Tafseer Surah Al-Anaam from Kanzul Imaan

सूरए अनआम

सूरए अनआम मक्के में उतरी, इसमें 165 आयतें और बीस रूकू हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला (1)

सूरए अनआम पहला रूकू

सब ख़ूबियां अल्लाह को जिसने आसमान और ज़मीन बनाए (2)
और अंधेरियां और रोशनी पैदा की (3)
उसपर (4)
काफ़िर लोग अपने रब के बराबर ठहराते हैं (5) {1}
वही है जिसने तुम्हें (6)
मिट्टी से पैदा किया फिर एक मीआद (मुद्दत) का हुक्म रखा (7)
और एक निश्चित वादा उसके यहां है (8)
फिर तुम लोग शक करते हो {2} और वही अल्लाह है आसमानों और ज़मीन का (9)
उसे तुम्हारा छुपा और ज़ाहिर सब मालूम है और तुम्हारे काम जानता है {3} और उनके पास कोई भी निशानी अपने रब की निशानियों से नहीं आती मगर उससे मुंह फेर लेते हैं  {4} तो बेशक उन्होंने सत्य को झुटलाया  (10)
जब उनके पास आया तो अब उन्हें ख़बर हुआ चाहती है उस चीज़ की जिसपर हंस रहे थे (11) {5}
क्या उन्होंने न देखा कि हमने उनसे पहले (12)
कितनी संगते खपा दीं उन्हें हमने ज़मीन में वह जमाव दिया (13)
जो तुमको न दिया और उनपर मूसलाधार पानी भेजा  (14)
और उनके नीचे नेहरें बहाईं (15)
तो उन्हें हमने उनके गुनाहों के सबब हलाक किया (16)
और उनके बाद और संगत उठाई (17){6}
और अगर हम तुमपर कागज़ में कुछ लिखा हुआ उतारते (18)
कि वो उसे अपने हाथों से छूते जब भी काफ़िर कहते कि यह नहीं मगर खुला जादू {7}  और बोले (19)
उनपर (20)
कोई फ़रिश्ता क्यों न उतारा गया और अगर हम फ़रिश्ता उतारते (21)
तो काम तमाम हो गया होता (22)
फिर उन्हें मोहलत (अवकाश) न दी जाती (23) {8}
और अगर हम नबी को फ़रिश्ता करते (24)
जब भी उसे मर्द ही बनाते  (25)
और उनपर वही शुबह रखते जिसमें अब पड़े हैं {9}  और ज़रूर ऐ मेहबूब तुमसे पहले रसूलों के साथ भी ठट्ठा किया गया तो वो जो उनसे हंसते ये उनकी हंसी उनको ले बैठी (26) {10}

6 – सूरए अनआम – पहला रूकू

(1) सूरए अनआम मक्के में उतरी. इसमें बीस रूकू और 165 आयतें, तीन हज़ार एक सौ कलिमे और बारह हज़ार नौसो पैंतीस अक्षर हैं. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कुल सूरत एक ही रात में मक्कए मुकर्रमा में उतरी और इसके साथ सत्तर हज़ार फ़रिश्ते आए जिन से आसमानों के किनारे भर गए. यह भी एक रिवायत में है कि वो फ़रिश्ते तस्बीह करते और अल्लाह की पाकी बोलते आए और सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम “सुब्हाना रब्बियल अज़ीम” फ़रमाते हुए सिजदे में चले गए.

(2) हज़रत कअब अहबार रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया, तौरात में सब से पहली यही आयत है. इस आयत में बन्दों को इस्तग़ना की शान के साथ अल्लाह की तारीफ़ बयान करने की तालीम फ़रमाई गई है और आसमान व ज़मीन की उत्पत्ति का ज़िक्र इसलिये है कि उनमें देखने वालों के लिये क़ुदरत के बहुत से चमत्कार, हिकमते और सबक़ लेने वाली और फ़ायदे वाली बातें हैं.

(3) यानी हर एक अन्धेरी और रौशनी, चाहे वह अन्धेरी रात की हो या कुफ़्र की या जिहालत की या जहन्नम की. और रौशनी चाहे दिन की हो या ईमान और हिदायत व इल्म व जन्नत की. अन्धेरी को बहुवचन और रौशनी को एक वचन से बयान करने में इस तरफ़ इशारा है कि बातिल की राहें बहुत सी हैं और सच्चाई का रास्ता सिर्फ़ एक, दीने इस्लाम.

(4) यानी ऐसे प्रमाणों पर सूचित होने और क़ुदरत की ऐसी निशानियाँ  देखने के बावुजूद.

(5) दूसरों को, यहाँ तक कि पत्थरों को पूजते हैं जबकि इस बात का इक़रार करते हैं कि आसमानों और ज़मीन का पैदा करने वाला अल्लाह है.

(6) यानी तुम्हारी अस्ल हज़रत आदम को, जिनकी नस्ल से तुम पैदा हुए. इसमें मुश्रिकों का रद है जो कहते थे कि जब हम गल कर मिट्टी हो जाएंगे फिर कैसे ज़िन्दा किये जाएंगे. उन्हें बताया गया कि तुम्हारी अस्ल मिट्टी ही से है तो फिर दोबारा पैदा किये जाने पर क्या आश्चर्य. जिस क़ुदरत वाले ने पहले पैदा किया उसकी क़ुदरत से मरने के बाद ज़िन्दा किये जाने को असंभव समझना नादानी है.

(7) जिसके पूरा हो जाने पर तुम मर जाओगे.

(8) मरने के बाद उठाने का.

(9) उसका कोई शरीक नहीं.

(10) यहाँ सत्य से या क़ुरआन शरीफ़ की आयतें मुराद हैं या सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और आपके चमत्कार.

(11) कि वह कैसी महानता वाली है और उसकी हंसी बनाने का अंजाम कैसा वबाल और अज़ाब.

(12) पिछली उम्मतों में से.

(13) ताक़त व माल और दुनिया के बहुत से सामान देकर.

(14) जिससे खेतियाँ हरी भरी हों.

(15) जिससे बाग़ फले फूले और दुनिया की ज़िन्दगानी के लिये ऐश व राहत के साधन उपलब्ध हों.

(16) कि उन्होंने नबियों को झुटलाया और उनका यह सामान उन्हें हलाक से न बचा सका.

(17) और दूसरे ज़माने वालों को उनका उत्तराधिकारी किया. मतलब यह है कि गुज़री हुई उम्मतों के हाल से सबक़ और नसीहत हासिल करनी चाहिये कि वो लोग ताक़त, दौलत और माल की कसरत और औलाद की बहुतात के बावजूद कुफ़्र और बग़ावत की वजह से हलाक कर दिये गए तो चाहिये कि उनके हाल से सबक़ हासिल करके ग़फ़लत की नींद से जागे.

(18) यह आयत नज़र बिन हारिस और अब्दुल्लाह बिन उमैया और नोफ़ल बिन ख़ूलद के बारे में उतरी जिन्होंने कहा था कि मुहम्मद पर हम हरगिज़ ईमान न लाएंगे जब तक तुम हमारे पास अल्लाह की तरफ़ से किताब न लाओ जिसके साथ चार फ़रिश्ते हों, वो गवाही दें कि यह अल्लाह की किताब है और तुम उसके रसूल हो. इस पर यह आयत उतरी और बताया गया कि ये सब हीले बहाने हैं अगर काग़ज पर लिखी हुई किताब उतार दी जाती और वो उसे अपने हाथों से छूकर और टटोल कर देख भी लेते और यह कहने का मौक़ा भी न होता कि नज़रबन्दी कर दी गई थी. किताब उतरती नज़र आई, था कुछ भी नहीं, तो भी ये बदनसीब ईमान लाने वाले न थे, उसको जादू बताते और जिस तरह चाँद चिर जाने को जादू बताया था और उस चमत्कार को देखकर ईमान न लाए थे उसी तरह इस पर भी ईमान न लाते क्योंकि जो लोग दुश्मनी के कारण इन्कार करते हैं वो आयतों और चमत्कारों से फ़ायदा नहीं उठा पातें.

(19) मुश्रिक लोग.

(20) यानी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर.

(21) और फिर भी ये ईमान न लाते.

(22) यानी अज़ाब वाजिब हो जाता और यह अल्लाह की सुन्नत है कि जब काफ़िर कोई निशानी तलब करें और उसके बाद भी ईमान न लाएं तो अज़ाब वाजिब हो जाता है और वो हलाक कर दिये जाते हैं.

(23) एक क्षण की भी, और अज़ाब में देरी न की जाती तो फ़रिश्ते का उतारना जिसको वो तलब करते हैं, उन्हें क्या नफ़ा देता.

(24) यह उन काफ़िरों का जवाब है जो नबी अलैहिस्सलाम को कहा करते थे कि यह हमारी तरह आदमी हैं और इसी पागलपन में वो ईमान से मेहरूम रहते थे. इन्हीं इन्सानों में से रसूल भेजने की हिकमत बताई जाती है कि उनके फ़ायदा उठाने और नबी की तालीम से फैज़ उठाने की यही सूरत है कि नबी आदमी की सूरत में आए क्योंकि फ़रिश्ते को उसकी अस्ली सूरत में देखने की तो ये लोग हिम्मत न कर सकते, देखते ही दहशत से बेहोश हो जाते या मर जाते, इसलिये अगर मान लो रसूल फ़रिश्ता ही बनाया जाता.

(25) और इन्सान की सूरत ही में भेजते ताकि ये लोग उसको देख सकें, उसका कलाम सुन सकें, उससे दीन के अहकाम मालूम कर सकें. लेकिन अगर फ़रिश्ता आदमी की सूरत में आता तो उन्हें फिर वही कहने का मौक़ा रहता कि यह आदमी है. तो फ़रिश्ते को नबी बनाने का क्या फ़ायदा होता.

(26) वो अज़ाब में जकड़े गए. इसमें नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तसल्ली है कि आप दुखी न हों, काफ़िरों का पहले नबियों के साथ भी यही तरीक़ा रहा है और इसका वबाल उन काफ़िरों को उठाना पड़ा है. इसके अलावा मुश्रिकों को चेतावनी है कि पिछली उम्मतों के हाल से सबक़ लें और नबियों के साथ अदब से पेश आएं ताकि पहलों की तरह अज़ाब में न जकड़े जाएं.

सूरए अनआम – दूसरा रूकू

सूरए अनआम – दूसरा रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला


तुम फ़रमा दो (1)
ज़मीन में सैर करो फिर देखो कि झुटलाने वालों का कैसा अंजाम हुआ (2) (11)
तुम फ़रमाओ किस का है जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है (3)
तुम फ़रमाओ अल्लाह का है (4)
उसने अपने करम (दया) के ज़िम्मे पर रहमत लिख ली है (5)
बेशक ज़रूर तुम्हें क़यामत के दिन जमा करेगा (6)
इसमें कुछ शक नहीं वो जिन्हों ने अपनी जान नुक़सान में डाली (7)
ईमान नहीं लाते (12) और उसी का है जो कुछ बसता है रात और दिन में (8)
और वही है सुनता जानता (9) (13)
तुम फ़रमाओ क्या अल्लाह के सिवा किसी और को वाली बनाऊं (10)
वह अल्लाह जिसने आसमान और ज़मीन पैदा किये और वह खिलाता है और खाने से पाक है (11)
तुम फ़रमाओ मुझे हुक्म हुआ है कि सबसे पहले गर्दन रखूं (12)
और हरगिज़ शिर्क वालों में से न होना (14) तुम फ़रमाओ अगर मैं अपने रब की नाफ़रमानी करूं तो मुझे बड़े दिन (13)
के अज़ाब का डर है (15) उस दिन जिससे अज़ाब फेर दिया जाए(14)
ज़रूर उसपर अल्लाह की मेहर (कृपा) हुई और यही खुली कामयाबी है (16) और अगर तुझे अल्लाह कोई बुराई (15)
पहुंचाए तो उसके सिवा उसका कोई दूर करने वाला नहीं और अगर तुझे भलाई पहुंचाए (16)
तो वह सबकुछ कर सकता है (17) (17)
और वही ग़ालिब है अपने बन्दो पर और वही है हिकमत वाला ख़बरदार (18)तुम फ़रमाओ सबसे बड़ी गवाही किसकी(18)
तुम फ़रमाओ कि अल्लाह गवाह है मुझमें और तुममें (19)
और मेरी तरफ़ इस क़ुरआन की वही (देववाणी) हुई है कि मैं इससे तुम्हें डराऊ (20)
और जिन जिनको पहुंचे (21)
तो क्या तुम (22)
यह गवाही देते हो कि अल्लाह के साथ और ख़ुदा है तुम फ़रमाओ (23)
कि मैं यह गवाही नहीं देता (24)
तुम फ़रमाओ कि वह तो एक ही मअबूद (आराध्य) है (25)
और मैं बेज़ार हूँ उनसे जिनको तुम शरीक ठहराते हो (26) (19)
जिनको हमने किताब दी (27)
उस नबी को पहचानते हैं (28)
जैसा अपने बेटों को पहचानते हैं (29)
जिन्हों ने अपनी जान नुक़सान में डाली वो ईमान नहीं लाते (20)

तफ़सीर सूरए अनआम – दूसरा रूकू

(1) ऐ हबीब सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम, इन हंसी बनाने वालों से कि तुम.

(2) और उन्होंने कुफ़्र और झुटलाने का क्या फल पाया.

(3) अगर वो इसका जवाब न दें तो…….

(4) क्योंकि इसके सिवा और कोई जवाब ही नहीं और वो इसके खिलाफ़ नहीं कर सकते क्योंकि बुत, जिनको मुश्रिक पूजते हैं, वो बेजान हैं, किसी चीज़ के मालिक होने की सलाहियत नहीं रखते. ख़ुद दूसरे की मिलकियत में हैं. आसमान व ज़मीन का वहीं मालिक हो सकता है जो आप ज़िन्दा रखने की क़ुदरत रखने वाला, अनादि व अनन्त, हर चीज़ पर सक्षम, और सब का हाकिम हो, तमाम चीज़ें उसके पैदा करने से अस्तित्व में आई हों, ऐसा सिवाय अल्लाह के कोई नहीं. इसलिये तमाम सृष्टि का मालिक उसके सिवा कोई नहीं हो सकता.

(5) यानी उसने रहमत का वादा किया और उसका वादा तोड़े जाने और झूट से दूर है और रहमत आम है. दीनी हो या दुनियावी. अपनी पहचान और तौहीद और इल्म की तरफ़ हिदायत फ़रमाना भी रहमत में दाख़िल है और काफ़िरों को मोहल्लत देना और अज़ाब में जल्दी न करना भी, कि इससे उन्हें तौबह और सिफ़ारिश का मौक़ा मिलता है. (जुमल वग़ैरह)

(6) और कर्मों का बदला देगा.

(7) कुफ़्र इख़्तियार करके.

(8) यानी सारी सृष्टि उसी की मिल्क है, और वह सबका पैदा करने वाला मालिक और रब है.

(9) उससे कोई चीज़ छुपी नहीं.

(10) जब काफ़िरों ने हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को अपने बाप दादा के दीन की तरफ़ बुलाया तो यह आयत उतरी.

(11) यानी सृष्टि सब उसकी मोहताज है, वह सब से बेनियाज़, बे पर्वाह.

(12) क्योंकि नबी अपनी उम्मत से दीन में पहले होते हैं.

(13) यानी क़यामत के दिन.

(14) और निजात दी जाए.

(15) बीमारी या तंगदस्ती या और कोई बला.

(16) सेहत व दौलत वग़ैरह की तरह.

(17) क़ादिरें मुतलक़ है यानी सर्वशक्तिमान. हर चीज़ पर ज़ाती क़ुदरत रखता है. कोई उसकी मर्ज़ी के खिलाफ़ कुछ नहीं कर सकता तो कोई उसके सिवा पूजनीय हो सकता है. यह शिर्क का रद करने वाली एक असरदार दलील है.

(18) मक्का वाले रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से कहने लगे कि ऐ मुहम्मद, हमें कोई ऐसा दिखाइये जो आपके नबी होने की गवाही देता हो. इस पर यह आयत उतरी.

(19) और इतनी बड़ी और क़ुबूल करने के क़ाबिल गवाही और किसकी हो सकती है.

(20) यानी अल्लाह तआला मेरी नबुव्वत की गवाही देता है ऐसा इसलिये कि उसने मेरी तरफ़ इस क़ुरआन की वही फ़रमाई और यह ऐसा चमत्कार है कि तुम ज़बान वाले होने के बावुजूद इसके मुक़ाबले से आजिज़ रहे तो इस किताब का मुझ पर उतरना अल्लाह की तरफ़ से मेरे रसूल होने की गवाही है. जब यह क़ुरआन अल्लाह तआला की तरफ़ से यक़ीनी गवाही है और मेरी तरफ़ वही फ़रमाया गया ताकि मैं तुम्हें डराऊं कि तुम अल्लाह के हुक्म की मुख़ालिफ़त न करो.

(21) यानी मेरे बाद क़यामत तक आने वाले जिन्हें क़ुरआने पाक पहुंचे चाहे वो इन्सान हों या जिन्न, उन सबको मैं अल्लाह के हुक्म के विरोध से डराऊ. हदीस शरीफ़ में है कि जिस शख़्स को क़ुरआने पाक पहुंचा, मानो कि उसने नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को देखा और आपका मुबारक कलाम सुना. हज़रत अनस बिन मालिक रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि जब यह आयत उतरी तो हुज़ूर ने किसरा और क़ैसर वग़ैरह बादशाहों को इस्लाम की दावत के पत्र रवाना किये. (मदारिक व ख़ाज़िन) इसकी तफ़सीर में एक क़ौल यह भी है कि “मन बलग़ा” (जिन जिनको पहुंचे) के मानी ये हैं कि इस क़ुरआन से मैं तुमको डराउंगा और वो डराएं जिनको यह क़ुरआन पहुंचे. तिरमिज़ी की हदीस में है कि अल्लाह तरोताज़ा करे उसको जिसने हमारा कलाम सुना और जैसा सुना, वैसा पहंचाया. बहुत से पहुंचाए हुए, सुनने वाले से ज़्यादा एहल होते हैं और एक रिवायत में है, सुनने वाले से ज़्यादा अफ़क़ह यानी समझने बूझने वाले होते हैं. इससे फ़िक़ह के जानकारों की महानता मालूम होती है.

(22) ऐ मुश्रिक लोगों.

(23) ऐ हबीब सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम.

(24) जो गवाही तुम देते हो और अल्लाह के साथ दूसरे मअबूद ठहराते हो.

(25) उसका तो कोई शरीक नहीं.

(26) इस आयत से साबित हुआ कि जो शख़्स इस्लाम लाए उसको चाहिये कि तौहीद और रिसालत की गवाही के साथ इस्लाम के हर मुख़ालिफ़ अक़ीदे और दीन से विरोध ज़ाहिर करे.

(27) यानी यहूदियों और ईसाइयों के उलमा जिन्हों ने तौरात व इंजील पाई.

(28) आपके हुलियए शरीफ़ यानी नखशिख और आपके गुण और विशेषताओ से, जो इन किताबों में दर्ज हैं.

(29) किसी शक व संदेह के बिना.

सूरए अनआम – तीसरा रूकू

सूरए अनआम – तीसरा रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला
और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन जो अल्लाह पर झूठ बांधे(1)
या उसकी आयतें झुटलाए बेशक ज़ालिम फ़लाह न पाएंगे {21} और जिस दिन हम सब को उठाएंगे फिर मुश्रिकों से फ़रमाएंगे कहां हैं तुम्हारे वो शरीक जिन का तुम दावा करते थे{22} फिर उनकी कुछ बनावट न रही (2)
मगर यह कि बोले हमें अपने रब अल्लाह की क़सम कि हम मुश्रिक न थे {23} देखो कैसा झूठ बांधा ख़ुद अपने ऊपर (3)
और गुम गई उन से जो बातें बनाते थे {24} और उनमें कोई वह है जो तुम्हारी तरफ़ कान लगाता है (4)
और हमने इनके दिलों पर ग़लाफ़ कर दिये हैं कि उसे न समझें और उनके कान में टैंट (रूई) और अगर सारी निशानियां देखें तो उनपर ईमान न लांएगे यहां तक कि जब तुम्हारे हुज़ूर तुमसे झगड़ते हाज़िर हों तो काफ़िर कहें ये तो नहीं मगर अगलों की दास्तानें (5) {25}
और वो इससे रोकते (6)
और इससे दूर भागते हैं और हलाक नहीं करते मगर अपनी जानें (7)
और उन्हें शऊर (आभास) नहीं {26} और कभी तुम देखो जब वो आग पर खड़े किये जाएंगे तो कहेंगे काश किसी तरह हम वापस भेजे जाएं (8)
और  अपने रब की आयतें न झुटलाएं और मुसलमान हो जाएं {27} बल्कि उनपर खुल गया जो पहले छुपाते थे (9)
और अगर वापस भेजे जाएं तो फिर वही करें जिससे मना किये गए थे और बेशक वो ज़रूर झूठे हैं {28} और बोले (10)
वह तो यही हमारी दुनिया की ज़िन्दगी है और हमें उठना नहीं (11) {29}
और कभी तुम देखो जब अपने रब के हुज़ूर खड़े किये जाएंगे फ़रमाएगा क्या यह हक़ (सत्य) नहीं (12)
कहेंगे क्यों नहीं हमें अपने रब की क़सम, फ़रमाएगा तो अब अज़ाब चखो बदला अपने कुफ़्र का {30}

तफ़सीर सूरए अनआम – तीसरा रूकू

(1) उसका शरीक ठहराए या जो बात उसकी शान के लायक़ न हो, उसकी तरफ़ जोड़े.

(2) यानी कुछ माज़िरत न मिली, कोई बहाना न पा सके.

(3) कि उम्र भर के शिर्क ही से इन्कार कर बैठे.

(4) अबू सुफ़ियान, वलीद, नज़र और अबू जहल वग़ैरह जमा होकर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की क़ुरआने पाक की तिलावत सुनने लगे तो नज़र से उसके साथियों ने कहा कि मुहम्मद क्या कहते हैं. कहने लगा, मैं नहीं जानता, ज़बान को हरकत देते हैं और पहलों के क़िस्से कहते हैं जैसे मैं तुम्हें सुनाया करता हूँ अबू सुफ़ियान ने कहा कि इसका इक़रार करने से मर जाना बेहतर है. इस पर यह आयत उतरी.

(5) इससे उनका मतलब कलामे पाक के अल्लाह की तरफ़ से नाज़िल होने का इन्कार करना है.

(6) यानी मुश्रिक लोगों को क़ुरआन शरीफ़ से या रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से और आप पर ईमान लाने और आपका अनुकरण करने से रोकते हैं. यह आयत मक्के के काफ़िरों के बारे में उतरी जो लोगों को सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर ईमान लाने और आपकी मजलिस में हाज़िर होने और क़ुरआन सुनने से रोकते थे और ख़ुद भी दूर रहते थे कि कहीं मुबारक कलाम उनके दिलों पर असर न कर जाए. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि यह आयत हुज़ूर के चचा अबू तालिब के बारे में उतरी जो मुश्रिकों को तो हुज़ूर के तकलीफ़ पहुंचाने से रोकते थे और ख़ुद ईमान लाने से बचते थे.

(7) यानी इसका नुक़सान ख़ुद उन्हीं को पहुंचता है.

(8) दुनिया में.

(9) जैसा कि ऊपर इसी रूकू में बयान हो चुका कि मुश्रिकों से जब फ़रमाया जाएगा कि तुम्हारे शरीक कहाँ हैं तो वो अपने कुफ़्र को छुपा जाएंगे और अल्लाह की क़सम खाकर कहेंगे कि हम मुश्रिक न थे. इस आयत में बताया गया कि फिर जब उन्हें ज़ाहिर हो जाएगा जो वो छुपाते थे, यानी उनका कुफ़्र इस तरह ज़ाहिर होगा कि उनके शरीर के अंग उनके कुफ़्र और शिर्क की गवाहीयाँ देंगे, तब वो दुनिया में वापस जाने की तमन्ना करेंगे.

(10) यानी काफ़िर जो रसूल भेजे जाने और आख़िरत के इन्कारी हैं. इसका वाक़िआ यह था कि जब नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने काफ़िरों को क़यामत के एहवाल और आख़िरत की ज़िन्दगानी, ईमानदारी और फ़रमाँबरदारी के सवाब, काफ़िरों और नाफ़रमानों पर अज़ाब का ज़िक्र फ़रमाया तो काफ़िर कहने लगे कि ज़िन्दगी तो बस दुनिया ही की है.

(11) यानी मरने के बाद.

(12) क्या तुम मरने के बाद ज़िन्दा नहीं किये गए.

सूरए अनआम – चौथा रूकू

सूरए अनआम – चौथा रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला

बेशक हार में रहे वो जिन्होंने अपने रब से मिलने से इन्कार किया यहां तक कि जब उनपर क़यामत अचानक आ गई बोले हाय अफ़सोस हमारा इसपर कि इसके मानने में हमने चूक की और वो अपने (1)
बोझ अपनी पीठ पर लादे हुए हैं और कितना बुरा बोझ उठाए हुए हैं (2) {31}
और दुनिया की ज़िन्दगी नहीं मगर खेल कूद (3)
और बेशक पिछला घर भला उनके लिये जो डरते हैं (4)
तो क्या तुम्हें समझ नहीं {32} हमें मालूम है कि तुम्हें रंज देती है वह बात जो ये कह रहे हैं (5)
तो वो तुम्हें नहीं झुटलाते बल्कि ज़ालिम अल्लाह की आयतों से इन्कार करते हैं {33} और तुम से पहले झुटलाए गए तो उन्होंने सब्र किया इस झुटलाने  और ईज़ाएं (पीड़ाएं) पाने पर यहां तक कि उन्हें हमारी मदद आई (6)
और अल्लाह की बातें बदलने वाला कोई नहीं (7)
और तुम्हारे पास रसूलों की ख़बरें आही चुकी हैं (8) {34}
और अगर उनका मुंह फेरना तुमको बुरा लगा है (10)
तो अगर तुम से हो सके तो ज़मीन में कोई सुरंग तलाश करलो या आसमान में कोई ज़ीना फिर उन के लिये निशानी ले आओ (11)
और अल्लाह चाहता तो उन्हें हिदायत पर इकट्ठा कर देता तो ऐ सुनने वाले तू हरग़िज़ नादान न बन {35} मानते तो वही हैं जो सुनते हैं (12)
और उन मुर्दा दिलों (13)
को अल्लाह उठाएगा (14)
फिर उसकी तरफ़ हांके जाएंगे (15) {36}
और बोले (16)
उनपर कोई निशानी क्यों न उतरी उनके रब की तरफ़ से (17)
तुम फ़रमाओ कि अल्लाह क़ादिर है कि कोई निशानी उतारे लेकिन उनमें बहुत निरे जाहिल हैं (18) {37}
और नहीं कोई ज़मीन में चलने वाला और न कोई परिन्दा कि अपने परों पर उड़ता है मगर तुम जैसी उम्मतें (19)
हमने इस किताब में कुछ उठा न रखा (20)
फिर अपने रब की तरफ़ उठाए जाएंगे (22) {38}
और जिन्हों ने हमारी आयतें झुटलाईं बेहरे और गूंगे हैं (23)
अंधेरों में (24)
अल्लाह जिसे चाहे गुमराह करे और जिसे चाहे सीधे रास्ते डाल दे (25) {39}
तुम फ़रमाओ भला बताओ तो अगर तुमपर अल्लाह का अज़ाब आए या क़यामत क़ायम हो क्या अल्लाह के सिवा किसी और को पुकारोगे(26)
अगर सच्चे हो (27) {40}
बल्कि उसी को पुकारोगे तो वह अगर चाहे (28)
जिस पर उसे पुकारते हो उसे उठाले और शरीकों को भूल जाओगे (29) {41}

तफ़सीर सूरए – अनआम – चौथा रूकू

(1) गुनाहों के.

(2) हदीस शरीफ़ में है कि काफ़िर जब अपनी क़ब्र से निकलेगा तो उसके सामने बहुत भयानक डरावनी और बहुत बदबूदार सूरत आएगी. वह काफ़िर से कहेगी तू मुझे पहचानता है. काफ़िर कहेगा, नहीं. तो वह काफ़िर से कहेगी, मैं तेरा ख़बीस अमल यानी कुकर्म हूँ. दुनिया में तू मुझपर सवार रहा, आज मैं तुझ पर सवार हूं और तुझे तमाम सृष्टि में रूस्वा करूंगा. फिर वह उसपर सवार हो जाता है.

(3) जिसे बक़ा अर्थात ठहराव नहीं, जल्द गुज़र जाती है, और नेकियाँ और फ़रमाँबरदारियाँ अगरचे मूमिन से दुनिया ही में हुई हों, लेकिन वो आख़िरत के कामों में से हैं.

(4) इससे साबित हुआ कि पाकबाज़ों और नेक लोगों के कर्मों के सिवा दुनिया में जो कुछ है, सब बुराई ही बुराई है.

(5) अख़नस बिन शरीक़ और अबू जहल की आपसी मुलाक़ात हुई तो अख़नस ने अबू जहल से कहा, ऐ अबुल हिकम (काफ़िर अबू जहल को यही पुकारते थे) यह एकान्त की जगह है और यहाँ कोई ऐसा नहीं जो मेरी तेरी बात पर सूचित हो सके. अबू तू मुझे ठीक ठीक बता कि मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) सच्चे हैं या नहीं. अबू जहल ने कहा कि अल्लाह की क़सम, मुहम्मद बेशक सच्चे हैं, कभी कोई झूटी बात उनकी ज़बान पर न आई, मगर बात यह है कि ये क़ुसई की औलाद हैं और लिवा (झंडा), सिक़ायत (पानी पिलाना), हिजाबत, नदवा वग़ैरह, तो सारे सत्कार उन्हें हासिल ही हैं, नबुव्वत भी उन्हीं में हो जाए तो बाक़ी क़ुरैशियों के लिये सम्मान क्या रह गया. तिरमिज़ी ने हज़रत अली रदियल्लाहो अन्हो से रिवायत की कि अबू जहल ने हज़रत सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से कहा, हम आपको नहीं झुटलाते, हम तो उस किताब को झुटलाते हैं जो आप लाए. इस पर यह आयत उतरी.

(6) इसमें सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तसल्ली है कि क़ौम हुज़ूर की सच्चाई का विश्वास रखती है लेकिन उनके ज़ाहिरी झुटलाने का कारण उनका हसद और दुश्मनी है.

(7) आयत के ये मानी भी होते हैं कि ऐ हबीब, आपका झुटलाया जाना अल्लाह की आयतों का झुटलाया जाना है और झुटलाने वाले ज़ालिम.

(8) और झुटलाने वाले हलाक कर दिये गए.

(9) उसके हुक्म को कोई पलट नहीं सकता. रसूलों की मदद और उनके झुटलाने वालों की हलाकत, उसने जिस समय लिख दी है, ज़रूर होगी.

(10) और आप जानते हैं कि उन्हें काफ़िरों से कैसी तकलीफ़ें पहुंची, ये नज़र के सामने रखकर आप दिल को इत्मीनान में रखें,.

(11) सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को बहुत इच्छा थी कि सब लोग इस्लाम ले आएं. जो इस्लाम से मेहरूम रहते, उनकी मेहरूमी आपको बहुत अखरती.

(12) मक़सद उनके ईमान की तरफ़ से रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की उम्मीद तोड़ना है, ताकि आपको उनके इन्कार करने और ईमान न लाने से दुख और तकलीफ़ न हो.

(13) दिल लगाकर समझने के लिये वही नसीहत क़ुबूल करते हैं और सच्चे दीन की दावत तसलीम करते हैं.

(14) याने काफ़िर लोग.

(15) क़यामत के दिन.

(16) और अपने कर्मों का बदला पाएंगे.

(17) मक्के के काफ़िर.

(18) काफ़िरों की गुमराही और सरकशी इस हद तक पहुंच गई कि वो कई निशानियों और चमत्कार, जो उन्होंने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से देखे थे, उन पर भरोसा न किया और सबका इन्कार कर दिया और ऐसी आयत तलब करने लगे जिसके साथ अल्लाह का अज़ाब हो जैसा कि उन्होंने कहा था “अल्लाहुम्मा इन काना हाज़ा हुवल हक्क़ा मिन इन्दिका फ़-अमतिर अलैना हिजारतम मिनस समाए” यानी यारब अगर यह सत्य है तेरे पास से तो हम पर आसमान से पत्थर बरसा. (तफ़सीरे अबुसऊद),

(19) नहीं जानते कि इसका उतरना उनके लिये बला है कि इन्कार करते ही हलाक कर दिये जाएंगे.

(20) यानी तमाम जानदार चाहे वो मवेशी हों या जंगली जानवर या चिड़ियाँ, तुम्हारी तरह उम्मतें हैं. कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया कि ये पशु पक्षी तुम्हारी तरह अल्लाह को पहचानते, एक मानते, उसकी तस्बीह पढ़ते, इबादत करते हैं. कुछ का कहना है कि वो मख़लूक़ होने में तुम्हारी तरह हैं. कुछ ने कहा कि वो इन्सान की तरह आपसी प्रेम रखते हैं और एक दूसरे की बात समझते हैं. कुछ का क़ौल है कि रोज़ी तलब करने, हलाकत से बचने, नर मादा की पहचान रखने में तुम्हारी तरह हैं. कुछ ने कहा पैदा होने, मरने, मरने के बाद हिसाब के लिये उठने में तुम्हारी तरह हैं.

(21) यानी सारे उलूम और तमाम “माकाना व मायकून” (यानी जो हुआ और जो होने वाला है) का इसमें बयान है और सारी चीज़ों की जानकारी इसमें है. इस किताब से या क़ुरआन शरीफ़ मुराद है या लौहे मेहफ़ूज़. (जुमल वग़ैरह)

(22) और तमाम जानदारों, पशु पक्षियों का हिसाब होगा. इसके बाद वो ख़ाक कर दिये जाएंगे.

(23) कि हक़ मानना और हक़ बोलना उन्हें हासिल नहीं.

(24) जिहालत और आशचर्य और कुफ़्र के.

(25) इस्लाम की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए.

(26) और जिनको दुनिया में मअबूद मनते थे, उनसे हाजत रवाई चाहोगे.

(27) अपने इस दावे में कि मआज़ल्लाह बुत मअबूद हैं, तो इस वक़्त उन्हें पुकारो मगर ऐसा न करोगे.

(28) तो इस मुसीबत को.

(29) जिन्हें अपने झूठे अक़ीदे में मअबूद जानते थे और उनकी तरफ़ नज़र भी न करोगे क्योंकि तुम्हें मालूम है कि वो तुम्हारे काम नहीं आ सकते.

सूरए अनआम – पाँचवा रूकू

सूरए अनआम – पाँचवा रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला
और बेशक हमने तुमसे पहली उम्मतों की तरफ़ रसूल भेजे तो उन्हें सख़्ती और तकलीफ़ से पकड़ा(1)
कि वो किसी तरह गिड़गिड़ाएं(2)(42)
तो क्यों न हुआ कि जब उनपर अज़ाब आया तो गिड़गिड़ाए होते लेकिन दिल तो सख़्त हो गए (3)
और शैतान ने उनके काम निगाह में भले कर दिखाए (43) फिर जब उन्होंने भुला दिया जो नसीहतें उनको की गईं थीं (4)
हमने उनपर हर चीज़ के दर्वाज़े खोल दिये (5)
यहाँ तक कि जब ख़ुश हुए उसपर जो उन्हें मिला (6)
तो हमने अचानक उन्हें पकड़ लिया (7)
अब वो आस टूटे रह गए (44) तो जड़ काट दी गई ज़ालिमों की (8)
और सब ख़ूबियों सराहा अल्लाह रब सारे संसार का (9) (45)
तुम फ़रमाओ भला बताओ तो अगर अल्लाह तुम्हारे कान और आँख ले ले और तुम्हारे दिलों पर मोहर कर दे (10)
तो अल्लाह के सिवा कौन ख़ुदा है कि तुम्हें यह चीज़ ला दे (11)
देखो हम किस किस रंग से आयतें बयान करते हैं फिर वो मुंह फेर लेते हैं (46) तुम फ़रमाओ भला बताओ तो अगर तुम पर अल्लाह का अज़ाब आए अचानक (12)
या खुल्लमखुल्ला (13)
तो कौन तबाह होगा सिवा ज़ालिमों के (14) (47)
और हम नहीं भेजते रसूलों को मगर ख़ुशी और डर सुनाते (15)
तो जो ईमान लाए और संवरे (16)
उनको न कुछ डर न कुछ ग़म (48) और जिन्होंने हमारी आयतें झुटलाई उन्हें अज़ाब पहुंचेगा बदला उनकी बेहुक्मी का (49) तुम फ़रमा दो मैं तुमसे नहीं कहता कि मेरे पास अल्लाह के ख़ज़ाने हैं और न यह कहूं कि मैं आप ग़ैब जान लेता हूँ और न तुमसे यह कहूं कि मैं फ़रिश्ता हूँ (17)
मैं तो उसीका ताबे (अधीन) हूँ जो मुझे वही आती है (18)
तुम फ़रमाओ क्या बराबर हो जाएंगे अंधे और अंखियारे (19)
तो क्या तुम ग़ौर नहीं करते (50)

तफ़सीर अनआम – पाँचवा रूकू

(1) दरिद्रता, ग़रीबी और बीमारी वग़ैरह में जकड़ा.

(2) अल्लाह की तरफ़ रूजू करें, अपने गुनाहों से बाज़ आएं.

(3) वो अल्लाह की बारगाह में तौबा करने, माफ़ी मांगने के बजाय कुफ़्र और झुटलाने पर अड़े रहे.

(4) और वो किसी तरह नसीहत लेने को तैयार न हुए, न पेश आई मुसीबतों से, न नबियों के उपदेशों से.

(5) सेहत व सलामती और रिज़्क़ में बढ़ौतरी और आराम वग़ैरह के.

(6) और अपने आपको उसका हक़दार समझने और क़ारून की तरह घमण्ड करने लगे.

(7) और अज़ाब में जकड़ा.

(8) और सब के सब हलाक कर दिये गए, कोई बाक़ी न छोड़ा गया.

(9) इससे मालूम हुआ कि गुमराहों, बेदीनों और ज़ालिमों की हलाकत अल्लाह तआला की नेअमत है, इस पर शुक्र करना चाहिये.

(10) और इल्म व मअरिफ़त का निज़ाम दरहम बरहम हो जाए.

(11) इसका जवाब यही है कि कोई नहीं. तो अब तौहीद यानी अल्लाह के एक होने पर दलील क़ायम हो गई कि जब अल्लाह के सिवा कोई इतनी क़ुदरत और अधिकार वाला नहीं तो इबादत का हक़दार सिर्फ़ वही है और शिर्क बहुत बुरा ज़ुल्म और जुर्म है.

(12) जिसके नशान और चिन्ह पहले से मालूम न हों.

(13) आँखों देखते.

(14) यानी काफ़िरों के, कि उन्होंने अपनी जानों पर ज़ुल्म किया और यह हलाकत उनके हक़ में अज़ाब है.

(15) ईमानदारों को जन्नत व सवाब की बशारतें देते और काफ़िरों को जहन्नम व अज़ाब से डराते.

(16) नेक अमल करें.

(17) काफ़िरों का तरीक़ा था कि वो सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से तरह तरह के सवाल किया करते थे. कभी कहते कि आप रसूल हें तो हमें बहुत सी दौलत और माल दीजिये कि हम कभी मोहताज न हों. हमारे लिये पहाड़ों को सोना कर दीजियें. कभी कहते कि पिछली और आगे की ख़बरें सुनाइये और हमें हमारे भविष्य की ख़बर दीजिये, क्या क्या होगा ताकि हम मुनाफ़ा हासिल करें और नुक़सान से बचने के लिये पहले से प्रबन्ध कर लें. कभी कहते, हमें क़यामत का वक़्त बताइये कब आएगी. कभी कहते आप कैसे रसूल हैं जो खाते पीते भी हैं, निकाह भी करते हैं. उनकी इन तमाम बातों का इस आयत में जवाब दिया गया कि यह कलाम निहायत बेमहल और जिहालत का है. क्योंकि जो व्यक्ति किसी बात का दावा करे उससे वही बातें पूछी जा सकती हैं जो उसके दावे से सम्बन्धित हों. ग़ैर ज़रूरी बातों का पूछना और उनको उस दावे के खिलाफ़ तर्क बनाना अत्यन्त दर्जें की जिहालत और अज्ञानता है. इसलिये इरशाद हुआ कि आप फ़रमा दीजिये कि मेरा दावा यह तो नहीं कि मेरे पास अल्लाह के ख़ज़ाने हैं जो तुम मुझ से माल दौलत का सवाल करो और उसकी तरफ़ तवज्जह न करूं तो नबुव्वत का इनकार करदा. न मेरा दावा ज़ाती ग़ैब दानी का है कि अगर मैं तुम्हें पिछली या आयन्दा की ख़बरें न बताऊं तो मेरी रिसालत मानने में उज़्र कर सको. न मैंने फ़रिश्ता होने का दावा किया है कि खाना पीना निकाह करना ऐतिराज़ की बात हो. तो जिन चीज़ों का दावा ही नहीं किया उनका सवाल बेमहल और उसका जवाब देना मुझपर लाज़िम नहीं. मेरा दावा नबुव्वत और रिसालत का है और जब उस पर ज़बरदस्त दलीलें और मज़बूत प्रमाण क़ायम हो चुके तो ग़ैर मुतअल्लिक़ बातें पेश करना क्या मानी रखता है. इस से साफ़ स्पष्ट हो गया कि इस आयत को सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के ग़ैब पर सूचित किये जाने की नफ़ी के लिये तर्क बनाना ऐसा ही बेमहल है जैसा काफ़िरों का इन सवालों को नबुव्वत के इन्कार की दस्तावेज़ बनाना बेमहल था. इसके अलावा इस आयत से हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को अता किये गए इल्म का इन्कार किसी तरह मुराद ही नहीं हो सकता क्योंकि उस सूरत में आयतों के बीच टकराव और परस्पर विरोध का क़ायल होना पड़ेगा जो ग़लत है. मुफ़स्सिरों का यह भी कहना है कि हुज़ूर का “ला अक़ूलो लकुम.” फ़रमाना विनम्रता के रूप में है. (ख़ाज़िन, मदारिक व जुमल वग़ैरह)

(18) और यही नही का काम है. तो मैं तुम्हें वही दूंगा जिसकी मुझे इजाज़त होगी, वही करूंगा जिसका मुझे हुक्म मिला हो.

(19) मूमिन व काफ़िर, आलिम व जाहिल.

सूरए अनआम – छटा रूकू

सूरए अनआम – छटा रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला

और इस क़ुरआन से उन्हें डराओ जिन्हें ख़ौफ़ (भय) हो कि अपने रब की तरफ़ यूं उठाए जाएं कि अल्लाह के सिवा न उनका कोई हिमायती हो न कोई सिफ़ारिशी इस उम्मीद पर कि वो परहेज़गार हो जाएं (51) और दूर न करो उन्हें जो अपने रब को पुकारते हैं सुबह और शाम उसकी रज़ा चाहते (1)
तुमपर उनके हिसाब से कुछ नहीं और उनपर तुम्हारे हिसाब से कुछ नहीं (2)
फिर उन्हें तुम दूर करो तो यह काम इन्साफ़ से कुछ नहीं फिर उन्हें तुम दूर करो तो यह काम इन्साफ़ से परे है (52) और यूंही हमने उन्हें एक को दूसरे के लिये फ़ितना (मुसीबत) बनाया कि मालदार काफ़िर मोहताज मुसलमानों को देखकर (3)
कहें क्या ये है जिनपर अल्लाह ने एहसान किया हम में से(4)
क्या अल्लाह ख़ूब नहीं जानता हक़ मानने वालों को (53) और जब तुम्हारे हुज़ूर वो हाज़िर हों जो हमारी आयतों पर ईमान लाते हैं तो उनसे फ़रमाओ तुमपर सलाम हो तुम्हारे रब ने अपने करम के ज़िम्मे पर रहमत लाज़िम कर ली है(5)
कि तुममें जो कोई नादानी से कुछ बुराई कर बैठे फिर उसके बाद तौबा करें और संवर जाए तो बेशक अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है (54) और इसी तरह हम आयतों को तफ़सील से बयान फ़रमाते हैं (6)
और इसलिये कि मुजरिमों का रास्ता ज़ाहिर हो जाए (7) (55)

तफ़सीर सूरए अनआम – छटा रूकू

(1) काफ़िरों की एक जमाअत सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में आई तो उन्होंने देखा कि हुज़ूर के चारों तरफ़ ग़रीब सहाबा की एक जमाअत हाज़िर है जो मामूली दर्जे के लिबास पहने हुए हैं. यह देखकर वो कहने लगे कि हमें इन लोगों के पास बैठते शर्म आती है. अगर आप इन्हें अपनी मजलिस से निकाल दें तो हम आप पर ईमान ले आएं और आप की ख़िदमत में हाज़िर रहें. हुज़ूर ने इसको स्वीकार न फ़रमाया. इस पर यह आयत उतरी.

(2) सब का हिसाब अल्लाह पर है, वही सारी सृष्टि को रोज़ी देने वाला है. उसके सिवा किसी के ज़िम्मे किसी का हिसाब नहीं. मतलब यह कि वह कमज़ोर फ़क़ीर जिनका ज़िक्र ऊपर हुआ आपके दरबार में क़ुर्ब पाने के मुस्तहिक हैं. उन्हें दूर न करना ही ठीक है.

(3) हसद के तौर पर.

(4) कि उन्हें ईमान और हिदायत नसीब की, इसके बावुजूद कि वो लोग फ़क़ीर ग़रीब हैं. और हम रईस और सरदार हैं. इससे उनका मतलब अल्लाह तआला पर ऐतिराज़ करना है कि ग़रीब अमीर पर सबक़त का हक़ नहीं रखते तो अगर वह हक़ होता जिस पर ये ग़रीब हैं तो वो हमसे ऊंचे न होते.

(5) अपने फ़ज़्ल व करम से वादा फ़रमाया.

(6) ताकि सच्चाई ज़ाहिर हो और उस पर अमल किया जाए.

(7) ताकि उससे परहेज़ किया जाए, दूर रहा जाए.

सूरए अनआम – सातवाँ रूकू

सूरए अनआम – सातवाँ रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला

तुम फ़रमाओ मुझे मना किया गया है कि उन्हें पूजूं जिनको तुम अल्लाह के सिवा पूजते हो (1)
तुम फ़रमाओ मैं तुम्हारी ख़्वाहिश पर नहीं चलता (2)
यूं हो तो मैं बहक जाऊं और राह पर न रहूं (56) तुम फ़रमाओ मैं तो अपने रब की तरफ़ से रौशन दलील (प्रमाण) पर हूँ(3)
और तुम उसे झुटलाते हो, मेरे पास नहीं जिसकी तुम जल्दी मचा रहे हो (4)
हुक्म नहीं मगर अल्लाह का वह हक़ फ़रमाता है और वह सबसे बेहतर फ़ैसला करने वाला (57) तुम फ़रमाओ अगर मेरे पास होती वह चीज़ जिसकी तुम जल्दी कर रहे हो (5)
तो मुझमें तुम में काम ख़त्म हो चुका होता (6)
और अल्लाह ख़ूब जानता है सितम करने वालों को (58) और उसी के पास हैं कुंजिया ग़ैब (अज्ञात) की उन्हें वही जानता है (7)
और जानता है जो कुछ ख़ुश्की और तरी में है, और जो पत्ता गिरता है वह उसे जानता है और कोई दाना नहीं ज़मीन की अंधेरियों में और न कोई तर और ख़ुश्क जो एक रौशन किताब में न लिखा हो (8)(59)
और वही है जो रात को तुम्हारी रूहें निकालता है (9)
और जानता है जो कुछ दिन में कमाओ फिर तुम्हें दिन में उठाता है कि ठहराई हुई मीआद पूरी हो (10)
फिर उसीकी तरफ़ फिरना है (11)
फिर वह बता देगा जो कुछ तुम करते थे (60)

तफ़सीर सूरए अनआम – सातवाँ रूकू

(1) क्योंकि यह अक़्ल और नक़्ल दोनों के ख़िलाफ़ है.

(2) यानी तुम्हारा तरीक़ा नफ़्स का अनुकरण है न कि दलील का अनुकरण, इसलिये तुम्हारे तरीक़े को अपनाया नहीं जा सकता.

(3) और मुझे उसकी पहचान हासिल है. मैं जानता हूँ कि उसके सिवा कोई पूजे जाने के क़ाबिल नहीं. रौशन दलील क़ुरआन शरीफ़ और चमत्कार और तौहीद के प्रमाण सबको शामिल है.

(4) काफ़िर हंसी में हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से कहा करते थे कि हम पर जल्दी अज़ाब उतरवाइये. इस आयत में उन्हें जवाब दिया गया और ज़ाहिर कर दिया गया कि हुज़ूर से यह सवाल करना निहायत बेजा है.

(5) यानी अज़ाब.

(6) मैं तुम्हें एक घड़ी की मोहलत न देता और तुम्हें रब का मुख़ालिफ़ देखकर बेधड़क हलाक कर डालता. लेकिन अल्लाह तआला हिल्म वाला है, अज़ाब देने में जल्दी नहीं फ़रमाता.

(7) तो जिसे वह चाहे, वही ग़ैब पर सूचित हो सकता है. बिना उसके बताए कोई ग़ैब नहीं जान सकता. (वाहिदी)

(8) रौशन किताब से लौहे मेहफ़ूज मुराद है. अल्लाह तआला ने पिछले और अगरे सारे उलूम इसमें दर्ज फ़रमा दिये.

(9) तो तुमपर नींद छा जाती है और तुम्हारी क्षमताएं अपने हाल पर बाक़ी नहीं रहती हैं.

(10) और उम्र अपनी हद को पहुंचे.

(11) आख़िरत में. इस आयत में मरने के बाद ज़िन्दा होने पर दलील ज़िक्र फ़रमाई गई. जिस तरह रोज़ सोने के वक़्त एक तरह की मौत तुमपर भेजी जाती है जिससे तुम्हारे हवास मुअत्तल हो जाते हैं और चलना फिरना पकड़ना और जागते के सारे काम शिथिल हो जाते हैं, उसके बाद बेदारी के वक़्त अल्लाह तआला सारे अंगों को उनकी क्षमताएं प्रदान करता है. यह खुला प्रमाण है इस बात का कि वह तमाम ज़िन्दगानी की क्षमताओं को मौत के बाद अता करने पर इसी तरह की क़ुदरत रखता है.

सूरए अनआम – आठवाँ रूकू

सूरए अनआम – आठवाँ रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला

और वही ग़ालिब (बलवान) है अपने बन्दों पर और तुमपर निगहबान भेजता है (1)
यहां तक कि जब तुम में किसी को मौत आती है हमारे फ़रिश्ते उसकी रूह निकालते हैं (2)
और वो क़ुसूर (ग़लती) नहीं करते (3)(61)
फिर फेरे जाते हैं अपने सच्चे मौला अल्लाह की तरफ़, सुनता है उसी का हुक्म है (4)
और वह सबसे जल्द हिसाब करने वाला (5) (62)
तुम फ़रमाओ वह कौन है जो तुम्हें निजात (छुटकारा) देता है जंगल और दरिया की आफ़तों से जिसे पुकारते हो गिड़गिड़ा कर और आहिस्ता कि अगर वह हमें इससे बचावे तो हम ज़रूर एहसान मानेंगे(6) (63)
तुम फ़रमाओ अल्लाह तुम्हें निजात देता है उस से और हर बेचैनी से फिर तुम शरीक ठहराते हो(7) (64)
तुम फ़रमाओ वह क़ादिर है कि तुमपर अज़ाब भेजे तुम्हारे ऊपर से या तुम्हारे पांव के तले (नीचे) से या तुम्हें भिड़ा दे मुख़्तलिफ़ गिरोह करके और एक को दूसरे की सख़्ती चखाए, देखो हम कैसे तरह तरह से आयतें बयान करते हैं कि कहीं उनको समझ हो (8) (65)
और उसे(9)
झुटलाया तुम्हारी क़ौम ने और यही हक़ (सत्य) है, तुम फ़रमाओ मैं तुम पर कुछ करोड़ा नहीं (10) (66)
हर चीज़ का एक वक़्त मुक़र्रर (निश्चित) है (11)
और बहुत जल्द जान जाओगे (67) और ऐ सुनने वाले जब तू उन्हें देखे जो हमारी आयतों में पड़ते हैं (12)
तो उनसे मुंह फेर ले (13)
जब तक और बात में पड़ें और जो कहीं तुझे शैतान भुला दे तो याद आए पर ज़ालिमों के पास न बैठ (68) और परहेज़गारों पर उनके हिसाब से कुछ नहीं (14)
हां नसीहत देना शायद वो बाज़ आएं (15) (69)
और छोड़ दे उनको जिन्हों ने अपना दीन हंसी खेल बना लिया और उन्हें दुनिया की ज़िन्दगी ने धोखा दिया और क़ुरआन से नसीहत दो (16)
कि कहीं कोई जान अपने किये पर पकड़ी न जाए (17)
अल्लाह के सिवा न उसका कोई हिमायती हो न सिफ़ारशी और अगर अपने इवज़ सारे बदले दे तो उससे न लिये जाएं, ये हैं (18)
वो जो अपने किये पर पकड़े गए उन्हें पीने का खौलता पानी और दर्दनाक अज़ाब बदला उनके कुफ़्र का (70)

तफ़सीर सूरए अनआम – आठवाँ रूकू

(1) फ़रिश्ते, जिनको किरामन कातिबीन कहते हैं. वो आदमी की नेकी और बदी लिखते रहते हैं. हर आदमी के साथ दो फ़रिश्ते हैं, एक दाएं एक बाएं. दाएं तरफ़ का फ़रिश्ता नेकियाँ लिखता है और बाएं तरफ़ का फ़रिश्ता बुराईयाँ. बन्दों को चाहिये कि होशियार रहें और बुराइयों और गुनाहों से बचें क्योंकि हर एक काम लिखा जा रहा है और क़यामत के दिन वह लेखा तमाम सृष्टि के सामने पढ़ा जाएगा तो गुनाह कितनी रूसवाई का कारण होंगे. अल्लाह पनाह दे. आमीन.

(2) इन फ़रिश्तों से मुराद या तो अकेले मलकुल मौत हैं. उस सूरत में बहुवचन आदर और सम्मान के लिये है. या मलकुल मौत उन फ़रिश्तों समेत मुराद हैं जो उनके सहायक हैं. जब किसी की मौत का वक़्त क़रीब आता है तो मौत का फ़रिश्ता अल्लाह के हुक्म से अपने सहायक फ़रिश्तों को उसकी रूह निकालने का हुक्म देता है. जब रूह हलक़ तक पहुंचती है तो ख़ुद मलकुल मौत रूह निकालते हैं.  (ख़ाज़िन)

(3)  और अल्लाह के हुक्म को पूरा करने में उनसे कोताही नहीं होती और उनके कामों में सुस्ती और विलम्ब का सवाल नहीं होता. वो अपने कर्तव्य ठीक वक़्त पर अदा करते हैं.

(4) और उस दिन उसके सिवा कोई हुक्म करने वाला नहीं.

(5) क्योंकि उसको सोचने, जांचने या गिन्ती करने की ज़रूरत नहीं जिस में देर हों.

(6) इस आयत में काफ़िरों को चेतावनी दी गई है कि ख़ुश्की और तरी के सफ़र में जब वो आफ़तों में मुबतिला होकर परेशान होते हैं और ऐसी सख़्तियाँ पेश आती हैं जिनसे दिल काँप जाते हैं और ख़तरे दिलों को बेचैन कर देते हैं, उस वक़्त बुत परस्त भी बुतों को भूल जाता है और अल्लाह तआला ही से दुआ करता है, उसी के समक्ष गिड़गिड़ाता है और कहता है कि इस मुसीबत से अगर तूने मुझे छुटकारा दिलाया तो मैं शुक्रगुज़ार होऊंगा और तेरी नेअमत का हक़ बजा लाऊंगा.

(7) और शुक्रगुज़ारी के बजाय ऐसी बड़ी नाशुक्री करते हो, यह जानते हुए कि बुत निकम्मे हैं, किसी काम के नहीं, फिर उन्हें अल्लाह का शरीक करते हो, कितनी बड़ी गुमराही है.

(8) मुफ़स्सिरों का इसमें मतभेद है कि इस आयत में कौन लोग मुराद हैं. एक जमाअत ने कहा कि इससे हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की उम्मत मुराद है और आयत उन्हीं के बारे में उतरी है. बुख़ारी की हदीस में है कि जब यह उतरा कि वह क़ादिर है, तुम पर अज़ाब भेजे तुम्हारे ऊपर से, तो सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया तेरी ही पनाह माँगता हूँ. और जब यह उतरा क्या तुम्हारे पाँव के नीचे से, तो फ़रमाया मैं तेरी ही पनाह माँगता हूँ. और जब यह उतरा, या तुम्हें भिड़ा दे मुख़्तलिफ़ गिरोह करके और एक को दूसरे की सख़्ती चखाए, तो फ़रमाया यह आसान है. मुस्लिम की हदीस में है कि एक दिन सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने मस्जिदे बनी मुआविया में दो रकअत नमाज़ अदा फ़रमाई और इसके बाद लम्बी दुआ की. फिर सहाबा की तरफ़ मुतवज्जेह होकर फ़रमाया, मैंने अपने रब से तीन सवाल किये, इन में से सिर्फ़ दो क़ुबूल फ़रमाए गए. एक सवाल तो यह था कि मेरी उम्मत को आम अकाल से हलाक न फ़रमाए, यह क़ुबूल हुआ. एक यह था कि उन्हें ग़र्क़ यानी पानी में डुबोकर हलाक न फ़रमाए, यह भी क़ुबूल हुआ. तीसरा सवाल यह था कि उनमें आपस में जंग और झगड़ा न हो, यह कु़बूल न हुआ.

(9) यानी क़ुरआन शरीफ़ को, या अज़ाब के उतरने को.

(10) मेरा काम हिदायत है, दिलों की ज़िम्मेदारी मुझ पर नहीं.

(11) यानी अल्लाह तआला ने जो ख़बरें दीं उनके लिये समय निश्चित हैं. वो ठीक उसी समय घटेंगी.

(12) तानों, गालियों और हंसी मज़ाक़ के साथ.

(13) और उनके साथ उठना बैठना छोड़कर. इस आयत से मालूम हुआ कि बेदीनों की जिस मजलिस में दीन का सत्कार न किया जाता हो, मुसलमान को वहाँ बैठना जायज़ नहीं. इससे साबित हो गया कि काफ़िरों और बेदीनों के जलसे, जिनमें वो दीन के ख़िलाफ़ बोलते हैं, उनमें जाना, उन्हें सुनना जायज़ नहीं और उनके रद और जवाब के लिये जाना उनके साथ उठने बैठने में शामिल नहीं, बल्कि यह सच्चाई ज़ाहिर करता है, और यह मना नहीं जैसा कि अगली आयत में आता है.

(14) यानी ताना देने और मज़ाक उड़ाने वालों के गुनाह उन्हीं पर हैं, उन्हीं से इसका हिसाब होगा, परहेज़गारों पर नहीं. मुसलमानों ने कहा था कि हमें गुनाह का डर है, जबकि हम उन्हें छोड़ दें और मना न करें. इस पर यह आयत नाज़िल हुई.

(15) इस आयत से मालूम हुआ कि नसीहत और उपदेश और सच्चाई के इज़हार के लिये उनके पास बैठना जायज़ है.

(16) और शरीअत के आदेश बताओ.

(17) और अपने जुर्मों के कारण जहन्नम के अज़ाब में गिरफ़्तार न हो.

(18) दीन को हंसी खेल बनाने वाले और दुनिया के दीवाने.

सूरए अनआम – नवाँ रूकू

सूरए अनआम – नवाँ रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला

तुम फ़रमाओ (1)
क्या हम अल्लाह के सिवा उसको पूजें जो हमारा न भला करे न बुरा (2)
और उलटे पांव पलटा दिये जाएं बाद इसके कि अल्लाह ने हमें राह दिखाई (3)
उसकी तरह जिसे शैतान ने ज़मीन में राह भुला दी (4)
हैरान है उसके साथी उसे राह की तरफ़ बुला रहे हैं कि इधर आ तुम फ़रमाओ कि अल्लाह ही की हिदायत हिदायत है (5)
और हमें हुक्म है कि हम उसके लिये गर्दन रख दें (6)
जो रब है सारे संसार का(71) और यह कि नमाज़ क़ायम रखो और उस से डरो और वही है जिसकी तरफ़ तुम्हें उठना है (72) और वही है जिसने आसमान और ज़मीन ठीक बनाए(7)
और जिस दिन फ़ना (नष्ट) हुई हर चीज़ को कहेगा हो जा वह फ़ौरन हो जाएगी, उसकी बात सच्ची है और उसी की सल्तनत है जिस दिन सूर (शंख) फुंका जाएगा (8)
हर छुपे और ज़ाहिर का जानने वाला और वही है हिकमत वाला ख़बरदार (73) और याद करो जब इब्राहीम ने अपने बाप (9)
आज़र से कहा क्या तुम बुतों को ख़ुदा बनाते हो, बेशक मैं तुम्हें और तुम्हारी क़ौम को खुली गुमराही में पाता हूँ (10) (74)
और इसी तरह हम इब्राहीम को दिखाते हैं सारी बादशाही आसमानों और ज़मीन की (11)
और इसलिये कि वह आँखो देखे यक़ीन वालों में हो जाए (12) (75)
फिर जब उनपर रात का अन्धेरा आया एक तारा देखा (13)
बोले इसे मेरा रब ठहराते हो, फिर जब वह डूब गया बोले मुझे ख़ुश नहीं आते डूबने वाले(76)  फिर जब चांद चमकता देखा बोले इसे मेरा रब बताते हो फिर जब वह डूब गया कहा अगर मुझे मेरा रब हिदायत न करता तो मैं भी इन्हीं गुमराहों में होता(14) (77)
फिर जब सूरज जगमगाता देखा बोले इसे मेरा रब कहते हो (15)
यह तो इन सब से बड़ा है फिर जब वह डूब गया कहा ऐ क़ौम मैं बेज़ार हूँ इन चीज़ों से जिन्हें तुम शरीक ठहराते हो (16) (78)
मैं ने अपना मुंह उसकी तरफ़ किया जिसने आसमान और ज़मीन बनाए एक उसीका होकर (17)
और मैं मुश्रिकों में नहीं (79) और उनकी क़ौम उनसे झगड़ने लगी कहा क्या अल्लाह के बारे में मुझसे झगड़ते हो तो वह मुझे राह बता चुका (18)
और मुझे उनका डर नहीं जिन्हें तुम शरीक बताते हो (19)
हां जो मेरा ही रब कोई बात चाहे(20)
मेरे रब का इल्म हर चीज़ को घेरे हुए है, तो क्या तुम नसीहत नहीं मानते (80) और मैं तुम्हारे शरीकों से कैसे डरूं (21)
और तुम नहीं डरते कि तुमने अल्लाह का शरीक उसको ठहराया जिसकी तुमपर उसने कोई सनद न उतारी, तो दोनों गिराहों में अमान का ज़्यादा हक़दार कौन है (22)
अगर तुम जानते हो (81) वो जो ईमान लाए और अपने ईमान में किसी नाहक़ चीज़ की आमेज़िश (मिश्रण) न की उन्हीं के लिये अमान है और वही राह पर हैं (82)

तफ़सीर सूरए अनआम – नवाँ रूकू

(1) ऐ मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैका वसल्लम, उन मुश्रिकों से जो अपने बाप दादा के दीन की तरफ़ आपको बुलाते है.

(2) और उसमें कोई क़ुदरत नहीं.

(3) और इस्लाम और तौहीद की नेअमत अता फ़रमाई और बुतपरस्ती के बदतरीन वबाल से बचाया.

(4) इस आयत में सच और झूठ की तरफ़ बुलाने वालों की एक उपमा बयान फ़रमाई गई कि जिस तरह मुसाफ़िर अपने साथियों के साथ था, जंगल में भूतों और शैतानों ने उसको रास्ता बहका दिया और कहा मंज़िले मक़सूद की यही राह है और उसके साथी उसको सीधी राह की तरफ़ बुलाने लगे. वह हैरान रह गया, किधर जाए. अंजाम उसका यही होगा कि अगर वह भूतों की राह पर चल दे तो हलाक़ हो जाए या और साथियों का कहा माने तो सलामत रहेगा और मंज़िल पर पहुंच जाएगा. यही हाल उस शख़्स का है जो इस्लाम के तरीक़े से बहका और शैतान की राह पर चला. मुसलमान उसको सीधे रास्ते की तरफ़ बुलाते हैं. अगर उनकी बात मानेगा, राह पाएगा वरना हलाक हो जाएगा.

(5) यानी जो रास्ता अल्लाह तआला ने अपने बन्दों के लिये साफ़ और खुला फ़रमा दिया और जो दीन (इस्लाम) उनके लिये निश्चित किया वही हिदायत व नूर है और जो इसके सिवा है वह बातिल दीन है.

(6) और उसी की फ़रमाँबरदारी करें और ख़ास उसी की इबादत करें.

(7) जिनसे उसकी भरपूर क़ुदरत और उसका सम्पूर्ण इल्म और उसकी हिकमत और कारीगरी ज़ाहिर है.

(8) कि नाम को भी कोई सल्तनत का दावा करने वाला न होगा. सारे शासक सारे बादशाह और सब दुनिया की सल्तनत का घमण्ड करने वाले देखेंगे कि दुनिया में जो वो सल्तनत का दावा करते थे, वह ग़लत और झूटा था.

(9) क़ामूस में है कि आज़र हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के चचा का नाम है. इमाम अल्लामा जलालुद्दीन सियूती ने “मसालिकुल हुनफ़ा” में भी ऐसा ही लिखा है. चचा को बाप कहना सारे मुल्कों में आम है ख़ासकर अरब में. क़ुरआने करीम में है, “नअबुदो इलाहका व इलाहा आबाइका इब्राहीमा व इस्माईला व इस्हाक़ा इलाहौं वाहिदन” यानी बोले हम पूजेंगे उसे जो खुदा है आपका और आपके बाप के आबा इब्राहीम व इस्माईल व इस्हाक़ का एक खुदा. (सूरए बक़रह, आयत 133) इसमें हज़रत इस्माईल को हज़रत याकूब के “आबा” में ज़िक्र किया गया है जब कि आप चचा हैं. हदीस शरीफ़ में भी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने हज़रत अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा को “अब” फ़रमाया. चुनांचे इरशाद किया “रूद्दू अलैया अबी” और यहाँ अबी से हज़रत अब्बास मुराद हैं.

(10) यह आयत अरब के मुश्रिकों पर हुज्जत है जो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को बुज़ुर्ग जानते थे और उनकी बुज़ुर्गी को मानते थे. उन्हें दिखाया जाता है कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम बुतपरस्ती को कितना बड़ा ऐब और गुमराही बताते हैं. अगर तुम उन्हें मानते हो तो बुत परस्ती तुम भी छोड़ दो.

(11) यानी जिस तरह हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को दीन में समझ अता फ़रमाई ऐसे ही उन्हें आसमानों और ज़मीन के मुल्क दिखाते हैं. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया इससे आसमानों और ज़मीनों की उत्पत्ति मुराद है. मुजाहिद और सईद बिन जुबैर कहते है यह इस तरह कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को पत्थर पर खड़ा किया गया और आपके लिये आसमानों के पर्दे खोल दिये गए यहाँ तक कि आपने अर्श व कुर्सी और आसमानों के सारे चमत्कार और जन्नत में अपने मक़ाम को देखा. आपके लिये ज़मीन के पर्दे उठा दिये गए यहाँ तक कि आपने सब से नीचे की ज़मीन तक नज़र की और ज़मीनों के तमाम चमत्कार देखे. मुफ़स्सिरों का इसमें मतभेद है कि यह देखना सर की आँखों से था या दिल की आँखों से. (दुर्रे मन्सूर, ख़ाज़िन वग़ैरह)

(12) क्योंकि हर ज़ाहिर और छुपी चीज़ उनके सामने कर दी गई और इन्सानों के कर्मों में से कुछ भी उनसे छुपा न रहा.

(13) तफ़सीरे के जानकार और सीरत के माहिरों का बयान है कि नमरूद इब्ने कनआन बड़ा अत्याचारी बादशाह था. सबसे पहले उसीने ताज सर पर रखा. यह बादशाह लोगों से अपनी पूजा कराता था. उसके दरबार में ज्योतिषी और जादूगर बहुत से थे. नमरूद ने ख़्वाब देखा कि एक सितारा निकला है, उसकी रौशनी के सामने चाँद सरज बिल्कुल बेनूर हो गए. इससे वह बहुत डरा. जादूगरों से इसकी ताबीर पूछी. उन्होंने कहा कि इस साल तेरे राज्य में एक लड़का पैदा होगा जो तेरे पतन का कारण बनेगा और तेरे दीन वाले उसके हाथ से हलाक होंगे. यह ख़बर सुनकर वह परेशान हुआ और उसने हुक्म दिया कि जो बच्चा पैदा हो, क़त्ल कर दिया जाए और मर्द औरतों से अलग रहें और इसकी चौकसी के लिये एक विभाग क़ायम कर दिया गया. अल्लाह के हुक्म को कौन टाल सकता है. हज़रत इब्राहीम की वालिदा गर्भवती हुई और जादूगरों ने नमरूद को इसकी ख़बर भी दे दी कि वह बच्चा गर्भ में आ गया है. लेकिन चूंकि हज़रत की वालिदा की उम्र कम थी, उनका गर्भ किसी तरह पहचाना ही न गया.  जब ज़चगी का समय निकट आया तो आपकी वालिदा एक तहख़ाने में चली गई जो आपके वालिद ने शहर से दूर खोदकर तैयार किया था. वहाँ आप की पैदायश हुई और वहीं आप रहे. पत्थरों से उस तहख़ाने का दर्वाज़ा बन्द कर दिया जाता था. रोज़ाना वालिदा साहिबा दूध पिला आती थीं और जब वहाँ पहुंचती तो देखतीं कि आप अपनी उंगली के पोर चूस रहे हैं और उनसे दूध निकल रहा है. आप बहुत जल्द बढ़ते थे, एक महीने मैं इतना जितने दूसरे बच्चे एक साल में. इसमें मतभेद है कि आप तहख़ाने में कितने साल रहे. कुछ कहते हैं सात साल, कुछ तेरह बरस, कुछ सत्तरह बरस. यह बात यक़ीनी है कि नबी हर हाल में मासूम होते हैं और वो अपनी ज़िन्दगी की शुरूआत से आख़िर तक अल्लाह वाले होते हैं. एक दिन हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपनी वालिदा से पूछा मेरा रब (पालने वाला) कौन है ? उन्होंने फ़रमाया, मैं. फ़रमाया, तुम्हारा पालने वाला कौन है ? कहा, तुम्हारे वालिद. फ़रमाया, उनका रब कौन है. वालिदा ने कहा, ख़ामोश रहो. और अपने शौहर से जाकर कहा कि जिस लड़के की निस्बत यह मशहूर है कि वह ज़मीन वालों का दीन बदल देगा. वह तुम्हारा ही बेटा है. और सारी बातचीत बयान की. हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने शुरू ही से तौहीद की हिमायत और कुफ़्र का रद शुरू फ़रमा दिया और जब एक सूराख़ की राह से रात के वक़्त आपने ज़ोहरा या मुश्तरी सितारा देखा तो हुज्जत क़ायम करनी शुरू कर दी. क्योंकि उस ज़माने के लोग बुतों और सितारों की पूजा करते थे. आपने एक अत्यन्त उमदा तरीक़े से उन्हें प्रमाण की तरफ़ बुलाया जिससे वो इस नतीजे पर पहुंचे कि सारा जगत किसी का पैदा किया हुआ है और ऐसी चीज़ मअबूद नहीं हो सकती. मअबूद वही है जिसके इख़्तियार और क़ुदरत से जगत में परिवर्तन होते रहते हैं.

(14) इसमें क़ौम को चेतावनी है कि चाँद को मअबूद ठहराए वह गुमराह है. क्योंकि उसका एक हालत से दूसरी हालत में बदलना इस बात का सुबूत है कि वह किसी का पैदा किया हुआ है, अपने में कोई क़ुदरत नहीं रखता.

(15) “शम्स” यानी सूरज के लिये अरबी में पुल्लिंग व स्त्रीलिंग दोनों ही इस्तेमाल किये जा सकते हैं यहाँ “हाज़ा” पुल्लिंग लाया गया. इसमें सम्मान की सीख है कि “रब” शब्द की रिआयत के लिये स्त्रीलिंग न लाया गया.

(16) हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने साबित कर दिया कि सितारों में छोटे से बड़े तक कोई भी रब होने की योग्यता नहीं रखता. उनका मअबूद होना बातिल है और क़ौम जिस शिर्क में गिरफ़तार है आपने उससे बेज़ारी ज़ाहिर की और इसके बाद सच्चे दीन का बयान फ़रमाया जो आगे आता है.

(17) यानी इस्लाम के, बाक़ी सब धर्मों से अलग रहकर. इससे मालूम हुआ कि सच्चे दीन की स्थापना और मज़बूती तब ही हो सकती है जब कि झूठे धर्मों से बेज़ारी हो.

(18) अपनी तौहीद और पहचान की.

(19) क्योंकि वो बेजान बुत हैं, न नुक़सान पहुंचा सकते है न नफ़ा दे सकते हैं उनसे क्या डरना. आपने मुश्रिकों से जवाब में फ़रमाया था जिन्होंने आपसे कहा था कि बुतों से डरो, उनको बुरा कहने से कहीं आपको कुछ नुक़सान न पहुंच जाए.

(20) वह होगी क्योंकि मेरा रब हर चीज़ पर भरपूर क़ुदरत रखता है.

(21) जो बेजान और नफ़ा नुक़सान पहुंचाने से मेहरूम हैं.

(22) अल्लाह के एक होने में विश्वास रखने वाला या उसके साथ शरीक ठहराने वाला.

सूरए अनआम – दसवाँ रूकू

सूरए अनआम – दसवाँ रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला

और यह हमारी दलील है कि हमने इब्राहीम को उसकी क़ौम पर अता फ़रमाई हम जिसे चाहे दर्जों बलन्द करें(1)
बेशक तुम्हारा रब हिकमत व इल्म वाला है (83) और हमने उन्हें इस्हाक़ और यअक़ूब अता किये, उन सबको हमने राह दिखाई और उनसे पहले नूह को राह दिखाई और उसकी औलाद में से दाऊद और सुलैमान और अय्यूब और यूसुफ़ और मूसा और हारून को और हम ऐसा ही बदला देते हैं नेकी करने वालों को (84) और ज़करिया और यहया और ईसा और इलियास को ये सब हमारे क़ुर्ब के लायक़ हैं, (85) और इस्माईल और यसअ और यूनुस और लूत को और हमने हर एक को उसके वक़्त में सबपर फ़ज़ीलत (बुज़ुर्गी) दी (2)(86)
और कुछ उनके बाप दादा और औलाद और भाईयों में से कुछ को (3)
और हमने उन्हें चुन लिया और सीधी राह दिखाई (87) यह अल्लाह की हिदायत है कि अपने बन्दों में  जिसे चाहे दे और अगर वो शिर्क करते तो ज़रूर उनका किया अकारत जाता (88) ये हैं जिनको हमने किताब और हुक्म और नबुव्वत (पैग़म्बरी) अता की तो अगर ये लोग (4)
इससे इन्कारी हों तो हमने उसके लिये एक ऐसी क़ौम लगा रखी है जो इन्कार वाली नहीं (5)(89)
ये है जिनको अल्लाह ने हिदायत की तो तुम उन्हीं की राह चलो (6)
तुम फ़रमाओ मैं क़ुरआन पर तुम से कोई उजरत (वेतन) नहीं मांगता, वह तो नहीं मगर नसीहत सारे जगत को (7) (90)

तफ़सीर सूरए अनआम – दसवाँ रूकू

(1) इल्म और सूझ बूझ, समझदारी और बुज़ुर्गी के साथ जैसे कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के दर्जें ऊंचे किये दुनिया में इल्म व हिकमत व नबुव्वत के साथ और आख़िरत में क़ुर्ब और सवाब के साथ.

(2) नबुव्वत और रिसालत के साथ. इस आयत से इस पर सनद लाई जाती है कि नबी फ़रिश्तों से अफ़ज़ल हैं क्योंकि आलम अल्लाह के सिवा सारी मौजूद चीज़ों को शामिल है. फ़रिश्ते भी इसमें दाख़िल हैं तो जब तमाम जगत वालों पर फ़ज़ीलत दी तो फ़रिश्तों पर भी फ़ज़ीलत साबित हो गई. यहाँ अल्लाह तआला ने अठ्ठारह नबियों का ज़िक्र फ़रमाया और इस ज़िक्र में तरतीब या क्रम न ज़माने के ऐतिबार से है न बुज़ुर्गी के. लेकिन जिस शान से नबियों के नाम बयान फ़रमाए गए हैं उसमें एक अजीब लतीफ़ा है, वह यह कि अल्लाह तआला ने नबियों की हर एक जमाअत को एक ख़ास तरह की करामत और बुज़ुर्गी के साथ मुमताज़ फ़रमाया तो हज़रत नूह व इब्राहीम व इस्हाक़ व याक़ूब का पहले ज़िक्र किया क्योंकि ये नबियों के उसूल हैं यानी उनकी औलाद में बहुत से नबी हुए जिनका नसब उन्हीं की तरफ़ पलटता है. नबुव्वत के बाद दर्जों के लिहाज़ से मुल्क, इख़्तियार और सल्तनत और सत्ता है. अल्लाह तआला ने हज़रत दाऊद और सुलैमान को इनमें से बहुत कुछ अता फ़रमाया. ऊंचे दर्जों में मुसीबत और बला पर सब्र करना भी शामिल है. अल्लाह तआला ने हज़रत अय्यूब को इसके साथ मुमताज़ किया. फिर मुल्क और सब्र के दोनों दर्जे हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को बख़्शे कि आपने मुद्दतों सख़्तियों और तकलीफ़ों पर सब्र फ़रमाया. फिर अल्लाह तआला ने नबुव्वत के साथ मिस्त्र प्रदेश अता किया. चमत्कार और ताक़त भी ऊंचे दर्जों में आती है. अल्लाह तआला ने हज़रत मूसा और हज़रत हारून को ये दोनों चीज़ें अता फ़रमाई. पाकबाज़ी और माया मोह का त्याग भी ऊंचे दर्जें की निशानी है. हज़रत ज़करिया और हज़रत यहया और हज़रत ईसा और हज़रत इलियास को इसके साथ मख़सूस फ़रमाया. इन नबियों के बाद अल्लाह तआला ने उन नबियों का बयान फ़रमाया कि जिनके न अनुयायी बाक़ी रहे न उनकी शरीअत, जैसे कि हज़रत इस्माईल, हज़रत यसअ, हज़रत यूनुस, हज़रत लूत अलैहिस्सलाम. इस शान से नबियों का बयान फ़रमाने में उनकी करामतों और विशेषताओं का एक अदभुत क्रम नज़र आता है.

(3) हमने बुज़ुर्गी दी.

(4) यानी मक्का वाले.

(5) इस क़ौम से या ईसाई मुराद हैं या मुहाजिर या रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के सहाबा या हुज़ूर पर ईमान लाने वाले सब लोग. इस आयत से साबित है कि अल्लाह तआला अपने हबीब सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की मदद फ़रमाएगा और आपके दीन को क़ुव्वत देगा और उसको दूसरे तमाम दीनों पर ग़ालिब करेगा. चुनांचे ऐसा ही हुआ और यह ग़ैबी ख़बर सच हुई.

(6) उलमा ने इस आयत से यह मअसला साबित किया है कि सैयदे आलम सल्लललाहो अलैहे वसल्लम तमाम नबियों से अफ़ज़ल हैं क्योंकि जो विशेषताएं, चमत्कार और गुण अलग अलग दूसरे नबियों को दिये गए थे, नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के लिये उन सब को जमा फ़रमा दिया और आपको हुक्म दिया “फ़बिहुदाहुमुक़्तदिह” यानी तो तुम उन्हीं की राह चलों. (सूरए अनआम, आयत 90) तो जब आप तमाम नबियों की विशेषताएं रखते हैं तो बेशक सबसे अफ़ज़ल हुए.

(7) इस आयत से साबित हुआ कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम तमाम सृष्टि की तरफ़ भेजे गए हैं और आपकी दावत सारी सृष्टि को आम है और सारा जगत आपकी उम्मत है. (ख़ाज़िन)

सूरए अनआम ग्यारहवाँ रूकू

सूरए अनआम ग्यारहवाँ रूकू

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला

और यहूद ने अल्लाह की क़द्र न जानी जैसी चाहिये थी(1 )
जब बोले अल्लाह ने किसी आदमी पर कुछ नहीं उतारा तुम फ़रमाओ किसने उतारी वह किताब जो मूसा लाए थे रौशनी और लोगों के लिये हिदायत जिसके तुमने अलग अलग क़ाग़ज़ बनाए ज़ाहिर करते हो (2)
और बहुत से छुपा लेते हो (3)
और तुम्हें वह सिखाया जाता है (4)
जो न तुमको मालूम था न तुम्हारे बाप दादा को, अल्लाह कहो(5)
फिर उन्हें छोड़ दो उनकी बेहूदगी में उन्हें खेलता (6) (91)
और यह है बरकत वाली किताब कि हमने उतारी (7)
तस्दीक़ (पुष्टि) फ़रमाती उन किताबों की जो आगे थीं और इसलिये कि तुम डर सुनाओ सब बस्तियों के सरदार को (8)
और जो कोई सारे जगत में उसके गिर्द हैं और जो आख़िरत पर ईमान लाते हैं (9)
उस किताब पर ईमान लाते हैं और अपनी नमाज़ की हिफ़ाज़त करते हैं (92) और उस से बढ़ कर ज़ालिम कौन जो अल्लाह पर झूठ बांधे (10)
या कहे मुझे वही (देववाणी) हुई और वही न हुई (11)
और जो कहे अभी मैं डराता हूँ ऐसा जैसा अल्लाह ने उतारा (12)
और कभी तुम देखो जिस वक़्त ज़ालिम मौत की सख़्तियों में हैं फ़रिश्ते हाथ फैलाए हुए हैं (13)
कि निकालो अपनी जानें, आज तुम्हें ख़्वारी का अज़ाब दिया जाएगा बदला उसका कि अल्लाह पर झूठ लगाते थे(14)
और उसकी आयतों से तकब्बुर (घमण्ड) करते (93)
और बेशक तुम हमारे पास अकेले आये जैसा हमने तुम्हें पहली बार पैदा किया था (15)
और पीठ पीछे छोड़ आए जो माल व मत्ता हमने तुम्हें दिया था और हम तुम्हारे साथ तुम्हारे उन सिफ़ारिशियों को नहीं देखते जिनका तुम अपने में साझा बताते थे  (16)
बेशक तुम्हारे आपस की डोर कट गई  (17)
और तुम से गये जो दावे करते थे (18) (94)

तफसीर सूरए-अनआम ग्यारहवाँ रूकू

(1)  और उसको पहचानने से मेहरूम रहे और अपने बन्दों पर उसकी जो रहमत और क़रम है उसको न जाना, यहूदियों की एक जमाअत अपने बड़े पादरी मालिक इब्ने सैफ़ को लेकर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से बहस करने आई. हुज़ूर ने फ़रमाया मैं तुझे उस परवर्दिगार की क़सम देता हूँ जिसने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पर तौरात उतारी, क्या तौरात में तूने यह देखा है “इन्नल्लाहा यबग़दुल हिब्रल समीन” यानी अल्लाह को मोटा आलिम नापसन्द है. कहने लगा, हाँ यह तौरात मैं है. हुज़ूर ने फ़रमाया तू मोटा आलिम ही तो है. इसपर वह ग़ुस्से में भरकर कहने लगा कि अल्लाह ने किसी आदमी पर कुछ नहीं उतारा. इसपर यह आयत उतरी और इसमें फ़रमाया गया, किसने उतारी वह किताब जो मूसा लाए थे, तो वह लाजवाब हो गया और यहूदी उस से नाराज़ हो गए और उसको झिड़कने लगे और उसको पादरी के ओहदे से हटा दिया. (मदारिक और ख़ाज़िन)

(2) इन में से कुछ को जिसका इज़हार अपनी इच्छा के अनुसार समझते हो.

(3)  जो तुम्हारी इच्छा के खिलाफ़ करते हैं जैसे कि तौरात के वो हिस्से जिनमें सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तारीफ़ और उनकी विशेषताओं का बयान है.

(4) सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तालीम और क़ुरआन शरीफ़ से.

(5) यानी जब वो इसका जवाब न दे सकें कि वह किताब किसने उतारी तो आप फ़रमा दीजिये कि अल्लाह ने.

(6) क्योंकि जब आपने तर्क पूरा कर दिया और उपदेश और संदेश अन्त तक पहुंचा दिया और उनके लिये बहाने बनाने की कोई गुंजायश न छोड़ी, इसपर भी वो बाज़ न आएं, तो उन्हें उनकी बेहूदगी में छोड़ दीजिये. यह काफ़िरों के हित में फिटकार है.

(7) यानी क़ुरआन शरीफ.

(8) “बस्तियों का सरदार” मक्कए मुकर्रमा है, क्योंकि वह तमाम ज़मीन वालों का क़िबला है.

(9) और क़यामत व आख़िरत और मरने के बाद उठने का यक़ीन रखते है और अपने अंजाम से ग़ाफ़िल और बेख़बर नहीं है.

(10) और नबुव्वत का झूटा दावा करे.

(11) यह आयत मुसैलमा कज़्ज़ाब के बारे में उतरी जिसने यमामा यमन प्रदेश में नबुव्वत का झूटा दावा किया था. बनी हनीफ़ा क़बीले के कुछ लोग उसके धोखे में आ गए थे. यह कज़्ज़ाब हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ की ख़िलाफ़त के ज़माने में अमीर हमज़ा रदियल्लाहो अन्हो के क़ातिल बहशी के हाथों मारा गया.

(12)  यह आयत अब्दुल्लाह बिन अबी सरह, जो वही की किताबत करता था, उसके बारे में उतरी, जब आयत “वलक़द ख़लक़नल इन्साना” उतरी उसने इसे लिखा और आख़िर तक पहुंचते पहुंचते इन्सान की पैदायश की तफ़सील पर सूचित होकर आश्चर्य में पड़ गया और इस हालत में आयत का आख़िरी हिस्सा “तबारकल्लाहो अहसनुल ख़ालिक़ीन” बेइख़्तियार उसकी ज़बान पर जारी हो गया. इसपर उसको यह घमण्ड हुआ कि मुझपर वही आने लगी और वह इस्लाम से फिर गया. यह न समझा कि वही के नूर और कलाम की शक्ति और हुस्न से आयत का आख़िरी कलिमा ज़बान पर आ गया, इसमें उसकी योग्यता का कोई दख़्ल न था. कलाम की शक्ति ख़ुद अपने आख़िर को बता दिया करती है. जैसे कभी कोई शायर अच्छा मज़मून पढे, वह मज़मून ख़ुद क़ाफ़िया बता देता है और सुनने वाले शायर से पहले क़ाफ़िया पढ़ देते हैं. उनमें ऐसे लोग भी होते हैं जो हरगिज़ वैसा शेर कहने की क्षमता नहीं रखते, तो क़ाफ़िया बताना उनकी योग्यता नहीं, कलाम की शक्ति है. और यहाँ तो वही का नूर और नबी के नूर से सीने में रौशनी आती थी. चुनांचे मजलिस शरीफ़ से जुदा होने और इस्लाम से फिर जाने के बाद फिर वह एक जुमला भी ऐसा बनाने पर क़ादिर न हुआ, जो क़ुरआन के कलाम से मिल सकता, अन्त में हुज़ूर के ज़माने में ही मक्का की विजय से पहले फिर इस्लाम ले आया.

(13) आत्माएं निकालने के लिये झिड़के जाते हैं और कहते जाते हैं.

(14) नबुव्वत और वही के झूठे दावे करके और अल्लाह के लिये शरीक और बीवी बच्चे बताकर.

(15) न तुम्हारे साथ माल है न ऐश्वर्य, न औलाद, जिनकी महब्बत में तुम उम्र भर गिरफ़्तार रहे, न वो बुत, जिन्हें पूजा किये. आज उनमें से कोई तुम्हारे काम न आया, यह काफ़िरों से क़यामत के दिन फ़रमाया जाएगा.

(16) कि वो इबादत के हक़दार होने में अल्लाह के शरीक हैं (मआज़ल्लाह)

(17) और इलाक़े टूट गए, जमाअत बिखर गई.

(18) तुम्हारे वो तमाम झूठे दावे जो तुम दुनिया में किया करते थे, बातिल हो गए.

सूरए अनआम बारहवाँ रूकू

सूरए अनआम बारहवाँ रूकू

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला

बेशक अल्लाह दाने और गुठली को चीरने वाला है (1)
ज़िन्दा को मुर्दे से निकालने (2)
और मुर्दा को ज़िन्दा से निकालने (3)
यह है अल्लाह, तुम कहां औंधे जाते हो (4) (95)
तारीक़ी (अंधेरा) चाक करके सुबह निकालने वाला और उसने रात को चैन बनाया (5)
और सूरज और चांद को हिसाब (6)
यह साधा है ज़बरदस्त जानने वाले का (96)  और वही है जिसने तुम्हारे लिये तारे बनाए कि उनसे राह पाओ ख़ुश्की और तरी के अंधेरों में हमने निशानियां तफ़सील से (विस्तार से) बयान कर दीं इल्म वालों के लिये (97)  और वही है जिसने तुमको एक जान से पैदा किया (7)
फिर कहीं तुम्हें ठहरना है (8)
और कहीं अमानत रहना (9)
बेशक हमने तफ़सील से आयतें बयान कर दीं समझ वालों के लिये (98)  और वही है जिसने आसमान से पानी उतारा तो हमने उससे हर उगने वाली चीज़ निकाली (10)
तो हमने उससे निकाली सब्ज़ी जिसमें से दाने निकलते हैं एक दूसरे पर चढ़े हुए और खजूर के गाभे से पास पास अच्छे और अंगूर के बाग़ और ज़ैतून और अनार किसी बात में मिलते और किसी बात में अलग, उसका फल देखो जब फले और उसका पकना बेशक उसमें निशानियां है ईमान वालों के लिये (99)   और(11)
अल्लाह का शरीक ठहराया जिन्नों को (12)
हालांकि उसी ने उनको बनाया और उसके लिये बेटे और बेटियाँ घड़ लीं जिहालत से, पाकी और बरतरी है उसको उनकी बातों से (100)

तफसीर सूरए – अनआम बारहवाँ रूकू

(1) तौहीद और नबुव्वत के बाद अल्लाह तआला ने अपनी भरपूर क़ुदरत व इल्म और हिकमत की दलीलें बयान फ़रमाई क्योंकि सबसे बड़ा लक्ष्य अल्लाह तआला और उसकी सिफ़त और अहकाम की पहचान है, और यह जानना कि वही सारी चीज़ों को पैदा करने वाला है और जो ऐसा हो वही पूजने के क़ाबिल हो सकता है, न कि वो बुत जिन्हें मुश्रिक पूजतें हैं. ख़ुश्क दाना और गुठली चीर कर उनसे सब्ज़ा और दरख़्त पैदा करना और ऐसी पथरीली ज़मीनों में उनके गर्म रेशों को रवाँ करना जहाँ लोहे की सलाखें और कुदालें भी काम न कर सके, उसकी कुदरत के कैसे चमत्कार है.

(2) जानदार सब्ज़े को बेजान दाने और गुठली से, और इन्सान व हैवान को वीर्य से और चिड़िया को अन्डे से.

(3) जानदार दरख़्त से बेजान गुठली और दाने को, और इन्सान और हैवान से नुत्फ़े को, और चिड़िया से अन्डे को, यह उसके चमत्कार और क़ुदरत  और हिकमत है.

(4) और ऐसे प्रमाण क़ायम होने के बाद क्यों ईमान नहीं लाते और मौत के बाद उठने का यकीन नहीं करते. जो बेजान नुत्फे से जानदार हैवान पैदा करता है, उसकी क़ुदरत से मुर्दे को ज़िन्दा करना क्या दूर है.

(5)  कि आदमी उसमें चैन पाता है और दिन की थकान और कसलमन्दी को सुकून से दूर करती है और रातों को जागने वाले इबादत गुज़ार एकान्त में अपने रब की इबादत से चैन पाते हैं.

(6) कि उनके दौर और सैर से इबादतों और मामलात के समय मालूम हो.

(7) यानी हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से.

(8) माँ के गर्भ में या ज़मीन के ऊपर.

(9) बाप की पीठ में या क़ब्र के अन्दर.

(10) पानी एक और उससे जो चीज़ें उगाई वो क़िस्म क़िस्म की और रंगारंग.

(11) इसके बावजूद कि क़ुदरत, हिकमत और चमत्कारों की इन दलीलों और इस इनआम और इकराम और इन नेअमतों के पैदा करने और अता फ़रमाने का तका़ज़ा यह था कि उस मेहरबान बिगड़ी बनाने वाले रब पर ईमान लाते, इसके बजाय बुत परस्तों ने यह सितम किया. (जो आयत में आगे दिया है) कि….

(12) कि उनकी फ़रमाँबरदारी और अनुकरण करके मूर्तिपूजक हो गए.

सूरए अनआम तैरहवाँ रूकू

सूरए अनआम तैरहवाँ रूकू

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला

वे किसी नमूने के आसमानों और ज़मीन का बनाने वाला, उसके बच्चा कहाँ से हो हालांकि उसकी औरत नहीं (1)
और उसने हर चीज़ पैदा की(2)
और वह सब कुछ जानता है (101) यह है अल्लाह तुम्हारा रब (3)
और उसके सिवा किसी की बन्दगी नहीं हर चीज़ का बनाने वाला तो उसे पूजो वह जो हर चीज़ पर निगहबान है (4) (102)
आँखें उसे इहाता (घिराव) नहीं करतीं (5)
और सब आँखें उसके इहाते (घेरे) में हैं, और वही है पूरा बातिन पूरा ख़बरदार (103) तुम्हारे पास आँखें खोलने वाली दलीलें आई तुम्हारे रब की तरफ़ से तो जिसने देखा तो अपने भले को और जो अंधा हुआ अपने बुरे को और मैं तुमपर निगहबान नहीं (104)  और हम इसी तरह आयतें तरह तरह से बयान करते हैं(6)
और इसलिये कि काफ़िर बोल उठें कि तुम तो पढ़े हो और इसलिये कि उसे इल्म वालों पर वाज़ेह (स्पष्ट) कर दें (105) उसपर चलो जो तुम्हें तुम्हारे रब की तरफ़ से वही होती है(7)
उसके सिवा कोई मअबूद (पूजनीय) नहीं और मुश्रिकों से मुंह फेर लो (106) और अल्लाह चाहता तो वो शिर्क नहीं करते और हमने तुम्हें उनपर निगहबान नहीं किया और तुम उनपर करोड़े नहीं (107)  और उन्हें गाली न दो जिनको वो अल्लाह के सिवा पूजते हैं कि वो अल्लाह की शान में बेअदबी करेंगे ज़ियादती और जिहालत से (8)
यूं ही हमने हर उम्मत की निगाह में उसके अमल (कर्म) भले कर दिये हैं फिर उन्हें अपने रब की तरफ़ फिरना है और वह उन्हें बता देगा जो करते थे (108) और उन्होंने अल्लाह की क़सम खाई अपने हलफ़ में पूरी कोशिश से कि अगर उनके पास कोई निशानी आई तो ज़रूर उस पर ईमान लाएंगे, तुम फ़रमादो कि निशानियाँ तो अल्लाह के पास हैं (9)
और तुम्हें (10)
क्या ख़बर कि जब वो आएं तो ये ईमान न लाएंगे (109) और हम फेर देते हैं उनके दिलों और आँखों को (11)
जैसा कि वो पहली बार ईमान न लाए थे (12)
और उन्हें छोड़ देते हैं कि अपनी सरकशी (बग़ावत) में भटका करें (110)

तफसीर सूरए – अनआम तैरहवाँ रूकू

(1)  और वे औरत औलाद नहीं होती और पत्नी  उसकी शान के लायक़ नहीं क्योंकि कोई चीज़ उस जैसी नहीं.

(2) तो जो हैं वह उसकी मख़लूक़ यानी उसकी पैदा की हुई है. और मख़लूक़ औलाद नहीं हो सकती तो किसी मख़लूक़ को औलाद बताना ग़लत और बातिल है.

(3) जिसकी विशेषताएं बयान हुई और जिसकी ये विशेषताएं हों वही पूजनीय है.

(4) चाहे वो रिज़्क़ हो, या मौत या गर्भ.

(5) “इदराक” यानी इहाता करने के मानी हैं कि जो चीज़ देखें, उसके हर तरफ़ और सारी हदों की जानकारी रखना. इदराक की यही तफ़सीर हज़रत सईद बिन मुसैयब और हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा से नक़्ल की गई है. और मुफ़स्सिरों की बड़ी जमाअत इदराक की तफ़सीर इहाते से करती है और इहाता उसी चीज़ का हो सकता है जिसकी दिशाएं और सीमाएं हो. अल्लाह तआला के लिये दिशा और सीमा असंभव है तो उसका इदराक और इहाता भी संभव नहीं. यही एहले सुन्न्त का मज़हब है. ख़ारिज़ी और मोअतज़िली वग़ैरह गुमराह फ़िरके इदराक और रिवायत में फ़र्क़ नहीं करते इसलिये वो इस गुमराही में गिरफ़्तार हो गए कि उन्होंने दीदारे इलाही को मुहाले अक़ली क़रार दे दिया, इसके बावुजूद कि न देख सकना न जानने के लिये लाज़िम है. वरना जैसा कि अल्लाह तआला तमाम मौजूदात के विपरीत बिला कैफ़ियत व दिशा जाना जा सकता है, ऐसे ही देखा भी जा सकता है, क्योंकि अगर दूसरी चीज़ें बग़ैर कैफ़ियत और दिशा के देखी नहीं जा सकतीं तो जानी भी नहीं जा सकतीं. राज़ इसका यह है कि रूयत और दीद अर्थात दर्शन के मानी ये हैं कि नज़र किसी चीज़ को, जैसी कि वह हो, वैसा जाने तो जो चीज़ दिशा वाली होगी उसकी दीद या दर्शन दिशा अर्थात आकार में होगा और जिसके लिये आकार न होगा उसका दर्शन बिना आकार होगा. अल्लाह का दीदार आख़िरत में ईमान वालों को होगा, यह एहले सुन्नत का अक़ीदा और क़ुरआन व हदीस और सहाबा के क़ौल और बहुत सी दलीलों से साबित है. क़ुरआन शरीफ़ में फ़रमाया “वुजूहुंई यौमइज़िन नादिरतुन इला रब्बिहा नाज़िरह” कुछ मुंह उस दिन तरो ताज़ा होंगे अपने रब को देखते. (सूरए क़ियामह, आयत 22). इससे साबित है कि ईमान वालों को क़यामत के दिन उनके रब का दीदार उपलब्ध होगा. इसके अलावा और बहुत सी आयतों और कई सही हदीसों की रिवायतों से साबित है, अगर अल्लाह का दीदार असंभव होता तो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम दीदार का सवाल न करते “रब्बे अरिनी उन्ज़ुर इलैका” (ऐ रब में तुझे देखना चाहता हूँ)  इरशाद न करते और उनके जवाब में “इनिस तक़र्रा मकानहू फ़सौफ़ा तरानी” न फ़रमाया जाता. इन दलीलों से साबित हो गया कि आख़िरत में ईमान वालों के  लिये अल्लाह का दीदार शरीअत में साबित है और इसका इन्कार गुमराही है.

(6) कि हुज्जत या तर्क लाज़िम हो.

(7) और काफ़िरों की फ़ुज़ूल बातों पर ध्यान न दो. इसमें नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तसल्ली है कि आप काफ़िरों की बकवास से दुखी न हों. यह उनकी बदनसीबी है कि ऐसी रौशन दलीलों से फ़ायदा न उठाएं.

(8) क़तादा का क़ौल है कि मुसलमान काफ़िरों के बुतों की बुराई किया करते थे ताकि काफ़िरों को नसीहत हो और वो बुत परस्ती की बुराई जान जाएं मगर उन जाहिलों ने बजाए नसीहत पकड़ने के अल्लाह की शान में बेअदबी के साथ ज़बान खोलनी शुरू की. इस पर यह आयत नाज़िल हुई. अगरचे बुतों को बुरा कहना और उनकी हक़ीक़त का इज़हार ताअत और सवाब है, लेकिन अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की शान में काफ़िरों की बेअदबी को रोकने के लिये इसको मना फ़रमाया गया. इब्ने अंबारी का क़ौल है कि यह हुक्म पहले ज़माने में था, जब अल्लाह तआला ने इस्लाम को क़ुव्वत अता फ़रमाई, यह हुक्म स्थगित हो गया.

(9) वह जब चाहता है अपनी हिकमत के हिसाब से उतारता है.

(10) ऐ मुसलमाना!

(11) सच्चाई के मानने और देखने से.

(12) उन निशानियों पर जो नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के मुबारक हाथ पर ज़ाहिर हुई थीं, जैसे चाँद का दो टुकड़ों में चिर जाना, वगैरह जैसे खुले चमत्कार.

पारा सात समाप्त

सूरए अनआम चौदहवाँ रूकू

सूरए अनआम चौदहवाँ रूकू

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला

आठवाँ पारा- वलौ-अन्नना
(सूरए अनआम जारी)
चौदहवाँ रूकू

और अगर हम उनकी तरफ़ फ़रिश्ते उतारते (1)
और उनसे मुर्दे बातें करते और हम हर चीज़ उनके सामने उठा लाते जब भी वो ईमान लाने वाले न थे(2)
मगर यह कि ख़ुदा चाहता(3)
मगर उनमें बहुत निरे जाहिल हैं  (4) (111)
और इसी तरह हमने हर नबी के दुश्मन किये हैं आदमियों और जिन्नों में के शैतान कि उनमें से एक दूसरे पर छुपवां डालता है बनावट की बात (5)
धोखे को और तुम्हारा रब चाहता तो वो ऐसा न करते(6)
तो उन्हें उनकी बनावटों पर छोड़ दो (7) (112)
और इसलिये कि उस (8)
की तरफ़ उनके दिल झुकें जिन्हें आख़िरत पर ईमान नहीं और उसे पसन्द करें और गुनाह कमाएं जो उन्हें गुनाह कमाना है (113) तो क्या अल्लाह के सिवा मैं किसी और का फ़ैसला चाहूँ और वही है जिसने तुम्हारी तरफ़ मुफ़स्सल  (विस्तार से) किताब उतारी (9)
और जिनको हमने किताब दी वो जानते हैं कि यह तेरे रब की तरफ़ से सच उतरा है(10)
तो ऐ सुनने वाले तू कभी शक वालों में न हो (114) और पूरी है तेरे रब की बात सच और इन्साफ़ में उसकी बातों का कोई बदलने वाला नहीं (11)
और वही है सुनता जानता (115) और ऐ सुनने वाले ज़मीन में अक्सर वो हैं कि तू उनके कहे पे चले तो तुझे अल्लाह की राह से बहकादें, वो सिर्फ़ गुमान के पीछे हैं (12)
और निरी अटकलें दौड़ाते हैं (13)(116)
तेरा रब ख़ूब जानता है कि कौन बहका उसकी राह से और ख़ूब जानता है हिदायत वालों को (117) तो खाओ उसमें से जिसपर अल्लाह का नाम लिया गया (14)
अगर तुम उसकी आयतें मानते हो  (118) और तुम्हें क्या हुआ कि उसमें से न खाओ जिस (15)
पर अल्लाह का नाम लिया गया वह तुम से मुफ़स्सल  (स्पष्ट) बयान कर चुका जो कुछ तुमपर हराम हुआ(16)
मगर जब तुम्हें उससे मजबूरी हो (17)
और बेशक बहुतेरे अपनी ख़्वाहिशों से गुमराह करते हैं बे जाने, बेशक तेरा रब हद से बढ़ने वालों को ख़ूब जानता है (119) और छोड़दो खुला और छुपा गुनाह, वो जो गुनाह कमाते हैं जल्द ही अपनी कमाई की सज़ा पाएंगे (120) और उसे न खाओ जिस पर अल्लाह का नाम न लिया गया (18)
और वह बेशक नाफ़रमानी है, और बेशक शैतान अपने दोस्तों के दिलों में डालते हैं कि तुम से झगड़ें और अगर तुम उनका कहना मानो  (19)
तो उस वक़्त तुम मुश्रिक  हो (20)(121)

तफसीर सूरए
अनआम चौदहवाँ रूकू

(1)  इब्ने जरीर का क़ौल है कि यह आयत हंसी बनाने वाले क़ुरैश के बारे में उतरी, उन्होंने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से कहा था कि ऐ मुहम्मद, आप हमारे मुर्दों को उठा लाइये, हम उनसे पूछ लें कि आप जो कहते हैं वह सच है या नहीं. और हमें फ़रिश्ते दिखाइये जो आपके रसूल होने की गवाही दें या अल्लाह और फ़रिश्तों को हमारे सामने लाइये, इसके जवाब में यह आयत उतरी.

(2) वो सख़्त दिल वाले हैं.

(3) उसकी मर्ज़ी जो होती है वही होता है. जो उसके इल्म में ख़ुशनसीब हैं वो ईमान से माला माल होते हैं.

(4) नहीं जानते कि ये लोग वो निशानियाँ बल्कि इससे भी ज़्यादा देखकर ईमान लाने वाले नहीं.  (जुमल व मदारिक)

(5) यानी वसवसे और छलकपट की बातें बहकाने के लिये.

(6) लेकिन अल्लाह तआला अपने बन्दों में से जिसे चाहता है परीक्षा में डालता है ताकि उसके मेहनत पर सब्र करने से ज़ाहिर हो जाए कि यह बड़े सवाब पाने वाला है.

(7) अल्लाह उन्हें बदला देगा, रूस्वा करेगा और आपकी मदद फ़रमाएगा.

(8) बनावट की बात.

(9) यानी क़ुरआन शरीफ़ जिसमें अच्छे कामों का हुक्म, बुरे कामों से दूर रहने के आदेश, सवाब के वादे, अज़ाब की चेतावनी, सच और झूट का फ़ैसला और मेरी सच्चाई की गवाही और तुम्हारे झूटे इल्ज़ामों का बयान है. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से मुश्रिक कहा करते थे कि आप हमारे और अपने बीच एक मध्यस्थ मुक़र्रर कर लीजिये. उनके जवाब में यह आयत उतरी.

(10)  क्योंकि उनके पास इसकी दलीलें हैं.

(11) न कोई उसके निश्चय को बदलने वाला, न हुक्म को रद करने वाला, न उसका वादा झूठा हो सके. कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया कि कलाम जब सम्पूर्ण है तो उसमें दोष या तबदीली हो ही नहीं सकती और वह क़यामत तक हर क़िस्म के रद्दोंबदल से मेहफ़ूज़ है. कुछ मुफ़स्सिर फ़रमाते हैं मानी ये हैं कि किसी की क़ुदरत नहीं कि क़ुरआने पाक में तहरीफ़ यानी रद्दोबदल कर सके क्योंकि अल्लाह तआला ने इसकी हिफ़ाज़त की ज़मानत अपने करम के ज़िम्मे ले ली है.  (तफ़सीरे अबू सऊद)

(12) अपने जाहिल और गुमराह बाप दादा का अनुकरण करते है, दूरदृष्टि और सच्चाई को पहचानने से मेहरूम हैं.

(13) कि यह हलाल है और यह हराम और अटकल से कोई चीज़ हलाल हराम नहीं हो जाती जिसे अल्लाह और उसके रसूल ने हलाल किया वह हलाल, और जिसे हराम किया वह हराम.

(14) यानी जो अल्लाह के नाम पर ज़िब्ह किया गया, न वह जो अपनी मौत मरा या बुतों के नाम पर ज़िब्ह किया गया, वह हराम है. हलाल होना अल्लाह के नाम पर ज़िब्ह होने से जुड़ा हुआ है. यह मुश्रिकों के उस ऐतिराज़ का जवाब है जो उन्होंने मुसलमानों पर किया था तुम अपना क़त्ल किया हुआ खाते हो और अल्लाह का मारा हुआ यानी जो अपनी मौत मरे, उसको हराम जानते हो.

(15) ज़बीहा.

(16) इससे साबित हुआ कि हराम चीज़ों का तफ़सील से ज़िक्र  होता है और हराम होने के सुबूत के लिये हराम किये जाने का हुक्म दरकार है और जिस चीज़ पर शरीअत में हराम होने का हुक्म न हो वह मुबाह यानी हलाल है.

(17) तो बहुत ही मजबूरी की हालत में या अगर जान जाने का ख़ौफ़ है तो जान बचाने भर की ज़रूरत के लिये जायज़ है.

(18) ज़िब्ह के वक़्त. चाहे इस तरह कि वह जानवर अपनी मौत मर गया हो या इस तरह कि उसको बग़ैर बिस्मिल्लाह के या ग़ैर ख़ुदा के नाम पर ज़िब्ह किया गया हो, ये सब हराम हैं. लेकिन जहाँ मुसलमान ज़िब्ह करने वाला ज़िब्ह के वक़्त “बिस्मिल्लाहे अल्लाहो अकबर” कहना भूल गया, वह ज़िब्ह जायज़ है.

सूरए अनआम पन्द्रहवाँ रूकू

सूरए अनआम पन्द्रहवाँ रूकू

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला

और क्या वह कि मुर्दा था हमने उसे ज़िन्दा किया (1)
और उसके लिये एक नूर कर दिया (2)
जिससे लोगों में चलाता है(3)
वह उस जैसा हो जाएगा जो अधेरियों में है (4)
उनसे निकलने वाला नहीं, यूंही काफ़िरों की आंख में उनके कर्म भले कर दिये गए हैं (122) और इसी तरह हमने हर बस्ती में उसके मुजरिमों के सरग़ने (सरदार) किये कि उसमें दाव खेलें (5)
और दाव नहीं खेलते मगर अपनी जानों पर और उन्हें समझ नहीं (6) (123)
और जब उनके पास कोई निशानी आए तो कहते हैं हम कभी ईमान न लाएंगे जब तक हमें भी वैसा न मिले जैसा अल्लाह के रसूलों को मिला (7)
अल्लाह ख़ूब जानता है जहाँ अपनी रिसालत रखे (8)
जल्द ही मुजरिमों को अल्लाह कें यहाँ ज़िल्लत पहुंचेगी और सख़्त अज़ाब, बदला उनके मक्र (मक्कारी) का (124)  और जिसे अल्लाह राह दिखाना चाहे उसका सीना इस्लाम के लिये खोल देता है (9)
और जिसे गुमराह करना चाहे उसका सीना तंग ख़ुब रूका हुआ कर देता है (10)
जैसे किसी की ज़बरदस्ती से आसमान पर चढ़ रहा है, अल्लाह यूंही अज़ाब डालता है ईमान न लाने वालों को (125)  और यह (11)
तुम्हारे रब की सीधी राह है, हमने आयतें तफ़सील से बयान कर दीं नसीहत वालों के लिये (126) उनके लिये सलामती का घर है अपने रब के यहां और वह उनका मौला है यह उनके कामों का फल है (127)  और जिस दिन उन सब को उठाएगा और फ़रमाएगा ऐ जिन्न के गिरोह तुमने बहुत आदमी घेर लिये (12)
और उनके दोस्त आदमी अर्ज़ करेंगे ऐ हमारे रब हम में एक ने दूसरे से फ़ायदा उठाया (13)
और हम अपनी उस मीआद (मुद्दत) को पहुंच गए जो तूने हमारे लिये मुक़र्रर फ़रमाई थी (14)
फ़रमाएगा आग तुम्हारा ठिकाना है हमेशा उसमें रहो मगर जिसे ख़ुदा चाहे (15)
ऐ मेहबूब बेशक तुम्हारा रब हिकमत वाला इल्म वाला है (128) और यूंही हम ज़ालिमों में एक को दूसरे पर मुसल्लत (सवार) करते हैं बदला उनके किये का (16) (129)

तफसीर सूरए
अनआम पन्द्रहवाँ रूकू

(1) मुर्दों से काफ़िर और ज़िन्दा से मुमिन मुराद है, क्योंकि कुफ़्र दिलों के लिये मौत है और ईमान ज़िन्दगी.

(2) नूर से ईमान मुराद है जिसकी बदौलत आदमी कुफ़्र की अंधेरियों से छुटकारा पाता है. क़तादा का क़ौल है कि नूर से अल्लाह की किताब यानी क़ुरआन मुराद है.

(3) और बीनाई यानी दृष्टि हासिल करके सच्चाई की राह पहचान लेता है.

(4) कुफ़्र व जिहालत और दिल के अंधेपन की यह एक मिसाल है जिसमें मूमिन और काफ़िर का हाल बयान फ़रमाया गया है कि हिदायत पाने वाला मूमिन उस मुर्दे की तरह है जिसने ज़िन्दगी पाई और उसको नूर मिला जिससे वह अपनी मंज़िल की राह पाता है. और काफ़िर की मिसाल उसकी तरह है जो तरह तरह की अंधेरियों में गिरफ़्तार हुआ और उनसे निकल न सके, हमेशा हैरत में पड़ा रहे. ये दोनों मिसालें हर मूमिन और काफ़िर के लिये आम है, अगरचे हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा के क़ौल के मुताबिक इनके उतरने की परिस्थिति यह है कि अबू जहल ने एक रोज़ सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर कोई नापाक चीज़ फैंकी थी, उस रोज़ हज़रत अमीर हमज़ा रदियल्लाहो अन्हो शिकार को गए हुए थे, जिस वक़्त वह हाथ में कमान लिये हुए शिकार से वापस आए तो उन्हें इस घटना की सूचना मिली, अगरचे वह अभी तक ईमान नहीं लाए थे, मगर यह ख़बर सुनकर उन्हें बहुत गुस्सा आया. वह अबू जहल पर चढ़ गए, और उसको कमान से मारने लगे और अबू जहल आजिज़ी और ख़ुशामद करने लगा और कहने लगा, अबू युअला  (हज़रत अमीर हमज़ा की कुन्नियत है) क्या आप ने नहीं देखा कि मुहम्मद कैसा दीन लाए और उन्होंने हमारे मअबूदों को बुरा कहा और हमारे बाप दादा की मुख़ालिफ़त की और हमे बदअक़्ल बताया. इसपर हज़रत अमीर हमज़ा ने फ़रमाया तुम्हारे बराबर बदअक़्ल कौन है कि अल्लाह को छोड़कर पत्थरों को पूजते हो. मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई मअबूद नहीं. और मैं गवाही देता हूं कि मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अल्लाह के रसूल है. उसी वक़्त हज़रत अमीर हमज़ा इस्लाम ले आए. इसपर यह आयत उतरी, तो हज़रत अमीर हमज़ा का हाल उसके जैसा है जो मुर्दा था, ईमान न रखता था, अल्लाह तआला ने उसको ज़िन्दा किया और अन्दर का नूर अता किया और अबू जहल का हाल यही है कि वह कुफ़्र और जिहालत की तारीकी में गिरफ़्तार रहे और………

(5) और तरह तरह के बहानों और धोखे और मक्कारी से लोगों को बहकाते और बातिल को रिवाज देने की कोशिश करते है.

(6) कि उसका वबाल उन्हीं पर पड़ता है.

(7) यानी जबतक हमारे पास वही न आए और हमें नबी न बनाया जाए. वलीद बिन मुग़ीरा ने कहा था कि अगर नबुव्वत हक़ हो तो उसका ज़्यादा हक़दार मैं हूँ क्योंकि मेरी उम्र मुहम्मद से ज़्यादा है, और माल भी, इस पर यह आयत उतरी.

(8) यानी अल्लाह जानता है कि नबुव्वत की योग्यता और इसका हक़ किसको है, किसको नहीं, उम्र और माल से कोई नबुव्वत का हक़दार नहीं हो सकता. ये नबुव्वत के तलबगार तो हसद, छलकपट, बद एहदी वग़ैरह बुरे कामों में गिरफ़्तार हैं, ये कहाँ और नबुव्वत की महान उपाधि कहाँ.

(9) उसको ईमान की तौफ़ीक़ देता है और उसके दिल में रौशनी पैदा करता है.

(10) कि उसमें इल्म और तौहीद और  ईमान की दलीलों की गुंजायश न हो तो उसकी ऐसी हालत होती है कि जब उसका ईमान की दअवत दी जाती है और इस्लाम की तरफ़ बुलाया जाता है तो वह उसपर भारी गुज़रता है और उसको बहुत दुशवार मालुम होता है.

(11) दीने इस्लाम.

(12) उनको बहकाया और अपने रास्ते पर ले गए.

(13) इस तरह कि इन्सानों ने वासनाओ और गुनाहों में उनसे मदद पाई और जिन्नों ने इन्सानों को अपना मुतीअ बनाया आख़िरकार उसका नतीजा पाया.

(14) वक़्त गुज़र गया. क़यामत का दिन आ गया, हसरत और शर्मिन्दगी बाक़ी रह गई.

(15) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया  कि यह छूट उस क़ौम की तरफ़ पलटती है जिसकी निस्बत अल्लाह के इल्म में है कि वो इस्लाम लाएंगे और नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तस्दीक़ करेंगे और जहन्नम से निकाले जाएंगे.

(16) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि अल्लाह जब किसी क़ौम की भलाई चाहता है तो अच्छों को उनपर मुसल्लत करता है, बुराई चाहता है तो बुरों को. इससे यह नतीजा निकलता है कि जो क़ौम ज़ालिम होती है उसपर ज़ालिम बादशाह मुसल्लत किया जाता है. तो जो उस ज़ालिम के पंजे से रिहाई चाहें उन्हें चाहिये कि ज़ुल्म करना छोड़ दें.

सूरए अनआम सोलहवाँ रूकू

सूरए अनआम  सोलहवाँ रूकू

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला

ऐ  जिन्नों और आदमियों के गिरोह, क्या तुम्हारे पास तुम में के रसूल न आए थे तुमपर मेरी आयतें पढ़ते और तुम्हे ये दिन (1)
देखने से डराते (2)
कहेंगे हमने अपनी जानों पर गवाही दी (3)
और उन्हें दुनिया की ज़िन्दगी ने फ़रेब दिया और ख़ुद अपनी जानों पर गवाही देंगे कि वो काफ़िर थे (4)(130)
यह(5)
इसलिये कि तेरा रब बस्तियों को (6)
ज़ुल्म से तबाह नहीं करता कि उनके लोग बेख़बर हों (7) (131)
और हर एक के लिये (8)
उनके कामों से दर्जें है और तेरा रब उनके आमाल (कर्मों) से बेख़बर नहीं (132) और ऐ मेहबूब तुम्हारा रब बेपर्वाह है रहमत वाला, ऐ लोगों वह चाहे तो तुम्हें ले जाए (9)
और जिसे चाहे तुम्हारी जगह लादे जैसे तुम्हें ओरों की औलाद से पैदा किया  (10) (133)
बेशक जिसका तुम्हें वादा किया जाता है (11)
ज़रूर आने वाली है और तुम थका नहीं सकते (134) तुम फ़रमाओ ऐ मेरी क़ौम तुम अपनी जगह पर काम किये जाओ मैं अपना काम करता हूँ तो अब जानना चाहते हो किसका रहता है आख़िरत का घर, बेशक ज़ालिम फ़लाह (भलाई) नहीं पाते (135) और (12)
अल्लाह ने जो खेती और मवेशी पैदा किये उनमें उसे एक हिस्सेदार ठहराया तो बोले यह अल्लाह का है उनके ख़्याल में और यह हमारे शरीकों का (13)
तो वह जो उनके शरीकों का है  वह तो ख़ुदा को नहीं पहुंचता, और जो ख़ुदा का है वह उनके शरीकों को पहुंचता है क्या ही बुरा हुक्म लगाते हैं (14)(136)
और यूं ही बहुत मुश्रिकों की निगाह में उनके शरीकों ने औलाद का क़त्ल भला कर दिखाया है (15)
कि उन्हें हलाक करें और उनका दीन उनपर मुशतवह (संदिग्ध) करदें  (16)
और अल्लाह चाहता तो ऐसा न करते तो तुम उन्हें छोउ़ दो वो हैं और उनके इफ़तिरा (मिथ्यारोप)  (137) और बोले (17) ये मवेशी और खेती रोकी  (18)
हुई है इसे वही खाए जिसे हम चाहें अपने झूठे ख़्याल से (19)
और  कुछ मवेशी हैं जिनपर चढ़ना हराम ठहराया (20)
और कुछ मवेशी के ज़िब्ह पर अल्लाह का नाम नहीं लेते (21)
यह सब अल्लाह पर झूठ बांधना है बहुत जल्द वह उन्हें बदला देगा उनके इफ़तिराओ (आरोप) का (138) और बोले जो उन मवेशी के पेट में है वह निरा हमारे मर्दों का है (22)
और हमारी औरतों पर हराम है, और मरा हुआ निकले तो वह सब (23)
उसमें शरीक हैं, क़रीब है कि अल्लाह उन्हें उनकी बातों का बदला देगा बेशक वह हिकमत व इल्म वाला है (139) बेशक तबाह हुए वो जो अपनी औलाद को क़त्ल करते हैं अहमक़ाना (मुर्खपना) जिहालत से (24)
और हराम ठहराते हैं वह जो अल्लाह ने उन्हें रोज़ी दी (25)
अल्लाह पर झूट बांधने को (26)
बेशक वो बहके और राह न पाई (27)  (140)

तफसीर सूरए
अनआम सोलहवाँ रूकू

(1) यानी क़यामत का दिन.

(2) और अल्लाह के अज़ाब का डर दिलाते.

(3) क़ाफ़िर, जिन्न और इन्सान इक़रार करेंगे कि रसूल उनके पास आए और उन्होंने ज़बानी संदेश पहुंचाए और उस दिन के पेश आने वाले हालात का ख़ौफ़ दिलाया, लेकिन क़ाफ़िरों ने उनको झुटलाया और उनपर ईमान न लाए, क़ाफ़िरों का यह इक़रार उस वक़्त होगा जबकि उनके शरीर के सारे अंग उनके शिर्क और कुफ़्र की गवाही देंगे.

(4) क़यामत का दिन बहुत लम्बा होगा और इसमें हालात बहुत मुख़्तलिफ़ पेश आएंगे. जब काफ़िर ईमान वालों के इनआम और इज़्ज़त व सम्मान को देखेंगे तो अपने कुफ़्र और शिर्क से इन्क़ारी हो जाएंगे और इस ख़्याल से कि शायद इन्क़ारी हो जाने से कुछ काम बने, यह कहेंगे “वल्लाहे सब्बिना मा कुन्न मुश्रिकीन” यानी ख़ुदा की क़सम हम मुश्रिक न थे. उस वक़्त उनके मुंहो पर मोहरे लगा दी जाएंगी और उनके शरीर के अंग उनके कुफ़्र और शिर्क की गवाही देंगे. इसी के बारे में इस आयत में इरशाद फ़रमाया “व शहिदू अला अन्फ़ुसिहिम अन्नहुम कानू काफ़िरीन” (और ख़ुद अपनी जानों पर गवाही देंगे कि वो काफ़िर थे)

(5) यानी रसूलों का भेजा जाना.

(6) उनकी पाप करने की प्रवृत्ति और……

(7) बल्कि रसूल भेजे जाते हैं, वो उन्हें हिदायतें फ़रमाते हैं, तर्क स्थापित करते हैं इसपर भी वो सरकशी करते हैं, तब हलाक किये जाते हैं.

(8) चाहे वह नेक हो या बुरे. नेकी और बदी के दर्जें हैं. उन्हीं के मुताबिक सवाब और अज़ाब होगा.

(9) यानी हलाक कर दे.

(10) और उनका उत्तराधिकारी बनाया.

(11) वह चीज़ चाहे क़यामत हो या मरने के बाद या हिसाब या सवाब और अज़ाब.

(12) जिहालत के ज़माने में मुश्रिकों का तरीक़ा था कि वो अपनी खेतियों और दरख़्तों के फलों और चौपायों और तमाम मालों में से एक हिस्सा तो अल्लाह के लिये मुक़र्रर करते थे. उसको तो मेहमानों और दरिद्रों पर ख़र्च कर देते थे. और जो बुतों के लिये मुक़र्रर करते थे, वह ख़ास उनपर और उनके सेवकों पर ख़र्च करते. जो हिस्सा अल्लाह के लिये मुक़र्रर करते, अगर उसमें से कुछ बुतों वाले हिस्से में मिल जाता तो उसे छोड़ देते. और अगर बुतों वाले हिस्से में से कुछ इसमें मिलता तो उसको निकाल कर फिर बुतों ही के हिस्से में शामिल कर देते. इस आयत में उनकी इस जिहालत और बदअक़ली का बयान फ़रमा कर उनपर तंबीह फ़रमाई गई.

(13) यानी बुतों का.

(14) और अत्यंत दर्जे की अज्ञानता में गिरफ़्तार हैं. अपने पैदा करने वाले, नअमतें देने वाले रब की इज़्ज़त और जलाल की उन्हें ज़रा भी पहचान नहीं. और उनकी मुर्खता इस हद तक पहुंच गई कि उन्होंने बेजान बुतों, पत्थर की तस्वीरों को जगत के सारे काम बनाने वाले के बराबर कर दिया और जैसा उसके लिये हिस्सा मुक़र्रर किया, वैसा ही बुतों के लिये भी किया. बेशक यह बहुत ही बुरा काम और अत्यन्त गुमराही है. इसके बाद उनकी अज्ञानता और गुमराही की एक और हालत बयान की जाती है.

(15) यहाँ शरीकों से मुराद वो शैतान हैं जिनकी फ़रमाँबरदारी के शौक़ में मुश्रिक अल्लाह तआला की नाफ़रमानी गवारा करते थे और ऐसे बुरे काम और जिहालत की बातें करते थे जिनको सही बुद्धि कभी गवारा न कर सके और जिनके बुरे होने में मामूली समझ के आदमी को भी हिचकिचाहट न हो. बुत परस्ती की शामत से वो भ्रष्ट बुद्धि में गिरफ़्तार हुए कि जानवरों से बदतर हो गए और औलाद, जिसके साथ हर जानवर को क़ुदरती प्यार होता है, शैतान के अनुकरण में उसका बे गुनाह ख़ून करना उन्होंने गवारा किया और इसको अच्छा समझने लगे.

(16) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि ये लोग पहले हज़रत इस्माईल के दीन पर थे, शैतानों ने उनको बहका कर इन गुमराहियों में डाला ताकि उन्हें हज़रत इस्माईल के रास्ते से फेर दें.

(17) मुश्रिक लोग अपने कुछ मवेशियों और खेतियों को अपने झूटे मअबूदों के साथ नामज़द करके कि…

(18) वर्जित यानी इसके इस्तेमाल पर प्रतिबन्ध है.

(19) यानी बुतों की सेवा करने वाले वग़ैरह.

(20) जिनको वहीरा, सायबा, हामी कहते हैं.

(21) बल्कि उन बुतों के नाम पर ज़िब्ह करते हैं और इन तमाम कामों की निस्बत ख़्याल करते हैं कि उन्हें अल्लाह ने इसका हुक्म दिया है.

(22) सिर्फ़ उन्हीं के लिये हलाल है, अगर ज़िन्दा पैदा हो.

(23) मर्द और औरत.

(24) यह आयत जिहालत के दौर के उन लोगों के बारे में नाज़िल हुई जो अपनी लड़कियों को निहायत संगदिली और बेरहमी के साथ ज़िन्दा ज़मीन में गाड़ दिया करते थे. रबीआ और भुदिर वग़ैरह क़बीलों में इसका बहुत रिवाज था और जिहालत के ज़माने के कुछ लोग लड़को को भी क़त्ल करते थे. और बेरहमी का यह आलम था कि कुत्तों का पालन पोषण करते और औलाद को क़त्ल करते थे. उनकी निस्बत यह इरशाद हुआ कि तबाह हुए. इसमें शक नहीं कि औलाद अल्लाह तआला की नेअमत है और इसकी हलाकत से अपनी संख्या कम होती है. अपनी नस्ल मिटती है. यह दुनिया का घाटा है, घर की तबाही है, और आख़िरत में उसपर बड़ा अज़ाब है, तो यह अमल दुनिया और आख़िरत दोनों में तबाही का कारण हुआ और अपनी दुनिया और आख़िरत को तबाह कर लेना और औलाद जैसी प्यारी चीज़ के साथ इस तरह की बेरहमी और क्रुरता गवारा करना बहुत बड़ी अज्ञानता और मुर्खता है.

(25) यानी बहीरें सायबा हामी वग़ैरह जो बयान हो चुके.

(26) क्योंकि वो ये गुमान करते हैं कि ऐसे बुरे कामों का अल्लाह ने हुक्म दिया है और उनका यह ख़्याल अल्लाह पर झूट बांधना है.

(27) सच्चाई की.

सूरए अनआम सत्तरहवाँ रूकू

सूरए अनआम  सत्तरहवाँ रूकू

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला

और वही है जिसने पैदा किये बाग़ कुछ ज़मीन पर छए हुएं (1)
और कुछ बे छए (फैले) और खजूर और खेती जिसमें रंग रंग के खाने (2)
और ज़ैतून और अनार किसी बात में मिलते (3)
और किसी में अलग (4)
खाओ उसका फल जब फल लाए और उसका हक़ दो जिस दिन कटे(5)
और बेजा न ख़र्चों (6)
बेशक बेजा ख़र्चने वाले उसे पसन्द नहीं   (141) और मवेशी में से कुछ बोझ उठाने वाले और कुछ ज़मीन पर बिछे (7)
खाओ उसमें से जो अल्लाह ने तुम्हें रोज़ी दी और शैतान के क़दमों पर न चलो बेशक वह तुम्हारा खुला दुश्मन है (142) आठ नर और मादा एक जोड़ भेड़ का और एक जोड़ बकरी का तुम फ़रमाओ क्या उसने दोनो नर हराम किये या दोनो मादा या वह जिसे दोनों मादा पेट में लिये हैं (8)
किसी इल्म से बताओ अगर तुम सच्चे हो (143) और एक जोड़ ऊंट का और एक जोड़ गाय का तुम फ़रमाओ क्या उसने दोनों नर हराम किये या दोनों मादा या वह जिसे दोनों मादा पेट में लिये हैं  (9)
क्या तुम मौजूद थे जब अल्लाह ने तुम्हें यह हुक्म दिया (10) तो उससे बढ़कर ज़ालिम कौन जो अल्लाह पर झूठ बांधे कि लोगों को अपनी जिहालत से गुमराह करे बेशक अल्लाह ज़ालिमों को राह नहीं दिखाता  (144)

तफसीर सूरए
अनआम सत्तरहवाँ रूकू

(1) यानी टटिट्यों पर क़ायम किये हुए अंगूर वग़ैरह क़िस्म के.

(2) रंग और मज़े और मात्रा और ख़ुश्बू में आपस में मुख़्तलिफ़.

(3) जैसे कि रंग में या पत्तों में.

(4) जैसे मज़े और असर में.

(5) मानी ये हैं कि ये चीज़ें जब फलें, खाना तो उसी वक़्त से तुम्हारे लिये जायज़ है और उसकी ज़कात यानी दसवाँ हिस्सा उसके पूरे होने के बाद वाजिब होता है, जब खेती काटी जाए या फल तोङे जाएं. लकड़ी, बाँस, घास के सिवा ज़मीन की बाक़ी पैदावार में, अगर यह पैदावार बारिश से हो, तो उसमें दसवाँ हिस्सा वाजिब होता है. और अगर रहट वग़ैरह से हो तो पांचवाँ हिस्सा.

(6) इमाम अहमद रज़ा ख़ाँ रेहमतुल्लाह अलैह ने इसराफ़ का अनुवाद बेजा ख़र्च करना फ़रमाया. बहुत उमदा अनुवाद है. अगर कुल माल ख़र्च कर डाला और अपने बाल बच्चों को कुछ ना दिया और ख़ुद फ़क़ीर बन बैठा तो सदी का क़ौल है कि यह बेजा ख़र्च है. और अगर सदक़ा देने ही से हाथ रोक लिया तो यह बेजा है, जैसा कि सईद बिन मुसैयब रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया. सुफ़ियान का क़ौल है कि अल्लाह की इताअत के सिवा और काम में जो माल ख़र्च किया जाए वह कम भी हो तो बेजा ख़र्च है. ज़हरी का क़ौल है कि इसके मानी ये हैं कि  बुराई में ख़र्च न करो. मुजाहिद ने कहा कि अल्लाह के हक़ में कमी करना बेजा ख़र्च है. अगर बूक़ुबैस पहाड़ सोना हो और उस पूरे को खुदा की राह में ख़र्च करदो तो बेजा ख़र्च न हो और एक दरहम बुरे काम में ख़र्च करो तो बेजा ख़र्च कहलाए.

(7) चौपाए दो क़िस्म के होते हैं, कुछ बड़े जो लादने के काम में आते हैं, कुछ छोटे जैसे कि बकरी वग़ैरह जो इस क़ाबिल नहीं. उनमें से जो अल्लाह तआला ने हलाल किये, उन्हें खाओ और जिहालत के दौर के लोगों की तरह अल्लाह की हलाल की हुई चीज़ो को हराम न ठहराओ.

(8) यानी अल्लाह ताआला ने न भेड़ बकरी के नर हराम किये, न उनकी मादाएं हराम कीं. न उनकी औलाद. तुम्हारा यह काम कि कभी नर हराम ठहराओ, कभी मादा कभी उनके बच्चे, ये सब तुम्हारे दिमाग़ की उपज है और नफ़्स के बहकावे का अनुकरण. कोई हलाल चीज़ किसी के हराम करने से हराम नहीं होती.

(9) इस आयत में जिहालत के दौर के लोगों को फटकार गया, जो अपनी तरफ़ से हलाल ठहरा लिया करते थे, जिनका बयान ऊपर की आयतों में आचुका है. जब इस्लाम में अहकाम का बयान हुआ तो उन्होंने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से झगड़ा किया और उनका वक्ता मालिक बिन औफ़ जिश्मी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर होकर कहने लगा कि या मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम), हमने सुना है आप उन चीज़ों को हराम करते हैं जो हमारे बाप दादा करते आए हैं. हुज़ूर ने फ़रमाया, तुमने बग़ैर किसी अस्ल के कुछ क़िस्में चौपायों की हराम करलीं और अल्लाह ताआला ने आठ नर और मादा अपने बन्दों के खाने और उनसे नफ़ा उठाने के लिये पैदा किये. तुमने कहाँ से इन्हें हराम किया. इन में नापाकी नर की तरफ़ से आई या मादा की तरफ़ से. मालिक बिन औफ़ यह सुनकर स्तब्ध और भौंचक्का रह गया, कुछ बोल न सका. नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया, बोलता क्यों नहीं? कहने लगा, आप फ़रमाइए, मैं सुनूंगा. सुब्हानल्लाह, सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के कलाम की क़ुव्वत और ज़ोर ने जिहालत वालों के वक्ता को साकित और हैरान कर दिया और वह बोल ही क्या सकता था. अगर कहता कि नर की तरफ़ से नापाकी आई, तो लाज़िम होता कि सारे नर हराम हों. अगर कहता कि मादा की तरफ़ से, तो ज़रूरी होता कि हर एक मादा हराम हो और अगर कहता कि जो पेट में हैं वह हराम हैं, तो फिर सब ही हराम हो जाते, क्योंकि जो पेट में रहता है वह नर होता है या मादा. वो जो सीमाएं क़ायम करते थे और कुछ को हराम और कुछ को हलाल ठहराते थे. इस तर्क ने उनके इस दावे को झूटा साबित कर दिया. इसके अलावा उनसे ये पूछना कि अल्लाह ने नर हराम किये हैं या मादा या उनके बच्चे, यह नबुव्वत के इन्कार करने वाले विरोधी को नबुव्वत का इक़रार करने पर मजबूर करता था क्योंकि जब तक नबुव्वत का वास्ता न हो तो अल्लाह ताअला की मर्ज़ी और उसका किसी चीज़ को हराम फ़रमाना कैसे जाना जा सकता है. चुनांचे अगले वाक्य ने इसको साफ़ किया है.

(10) जब यह नहीं है और नबुव्वत का तो इक़रार नहीं करते, तो हलाल हराम के इन अहकाम के अल्लाह की तरफ़ जोड़ना खुला झूट और ख़ालिस मन घडन्त है.

सूरए अनआम अठ्ठारहवाँ रूकू

सूरए अनआम अठ्ठारहवाँ रूकू

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला

तुम फ़रमाओ  (1)
मैं नहीं पाता उसमें जो मेरी तरफ़ वही (देववाणी) हुई किसी खाने वाले पर कोई खाना हराम (2)
मगर यह की मुर्दार हो या रगों का बहता हुआ ख़ून (3)
या बद जानवर (सुअर) का गोश्त वह निजासत (अपवित्रता) है या वह बेहुक्मी का जानवर जिसके ज़िब्ह में ग़ैर ख़ुदा का नाम पुकारा गया तो जो नाचार हुआ (4)
न यूं कि आप ख़्वाहिश करे और न यूं कि ज़रूरत से बढ़े तो बेशक अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है (5){145}
और यहूदियों पर हमने हराम किया हर नाख़ून वाला जानवर  (6)
और गाय और बकरी की चर्बी उन पर हराम की मगर जो उनकी पीठ में लगी हो या आँत या हड्डी से मिली हो, हमने यह उनकी सरकशी (विद्रोह) का बदला दिया  (7)
और बेशक हम ज़रूर सच्चे है {146} फिर अगर वो तुम्हें झुटलाएं तो तुम फ़रमाओ कि तुम्हारा रब वसीअ (व्यापक) रहमत वाला है  (8)
और उसका अज़ाब मुजरिमों पर से नहीं टाला जाता (9) {147}
अब कहेंगे मुश्रिक कि (10)
अल्लाह चाहता तो न हम शिर्क करते न हमारे बाप दादा न हम कुछ हराम ठहराते  (11)
ऐसा ही उनसे अगलों ने झुटलाया था यहां तक कि हमारा अज़ाब चखा  (12)
तुम फ़रमाओ क्या तुम्हारे पास कोई इल्म है कि उसे हमारे लिये निकालो, तुम तो निरे गुमान के पीछे हो और तुम यूंही तख़मीने (अनुमान) करते हो  (13){148}
तुम फ़रमाओ तो अल्लाह ही की हुज्जत (तर्क) पूरी है (14)
तो वह चाहता तो तुम सबकी हिदायत फ़रमाता {149} तुम फ़रमाओ लाओ अपने वो गवाह जो गवाही दें  कि अल्लाह ने उसे हराम किया(15)
फिर अगर वो गवाही दे बैठें (16)
तो तू ऐ सुनने वाले उनके साथ गवाही न देना और उनकी ख़्वाहिशों के पीछे न चलना जो हमारी आयतें झुटलाते हैं और जो आख़िरत पर ईमान लाते और अपने रब का बराबर वाला ठहराते हैं (17){150}

तफसीर सूरए अनआम अठ्ठारहवाँ रुकू

(1) इन जाहिल मुश्रिकों से जो हलाल चीज़ों को अपनी नफ़्सानी ख़्वाहिश से हराम कर लेते हैं.

(2) इसमें चेतावनी है कि किसी चीज़ का हराम होना शरीअत के हुक्म से होता है न कि नफ़्स की ख़्वाहिश से, तो जिस चीज़ का हराम होना शरीअत में न आए उसको नाजायज़ और हराम कहना ग़लत है. हराम होने का सुबूत चाहे क़ुरआन से हो या हदीस से, यही विश्वसनीय है.

(3) तो जो ख़ून बहता न हो जैसे कि जिगर, तिल्ली, वह हराम नहीं है.

(4) और ज़रूरत ने उसे उन चीज़ों में से किसी के खाने पर मजबूर किया, ऐसी हालत में बेचैन होकर उसने कुछ खाया.

(5) उसपर पकड़ न फ़रमाएगा.

(6) जो उंगीली रखता हो, चाहे चौपाया हो या पक्षी, इसमें ऊंट और शुतूर मुर्ग़ दाख़िल हैं. (मदारिक) कुछ मुफ़स्सिरों का कहना है कि यहा  शुतुर मुर्ग़ और बतख़ और ऊंट ख़ास तौर से मुराद हैं.

(7) यहूदी अपनी सरकशी के कारण इन चीज़ों से मेहरूम किये गए, लिहाज़ा ये चीज़ें उनपर हराम नहीं और हमारी शरीअत में गाय बकरी की चर्बी बतख़ और शुतुर मुर्ग़ हलाल है. इसी पर सहाबा और ताबईन की सहमति है. (तफ़सीरे अहमदी)

(8) झूठों को मोहलत देता है और अज़ाब में जल्दी नहीं फ़रमाता, ताकि उन्हें ईमान लाने का मौक़ा मिले.

(9) अपने वक़्त पर आ ही जाता है.

(10) यह ख़बर ग़ैब है कि जो बात वो कहने वाले थे वह बात पहले से बयान फ़रमा दी.

(11) हमने जो कुछ किया, यह सब अल्लाह की मर्ज़ी से हुआ, यह दलील है इसकी कि वह उससे राज़ी है.

(12) और यह झूट बहाना उनके कुछ काम न आया, क्योंकि किसी काम का मशीयत अर्थात मर्ज़ी में होना उसकी इच्छा और निश्चित होने को लाज़िम नहीं. मर्ज़ी वही है जो नबियों के वास्ते से बताई गई और उसका हुक्म फ़रमाया गया.

(13) और ग़लत अटकलें चलाते हो.

(14) कि उसने रसूल भेजे, किताबें उतारीं और सच्ची राह साफ़ कर दी.

(15) जिसे तुम अपने लिये हराम क़रार देते हो और कहते हो कि अल्लाह तआला ने  हमें इसका हुक्म दिया है. यह गवाही इसलिये तलब की गई कि ज़ाहिर हो जाए कि काफ़िरों के पास कोई गवाह नहीं है और जो वो कहते हैं वह उनकी बनाई हुई बात है.

(16) इसमें चेतावनी है कि अगर यह गवाही वाक़े हो भी तो वह केवल अनुकरण हुआ और झुट और बातिल होगा.

(17) बुतों को मअबूद मानते हैं और शिर्क़ में गिरफ़्तार हैं.

सूरए अनआम उन्नीसवाँ रूकू

सूरए अनआम उन्नीसवाँ रूकू

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला

तुम फ़रमाओ आओ मैं तुम्हें पढ़ सुनाऊं जो तुमपर तुम्हारे रब ने हराम किया (1)
यह कि उसका कोई शरीक न करो और माँ बाप के साथ भलाई करो (2)
और अपनी औलाद क़त्ल न करो मुफ़लिसी के कारण, हम तुम्हें और उन्हें सबको रिज़्क़ देंगे (3)
और बेहयाइयों के पास न जाओ जो उसमें खुली हैं और जो छुपी (4)
और जिस जान की अल्लाह ने हुरमत (इज़्ज़त) रखी उसे नाहक़ न मारो (5)
यह तुम्हें हुक्म फ़रमाया है कि तुम्हें अक़्ल हो  {151} और यतीमों के माल के पास न जाओ मगर बहुत अच्छे तरीक़े से (6)
जब तक वह अपनी जवानी को पहुंचे (7)
और नाप और तौल इन्साफ़ के साथ पूरी करो, हम किसी जान पर बोझ नहीं डालते मगर उसकी ताक़त भर और जब बात कहो तो इन्साफ़ की कहो अगरचे तुम्हारे रिश्तेदार का मामला हो, और अल्लाह का अहद पूरा करो यह तुम्हें ताकीद फ़रमाई कि कहीं तुम नसीहत मानो {152}  और यह कि(8)
यह है मेरा सीधा रास्ता तो इसपर चलो और ओर राहें न चलो (9)
कि तुम्हें उसकी राह से जुदा कर देंगी यह तुम्हें हुक्म फ़रमाया कि कहीं तुम्हें परहेज़गारी मिले {153} फिर हमने मूसा को किताब अता फ़रमाई  (10)
पूरा एहसान करने को उसपर जो नेकी करने वाला है और हर चीज़ की तफ़सील और हिदायत और रहमत कि कहीं वो (11)
अपने रब से मिलने पर ईमान लाएं (12){154}

तफसीर सूरए अनआम उन्नीसवाँ रूकू

(1) उसका बयान यह है.

(2) क्योंकि तुमपर उनके बहुत अधिकार हैं. उन्होने तुम्हारा पालन पोषण किया, तुम्हारी तरबियत की, तुम्हारे साथ शफ़्क़त और मेहरबानी का सुलूक किया, तुम्हारी हर ख़तरे से चौकसी की. उनके अधिकारो का ख़्याल न करना और उनके साथ अच्छे सुलूक न करना हराम है.

(3) इसमें औलाद ज़िन्दा ज़मीन में गाड़ देने और मार डालने की हुरमत यानी अवैधता बयान फ़रमाई गई है जिसका जाहिलों में रिवाज़ था कि वो अक्सर दरिद्रता के डर से औलाद को हलाक करते थे. उन्हें बताया गया कि रोज़ी देने वाला तुम्हारा उनका सबका अल्लाह है फिर क्यों क़त्ल जैसे सख़्त जुर्म में पड़ते हो.

(4) क्योंकि इन्सान जब खुले और ज़ाहिर गुनाह से बचे और छुपे गुनाह से परहेज़ न करे तो उसका ज़ाहिर गुनाह से बचना भी अल्लाह के लिये नहीं. लोगों को दिखाने और उनकी बदगोई अर्थात आलोचना से बचने के लिये है. और अल्लाह की रज़ा और सवाब का हक़दार वह है जो उसके डर से गुनाह छोड़ दे.

(5) वो काम जिनसे क़त्ल जायज़ होता है, यह हैं :- मुर्तद होना यानी इस्लाम से फिर जाना या क़िसास या ब्याहे हुए का ज़िना करना बुख़ारी व मुस्लिम की हदीस में है कि सेयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया, कोई मुसलमान जो लाइलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलल्लाह की गवाही देता हो उसका ख़ून हलाल नहीं, मगर इन तीन कारणों में से, कि एक कारण से या तो ब्याहे होने के बावुजूद उससे ज़िना सरज़द हुआ हो, या उसने किसी को नाहक़ क़त्ल किया हो और उसका बदला उसपर आता हो या वह दीन छोड़कर मुर्तद हो गया हो.

(6) जिससे उसका फ़ायदा हो.

(7) उस वक़्त उसका माल उसके सुपुर्द कर दो.

(8) इन दोनों आयतों में जो हुक्म दिया गया.

(9) जो इस्लाम के ख़िलाफ़ हों,यहूदियत हो या ईसाईयत या कोई और मिल्लत

(10) तौरात शरीफ़.

(11) यानी बनी इस्राईल.

(12) और मरने के बाद उठाए जाने और हिसाब होने और सवाब और अज़ाब दिये जाने और अल्लाह का दीदार होने की तस्दीक़ करें.

सूरए अनआम बीसवाँ रूकू

सूरए अनआम बीसवाँ रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला

और यह बरकत वाली किताब (1)
हमने उतारी तो इसकी पैरवी (अनुकरण) करो और परहेज़गारी करो कि तुमपर रहम हो {155} कभी कहो कि किताब तो हमसे पहले दो गिरोहों पर उतरी थी (2)
और हमें उनके पढ़ने पढ़ाने की कुछ ख़बर न थी (3) {156}
या कहो कि अगर हमपर किताब उतरती तो हम उनसे ज़्यादा ठीक राह पर होते (4)
तो तुम्हारे पास तुम्हारे रब की रौशन दलील और हिदायत और रहमत आई (5)
तो उससे ज़्यादा ज़ालिम कौन जो अल्लाह की आयतों को झुटलाए और उनसे मुंह फेरे, बहुत जल्द वो जो हमारी आयतों से मुंह फेरते हैं हम उन्हें बड़े अज़ाब की सज़ा देंगे बदला उनके मुंह फेरने का {157} काहे के इन्तिज़ार में हैं (6)
मगर यह कि आएं उनके पास फ़रिश्ते (7)
या तुम्हारे रब का अज़ाब या तुम्हारे रब की एक निशानी आए (8)
जिस दिन तुम्हारे रब की वह एक निशानी आएगी किसी जान को ईमान लाना काम न देगा जो पहले ईमान न लाई थी या अपने ईमान में कोई भलाई न कमाई थी (9)
तुम फ़रमाओ रास्ता देखो (10)
हम भी देखते है {158} वो जिन्होंने अपने दीन में अलग अलग राहें निकालीं और कई गिरोह होगए (11)
ऐ मेहबूब तुम्हे उनसे कुछ इलाक़ा नहीं, उनका मामला अल्लाह ही के हवाले है फिर वह उन्हें बता देगा जो कुछ वो करते थे (12) {159}
जो एक नेकी लाए तो उसके लिये उस जैसी दस हैं (13)
और जो बुराई लाए तो उसे बदला न मिलेगा मगर उसके बराबर और उनपर ज़ुल्म न होगा {160} तुम फ़रमाओ बेशक मुझे मेरे रब ने सीधी राह दिखाई (14)
ठीक इब्राहीम के दीन की मिल्लत जो हर बातिल से अलग थे, और  मुश्रिक न थे (15) {161}
तुम फ़रमाओ मेरी नमाज़ और मेरी क़ुरबानियां और मेरा जीना और मेरा मरना सब अल्लाह के लिये है जो रब सारे जगत का {162} उसका कोई शरीक नहीं मुझे यही हुक्म हुआ है और मैं सबसे पहला मुसलमान हूँ  (16) {163}
तुम फ़रमाओ क्या अल्लाह के सिवा और रब चाहूँ हालांकि वह हर चीज़ का रब है (17)
और जो कोई कुछ कमाए वह उसी के ज़िम्मे है और कोई बोझ उठाने वाली जान दूसरे का बोझ न उठाएगी (18)
फिर तुम्हें अपने रब की तरफ़ फिरना है (19)
वह तुम्हे बता देगा जिसमें विरोध करते थे {164} और वही है जिसने ज़मीन में तुम्हें नायब किया (20)
तुम में एक को दूसरे पर दर्जों बलन्दी दी (21)
कि तुम्हें आज़माए (22)
उस चीज़ में जो तुम्हें अता की बेशक तुम्हारे रब को अज़ाब करते देर नहीं लगती और बेशक वह ज़रूर बख़्शने वाला मेहरबान है {165}
तफसीर सूरए अनआम बीसवाँ रुकू

(1) यानी क़ुरआन शरीफ़ जिसमें अत्यन्त भलाई,   अत्यन्त फ़ायदें और अत्यन्त बरकतें है, और जो क़यामत तक बाकी रहेगा और बदल, परिवर्तन और संशोधन वग़ैरह से मेहफूज़ रहेगा.

(2) यानी यहूदियों और ईसाईयों पर तौरात और इंजील.

(3) क्योंकि वह हमारी ज़बान ही में न थी, न हमें किसी ने उसके मानी बताए, अल्लाह तआला ने क़ुरआन शरीफ़ उतार के उनके इस बहाने की काट फ़रमा दी.

(4) काफ़िरों की एक जमाअत ने कहा था कि यहूदियों और ईसाईयों पर किताबें उतरी मगर वो बदअक़ली में गिरफ़्तार रहे, उन किताबों से नफ़ा न उठा सके. हम उनकी तरह कमअक्ल़ और नादान नहीं हैं. हमारी अक़लें  सही हैं.  हमारी अक़्ल और समझ बूझ ऐसी है कि अगर हमपर किताब उतरती तो हम ठीक राह पर होते, क़ुरआन उतार कर उनका यह बहाना भी काट दिया गया. चुनांचे आगे इरशाद होता है.

(5) यानी यह क़ुरआने पाक जिसमें खुला तर्क और साफ़ बयान और हिदायत और रहमत है.

(6) जब वहदानियत और  रिसालत पर ज़बरदस्त तर्क क़ायम हो चुके, और कुफ़्र व गुमराही के अक़ीदों का झूठ ज़ाहिर कर दिया गया, तो अब ईमान लाने में क्यों हिचकिचाहट है, क्या इन्तिज़ार बाक़ी है.

(7)   उनकी रूहें निकालने के लिये.

(8) क़यामत की निशानियों में से. अक्सर मुफ़स्सिरों के नज़दीक इस निशानी से सूरज का पश्चिम से निकलना मुराद है. तिरमिज़ी की हदीस मे भी ऐसी ही आया है. बुख़ारी व मुस्लिम की हदीस में है कि क़यामत क़ायम न होगी जब तक सूरज पश्चिम से न निकले और जब वह पश्चिम से निकलेगा और उसे लोग देखेंगे तो सब ईमान लाएंगे और वह ईमान नफ़ा न देगा.

(9) यानी फ़रमाँबरदारी न की थी. मानी ये है कि निशानी आने से पहले जो ईमान न लाए, निशानी के बाद उसका ईमान क़ुबूल नहीं. इसी तरह जो निशानी से पहले तौबा न करे, निशानी के बाद उसकी तौबा क़ुबूल नहीं. जो ईमानदार पहले से नेक काम करते होंगे, निशानी के बाद भी उनके कर्म मक़बूल होंगे.

(10)  उनमें से किसी एक का यानी मौत के फ़रिश्तों का आगमन या अज़ाब या निशानी आने का.

(11) यहूदियों और ईसाइयों के जैसे. हदीस शरीफ़ में है, यहूदी 71 सम्प्रदाय हो गए उनमें से सिर्फ़ एक निजात पाया हुआ है, बाक़ी सब दोज़ख़ी. और ईसाई बहत्तर सम्प्रदाय हो गए, एक निजात पाया हुआ, बाक़ी दोज़ख़ी. और मेरी उम्मत तेहत्तर सम्प्रदाय हो जाएगी, वो सब के सब दोज़ख़ी होंगे सिवाए एक के, जो बड़ी जमाअत है. और  एक रिवायत में है कि जो मेरी और मेरे सहाबा की राह पर है.

(12) और आख़िरत में उन्हे अपने किये का अंजाम मालूम हो जाएगा.

(13)  यानी एक नेकी करने वाले को दस नेकियों का सवाब और यह भी सीमित तरीक़े पर नहीं, बल्कि अल्लाह तआला जिसके लिये जितना चाहे उसकी नेकियों को बढ़ाए. एक के सात सौ करे या बेहिसाब अता फ़रमाए. अस्ल यह है कि नेकियों का सवाब केवल फ़ज़्ल है. यही मज़हब एहले सुन्नत का और बुराई की उतनी ही सज़ा, यहे इन्साफ़ है.

(14) यानी इस्लाम जो अल्लाह को मक़बूल है.

(15) इसमें क़ुरैश के काफ़िरों का रद है जो गुमान करते थे कि वो हज़रत इब्राहीम के दीन पर हैं. अल्लाह तआला ने फ़रमाया कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम मुश्रिक  और बुत परस्त न थे तो बुत परस्ती करने वाले मुश्रिकों का यह दावा कि वह इब्राहीमी मिल्लत पर हैं, बातिल है.

(16) अव्वलियत या तो इस ऐतिबार से है कि नबियों का इस्लाम उनकी उम्मत पर मुक़द्दम होता है या इस एतिबार से कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम सारी सृष्टि में पहले हैं तो ज़रूर मुसलमानों यानी इस्लाम वालों में अव्वल हुए.

(17) काफ़िरों ने नबिये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से कहा था कि आप हमारे दीन की तरफ़ लौट आइये और हमारे मअबूदों की इबादत कीजिये. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि वलीद बिन मुग़ीरह कहता था कि मेरा रास्ता इख़्तियार करो. इसमें अगर कुछ गुनाह है तो मेरी गर्दन पर. इसपर यह आयत उतरी और बताया गया कि वह रास्ता बातिल है. ख़ुदाशनास किस तरह गवारा कर सकता है कि अल्लाह के सिवा किसी और को रब बताए और यह भी बातिल है कि किसी का गुनाह दूसरा उठा सके.

(18) हर शख़्श की पकड़ उसके अपने गुनाह में होगी, दूसरे के गुनाह में नहीं.

(19) क़यामत के दिन.
(20) क्योंकि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम नबियों के सिलसिले को ख़त्म करने वाले है. आपके बाद कोई नबी नहीं और आपकी उम्मत आखिरी उममत है, इसलिये उनको ज़मीन में पहलों का ख़लीफ़ा किया कि उसके मालिक हों.

(21) शक्ल सूरत में, हुस्नों जमाल में, रिज़्क़ व माल में, इल्म व अक़्ल में, कुव्वत और कलाम में.

(22) यानी आज़माइश में डाले कि तुम इज्ज़त और शान की नेअमत पाकर कैसे शुक्रगुज़ार रहते हो और आपस में दूसरे के साथ किस क़िस्म के सुलूक करते हो.

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