक हमने काफ़िरों की मेहमानी को जहन्नम तैयार कर रखी है{102} तुम फ़रमाओ क्या हम तुम्हें बतादें कि सब से बढ़कर नाक़िस (दूषित) कर्म किन के हैं(3){103}
(3) यानी वो कौन लोग हैं जो अमल करके थके और  मेहनत उठाई और  यह उम्मीद करते रहे कि उन कर्मों पर पुण्य से नवाज़े जाएंगे मगर इसके बजाय हलाकत और  बर्बादी में पड़े. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया वो यहूदी और  ईसाई हैं कुछ मुफ़स्सिरों ने कहा कि वो पादरी लोग हैं जो दुनिया से अलग थलग रहते थे. हज़रत अली रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि ये ख़ारिजी लोग हैं.

उनके जिनकी सारी कोशिश दुनिया की ज़िन्दगी में गुम गई (4)
(4) और  कर्म बातिल हो गए.

और वो इस ख़याल में हैं कि हम अच्छा काम कर रहे हैं{104} ये लोग जिन्हों ने अपने रब की आयतों और उसका मिलना न माना(5)
(5) रसूल और क़ुरआन पर ईमान न लाए और मरने के बाद उठाए जाने और हिसाब और सवाब व अज़ाब के इन्कारी रहे.

तो उनका किया धरा सब अकारत है तो हम उनके लिए क़यामत के दिन कोई तौल न क़ायम करेंगे(6){105}
(6) हज़रत अबू सईद ख़ुदरी रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि क़यामत के दिन कुछ लोग ऐसे कर्म लाएंगे जो उनके ख़याल में मक्कए मुकर्रमा के पहाड़ों से बड़े होंगे लेकिन जब वो तौले जाएंगे तो उनमें वज़न कुछ न होगा.

यह उनका बदला है जहन्नम उसपर कि उन्हों ने कुफ़्र किया और मेरी आयतों और मेरे रसूलों की हंसी बनाई{106} बेशक जो ईमान लाए और अच्छे काम किये फ़िरदौस के बाग़ उनकी मेहमानी है(7){107}
(7)  हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहो अन्हो से रिवायत है सैयदे आलम सल्लल्लाहो तआला अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया कि जब अल्लाह से मांगों तो फ़िरदौस मांगों क्योंकि वह जन्नतों में सबके बीच और  सबसे बलन्द है और उसपर रहमान का अर्श है और उसी से जन्नत की नेहरें जारी होती है. हज़रत कअब ने फ़रमाया कि फ़िरदौस जन्नतों में सबसे अअला है, इसमें नेकियों का हुक्म करने वाले और बदियों से रोकने वाले ऐश करेंगे.

वो हमेशा उन ही में रहेंगे उनसे जगह बदलना न चाहेंगे(8){108}
(8)  जिस तरह दुनिया मे इन्सान कैसी ही बेहतर जगह हो, उस से और बलन्द जगह की तलब रखता है. यह बात वहाँ न होगी क्योंकि वो जानते होंगे कि अल्लाह के फ़ज़्ल से उन्हें बहुत ऊंचा मकान और उसमें रहना हासिल है.

तुम फ़रमा दो अगर समन्दर मेरे रब की बातों के लिये सियाही हो तो ज़रूर समन्दर ख़त्म हो जाएगा और मेरे रब की बातें ख़त्म न होंगी अगरचे हम वैसा ही और उसकी मदद को ले आएं(9){109}
(9) यानी अगर अल्लाह तआला के इल्म व हिकमत के कलिमात लिखे जाएं और उनके लिये सारे समन्दरों का पानी रौशनाई बना दिया जाए और सारी सृष्टि लिखे तो वो कलिमात ख़त्म न हों और  यह सारा पानी ख़त्म हो जाए और इतना ही और भी ख़त्म हो जाए. मतलब यह है कि उसके इल्म और हिकमत का अन्त नहीं. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि यहूदियों ने कहा ऐ मुहम्मद!(सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) आपका ख़्याल है कि हमें हिकमत दी गई और आपकी किताब में है कि जिसे हिकमत दी गई उसे बहुत सी भलाई दी गई. फिर आप कैसे फ़रमाते हैं कि तुम्हें नहीं दिया गया मगर थोड़ा इल्म. इसपर यह आयत उतरी. एक क़ौल यह है कि जब आयत “वमा ऊतीतुम मिनल इल्मे इल्ला क़लीलन” उतरी तो यहूदियों ने कहा कि हमें तौरात का इल्म दिया और उसमें हर चीज़ का इल्म है. इसपर यह आयत उतरी. मतलब यह है कि कुल चीज़ का इल्म भी अल्लाह के इल्म के सामने कम है और उतनी भी निस्बत नहीं रखता जितनी एक बूंद की समन्दर से हो.

तुम फ़रमाओ ज़ाहिर सूरते बशरी में तो मैं तुम जैसा हूँ,(10)
(10) कि मुझ पर आदमी की सी तकलीफ़ें और  बीमारियाँ आती है और विशेष सूरत में भी आपका जैसा नहीं कि अल्लाह तआला ने आपको हुस्न और सूरत में सबसे अअला और  ऊंचा किया और  हक़ीक़त और  रूह और  बातिन के ऐतिबार से तो सारे नबी आदमियों की विशेषताओ और  गुणों से ऊंचे हैं जैसा कि क़ाज़ी अयाज़ की शिफ़ा में है और शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने मिश्कात की शरह में फ़रमाया कि नबियों के जिस्म और ज़ाहिरी बातें तो आदमियों की तरह रखी गई और  उनकी आत्मा और बातिन आदमियत से ऊंची और  नूरानियत की बलन्दी पर है. शाह अब्दुल अज़ीज़ साहब मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने सूरए बददुहा की तफ़सीर में फ़रमाया कि आपकी बशरियत का वुजूद असला न रहे और  अनवारे हक़ का ग़लबा आप पर अलद दवाम हासिल हो, हर हाल में आपकी ज़ात और  कमालात में आपका कोई भी मिस्ल नहीं. इस आयत में आपको अपनी ज़ाहिरी सूरते बशरिया के बयान का इज़हार विनम्रता के लिये हुक्म फ़रमाया गया. यही फ़रमाया है हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहे अन्हुमा ने .(खाज़िन) किसी को जायज़ नहीं कि हुज़ूर को अपने जैसा बशर कहे क्योंकि जो कलिमात इज़्ज़त वाले लोग विनम्रता के तौर पर कहते हैं उनका कहना दूसरों के लिये जायज़ नहीं होता. दूसरे यह कि जिसको अल्लाह तआला ने बड़ी बुज़ुर्गी और  बलन्द दर्जें अता फ़रमाए हों उसकी इस बुज़ुर्गी और दर्ज़ों का ज़िक्र छोड़कर ऐसी सामान्य विशेषता या गुण का ज़िक्र करना जो हर व्यक्ति में पाया जाए, उन कमालात के न मानने के बराबर है. तीसरे यह कि क़ुरआन शरीफ़ में जगह जगह काफ़िरों का तरीक़ा बताया गया है कि वो नबियों को अपने जैसा बशर कहते थे और  इसी से गुमराही में जकड़े गए. फिर इस आयत के बाद आयत “यूहू इलैया” में हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के विशेष इल्म और  अल्लाह की बारगाह में उनकी बुज़ुर्गी का बयान है.

मुझे वही आती है कि तुम्हारा मअबुद एक ही मअबुद है(11)
(11) उसका कोई शरीक़ नहीं.

तो जिसे अपने रब से मिलने की उम्मीद हो उसे चाहिये कि नेक काम करे और अपने रब की बन्दगी में किसी को शरीक न करे(12){110}
(12) बड़े शिर्क से भी बचे और रिया यानी दिखावे से भी, जिसके छोटा शिर्क कहते हैं. मुस्लिम शरीफ़ में है कि जो शख़्स सूरए कहफ़ की पहली दस आयतें हिफ़्ज़ करे, अल्लाह तआला उसको दज्जाल के फ़ित्ने से मेहफ़ूज़ रखेगा. यह भी हदीस शरीफ़ में है कि जो शख़्स सूरए कहफ़ को पढे वह आठ रोज़ तक हर फ़ित्ने से मेहफ़ूज़ रहेगा.

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