जो इश्क़-ए-नबी के जल्वों को सीनों में बसाया करते हैं
अल्लाह की रहमत के बादल उन लोगों पे साया करते हैं
जो इश्क़-ए-नबी के जल्वों को सीनों में बसाया करते हैं
जब अपने ग़ुलामों की आक़ा तक़दीर जगाया करते हैं
जन्नत की सनद देने के लिए रोज़े पे बुलाया करते हैं
जो इश्क़-ए-नबी के जल्वों को सीनों में बसाया करते हैं
गिर्दाब-ए-बला में फंस के कोई तयबा की तरफ जब तकता है
सुलतान-ए-मदीना ख़ुद आ कर कश्ती को तिराया करते हैं
जो इश्क़-ए-नबी के जल्वों को सीनों में बसाया करते हैं
मख़्लूक़ की बिगड़ी बनती है, ख़ालिक़ को भी प्यार आ जाता है
जब बहर-ए-दुआ महबूब-ए-ख़ुदा हाथों को उठाया करते हैं
जो इश्क़-ए-नबी के जल्वों को सीनों में बसाया करते हैं
ऐ दौलत-ए-इरफ़ाँ के मंगतो ! उस दर पे चलो जिस दर पे सदा
दिन-रात ख़ज़ानें रहमत के सरकार लुटाया करते हैं
जो इश्क़-ए-नबी के जल्वों को सीनों में बसाया करते हैं
है शुग़्ल हमारा शाम-ओ-सहर और नाज़ सिकंदर क़िस्मत पर
महफ़िल में रसूल-ए-अकरम की हम नात सुनाया करते हैं
नातख्वां:
मुहम्मद ओवैस रज़ा क़ादरी