Tafseer Surah al-furqan From Kanzul Imaan

25 सूरए फ़ुरक़ान

25 सूरए फ़ुरक़ान

بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
تَبَارَكَ ٱلَّذِى نَزَّلَ ٱلْفُرْقَانَ عَلَىٰ عَبْدِهِۦ لِيَكُونَ لِلْعَٰلَمِينَ نَذِيرًا
ٱلَّذِى لَهُۥ مُلْكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ وَلَمْ يَتَّخِذْ وَلَدًۭا وَلَمْ يَكُن لَّهُۥ شَرِيكٌۭ فِى ٱلْمُلْكِ وَخَلَقَ كُلَّ شَىْءٍۢ فَقَدَّرَهُۥ تَقْدِيرًۭا
وَٱتَّخَذُوا۟ مِن دُونِهِۦٓ ءَالِهَةًۭ لَّا يَخْلُقُونَ شَيْـًۭٔا وَهُمْ يُخْلَقُونَ وَلَا يَمْلِكُونَ لِأَنفُسِهِمْ ضَرًّۭا وَلَا نَفْعًۭا وَلَا يَمْلِكُونَ مَوْتًۭا وَلَا حَيَوٰةًۭ وَلَا نُشُورًۭا
وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓا۟ إِنْ هَٰذَآ إِلَّآ إِفْكٌ ٱفْتَرَىٰهُ وَأَعَانَهُۥ عَلَيْهِ قَوْمٌ ءَاخَرُونَ ۖ فَقَدْ جَآءُو ظُلْمًۭا وَزُورًۭا
وَقَالُوٓا۟ أَسَٰطِيرُ ٱلْأَوَّلِينَ ٱكْتَتَبَهَا فَهِىَ تُمْلَىٰ عَلَيْهِ بُكْرَةًۭ وَأَصِيلًۭا
قُلْ أَنزَلَهُ ٱلَّذِى يَعْلَمُ ٱلسِّرَّ فِى ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ۚ إِنَّهُۥ كَانَ غَفُورًۭا رَّحِيمًۭا
وَقَالُوا۟ مَالِ هَٰذَا ٱلرَّسُولِ يَأْكُلُ ٱلطَّعَامَ وَيَمْشِى فِى ٱلْأَسْوَاقِ ۙ لَوْلَآ أُنزِلَ إِلَيْهِ مَلَكٌۭ فَيَكُونَ مَعَهُۥ نَذِيرًا
أَوْ يُلْقَىٰٓ إِلَيْهِ كَنزٌ أَوْ تَكُونُ لَهُۥ جَنَّةٌۭ يَأْكُلُ مِنْهَا ۚ وَقَالَ ٱلظَّٰلِمُونَ إِن تَتَّبِعُونَ إِلَّا رَجُلًۭا مَّسْحُورًا
ٱنظُرْ كَيْفَ ضَرَبُوا۟ لَكَ ٱلْأَمْثَٰلَ فَضَلُّوا۟ فَلَا يَسْتَطِيعُونَ سَبِيلًۭا

सूरए फ़ुरक़ान मक्का में उतरी, इसमें 77 आयतें, 6 रूकू हैं.
पहला रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए फ़ुरक़ान मक्के में उतरी. इसमें 6 रूकू, 77 आयतें, 812 कलिमे और 3703 अक्षर है.

बड़ी बरकत वाला है वह जिसने उतारा क़ुरआन अपने बन्दे पर(2)
(2) यानी सैयदे आलम मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर.

जो सारे जगत को डर सुनाने वाला हो(3){1}
(3) इसमें हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की रिसालत के सार्वजनिक होने पर बयान है कि आप सारी सृष्टि की तरफ़ रसूल बनाकर भेजे गए, जिन्न हों या इन्सान, फ़रिश्ते हों या दूसरी मख़लूक़, सब आपके उम्मती हैं क्योंकि आलम मासिवल्लाह को कहते हैं और उसमें ये सब दाख़िल हैं. फ़रिश्तों को इससे अलग करना, जैसा कि जलालैन में शैख़ महल्ली से और कबीर में इमाम राज़ी से और शअबलि ईमान में बेहक़ी से सादिर हुआ, बे-दलील है. और इजमाअ का दावा साबित नहीं. चुनांचे इमाम सुबकी और बाज़री और इब्ने हज़म और सियूती ने इसका तअक्क़ुब किया और खुद इमाम राज़ी को तसलीम है कि आलम अल्लाह को छोडकर सब को कहते हैं. तो वह सारी सृष्टि को शामिल है, फ़रिश्तों को इससे अलग करने पर कोई दलील नहीं. इसके अलावा मुस्लिम शरीफ़ की हदीस में है – उर्सिल्तु इलल ख़ल्क़े काफ्फ़तन, यारी मैं सारी सृष्टि की तरफ़ रसूल बनाकर भेजा गया. अल्लामा अली क़ारी ने मिर्क़ात में इसकी शरह में फ़रमाया, यानी तमाम मौजूदात की तरफ़, जिन्न हों या इन्सान, फ़रिश्ते हों या जानवर या पेड़ पौदे या पत्थर. इस मसअले की पूरी व्याख्या तफ़सील के साथ इमाम क़ुस्तलानी की मवाहिबुल लदुनियह में है.

वह जिसके लिये है आसमानों और ज़मीन की बादशाहत और उसने न इख़्तियार फ़रमाया बच्चा(4)
(4) इसमें यहूद और ईसाइयों का रद है जो हज़रत उज़ैर और मसीह अलैहुमस्सलाम को ख़ुदा का बेटा कहते हैं.

और उसकी सल्तनत में कोई साझी नहीं(5)
(5) इसमें बुत परस्तों का रद है जो बुतों को ख़ुदा का शरीक ठहराते हैं.

उसने हर चीज़ पैदा करके ठीक अन्दाज़े पर रखी{2} और लोगों ने उसके सिवा और ख़ुदा ठहरा लिये(6)
(6) यानी बुत परस्तों ने बुतों को ख़ुदा ठहराया जो ऐसे आजिज़ और बेक़ुदरत है.

कि वो कुछ नहीं बनाते और ख़ुद पैदा किये गए हैं और ख़ुद अपनी जानों के भले बुरे के मालिक नहीं और न मरने का इख़्तियार न जीने का न उठने का{3} और काफ़िर बोले(7)
(7) यानी नज़र बिन हारिस और उसके साथी क़ुरआन की निस्बत, कि..

यह तो नहीं मगर एक बोहतान जो उन्होंने बना लिया है(8)
(8) यानी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने.

और इसपर और लोगों ने(9)
(9) और लोगों से नज़र बिन हारिस की मुराद यहूदी थे और अदास व यसार वग़ैरह एहले किताब.

उन्हें मदद दी है, बेशक वो(10)
(10) नज़र बिन हारिस वग़ैरह मुश्रिक, जो यह बेहूदा बात कहने वाले थे.

ज़ुल्म और झूट पर आए{4} और बोले(11)
(11) वही मुश्रिक लोग क़ुरआन शरीफ़ की निस्बत, कि यह रूस्तम और स्फ़न्दयार वग़ैरह के क़िस्सों की तरह.

अगलों की कहानियां हैं जो उन्होंने(12)
(12) यानी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने.

लिख ली हैं तो वो उनपर सुब्ह शाम पढ़ी जाती हैं{5} तुम फ़रमाओ इसे तो उसने उतारा है जो आसमानों और ज़मीन की हर छुपी बात जानता है(13)
(13) यानी क़ुरआन शरीफ़ अज्ञात यानी ग़ैब की उलूम पर आधारित हे. यह साफ़ दलील है इसकी कि वह अल्लाह की तरफ़ से है जो सारे ग़ैब जानता है.

बेशक वह बख़्शने वाला मेहरबान है(14){6}
(14) इसीलिये काफ़िरों को मोहलत देता है और अज़ाब में जल्दी नहीं फ़रमाता.

और बोले(15)
(15) क़ुरैश के काफ़िर.

इस रसूल को क्या हुआ खाना खाता है और बाज़ार में चलता है, (16)
(16) इससे उनकी मुराद यह थी कि आप नबी होते तो न खाते न बाज़ारों में चलते और यह भी न होता तो..

क्यों न उतारा गया उनके साथ कोई फ़रिश्ता कि उनके साथ डर सुनाता(17){7}
(17) और उनकी तस्दीक़ करता और उनकी नबुव्वत की गवाही देता.

या ग़ैब से उन्हें कोई ख़ज़ाना मिल जाता या उनका कोई बाग़ होता जिसमें से खाते,  (18)
(18) मालदारों की तरह.

और ज़ालिम बोले  (19)
(19) मुसलमानों से.

तुम तो पैरवी नहीं करते मगर एक ऐसे मर्द की जिसपर जादू हुआ(20){8}
(20) और मआज़ल्लाह, उसकी अक़्ल जगह पर न रही, ऐसी तरह तरह की बेहूदा बातें उन्हों ने बकीं.

ऐ मेहबूब देखो कैसी कहावतें तुम्हारे लिये बना रहे हैं, तो गुमराह हुए कि अब कोई राह नहीं पाते{9}

25 सूरए फ़ुरक़ान – दूसरा रूकू

25 सूरए फ़ुरक़ान – दूसरा रूकू

تَبَارَكَ ٱلَّذِىٓ إِن شَآءَ جَعَلَ لَكَ خَيْرًۭا مِّن ذَٰلِكَ جَنَّٰتٍۢ تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَٰرُ وَيَجْعَل لَّكَ قُصُورًۢا
بَلْ كَذَّبُوا۟ بِٱلسَّاعَةِ ۖ وَأَعْتَدْنَا لِمَن كَذَّبَ بِٱلسَّاعَةِ سَعِيرًا
إِذَا رَأَتْهُم مِّن مَّكَانٍۭ بَعِيدٍۢ سَمِعُوا۟ لَهَا تَغَيُّظًۭا وَزَفِيرًۭا
وَإِذَآ أُلْقُوا۟ مِنْهَا مَكَانًۭا ضَيِّقًۭا مُّقَرَّنِينَ دَعَوْا۟ هُنَالِكَ ثُبُورًۭا
لَّا تَدْعُوا۟ ٱلْيَوْمَ ثُبُورًۭا وَٰحِدًۭا وَٱدْعُوا۟ ثُبُورًۭا كَثِيرًۭا
قُلْ أَذَٰلِكَ خَيْرٌ أَمْ جَنَّةُ ٱلْخُلْدِ ٱلَّتِى وُعِدَ ٱلْمُتَّقُونَ ۚ كَانَتْ لَهُمْ جَزَآءًۭ وَمَصِيرًۭا
لَّهُمْ فِيهَا مَا يَشَآءُونَ خَٰلِدِينَ ۚ كَانَ عَلَىٰ رَبِّكَ وَعْدًۭا مَّسْـُٔولًۭا
وَيَوْمَ يَحْشُرُهُمْ وَمَا يَعْبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ فَيَقُولُ ءَأَنتُمْ أَضْلَلْتُمْ عِبَادِى هَٰٓؤُلَآءِ أَمْ هُمْ ضَلُّوا۟ ٱلسَّبِيلَ
قَالُوا۟ سُبْحَٰنَكَ مَا كَانَ يَنۢبَغِى لَنَآ أَن نَّتَّخِذَ مِن دُونِكَ مِنْ أَوْلِيَآءَ وَلَٰكِن مَّتَّعْتَهُمْ وَءَابَآءَهُمْ حَتَّىٰ نَسُوا۟ ٱلذِّكْرَ وَكَانُوا۟ قَوْمًۢا بُورًۭا
فَقَدْ كَذَّبُوكُم بِمَا تَقُولُونَ فَمَا تَسْتَطِيعُونَ صَرْفًۭا وَلَا نَصْرًۭا ۚ وَمَن يَظْلِم مِّنكُمْ نُذِقْهُ عَذَابًۭا كَبِيرًۭا
وَمَآ أَرْسَلْنَا قَبْلَكَ مِنَ ٱلْمُرْسَلِينَ إِلَّآ إِنَّهُمْ لَيَأْكُلُونَ ٱلطَّعَامَ وَيَمْشُونَ فِى ٱلْأَسْوَاقِ ۗ وَجَعَلْنَا بَعْضَكُمْ لِبَعْضٍۢ فِتْنَةً أَتَصْبِرُونَ ۗ وَكَانَ رَبُّكَ بَصِيرًۭا

बड़ी बरकत वाला है वह कि अगर चाहे तो तुम्हारे लिये बहुत बेहतर उससे कर दे(1)
(1) यानी शीघ्र आपको उस ख़ज़ाने और बाग़ से बेहतर अता फ़रमादे जो ये काफ़िर कहते हैं.

जन्नते जिनके नीचे नहरें बहें और करेगा तुम्हारे लिये ऊंचे ऊंचे महल {10} बल्कि ये तो क़यामत को झुटलाते हैं, और जो क़यामत को झुटलाए हमने उसके लिये तैयार कर रखी है भड़कती हुई आग{11} जब वह उन्हें दूर जगह से दीखेंगी (2)
(2) एक बरस की राह से या सौ बरस की राह से. दोनो क़ौल है. और आग का देखना कुछ दूर नहीं. अल्लाह तआला चाहे तो उसको ज़िन्दगी़, बु़द्धि और देखने की शक्ति अता फ़रमा दे. और कुछ मुफ़स्सिरों ने कहा कि मुराद जहन्नम के फ़रिश्तों का देखना है.

तो सुनेंगे उसका जोश मारना और चिंघाड़ना{12} और जब उसकी किसी तंग जगह में डाले जाएंगे (3)
(3) जो निहायत कर्ब और बेचैनी पैदा करने वाली हो.

ज़ंजीरों में जकड़े हुए (4)
(4) इस तरह कि उनके हाथ गर्दनों से मिलाकर बांध दिये गए हों या इस तरह कि हर हर काफ़िर अपने अपने शैतानों के साथ ज़ंजीरों में जकड़ा हुआ हो.

तो वहां मौत मांगेगे(5){13}
(5) और हाय ऐ मौत आजा, हाय ऐ मौत आजा, का शोर मचाएंगे, हदीस शरीफ़ में है कि पहले जिस शख़्स को आग का लिबास पहनाया जाएगा वह इब्लीस है और उसकी ज़र्रियत उसके पीछे होगी और ये सब मौत मौत पुकारते होंगे, उनसे….

फ़रमाया जाएगा आज एक मौत न मांगो और बहुत सी मौते मांगों(6){14}
(6) क्योंकि तुम तरह तरह के अज़ाबों में जकड़े जाओगे.

तुम फ़रमाओ क्या यह(7)
(7) अज़ाब और जहन्नम की भयानकता, जिसका जिक्र किया गया.

भला या वो हमेशगी के बाग़ जिसका वादा डर वालों को है, वह उनका सिला और अंजाम है{15} उनके लिये वहाँ मनमानी मुरादें है जिनमें हमेशा रहेंगे, तुम्हारे रब के ज़िम्मे वादा है मांगा हुआ(8){16}
(8) यानी मांगने के लायक़ या वह जो ईमान वालों ने दुनिया में यह अर्ज़ करके मांगा- रब्बना आतिना फ़िद दुनिया हसनतौं व फ़िल आख़िरते हसनतौं, या यह अर्ज़ करके- रब्बना व आतिना मा वअत्तना अला रूसुलिका.

और जिस दिन इकट्ठा करेगा उन्हें(9)
(9) यानी मुश्रिकों को.

और जिनको अल्लाह के सिवा पूजते हैं(10)
(10) यानी उनके बातिल मअबूदों को, चाहे वो जानदार हों या गै़र जानदार. कल्बी ने कहा कि इन माबूदों से बुत मुराद हैं. उन्हें अल्लाह तआला बोलने की शक्ति देगा.

फिर उन मअबूदों से फ़रमाएगा क्या तुमने गुमराह कर दिये ये मेरे बन्दे या ये ख़ुद ही राह भूले(11){17}
(11)  अल्लाह तआला हक़ीक़ते हाल का जानने वाला है उससे कुछ छुपा नहीं, यह सवाल मुश्रिकों को ज़लील करने के लिये है कि उनके मअबूद उन्हें झुटलाएं तो उनकी हसरत और ज़िल्लत और ज़्यादा हो.

वो अर्ज़ करेंगे पाकी है तुझ को(12)
(12) इससे कि कोई तेरा शरीक हो.

हमें सज़ावार (मुनासिब) न था कि तेरे सिवा किसी और को मौला बनाएं(13)
(13) तो हम दूसरे को क्या तेरे ग़ैर के माबूद बनाने का हुक्म दे सकते थे. हम तेरे बन्दे हैं.

लेकिन तूने उन्हें और उनके बाप दादाओ को बरतने दिया(14)
(14) और उन्हें माल, औलाद और लम्बी उम्र और सेहत व सलामती इनायत की.

यहाँ तक कि वो तेरी याद भूल गए. और ये लोग थे ही हलाक होने वाले(15) {18}
(15) शक़ी. इसके बाद काफ़िरों से फ़रमाया जाएगा.

तो अब मअबूदों ने तुम्हारी बात झुटला दी तो अब तुम न अज़ाब फेर सको न अपनी मदद कर सको, और तुम में जो ज़ालिम है हम उसे बड़ा अज़ाब चखाएंगे{19} और हमने तुमसे पहले जितने रसूल भेजे सब ऐसे ही थे खाना खाते और बाज़ारों में चलते(16)
(16) यह काफ़िरों के उस तअने का जवाब है जो उन्होंने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर किया था कि वह बाज़ारों में चलते हैं, खाना खाते हैं. यहाँ बताया गया कि यह सारे काम नबुव्वत के विपरीत नहीं है बल्कि ये सारे नबियों की आदतें रही हैं.

और हमने तुममें एक को दूसरे की जांच किया है(17)
(17) शरीफ़ जब इस्लाम लाने का इरादा करते थे तो ग़रीबों को देख कर यह ख़याल करते कि ये हम से पहले इस्लाम ला चुके, इनको हमपर एक फ़ज़ीलत रहेगी. इस ख़याल से वो इस्लाम से दूर रहते और शरीफ़ों के लिये ग़रीब लोग आज़माइश बन जाते, एक क़ौल यह है कि यह आयत अबू जहल और वलीद बिन अक़बा और आस बिन वाइल सहमी और नज़र बिन हारिस के बारे में उतरी. उन लोगों ने हज़रत अबू ज़र और इब्ने मसऊद और अम्मार बिन यासिर और बिलाल व सुहैब व आमिर बिन फ़हीरा को देखा कि पहले से इस्लाम लाए हैं तो घमण्ड से कहा कि हम भी इस्लाम ले आएं तो उन्हीं जैसे हो जाएंगे तो हम में और उनमें फ़र्क़ ही क्या रह जाएगा. एक क़ौल यह है कि यह आयत मुसलमान फ़क़ीरों की आज़माइश में उतरी जिनकी क़ुरैश के काफ़िर हंसी बनाते थे और कहते थे कि ये लोग मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) का अनुकरण करने वाले लोग हैं जो हमारे ग़ुलाम और नीच हैं. अल्लाह तआला ने यह आयत उतारी और उन ईमान वालों से फ़रमाया (ख़ाज़िन)

और ऐ लोगो क्या तुम सब्र करोगे (18)
(18) इस ग़रीबी और सख़्ती पर, और काफ़िरों की इस बदगोई पर.

और ऐ मेहबूब तुम्हारा रब देखता है (19){20}
(19) उसको जो सब्र करे और उसको जो बेसब्री करे.

पारा अठ्ठारह समाप्त

25 सूरए फ़ुरक़ान – तीसरा रूकू

उन्नीसवाँ पारा – व क़ालल्लज़ीना
सूरए फ़ुरक़ान (जारी)
25 सूरए फ़ुरक़ान – तीसरा रूकू

۞ وَقَالَ ٱلَّذِينَ لَا يَرْجُونَ لِقَآءَنَا لَوْلَآ أُنزِلَ عَلَيْنَا ٱلْمَلَٰٓئِكَةُ أَوْ نَرَىٰ رَبَّنَا ۗ لَقَدِ ٱسْتَكْبَرُوا۟ فِىٓ أَنفُسِهِمْ وَعَتَوْ عُتُوًّۭا كَبِيرًۭا
يَوْمَ يَرَوْنَ ٱلْمَلَٰٓئِكَةَ لَا بُشْرَىٰ يَوْمَئِذٍۢ لِّلْمُجْرِمِينَ وَيَقُولُونَ حِجْرًۭا مَّحْجُورًۭا
وَقَدِمْنَآ إِلَىٰ مَا عَمِلُوا۟ مِنْ عَمَلٍۢ فَجَعَلْنَٰهُ هَبَآءًۭ مَّنثُورًا
أَصْحَٰبُ ٱلْجَنَّةِ يَوْمَئِذٍ خَيْرٌۭ مُّسْتَقَرًّۭا وَأَحْسَنُ مَقِيلًۭا
وَيَوْمَ تَشَقَّقُ ٱلسَّمَآءُ بِٱلْغَمَٰمِ وَنُزِّلَ ٱلْمَلَٰٓئِكَةُ تَنزِيلًا
ٱلْمُلْكُ يَوْمَئِذٍ ٱلْحَقُّ لِلرَّحْمَٰنِ ۚ وَكَانَ يَوْمًا عَلَى ٱلْكَٰفِرِينَ عَسِيرًۭا
وَيَوْمَ يَعَضُّ ٱلظَّالِمُ عَلَىٰ يَدَيْهِ يَقُولُ يَٰلَيْتَنِى ٱتَّخَذْتُ مَعَ ٱلرَّسُولِ سَبِيلًۭا
يَٰوَيْلَتَىٰ لَيْتَنِى لَمْ أَتَّخِذْ فُلَانًا خَلِيلًۭا
لَّقَدْ أَضَلَّنِى عَنِ ٱلذِّكْرِ بَعْدَ إِذْ جَآءَنِى ۗ وَكَانَ ٱلشَّيْطَٰنُ لِلْإِنسَٰنِ خَذُولًۭا
وَقَالَ ٱلرَّسُولُ يَٰرَبِّ إِنَّ قَوْمِى ٱتَّخَذُوا۟ هَٰذَا ٱلْقُرْءَانَ مَهْجُورًۭا
وَكَذَٰلِكَ جَعَلْنَا لِكُلِّ نَبِىٍّ عَدُوًّۭا مِّنَ ٱلْمُجْرِمِينَ ۗ وَكَفَىٰ بِرَبِّكَ هَادِيًۭا وَنَصِيرًۭا
وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ لَوْلَا نُزِّلَ عَلَيْهِ ٱلْقُرْءَانُ جُمْلَةًۭ وَٰحِدَةًۭ ۚ كَذَٰلِكَ لِنُثَبِّتَ بِهِۦ فُؤَادَكَ ۖ وَرَتَّلْنَٰهُ تَرْتِيلًۭا
وَلَا يَأْتُونَكَ بِمَثَلٍ إِلَّا جِئْنَٰكَ بِٱلْحَقِّ وَأَحْسَنَ تَفْسِيرًا
ٱلَّذِينَ يُحْشَرُونَ عَلَىٰ وُجُوهِهِمْ إِلَىٰ جَهَنَّمَ أُو۟لَٰٓئِكَ شَرٌّۭ مَّكَانًۭا وَأَضَلُّ سَبِيلًۭا

और बोले वो जो(1)
(1) काफ़िर हैं. हश्र  और मरने के बाद दोबारा उठाए जाने को नहीं मानते इसी लिये….

हमारे मिलने की उम्मीद नहीं रखते, हम पर फ़रिश्ते क्यों न उतारे(2)
(2)  हमारे लिये रसूल बनाकर या सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की नबुव्वत और रिसालत के गवाह बनाकर.

या हम अपने रब को देखते(3)
(3)  वह ख़ुद हमें ख़बर दे देता कि सैयदे आलम मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम उसके रसूल हैं.

बेशक अपने जी में बहुत ही ऊंची खींची और बड़ी सरकशी (नाफ़रमानी) पर आए (4){21}
(4) और उनका घमण्ड चरम सीमा को पहुंच गया सरकशी हद से गुज़र गई कि चमत्कारों का अवलोकन करने के बाद, फ़रिश्तों के अपने ऊपर उतरने और अल्लाह तआला को देखने का सवाल किया.

जिस दिन फ़रिश्तों को देखेंगे(5)
(5) यानी मौत के दिन या क़यामत के दिन.

वह दिन मुजरिमों की कोई ख़ुशी का न होगा(6)
(6)  क़यामत के दिन फ़रिश्ते ईमान वालों को ख़ुशख़बरी सुनाएंगे और काफ़िरों से कहेंगे कि तुम्हारे लिये कोई ख़ुशख़बरी नहीं. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि फ़रिश्ते कहेंगे कि मूमिन के सिवा किसी के लिये जन्नत में दाख़िल होना हलाल नहीं. इसलिये वह दिन काफ़िरों के वास्ते बहुत निराशा और दुख का होगा.

और कहेंगे, इलाही हम में उनमें कोई आड़ कर दे रूकी हुई(7){22}
(7) इस कलिमे से वो फ़रिश्तों से पनाह चाहेंगे.

और जो कुछ उन्होंने काम किये थे(8),
(8) कुफ़्र की हालत में,  जैसे रिश्तेदारों से अच्छा सुलूक, मेहमानदारी और अनाथों का ख़याल रखना वग़ैरह.

हमने क़स्द(इरादा) फ़रमाकर उन्हें बारीक़ बारीक़ ग़ुबार(धूल) के बिखरे हुए ज़र्रे कर दिया कि रौज़न (छेद) की धूप में नज़र आते हैं (9){23}
(9) न हाथ से छुए जाएं न उनका साया हो. मुराद यह है कि वो कर्म बातिल कर दिये गए. उनका कुछ फल और कोई फ़ायदा नहीं क्योंकि कर्मों की क़ुबूलियत के लिये ईमान शर्त है और वह उनके पास न था. इसके बाद जन्न्त वालों की बुज़ुर्गी बयान होती है.

जन्नत वालों का उस दिन अच्छा ठिकाना(10)
(10) और उनका स्थान उन घमण्डी मुश्रिकों से बलन्द और बेहतर.

और हिसाब के दोपहर के बाद अच्छी आराम की जगह {24} और जिस दिन फट जाएगा आसमान बादलों से और फ़रिश्ते उतारे जाएंगे पूरी तरह(11){25}
(11) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया, दुनिया का आसमान फटेगा और वहाँ के रहने वाले फ़रिश्ते उतरेंगे और वो सारे ज़मीन वालों से अधिक हैं, जिन्न और इन्सान सबसे. फिर  दूसरा आसमान फटेगा, वहाँ के रहने वाले उतरेंगे, वो दुनिया के आसमान के रहने वालों और जिन्न और इन्सान सब से ज़्यादा हैं. इसी तरह आसमान फटते जाएंगे और हर आसमान वालों की संख्या अपने मातहतों से ज़्यादा है, यहाँ तक कि सातवाँ आसमान फटेगा. फिर कर्रूबी फ़रिश्ते उतरेंगे, फिर अर्श उठाने वाले फ़रिश्ते और यह क़यामत का दिन होगा.

उस दिन सच्ची बादशाही रहमान की है, और वह दिन काफ़िरों पर सख़्त है(12){26}
(12) और अल्लाह के फ़ज़्ल से मुसलमानों पर आसान. हदीस शरीफ़ है कि क़यामत का दिन मुसलमानों पर आसान किया जाएगा यहाँ तक कि वो उनके लिये एक फ़र्ज़ नमाज़ से हल्का होगा जो दुनिया में पढी जाती थी.

और जिस दिन ज़ालिम अपने हाथ चबा चबा लेगा(13)
(13) निराशा और शर्मिन्दगी से. यह हाल अगरचे काफ़िरों के लिये आया है मगर अक़बह दिन अबी मुईत से इसका ख़ास सम्बन्ध है. अक़बह उबई बिन ख़लफ़ का गहरा दोस्त था. हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के फ़रमाने से उसने लाइलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह की गवाही दी और उसके बाद उबई बिन ख़लफ़ के ज़ोर डालने से फिर मुर्तद हो गया. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने उसको मक़तूल होने की ख़बर दी. चुनाँन्चे बद्र में मारा गया. यह आयत उसके बारे में उतरी कि क़यामत के दिन उसको इन्तिहा दर्जे की हसरत और निदामत होगी. इस हसरत में वह अपने हाथ चाब चाब लेगा.

कि हाय किसी तरह से मैं ने रसूल के साथ राह ली होती(14){27}
(14) जन्नत और निजात की और उनका अनुकरण किया होता और उनकी हिदायत क़ुबूल की होती.

हाए, ख़राबी मेरी, हाय किसी तरह मैं ने फ़लाने(अमुक) को दोस्त न बनाया होता{28} बेशक उसने मुझे बहका दिया मेरे पास आई हुई नसीहत से,(15)
(15) यानी क़ुरआन और ईमान से.

और शैतान आदमी को बे मदद छोड़ देता है(16){29}
(16) और बला और अज़ाब उतरने के वक़्त उससे अलाहिदगी करता है. हज़रत अबू हुरैरह रदियल्लाहो अन्हो से अबू दाऊद और तिरमिज़ी में एक हदीस आई है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया, आदमी अपने दोस्त के दीन पर होता है तो देखना चाहिये किस को दोस्त बनाता है. हज़रत अबू सईद खुदरी रदियल्लाहो अन्हो से रिवायत है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया, हमनशीनी न करो मगर ईमानदार के साथ और खाना न खिलाओ मगर परहेज़गार को. बेदीन और बदमज़हब की दोस्ती और उसके साथ मिलना जुलना और महब्बत और सत्कार मना है.

और रसूल ने अर्ज़ की कि ऐ मेरे रब मेरी क़ौम ने इस क़ुरआन को छोड़ने के क़ाबिल ठहरा लिया(17){30}
(17) किसी ने उसको जादू कहा, किसी ने शेअर, और वो लोग ईमान लाने से मेहरूम रहे. इसपर अल्लाह तआला ने हुज़ूर को तसल्ली दी. और आपसे मदद का वादा फ़रमाया जैसा कि आगे इरशाद होता है.

और इसी तरह हमने हर नबी के लिये दुश्मन बना दिये थे मुजरिम लोग,(18)
(18) यानी नबियों के साथ बदनसीबों का यही सुलूक रहा है.

और तुम्हारा रब काफ़ी है हिदायत करने और मदद देने को{31} और काफ़िर बोले, क़ुरआन उनपर एक साथ क्यों न उतार दिया(19)
(19) जैसे कि तौरात व इन्जील व जुबूर में से हर एक किताब एक साथ उतरी थी. काफ़िरों की यह आलोचना बिल्कुल फ़ुज़ूल और निरर्थक है क्योंकि क़ुरआने मजीद का चमत्कारी होना हर हाल में एक सा है चाहे एक बार उतरे या थोड़ा थोड़ा करके, बल्कि थोड़ा थोड़ा उतारने में इसके चमत्कारी होने का और भी भरपूर प्रमाण है कि जब एक आयत उतरी और सृष्टि का उसके जैसा कलाम बनाने से आजिज़ होना ज़ाहिर हुआ, फिर दूसरी उतरी. इसी तरह इसका चमत्कार ज़ाहिर हुआ. इस तरह बराबर आयत-आयत होकर क़ुरआने पाक उतरता रहा और हर दम उसकी बेमिसाली और लोगों की आजिज़ी और लाचारी ज़ाहिर होती रही. ग़रज़ काफ़िरों का ऐतिराज़ केवल बेकार और व्यर्थ है. आयत में अल्लाह तआला थोड़ा थोड़ा करके उतारने की हिकमत ज़ाहिर फ़रमाता है.

हमने यूंही धीरे धीरे इसे उतारा है कि इससे तुम्हारा दिल मज़बूत करें(20)
(20) और संदेश का सिलसिला जारी रहने से आपके दिल को तस्कीन होती रहे और काफ़िरों को हर हर अवसरों पर जवाब मिलते रहें. इसके अलावा यह भी फ़ायदा है कि इसे याद करना सहल और आसान हो.

और हमने इसे ठहर ठहर कर पढ़ा(21){32}
(21) जिब्रईल की ज़बान से थोड़ा थोड़ा बीस या तेईस साल की मुद्दत में. या ये मानी हैं कि हमने आयत के बाद आयत थोड़ा थोड़ा करके उतारा. कुछ ने कहा कि अल्लाह तआला ने हमें क़िरअत में ठहर ठहर कर इत्मीनान से पढने और क़ुरआन शरीफ़ को अच्छी तरह अदा करने का हुक्म फ़रमाया जैसा कि दूसरी आयत में इरशाद हुआ व रत्तिलिल क़ुरआना तर्तीला (और क़ुरआन खूब ठहर ठहर कर पढो – सूरए मुज़्ज़म्मिल, आयत 4)

और वो कोई कहावत तुम्हारे पास न लाएंगे(22)
(22) यानी मुश्रिक आपके दीन के ख़िलाफ़ या आपकी नबुव्वत में आलोचना करने वाला कोई सवाल पेश न कर सकेंगे.

मगर हम हक़ (सत्य) और इससे बेहतर बयान ले आएंगे{33} वो जो जहन्नम की तरफ़ हांके जाएंगे अपने मुंह के बल, उनका ठिकाना सबसे बुरा(23)और वो सबसे गुमराह{34}
(23)  हदीस शरीफ़ में है कि आदमी क़यामत के दिन तीन तरीक़े पर उठाए जाएंगे. एक गिरोह सवारियों पर, एक समूह पैदल और एक जमाअत मुंह के बल घिसटती हुई. अर्ज़ किया गया या रसूलल्लाह, वो मुंह के बल कैसे चलेंगे. फ़रमाया जिसने पाँव पर चलाया हे वही मुंह के बल चलाएगा.

25 सूरए फ़ुरक़ान – चौथा रूकू

25 सूरए फ़ुरक़ान – चौथा रूकू

وَلَقَدْ ءَاتَيْنَا مُوسَى ٱلْكِتَٰبَ وَجَعَلْنَا مَعَهُۥٓ أَخَاهُ هَٰرُونَ وَزِيرًۭا
فَقُلْنَا ٱذْهَبَآ إِلَى ٱلْقَوْمِ ٱلَّذِينَ كَذَّبُوا۟ بِـَٔايَٰتِنَا فَدَمَّرْنَٰهُمْ تَدْمِيرًۭا
وَقَوْمَ نُوحٍۢ لَّمَّا كَذَّبُوا۟ ٱلرُّسُلَ أَغْرَقْنَٰهُمْ وَجَعَلْنَٰهُمْ لِلنَّاسِ ءَايَةًۭ ۖ وَأَعْتَدْنَا لِلظَّٰلِمِينَ عَذَابًا أَلِيمًۭا
وَعَادًۭا وَثَمُودَا۟ وَأَصْحَٰبَ ٱلرَّسِّ وَقُرُونًۢا بَيْنَ ذَٰلِكَ كَثِيرًۭا
وَكُلًّۭا ضَرَبْنَا لَهُ ٱلْأَمْثَٰلَ ۖ وَكُلًّۭا تَبَّرْنَا تَتْبِيرًۭا
وَلَقَدْ أَتَوْا۟ عَلَى ٱلْقَرْيَةِ ٱلَّتِىٓ أُمْطِرَتْ مَطَرَ ٱلسَّوْءِ ۚ أَفَلَمْ يَكُونُوا۟ يَرَوْنَهَا ۚ بَلْ كَانُوا۟ لَا يَرْجُونَ نُشُورًۭا
وَإِذَا رَأَوْكَ إِن يَتَّخِذُونَكَ إِلَّا هُزُوًا أَهَٰذَا ٱلَّذِى بَعَثَ ٱللَّهُ رَسُولًا
إِن كَادَ لَيُضِلُّنَا عَنْ ءَالِهَتِنَا لَوْلَآ أَن صَبَرْنَا عَلَيْهَا ۚ وَسَوْفَ يَعْلَمُونَ حِينَ يَرَوْنَ ٱلْعَذَابَ مَنْ أَضَلُّ سَبِيلًا
أَرَءَيْتَ مَنِ ٱتَّخَذَ إِلَٰهَهُۥ هَوَىٰهُ أَفَأَنتَ تَكُونُ عَلَيْهِ وَكِيلًا
أَمْ تَحْسَبُ أَنَّ أَكْثَرَهُمْ يَسْمَعُونَ أَوْ يَعْقِلُونَ ۚ إِنْ هُمْ إِلَّا كَٱلْأَنْعَٰمِ ۖ بَلْ هُمْ أَضَلُّ سَبِيلًا

और बेशक हमने मूसा को किताब अता फ़रमाई और उसके भाई हारून को वज़ीर किया{35} तो हमने फ़रमाया, तुम दोनों जाओ उस क़ौम की तरफ़ जिसने हमारी आयतें झुटलाईं(1)
(1) यानी फिरऔन क़ौम की तरफ़, चुनांचे वह दोनो हज़रात उनकी तरफ़ गए और उन्हें ख़ुदा का ख़ौफ़ दिलाया और अपनी रिसालत का प्रचार किया, लेकिन उन बदबख़्तों ने उन हज़रात को झुटलाया.

फिर हमने उन्हें तबाह करके हलाक कर दिया{36} और नूह की क़ौम को(2)
(2) …. भी हलाक कर दिया.

जब उन्होंने रसूलों को झुटलाया(3),
(3) यानी हज़रत नूह और हज़रत इद्रीस को और हज़रत शीस को. या यह बात है कि एक रसूल को झुटलाना सारे रसूलों को झुटलाना है. तो जब उन्होंने हज़रत नूह को झुटलाया तो सब रसूलों को झुटलाया.

हमने उनको डुबो दिया और उन्हें लोगों के लिये निशानी कर दिया,(4)
(4) कि बाद वालों के लिये इब्रत हो.

और हमने ज़ालिमों के लिये दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है{37} और आद और समूद (5)
(5) और हज़रत हूद अलैहिस्सलाम की क़ौम आद, और हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम की क़ौम समूद, इन दोनो क़ौमों को भी हलाक किया.

और कुंवें वालों को(6)
(6) यह हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम की क़ौम थी जो बुतों को पूजती थी. अल्लाह तआला ने उनकी तरफ़ हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम को भेजा. आपने उन्हें इस्लाम की तरफ़ बुलाया. उन्होंने सरकशी की, हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम को झुटलाया और आपको कष्ट दिये. उन लोगों के मकान कुंए के गिर्द थे. अल्लाह तआला ने उन्हें हलाक किया और यह सारी क़ौम अपने मकानों समेत उस कुएं के साथ ज़मीन में धंस गई. इसके अलावा और अक़वाल भी हैं.

और उनके बीच में बहुत सी संगतें (क़ौमें)(7){38}
(7)  यानी आद और समूद क़ौम और कुंए वालों के बीच में बहुत सी उम्मतें हैं जिनको नबियों को झुटलाने के कारण अल्लाह तआला ने हलाक किया.

और हमने सब से मिसालें बयान फ़रमाई (8)
(8)  और हुज्जतें क़ायम की और उनमें से किसी को बिना हुज्जत पूरी किये हलाक न किया.

और सबको तबाह करके मिटा दिया{39} और ज़रूर ये(9)
(9) यानी मक्के के काफ़िर अपनी तिजारतों में शाम के सफ़र करते हुए बार बार.

हो आए हैं उस बस्ती पर जिस पर बुरा बरसाव बरसा था, (10)
(10) इस बस्ती से मुराद समूद है जो लूत क़ौम की पाँच बस्तियों में सबसे बड़ी बस्ती थी. इन बस्तियों में एक सब से छोटी बस्ती के लोग तो उस बुरे काम से दूर थे जिसमें बाक़ी चार बस्तियों के लोग जकड़े हुए थे. इसीलिये उन्होंने निजात पाई और वो चार बस्तियाँ अपने बुरे कर्म के कारण आसमान से पत्थर बरसाकर हलाक कर दी गई.

तो क्या ये उसे देखते न थे,(11)
(11)  कि इब्रत पकड़ते और ईमान लाते.

बल्कि उन्हें जी उठने की उम्मीद थी ही नहीं(12){40}
(12) यानी मरने के बाद ज़िन्दा किये जाने के क़ायल न थे कि उन्हें आख़िरत के अज़ाब सवाब की चिन्ता होती.

और जब तुम्हें देखते हैं तो तुम्हें नहीं ठहराते मगर ठ्टटा,(13)
(13) और कहते हैं.

क्या ये हैं जिन को अल्लाह ने रसूल बनाकर भेजा{41} क़रीब था कि ये हमें हमारे ख़ुदाओ से बहक़ा दें अगर हम उनपर सब्र न करते(14)
(14) इससे मालूम हुआ कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की दावत और आपके चमत्कारों ने काफ़िरों पर इतना असर किया था और सच्चे दीन को इस क़द्र साफ़ और स्पष्ट कर दिया था कि स्वयं काफ़िरों को यह इक़रार है कि अगर वो अपनी हठ पर न जमे रहते तो क़रीब था कि बुत परस्ती छोड़ दें और इस्लाम ले आएं यानी इस्लाम की सच्चाई उनपर ख़ूब खुल चुकी थी और शक शुबह मिटा दिया गया था, लेकिन वो अपनी हठ और ज़िद के कारण मेहरूम रहे.

और अब जाना चाहते हैं जिस दिन अज़ाब देखेंगे(15)
(15) आख़िरत में.

कि कौन गुमराह था(16){42}
(16) यह उसका जवाब है कि काफ़िरों ने कहा था क़रीब है कि ये हमें हमारे ख़ुदाओं से बहका दें. यहाँ बताया गया है कि बहक़े हुए तुम खुद हो और आख़िरत में ये तुम को ख़ुद मालूम हो जाएगा और रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तरफ़ बहकाने की निस्बत केवल बेजा और निरर्थक है.

क्या तुमने उसे देखा जिसने अपने जी की ख़्वाहिश को अपना ख़ुदा बना लिया, (17)
(17) और अपनी नफ़सानी ख़्वाहिश को पूजने लगा, उसी का फ़रमाँबरदार हो गया, वह हिदायत किस तरह क़ुबूल करेगा. रिवायत है कि जिहालत के ज़माने के लोग एक पत्थर को पूजते थे और जब कहीं उन्हें कोई दूसरा पत्थर उससे अच्छा नज़र आता, तो पहले को फैंक देते और दूसरे को पूजने लगते.

तो क्या तुम उसकी निगहबानी का ज़िम्मा लोगे (18){43}
(18) कि ख़्वाहिश परस्ती से रोक दो.

या यह समझते हो कि उनमें बहुत कुछ सुनते या समझते हैं, (19)
(19) यानी वो अपनी भरपूर दुश्मनी से न आपकी बात सुनते हैं न प्रमाणों और तर्क को समझते हैं. बेहरे और नासमझ बने हुए हैं.

वो तो नहीं मगर जैसे चौपाए बल्कि उनसे भी बदतर गुमराह(20){44}
(20) क्योंकि चौपाए भी अपने रब की तस्बीह करते हैं. और जो उन्हें खाने को दे, उसके फ़रमाँबरदार रहते हैं और एहसान करने वाले को पहचानते हैं और तकलीफ़ देने वाले से घबराते हैं. नफ़ा देने वाले की तलब करते हैं, घाटा देने वाले से बचते हैं चराहागाहों की राहें जानते हैं. ये काफ़िर उनसे भी बुरे हैं कि न रब की इताअत करते हें, न उसके एहसान को पहचानते हें, न शैतान जैसे दुश्मन की घातों को समझते हैं, न सवाब जैसी बड़े नफ़े वाली चीज़ के तालिब हैं, न अज़ाब जैसी सख़्त ख़तरनाक हलाकत से बचते हैं.

25 सूरए फ़ुरक़ान – पाँचवां रूकू

25 सूरए फ़ुरक़ान – पाँचवां रूकू

أَلَمْ تَرَ إِلَىٰ رَبِّكَ كَيْفَ مَدَّ ٱلظِّلَّ وَلَوْ شَآءَ لَجَعَلَهُۥ سَاكِنًۭا ثُمَّ جَعَلْنَا ٱلشَّمْسَ عَلَيْهِ دَلِيلًۭا
ثُمَّ قَبَضْنَٰهُ إِلَيْنَا قَبْضًۭا يَسِيرًۭا
وَهُوَ ٱلَّذِى جَعَلَ لَكُمُ ٱلَّيْلَ لِبَاسًۭا وَٱلنَّوْمَ سُبَاتًۭا وَجَعَلَ ٱلنَّهَارَ نُشُورًۭا
وَهُوَ ٱلَّذِىٓ أَرْسَلَ ٱلرِّيَٰحَ بُشْرًۢا بَيْنَ يَدَىْ رَحْمَتِهِۦ ۚ وَأَنزَلْنَا مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءًۭ طَهُورًۭا
لِّنُحْۦِىَ بِهِۦ بَلْدَةًۭ مَّيْتًۭا وَنُسْقِيَهُۥ مِمَّا خَلَقْنَآ أَنْعَٰمًۭا وَأَنَاسِىَّ كَثِيرًۭا
وَلَقَدْ صَرَّفْنَٰهُ بَيْنَهُمْ لِيَذَّكَّرُوا۟ فَأَبَىٰٓ أَكْثَرُ ٱلنَّاسِ إِلَّا كُفُورًۭا
وَلَوْ شِئْنَا لَبَعَثْنَا فِى كُلِّ قَرْيَةٍۢ نَّذِيرًۭا
فَلَا تُطِعِ ٱلْكَٰفِرِينَ وَجَٰهِدْهُم بِهِۦ جِهَادًۭا كَبِيرًۭا
۞ وَهُوَ ٱلَّذِى مَرَجَ ٱلْبَحْرَيْنِ هَٰذَا عَذْبٌۭ فُرَاتٌۭ وَهَٰذَا مِلْحٌ أُجَاجٌۭ وَجَعَلَ بَيْنَهُمَا بَرْزَخًۭا وَحِجْرًۭا مَّحْجُورًۭا
وَهُوَ ٱلَّذِى خَلَقَ مِنَ ٱلْمَآءِ بَشَرًۭا فَجَعَلَهُۥ نَسَبًۭا وَصِهْرًۭا ۗ وَكَانَ رَبُّكَ قَدِيرًۭا
وَيَعْبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ مَا لَا يَنفَعُهُمْ وَلَا يَضُرُّهُمْ ۗ وَكَانَ ٱلْكَافِرُ عَلَىٰ رَبِّهِۦ ظَهِيرًۭا
وَمَآ أَرْسَلْنَٰكَ إِلَّا مُبَشِّرًۭا وَنَذِيرًۭا
قُلْ مَآ أَسْـَٔلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ إِلَّا مَن شَآءَ أَن يَتَّخِذَ إِلَىٰ رَبِّهِۦ سَبِيلًۭا
وَتَوَكَّلْ عَلَى ٱلْحَىِّ ٱلَّذِى لَا يَمُوتُ وَسَبِّحْ بِحَمْدِهِۦ ۚ وَكَفَىٰ بِهِۦ بِذُنُوبِ عِبَادِهِۦ خَبِيرًا
ٱلَّذِى خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا فِى سِتَّةِ أَيَّامٍۢ ثُمَّ ٱسْتَوَىٰ عَلَى ٱلْعَرْشِ ۚ ٱلرَّحْمَٰنُ فَسْـَٔلْ بِهِۦ خَبِيرًۭا
وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ ٱسْجُدُوا۟ لِلرَّحْمَٰنِ قَالُوا۟ وَمَا ٱلرَّحْمَٰنُ أَنَسْجُدُ لِمَا تَأْمُرُنَا وَزَادَهُمْ نُفُورًۭا

ऐ मेहबूब क्या तुमने अपने रब को न देखा(1)
(1) कि उसकी सनअत(सृजन-शक्ति) और क़ुदरत कितनी अजीब है.

कि कैसा फैलाया साया(2)
(2) सुब्हे सादिक़ के निकलने के बाद से सूर्योदय तक, कि उस वक़्त सारी धरती पर साया ही साया होता है, न धूप है न अंधेरा

और अगर चाहता तो उसे ठहराया हुआ कर देता(3)
(3) कि सूरज के निकलने से भी न मिटता.

फिर हमने सूरज को उसपर दलील किया{45} फिर हमने आहिस्ता आहिस्ता उसे अपनी तरफ़ समेटा (4){46}
(4) कि उदय होने के बाद सूरज जितना ऊपर होता गया, साया सिमटता गया.

और वही है जिसने रात को तुम्हारे लिये पर्दा किया और नींद को आराम, और दिन बनाया उठने के लिये(5){47}
(5)  कि उसमें रोज़ी तलाश करो और कामों में जुट जाओ. हज़रत लुक़मान ने अपने बेटे से फ़रमाया, जैसे सोते हो फिर उठते हो ऐसे ही मरोगे और मौत के बाद फिर उठोगे.

और वही है जिसने हवाएं भेजी अपनी रहमत के आगे, ख़ुशख़बरी सुनाती हुई,(6)
(6) यहाँ रहमत से मुराद बारिश है.

और हमने आसमान से पानी उतारा पाक करने वाला{48} ताकि हम उससे ज़िन्दा करें किसी मुर्दा शहर को(7)
(7) जहाँ की ज़मीन ख़ुश्की से बेजान हो गई.

और उसे पिलाएं अपने बनाए हुए बहुत से चौपाए और आदमियों को{49} और बेशक हमने उनमें पानी के फेरे रखे(8)
(8) कि कभी किसी शहर में बारिश हो कभी किसी में, कभी कहीं ज़्यादा हो कभी कहीं अलग तौर से, अल्लाह की हिकमत के अनुसार. एक हदीस में है कि आसमान से रात दिन की तमाम घड़ियों में बारिश होती रहती है, अल्लाह तआला उसे जिस प्रदेश की तरफ़ चाहता है फेरता है और जिस धरती को चाहता है सैराब करता है.

कि वो ध्यान करें,(9)
(9) और अल्लाह तआला की क़ुदरत और नेअमत में ग़ौर करें.

तो बहुत लोगों ने न माना नाशुक्री करना{50} और हम चाहते तो हर बस्ती में एक डर सुनाने वाला भेजते (10){51}
(10) और आप पर से डराने का बोझ कम कर देते लेकिन हमने सारी बस्तियों को डराने का बोझ आप ही पर रखा ताकि आप सारे जगत के रसूल होकर कुल रसूलों की फ़ज़ीलतों और बुज़ुर्गियों के संगम हो और नबुव्वत आप पर खत्म हो कि आप के बाद फिर कोई नबी न हो.

तो काफ़िरों का कहा न मान और इस क़ुरआन से उनपर जिहाद कर, बड़ा जिहाद{52} और वही है जिसने मिले हुए बहाए दो समन्दर, यह मीठा है बहुत मीठा और यह खारी है बहुत तल्ख़, और इन के बीच में पर्दा रखा और रोकी हुई आड़(11){53}
(11) कि न मीठा खारी हो, न खारी मीठा न कोई किसी के स्वाद को बदल सके जैसे कि दजलह, दरियाए शोर में मीलो तक चला जाता है और उसके पानी के स्वाद में कोई परिवर्तन नहीं आता, यह अल्लाह की अजीब शान है.

और वही है जिसने पानी से(12)
(12) यानी नुत्फ़े से.

बनाया आदमी, फिर उसके रिश्ते और ससुराल मुक़र्रर की(13)
(13) कि नस्ल चले.

और तुम्हारा रब क़ुदरत वाला है (14){54}
(14) कि उसने एक नुत्फ़े से दो क़िस्म के इन्सान पैदा किए, नर और मादा, फिर भी काफ़िरों का यह हाल है कि उसपर ईमान नहीं लाते.

और अल्लाह के सिवा ऐसों को पूजते हैं(15)
(15) यानी बुतों को.

जो उनका भला बुरा कुछ न करें, और काफ़िर अपने रब के मुक़ाबिल शैतान को मदद देता है(16){55}
(16) क्योंकि बुत परस्ती करना शैतान को मदद देना है.

और हमने तुम्हे न भेजा मगर(17)
(17) ईमान और फ़रमाँबरदारी पर जन्नत की.

ख़ुशी और (18)
(18) कुफ़्र और गुमराही पर जहन्नम के अज़ाब का.

डर सुनाता{56} तुम फ़रमाओ मैं इस(19)
(19) तबलीग़ और हिदायत.

पर तुम से कुछ उजरत (वेतन)नहीं मांगता मगर जो चाहे कि अपने रब की तरफ़ राह ले(20){57}
(20) और उसका क़ु्र्ब और उसकी रज़ा हासिल करे. मुराद यह है कि ईमानदारों का ईमान लाना और उनका अल्लाह की फ़रमाँबरदारी में जुट जाना ही मेरा बदला है क्योंकि अल्लाह तआला मुझे उसपर जज़ा अता फ़रमाएगा, इसीलिये कि उम्मत के नेक लोगों के ईमान और उनकी नेकियों के सवाब उन्हें मिलते हैं और उसके नबियों को भी जिनकी हिदायत से वो इस दर्जे पर पहुंचे.

और भरोसा करो उस ज़िन्दा पर जो कभी न मरेगा(21)
(21) उसी पर भरोसा करना चाहिये क्योंकि मरने वाले पर भरोसा करना समझ वाले की शान नहीं है.

और उसे सराहते हुए उसकी पाकी बोलो,(22)
(22) उसकी तस्बीह और तारीफ़ करो, उसकी फ़रमाँबरदारी करो और शुक्र अदा करो.

और वही काफ़ी है अपने बन्दों के गुनाहों पर ख़बरदार(23){58}
(23) न उससे किसी का गुनाह छुपे, न कोई उसकी पकड़ से अपने को बचा सके.

जिसने आसमान और ज़मीन और जो कुछ इन के बीच है छ दिन में बनाए(24)
(24) यानी उतनी मात्रा में, क्योंकि रात और दिन और सूरज तो थे ही नहीं और उतनी मात्रा में पैदा करना अपनी मख़लूक़ को आहिस्तगी और इत्मीनान सिखाने के लिये है, वरना वो एक पल में सब कुछ पैदा करने की क़ुदरत रखता है.

फिर अर्श पर इस्तिवा फ़रमाया जैसा उसकी शान के लायक़ है(25)
(25) बुज़ुर्गो का मज़हब यह है कि इस्तिवा और इस जैसे जो भी शब्द आए हैं हम उन पर ईमान रखते हैं और उनकी कैफ़ियत के पीछे नहीं पड़ते, उसको अल्लाह ही जाने. कुछ मुफ़स्सिरों ने इस्तिवा को बलन्दी और बरतरी के मानी में लिया है और यही बेहतर है…

वह बड़ी मेहर वाला, तो किसी जानने वाले से उसकी तअरीफ़ पूछ(26){59}
(26) इसमें इन्सान को सम्बोधन है कि हज़रत रहमान की विशेषताएं और सिफ़ात पहचानने वाले शख़्स से पूछे…

और जब उनसे कहा जाए(27)
(27) यानी जब सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम मुश्रिकों से फ़रमाएं कि…

रहमान को सज्दा करो कहते हैं रहमान क्या है क्या हम सज्दा कर लें जिसे तुम कहो(28)
(28) इससे उनका मक़सद यह है कि रहमान को जानते नहीं और यह बातिल है जो उन्होंने दुश्मनी के तहत कहा क्योंकि अरबी ज़बान जानने वाला ख़ूब जानता है कि रहमान का अर्थ बहुत रहमत वाला है और यह अल्लाह तआला ही की विशेषता है.

और इस हुक्म ने उन्हें और बिदकना बढ़ाया(29){60}
(29) यानी सज्दे का हुक्म उनके लिये और ज़्यादा ईमान से दूरी का कारण हुआ.

25 सूरए फ़ुरक़ान – छटा रूकू

25 सूरए फ़ुरक़ान – छटा रूकू

تَبَارَكَ ٱلَّذِى جَعَلَ فِى ٱلسَّمَآءِ بُرُوجًۭا وَجَعَلَ فِيهَا سِرَٰجًۭا وَقَمَرًۭا مُّنِيرًۭا
وَهُوَ ٱلَّذِى جَعَلَ ٱلَّيْلَ وَٱلنَّهَارَ خِلْفَةًۭ لِّمَنْ أَرَادَ أَن يَذَّكَّرَ أَوْ أَرَادَ شُكُورًۭا
وَعِبَادُ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلَّذِينَ يَمْشُونَ عَلَى ٱلْأَرْضِ هَوْنًۭا وَإِذَا خَاطَبَهُمُ ٱلْجَٰهِلُونَ قَالُوا۟ سَلَٰمًۭا
وَٱلَّذِينَ يَبِيتُونَ لِرَبِّهِمْ سُجَّدًۭا وَقِيَٰمًۭا
وَٱلَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَا ٱصْرِفْ عَنَّا عَذَابَ جَهَنَّمَ ۖ إِنَّ عَذَابَهَا كَانَ غَرَامًا
إِنَّهَا سَآءَتْ مُسْتَقَرًّۭا وَمُقَامًۭا
وَٱلَّذِينَ إِذَآ أَنفَقُوا۟ لَمْ يُسْرِفُوا۟ وَلَمْ يَقْتُرُوا۟ وَكَانَ بَيْنَ ذَٰلِكَ قَوَامًۭا
وَٱلَّذِينَ لَا يَدْعُونَ مَعَ ٱللَّهِ إِلَٰهًا ءَاخَرَ وَلَا يَقْتُلُونَ ٱلنَّفْسَ ٱلَّتِى حَرَّمَ ٱللَّهُ إِلَّا بِٱلْحَقِّ وَلَا يَزْنُونَ ۚ وَمَن يَفْعَلْ ذَٰلِكَ يَلْقَ أَثَامًۭا
يُضَٰعَفْ لَهُ ٱلْعَذَابُ يَوْمَ ٱلْقِيَٰمَةِ وَيَخْلُدْ فِيهِۦ مُهَانًا
إِلَّا مَن تَابَ وَءَامَنَ وَعَمِلَ عَمَلًۭا صَٰلِحًۭا فَأُو۟لَٰٓئِكَ يُبَدِّلُ ٱللَّهُ سَيِّـَٔاتِهِمْ حَسَنَٰتٍۢ ۗ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورًۭا رَّحِيمًۭا
وَمَن تَابَ وَعَمِلَ صَٰلِحًۭا فَإِنَّهُۥ يَتُوبُ إِلَى ٱللَّهِ مَتَابًۭا
وَٱلَّذِينَ لَا يَشْهَدُونَ ٱلزُّورَ وَإِذَا مَرُّوا۟ بِٱللَّغْوِ مَرُّوا۟ كِرَامًۭا
وَٱلَّذِينَ إِذَا ذُكِّرُوا۟ بِـَٔايَٰتِ رَبِّهِمْ لَمْ يَخِرُّوا۟ عَلَيْهَا صُمًّۭا وَعُمْيَانًۭا
وَٱلَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَا هَبْ لَنَا مِنْ أَزْوَٰجِنَا وَذُرِّيَّٰتِنَا قُرَّةَ أَعْيُنٍۢ وَٱجْعَلْنَا لِلْمُتَّقِينَ إِمَامًا
أُو۟لَٰٓئِكَ يُجْزَوْنَ ٱلْغُرْفَةَ بِمَا صَبَرُوا۟ وَيُلَقَّوْنَ فِيهَا تَحِيَّةًۭ وَسَلَٰمًا
خَٰلِدِينَ فِيهَا ۚ حَسُنَتْ مُسْتَقَرًّۭا وَمُقَامًۭا
قُلْ مَا يَعْبَؤُا۟ بِكُمْ رَبِّى لَوْلَا دُعَآؤُكُمْ ۖ فَقَدْ كَذَّبْتُمْ فَسَوْفَ يَكُونُ لِزَامًۢا

बड़ी बरकत वाला है जिसने आसमान में बुर्ज बनाए (1)
(1) हज़रत इब्ने  अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि बुर्ज से सात ग्रहों की मंज़िलें मुराद है जिनकी तादाद बारह है- (1) हमल(मेष),(2)सौर (वृषभ), (3) जौज़ा (मिथुन), (4) सरतान (कर्क), (5)असद (सिंह), (6) सुंबुला (कन्या), (7) मीज़ान (तुला), (8) अक़रब(वृश्चिक), (9) क़ौस (धनु), (10) जदी (मकर), (11)दलव (कुम्भ),  (12) हूत (मीन).

उनमें चिराग़ रखा(2)
(2) चिराग से यहाँ सूरज मुराद है.

और चमकता चाँद {61} और वही है जिसने रात और दिन की बदली रखी (3)
(3) कि उनमें एक के बाद दूसरा आता है और उसका क़ायम मुकाम होता है कि जिसका अमल रात या दिन में से किसी एक में क़ज़ा हो जाए तो दूसरे में अदा करे, ऐसा ही फ़रमाया हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने. और रात दिन का एक दूसरे के बाद आना और क़ायम मुकाम होना अल्लाह तआला की क़ुदरत और हिकमत का प्रमाण है.

उसके लिये जो ध्यान करना चाहे या शुक्र का इरादा करे{62} और रहमान के वो बन्दे कि ज़मीन पर आहिस्ता चलते हैं(4)
(4) इत्मीनान और विक़ार के साथ, विनम्रता की शान से, कि घमण्डी तरीक़े से जूते खटखटाते, पाँव ज़ोर से मारते, इतराते कि यह घमण्डियों का तरीक़ा है और शरीअत ने इसे मना फ़रमाया है.

और जब ज़ाहिल उनसे बात करते हैं(5)
(5) और कोई नागवार कलिमा या बेहूदा या अदब और तहज़ीब के ख़िलाफ़ बात कहते हैं…

तो कहते हैं बस सलाम(6){63}
(6) यह सलाम मुतारिकत का है यानी जाहिलों के साथ बहस या लड़ाई झगड़ा करने से परहेज़ करते हैं या ये मानी है कि ऐसी बात कहते हैं जो दुरूस्त हो और उसमें कष्ट और गुनाह से मेहफ़ूज़ रहें. हसन बसरी ने फ़रमाया कि यह तो उन बन्दों के दिन का हाल है. और उनकी रात का बयान आगे आता है. मुराद यह है कि उसकी मजलिसी ज़िन्दगी और लोगों के साथ व्यवहार ऐसा पाकीज़ा है. और उनकी एकान्त की ज़िन्दगी और सच्चाई के साथ सम्बन्ध यह है जो आगे बयान किया जाता है.

और वो जो रात काटते हैं अपने रब के लिये सज्दे और क़याम में(7){64}
(7) यानी नमाज़ और इबादत में रात भर जागते हैं और रात अपने रब की इबादत में गुज़ारते हैं और अल्लाह तआला अपने करम से थोड़ी इबादत वालों को भी रात भर जागने का सवाब अता फ़रमाता है. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि जिस किसी ने इशा के बाद दो रकअत या ज़्यादा नफ़्ल पढे वह रात भर जागने वालों मे दाख़िल है. मुस्लम शरीफ़ में हज़रत उस्मान ग़नी रदियल्लाहो अन्हो से रिवायत है कि जिसने इशा की नमाज़ जमाअत से अदा की उसने आधी रात के क़याम का सवाब पाया और जिसने फ़ज्र भी जमाअत के साथ अदा की वह सारी रात इबादत करने वाले की तरह है.

और वो जो अर्ज़ करते हैं ऐ हमारे रब हमसे फेर दे जहन्नम का अज़ाब, बेशक उसका अज़ाब गले का गिल {फन्दा} है(8){65}
(8) यानी लाज़िम, जुदा न होने वाला. इस आयत में उन बन्दों की शब-बेदारी और इबादत का ज़िक्र फ़रमाने के बाद उनकी उस दुआ का बयान किया. इससे यह ज़ाहिर करना मक़सूद है कि वो इतनी ज़्यादा इबादत करने के बावुजूद अल्लाह तआला का ख़ौफ़ खाते हैं और उसके समक्ष गिड़गिड़ाते हैं.

बेशक वह बहुत ही बुरी ठहरने की जगह है{66} और वो कि जब ख़र्च करते हैं, न हद से बढ़ें और न तंगी करें(9)
(9) इसराफ़ गुनाहों में ख़र्च करने को कहते हैं. एक बुज़ुर्ग ने कहा कि इसराफ़ में भलाई नहीं, दूसरे बुज़ुर्ग ने कहा नेकी में इसराफ़ ही नहीं. और तंगी करना यह है कि अल्लाह तआला के निर्धारित   अधिकारों को अदा करने में कमी करे. यही हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया. हदीस शरीफ़ में है, सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया  जिस ने किसी हक़ को मना किया उसने तंगी की और जिसने नाहक़ में ख़र्च किया उसने इसराफ़ किया. यहाँ उन बन्दों के ख़्रर्च करने का हाल बयान फ़रमाया जा रहा है कि वो इसराफ़ और तंगी के दोनों बुरे तरीक़ों से बचते हैं.

और इन दोनों के बीच एतिदाल {संतुलन} पर रहें(10){67}
(10) अब्दुल मलिक बिन मरवान ने हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रदियल्लाहो अन्हो से अपनी बेटी ब्याहते वक़्त ख़र्च का हाल पूछा तो हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ ने फ़रमाया कि नेकी दो बुराइयों के बीच है. इससे मुराद यह थी कि ख़र्च में बीच का तरीक़ा इख़्तियार करना नेकी है और वह इसराफ़ यानी हद से अधिक खर्च करने और तंगी के बीच है जो दोनों बुराईयाँ है. इससे अब्दुल मलिक ने पहचान लिया कि वह इस आयत के मज़मून की तरफ़ इशारा कर रहे हैं. मुफ़स्सिरों का क़ौल है कि इस आयत में जिन हज़रात का ज़िक्र है वो सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के बड़े सहाबा हैं जो न स्वाद के लिये खाते हैं, न ख़ूबसूरती और ज़ीनत (श्रंगार) के लिये पहनते हैं. भूख रोकना, तन ढाँपना, सर्दी गर्मी की तकलीफ़ से बचना, इतना ही उनका मक़सद है.

और वो जो अल्लाह के साथ किसी दूसरे मअबूद को नहीं पूजते(11)
(11) शिर्क से बरी और बेज़ार हैं.

और उस जान को जिसकी अल्लाह ने हुरमत{इज़्ज़त} रखी(12)
(12) और उसका ख़ून मुबाह न किया जैसे कि मूमिन और एहद वाले उसको…

नाहक़ नहीं मारते और बदकारी नहीं करते, (13)
(13) नेकों से. इन बड़े गुनाहों की नफ़ी फ़रमाने में काफ़िरों पर तअरीज़ है जो इन बुराइयों में जकड़े हुए थे.

और जो वह काम करे वह सज़ा पाएगा, बढाया जाएगा उसपर अज़ाब क़यामत के दिन(14)
(14) यानी वह शिर्क के अज़ाब में भी गिरफ़्तार होगा और इन गुनाहों का अज़ाब उसपर और ज़्यादा किया जाएगा.

और हमेशा उसमें ज़िल्लत से रहेगा{69} मगर जो तौबह करे(15)
(15) शिर्क और बड़े गुनाहों से.

और ईमान लाए(16)
(16) सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर.

और अच्छा काम करे(17)
(17) यानी तौबह के बाद नेकी अपनाए.

तो ऐसों की बुराइयों को अल्लाह भलाइयों में बदल देगा, (18)
(18) यानी बुराई करने के बाद नेकी की तोफ़ीक़ देकर या ये मानी कि बुराईयों को तौबह से मिटा देगा और उनकी जगह ईमान और फ़रमाँबरदारी वग़ैरह नेकियाँ क़ायम फ़रमाएगा. (मदारिक) मुस्लिम की हदीस में है कि क़यामत के दिन एक व्यक्ति हाज़िर किया जाएगा. फ़रिश्ते अल्लाह के हुक्म से उसके छोटे गुनाह एक एक करके उसको याद दिलाते जाएंगे. वह इक़रार करता जाएगा और अपने बड़े गुनाहों के पेश होने से डरता होगा. इसके बाद कहा जाएगा कि हर एक बुराई के बदले तुझे नेकी दी गई. यह बयान फ़रमाते हुए सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को अल्लाह तआला की बन्दानवाज़ी और उसकी करम की शान पर ख़ुशी हुई और नूरानी चेहरे पर सुरूर से तबस्सुम के निशान ज़ाहिर हुए.

और अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है{70} और जो तौबह करे और अच्छा काम करे तो वह अल्लाह की तरफ़ रूजू लाया जैसी चाहिये थी{71} और जो झूठी गवाही नहीं देते (19)
(19) और झूठों की मजलिस से अलग रहते हैं और उनके साथ मुख़ालिफ़त नहीं करते.

और जब बेहूदा पर गुज़रते हैं अपनी इज़्ज़त संभाले गुज़र जाते हैं(20){72}
(20) और अपने आए को लहव (व्यर्थ् कर्म) और बातिल से प्रभावित नहीं होने देते. ऐसी मजलिसों से परहेज़ करते हैं.

और वो कि जब उन्हें उनके रब की आयतें याद दिलाई जाएं तो उनपर (21)
(21)  अनजाने तरीक़े से. अज्ञानता के अन्दाज़ में.

बहरे अंधे होकर नहीं गिरते(22){73}
(22) कि न सोचें न समझें बल्कि होश के कानों से सुनते हैं और देखने वाली आँख से देखते हैं और नसीहत से फ़ायदा उठाते हैं. और इन आयतों पर फ़रमाँबरदारी के साथ अमल करते हैं.

और वो जो अर्ज़ करते हैं ऐ हमरे रब हमें दे हमारी बीबियों और हमारी औलाद से आँखों की ठण्डक(23)
(23) यानी फ़रहत और सुरूर. मुराद यह है कि हमें बीबियाँ और नेक औलाद, परहेज़ग़ार और अल्लाह से डरने वाली, अता फ़रमा कि उनके अच्छे कर्म, अल्लाह व रसूल के अहकाम का पालन देखकर हमारी आँखें ठण्डी और दिल ख़ुश हों.

और हमें परहेज़गारों का पेशवा बना(24){74}
(24) यानी हमें ऐसा परहेज़गार और ऐसा इबादत वाला और ख़ुदापरस्त बना कि हम परहेज़गारों की पेशवाई के क़ाबिल हों और वो दीन के कामों में हमारा अनुकरण करें. कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया कि इसमें दलील है कि आदमी को दीनी पेशवाई और सरदारी की रग़बत और तलब चाहिये. इन आयतों में अल्लाह तआला ने अपने नेक बन्दों के गुण बयान फ़रमाए. इसके बाद उनकी जज़ा ज़िक्र फ़रमाई जाती हैं.

उनको जन्नत का सब से ऊँचा बालाख़ाना इनाम मिलेगा बदला उनके सब्र का और वहां मुजरे और सलाम के साथ उनकी पेशवाई होगी(25){75}
(25) फ़रिश्ते अदब के साथ उनका सत्कार करेंगे या अल्लाह तआला उनकी तरफ़ सलाम भेजेगा.

हमेशा उसमें रहेंगे, क्या ही अच्छी ठहरने और बसने की जगह{76} तुम फ़रमाओ (26)
(26) ऐ नबियों के सरदार, मक्के वालों से कि….

तुम्हारी कुछ क़द्र नहीं मेरे रब के यहाँ अगर तुम उसे न पूजो तो तुमने झुटलाया(27)
(27) मेरे रसूल और मेरी किताब को…

तो अब होगा वह अज़ाब कि लिपट रहेगा(28){77}
(28) यानी हमेशा का अज़ाब और लाज़मी हलाकत.

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