Fazaile Qurbani

Fazaile Qurbani – फजाइले कुर्बानी

 

मख़सूस जानवर को मख़सूस दिन ज़िबह करने को क़ुर्बानी कहते हैं,क़ुर्बानी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है जो इस उम्मत में भी बाकी रखी गयी है,मौला तआला क़ुर्आन में इरशाद फरमाता है कि : अपने रब के लिए नमाज़ पढ़ो और क़ुर्बानी करो.!

पारा 30,सूरह कौसर,आयत 2

पहले एक मसले की वज़ाहत कर दूं फिर आगे बयान करता हूं,जिस तरह कुछ लोग सोशल मीडिया को इल्मे दीन फैलाने के लिए इस्तेमाल करते हैं वहीं कुछ लोग सिवाये खुराफात फैलाने और जिहालत भरे msg भेजकर लोगों को बरगलाने और कंफ्यूज़ करने की कोशिश करते हैं,जैसा कि आज कल एक msg आ रहा है कि इसको बक़र ईद ना कहें बल्कि ईदुल अज़हा कहें,तो ईदुल अज़हा कहना अच्छा है मगर ये कि बक़र ईद ना कहें ये सिवाए जिहालत के और कुछ नहीं है,बक़र माने गाय होती है और इस नाम से क़ुर्आन में पूरी एक सूरह, सूरह बक़र के नाम से मौजूद है तो जो लोग बक़र ईद ना कहने के लिए msg कर रहे हैं ऐसे जाहिलों को चाहिए कि वो इस सूरह का नाम भी बदल कर अपने हिसाब से कुछ अच्छा सा रख लें,खैर बक़र ईद कहना हमारे अस्लाफ से साबित है जैसा कि फक़ीहे मिल्लत मुफ्ती जलाल उद्दीन अहमद अमजदी अलैहिर्रहमा ने अनवारुल हदीस में कई जगह बक़र ईद तस्नीफ फरमाया है,चलिये अब कुछ हदीसे पाक इस बारे में मुलाहज़ा फरमा लें.!

࿐ हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि क़ुर्बानी के दिनों में अल्लाह को क़ुर्बानी से ज़्यादा कोई अमल प्यारा नहीं और जानवर का खून ज़मीन पर गिरने से पहले क़ुबुल हो जाता है,और क़ुर्बानी करने वाले को जानवर के हर बाल के बदले 1 नेकी मिलती है.!

अबु दाऊद,जिल्द 2,सफह 264

 

यानि साहिबे निसाब अगर 5000 की क़ुर्बानी ना करके 1,करोड़ रुपया भी सदक़ा कर देगा तब भी सख्त गुनाहगार होगा लिहाज़ा क़ुर्बानी ही की जाए अगर इतनी इस्तेताअत ना हो कि बकरा खरीद सके तो बड़े जानवर में हिस्सा ले सकता है,और जिस पर क़ुर्बानी वाजिब है यानि साहिबे निसाब तो है मगर पास में पैसा नहीं है यानि सोने चांदी का मालिक है तो ऐसी सूरत में कुछ बेचकर या कर्ज़ लेकर क़ुर्बानी करनी होगी अगर नहीं करेगा तो गुनाहगार होगा.!

हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि जो इसतेताअत रखने के बावजूद क़ुर्बानी ना करे तो वो हमारी ईदगाह के क़रीब ना आये.!

अबु दाऊद,जिल्द 2,सफह 263

सोचिये ऐसे शख्स को जो कि क़ुर्बानी की ताक़त रखने के बावजूद भी क़ुर्बानी ना करे उसको हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ईदगाह आने की भी इजाज़त नहीं दे रहे हैं,खुदारा ऐसी वईद में गिरफ्तार ना हों अगर साहिबे निसाब हैं तो ज़रूर ज़रूर क़ुर्बानी करें.!

नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने 2 मेढ़ों की क़ुर्बानी की जो कि खस्सी थे.!

इब्ने माजा,हदीस 3122

 

 

࿐ साहिबे निसाब यानि जिसके पास 7.5 तोला सोना या 52.5 तोला चांदी जो कि 653.184 ग्राम हुई इस हिसाब से अगर आज 59000 में चांदी है तो 52.5 तोला चांदी की रक़म जो कि तक़रीबन 38537,रू बनेगी, सोने चांदी की क़ीमत घटती बढ़ती रहती है, क़ुरबानी के दिनों में चांदी की क़ीमत मालूम कर के हिसाब लगा लीजिएगा, 38537 यह आजकी क़ीमत है,अगर क़ुर्बानी के दिनों में 52.5 तोला चांदी की क़ीमत मौजूद है तो उस पर क़ुर्बानी वाजिब है,क़ुर्बानी वाजिब होने के लिये माल पर साल गुज़रना ज़रूरी नहीं.!

📔 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफह 132

जिसके पास 38537,रू कैश या इतने का सोना-चांदी या हाजते असलिया के अलावा कोई सामान है तो क़ुर्बानी वाजिब है युंही साल भर तो फक़ीर था मगर क़ुर्बानी के 3 दिनों में कहीं से उसे 38537,रू मिल गया क़ुर्बानी वाजिब हो गयी.!

साहिबे निसाब औरत पर खुद उसके नाम से क़ुर्बानी वाजिब है,मुसाफिर और नाबालिग पर क़ुर्बानी वाजिब नहीं.!

📙 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफह 132

औरत के पास जे़वर हैं मगर शौहर साहिबे निसाब नहीं यानि 38537 रुपये का मालिक नहीं है तो औरत पर क़ुर्बानी वाजिब है मर्द पर नहीं,इसी तरह मुसाफिर यानि जो अपने वतन से 92.5 किलोमीटर दूर गया और वहां 15 दिन से कम ठहरना है तो उस पर क़ुर्बानी वाजिब नहीं और अगर 15 दिन से ज़्यादा ठहरना है तो क़ुर्बानी वाजिब है,क़ुर्बानी वो परदेस में भी करा सकता है या उसके घर पर ही कोई उसके नाम से करा दे मगर उसकी इजाज़त होनी चाहिए दोनों सूरतों में क़ुर्बानी हो जायेगी,युंही मुसाफिर अगर फिर भी क़ुर्बानी करना चाहता है तो कर सकता है नफ्ल हो जायेगी सवाब मिलेगा.!

रहने का घर,पहनने के कपड़े,किताबें,सफर के लिए सवारियां,घरेलु सामान हाजते असलिया में दाखिल हैं.!

📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफह 133
📬 फतावा आलमगीरी,जिल्द 1,सफह 160 📚

 

 

मकान 10 करोड़ का हो गाड़ियां अपने लिए 10 रखी हो फिर भी हाजते असलिया में दाखिल है यानि इन पर ना ज़कात है और न इससे क़ुर्बानी वाजिब होगी मगर शरीयत ने जिन चीज़ों को जायज़ नहीं रखा उनका रखना हाजते असलिया में दाखिल नहीं मसलन किसी ने अपने घर में 38537,की टी.वी रखी है तो उस पर ज़कात भी फर्ज़ है और क़ुर्बानी भी वाजिब है.!

࿐ जो साहिबे निसाब है उस पर हर साल क़ुर्बानी वाजिब है उसे हर साल अपने नाम से क़ुर्बानी करनी होगी कुछ लोग 1 साल अपने नाम से क़ुर्बानी करते हैं दूसरे साल अपने बीवी बच्चों के नाम से क़ुर्बानी करते हैं,ये नाजायज़ है.!

📙 अनवारुल हदीस,सफह 363

࿐ इसी तरह अवाम में ये भी मशहूर है कि पहली क़ुर्बानी हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के नाम से करनी चाहिए ये भी सही नहीं है,हां जैसा कि मैं पहले बता चुका कि अगर इस्तेताअत हो तो 2 क़ुर्बानी का इंतेज़ाम करे एक अपने नाम से और एक हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के नाम से ये अच्छा है और अगर खुद पर क़ुर्बानी वाजिब है और एक ही क़ुर्बानी करता है मगर किसी और के नाम से तो वाजिब का तर्क हुआ गुनहगार होगा.!

࿐ क़ुर्बानी का वक़्त 10 ज़िल्हज्ज के सुबह सादिक़ से लेकर 12 के ग़ुरुबे आफताब तक है,मगर जानवर रात में ज़बह करना मकरूह है.!

📔 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफह 136

࿐ चुंकि गांव में ईद की नमाज़ नहीं है लिहाज़ा वहां सूरज निकलने के साथ ही क़ुर्बानी हो सकती है मगर शहर में जब तक कि पहली नमाज़ ना हो जाए क़ुर्बानी नहीं हो सकती हैं चाहे इसने पढ़ी हो या ना पढ़ी हो इससे मतलब नहीं,और अगर किसी ने नमाज़ से पहले क़ुर्बानी कर ली तो उसका गोश्त तो खा सकता है मगर क़ुर्बानी दूसरी करनी होगी वरना गुनाहगार होगा,युंही अगर दिन में क़ुर्बानी करने वाला ना मिला या किसी तरह की पाबन्दी लगी हुई है तो रात में क़ुर्बानी कर सकते हैं जायज़ है.!

࿐ जानवरों की उम्र ये होनी चाहिए ऊंट 5 साल,गाय-भैंस 2 साल,बकरा-बकरी 1 साल,भेड़ का 6 महीने का बच्चा अगर साल भर के बराबर दिखता है तो क़ुर्बानी हो जायेगी.!

📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफह 139

࿐ जानवरो की जो उम्र बताई गई उसमे अगर 1 दिन भी कम होगा क़ुर्बानी नहीं होगी मसलन किसी बकरी ने बच्चा तीसरी बक़र ईद को दिया तो अगले साल पहले और दूसरे दिन भी उसकी क़ुर्बानी नहीं हो सकती हां दूसरी बक़र ईद को वो पूरा 1 साल का हो गया तो अब तीसरी को उसकी क़ुर्बानी हो सकती है,यहां ये भी ज़हन में रखें कि जानवर बेचने वाले अक्सर झूठी कसमें खाकर या ये कहकर कि घर का पला जानवर है 1 साल का पूरा हो चुका है बेच देते हैं,आपने खरीद लिया मगर कई लोगों ने देखने के बाद बताया कि वो 1 साल का नहीं है तो अगर वो लोग जानवरों की अच्छे जानकार हैं तो उसकी क़ुर्बानी नहीं हो सकती लिहाज़ा जानवर जांच कर साथ खरीदें.!

📬 फतावा आलमगीरी,जिल्द 1,सफह 160 📚

 

 

क़ुर्बानी का वक़्त और जानवर कौन ज़िबह् करे

 

क़ुर्बानी का वक़्त:- क़ुर्बानी का वक़्त 10वीं ज़ुल-हिज्जा की सुबह-सादिक़ (फ़जर का वक़्त) शुरू होने से 12वीं ज़ुल-हिज्जा के गुरूब आफ़ताब (सूरज डूबने) तक रहता है। यानी 3 दिन और दो रातें। लेकिन सबसे बेहतर 10वीं, फिर 11वीं, फिर 12वीं है।

मस्अला:- शहर में क़ुर्बानी की जाए तो शर्त यह है कि ईद की नमाज़ के बाद हो। और देहात में सुबह-सादिक़ से ही कर सकते हैं।

मस्अला:- बेहतर यह है कि जानवर को दिन में ज़िबह् किया जाए।

मस्अला:- क़ुर्बानी के वक़्त में क़ुर्बानी ही करना ज़रूरी है। इतनी क़ीमत या इतनी क़ीमत का जानवर सदक़ा करने से वाजिब अदा ना होगा।

मस्अला:- क़ुर्बानी के दिन गुज़र जाने के बाद क़ुर्बानी फौत हो गई। अब नहीं हो सकती। लिहाज़ा अगर कोई जानवर क़ुर्बानी के लिए खरीद रखा है तो सदक़ा कर दे। वरना एक बकरी की क़ीमत सदक़ा करे।

जानवर कौन ज़िबह् करे

1:- ज़िबह् करने वाला आक़िल (अकलमंद) हो। मजनू या इतना छोटा बच्चा जो बेअक़ल हो उनका ज़िबह् करना जाइज़ नहीं। हां अगर छोटा बच्चा ज़िबह् को समझता हो और उस पर कुदरत रखता हो तो उसका ज़िबह् किया हुआ हलाल है।

2:- ज़िबह् करने वाला मुसलमान हो। मुशरिक और बद-मज़हबों का ज़िबह् किया हुआ हराम है।

मस्अला:- औरत भी जानवर ज़िबह् कर सकती है।

(📕बहार-ए-शरिअ़त, हिस्सा 15)

 

क़र्बानी का गोश्त ख़ुद भी खा सकता है

 

मस्अला:- क़र्बानी का गोश्त ख़ुद भी खा सकता है। और दूसरे शख़्स अमीर वा ग़रीब को दे सकता है। खिला सकता है।

बेहतर यह है कि गोश्त के तीन हिस्से करें 👇

1:- एक हिस्सा फ़क़ीरों के लिए।

2:- एक हिस्सा दोस्तों के लिए।

3:- एक हिस्सा अपने घर वालों के लिए।

मस्अला:- सारा का सारा गोश्त सदका़ कर देना भी जाइज़ है। और सब घर ही रख ले यह भी जाइज़ है।

मस्अला:- क़ुर्बानी का गोश्त गैर मुस्लिम को ना दे।

मस्अला:- अगर जानवर में चंद लोग शरीक हैं तो गोश्त बराबर बराबर तोल कर बांटना ज़रूरी है। अटकल-अंदाज़े से बांटना दुरुस्त नहीं। किसी के पास कम ज़्यादा चला गया तो किसी के माफ़ करने से माफ़ नहीं होगा।

मस्अला:- क़ुर्बानी अगर मय्यत की तरफ़ से है। और मय्यत ने उसकी वसीयत की थी तो उसका सारा गोश्त फ़क़ीरों में सदका़ करना वाजिब है। और अगर मय्यत ने वसीयत नहीं की थी तो जैसे चाहे इस्तेमाल करे।

मस्अला:- क़ुर्बानी अगर मन्नत की है। तो उसका गोश्त ना ख़ुद खा सकता है। और ना गनी (मालिक-ए-निसाब) को खिला सकता है। बल्कि उसको सदका़ कर देना वाजिब है।

(📕बहार-ए-शरिअ़त, हिस्सा 15)

 

हदीस शरीफ़👇

हज़ूर ﷺ सल्लल्लाहू तआला अलैही व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया👇

अफ़ज़ल क़ुर्बानी वो है जो बा एतबारे क़ीमत आला हो और खूब फ़रबा हो,
📚 इमाम अहमद,
📚 बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफ़ह 131)

हदीस शरीफ़👇

हुजूर ﷺ ने रात में कुर्बानी करने से मना फ़रमाया,
📚 तिब्रानी

चार क़िस्म के जानवर क़ुर्बानी के लिए दुरुस्त नहीं
1, काना जिसका काना पन ज़ाहिर है, और
2, बीमार जिसकी बीमारी ज़ाहिर हो, और
3, लंगड़ा जिसका लंग ज़ाहिर है और
4, ऐसा लाग़र (कमज़ोर) जिसकी हड्डियों में मग़्ज़ ना हो,
📚 इमाम अहमद,
📚 बहारे शरीअत हिस्सा 15, सफ़ह 131)
📚 इमाम मालिक,
📚 तिर्मिज़ी,
📚 अबू दाऊद, निसाई, इब्ने माजा, व दारमी,

 

 

dua e Qurbani
Qurbani

 

माह-ए-ज़िलहिज्जा में मुकद्दस हस्तियों के उर्स-ए-मुबारक 1444 हिजरी

 

दीन-ए-इस्लाम का 12वां महीना

👉 ज़िलहिज्जा यानी हज वाला महीना। इस महीने में मुसलमान हज करते हैं।

👉 ईद-उल-अज़हा का त्योहार 10 ज़िलहिज्जा को मनाया जाता है।

👉 ज़िलहिज्जा के शुरुआती दस दिन बहुत फ़ज़ीलत वाले हैं।

👉 8 ज़िलहिज्जा – यौमे तरावियाह
👉 9 ज़िलहिज्जा – यौमे अरफ़ा
👉 10 ज़िलहिज्जा – यौम-उन-नहर

👆 उक्त तीन दिन तमाम दिनों में ज्यादा मुबारक हैं।

👉 क़ुर्बानी के केवल तीन दिन 10, 11 व 12 ज़िलहिज्जा

1. हज़रत सैयदना अब्दुल्लाह बिन उमर फारूक रदियल्लाहु तआला अन्हु : विसाल 👉 1 ज़िलहिज्जा 73 हिजरी, मजार 👉 मक्का शरीफ

2. हज़रत सैयदना अबू ज़र जुन्दब अल ग़फ़्फारी रदियल्लाहु तआला अन्हु : विसाल 👉 3 ज़िलहिज्जा 31 हिजरी, मजार 👉 Al Rabatha (Hijaaz/सऊदी अरब)

3. क़ुत्बे मदीना हज़रत अल्लामा मौलाना ज़ियाउद्दीन मदनी रज़वी रहमतुल्लाह तआला अलैह : विसाल 👉 3 ज़िलहिज्जा 1401 हिजरी, मजार 👉 जन्नतुल बक़ी, मदीना शरीफ

4. हज़रत सैयदना इमाम मोहम्मद अल बाक़िर रदियल्लाहु तआला अन्हु : विसाल 👉 7 ज़िलहिज्जा 114 हिजरी (28 जनवरी 733), विलादत 👉 3 रजब 57 हिजरी, मजार 👉 जन्नतुल बक़ी, मदीना शरीफ

5. हज़रत सैयदना मुस्लिम बिन अक़ील रदियल्लाहु तआला अन्हु, विसाल 👉 9 ज़िलहिज्जा 60 हिजरी

6. हज़रत सैयदना अब्दुर्रहमान बिन औफ रदियल्लाहु तआला अन्हु : विसाल 👉 14 ज़िलहिज्जा 33 हिजरी, मजार 👉 अम्मान, जॉर्डन

7. हज़रत तमीम अल अंसारी रदियल्लाहु तआला अन्हु, विसाल 👉 15 ज़िलहिज्जा, मजार 👉 कुआलम चेन्नई, तमिलनाडु

8. अशरफुल फुकहा हज़रत मुफ़्ती मोहम्मद मुजीब अशरफ क़ादरी, रज़वी अलैहिर्रहमां : विसाल 👉 15 ज़िलहिज्जा 1441 हिजरी (6 अगस्त 2020), विलादत 👉 2 रमज़ान 1356 हिजरी (6 नवम्बर 1937) मजार 👉नागपुर, महाराष्ट्रा

9. तीसरे खलीफा अमीरुल मोमिनीन हज़रत सैयदना उस्माने गनी रदियल्लाहु तआला अन्हु : विसाल 👉 18 ज़िलहिज्जा 35 हिजरी, मजार 👉 जन्नतुल बक़ी, मदीना शरीफ

10. हज़रत सैयद शाह आले रसूल अहमदी रहमतुल्लाह तआला अलैह : आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां रहमतुल्लाह तआला अलैह के पीरो मुर्शिद : विसाल 👉 18 ज़िलहिज्जा 1296 हिजरी, मजार 👉 मारहरा, एटा, (उप्र)

11. हज़रत सदरुल अफ़ाज़िल मौलाना सैयद मोहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह तआला अलैह : विसाल 👉 18 ज़िलहिज्जा 1367 हिजरी (13 अक्टूबर 1948), विलादत 👉 21 सफर 1300 हिजरी (1 जनवरी 1887), मजार 👉 मदरसा जामिया नईमिया, मुरादाबाद (उप्र)

12. हज़रत अबू उबैदा आमिर बिन जर्राह रदियल्लाहु तआला अन्हु : विसाल 👉 19 ज़िलहिज्जा 18 हिजरी, मजार 👉 Gaur Baisaan (Jordan valley) जॉर्डन

13. हज़रत मुबल्लिगे आज़म मौलाना शाह अब्दुल अलीम सिद्दीक़ी मेरठी रहमतुल्लाह तआला अलैह : विसाल 👉 22/23 ज़िलहिज्जा 1373 हिजरी (22 अगस्त 1954), मजार 👉 मदीना शरीफ

14. दूसरे खलीफा अमीरुल मोमिनीन हज़रत सैयदना उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु पर हमला : 👉26 ज़िलहिज्जा 23 हिजरी, विसाल 👉 1 मुहर्रम 24 हिजरी (7 नवम्बर 664), मजार 👉 पैगंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के रौजा मुबारक के अंदर हज़रत अबू बक़र सिद्दीक़ रदियल्लाहु तआला अन्हु के बगल में, मदीना शरीफ

15. हज़रत शैख़ अबू बक़र शिब्ली रहमतुल्लाह तआला अलैह, विसाल 👉 27 ज़िलहिज्जा 334 हिजरी, मजार 👉 बगदाद, इराक

16. हज़रत इमाम शहाबुद्दीन अबुल फज़ल अहमद इब्ने हजर अस्क़लानी रहमतुल्लाह तआला अलैह, विसाल 👉 28 ज़िलहिज्जा 852 हिजरी , विलादत 👉 23 शाबान 773 हिजरी (18 फरवरी 1372) मजार 👉 कैरो, मिस्र
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